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यापनीय साहित्यकी खोज
साथ मेल नहीं खाती हैं । उनका अभिप्राय यह है कि लब्धियुक्त और मायाचार. रहित चार मुनि ग्लानिरहित होकर क्षपकके योग्य निर्दोष भोजन और पानक. (पेय ) लावें । इसपर पं० सदासुखजीने आपत्ति की है और लिखा है कि “ यह भोजन लाने की बात प्रमाणरूप नाहीं है।” इसी तरह ‘सेजोगासणिसेजो' आदि गाथापर (जो मूलाचारमें भी है ) कविवर वृन्दावनदासजीको शंका हुई थी और उसका समाधान करनेके लिए दीवान अमरचन्दजीको पत्र लिखा था। दीवानजीने उत्तर दिया था कि “ इसमें वैयावृत्ति करनेवाला मुनि आहार आदिसे मुनिका. उपकार करे; परन्तु यह स्पष्ट नहीं किया है कि आहार स्वयं हाथसे बनाकर दे । मुनिकी ऐसी चर्या आचारांगमें नहीं बतलाई है।"
८ आराधनाका चालीसवाँ ‘विजहना' नामका अधिकार भी विलक्षण और दिगम्बर सम्प्रदायके लिए अभूतपूर्व है, जिसमें मुनिके मृत शरीरको रात्रि-भर जागरण करके रखनेकी और दूसरे दिन किसी अच्छे स्थानमें वैसे ही (बिना जलाये) छोड़ आनेकी विधि वर्णित है । अन्य किसी दिगम्बर ग्रन्थमें अभी तक यह पारसी लोगों जैसी विधि देखने में नहीं आई है ।
९ नम्बर १५४४ की गाथामें कहा है कि घोर अवमोदर्य या अल्प भोजनके कष्टसे बिना संक्लेश बुद्धिके भद्रबाहु मुनि उत्तम स्थानको प्राप्त हुएँ । परन्तु दिगम्बर सम्प्रदायकी किसी भी कथामें भद्रबाहुके इस ऊनोदर-कष्टके सहनका उल्लेख नहीं है ।
१० नं० ४२८ की गाथा में आधारवत्त्व गुणके धारक आचार्यको 'कप्पववहारधारी' विशेषण दिया है और कल्प-व्यवहार, निशीथ सूत्र, श्वेताम्बर सम्प्रदायके प्रसिद्ध १--सेजोगासणिसेजा तहो उवहिपडिलिहरणहि उवगाहो ।-मूलाचार ३९१ आहारोसयभोयणविकिंचणं वंदणादणं ॥
-भगवती आराधना ३१० २–देखो — आराधना और उसकी टीकायें ' शीर्षक लेख । ३-देखो भ० अ० वचनिकाकी भूमिका पृष्ठ १२ और १३ ४-ओमोदारिए घोराए भद्दबाहुअसंकिलिहमदी ।
घोराए विगिंछाए पडिवण्णो उत्तमं ठाणं ।। ५-चोदस-दस-णव-पुव्वी मतामदी सायरोव्व गंभीरो ।
कप्पववहारधारी होदि हु आधारवं णाम ।।