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जैनसाहित्य और इतिहास
१२ काव्यालंकार-टीका-अलंकारशास्त्रके सुप्रसिद्ध आचार्य रुद्रटके काव्यालंकारपर यह टीका लिखी गई है । अप्राप्य ।
१३ सहस्रनामस्तवन सटीक-पण्डित आशाधरका सहस्रनाम स्तोत्र सर्वत्र सुलभ है । छप भी चुका है। परन्तु उसकी स्वोपज्ञ टीका अभीतक अप्राप्य है । बम्बईके सरस्वती-भवनमें इस सहस्रनामकी एक टीका है परन्तु वह श्रुतसागरसूरिकृत है।
१४ जिनयज्ञकल्प सटीक-जिनयज्ञकल्पका दूसरा नाम प्रतिष्ठासारोद्धार है । यह मूल मात्र तो पण्डित मनोहरलालजी शास्त्रीद्वारा सं० १९७२ में प्रकाशित हो चुका है । परन्तु इसकी स्वोपज्ञ टीका अप्राप्य है । इस ग्रन्थको पण्डितजीने अपने धर्भामतशास्त्रका एक अंग बतलाया है।।
१५ त्रिषष्टिस्मृतिशास्त्र सटीक-यह ग्रन्थ कुछ समय पूर्व माणिकचन्द्रग्रन्थमालामें मराठी अनुवादसहित प्रकाशित हो चुका है। संस्कृत-टीकाके अंश टिप्पणीके तौरपर नीचे दे दिये गये हैं।
१६ नित्यमहोद्योत-यह स्नान-शास्त्र या जिनाभिषेक अभी कुछ ही समय पहले पण्डित पन्नालालजी सोनीद्वारा संपादित 'अभिषेकपाठ-संग्रह' में श्रीश्रुतसागरसूरिकी संस्कृतटीकासहित प्रकाशित हो चुका है।
१७ रत्नत्रय-विधान-यह छोटा-सा आठ पत्रोंका ग्रन्थ बम्बइके ऐ० प. सरस्वती-भवनमें है।
२८ अष्टांगहृदयोद्योतिनी टीका-यह आयुर्वेदाचार्य वाग्भटके सुप्रसिद्ध ग्रन्थ वाग्भट या अष्टांगहृदयकी टीका है और अप्राप्य है ।
१९-२० सागार और अनगार-धर्मामृतकी भव्यकुमुदचन्द्रिका टीका-यह टीका पृथक् पृथक् दो जिल्दोंमें प्रकाशित हो चुकी है। १ – इसका मंगलाचरण यह है
श्रीवर्धमानमानम्य गौतमादींश्च सद्गुरून्
रत्नत्रयविधिं वक्ष्ये यथाम्नायां विमुक्तये ॥ २ — आशाधरविरचित पूजापाठ ' नामसे लगभग चारसौ पृष्ठका एक ग्रन्थ श्री नेमीशा आदप्पा उपाध्ये, उदगाँव ( कोल्हापुर ) ने कोई २० वर्ष पहले प्रकाशित किया था । परन्तु उसमें आशाधरकी मुश्किलसे दो चार छोटी छोटी रचनायें होंगी, शेष सब दूसरोंकी हैं । और जो हैं वे उनके प्रसिद्ध ग्रन्थों से ली गई जान पड़ती हैं ।