________________
जैनसाहित्य और इतिहास
शाकटायन सूत्र-पाठर्मे इन्द्र, सिद्धनन्दि और आर्य वज्र इन तीन पूर्वाचार्यों का मत दिया है। ये तीनों दिगम्बर सम्प्रदायके नहीं मालूम होते । या तो ये यापनीय सम्प्रदाय के ही होंगे या फिर श्वेताम्बर सम्प्रदायके |
१६२
इन्द्र -- गोम्मटसार ( जीवकाण्ड ) में पाँच तरहके पाँच मिथ्यादृष्टियों के उदाहरण देते हुए लिखा है
एयंत बुद्धरसी विवरीओ ब्रम्ह तावसो विणओ । इंदोविय संसइयो मक्कडिओ चेव अण्णाणी ॥ १६ ॥
अर्थात् बौद्ध एकान्ती, ब्रह्म ( याज्ञिक ) विपरीत, तापस वैनयिक, इन्द्र संशयी और मस्करि ( आजीवक ) अज्ञानी मिथ्यादृष्टियों के उदाहरण हैं । इनमें से इन्द्रको टीकाकारने श्वेताम्बर गुरु बतलाया है । परन्तु इन्द्र नामके श्वेताम्बराचार्यका अभीतक कोई उल्लेख नहीं मिला है | बहुत सम्भव है कि वे यापनीय ही हों और श्वेताम्बरतुल्य होनेसे श्वेताम्बर कह दिये गये हैं । द्विकोटिगत ज्ञानको संशय कहते हैं, जो श्वेताम्बर सम्प्रदाय में घटित नहीं हो सकती । परन्तु यापनीयों को कुछ श्वेताम्बर और कुछ दिगम्बर होनेके कारण एक तरह से संशय - मिथ्यादृष्टि कहा जा सकता है | बहुत सम्भव है कि शाकटायन -सूत्रकारने इन्हीं इन्द्र गुरुका उल्लेख किया हो और यापनीय सम्प्रदायके ये कोई प्रसिद्ध आचार्य रहे हों ।
सिद्धनन्दि – इनके विषय में हम कुछ नहीं जानते; परन्तु ये भी यापनीय ही मालूम होते हैं । नन्द्यन्त नामधारी आचार्य यापनीयों में भी बहुत हुए हैंचन्द्रनन्दि, मित्रनन्दि, कीर्तिनन्दि, कुमारनन्दि आदि ।
आर्य वज्र - श्वेताम्बर सम्प्रदाय की कल्पसूत्र - स्थविरावली में अज वइर ( आर्य वज्र ) नामके एक आचार्यका नाम मिलता है जो आर्य सिंहगिरिके शिष्य और गोतम गोत्रके थे | तपागच्छ-पट्टावली के अनुसार दशपूर्वधारियों में उनकी गणना होती है और वीर नि० सं० ५८४ में उनका स्वर्गवास हुआ था । संभव है, शाकटायनने इन्हीं का उल्लेख किया हो । सम्प्रदाय-भेद होने के पहले होने के कारण तीनों सम्प्रदायवाले इनका उल्लेख कर सकते हैं । तिलोयपष्णतिके वज्रयश नामक अन्तिम प्रज्ञाश्रमण भी शायद यही हो ।
१ देखो दर्शनसार - विवेचना |