________________
यापनीय साहित्यकी खोज
४७
पहला उद्धरण ' आचार-प्रणिधि' का है और यह आचार-प्रणिधि दशवैकालिक सूत्रके आठवें अध्ययनका नाम है। उसमें लिखा है कि पात्र और कम्बलकी प्रतिलेखना करना चाहिए कि वे निर्जन्तुक हैं या नहीं। और फिर कहा है कि प्रतिलेखना तो तभी की जायगी जब पात्र-कम्बलादि होंगे, उनके बिना वह कैसे होगी ? दूसरा उद्धरण आचारांगसूत्रका है। उसके 'लोक-विचय' नामके दूसरे अध्ययनके पाँचवें उद्देश्यमें भी कहा है कि भिक्षु पिच्छिका, रजोहरण, उग्गह और कटासन इनमेंसे कोई उपधि रक्खे । ।
इसके आगे वत्थेसणा ( वस्त्रेपणा) और पाएषणा ( पात्रेषणा ) के तीन उद्धरण दिये हैं जिनका सारांश यह है कि जो साधु ह्रीमान या लजालु हो, वह एक वस्त्र तो धारण करे और दूसरा प्रतिलेखनाके लिए रक्खे, जिसका लिंग बेडौल जुगुप्साकर हो वह दो वस्त्र तो धारण करे और तीसरा प्रतिलेखनाके लिए रक्खे और जिसे शीतादि परिषह सहन न हो वह तीन वस्त्र धारण करे और चौथा प्रतिलेखनाके लिए रक्खे । यदि मुझे तूंबी, लकड़ी या मिट्टीका अल्पप्रमाण, अल्पबीज, अल्पप्रसार, और अल्पाकारवाला पात्र मिलेगा, तो उसे ग्रहण करूँगा। . इन उद्धरणोंको देकर पूछा है कि यदि वस्त्र-पात्रादि ग्राह्य न हों तो फिर ये सूत्र कैसे लिये जाते हैं ? ७
इसके आगे भावना (आचारांगसूत्रका २४ वाँ अध्ययन) का उद्धरण दिया है कि भगवान् महावीरने एक वर्ष तक वस्त्र धारण किया और उसके बाद वे अचेलक ( निर्वस्त्र ) हो गये ।
१-आचारप्रणिधौ भणितं । २-३-प्रतिलिखेत्पात्रकम्बलं ध्रुवमिति । असत्सु पात्रादिषु कथं प्रतिलेखना ध्रुवं क्रियते। ४-आचारस्यापि द्वितीयाध्यनो लोकविचयो नाम, तस्य पञ्चमे उद्देशे एवमुक्तम् । पडिलेहणं पादपुंछणं उग्गहं कडासणं अण्णदरं उपधि पावेज इति। ५तथा वत्थेसणाए वुत्तं तत्थ एसे हिरिमणे सेगं बत्थं वा धारेज, पडिलेहणं विदियम् । तत्थ एसे जग्गिदे दुवे बत्थाण धारेज पडिलेहेणं तिदियम् । तत्थ एसे परिस्सहं अणधिहासस्स तगो वत्थाणि धारेज पडिलेहणं चउत्थम् ।।
६ पुनश्चोक्तं तत्रैव-आलाबुपत्तं वा दारुगपत्तं वा मट्टिगपत्तं वा अप्पपाणं अप्पबीनं अप्पसरिदं तथा अप्पाकारं पात्रलाभे सति पडिग्गहिस्सामीति ।
७ वस्त्रपात्रे यदि न ग्राह्ये कथमेतानि सूत्राणि नीयन्ते ? ८ वरिसं चीवरधारी तेन परमचेलके तु जिणे ।