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नयचक्र और देवसेन सूरि
नयचक्र
आचार्य विद्यानन्द ने अपने श्लोकवार्तिकके ' नय- विवरण' नामक प्रकरणके अन्तमें लिखा है
संक्षेपेण नयास्तावद्व्याख्याताः सूत्रसूचिताः । तद्विशेषः प्रपञ्चेन संचिन्त्या नयचक्रतः ॥
अर्थात् तत्त्वार्थसूत्र में जिन नयका उल्लेख है, उनका हमने संक्षेपमें व्याख्यान कर दिया | यदि उनका विस्तारसे और विशेषतापूर्वक स्वरूप जानने की इच्छा हो तो ' नयचक्र से जानना ।
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इस उल्लेखसे मालूम होता है कि विद्यानन्द स्वामी से पहले ' नयचक्र' नामका कोई ग्रन्थ था जिसमें नयों का स्वरूप खूब विस्तार के साथ दिया गया है । परन्तु वह नयचक्र यही देवसेनसूरिका नयचक्र था, ऐसा नही जान पड़ता । क्योंकि यह बिलकुल ही छोटा है । इसमें कुल ८७ गाथायें हैं और माइल धवलके बृहत् नयचक्रमें भी नयसम्बन्धी गाथाओंकी संख्या इससे अधिक नहीं है । इन दोनों ही ग्रन्थों में नयोंका स्वरूप संक्षेप में लिखा गया है, भले ही वह स्वामी विद्यानन्दके नय- विवरण से कुछ ज्यादा हो । नय- विवरणकी श्लोकसंख्या ११८ है और उसमें नयोंका स्वरूप बहुत ही उत्तम रीति से नयचक्रकी भी अपेक्षा स्पष्टता से लिखा है । ऐसी दशामें यह संभव नहीं कि श्लोकवार्तिक के कर्ता अपने पाठकोंसे देवसेनसूरिके नयचक्रपरसे विस्तारपूर्वक नयोंका स्वरूप जानने की सिफारिश करते । इसके सिवाय जैसा कि आगे चलकर बतलाया जायगा, देवसेनसूरि विद्यानन्द स्वामीके पीछेके ग्रन्थकर्ता हैं । अतः श्लोकवार्तिक में जिस नयचक्रका उल्लेख है, वह कोई दूसरा ही नयचक्र होगा ।
श्वेताम्बरसंप्रदाय में ' मल्लवादि' नामके एक बड़े भारी तार्किक हो गये हैं ।