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जैनसाहित्य और इतिहास
सीमाओंसे युक्त उक्त गाँव है । आगे १९-२०-२१-२२ नंबरके श्लोक प्रायः सभी दानपत्रोंमें पाये जाते हैं, इसलिए उनका अर्थ लिखनेकी आवश्यकता नहीं मालूम होती । २३ वें श्लोकमें लिखा है कि यह 'शुभधाम जिनालय'का शासन ( दान) राजा अरिकेसरीने दिया, कवि पेद्दण भट्टने कहा ( रचा) और रेव नामक शिल्पीने उत्कीर्ण किया ( खोदा)।
१-इस दानपत्रमें दी हुई राष्ट्रकूटनरेश श्रीकृष्णराजदेवके महासामन्त चालुक्यवंशी अरिकेसरीकी पूर्व-परम्परा महाकवि पम्पके — विक्रमार्जुनविजय' (पम्प भारत ) से मिलती है।
२–यशस्तिलकमें अरिकेसरीके प्रथम पुत्रका नाम 'वागराज' मुद्रित हुआ है । हमने अनुमान किया था कि उसकी जगह बद्दिग होना चाहिए, वह इस लेखसे ठीक सिद्ध हो गया।
३- यशस्तिलककी रचना शक संवत् ८८१ में हुई थी और उस समय अरिकेसरीका प्रथम पुत्र बद्दिग राज्य करता था। यह दानपत्र उससे ७ वर्ष बाद बद्दिगके पुत्र अरिकेसरीके समयमें उत्कीर्ण हुआ है।
४-जिस बदिगके समयमें यशस्तिलककी रचना हुई है, वह जैनधर्मका उपासक होगा, क्योंकि उसके बनवाये हुए 'शुभधाम जिनालय' नामक मंदिरके लिए उसके पुत्र अरिकेसरीने यह दान किया था।
५- श्रीसोमदवसूरिके नीतिवाक्यामृत और यशस्तिलक चम्पू इन दो उपलब्ध ग्रन्थोंके सिवाय युक्तिचिन्तामणि, त्रिवर्गमहेन्द्रमातलिसंजल्प और षण्णवति प्रकरण इन तीन ग्रन्थोंका उल्लेख मिलता था। परन्तु इस दानपत्रसे स्याद्वादोपनिषत्का
और भी पता चलता है जो कि नीतिवाक्यामृतके बादकी रचना होगी। इनके सिवाय उनके अन्य भी कुछ सुभाषित थे ।
६-यशस्तिलककी प्रशस्तिके अनुसार ये देवसंघ-तिलक या देवसंघके आचार्य
१ महामहोपाध्याय पं० गौरीशंकरजी ओझाने अपने — सोलंकियोंका इतिहास में नेरूर गाँवसे मिले हुए एक ताम्रपत्रका उल्लेख किया है, जो शक संवत् ६२२ (वि० सं० ७५७ ) का है और जिसके अनुसार महाराजाधिराज विजयादित्यने पूज्यपादके शिष्य उदयदेवको · शंखजिनेन्द्र ' नामक जैनमन्दिरके निमित्त कर्दम नामका गाँव दान किया था । अर्थात् सोमदेवसूरिसे लगभग ढाई सौ वर्ष पहले भी मुनि दान लिया करते थे।