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देवनन्दि और उनका जैनेन्द्र व्याकरण
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श्रीदत्त दूसरे हों और जल्प-निर्णयके कर्ता दूसरे, तथा इन्हीं दूसरेका उल्लेख जैनेन्द्रमें किया गया हो। __ ५ यशोभद्र । आदिपुराणमें संभवतः इन्हीं यशोभद्रका स्मरण करते हुए कहा है कि विद्वानोंकी सभामें जिनका नाम कीर्तन सुननेसे ही वादियोंका गर्व खर्व हो जाता है।' इनके विषयमें और कोई उल्लेख नहीं मिला और न यही मालूम हुआ कि इनके बनाये हुए कौन कौन ग्रन्थ हैं ।
६प्रभाचन्द्र । आदिपुराणमें जिनसेन स्वामीने प्रभाचन्द्र कविकी स्तुति की है, जिन्होंने चन्द्रोदयकी रचना की थी परन्तु ये प्रभाचन्द्र न्यायकुमुदचन्द्रके क से भिन्न कोई दूसरे ही प्राचीन ग्रन्थकर्ता हैं । हरिवंशपुराणमें भी इनका स्मरण किया गया है । ये कुमारसेनके शिष्य थे । २
पूज्यपादके उपलब्ध ग्रन्थ जैनेन्द्र के सिवाय पूज्यपादस्वामीके बनाये हुए अब तक केवल चार ग्रन्थ उपलब्ध हुए हैं और ये चारों ही छप चुके हैं
१-सर्वार्थसिद्धि । आचार्य उमास्वातिकृत तत्त्वार्थसूत्रपर दिगम्बर सम्प्रदायकी उपलब्ध टीकाओंमें सबसे पहली टीका । अन्य सब टीकायें इसके बादकी हैं और वे सब इसको आगे रखकर लिखी गई हैं ।
२-समाधितंत्र । इसमें लगभग १०० श्लोक हैं, इसलिए इसे समाधिशतक भी कहते हैं । यह अध्यात्मका बहुत ही गम्भीर और तात्त्विक ग्रन्थ है। इसपर कई संस्कृत टीकायें लिखी गई हैं ।
३-इष्टोपदेश । यह केवल ५१ श्लोकोंका छोटा-सा ग्रन्थ है और सुन्दर तथा उपदेशपूर्ण है । पं० आशाधरने इसपर एक संस्कृत टीका लिखी है ।
४-दशभक्ति ( संस्कृत )-प्रभाचन्द्राचार्यने अपने क्रियाकलापमें इसका की पूज्यपाद या पादपूज्यको बतलाया है । सिद्धभक्ति आदिका अप्रतिहत प्रवाह और गंभीर शैली देखकर यह संभव भी मालूम होता है। १-विदुष्विणीषु संसत्सु यस्य नामापि कीर्तितम् ।
निखर्वयति तद् यशोभद्रः स पातु नः ॥ ४६ ॥ २ देखो न्यायकुमुदचन्द्रकी भूमिका ।