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सोमदेवसूरिका नीतिवाक्यामृत
थे, परन्तु इस दान-पत्रसे स्पष्ट होता है कि गौडसंघके थे और यह संघ अभी तक बिलकुल ही अश्रुतपूर्व है। जिस तरह आदिपुराणके कर्ता जिनसेनका सेनसंघ या सेनान्वय पंचस्तूपान्वय भी कहलाता था, शायद उसी तरह सोमदेवका देवसंघ भी गौडसंघ कहलाता हो । सम्भव है, यह नाम देशके कारण पड़ा हो । जैसे द्रविड़ देशका द्राविड़संघ, पुन्नाट देशका पुन्नाटसंघ, मथुराका माथुरसंघ, उसी प्रकार गौड देशका यह गौडसंघ होगा । गौड बंगालका पुराना नाम है, उस गौडसे तो शायद इस संघका कोई सम्बन्ध न हो; परन्तु दक्षिणमें ही कोई गोल, गोल, या गौड देश रहा है जिसका उल्लेख श्रवणबेलगोलके अनेक लेखोंमें ( १२४, १३०, १३८, ४९१ ) मिलता है । गोल्लाचार्य नामके एक आचार्य भी हुए हैं जो वीरनन्दिके शिष्य थे और पहले गोल देशके राजा थे। र-ल-डमें भेद नहीं होता है, इसलिए गोल और गोडको एक माननेमें कोई प्रत्यवाय नहीं है। __ ७-यह दानपत्र शक संवत् ८८८ (विक्रम संवत् १०२३ ) का अर्थात् विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दिके प्रथम पादका है। फिर भी उस समय दिगम्बर सम्प्र. दायके मुनियोंमें चैत्यवासका प्रचार हो गया था, अर्थात् वे वनोंमें न रहकर मन्दिरोंमें रहते थे और मन्दिरोंके लिए स्वयं उनके नामसे गाँव दान किये जाते थे । यह संभव है कि वे नम रहते हों; परन्तु यशस्तिलकके शब्दोंमें वे पूर्व मुनियोंकी छायामात्र ही थे । पिछले समयके महन्तों या भट्टारकोंका उन्हें पूर्वज समझना चाहिए । मूलाचार आदिमें वर्णित मुनियोंके चरित्रसे उनकी तुलना नहीं हो सकती। स्वयं सोमदेवसूरि कहते हैं कि "एको मुनिर्भवेल्लभ्यो न लभ्यो वा यथागमम्" अर्थात् आगमोक्त मुनि तो एकाध मिले भी और न भी मिले । उनके समयमें तो " एतच्चित्रं यदद्यापि जिनरूपधरा नराः ” यही आश्चर्य था कि अब भी दिगम्बररूपके धारण करनेवाले मनुष्य हैं।
८-इस समय निजाम राज्यमें जो मलखेड़ नामका छोटा-सा गाँव है वह उस समय राष्ट्रकूट-नरेशोंकी राजधानी मान्यखेट थी, और इस समय 'मेल्पाडि' नामका जो गाँव उत्तर अर्काट जिलेके वाँदिवाश तालुकेमें है, वह मेल्पाटी मालूम होता है । एपिग्राफिआ इंडिकाकी जिल्द ४ पृष्ठ २७८ में जो क-हाडताम्रपत्र प्रकाशित हुए हैं, वे फागुन वदी १३ शकसंवत् ८८० के हैं । उस समय राष्ट्रकूट राजा कृष्णराज (तृतीय) का मुकाम मेल्पाटीमें था और उक्त