________________
शाकटायन और उनका शब्दानुशासन
१५५
विशेष प्रकाश नहीं पड़ता। पं० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्यके खयालमें ये प्रभाचन्द्र न्यायकुमुदचन्द्र आदिके कतीसे भिन्न कोई दूसरे ही प्रभाचन्द्र हैं। संभव है कि वे यापनीय संघके ही हों।
३ चिन्तामणि टीका ( लघीयसी वृत्ति )—यह अमोघवृत्तिको ही संक्षिप्त करके रची गई है। इसके कर्ताका नाम यक्षवर्मा है । इनके विषयमें और कुछ मालूम नहीं है । ये कोई गृहस्थ विद्वान् थे।
४ माणिप्रकाशिका-'मणि' अर्थात् 'चिन्तामणि' को प्रकाशित करनेवाली टीका । इसके कर्ता आजितसेनाचार्य हैं । __ ५ प्रक्रिया-संग्रह-यह पाणिनिकी सिद्धान्तकौमुदीके ढंगकी प्रक्रिया टीका है । इसके कर्ती अभयचन्द्राचार्य हैं । प्रकाशित हो चुकी है।
शाकटायन टीका--भावसेन विद्यदेवकृत । कातन्त्रकी रूपमाला टीकाके कर्त्ता भी यही मालूम होते हैं । ये 'वादिपर्वतवज्र' कहलाते थे । इनका बनाया हुआ एक 'विश्वतत्त्वप्रकाश' नामका ग्रन्थ भी उपलब्ध है। __७ रूपसिद्धि-यह लघुकौमुदीके समान छोटी टीका है । इसके कर्ता दयापाल मुनि हैं। ये द्रविड़संघके थे । इनके गुरुका नाम मतिसागर था। ये पार्श्वनाथ-चरित और न्याय-विनश्चय आदिके कर्ता वादिराजसूरिके सधर्मा थे। पार्श्वनाथचरितकी रचना श० सं० ९४७ (वि० सं० १०५२ ) में हुई थी, अतएव इनका भी यही समय समझना चाहिए । यह टीका प्रकाशित हो चुकी है।
अमोघवृत्ति स्वोपज्ञ है अमोघवृत्ति स्वयं शाकटायन या पाल्यकीर्तिकी है, इसे स्व० डा० के० बी० पाठकने बहुत अच्छी तरह प्रतिपादित किया है । वे कहते हैं -
श्रीवीरममतं ज्योतिर्नत्वादिं सर्ववेधसां शब्दानुशासनस्येयममोघावृत्तिरुच्यते । अविनेनेष्टप्रसिद्धयर्थ मंगलमारभ्यतेनमः श्रीवर्द्धमानाय प्रबुद्धाशेषवस्तवे । येन शब्दार्थसम्बन्धाः सार्वेण सुनिरूपिताः॥ शब्दो वाचकः अर्थो वाच्यः तयोः सम्बन्धो योग्यता अथवा शब्दो आगमः १ हितैषिणां यस्य नृणामुदात्तवाचा निबद्धा हित-रूपसिद्धिः । वन्द्यो दयापालमुनिः स वाचा सिद्धस्सताम्मूर्द्धनि यः प्रभावैः ॥ १५
-श्रवणबेल्गोलका ५४ वा शिलालेख