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जैनसाहित्य और इतिहास
इस अरिकेसरीके ही समयमें कनड़ी भाषाका सर्वश्रेष्ठ कवि पम्प हो गया है जिसकी रचनापर मुग्ध होकर अरिकेसरीने धर्मपुर नामका एक ग्राम पारितोषिकमें दिया था। पम्प जैन था। उसके बनाये हुए दो ग्रन्थ ही इस समय उपलब्ध हैं—एक आदिपुराण चम्पू और दूसरा भारत या विक्रमार्जुनविजय । पिछले ग्रन्थमें उसने अरिकेसरीकी वंशावली इस प्रकार दी है—युद्धमल्ल-अरिकेसरीनारसिंह—युद्धमल्ल-बद्दिग-युद्धमल्ल-नारसिंह और अरिकेसरी । उक्त ग्रन्थ शक संवत् ८६३ (वि० ९९८ में ) समाप्त हुआ है, अर्थात् वह यशस्तिलकसे कोई १८ वर्ष पहले बन चुका था। इसकी रचनाके समय अरिकेसरी राज्य करता था, तब उसके १८ वर्ष बाद-यशस्तिलककी रचनाके समय-उसका पुत्र राज्य करता होगा, यह सर्वथा ठीक अँचता है ।।
काव्यमालाद्वारा प्रकाशित यशस्तिलकमें अरिकेसरीके पुत्रका नाम 'श्रीमद्वागराज' मुद्रित हुआ है। परन्तु हमारी समझमें वह अशुद्ध है। उसकी जगह ' श्रीमद्दिगराज' पाठ होना चाहिए । दानवीर सेठ माणिकचंदजीके सरस्वतीभंडारकी वि० सं० १४६४ की लिखी हुई प्रतिमें ' श्रीमद्द्यगराजस्य' पाठ है
और इससे हमें अपने कल्पना किये हुए पाठकी शुद्धतामें और भी अधिक विश्वास होता है। ऊपर जो हमने पम्पकवि-लिखित अरिकेसरीकी वंशावली दी है, उसपर पाठकोंको जरा बारीकीसे विचार करना चाहिए । उसमें युद्धमल्ल नामके तीन, अरिकेसरी नामके दो और नारसिंह नामके दो राजा हैं । अनेक राजवंशोंमें प्रायः यही परिपाटी देखी जाती है कि पितामह और पौत्र या प्रपितामह और प्रपौत्रके नाम एकसे रक्खे जाते थे, जैसा कि उक्त वंशावलीसे प्रकट होता है । अतएव हमारा अनुमान है कि इस वंशावलीके अन्तिम राजा अरिकेसरी (पम्पके आश्रयदाता ) के पुत्रका नाम बद्दिगै ही होगा जो कि लेखकोंके प्रमादसे 'वद्यग'
१ दक्षिणके राष्ट्रकूटोंकी वंशावलीमें भी देखिए कि अमोघवर्ष नामके चार, कृष्ण या अकालवर्ष नामके तीन, गोविन्द नामके चार, इन्द नामके तीन और कर्क नामके तीन राजा लगभग २५० वर्षके बीचमें ही हुए हैं ।
२ श्रद्धेय पं० गौरीशंकर हीराचन्द ओझाने अपने ‘सोलंकियोंके इतिहास ' ( प्रथम भाग ) में लिखा है कि सोमदेवसूरिने अरिकेसरीके प्रथम पुत्रका नाम नहीं दिया है; परन्तु ऐसा उन्होंने यशस्तिलककी प्रशस्तिके अशुद्ध पाठके कारण समझ लिया है; वास्तवमें नाम दिया है और वह 'बद्दिग' ही है।