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देव अथवा देवता
जिनको उद्देश्य करके द्रव्याहुति दी जाती है ये देव हैं। देव कहिये देवता कहिये है एक ही बात | मुख्य देवता तीन हैं. अभि. वायु और सूर्य । शेष सत्र देवता इन्हीं के अंग प्रत्यक्ष हैं ।
तेतीस देवता
ऐतरेय ब्राह्मणकार तेतीस देवताओं को मानते हैं वह इस प्रकार -आठ वसु एकादशन्द्र, द्वादश आदित्य, प्रजापति और कार-तास तभी दो गए हैं १ - सोमप देवता २-सांमप देवता । पूर्वोक्त आठ वसु आदि सौमप देवता हैं। एकादश प्रयाज, एकादश अनुयाज एकादश उपयाज ये तेतीस सोम देवता है ।
सोमप- परिचय
बसु - (८) आदित्य रश्मियाँ आदि ( निरुक्त ) अथवा पार्थिवामि वैशुता और सूर्यामि और इनके अवान्तर भे मिलाकर आठ श्रभिये । तैत्तिरीयारण्यक में पार्थियाभि के ही आठ भेद माने गये हैं । शतपथ १- अभि. २- पृथिवी. ३- वायु, ४- अन्तरिक्ष. ५ - श्रादित्य, ६-यौ ७- चन्द्रमा ८-नक्षत्र इनको बसु मानता है। इन्हीं के आधार से प्राणि मात्र जीवन व्यतीत करते हैं..
रुद्र - (११) वायु विशेष प्राण, अपान, व्यान, समान. उदान. देवदत्त, कुकल, नाग. कर्म. धनञ्जय ये दश प्राण और श्रात्मा । (शतपथ ) जब ये शरीर से निकलते हैं तब प्राणी मात्र