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सोमदेवसूरिका नीतिवाक्यामृत
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ग्रन्थ-रचना- - इस समय सोमदेवसूरिके केवल दो ही ग्रन्थ उपलब्ध हैंनीतिवाक्यामृत और यशस्तिलकचम्पू । इनके सिवाय जैसा कि नीतिवाक्यामृतकी प्रशस्तिसे मालूम होता है तीन ग्रन्थ और भी हैं -- १ युक्तिचिन्तामणि, त्रिवर्गमहेन्द्रमातलिसंजल्प और ३ षण्णवतिप्रकरण | परन्तु अभीतक ये कहीं प्राप्त नहीं हुए हैं । इस लेख के अन्तमें जो ' दान-पत्र ' दिया गया है उसमें उन्हें स्याद्वादोपनिषत् ' का और अनेक सुभाषितोंका भी कर्त्ता बतलाया है । उक्त ग्रन्थोंमेंसे युक्तिचिन्तामणि तो अपने नामसे ही तर्कग्रन्थ मालूम होता है, दूसरा शायद नीतिविषयक हो । महेन्द्र और उसके सारथी मातलिके संवादरूपमें उसमें त्रिवर्ग अर्थात् धर्म, अर्थ और कामकी चर्चा की गई हो । तीसरेके नामसे सिवाय इसके कि उसमें ९६ प्रकरण या अध्याय हैं, विषयका कुछ भी अनुमान नहीं हो सकता है । चौथे में स्याद्वाद - न्यायका विवेचन होगा' |
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विशाल अध्ययन – यशस्तिलक और नीतिवाक्यामृतके पढ़ने से मालूम होता है कि सोमदेवसूरिका अध्ययन बहुत ही विशाल था । ऐसा जान पड़ता है कि उनके समय में जितना साहित्य – न्याय, व्याकरण, काव्य, नीति, दर्शन आदि सम्बन्धी उपलब्ध था, उस सबसे उनका परिचय था । केवल जैन ही नहीं, जैनेतर साहित्य से भी वे अच्छी तरह परिचित थे । यशस्तिलक के चौथे आश्वासमें ( पृ० ११३ में ) उन्होंने लिखा है कि उर्व, भारवि, भवभूति, भर्तृहरि, भर्तृमेण्ठ, कण्ठ, गुणाढ्य, व्यास, भार्से, वोस, कालिदास, बार्णे, मयूर, नारायण, कुमार, माघ और राजशेखर आदि महाकवियोंके काव्यों में नग्न क्षपणक या दिगम्बर साधुओं का उल्लेख क्यों आता है ? उनकी इतनी अधिक प्रसिद्धि क्यों है ?
१ माणिकचन्द - ग्रन्थमाला के ' तत्त्वानुशासनादि संग्रह ' में ' अध्यात्मतरंगिणी' नामका ४० पद्योंका एक छोटा-सा प्रकरण प्रकाशित हुआ है । बम्बईके ऐ० पन्नालाल सरस्वती. भवनमें इसकी जो प्रति है उसमें इसका नाम ' योगमार्ग' लिखा है और यही नाम ठीक मालूम होता है । संभव है, यह ' षण्णवतिप्रकरण में का ही एक प्रकरण हो अथवा अन्य किसी सोमदेवका हो । २ भास महाकविका ' पेया सुरा प्रियतमामुखमीक्षणीयं ' आदि पद्य भी पाँचवें आश्वासमें ( पृ० २५० ) उद्धृत है । ३ रघुवंशका भी एक जगह ( आश्वास४, पृ० १९४ ) उल्लेख है । ४ बाण महाकविका एक जगह और भी ( आ० ४, पृ० १०१ ) उल्लेख है और लिखा है कि उन्होंने शिकारकी निन्दा की है ।