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FFFFFFFFFFFFFER 卐बन्ध के हेतु हैं) से युक्त थे, इसलिए उन्हें भी पांचों कियाएं लगती हैं। सिद्धों के अचेतन शरीर जीवहिंसा के निमित्त 卐 होने पर भी सिद्धों को कर्मबन्धन नहीं होता है, न उन्हें कोई क्रिया लगती है, क्योंकि उन्होंने शरीर का तथा कर्मबन्ध 3 के हेतु अविरति परिणाम का सर्वथा त्याग कर दिया था।
इसके अतिरिक्त, अपने भारीपन आदि के कारण जब बाण नीचे गिरता है, तब जिन जीवों के शरीर से वह yबाण बना है, उन्हें पांचों क्रियाएं लगती हैं, क्योंकि बाणादिरूप बने हुए जीवों के शरीर तो उस समय मुख्यतया 卐 卐 जीवहिंसा में प्रवृत्त होते हैं, जब कि धनुष की डोरी, धनुःपृष्ठ आदि साक्षात् वधक्रिया में प्रवृत्त न होकर केवल卐 卐 निमित्तमात्र बनते हैं, इसलिए उन्हें चार क्रियाएं लगती हैं।]
पO जीव-हिंसात्मक कार्यः आग जलाना व बुझाना
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से केणटेणं भंते ! एवं वुच्चइ- 'तत्थ णं जे से पुरिसे जाव अप्पवेयणतराए 卐 चेव'? ॐ कालोदाई! तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेति से णं पुरिसे बहुतरागं
पुढविकायं समारभति, बहुतरागं आउक्कायं समारभति, अप्पतरांग तेउकायं समारभति, ॐ बहुतरागं वाउकायं समारभति, बहुतरागं वाउकायं समारभति, बहुतरागं वणस्सतिकायं 卐 समारभति, बहुतरागं तसकायं समारभति । तत्थ णं जे से बहुतरागं तेउक्कायं समारभति,
अप्पतरागं वाउकायं सभारभइ, अप्पतरागं वणस्सतिकार्य समारभइ, अप्पतरागं तसकायं समारभइ। से तेणद्वेणं कालोदाई ! जाव अप्पवेदणतराए चेव।
(व्या. प्र. 7/10/19 (2)) [प्र.] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि उन दोनों पुरुषों में से जो " 卐 पुरुष अग्निकाय को जलाता है, वह महाकर्म वाला आदि होता है और जो अग्निकाय को ' ॐ बुझाता है, वह अल्पकर्म वाला आदि होता है?
[उ.] कालोदायिन् ! उन दोनों पुरुषों में से जो पुरुष अग्निकाय को जलाता है, वह पृथ्वीकाय का बहुत समारम्भ (वध) करता है, अप्काय का बहुत समारम्भ करता है,
तेजस्काय का अल्प संमारंभ करता है, वायुकाय का बहुत समारंभ करता है, वनस्पतिकाय 卐 का बहुत समारम्भ करता है और त्रसकाय का बहुत समारम्भ करता है, और जो पुरुष ॐ अग्निकाय को बुझाता है, वह पृथ्वीकाय का अल्प समारम्भ करता है, अप्काय का अल्प
समारम्भ करता है, वायुकाय का अल्प समारम्भ करता है, वनस्पतिकाय का अल्प समारम्भ करता है एवं त्रसकाय का भी अल्प समारम्भ करता है, किन्तु अनिकाय का बहुत समारम्भ
करता है। इसलिए हे कालोदायिन् ! जो पुरुष अग्निकाय को जलाता है, वह पुरुष महाकर्म 卐 वाला आदि है और जो पुरुष अग्निकाय को बुझाता है, वह अल्पकर्म वाला आदि है। NrFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF卐*
[जैन संस्कृति खण्ड/30
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