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सोमदेवसूरिका नीतिवाक्यामृत
ग्रन्थपरिचय
सोमदेवसूरिका 'नीतिवाक्यामृत' संस्कृत साहित्य - सागरका एक अमूल्य और अनुपम रत्न है । इसका प्रधान विषय राजनीति है । राजा और उसके राज्य-शासनसे सम्बन्ध रखनेवाली प्रायः सभी आवश्यक बातोंका इसमें विवेचन किया गया है । यह सारा ग्रन्थ गद्य में है और सूत्र -पद्धति से लिखा गया है । इसकी प्रतिपादनशैली बहुत ही सुन्दर, प्रभावशालिनी और गभीर है । बहुत बड़ी बातको एक छोटेसे वाक्य में कह देनेकी कला में इसके कर्त्ता सिद्धहस्त हैं । जैसा कि ग्रन्थके नामसे ही प्रकट होता है, इसमें विशाल नीति- समुद्रका मन्थन करके सारभूत अमृत संग्रह किया गया है और इसका प्रत्येक वाक्य इस बातकी साक्षी देता है ।
यह ग्रन्थ ३२ समुद्देशों में विभक्त है और प्रत्येक समुद्देशमें उसके नामके अनुसार विषय प्रतिपादित हैं ।
प्राचीन राजनीतिक साहित्य
राजनीति, चार पुरुषार्थों मेंसे दूसरे अर्थपुरुषार्थके अन्तर्गत है । जो लोग यह समझते हैं कि प्राचीन भारतवासियोंने 'धर्म' और 'मोक्ष' को छोड़कर अन्य पुरुषार्थों की ओर ध्यान नहीं दिया, वे इस देश के प्राचीन साहित्य से अपरिचित हैं । यह सच है कि पिछले समय में इन विषयोंकी ओरसे लोग उदासीन होते गये, इनका पठन पाठन बन्द होता गया और इस कारण इनके सम्बन्धका जो साहित्य था वह धीरे धीरे नष्टप्राय होता गया फिर भी इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि राजनीति आदि विद्याओं की भी यहाँ खूब उन्नति हुई थी और इनपर अनेकानेक ग्रन्थ लिखे गये थे ।
उक्त ग्रन्थोंमेंसे राजनीतिका महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'कौटिलीय अर्थशास्त्र ' अबसे