________________
देवनन्दि और उनका जैनेन्द्र व्याकरण
_ जैनेन्द्र और ऐन्द्र
मुग्धबोधकर्ता पं० बोपदेवने जिन आठ वैयाकरणोंके नामोंका उल्लेख किया है, उनमें एक — जैनेन्द्र' भी है'। ये जैनेन्द्र अथवा जैनेन्द्र व्याकरणके कर्ता कौन थे इस विषयमें इतिहासज्ञोंमें कुछ समय तक बड़ा विवाद चला था। डॉ० कीलहानने इसे जिनदेव अथवा भगवान् महावीरद्वारा इन्द्रके लिए कहा गया बतलाया था और इसके सुबूतमें उन्होंने कल्पसूत्रकी समयसुन्दरकृत टीका,
और लक्ष्मीवल्लभकृत उपदेशमाला-कर्णिकाका यह उल्लेख पेश किया था कि जिनदेव महावीर जिस समय आठ वर्षके थे उस समय इन्द्रने शब्दलक्षणसंबंधी कुछ प्रश्न किये और उनके उत्तररूप यह व्याकरण बतलाया गया, इसलिए इसका नाम जैनेन्द्र पड़ा।
श्वेताम्बरसम्प्रदायके और भी कई ग्रन्थों में इस प्रकारके उल्लेख मिलते हैं । कल्पसूत्रकी विनयविजयकृत सुबोधिका टीकामें लिखा है कि भगवानको माता१–इन्द्रश्चन्द्रः काशकृत्स्नापिशलीशाकटायनाः।
पाणिन्यमरजैनेन्द्रो जयन्त्यष्टौ च शाब्दिकाः ॥-धातुपाठ २ इंडियन एन्टिक्वेरी १०, पृ० २५१ ३-यदिन्द्राय जिनेन्द्रेण कौमारेपि निरूपितम् ।
ऐन्द्र जैनेन्द्रमिति तत्प्राहुः शब्दानुशासनम् ।। ४ [ शक्रः ] यत्र भगवान् तिष्ठति तत्र पण्डितगेहे समाजगाम । आगत्य च पण्डितयोग्ये आसने भगवन्तं उपवेश्य पण्डितमनोगतान् सन्देहान् पप्रच्छ, श्रीत्रीरोपि बालोयं किं वक्ष्यतीत्युत्कर्णेषु सकललोकेषु सर्वाणि उत्तराणि ददौ, ततो — जैनेन्द्रव्याकरणं ' जज्ञे । यतः
सक्को य तस्समक्खं भगवंतं आसणे निवेसित्ता । सद्दस्स लक्खणं पुच्छे वागरणं अवयवा इंदं ॥