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-उपासानक्ता ५-देव्या हातारी ई-सिम्यादच्या त्वष्टा वनस्पति 6-स्वाहा कृनयः--
प्रशानयाग के प्रारम्भ में जो ग्यारह पाहुतियाँ दी जाती हैं. उसका नाम प्रयाजयाग है । जिनसे देव प्रसन्न होते हैं इसी लिये इनका नाम पानीः हैं-बारह मन्त्र हैं और बारह ही प्रधान देवता-१-इध्म ( समिधाएँ )२-तनूनपात (आय) ३-मराशंस (यज्ञ) ४-इन्छ (यज्ञि श्रानि)-वत (कुश) ६-द्वार (गृहातार श्रादि) ४-पुषासानक्ता (अहोरात्र) ८-दत्यौहोनारी (पार्थिव और चैद्युत अग्नि) 6-तिस्रो देश्यः (इदा भारती सरस्वती) १ -त्वष्टा (रूपकृदुवायु) ११-बनस्पति (यूप:- यज्ञ के ग् ट) १:-स्वाहाकृति (स्थाहाकार)--यद्यपि .. और ये 5 ( है सपि मापा और नराशंसको एक मान कर ग्यारह ही होंगे। प्रधानयाग के पश्चात जो ग्यारह आहुनियाँ दी जाती हैं. हैं. अनुयाजयाग-वतः, द्वारः उपासानता. जोष्टी. मडगौहोतारी, तिश्नांदेव्यः नसशसः वनस्पनिः धाई स्विकृत---
इनमें बह शब्द दा बार आया है-इमलिया उसके मां विशेष भद मानने चाहिये
उपग्राज देवता ये हैं-समुद्र, अन्तरिक्ष सविना अहोरात्र मित्रा बरुण सोम. छन्द दावापृथिवी. दिध्यनभ, धैश्वानर---ऋग्वेद में प्रधान नीन ही देवनाएं हैं. अग्न. वायु, अनित्य । पृथिव्यादि. गौण देवता हैं और इध्मादि पारिभाषिक देवना है।
( ऋग्वेना लोचन से)