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देवनन्दि और उनका जैनेन्द्र व्याकरण
श्रवणबेलगोलके नं० १०८ (२८५) के मंगराज कविकृत शिलालेखसे भी जो शकसंवत् १३६५ (वि० सं० १५०० ) का लिखा हुआ है, यही दो नाम प्रकट होते हैं।
जिनेन्द्रबुद्धि नामके एक और वैयाकरण हो गये हैं जिनका बनाया हुआ पाणिनि व्याकरणकी काशिका वृत्तिपर एक न्यास है। वे बोधिसत्त्वदेशीयाचार्य या बौद्ध साधु थे।
नन्दिसंघ-पट्टावलीसे भी देवनन्दिका दूसरा नाम पूज्यपाद प्रकट होता है। __ इनका संक्षिप्त नाम 'देव' भी था। आचार्य जिनसेने और वादिराजसूरिने इन्हें इसी संक्षिप्त नामसे स्मरण किया है।
अनेक लेखकोंने उन्हें केवल देवनन्दि नामसे और केवल पूज्यपाद नामसे स्मरण किया है और दोनों नामोंसे उन्हें वैयाकरण माना है।
महाकवि धनंजयकी नाममालामें एक श्लोक है जिसमें पूज्यपादको लक्षण-ग्रन्थ ( व्याकरण ) का कती माना है ।
१-श्रीपूज्यपादोद्धृतधर्मराज्यस्ततः सुराधीश्वरपूज्यपादः । यदीयवैदुष्यगुणानिदानी वदन्ति शास्त्राणि तदुद्धृतानि ॥ १५ ॥ धृतविश्वबुद्धिरयमत्र योगिभिः कृतकृत्यभावमनुबिभ्रदुच्चकैः । जिनवद्वभूव यदनङ्गचापहृत्स जिनेन्द्रबुद्धिरिति साधुवर्णितः ।। १६ ॥ श्रीपूज्यपादमुनिरप्रतिमोषधर्द्धिर्जीयाद्विदेहजिनदर्शनपूतगात्रः।
यत्पादधौतजलसंस्पर्शनप्रभावात् कालायसं किल तदा कनकीचकार ॥१७॥ २-यश:कीर्तिर्यशोनन्दी देवनन्दी महामतिः ।
श्रीपूज्यपादापराख्यो गुणनन्दी गुणाकरः ।। ३-कवीनां तीर्थकृद्देवः किं तसं तत्र वर्ण्यते । विदुषां वाङ्मलध्वंसि तीर्थ यस्य वचोमयम् ।। ५२ ॥
--आदिपुराण प्र० पव ४-अचिन्त्यमहिमा देवः सोऽभिवंद्यो हितैषिणा । शब्दाश्च येन सिद्धयन्ति साधुत्वं प्रतिलंभिताः ।। १८ ।।
-पार्श्वनाथचरित प्र० सर्ग ५-प्रमाणमकलंकस्य पूज्यपादस्य लक्षणम् ।।
धनंजयकवेः काव्यं रत्नत्रयमपश्चिमम् ॥ २० ॥