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पण्डितवर आशाधर
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यह समय पं० आशाधरके समयसे मेल खाता है और यह अनुमान करनेके लिए ललचाता है कि विशालकीर्ति अपने शिष्य मदनकीर्तिको समझानेके लिए शायद कोल्हापुरकी तरफ गये हों और तभी उन्होंने सोमदेवकी वैयावृत्ति की हो । प्रबन्धवर्णित विजयपुरनरेश कुन्तिभोज और सोमदेववर्णित वीर भोजदेव भी एक ही मालूम होते हैं।
यह प्रबन्ध मदनकीर्तिसे कोई सौ वर्ष बाद लिखा गया है । इससे सम्भव है कि इसमें कुछ अतिशयोक्ति हो, घटनाको कुछ गहरा रंग दे दिया गया हो या तोड़ा मरोड़ा गया हो, परन्तु इसमें कुछ तथ्य जरूर है।। __ मदनकीर्तिकी बनाई हुई 'शासनचतुस्त्रिंशतिका' नामक पाँच पत्रोंकी एक पोथी हमारे पास है जिसमें मंगलाचरणके एक अनुष्टुप श्लोकके अतिरिक्त ३४ शार्दूलविक्रीड़ित वृत्त हैं और प्रत्येकके अन्तमें 'दिग्वाससां शासनं' पद है। यह एक प्रकारका तीर्थक्षेत्रोंका स्तवन है जिसमें पोदनपुर, बाहुबलि, श्रीपुर-पार्श्वनाथ, शंख-जिनेश्वर, दक्षिण गोम्मट, नागद्रह-जिन, मेदपाट ( मेवाड़ ) के नागफणी ग्रामके पल्ली-जिनेश्वर, मालवाके मङ्गलपुरके अभिनन्दन जिन, आदिकी स्तुति हैं।
इसमें जो म्लेच्छोंके प्रतापका आगमन बतलाया है, उससे ये पं० आशाधरजीके ही समकालीन मालूम होते हैं । रचना इनकी प्रौढ़ है। पं० आशाधरजीकी प्रशंसा इन्होंने की होगी। अभीतक इनका और कोई ग्रन्थ नहीं मिला है।
५ बिल्हण कवीश-बिल्हण नामके अनेक कवि हो गये हैं। उनमें विद्यापति बिल्हण बहुत प्रसिद्ध हैं, जिनका बनाया हुआ विक्रमांकदेव-चरित है ।
१ इस प्रतिमें लिखनेका समय नहीं दिया है परन्तु वह दो तीनसौ वर्षसे कम पुरानी नहीं मालूम होती । जगह जगह अक्षर उड़ गये हैं जिससे बहुतसे पद्य पूरे नहीं पढ़े जाते।
२ श्रीजिनप्रभसूरिके - विविध तीर्थकल्प ' में ' अवन्तिदेशस्थ अभिनन्दनदेवकल्प , नामका एक कल्प है, जिसमें अमिनन्दन जिनकी भग्न मूतिके जुड़ जाने और अतिशय प्रकट होंनेकी कथा दी है । शासनचतुस्त्रिंशतिकांका मंगलपुरवाला पद्य यह है
श्रीमन्मालवदेशमंगलपुरे म्लेच्छप्रतापागते भग्ना मूर्तिरथोभियोजितशिराः सम्पूर्णतामाययौ । यस्योपद्रवनाशिनः कलियुगेऽनेकप्रभावैर्युतः, स श्रीमानभिनन्दनः स्थिरयतं दिग्वाससां शासनं ॥ ३४ ॥