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जैनसाहित्य और इतिहास
लगभग २२०० वर्ष पहले मौर्यवंशीय सम्राट चन्द्रगुप्तके' लिए आर्य चाणक्यने निर्माण किया था। नन्दवंशका समूल उच्छेद करके उसके सिंहासनपर चन्द्रगुप्तको आसीन करानेवाले चाणक्य कितने बड़े राजनीतिज्ञ थे, यह बतलानेकी आवश्यकता नहीं है। उनकी राजनीतिज्ञताका सबसे अधिक उज्ज्वल प्रमाण यह अर्थशास्त्र है। यह एक अद्भुत ग्रन्थ है और उस समयकी शासन-व्यवस्थापर ऐसा प्रकाश डालता है जिसकी पहले किसीने कल्पना भी न की थी। इसे पढ़नेसे मालूम होता है कि उस प्राचीन कालमें भी इस देशने राजनीतिमें आश्चर्यजनक उन्नति कर ली थी। इस ग्रन्थमें मनु, भारद्वाज, उशना ( शुक्र ), बृहस्पति, विशालाक्ष, पिशुन, पराशर, वातव्याधि, कोणपदन्त और बाहुदन्तीपुत्र नामक प्राचीन आचार्योंके राजनीतिसम्बन्धी मतोंका जगह जगह उल्लेख मिलता है । आर्य चाणक्य प्रारंभमें ही कहते हैं कि पृथिवीके लाभ और पालनके लिए पूर्वाचार्योंने जितने अर्थशास्त्र प्रस्थापित किये हैं, प्रायः उन सबका संग्रह करके यह अर्थशास्त्र लिखा जाता है। इससे मालूम होता है कि चाणक्यसे भी पहले इस विषयके अनेकानेक ग्रन्थ मौजूद थे और चाणक्यने उन सबका अध्ययन किया था।
चाणक्यके बादका एक और प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध है जिसका नाम 'नीतिसार' है और जिसे संभवतः चाणक्यके ही शिष्य कामन्दक नामक विद्वानने अर्थशास्त्रको संक्षिप्त करके लिखा है । अर्थशास्त्र प्रायः गद्यमें है; परन्तु नीतिसार श्लोकबद्ध है।
१ जान पड़ता है कि चन्द्रगुप्त मोर्य जैनधर्मके उपासक थे। तिलोयपण्णत्ति ' नामक प्राकृत ग्रन्थमें-जो विक्रमकी पाँचवीं शताब्दिके लगभगका है-लिखा है कि मुकुटधारी राजाओंमें सबसे अन्तिम राजा चन्द्रगुप्त था जिसने जिनदीक्षा ली।-देखो लोकविभाग और तिलोयपण्णति ' शीर्षक लेख।
२ सर्वशास्त्रानुपक्रम्य प्रयोगानुपलभ्य च ।
कौटिल्येन नरेन्द्रार्थे शासनस्य विधिः कृतः ॥ येन शास्त्रं च शस्त्रं च नन्दराजगता च भूः ।
अमर्षेणोद्धृतान्याशु तेन शास्त्रमिदं कृतम् ॥ ३-पृथिव्या लाभे पालने च यावन्त्यर्थशास्त्राणि पूर्वाचार्यैः प्रस्थापितानि प्रायशस्तानि संहृत्यैकमिदर्थशास्त्रं कृतम् ।
४-देखो गुजराती प्रेस बम्बईके ' कामन्दकीय नीतिसार ' की भूमिका ।