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जैनसाहित्य और इतिहास
रणमें पूज्यपाद है, फिर इस समय सोमदेवके साथ किस बिरतेपर बात करने चला है ? '
इस उक्तिसे स्पष्ट है कि सोमदेवसूरि तर्क और सिद्धान्तके समान व्याकरणशास्त्रके भी पण्डित थे। । राजनीतिज्ञता-सोमदेवके राजनीतिज्ञ होनेका प्रमाण यह नीतिवाक्यामृत तो है ही, इसके सिवाय उनके यशस्तिलकमें भी यशोधर महाराजका चरित्रचित्रण करते समय राजनीतिकी बहुत ही विशद और विस्तृत चर्चा की गई है। पाठकोंको चाहिए कि वे इसके लिए यशस्तिलकका तृतीय आश्वास अवश्य पढ़ें।
यह आश्वास राजनीतिके तत्त्वोंसे भरा हुआ है। इस विषयमें वह अद्वितीय है। वर्णन करनेकी शैली बड़ी ही सुन्दर है। कवित्वकी कमनीयता और सरसतासे राजनीतिकी नीरसता न मालूम कहाँ चली गई है। नीतिवाक्यामृतके अनेक अंशोंका अभिप्राय उसमें किसी न किसी रूपमें अन्तर्निहित जान पड़ता है। __ जहाँ तक हम जानते हैं जैन विद्वानों और आचार्योंमें-दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनोंमें-एक सोमदेवने ही राजनीतिशास्त्रपर कलम उठाई है। अतएव जैन विद्वानों द्वारा निर्मित साहित्यमें उनका नीतिवाक्यामृत अद्वितीय है। कमसे कम अब तक तो इस विषयका कोई दूसरा ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हुआ है।
१ अकलंकदेव-अष्टशती, राजवातिक आदि ग्रन्थोंके रचियता । हंस सिद्धान्तदेव-ये कोई सैद्धान्तिक आचार्य जान पड़ते हैं । पूज्यपाद-जैनेन्द्र व्याकरणके कर्ता देवनन्दि ।
२ नीतिवाक्यामृत और यशस्तिलकके कुछ समानार्थक वचनोंका मिलान कीजिए--- क-बुभुक्षाकालो भोजनकाल:-नी० वा०, पृ० २५३ ।। चारायणो निशि, तिमिः पुनरस्तकाले, मध्ये दिनस्य धिषणश्चरकः प्रभाते । भुक्तिं जगाद नृपते मम चैष सर्गस्तस्याः स एव समयः क्षुधितो यदैव ॥३२८॥
-यशस्तिलक, आ० ३, पृ० ५०९ (पूर्वोक्त पद्यमें चारायण, तिमि, धिषण और चरक इन चार आचार्योके मतोंका उल्लेख किया गया है।)
ख-कोकवदिवाकाम: निशिभुञ्जीत । चकोरवन्नक्तंकाम:दिवापकम् ।-नी० पृ० २५७ अन्ये विदमाहुःयः कोकवदिवाकामः स नक्तं भोक्तुमर्हति । स भोक्ता वासरे यश्च रात्रौ रन्ता चकोरवत् ॥ ३३० ।-यशस्तिलक, आ०२