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जैनसाहित्य और इतिहास
कनड़ी टीका-नीतिवाक्यामृतपर जैन विद्वानोंके भी टीका-ग्रन्थ होने चाहिए। पं० के० भुजबलि शास्त्रीने (जै० सि० भा० भाग २ अंक १) कनड़ीभाषाके कवि नेमिनाथकी एक कनड़ी टीकाका परिचय दिया है जो कारकलके जैन छात्रावासमें मौजूद है । नेमिनाथ किसी राजाके सान्धिविग्रहिक मंत्री थे और उन्होंने मेघचन्द्रविद्यदेव और वीरनन्दिका स्मरण किया है। ये मेघचन्द्र वही हैं जिन्हें आचारसारके कर्ता वीरनन्दिने अपना गुरु बतलाया है । श्रवणबेल्गोलके शिलालेख नं० ४७-५०-५२ के अनुसार मेघचन्द्रका स्वर्गवास शक १०३७ ( वि० सं० ११७२) में हुआ था और वीरनन्दिने अपने आचारसारकी कनड़ी टीका शक १०७६ ( वि० सं० १२११) में लिखी थी। नेमिनाथने नीतिवाक्यामृतकी यह टीका वीरनन्दिकी आज्ञासे लिखी थी। अतएव उनका समय विक्रमकी बारहवीं शताब्दिका अन्त या तेरहवीं शताब्दिका. प्रारंभ मानना चाहिए । यह टीका संभवतः संस्कृतटीकाके ही आधारसे लिखी गई है।
संस्कृत टीकाकारपर आक्षेप माणिकचन्द-ग्रन्थमालामें जो 'नीतिवाक्यामृत' प्रकाशित हुआ है, उसके संशोधक पं० पन्नालालजी सोनीने अपनी टिप्पणियोंमें टीकाकारपर कुछ आक्षेप किये हैं,
१-टीकाकारने जो मनु, शुक्र और याज्ञवल्क्यके श्लोक उद्धृत किये हैं, वे मनुस्मृति, शुक्रनीति और याज्ञवल्क्यस्मृतिमें नहीं हैं । यथा पृष्ठ १६५ की टिप्पणी-" श्लोकोऽयं मनुस्मृतौ तु नास्ति । टीकाकर्ता स्वदौष्टयेन ग्रन्थकर्तृपराभवाभिप्रायेण बहवः श्लोकाः स्वयं विरचय्य तत्र तत्र स्थलेषु विनिवेशिताः ।' अर्थात् यह श्लोक मनुस्मृतिमें तो नहीं है, टीकाकारने अपनी दुष्टतावश मूलकर्त्ताको नीचा दिखानेके अभिप्रायसे स्वयं ही बहुतसे लोक बनाकर जगह जगह घुसेड़ दिये हैं।
२-इस टीकाकारने-जो कि निश्चयपूर्वक अजैन है-बहुतसे सूत्र अपने मतके अनुसार स्वयं बनाकर जोड़ दिये हैं । यथा पृष्ठ ४९ की टिप्पणी-" अस्य ग्रन्थस्य कर्ता कश्चिदजैनविद्वानस्तीति निश्चितं । अतस्तेन स्वमतानुसारेण बहूनि सूत्राणि विरचय्य संयोजितानि । तानि च तत्र तत्र निवेदयिष्यामः।"