Book Title: Shwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Author(s): Jinendrasuri
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ चंदन पुष्ट ४ धुप पूर्वीप ६ भङ्गीत 3 नैवेध ८ फल र जल AVA AW श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रंथमाला ९ सिंह र हाथी ३ वृषभ ४ लक्ष्मी फूलमाला ६ चंद्र ७ सूर्य ध्वज कलश १० प्रदद्म २१ समुद्र १२२व रत्न सरीवर Jadoca ३ दिव्य नी ४ चामर DI अशोक वृक्ष श्री 5 यू सिहासन 227ZARRAD पुष्प वृष्टि १ मल २] विलेयन ३ च ४ जव 240 वरस युगल 3 वास ४ पुष्प माला ५ दीपक 1028 भा मंडळ 1 ३६ संयोजक संपादक : -: तपोमूर्ति पूज्य आचार्यदेवश्री विजय कर्पूर सूरीश्वरजी महाराजा के ५ पुष्पा हु पुष्याला अंग रोइन रचना 99 उदुभी 'बरास ९ ध्वज १० अभिरन श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग- १ ६ धुप ७ पुष्प ८ अष्ट मंगल ९ अक्षत १० दर्पन ग्रंथांक ३४६ १२ पुष्प गृह १२ पुष्य वृष्टय छत्र १३ अष्ट मंगल מושך १४ अग्नि पट्टधर हालारन्देशोद्धारक पू. आचार्यदेवश्री विजय अमृत सूरीश्वजी महाराजा के पट्टधर पू. आचार्यदेवश्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज २ चंदन ११ व १२ ध्वज १३ फल -: प्रकाशिका श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रंथमाला लाखाबावल. शांतिपुरी (सौराष्ट्र) 5 पुष्प ३ अक्षत चंदन ७ दीपक नैवेध १४ दीप १५ गीत १६ नाटक ७ वाजत Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला : ग्रन्थाङ्क - ३४६ श्री महावीर जिनेन्द्राय नमः श्वेताम्बर जैन तीर्थ दर्शन हिन्दी भाग-१ ( गुजरात विभाग, राजस्थान विभाग एवं विदेश आफ्रीका, लंडन, जपान आदि ३७८ तीर्थो से सुशोभित ) संयोजक एवं संपादक तपोमूर्ति पूज्य आचार्यदेव श्री विजयकर्पूरसूरीश्वरजी महाराज के पट्टधर हालार देशोद्धारक श्रेष्ठ कवीश्वर पूज्य आचार्यदेव श्री विजय अमृतसूरीश्वरजी महाराज के पट्टधर प्राचीन साहित्योद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्री विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज प्रकाशिका श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला (लाखाबावल - शांतिपुरी सौराष्ट्र ) मूल्य रु. ६५०-०० R305 Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 000000000000 प्रकाशिका :- श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रंथमाला (लाखाबावल) c/o. श्रुतज्ञान भवन, ४५, दिग्विजय प्लोट, श्री विमलनाथ मंदिर के पीछे, जामनगर (गुजरात) Pin - 361 005. | वीर सं. २५२५ . विक्रम सं. २०५५ . सन् १९९९ ० प्रथम आवृत्ति • नकल १००० . प्राप्ति स्थान . (१) श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रंथमाला c/o. श्रुतज्ञान भवन, ४५, दिग्विजय प्लोट, जामनगर (गुजरात). (२) महेता मगनलाल चत्रभुज, शाक मारकेट के सामने, जामनगर (गुजरात). (३) सेवंतीलाल वी. जैन, २०, महाजन गली, मुंबई-२. (४) सोमचंद डी. शाह, जीवन निवास के सामने, पालीताणा. (५) प्रकाशकुमार अमृतलाल दोशी श्री महावीर जैन उपकरण भंडार, १, वर्धमाननगर, पेलेस रोड, राजकोट. (६) सरस्वती पुस्तक भंडार, हाथीखाना, रतनपोल, अमदावाद. (७) अश्विन एस. शाह, रिलिफ रोड, शेख का पाडा, अमदावाद. (८) शाह चीमनलाल लखमीचंद, मेइन रोड, शंखेश्वर तीर्थ. (९) जैन हितवर्धक मंडल, हाइवे, डोलीया तीर्थ. श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन हिन्दी विभाग के किये सूचना हिन्दी के इस प्रथम भागमें गुजरात, राजस्थान एवं विदेश के आफ्रीका, लंडन और जपान के तीर्थ दीये गये है । इसमें प्रथम नकशा, जिल्ला के अनुसार तीर्थ, उनके मंदिर और मूलनायक के फोटु, संक्षिप्त इतिहास, माहिती दी गइ है । क्रम एवं अकरादि क्रम दीया है । जिस्से तुरंत जो देखना है तीर्थ ला शके । जहाँ जगा रही वहां स्तुति स्तवन आदि दीये है । जिसे तीर्थ के दर्शन के साथ भावना भी कर शके। मुद्रक गेलेक्सी प्रिन्टर्स, अलंकार चेम्बर्स, ढेबर चोक, राजकोट -३६० ००१. फोन : २२७३३४, ३८९३९१ czecce 2,3 cope care Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 卐 प्रस्तावना श्री अरिहंत परमात्माओने आत्म कल्याण हेतु धर्म फरमाया है । यह धर्म का दो प्रकार है, एक साधु धर्म एक श्रावक धर्म । इन धर्मकी श्रद्धा होने उसको सम्यग्दर्शन कहा जाता है । इस सम्यग्दर्शनको पानेवाले को इस धर्म का विधान करने वाले श्री अरिहंत परमात्माका बड़ा उपकार लगता है । इसको श्री तीर्थंकर देवो की प्रति अखंड और अनन्य समर्पण भाव पैदा होता है और वह श्री तीर्थंकर देवों की भक्ति में उत्साहित होता है । यह भक्ति में जिनपूजा, यात्रा महोत्सव, मंदिर निर्माण, प्रतिष्ठा, जीर्णोद्धार आदि से करता है। शक्ति या शक्यता अनुरुप भक्ति करते । उसके जीवन में व्रत, नियम, ज्ञान, तप, संस्कार, सदाचार, नीति, न्याय, कषाय जय विषय, जय अपनाना है। इनके बिना भक्ति भी सार्थक बनती नहीं। आत्माने तारे वह तीर्थ है वह तीर्थ दो प्रकार के है । स्थावर और जंगम । स्थावर तीर्थ श्री शेजय, गीरनार आदि जिनमंदिर और जिनमूर्ति आदि है । और जंगम वह फीरता तीर्थ श्री जिनेश्वर देव गणधर देव और साधु साध्वी है। स्थावर तीर्थ की भक्ति वो द्रव्य स्तव है | द्रव्यस्तव करते जंगम तीर्थ भाव तीर्थ में प्रवेशने का भाव होवे तब ही सार्थक बनता है। तारक द्रव्य तीर्थकी स्पर्शना वो द्रव्यस्तवना भावस्तवन के प्रेरक बने इस लिये यह श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन का आयोजन हुआ है । इस तीर्थ दर्शन से अपने घर में ही तीर्थों और तीर्थंकर परमात्माओं का दर्शन स्तवन आदि कर सकेंगे। भारत एवं विश्वके जैन तीर्थों का संकलन करना तय किया । इसके वास्ते तीर्थोंका फोटु इतिहास आदि के वास्ते बार बार जाके प्रतिनिधि मंडलने सामग्री एकत्रित की उसमें से ओर मद्रास जैन तीर्थ दर्शन, जैन तीर्थ इतिहास (आ.क. पेढी), जैन तीर्थ माहितीकी पुस्तिकाएं, तारे ते तीर्थ पुस्तके वगैरह द्वारा संकलन किया है। जिल्ला के तीर्थ का नकसे जाने आने के क्रम से दीये है। जहां जहां जगह रही वहां वहां स्तुति, स्तवन, श्लोक आदि लगाये है । जिसे दर्शन करते स्तुति, स्तवनादि कर सके । पूर्व के तीर्थ दर्शन ग्रन्थों में बड़े तीर्थो प्रायः दीये है जब इस ग्रन्थ में वीर्ष की पंचतीर्थी ओर बडे बडे शहर आदि के मंदिर भी लिये गये है। अतः दोनो विभागमें सब मीला के ५८८ तीर्थ का समावेश किया है और इतने धर्म तीर्थों दर्शन होगा। सम्यग्दर्शन की निर्मलता हेतु यात्रा है। अतः यात्रा करनेवालोने प्रथम ही तप वगैरह करना चाहिए । सतत तप न हो सके तो श्रावक आचार के शक्य पालनके साथ अभक्ष्य भक्षन, रात्रि भोजन छोडे और नाटक, सिनेमा देखना सैलगाह और स्वछंद विहार आदि न जावे सो लक्षमें रखना चाहिए। ६८ तीर्थ की यात्रा हेतु जानेवाले क्रोधी पुत्रको माताने कटू तुंबी दीया और कहा कि जहां तुं स्नान करें वहाँ इस तुंबीको भी स्नान करायें । इसने भी सभी तीर्थो में स्नान करते समय इस तुंबीको भी स्नान कराया । वापस आते माता को दी । माताने उसी तुंबी की सबजी बनाई ओर उनको खिलाई । पुत्र बोला । माँ, यह सबजी तो कटु है ' | माँ ने कहा तीर्थं इसको स्नान नहीं कराया क्यों ! माँ मेंने सभी तीर्थं में इसको स्नान कराया है ! बेटा तो भी कटुता नहीं गइ ? ' ना माँ बेटा तब देख स्नान करने पर भी हृदय Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में से कटुता, राग द्वेष, इा, अभिमान, माया, लोभ नही गया और क्षमा, नम्रता आदि नही आये तो इस तुंबी के समान यात्रा कटुता वाली ही होती है ।' पुत्र समझ गया और अपने जीवनमें कटुता जैसे दुसण को दूर किये। इसी प्रकार तीर्थ यात्रा करनेवाले पुण्यात्माओने अपने जीवन सुधार करना चाहिए । विनय, विवेक, सज्जनता, जिनभक्ति, सम्यग्श्रद्धा, सदाचार, अभक्ष्य त्याग, रात्रिभोजन त्याग, विकार, विकृति आदि से दूर रहना चाहिए । स्वार्थ, मोह, मान्यता, लोभ, स्नेह आदि से यात्रा भी निष्फल होती है । परमात्माकी भक्ति ही यात्रा है । देव देवीओंके दर्शन बाधा आदि से यात्रा करना वह सचमुख यात्रा नही है । (१) लोकोत्तर (२) लौक्ति ओर दोनो भी देव ओर गुस्की मान्यता कर वो चार प्रकारका मिथ्यात्व शास्त्रमें लिखा है | जीवन सुधारने वाला तीर्थ का महिमा करता है और व्यसन, विषय, कषायमें घेरे लोंग तीर्थ का महिमा हटाता है । ठरने की सुविधा, खाने पीने की चिंता और हिरना फिरने का लोभ होवे तो यात्रा का भाव दबा जाता है । एसे यात्री तरने के अलावा डूबने का मार्ग को पाता है और तीर्थ को दूषित करता है इसे ज्ञानीओंने 'तीरथकी आशातना नवि करीए' । ऐसा लिखकर यात्रीओं को सावधान कियें है। सभी सच्चे भाव से संसार के तीरने वास्ते यात्राएं करें और सद्गति और शिव सुख को पायें और इसी हेतु इस तीर्थ दर्शन से बहोत तीर्थो की, तीर्थंकर देवोंकी यात्रा दर्शन, पूजन, स्तव, ध्यान आदि सब करे और सद्गति और शिवसुख को निकट लायें ऐसी शुभ अभिलाषा । संवत २०५५ पोष सुद १० सोमवार ता. २७-१२-९८ हालारी धर्मशाला - शंखेश्वर तीर्थ जिनेन्द्रसूरि प्रथम पृष्ठ चित्र परिचय : (१) चौदह स्वप्न (२) अष्ट महाप्रातिहार्य (३) अष्ट मंगल (४) अष्ट प्रकारी - पूजा (५) पंच कल्याणक पूजा (६) बारह व्रत पूजा (७) सत्तरभेदी पूजा के प्रकार दीये है। द्वितीय पृष्ठ चित्र परिचय : (१) २४ तीर्थंकर (२) नवपद मंडल (३) श्री नमस्कार महामंत्र (४) श्री गौतम स्वामी बताये हैं. एक नोंध : इस तीर्थ दर्शन ग्रन्थमें जहा जिनमदिर को धजा चढाने वास्ते सीडीयाँ लगाइ है वो ठीक नहीं है । एक घंटे के कार्य करने को सारे वर्ष तक सीडीका बोज स्हवे, पक्षी गण चरक करे । मृतक और माटन लाये डाले वहा बडी आशातना होवे । पालख बांध के धजा चढाये और सीडीसें उपर चढ सके । फीर दोरी बांधके खीचके नीचे से भी धजा चढा सके वह विधि युक्त और कल्याणकारी है। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परमशासन प्रभावक, सुविशाल गच्छाधिपति, तपागच्छाधिपति, व्याख्यान वाचस्पति, महाराष्ट्रादि देशोद्धारक पूज्य आचार्यदेवेश श्रीमद् विजयरामचंद्रसूरीश्वरजी महाराजा Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पुनित करकमलों में समर्पण GADAADIVAMADARAMAVAMANANDALALAMAULARAMS परम पूज्य परम उपकारी प्रातः स्मरणीय श्रेष्ठ कवीश्वर, ग्राम्य जनता उद्धारक, हालार देशोद्धारकं निस्पृही शिरोमणि शासन रक्षक, चारित्र चूडामणि, रसना विजेता षड्विगयविरक्त तत्त्ववेत्तां तपस्वी त्याग मूर्ति पूज्यपाद परम गुरुदेव पूज्य आचार्यदेव श्री विजयअमृत सूरीश्वर महाराजा के करकमलोंमें अनंत उपकारो की स्मृति में यह श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन विभाग प्रथम सादर समर्पण कर के मैं कृतकृत्य बनता हूं गुरु कृपाकांक्षी -- जिनेन्द्रसूरि Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निस्पृही शिरोमणि, शासन रक्षक, श्रेष्ठकवीश्वर, हालार देशोद्धारक, ग्राम्य जनता उद्धारक GRAPHIC पूज्य आचार्यदेव श्री विजय अमृतसूरीश्वरजी महाराजा Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रेष्ठ कवीश्वर हालार देशोद्धारक पूज्य आचार्य देवेश श्रीमद् विजय अमृतसूरीश्वरजी महाराजा के पट्टधर प्राचीन साहित्योद्धारक पूज्य आचार्यदेव श्री विजयजिनेन्द्रसूरीश्वरजी महाराज Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ # प्रकाशकीय निवेदन 'संसार से तारे वह तीर्थ' ऐसे वचन अनुसार जंगम तीर्थ आज विहरमान जिन और साधु साध्वी है । और स्थावर तीर्थ श्री शत्रुंजय आदि तीर्थ है। इन तीर्थों की यात्रा से आत्मा संसार सागर तर जाती है। इन तीर्थों के दर्शन, पूजन, निर्माण, जीर्णोद्वार आदि से आत्मा सम्यग्दर्शन की निर्मलता और उज्जवलता पाती है और उससे आत्मा शिवसुखका भोगी बनता है । इस श्वेतांबर तीर्थ दर्शन का आयोजन हालार देशोद्धारक पू. आचार्यदेव श्री विजय अमृतसूरीश्वरजी म. के. पट्टधर प्राचीन साहित्योद्धारक पू. आचार्यदेव श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वरजी महाराजने किया है। उसके संकलन मुताबीक तीर्थो और प्रभुकी प्रतिमाकी प्रतिकृतियाँ, इतिहास आदि के वास्ते अनेकबार प्रतिनिधि मंडल भेज गये थे । (१) प्रथमबार २०३८ में जामनगर से शाह नेमचंदजी खीमजी पारेख, नेमचंद वाघजी गुढका, शांतिलाल झीणाभाई धनाणी एवं फोटो ग्राफर नरेशभाई वजुभाई सोमपुरा गये कच्छ, राजस्थानका कार्य किया (२) दूसरीवार जामनगर से शांतिलाल झीणाभाई, कमलकुमार शांतिलाल, दिलिपकुमार चंदुलाल एवं फोटोग्राफर नरेशभाई गये यु.पी., बिहार, बंगाल, मध्यप्रदेश, ओरिस्सा वि.का कार्य किया । (३) तीसरीबार जामनगर से शाह महेन्द्रभाई सोजपाल, गोसराणी, रामभाई देवसुरभाई गढवी, फोटोग्राफर नरेशभाई तथा प्रवीणचंद्र मगनलाल गये, शेष राजस्थान एवं गुजरातका कार्य किया (४) वही गये और शेष गुजरात और सौराष्ट्र का कार्य किया (५) वो ही गये और आंध्र, तामिलनाडु, केराला, कर्णाटक और कुच्छ महाराष्ट्र का कार्य किया (६) छठीबार रतलाम से श्री सुभाष महेता एवं चोपरा तथा फोटोग्राफर जोशी २०५० में गयें और पंजाब काश्मीर तथा शेष यु. पी. शेष बिहारका कार्य किया । प्रथम विभागमें गुजरात, राजस्थान एवं जपान आफ्रीका, लंडन भी लिया है। दूसरे विभागमें पंजाब, यु.पी., बिहार, बंगाल, ओरिस्सा, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र, तामिलनाडु, केराला, कर्णाटक और महाराष्ट्र लीये है और अमेरिका के जिनमंदिर लीये है। पीछेसे आये मंदिर व तीर्थो को जिस देश के मंदिर होगें उस इसके विभागमें जीडतें है । यह कार्य बड़ा और कठीन था और बडे यन विना न हो सके। फीर भी पू. आचार्य देवश्री विजय जिनेन्द्रसूरीश्वरजी की सर्वतोमुखी प्रतिमा होने से उन्होने यह कार्य साकार बनवाया है। इस प्रकाशन में वो ही प्राण बने है । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईस कार्य के लिये फोटा वि. वास्ते गये हुए प्रतिनिधि मंडलोने और फोटोग्राफर ने आत्मीय भाव से कार्य किया है वह इस कार्य की भूमिका बनी है। उनका हम ऋणी है। मुद्रणका कार्य के लिए राजकोट गेलेक्सी प्रिन्टर्सवाले भरतभाई महेता एवं महेन्द्रभाई मोदीने पुरे परिश्रम और दिलचस्पीसे कार्य किया है इससे ये अच्छा प्रकासन बन सका है और इसमें भी पू. आचार्यदेवश्री का अनुभव एवं मार्गदर्शन के कारण ही सुंदरता ओर सौष्ठवता आयी है। हमारी संस्थाने चित्र प्रकाशन में अच्छा प्रयल किया है । उसमें नारकी चित्रावली (गुजराती-हिन्दी-अंग्रेजी) सत्कर्म चित्रावली (गुजराती-हिन्दी-अंग्रेजी) कल्पसूत्र चित्रावली, सचित्र बारसो सूत्र (बालबोध एवं गुजराती लिपिमें) है। यह श्वेताम्बर जैन तीर्थ दर्शन हमारे चित्र प्रकाशन में श्रेष्ठ है । यह हिन्दी आवृत्ति प्रगट हो रही है. ऐसे प्रकाशन को प्रगट करना वह हमारी संस्थाका बडा सौभाग्य है। इसकी दूसरे भागकी हीन्दी आवृत्ति एवं दोनो भागकी अंग्रेजी आवृत्ति प्रगट करने का प्रयत्न सुचारू रूप से जारी हैं। यह पवित्र ग्रन्थ का दर्शन एवं पढन करते समय खाना पीना, जूठा मों से पढना, और धुम्रपान करना या अनादर नहीं करना । पूर्ण भक्ति और पूज्य भाव साथ तीर्थो प्रति बहुमान रखके पढना । जिनेश्वर देवो की आज्ञाका आलंबन ही मोक्ष कारण है । हम अभिलाषा- व्यक्त करते हैं कि इस ग्रन्थके दर्शन में सभी लोक आत्माको निर्मल बनाये और जिनेश्वर देवोने बताये धर्म मार्ग पे चल के शीघ्र ही शिवसुखको पावे । शुभ भवतु ता. २९-१२-० श्रुतज्ञान भवन, ४५, दिग्विजय प्लोट, जामनगर-३६१००५. (गुजरात) संस्था के व्यवस्थापक प्रतिनिधि महेता मगनलाल चत्रभुज शाह कानजी हीरजी मोदी शाह देवचंद पदमशी गुढका Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात राज्य कम जि.नं. पेईज नं. क्रम जि.नं. पेईज नं. ४. राजकोट जिल्ला और नकशा ३५ १ राजकोट जेतपुर ३७ ३ धोराजी ४ जामकंडोरणा वींछीया ४० ६ पडधरी वांकानेर मोरबी ८ बेला or भावनगर जिल्ला और नकशा शत्रुजय महातीर्थ कदम्बगिरि तीर्थ तालध्वजगिरि तीर्थ हस्तगिरि तीर्थ शेजूंजी डेम तीर्थ भावनगर ७ ७ घोघा तीर्थ ८८ दाठा तीर्थ वरतेज तीर्थ १० १० महुवा तीर्थ ११ ११ सावरकुंडला कीर्तिधाम तीर्थ १३ १३ शिहोर १४ धोळा जंकशन १५ १५ वल्लभीपुर तीर्थ १६ १६ कारीयाणी १७ १७ बोटाद १८ १८ परबडी जुनागढ जिल्ला और नकशा १९ १ गीरनार तीर्थ २० २ सोरठ वंथली २१ ३ आद्री २२ ४ चोरवाड, २३ ५ मांगरोळ २४ ६ वेरावळ २५ ७ प्रभास पाटण तीर्थ २६ ८ दीव तीर्थ २७ ९ अजाहरा तीर्थ २८ १० देलवाडा तीर्थ २९ ११ उना तीर्थ ३० १२ पोरबंदर १३ बरेजा तीर्थ ३ अमरेली जिल्ला और नकशा ३२ १ अमरेली ३३ २ बाबरा ३४ ३ लाठी GAWUN २ जुनागकाण जामनगर जिल्ला और नकशा जामनगर धुंवाव अलीयाबाडा जामवंथली ध्रोल ४९ ६ जोडीया ५०७ आमरण मोटा वडाला ५२ ९ कालावड (शीतला) १० मोटी भलसाण तीर्थ ११ चेला १२ डबासंग १३ शेतालुंश ५७ १४ लालपुर ५८ १५ जाम-भाणवड १६ जाम-खंभाळीया ६० १७ नवं हरिपुर १८ गोइंज १९ नाना मांढा २० मोटा मांढा ६४ २१ दांता ६५ २२ आराधना धाम हालार तीर्थ ६६ २३ वडालीआ सिंहण २४ काकाभाई सिंहण ६८ २५ रासंगपुर ६९ २६ मोडपुर तीर्थ २७ पडाणा ७१ २८ गागवा २९ मुंगणी ७३ ३० सीक्का १०१ १०२ ५७ १०५ १०६ Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कम जि.नं. पेईज नं. क्रम जि.नं. पेईज नं. ७४ ७६ १०८ ३१ वसई ३२ मोटी खावडी ३३ नवागाम ३४ रावलसर ३५ लाखाबावळ ३६ नाघेडी ३७ आरंभडा ६ सुरेन्द्रनगर जिल्ला और नकशा ११३ १ सुरेन्द्रनगर ११४ २ वढवाण शहेर शियाणी तीर्थ ४ लींबडी ५ चूडा नेमीश्वर तीर्थ डोळीया थानगढ़ ८ धांगध्रा हळवद १० बजाणा ११ उपरीयाळाजी तीर्थ १२ पाटडी १३ जैनाबाद १४ दसाडा १५ वडगाम - - - - - Som900 - ८१ ८५ - -rrrrrrrrrmmm w ८. बनासकांठा जिल्ला और नकशा १५३ ११४ १ सांतलपुर १५४ ११५ २ राधनपुर श्री भीलडीयाजी तीर्थ ११७ ४ डीसा ११८ ५ ऋणी तीर्थ ११९ ६ पालणपुर १२० ७ दांता १२१ ८ भाभर १२२ ९ वाव १२३ १० थरा १२४ ११ खीमत १२५ १२ पांथावाडा १२६ १३ भोडोतरा १७० १२७ १४ धानेरा १७० १२८ १५ डुवा १७१ १२९ १६ थराद १७२ १७ ढीमा १७४ ३१ १८ भोरोल तीर्थ १७४ १९ कुंभारीयाजी तीर्थ १७७ १३३ २० दीओदर तीर्थ १७८ ९ महेसाणा जिल्ला और नकशा १७९ १३४ १ कंबोइ तीर्थ १३५ २ हारीज १३६ ३ विजापूर आगलोड मोढेरा १३९ ६ महेसाणा १४० ७ गांभु तीर्थ १४१ ८ कनोडा १४२ ९ धीणोज १८८ १४३ १० चाणस्मा १४४ ११ रूपपुर तीर्थ १४५ १२ पाटण १४६ १३ चारूप १९२ १४७ १४ मेत्राणा तीर्थ १४८ १५ सिध्धपुर १४९ १६ तारंगाजी तीर्थ १५० १७ वडनगर तीर्थ १५१ १८ वीसनगर तीर्थ १५२ १९ उंझा १५३ २० वालम तीर्थ १५४ २१ शंखलपुर १५ ७ कच्छ जिल्ला और नकशा १ भद्रेश्वरजी तीर्थ मुंद्रा ९८३ भुजपुर मोटी खाखर १०० ५ नानी खाखर १०१ ६ मांडवी १०२ ७ सुथरी तीर्थ १०३ ८ कोठारा तीर्थ १०४ ९ तेरा तीर्थ १०५ १० नलीया तीर्थ १०६ ११ जखौ १०७ १२ भुज १०८ १३ वांकी तीर्थ १०९ १५ अंजार ११० १५ भचाउ १११ १६ कटारीया ११२ १७ लाकडीया ११३ १८ पलांसवा १३२ १३३ १३५ १३६ १३७ १३७ १३८ १४० १४१ १४२ १४४ १४६ १४६ १४७ १४८ १८९ १९० १४९ १५० १५१ १५२ Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० ० ० ० ० ० m m59-r030 ~ ~ ~ २२२ r هه ر له कम जि.नं. पेईज नं. १५५ २३ कडी १५६ २४ कलोल । १५७ २५ लोलाडा १५८ २६ मुंजपर १५९ २७ पंचासर १६० २८ शंखेश्वरजी तीर्थ १६१ २९ रांतेज तीर्थ १६२ ३० भोयणी तीर्थ १६३ ३१ वामज तीर्थ १६४ ३२ शेरीशा तीर्थ १६५ ३३ पानसर तीर्थ १६६ ३४ नंदासण तीर्थ १० साबरकांठा जिल्ला और नकशा २२१ १६७ १ हिंमतनगर टींटोइ तीर्थ १६९ ३ नाना पोशीना तीर्थ १७० ४ मोटा पोशीना तीर्थ १७१ ५ इडर तीर्थ १७२ ६ वडाली २२८ १७३ ७ खेडब्रह्मा २२९ ११ गांधीनगर जिल्ला और नकशा २३० १७४ १ गांधीनगर २३१ १७५ २ कोबा तीर्थ २३२ १२ अमदावाद जिल्ला और नकशा २३३ १७६ १ कर्णावती (अमदावाद) २३४ १७७ २ थलतेज तीर्थ १७८ ३ सरखेज तीर्थ १७९ ४ बावळा २४४ १८० ५ सावत्थी तीर्थ २४५ १८१ ६ कोंठ (गागड) १८२ ७ घोळका २४७ १८३ ८ कलिकुंड तीर्थ (धोळका) २४८ १८४ ९ बारेजा २४९ १८५ १० बरवाळा १८६ ११ राणपुर २५० १८७ १२ अळाउ २५२ १८८ १३ धंधुका २५३ १८९ १४ बीरमगाम २५४ ९० १५ मांडल २५४ ९१ १६ धोलेरा तीर्थ २५६ क्रम जि.नं. पेईज नं. १३. खेडा जिल्ला और नकशा २५७ १९२१ खेडा २५८ १९३ २ मातर तीर्थ १९४ ३ सोजीत्रा १९५ ४ तारापूर १९६ ५ नार १९७ ६ पेटलाद १९८७ स्थंभन तीर्थ - खंभात २६४ १९९ ८ शकरपुर तीर्थ २०० ९ राळज तीर्थ २०१ १० बोरसद २०२ ११ वालवोड तीर्थ २०३ १२ दहेवण २०४ १३ उमेटा २०५ १४ वासद २०६ १५ आकोली २०७ १६ आणंद २०८ १७ नडीयाद २०९ १८ कपडवंज १४ पंचमहाल जिल्ला और नकशा । २७८ २१० १ गोधरा २७९ २११ २ परोली तीर्थ २१२ ३ पावागढ तीर्थ २१३ ४ दाहोद २८२ १५ वडोदरा जिल्ला और नकशा २८३ २१४ १ वडोदरा २८४ २१५ २ छाणी २१६ ३ पादरा २१७ ४ दरापरा २८७ २१८ ५ करजण २८७ २१९ ६ मीयांगाम २८८ २२० ७ बोडेली तीर्थ २२१ ८ दर्भावती (डभोइ) तीर्थ २२२ ९ सिनोर १६ भरूच जिल्ला और नकशा २९३ २२३ १ कावी तीर्थ २२४ २ जंबूसर २२५ ३ वणछरा तीर्थ २२६ ४ गंधार तीर्थ २२७ ५ आमोद २९९ २२८६ अलीपोर तीर्थ ३०० २२९ ७ कुराल तीर्थ २८० २८१ २८५ २८६ २४२ २४३ २८९ . ३०१ Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रम जि.नं. पेईज नं. कम जि.नं. पेईज नं. ३४२ ३४३ ३०१ ३०२ ३०४ ३०४ mmmmmmmmmmr m ३४७ ३४८ ३४८ ३४९ ३५० ३०९ ३५१ ३५२ د mr mmmmmmmmm mr mmmmmmmmmmmmmmmmm ०००००~~~~~~~~~~~rrrrrr 900 ० ० m3ur99000000 ३५३ ३५४ ३५५ د د د ३५६ ३५७ ३५७ २३० ८ दहेज तीर्थ २३१ ९ समळी विहार तीर्थ (भरूच) २३२ १० वेजलपुर २३३ ११ नीकोरा तीर्थ २३४ १२ झघडीयाजी तीर्थ २३५ १३ अंकलेश्वर २३६ १४ राजपीपळा २३७ १५ शुक्ल तीर्थ १७ सुरत जिल्ला और नकशा २३८ १ रांदेर तीर्थ २३९ २ सुरत १८ वलसाड जिल्ला और नकशा २४० १ नवसारी- मधुमती २४१ २ जलालपोर २४२ ३ तपोवन - धारागिरि २४३ ४ बीलीमोरा वलसाड २४५ ६ उदवाडा बगवाडा २४७ ८ वापी २४८ ९ दमण २४९ १० सेलवास २५० ११ अच्छारी २५१ १२ दादरा २५२ १३ किला पारडी २५३ १४ तीथल तीर्थ राजस्थान राज्य क्रम जि.नं. राजस्थान का नकशा १. सिरोही जिल्ला और नकशा २५४ १ जीरावला तीर्थ २५५ २ मुंगथला तीर्थ २५६ ३ रेवदर २५७ ४ वरमाण तीर्थ २५८ ५ गुलाबगंज २५९ ६ शिरोडी २६०७ श्री मीरपुर तीर्थ २६१ ८ सिरोही २६२ ९ श्री बामणवाडाजी तीर्थ २६३ १० वीरवाडा तीर्थ २६४ ११ नांदीया तीर्थ २६५ १२ कोजरा तीर्थ २६६ १३ पेसवा तीर्थ २६७ १४ अजारी तीर्थ २६८ १५ पीडवाडा २६९ १६ नाणा २७० १७ बेडा २७१ १८ जुना बेडा २७२ १९ दत्ताणी २७३ २० धवली २७४ २१ डबाणी २७५ २२ रोहिडा २७६ २३ नितोडा तीर्थ २७७ २४ बावनी (भावरी) तीर्थ २७८ २५ दीयाणा तीर्थ २७९ २६ लोटाणा तीर्थ २८० २७ लार्ज तीर्थ २८१ २८ धनाणी २८२ २९ बालदा तीर्थ २८३ ३० उथमण तीर्थ २८४ ३१ गोहिली २८५ ३२ मंडार २८६ ३३ कोरटाजी तीर्थ : २८७ ३४ ओर २८८ ३५ भीमाना २८९ ३६ भारजा २९० ३७ देलंदर २९१ ३८ आबु - देलवाडा तीर्थ २९२ ३९ आबु-अचलगढ तीर्थ २ पाली जिल्ला और नकशा २९३ १ बीजापुर २९४ २ हथुडी तीर्थ २९५ ३ सेवाडी २९६ ४ लुणावा २९७ ५. भद्रंकरनगर (लणावा) २९८ ६ सेसली २९९ ७ बोया ०० ८ सादडी ०१ ९ मुंडारा तीर्थ ३०२ १० बाली ०३ ११ मुछाळा महावीर ३०४ १२ धाणेराव ३०५ १३ राजपुर mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm ३५८ د وي ३६१ CaUU.000.G کي ३६२ لی لی ३६८ पेईज नं. ३७१ ३७२ ३२७ ३७२ mr ३२८ ३७४ ३२९ mmmmmmmmmmmmmm mr mmmmmmmmmmm) Mer 1900 YYmmmmmmm mmmmmmmmm ३८० ३८१ ३८३ ३८४ Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रम जि.नं. ३०६ १४ राणकपुर तीर्थ ३०७ १५ देसुरी ३०८ १६ नाडलाई तीर्थ ३०९ ३१० ३११ ३१२ २० राणी तीर्थ ३१३ २१ खीमेल ३१४ २२ फालना ३१५ २३ खुडाला ३१६ २४ सांडेराव ३.१७ २५ तखतगढ ३१८ २६ जाखोडा ३१९ २७ पाली ३२० २८ महावीर तीर्थ (कोरटाजी) १७ नाडोल तीर्थ १८ वरकाणाजी तीर्थ १९ बीजोबा तीर्थ ३२१ २९ श्रीवान्दी १३२२ ३० वांकली ३ ३२३ ३२४ २ ३२५ ३ ३२६ ३२७ ५ ३२८ ६ ३२९ ७. केशरीया-धुलेवा तीर्थ ३३० ८ पलाना ३३१ ९ देलवाडा - उदयपुर - ३२ १० खमनोर ३३७ ३३८ उदयपुर जिल्ला और नकशा सायरा मजावडी गोगुंदा इसराल उदयपुर आयड २३ ११ केलवा ३३४ १२ कांकरोली राजनगर तीर्थ ३३५ १३ ओकलींगजी ३३६ १४ सबिना तीर्थ १ २ पेईज नं. ३८५ ३८८ ३८९ ३९० ३९२ ३९३ ३९४ ३९५ ३९६ ३९७ ३९८ ३९९ ४०० ३३९ १ ५ जालोर जिल्ला और नकशा जालोर ३४० २ आहोर ३४१ ३ उमेदपुर ३४२ ४ शिवाना ३४३ ५ बालोतरा C ३४४ जमोल ४०० ४०२ ४०३ ४०४ ४०५ ४०६ ४०६ ४०७ ४०८ ४०९ ४१० ४११ ४१३ ४१४ ४१५ ४१६ ४ चितोडगढ जिल्ला और नकशा ४२१ चितोडगढ ४२२ करेडा भोपाल सागर तीर्थ ४२३ ४१७ ४१९ ४२० ४२५ ४२६ ४२८ ४३० ४३० ४३१ ४३२ क्रम जि.नं. ३४५ ७ साचोर (सच्चाउरि) ३४६ ८ भीनमाल ३४७ ९ बड़गाम ३४८ १ ३४९ २ ६ जेसलमेर जिल्ला और नकशा जेसलमेर ब्रह्मसर अमरसर लोद्रवपुर पोकरण ३५० ३ ३५१ ४ ३५२ ५ ७ ३५३ १ ३५४ २ जोधपुर ३ ३५६ ४ ३५७ ५ ३५८ ६ कापरडाजी तीर्थ ३५९ ७ गांगाणी ३६० ८ नाकोडाजी तीर्थ ३६१ ८ बाडमेर जिल्ला बाडमेर ३६२ ९ ब्यावर जिल्ला ब्यावर ३६३ १० अजमेर जिल्ला अजमेर ३६४ १ ३६५ २ ३६६ ३ ३६७ ३७४ ३७५ ३७६ जोधपुर जिल्ला और नकशा ओसीयाजी तीर्थ ११ जयपुर जिल्ला और नकशा जयपुर आमेट ३७७ ३७८ फलोधी तीर्थ मंडोर तीर्थ भावडी ३६८ १ ३६९ २ ३७० १ ३७१ २ ३७२ ३ अल्बर ४ भांडवपुर पेईज नं. ४३३ ४३५ ४३७ नागोर मेडता सीटी मेडता रोड ४३८ ४३९ ४४२ ४४२ ४४३ ४४६ ४४८ ४४९ ४५२ ४५४ ४५४ ४५५ ४५६ ४५८ ४६० ४६४ ४६५ ४६६ १२ बिकानेर / नागोर जिल्ला और नकशे ४७३ बिकानेर गोगेलाब ४६७ ४६८ ४६९ ४७० ४७१ ३७३ १३ डुंगरपुर जिल्ला डुंगरपुर तीर्थ ४८० विदेश विभाग श्रीका केन्या नाइरोबी केन्या मोम्बासा केन्या लंडन- लेस्टर कोबे जपान ४७४ ४७६ ४७७ ४७८ ४७९ ४८१ ४८२ ४८५ ४८७ ४८८ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकरादी अनुक्रमणिका पेईज नं. | अमः तीर्थ __ पेईज नं. | अ. तीर्थ अक. तीर्थ पेईज नं. कम ताय ४३ २७९ : ५८ ६२ अच्छारी अजमेर जिल्ला - अजमेर अजारी तीर्थ अजाहरा तीर्थ अमरसर अमरेली अलीपोर तीर्थ अलीयाबाडा अल्बर अळाउ अंकलेश्वर अंजार १३ आकोली आगलोड आणंद १६ आद्री १७ आबु-अचलगढ तीर्थ १८ आबु-देलवाडा तीर्थ १९ आमरण २० आमेट २१ आमोद २२ आयड आरंभडा आराधना धाम हालार तीर्थ आहोर २६ इडर तीर्थ इसराल २८ उथमण तीर्थ २९ उदयपुर ३० उदवाडा ३१ उना तीर्थ ३२ उपरीयाळाजी तीर्थ ३३ उमेटा ३४ उमेदपुर ३५ उंझा ३६ ऋणी तीर्थ ३७ अकलींगजी ओर ३९ ओसीयाजी तीर्थ ४० कटारीया ४१ कडी कर्णावती (अमदावाद) कदम्बगिरि तीर्थ कनोड़ा कपडवंज करजण करेडा भोपाल सागर तीर्थ कलिकुंड तीर्थ (धोळका) कलोल कंबोई तीर्थ काकाभाई सिंहण कापरडाजी तीर्थ कारीयाणी कालावड (शीतला) कावी तीर्थ कांकरोली-राजनगर तीर्थ किला पारडी कीर्तिधाम तीर्थ कुराल तीर्थ कुंभारीयाजी तीर्थ केलवा केशरीया-धुलेवा तीर्थ कोजरा तीर्थ कोठारा तीर्थ कोबा तीर्थ कोबे-जपान कोरटाजी तीर्थ कोंठ (गागड) खमनोर खीमत खीमेल खीवान्दी खुडाला खेड़ब्रह्मा rrrry० MOVmSmroorv 0990mm ० ० ० ० ० ० ० गोगेलाव गोधरा गोहिली घोघा तीर्थ ४२३ घोलेरा तीर्थ २४८ चाणस्मा चारूप १८० चितोडगढ चुडा चेला चोरवाड छाणी जखौ जलालपोर जयपुर जसोल जंबूसर जाखोडा जामकंडोरणा १०४ जाम-खंभालीया ३४३ १०५ जामनगर १४१ १०६ जाम-भाणवड २३२ जामवंथली १०८ जालोर जीरावला तीर्थ जुना बेडा ४१५ | १११ ११२ जेलसमेर जोडीया ४०३ ११४ जोधपुर ३९७ ११५ जैनाबाद ११६ झघडीयाजी तीर्थ ११७ टीटोई तीर्थ ११८ डबाणी डबासंग ४५८ डीसा २३१ डुवा १८७ डुंगरपुर जि.- डुंगरपुर तीर्थ १२३ ढीमा १२४ तखतगढ़ १२५ तपोवन-धारागिरि १२६ तारंगाजी तीर्थ r rror- v -V9 Novo V romromeromroormomorror ro9-room vour o००/rom Nm mo० ) mom or urr9909 PormerVurvm 99509urm, २३ ११२ जेतपुर al ४५२ खेड़ा गंधार तीर्थ गागवा गांगाणी गांधीनगर गांभु तीर्थ गीरनार तीर्थ गुलाबगंज २ ४४९ गोइंज २३४ ८४ गोगुंदा Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकरादी अनुक्रमणिका अम तीर्थ अक. तीर्थ पेईज नं. पेईज नं. अक. तीर्थ पेईज नं. कम ताथ GANGAGGAFFASEAN orm or NAS ~ommmmm Frror 3rvorr 095 २७२ ३२२ २८२ ३५२ ३०४ १२१ १२७ तारापुर १२८ तालध्वजगिरि तीर्थ १२९ तीथल तीर्थ १३० तेरा तीर्थ १३१ थरा १३२ थराद १३३ थलतेज तीर्थ १३४ थानगढ १३५ थीका - केन्या १३६ दत्ताणी १३७ दर्भावती (डभोई) तीर्थ १३८ दमण १३९ दरापरा १४० दसाडा १४१ दहेज तीर्थ -१४२ दहेवण १४३ दाठा तीर्थ १४४ दादरा १४५ दहोद १४६ दांता १४७ दांता १४८ दीओदर तीर्थ १४९ दीयाणा तीर्थ १५० दीव तीर्थ १५१ देलवाडा तीर्थ १५२ देलवाडा - उदयपुर १५३ देलंदर । १५४ देसुरी १५५ घनाणी १५६ धवली १५७ धंधुका १५८ धाणेराव १५९ धानेरा १६० धीणोज १६१ धुंवाव १६२ धोराजी १६३ धोळका १६४ धोळा जंकशन १६५ धांगध्रा १६६ ध्रोल १६७ नडीयाद १६८ नलीया तीर्थ १८७ १६९ नवसारी-मधुमती १७० नवागाम १७१ न, हरिपुर १७२ नंदासण तीर्थ १७३ नाइरोबी - केन्या १७४ - नाकोडाजी तीर्थ १७५ नागोर १७६ नाघेडी १७७ नाडलाइ तीर्थ १७८ नाडोल तीर्थ २९० १७९ नाणा १८० नाना पोशीना तीर्थ २८७ १८१ नाना मांढा १८२ नानी खाखर ३०१ १८३ नार १८४ नांदीया तीर्थ १८५ नितोडा तीर्थ १८६ नीकोरा तीर्थ नेमीश्चर तीर्थ डोळीया १८८ पडधरी १८९ पडाणा १७८ १९० परबडी परोली तीर्थ १९२ पलाना १९३ पलांसवा १९४ पंचासर १९५ पाटडी ३८८ १९६ पाटण १९७ पादरा १९८ पानसर तीर्थ २५३ १९९ पालणपुर २०० पाली २०१ पावागढ तीर्थ २०२ पांथावाडा पींडवाडा २०४ पेटलाद २४७ २०५ पेसवा तीर्थ २०६ पोकरण २०७ पोरबंदर २०८ प्रभास पाटण तीर्थ २०९ फालना | २१० फलोधी तीर्थ mm roommmm or V9 Voromroorom voorvuro rourd303 VSoro 90 Norroo mr roomovro Swo २११ बगवाडा २१२ बजाणा बरवाळा बरेजा तीर्थ २१५ बाडमेर जिल्ला- बाडमेर . ४६ २१६ बाबरा बारेजा १८ बालदा तीर्थ २१९ बाली २२० बालोतरा २२१ बावनी (भावरी) तीर्थ २२२ बावळा २२३ बिकानेर २२४ बीजापुर २२५ बीजोवा तीर्थ २२६ बीलीमोरा २२७ बेडा २२८ बेला २२९ बोटाद बोडेली तीर्थ २३१ बोरसद २३२ बोया ३३ ब्यावर जिल्ला - ब्यावर २३४ ब्रह्मसर ४४२ भचाउ १४९ भद्रेश्वरजी तीर्थ भद्रंकरनगर (लुणावा) भाभर भारजा भावडी भावनगर भांडवपुर भीनमाल भीमाना २४५ भुज भुजपुर २४७ भोडोतरा २४८ भोराल तीर्थ २४९ भोयणी तीर्थ २५० मजावडी तीर्थ २५१ महावीर तीर्थ (कोरटाजी) २५२ महुवा तीर्थ ३५५ १ mp3ruro99 ० ० 3romorror Pr २६३ GAWWAMANG १४४ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अकरादी अनुक्रमणिका पेईज नं. | अमः तीर्थ - पेईज नं. अक.मीर्थ अक. तीथे पेईज नं. कमतीय १५१ m'mrr २५३ महेसाणा मंडार मंडोर तीर्थ मातर तीर्थ २५७ मांगरोळ मांडल २५९ मांडवी २६० मीयांगाम २६१ मुछाळा महावीर २६२ मुंगणी २६३ मुंगथला तीर्थ .२६४ मुंजपर २६५ मुंडारा तीर्थ See १३८ ४४३ ccccccc ३३१ m mr २६६ मंदा २२८ २९५ लंडन-लेस्टर (यु.के.) २९६ लाकडीया ४५४ २९७ लाखाबावळ लार्ज तीर्थ लाठी २५४ लालपुर ३०१ लींबडी २८८ ३०२ लुणावा ३०३ लोटाणा तीर्थ ३०४ लोद्रवपुर लोलाडा वडगाम ३०७ वडगाम ३०८ वडनगर तीर्थ ३०९ वडाली ३१० वडालीआ सिंहण १९३ ३११ वडोदरा ३१२ वढवाण शहेर ३१३ वणछारा तीर्थ ३१४ वरकाणाजी तीर्थ | ३१५ वरतेज तीर्थ ३१६ वरमाण तीर्थ वलसाड ३१८ वल्लभीपुर तीर्थ वसई ३२० वापी ३२१ वामज तीर्थ वालम तीर्थ ३२३ वालवोड तीर्थ ३२४ वाव ३२५ वासद ३२६ वांकली ३२७ वांकानेर ३२८ वांकी तीर्थ ३२९ विजापुर ३३० वीरमगाम ३३१ वीरवाडा तीर्थ ३३२ वीसनगर तीर्थ वींछीया वेजलपुर वेरावळ |३३६ शकरपुर तीर्थ ४८७ ३३७ शबंजय महातीर्थ ३३८ शंखलपुर १०९ ३९ शंखेश्वरजी तीर्थ शियाणी तीर्थ ३४१ शिरोडी ३४२ शिवाना ३४३ शिहोर ३४४ शुक्ल तीर्थ ३५४ शेतालुंश शेजूंजी डेम तीर्थ शेरीशा तीर्थ श्री बामणवाडाजी तीर्थ ३४९ श्री भीलडीयाजी तीर्थ ३५० श्री मीरपुर तीर्थ समळी विहार तीर्थ (भरूच) ३५२ सरखेज तीर्थ ३५३ सविना तीर्थ ११७ | ३५४ साचोर (सच्चउरि) ३५५ सादडी ३५६ सायरा ३५७ सावत्थी तीर्थ ३५८ सावरकुंडला ३५९ सांडेराव सांतलपुर १०६ सिध्धपुर सिनोर सिरोही सीका ३६५ सुथरी तीर्थ ३६६ सुरत ३६७ सुरेन्द्रनगर ३६८ सेवाडी सेलवास १४७ ३७० सेसली ३७१ सोजीत्रा ३७२ सोरठ वंथली ३७३ स्थंभन तीर्थ- खंभात ३७४ हधुंडी तीर्थ ३७५ हस्तगिरि तीर्थ | ३७६ हळवद | ३७७ हारीज ३७८ ___हिंमतनगर ३३२ ८८ १०३ V503930 mm o Voroo m rrrrrrr0 rmomo - ०99.0000307 our v००० ३६. ३६१ ४८५ मेड़ता रोड मेडता सीटी २६९ मेत्राणा तीर्थ मोटा पोशीना तीर्थ मोटा मांढा २७२ मोटा वडाला २७३ मोटी खाखर २७४ मोटी खावडी २७५ मोटी भलसाण तीर्थ २७६ मोडपुर तीर्थ २७७ मोढेरा २७८ मोम्बासा- केन्या २७९ मोरबी राजकोट २८१ राजपीपळा २८२ राजपुर २८३ राणकपुर तीर्थ २८४ राणपुर २८५ राणी तीर्थ २८६ राघनपुर २८७ रावलसर २८८ रासंगपुर २८९ राळज तीर्थ २९० रांतेज तीर्थ रांदेर तीर्थ २९२ रूपपुर तीर्थ २९३ रेवदर २९४ रोहिडा २१४ २८० २०० OOOOOOO 506 २६४ १२६ २२२ 66666666666666 Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लखपत कोटेश्वरे पा बरदा द्वारका नळीया ओखा गुजरात कि कच्छ का स्प 50 मांडवी, बेटद्वारका 132 स्ता खावडा भुज पोरबंदर कच्छ का अ खा त 64 50 बारंजातीर्थ गांधीधाम भद्रेश्वर तीर्थ कडल t 13 हालारतीर्थ / खंभालिया न सिक्का चोरवाड 39 81 जामनगर 130 5163 वांकानेर राजकोट गोंडल / गिरनार तीर्थ 分 जुनागढ 120 केशोद / चोरवाड तुलसीश्या वेरावल प्रभास पाटण सोमनाथ Y भारल ताथ 金 थराद 104 35 राधनपुर धागधा सुरेन्द्रनगर X 119/106 • डोलीया तीर्थ ज उना 500 ' देलवाडा तीर्थ wy चानुपतीय 金 शंखेश्वरतीर्थ 136 अरब सागर 合金 शत्रुज्य हस्तगीरी महातीर्थ 74 मोढेरा. रातजा A 2. सावत्वा शिवाणी तोष वलभीपुर 101 भावनगर 29 "अमरेली कीर्तीधाम सिंहोर, पालीताणा तीर्थ कादम्बगिरी. 我 T पाटण, उजा 1. वडनगर 50/ शामलाजी महेसाणा 62 1 हिमतनगर/ ! शरीर पानसर उपरीयातीर्थ भोयणी गांधीनगर विरमगाम 127 रा 'महुवा दांतीवाड! अवाजा कुंभारीयाजी तीर्थ 68 पालनपुर धरोड़ तारंगातीर्थ धोलकां तीर्थ .. कलीकुंड तीर्थ 'अरहोज J तलाजा तीर्थ खंभा त खा का अ अहमदाबाद वटवा रादर खेडा-नडीयाट् 83 मातर तीर्थ आणंद खभात कावी तीर्थ त 71/ गंधार तीथे भरचे तीर्थ खेडब्रह्मा उदवाडा दमण दीव दादरा नगर हवेली 60 अंकलेश्वर 97 ( वडोदरा बारडाला नवसारी 104 वलसाड़ वापी द टवा A उनाइ कडाण गुजरात दर्शनीय स्थान प्रमाण माप : २५००००० गोधरा 78 पावागढ तीर्थ • डभोई नवागाम झगडीया तीर्थ आहवा राजस्थान छोटा उदेपुर डांग सापुतारा दाहोद पारोली तीर्थ कुकरमुंडा मध्य प्रदेश महाराष्ट्र Page #21 --------------------------------------------------------------------------  Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २ चंदन 3 पुष्प ४ धुप पूदीप ६ भत 9 नैवेध ८ फल १ जल श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रंथमाला १ सिंह २ हाथी ३ वृषभ लक्ष्मी फूलमाला , चंद्र ७ सूर्य ८ ध्वज कलश १० प्रदद्म सरोवर Capta ३ दिव्य नी अशोक वृक्ष पुष्य वृष्टि श्री २ चंदन 3 वास ४ पुष्प माला ५ दीपक S = 0 १ जल र विलेपन ३ ची ४ व 26 Ps वरस युगल ४ चामर श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग- १ MOTOANO संयोजक संपादक : -: तपोमूर्ति पूज्य आचार्यदेवश्री विजय कर्पूर सूरीश्वरजी महाराजा के चू सिहासन ५ पुष्पा ६ पुष्य भाला, अंग रोइन रचना 00 - ग्रंथांक ३४६ २१ समुद्र १२ व १३ रत्न १४ मिं भा मंडळ बरास ९ ध्वज उदुभी पट्टधर हालारन्देशोद्धारक पू. आचार्यदेवश्री विजय अमृत सूरीश्वजी महाराजा के पट्टधर पू. आचार्यदेवश्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ६ धुप ७ पुष्प ८ अष्ट मंगल ९ अक्षत १० दर्पन ११ जैवद्य १२ ध्वज १३ फल 20 १२ पुष्प गृह १२ पुष्य अभिरन कृष्ण छत्र रफुल -: प्रकाशिका : श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रंथमाला लाखाबावल शांतिपुरी (सौराष्ट्र) ३ अक्षत ५ चंदन ६ ६प ७ दीपक नये १३ अष्ट १४ दीप १५ गीत १६ नाटक १७ वाजत मंगल Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २) 3 समदेय Pho ३. श्री संभवनाथ 30 श्री सुविधिनाथ CA ११ श्री भैयासनाथ C.R.Pednekar २ श्री अजिनाथ e ४. श्री अभिनंदनस्वामी पद्मप्रभस्वामी DA १० श्री शीतलनाथ वास उपस्था 出安 司 श्री पं अहँ पंचपरमेष्टि ट्री नमोतवस्स नमोचारित्तस्स MP नमस्कार शिवमस्तु सर्व जगत परहितनिरता भवन्तु भूतगणा:। दोषाः प्रयान्तु माझे सर्वत्र सुखि भवतु लोकः ॥ स्वामि सब्बेजीये. सच्चे जीवा स्वमंतु मे। भित्ती मे सध्यभृणमु के । कार महामंत्र नमोदंसणस्स อย STUF All (नमः) असिआउसा सम्यग ज्ञान-दर्शन- चारित्रेभ्यो नमः नमो अरिहंताएं नमो सिद्धा नमो प्रायरियाएं नमो उवज्झामा नमो लोए सव्यसाहए एसी पंच नमुक्कारी. संव्व पावप्पणासणी । मंगलाएंणं च सुव्वैसिं पढम हवडु मंगल ॥ ति २०४५५३०० ३५.२ का ६० १०२ २२ ३ + २ RET १४ २० २१ २ १७१३ १२५ १८ २४ ५ ६ १० ११ १७ २३ ४ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ १३ श्री विमलनाथ १५ श्री धर्मनाथ १७ श्री कंचना १९ श्री महिनाथ २रा श्री मिनाथ १२३ श्री पार्श्वनाथ १४ श्री अनंतनाथ १६. श्री शांतिनाथ स्वतस्वामी CHAMILY १५ श्री महावीरस्वामी Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेताम्बर जैन तीर्थ दर्शन 25/भारल गुजरात दर्शनीय स्थान प्रमाण माप: २५००००० . पा कि स्ता न धाराद। दांतोवाडा E:--- -----4T A कुभारीयाजी तीर्थ ____ालमपुर धरोड़ ... तारंगातीर्थ लखपत : 6 :--: पळीग्रा - हिमत -----शंखेश्वरतीर्थ / 1-शेरीमा पानसर । 50/ गांधारण विरमगाम अहमदाबाद भद्रेश्वर तीर्थAल मांडवी - मोरया / 104 / अपना गया/ ट्वा । दाहोद ओखा वेटद्वारका 7'अरहोज पातर तीर्थ गोधरा 78 पावागताच पारोली तीर्थ 9 पावागतार्थ.. द्वारका हालारतीर्थ/ वटवा मोदी मायबोलका । जामनगर 51 63 वांकानेर 1192100 तीर्थ कलीकुंड तीखेड नहीबाट | डोलीया तीर्थ ) . 5 ग ज --127 रा। M खभालिया। (V32 बारजातीर्थ खंभात आणंद काची ती त वडोदरा 127TI छोटा उदेपुर गोंडल । डभोड़ मध्य प्रदेश बलभीपुर 101 भावनगर । 7/ गंधार तार्थ भरुच/ AA निवागाम पोरबंदर .. अपरेली कोथिायमिटर पालीताणा तीर्थ राज्य अकलेश्वर झगडीया तीर्थ हस्तगीरी . पहाती करमंडा दयगिरी, लाजा तीर्च 600 Kजुनागढ " गिरनार तीर्थ - केशोद. चोरवा तुलसीश्याम वेरावल प्रभास पाटण / / सोमनार्थYतीर्थमा850 चोरवाङ 120/ 1 6 महुवा खं भान का अखा चोरवाडवल प्रभास पाटण । बारडोली सात गुजरात . ~देलवाडा तीर्थ 'नवसारी। आहवा 97104डांग बलसाड, सापुतारा। उदवाडा वापी महाराष्ट्र अरब सागर दमण/ दोव/ AA दादरा नगर हवेली Page #25 --------------------------------------------------------------------------  Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धंधुका की ओर पालीयाद कीमी स्केल ०५०३५ सुरेन्द्रनगर जील्ला सरवा. बरवाला बोटाद मदाबा द जी बाठीदड कारीयाणी ल्ला राजकोट अधेलाइ जील्ला 27/..निगाणा जंक्सन गढडा पछेगाम खा वलभीपुर उमराला 26 धोणा जं. भावनगर 7 DA बाबरा तरफ ढसा 13 ++ वरतेज सोनगढ़। दामगर शिहोर कुंभण किर्तीधाम | पीपरला.18 टाणा का ++AX 100 अमरेली की ओर परबडी20 घेटी शत्रुज्य पालिताणा गारीयाधार शेजीडेम) 327 28. हस्तगीरी A 26 तलाजा IN . कदम्बगीरी सावरकुंडा जेसर गाघकडा TO मोटाखूटवडा महुवा राजुला Page #27 --------------------------------------------------------------------------  Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ - भावनगर जिला पिका की ओर बीपीकर पालीवाX सुरेन्द्रनगर जील्ला सरवा बरवाला बोटादबाठोद होमदा बा द जी कारीयाणी ओला राजकोट त निगाणा जैक्सर जील्ला A पळेगामे बलभीपुर ल्ला उमराला Xोणा . बाबरा तरफKडसा भावनगर भावना नगर 2 दामगार सोनगड (शिहोर 30/ कुंपण कितीधाम कुषण पोधा पीपरला सटाणा का परवडी घेटी Xपालिताणा अमरेली की ओर गारीयाधार शत्रु शेजीडेम लाजा हस्तगीरी A कदम्बगीरी IM सावरकंडला गाधकहा -70 मोटावंदवाड़ा महवा भावनगर जिला ग्राम पेज नं. क्रम क्रम ग्राम शमुंजयमहातीर्थ कदम्बगिरितीर्थ तालध्वजगिरि तीर्थ हस्तगिरी तीर्थ शत्रुजय डेमतीर्थ भावनगर घोघातीर्थ दाठा तीर्थ वरतेज तीर्थ orrrrror २० २१ महुआ तीर्थ सावरकुंडला कीर्तिधाम तीर्थ शिहोर धोलाजंकशन वल्लभीपुर तीर्थ कारीयाणी बोटाद परबडी १७ MERRINA Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १. श्री शत्रुजय तीर्थाधिराज शजयतीर्थ- जयतलाटी 00000000000000000000000000 मूलनायक - श्री आदीश्वर भगवान शान्त एवं सुन्दर प्रतिमाजी, पद्मासनस्थ २-१६ मीटर शत्रुजी नदी के किनारे पालीताणा जिसका प्राचीन नाम पादलिप्तपुर मानने में आता हैं । यह पहले पुंडरीकपुर, पुंडरीकगिरी भी कहलाता था । शास्त्रो में एसा महान तीर्थ के १०८ नाम दीया हैं। उद्धार - यह शाश्वत महातीर्थ हैं । इस तीर्थ अनेक उद्धार हुए हैं। उनमें इस अवसर्पिणीकाल के निम्न अनुसार १६ जीर्णोद्धार हुए हैं। जिनका विवरण निम्न प्रकार हैं। १. श्री आदीश्वर भगवान के पुत्र भरत चक्रवर्ती द्वारा २. श्री दण्डवीर्य नाम के राजा द्वारा ३. (प्रथम - द्वीतीय तीर्थकरो के समय में ) श्री ईशानेंद्र द्वारा ४. श्री माहेन्द्र इन्द्र द्वारा ५. पाँचवे देवलोक के इन्द्र द्वारा ६. श्री चमरेन्द्र द्वारा ७. (श्री अजित भगवान के समय में) श्री सगर चक्रवर्ती द्वारा ८. श्री अभिनंदन भगवान के समय में व्यंतरेन्द्र द्वारा ९. श्री चन्द्रप्रभ भगवान के समय में राजा चन्द्रयशा द्वारा आगम मंदिर आदि DO Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ - भावनगर जिला दबदबदबदबदबदर श्री १०८ तीर्थ समवशरण मंदिर १०. श्री शान्तिनाथ भगवान के सुपुत्र श्री चक्रायुध द्वारा ११. श्री मुनिसुव्रत भगवान के समय में श्री रामचन्द्रजी द्वारा १२. श्री नेमिनाथ भगवान के समय में श्री पाण्डवो द्वारा १३. विक्रम संवत १०८ में महुआ निवासी श्री जावडाशा द्वारा १४. विक्रम संवत १२१३ कुमारपाल राजा के समय में बाहड .. मंत्री द्वारा १५. विक्रम संवत १३७१ में श्री समराशाह ओसवाल द्वारा १६. विक्रम सं. १५८७ में वैशाख वदी ६ के शुभ दिन चित्तौड (राजस्थान) निवासी श्री कमराशाह द्वारा इसके उपरान्त राजा संप्रति, विक्रमादित्य आमराजा तथा खंभात (गुजरात) निवासी श्री तेजपाल सोनी तथा श्वे. जैन संघ की आनंदजी कल्याणजी की पेढ़ी आदिने जस्री जीर्णोद्धार कराया हैं। इतिहास - जैन शास्त्रों के अनुसार यहाँ अनंत आत्माओं ने सिद्धपद प्राप्त किया हैं । जैसे कि चैत्र की पूनम को श्री आदीश्वर भगवान के प्रथम गणधर श्री पुंडरीक स्वामी, कार्तिक की पूनम को द्राविड वारिखिल ने अनेक मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया । फाल्गुन सुदी तेरस के दिन भावी तीर्थंकर श्रीकृष्ण वासुदेव के पुत्र शाम्ब-प्रद्युम्न शजय गिरिराज के सुभद्र की टोंक पर से अनेक मुनिवरों के साथ मोक्ष प्राप्त किया । पश्चात यह टोंक "भाडवा का डूंगर' इस नाम से प्रसिद्ध हुई । इन प्रसंगों की याद में ६ कोस (१९ कि.मी.) की प्रदक्षिणा करने में आती हैं। उसी प्रकार उन दिनों से यहाँ बड़ा मेला भराता हैं। इसके बाद नमि, विनमि, नारदजी श्री आदिनाथजी भगवान के वंशज श्री सूर्ययशा राजा, श्री सगर चक्रवर्ती, शैलेकसूरी, श्री शुक्र परिव्राजक, पाँच पाण्डव वगैरह अनेक मुनिवरों के साथ मोक्ष प्राप्त किया । भगवान श्री नेमिनाथ के सिवाय दूसरे तेवीस तीर्थंकरों ने यहीं केवली अवस्था में पदापर्ण करके इस महान पुण्य तीर्थ स्थल की प्रतिष्ठा बढ़ाई हैं। इस तीर्थ के रक्षक कपर्दी यक्ष हैं जिसकी श्री कृष्ण ने यहाँ एक गुफा में साधना की थी। इस प्रकार की लोक कथा प्रचलित हैं । भगवान आदीश्वर पूर्ण नवाणुं बार सिद्धाचल गिरिराज पर पधारे थे । इस पवित्र स्मृति में नवाणुं बार सिद्धाचल गिरिराज पर पधारे थे । इस पवित्र स्मृति में नवाणुं यात्रा एवं चातुर्मास करने के लिए कोने-कोने से यात्रिगण एवं मुनि भगवंत पधारते हैं। पूज्य मुनि भगवान यहाँ पर हमेशा सैंकडो की संख्या में विराजते हैं । कार्तिक पूनम, चैत्री पूनम, फागुन सुदी तेरस और अक्षयतृतीया को यात्रा करने हजारो यात्रालु आते हैं । अक्षयतृतीयाको वर्षी तप का पारणा करने के लिए हजारों तपस्वीगण अलग-अलग स्थानों से आते हैं । उन दिनों में यात्रियों की बहुत भीड़ रहती हैं | और दृश्य अनुमोदनीय बनता हैं । यात्रिसंघो का आवागमन रहता हैं । गुजराती मिति Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ वैशाख वदी छठ दादा के मुख्य जिनमंदिर की प्रतिष्ठा - पद्मावती देवी की मूर्ति हैं, हनुमान धारा के पास एक ध्वज दंड के भी मेला होता हैं । (१६ वें उद्धार का रास्ता नवटूकों की तरफ जाता हैं और दुसरा रास्ता भी यह दिन हैं।) मुख्य टोंक (श्री आदीश्वर भगवान की टोंक) तरफ दुसरे मन्दिर - पालीताणा गांव से लेकर तलहटी जाता हैं । इस मुख्य टोंक की तरफ जाते हुए प्रथम तक अनेक मन्दिर है जिनमें एक केशरियाजी मंदिर, बाबु रामपोल, वाघणपोल आते हैं । आगे फिर हाथीपोल में का मंदिर गोविंदजी खोना का जिन मंदिर तथा आगम प्रवेश करते हुए सूरजकुंड, भीमकुंड, ईश्वरकुंड वगैरह मंदिर भी हैं । पहाड़ के शुरू में ही समवसरण मंदिर आते हैं । एक विशाल होज आता हैं । जिस का अत्यन्त शोभायमान बना हैं। पानी भगवान के प्रक्षालन के लिए उपयोग में लिया __यात्रारम्भ की विगत - पहाड़ पर चढ़ते समय जाता हैं। तलहटी में श्री गिरिराज सन्मुख चैत्यवन्दन करके मुख्य टोंक में प्रवेश करते हुए श्री शान्तिनाथ यात्रारम्भ करते हैं। का मंदिर तथा दाई तरफ नरशीनाथा का मंदिर टोंक में गोविंदजी खोना के मंदिर के पास आते हैं । आगे श्री नेमीनाथ का मंदिर बगल में अजिमगंज निवासी धनपतसिंह लक्ष्मीपतसिंहजी के पुण्य-पाप की बारी, पास में दोनों तरफ मंदिरों की श्रेणी, मूल मंदिर के बाहर कुमारपाल का मंदिर हैं । द्वारा विक्र म सं.१९५० में माघसुदी १० को पीछे स्नान केशर की व्यवस्था हैं । अन्दर प्रवेश करते प्रतिष्ठित करा हुवा बावन जिनालय मंदिर तलहटी ही आदीश्वर दादा की प्रतिमा का दर्शन होता हैं। के ठीक ऊपर है उसे धनवसही ट्रॅक (बाबु का आगे रायण पगला-चरण, गणधर चरण भमती में हैं मंदिर) भी कहा जाता हैं । आगे बढ़ते देरियाँ हैं । तथा दूसरा मंदिर उसी प्रकार मूलनायक के सामने श्री जहाँ भरत चक्रवर्ती नेमिनाथ भगवान के गणधर पुंडरीक स्वामी, नवीन आदीश्वर अष्टापद मंदिर, वरदत्त आदीश्वर भगवान की और पार्श्वनाथ सीमन्धर स्वामी का मंदिर हैं । मोटी भमती में से भगवान की चरण पादुका और द्राविड वारिखिल, नवीन बावन मन्दिर में जाते हैं। नारदजी, राम, भरत, थावच्चा पुत्र, शुक्र मूल दादा के पास आते ही आत्मा आनंद में परिव्राजक, शेलेकसूरि, जाली, मयाली, उवयाली, नाच उठती हैं । भव्य प्रतिमा, भव्य भाव एवं भव्य और देवी आदि की मूर्तियाँ हैं। बीच में यात्रा का योग मिलता हैं । दर्शन-पूजन स्तवनों से कुमारपाल कुंड, छालाकुंड बगैरह आते है। मंदिर गूंजता रहता हैं । भक्तगण तन-मन-धन तथा छालाकुंड के पास जिनेन्द्र टोंक है, जिसमें चरण एवं वचनों से न्यौछावर होकर भक्ति करके धन्य बनते हैं मूर्तियाँ हैं । लगभग ४०'६ से.मी. की प्रभावशाली एवं जीवन कृतार्थ करते हैं । - श्री ओसवाल यात्री गृह Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ - भावनगर जिला ARRHOO.COM शत्रुजय गिरिराज A888888888888888888888888888888888888 RS88888888888888888888888888888888888888888888888887 समूह - मंदिर R8288283A 88888888888888888888888888888888888888881 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 滑滑滑滑滑滑滑滑滑滑滑际 सेठ श्री नरशी केशवजी टोंक श्री चौमुखजी की टोंक 永画画画前画的画前画的画逾治逾時逾前前前前前前前前 喚來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 सेठ श्रीसाकरचंद की टोंक श्री उजमबाई की टोंक सेठ श्री हेमाभाई वखनचंद की टोंक सेठ श्री प्रेमचंद मोदी की टोंक 滑滑滑滑滑滑滑滑滑滑滑滑滑润滑 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ - भावनगर जिला 邋邋邋邋邋邋邋邋露露 श्री उजमबाई तथा साकरवसी टोंक दृश्य जव टोकों का वर्णन १ली टूक सेठ नरसी केशवजी की टोंक (सेठ नरसी केशवजी द्वारा विक्रम संवत १९२१ में निर्माण की गयी मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान) श्री टोंक चौमुखीजी की टोंक (गिरिराज पर सबसे ऊची टोंक है, बहुत दूर से टोंक का शिखर दिखाई देता है जिसका नवनिर्माण विक्रम संवत १६७५ में सेठ सदा सोमजी द्वारा करवाया गया था । - इस टोंक के पीछे पांडवों के मंदिर में पाँच पाण्डव, माता कुन्ती, सती द्रोपदी की मूर्तियाँ हैं। इस ड्रंक पर मरुदेवी माता का प्राचीन मन्दिर हैं । टोंक के मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान हैं । चौमुखी टोंक के बाहर भाग में चार मंदिरों का समूह है । जिनको खतर वसही कहते हैं । ३ री टोंक छीपा बसही टोंक - (छीपा भाईयों की विक्रम संवत १७९१ में निर्माण कराई हैं। मूलनायक श्री आदिनाथ भगवान) ४ थी टोंक - साकर वसही टोंक (सेठ श्री साकरचंद प्रेमचन्द्र द्वारा विक्रम संवत १८९३ में बनवाई हैं मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ) सेठ श्री बालाभाई की टोंक (99 Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ F सेठ श्री मोतीशाकीटोंक ५ वी टोंक - नन्दीश्वर टोंक ९वी ढूंक - मोतीशाह की टोंक सेठानी उजमबाई द्वारा विक्रम संवत १८९३ में निर्मित इस टोंक के केन्द्र सेठ मोतीशाह ने इसका निर्माण कराया है तथा उसकी प्रतिष्ठा उनके में (१)ऋषभानन (२) चन्द्रानन (३) वारिषेण (४) वर्धमान । ये चारशाश्वत | पुत्र श्री खेमचंद द्वारा विक्रम संवत १८९३ में हुई है। मूलनायक आदीश्वर जिनेश्वर देवों की प्रतिमायें चतुर्मुख विराजमान हैं। दादा। यह टोंक विशाल भव्य मंदिरों से युक्त हैं। नन्दीश्वर द्वीप की रचना रूप मन्दिर हैं। ऊपर अनुसार टोंकों के मुख्य मंदिरों के पश्चात दूसरे मंदिरों के समूह ६ठी टोंक - हेमवसही टोंक पर्वत मालाओं की तरह क्रम बद्ध लगते हैं । पहाड़ के पीछे घेटीपागे हैं। जहाँ अहमदाबाद के हेमाभाई द्वारा विक्रम संवत १८८६ में निर्मित (मूल | पर श्री आदीश्वर भगवान की प्राचीन चरण हैं । और दो नवीन निर्मित नायक अजितनाथ भगवान) मंदिर हैं। ७ वी टोंक - प्रेमवसही टोंक शत्रुजय शणगार टोंक तथा आदिनाथ जी के चरण हैं वहाँ जाने के लिए... (मोदी श्रीप्रेमचंद लवजीद्वारा विक्रम संवत १८४३ में निर्मित मूलनायक मुख्य टोंक के पास से ही सीढियों का रास्ता हैं। श्री आदीश्वर भगवान) पास में ही पवित्र शत्रुजय नदी हैं। यहाँ नीचे उतरते हुए अदबदजी दादा की अद्भुत प्रतिमा आती हैं । जसको "अद्भुत दादा" कहते हैं। यह दिव्यमूर्ति पद्मासनस्थ ५'५ मीटर विशेष : इस गिरिराज की तीन प्रदक्षिणायें मानने में आती हैं । (१)डेढ़, की हैं। कोस की (२) ६ कोस की (३) बारह कोस की ८ वी टूक - बाला वसही टूक नवाणुं यात्रा करने वाले एवं दूसरे भाग्यशाली शत्रुजय नदी में स्नान करके श्री बालाभाई द्वारा वि.सं. १८९३ में मूलनायक आदीश्वर गिरिराज की प्रदक्षिणा करके अपने पापों का क्षय करते हैं । मुख्य मंदिर के भगवान पीछे एक प्राचीन रायण का वृक्ष हैं। श्री आदीश्वर भगवान ने यही पर देशना NCER MESSA Than Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ - भावनगर जिला (१३ प्रदान की थी जिससे यह स्थान और वृक्ष का खास महत्व हैं, यहाँ पर उनके चरण स्थापित किए गए हैं । ११९ से. ६३.५ से. मी. हैं । यहीं पर दूसरे भी बहुत मन्दिर हैं । जिनका वर्णन अशक्य हैं। आँखों से देखों और पवित्र बनो। इस पावन तीर्थ की यात्रा करके मानव-जीवन सफल बनाओ-यही शुभेच्छा हैं। स्टेशन से तांगा मिलता हैं। १.५ कि.मी. का फासला हैं । तलहटी तक पक्का रास्ता हैं। ऊपर जाने के लिए ३२१६ सीढ़िया हैं। डोली की व्यवस्था हैं। व्यवस्था - पालीताणा में अनेक मंदिर हैं । अनेक धर्मशालायें हैं । तमाम सुविधा हैं । अनेक धर्मशालाओं में भोजनालयों की व्यवस्था हैं। पहाड़ के सम्पूर्ण मार्ग में उबला हुआ पानी भी मिलता हैं । मेले के समय आनेवाले यात्रियों को धर्मशाला में आगे से बुकिंग करवा लेना जरुरी हैं। मूलनायक-श्रीआदीश्वरभगवान नैसर्गिक सौन्दर्य - पहाड़ पर पहुँचते ही ऐसा लगता है कि मानो हम बाकी के दिनों में व्यवस्था मिलती रहती हैं । पहाड पर मुख्य मंदिर के देवलोक में हैं । यहाँ आते ही मनुष्य नैसर्गिक सौन्दर्य देखकर खुश हो जाता पास बाथरुम, पूजा के वस्त्र, फूल वगैरह मिलते रहते हैं। चमड़े के बूट, हैं। हृदय भक्तिभाव से तरोताजा बन जाता हैं । संसार की चिन्ताओं से मुक्त | चप्पल ऊपर ले जाने की मनाई हैं। बन जाता हैं । यहाँ पर एक ही पर्वत पर बहुत मंदिरों का दिव्य दर्शन नीचे उतरते समय भाता-नाश्ता की व्यवस्था हैं। अलौकिक लगता हैं । पर्वत पर से पालीताणा का दृश्य और नीचे के मंदिर ऐसी सुन्दर यात्रा करने आनेवाले यात्रियों को चाहे जहाँ ठंडा पीना, अनुपम सुहावने दिखाई देते हैं । शत्रुजय नदी की ठंडी-ठंडी लहरें मन को नाश्ता, रात्रि भोजन करना उचित नहीं हैं। शान्ति प्रदान करती हैं। | तीर्थ स्थान में यथाशक्य छ'री पालकर यात्रा करना चाहिए। अन्त में पूर्व में तलाजातीर्थ, कदम्बगिरि तीर्थ के दर्शन होते हैं । पीछे हस्तगिरि | इतना ही निवेदन हैं कि इस शाश्वत महान तीर्थ की भक्तिभाव पूर्वक यात्रा तीर्थ तथा भाडवा डूंगर के दर्शन होते हैं । कर मानव-भव सार्थक करना चाहिये। .......अस्तु जो अनोखे आनंद के विषय बन जाते हैं। पेढ़ी- सेठ आनंदजी कल्याणजी की पेढ़ी, मार्गदर्शन - इस तीर्थस्थान पर पहुँचने के लिए पास में पालीताणा | जशकुंवर की धर्मशाला, तलेटी रोड, पालीताणा रेल्वेस्टेशन, बस स्टेशन वगैरह हैं । भावनगर रोड पर स्थित शिहोर से२९ | पिन- ३६४२७० किमी. हैं। अहमदाबाद से पालीताणा बस, रेल आदि मिलती हैं। रेल्वे जिला - भावनगर (गुजरात) टे. ने. ४८ Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४) घेटी पाग - श्री शत्रुंजय शणगार टोंक श्री घेटीपाग- देरी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ श्री घेटीपाग श्री आदीश्वर प्रभुचरण पादुका Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ भावनगर जिला 温锅 हाथी वृषभ pur F लक्ष्मी माठलायु चन्द्र p सूर्य Τ ध्वज कलरा EL पका सरोवर श्रीरसमुद्र କ शत्रुंजय तीर्थाधिराज मूलनायक श्री आदीश्वरजी दादा विमान रत्नराशि अनि (१५ Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ २. कदंमगिरि तीर्थ श्री कदम्बगिरि तीर्थ मूलनायक - श्री आदीश्वर भगवान पद्मासनस्थ, श्वेत वर्ण, ऊँ. २ मीटर पालीताणा से लगभग १९ कि.मी. बोदानानेस (प्राचीन नाम कदम्बपुर) गाँव के पास कदम्बगिरि पर्वत पर एकान्त जंगल में हैं। यह तीर्थ प्राचीन हैं। श्री शत्रुजय गिरि का यह एक शिखर है, तथा गिरिराज की तीन प्रदक्षिणाओं में एक बारह कोस की प्रदक्षिणाओं में यह स्थान था। पिछली चौबीसी के दूसरे तीर्थंकर श्री निर्वाणी प्रभु के गणधर श्री कदम्बमुनि ने अनेक मुनिओं के साथ यहीं पर मोक्ष प्राप्त किया था। जिससे इस पर्वत का नाम कदम्बगिरि पड़ा हैं। श्री शत्रुजय पंचतीर्थी में यह एक तीर्थ गिना जाता हैं। इस तीर्थ का उद्धार पूज्य नेमिसूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से हुआ हैं। कदम्बगिरि पर्वत पर समीप में दो दूसरे मन्दिर हैं। जिनेक मूलनायक श्री नेमिनाथ भगवान और श्री सीमन्धर स्वामी हैं। पहाड़ के शिखर के ऊपर दो देरियाँ हैं । जहाँ पर निर्वाणी प्रभु तथा कदम्ब गणधर की चरण पादुकायें हैं। पहाड ऊपर एक दूसरा मंदिर हैं। सामने नूतन प्रतिमाओं का भंडार हैं। छोटी-बड़ी हजारों प्रतिमायें निर्माण करा कर संग्रहित की हुई हैं। तलहटी के गाँव में भी वीर प्रभु का विशाल मंदिर हैं। इस पहाड पर श्री आदिनाथ भगवान की भव्य सुन्दर प्रतिमा हैं। भंडार में रखी प्रतिमाओं की कला दर्शनीय हैं। पहाड़ का प्राकृतिक सौन्दर्य मनमोहक हैं। पास में पालीताणा रेल्वे स्टेशन १९ कि.मी. दूर है। बस और टेक्सी की व्यवस्था है। यहाँ से ही भंडारिया गाँव ८ कि.मी., बोदानानेस गाँव ४ कि.मी. दूर है। इस गाँव से पहाड़ की चढ़ाई शुरू हो जाती हैं। बोदानानेस में मंदिर के पास ही धर्मशाला हैं, भोजनशाला भी हैं। डोली की व्यवस्था भी हैं। सेठ श्री जिनदास धर्मदास धार्मिक ट्रस्ट कदम्बगिरि, ग्राम - बोदानानेस पो. भंडारिया जिला - भावनगर (गुजरात) पिन - ३६४०५० Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १- भावनगर जिला 浏習習習習習習習習習習習習習習習習習習習習 मूलनायक श्री आदीश्वरजी 來噢來噢來噢噢噢噢噢噢噢噢噢噢噢噢來來來噢噢噢噢噢噢噢噢噢些 ३. श्री तालध्वजगिरि तीर्थ 歷來喚奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥愿 All URIAR 对 傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘喚喇喇嘛來嘛來嘛來嘛來源 Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૧૮) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ પાછવિ રૂચકર 6 ઉપધાન તપના ઉધ્યાપ: E છેલ રાઘવજી.ષ્યિ જ (ઈને . OPe'YeતાવાળLવતું. બીજાના ઉપદેશથીશા શાંત Ahતાબેન ઉપધાન પ્રવિણ ! - ડો. કૃ&@Ėવશગ્ટન્ટ तलाजातीर्थ-मूलनायक श्रीसाचासुमतिनाथजी Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ - भावनगर जिला 香參參參參參參參參參參參參 斷除缘擊隊衛隊奪缘缘缘斷综靡券 श्रीतालध्वजगिरि(तलाजा) मूलनायक - श्री साचा सुमतिनाथजी साचा सुमतिनाथ कहने लगे। अखंड ज्योति चालू है जिसमें से केशरिया श्यामवर्ण पद्मासनस्थ ७९ से.मी. काजल के दर्शन होते हैं। प्राचीन काल की शाश्वत श्री शत्रुजय महातीर्थ की यह ढूंक मानने में दूसरे जैन मन्दिर - इसी पहाड़ पर श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ, महावीर आती थी। शत्रुजय पर्वत वहाँ तक फैला हुआ था। गिरनार से शत्रुजय तक भगवान, चौमुखी मन्दिर और एक गुरू मन्दिर हैं। प्राचीन काल में पहाड़ की लम्बाई थी वैसा शास्त्रों में लिखा है। आज भी यह गुरू मन्दिर में - गौतमस्वामी, सुधर्मास्वामी, जम्बुस्वामी, कलिकाल तालध्वजगिरि शत्रुजय पंचतीर्थ का तीर्थस्थल माना जाता हैं। यहाँ की सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्र सूरीश्वरजी म., वृद्धिचन्द्रजी महाराज आदि तथा कुमार प्राचीनता में पहाड़ पर आने वाली छोटी बड़ी अनेक प्रकार की गुफायें हैं। पाल राजा की मूर्ति स्थापित हैं। गाँव में भी शान्तिनाथ भगवान और श्री कहा जाता हैं कि श्री आदिनाथ भगवान के ज्येष्ठ पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती यहाँ मल्लिनाथ भगवान के दो विशाल मंदिर हैं। यात्रा करने के लिए आये थे। उन्होंने यहाँ पर एक सुन्दर मंदिर बनवाया था। इस पहाड़ पर आए हुए भव्य मंदिर तथा नैसर्गिक गुफाओं का दृश्य ई. सं. ६४० में चीनी यात्री हेनसांग ने भी अपने लेख में इस तीर्थस्थल का अत्यन्त रमणीय एवं मनमोहक दिखाई देता हैं। एक शत्रुजय गिरिराज पर के वर्णन लिखा हैं। मंदिरों के समूह का दृश्य और दूसरी तरफ शत्रुजी-सरिता नदी के संगम का । वर्तमान मन्दिर १२ वीं शताब्दी के काल में राजा कुमारपाल द्वारा निर्माण दृश्य देखते हुए यात्रीगण भक्तिभाव विभोर हो उठते हैं। करवाने का उल्लेख मिलता हैं । टींबाला गाँव में मिले हुए विक्रम संवत यहाँ से ही १.५ कि.मी. पर तलाजा रेल्वे स्टेशन हैं । वहाँ से घोडागाडी | १२६४ के शिलालेख में "तलाजा महास्थान" का वर्णन हैं। विनयप्रभ मिलती हैं। पालीताणा ३८ कि.मी. दूर हैं। जहाँ से बस टैक्सी वगैरह मिल |विजयजी उपाध्याय ने तीर्थमाला स्तवन में भी इस तीर्थ का वर्णन किया हैं। सकती हैं। बस स्टेंड भी हैं। भावनगर से तलाजा बस चलती हैं। | यहाँ की प्रतिमा संप्रति काल की मानी जाती हैं। यहाँ पर आखिरी उद्धार यहाँ पर विशाल धर्मशाला हैं। भोजनशाला भी चलती हैं। विक्रम संवत १८७२ में वैशाख सुदी तेरस के दिन करवाने में आया था। श्री तालध्वज गिरि जैन श्वेताम्बर तीर्थ कमेटी, बाबु की जैन धर्मशाला | यह प्रतिमा विक्रम संवत १८७२ में इसी गाँव की जमीन में से प्रगट हुई मु. तलाजा, जिला - भावनगर (गुजरात) थी प्रतिमा प्रगट होते ही फैला हुआ रोग समाप्त हुआ और शान्ति का पिन ३६४१४० टेलीफोन -३० वातावरण फैला इसका उल्लेख मिलता हैं। उसी समय से लोग प्रभुजी को 學聯參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 參參參參參參參參 Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 香寧寧寧寧參參參參參參參參參寧寧 ४. श्री हस्तगिरि तीर्थ मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान चरण पादुका, लगभग ३६ से.मी. प्राचीनता - यह श्री आदीश्वर भगवान के समय का तीर्थ तथा शत्रुजय पर्वत का एक शिखर मानने में आता हैं। श्री आदीश्वर भगवान का अनेक बार यहाँ पदार्पण हुआ हैं। आदीश्वर भगवान के पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती ने इस तीर्थ की स्थापना की थी। चरण पादुकायें प्राचीन हैं। शत्रुजय गिरिराज की १२ कोस की प्रदक्षिणा में यह तीर्थ भी आता हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि भरत चक्रवर्ती ने यहाँ से मोक्ष प्राप्त किया था। और उनके हाथी अनशन करके स्वर्ग पधारे थे। इस कारण से इस पहाड़ का नाम श्री हस्तगिरि पडा हैं। विशेषता - इस पहाड पर से एक तरफ शत्रुजय गिरिराज और दूसरी तरफ कदम्बगिरि का दृश्य अत्यंत मनमोहक और सौन्दर्य से भरपूर लगता हैं। शत्रुजय नदी का मधुर पवन चित्त को प्रफुल्लित करता हैं । साधना के लिए यह शान्त स्थल है। मार्ग दर्शन - यहाँ पास में रेलवे स्टेशन पालीताणा १५ कि.मी. हैं। वहाँ से बस, टेक्सी, ताँगा से जालिया आना पड़ता हैं और वहाँ से पर्वत की चढ़ाई शुरु होती हैं। २.५ कि.मी. की चढ़ाई हैं। नीचे श्री आदीश्वर भगवान का भव्य मंदिर हैं। नीचे के भाग में धर्मशालायें हैं। उपाश्रय हैं, भोजनशाला हैं। पालीताणा से सडक हैं । २० | कि.मी. का फासला है। ___ इस तीर्थ का उद्धार प.पू.आ. विजय रामचन्द्र सूरिजी म. तथा पू. आ. श्री विजय मानतुंग सूरिजी महाराज के उपदेश से हुआ हैं। यहाँ पर पंच कल्याणक के अनुसार रचना की हैं, तलहटी में भव्य मंदिर हैं, वह च्यवन कल्याणक मंदिर हैं, बीच में एक जन्म कल्याणक, एक दीक्षा कल्याणक इस प्रकार दो मंदिर हैं। ऊपर भव्य अष्टकोण ७२ जिनालय हैं। मूलनायक भव्य चौमुखी हैं। उसके ऊपर भी भव्य चौमुखी जी हैं। शिखर बादलों के साथ बातें करता हैं। पूरा मंदिर आरस पहाड का हैं। अति भव्यतम रचना की हैं। यह केवलज्ञान कल्याणक का मंदिर है। इस मंदिर का शिलान्यास पू. आ. जिनेन्द्र सूरिजी (उस समय पं.) की निश्रा में २०२९ में हुआ। २०४५ में अत्यन्त भव्य से भव्य महोत्सव के साथ प. पू. तपागच्छनायक आ. श्री विजय रामचन्द्र सूरीश्वरजी म. सा. की निश्रा में अंजनशलाका महोत्सव के साथ २३५ प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई। ७०० साधु-साध्वीजी की उपस्थिति थी। इस मन्दिर का निर्माण चन्द्रोदय चेरिटीज हस्तक कान्तिलाल मणिलाल जवेरी आदि महानुभावों ने जीवन समर्पण कर करवाया हैं। टेकरी के ऊपर चरण पादुकायें हैं, उनको निर्वाण कल्याणक के रूप में गिनते हैं। उन चरण पादुकाओं एवं मंदिर का जीर्णोद्धार करके पू. आ. श्री विजय रामचन्द्र सू. म. के हाथों सेठ आनन्दजी कल्याणजी पेढी द्वारा प्रतिष्ठा करायी हैं। भव्य, अति रमणीय और आल्हादक यह तीर्थ है। उसकी यात्रा करना जीवन का एक लाभ हैं। श्री हस्तगिरि तीर्थ पेढी - चन्द्रोदय चेरिटीज मु. जालीया अमराजीवाया - पालीताणा 餘餘券餘振峰峰峰经峰峰峰纷纷纷纷纷纷纷纷纷擊券纷纷纷纷纷缘缘缘缘聚缘缘 SA श्री आदीश्वरजी पादुका श्री आदीश्वरजी पादुका देरी Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ भावनगर जिला श्री हस्तगिरि श्री आदीश्वरजी श्री पार्श्वनाथ देरासर श्री हस्तगिरि तीर्थ ५. शेत्रुंजी डेम तीर्थ दादा आदीश्वरजी, दूरथी आव्यों, दादा दर्शन दीयो, कोई आवे हाथी, घोडे, कोई आवे चढ़े पलाणे कोई आवे पगपाले, दादा ने दरबार, हाँ-हाँ दादा ने दरबार, दादा आदीश्वरजी दूर थी आव्यों, दादा दरिशन दीयो....? (२१ Ատամ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२) मूलनायक श्री सहस्रफण पार्श्वनाथजी इस नूतन जिनालय की प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजय नन्दनसूरिजी म. की निश्रा में संवत २०२८ के वै. सु. १० को हुई जो शत्रुंजय डेम तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध हैं। यहाँ पर मूलनायक श्री सहस्रफण पार्श्वनाथ भगवान विराजमान हैं । दूसरी बहुत बड़ी संख्या में प्रतिमाये हैं । यहाँ पर सुन्दर धर्मशाला है। भोजनशाला भी है। ભી આદેશ્વર ભગવાન વાતાગ મળવાના માર मूलनायक श्री आदीश्वरजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी (१) दरबारगढ़ के पास श्री आदीश्वरजी भगवान का मंदिर हैं। संप्रति राजा के समय की प्रतिमाजी हैं जो पीरम बेट से मिली हुई कहलाती हैं । ३५१ वर्ष पुराना मन्दिर है। विक्रम संवत १७१३ में प्रतिष्ठा ६. भावनगर (२) वडवा में चन्द्रप्रभुजी का मन्दिर विक्रम संवत १८१३ में निर्माण करवाया हैं। (३) श्री दादा साहब का मंदिर जेलरोड (बडी अस्पताल के पास) विक्रम संवत १९७१ का हैं। ये भगवान विक्रम संवत १६८२ में भराए श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१. १२ कोस (१९ कि.मी.) की प्रदक्षिणा में रोहिशाला तीर्थ था। डेम के कारण यह देरासर हटाकर डेम पर यह तीर्थ बना हैं। तीर्थ रमणीय हैं और पालीताणा से पंचतीर्थी में और कदंबगिरि तीर्थ जाते यह तीर्थ आता है। पालीताणा से ७ कि.मी. पर हैं। पेढ़ी - श्री जिनदास धर्मदास धार्मिक ट्रस्ट इसकी व्यवस्था करता हैं। दादा साहेब देरासरजी गोडीजी, करवलीयापरा, शास्त्रीनगर, विद्यानगर, सरदारनगर, कृष्णनगर, सीमन्धर स्वामी महावीर विद्यालय, ये शिखर बंद मंदिर हैं। और करीब ६ गृहमंदिर हैं। पेढ़ी- सेठ डोसाभाई अभयचंद की पेढ़ी श्री श्वे. मू. पू. तपा. जैन संघ भावनगर इन सभी मन्दिर की व्यवस्था करता हैं। यहाँ पर दस उपाश्रय है। १७ पाठशालायें हैं, जैनियों की २५००० की बस्ती ५००० घर हैं। रेल्वे स्टेशन के पास धर्मशाला, भोजनालय, वगैरह की यात्रियों के वास्ते व्यवस्था हैं। सौराष्ट्र गुजरात के रेल्वे और बस के रास्ते से भावनगर जुड़ा हुआ है। चाहे जिस स्थान से आ सकते हैं। एयरपोर्ट भी है। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग :१- भावनगर जिला MAHITINE दादा साहब मन्दिर भावनगर. वीरः सर्वसुरासुरेन्द्रमहितो, वीरं बुधाः संश्रिता, वीरेणाभिहतः स्वकर्म निचयो, वीराय नित्यं नमः, वीरातीर्थमिदं प्रवृत्तमतुलं वीरस्य घोरं तपो, वीरे श्री धृति कीर्ति कान्ति निचयः, श्री वीर भद्रं दिश दादा साहब मन्दिर मूलनायक श्री महावीर स्वामी सर्वेषां वेधसामाद्य-मादिमं परमेष्ठिनां, देवाधिदेवं सर्वज्ञ, श्री वीरं प्रणिदध्महे। ७. घोघा तीर्थ मूलनायक श्री नवखंडा पार्श्वनाथजी मूलनायक का शिखरबन्द प्राचीन मन्दिर हैं, बाजु में शान्तिनाथ, से एक दिन पहले ही प्रतिमा जी बाहर निकाल ली गई । मूर्ति तो जुड गयी। चन्द्रप्रभु आदि एक ही चौगान में चार मन्दिर हैं। ११६८ में आ. महेन्द्रसूरिजी परन्तु एक दिन पहले निकालने से नव धारे-काया रह गयी इससे ही नवखंड के हाथ से यहाँ अंजनशलाका हुई हैं। यहाँ पर बहुत ही प्राचीन गढ़ हैं। पार्श्वनाथ कहलाती हैं। संप्रति राजा के समय की प्रतिमाजी भराई हुई हैं। यहाँ पर एक ही गहरा चार भोयरों वाला भोयरा था- जिसमें यह मंदिर, पुनः देरासर बनाकर विक्रम संवत १८६५ में पुनः प्रतिष्ठा की है। जहाँ पर था। वि. सं. १७८१ की साल में काणा मीठा सेठ ने बायें सुविधिनाथ की भावनगर वडवा नाम का छोटा ग्राम था वहाँ पर यह घोघा एक लाख की प्रतिष्ठा कराने का लेख मिलता हैं। यह प्राचीन भोयरा अभी भी मौजूद हैं। बस्ती का शहर था। सुन्दर बन्दरगाह था। व्यापार की समृद्धि थी, कुआ मुसलमानों के राज्यकाल में उनके सिपाहियों द्वारा दूसरे मन्दिरों तथा खोदते यह प्राचीन प्रतिमाजी मिली हैं। घोघा के श्रावकों को स्वप्न में प्रतिमाओं का खंडन हुआ उस समय इस प्रतिमा के भी टुकडे हुए। भगवान ने कहा कि मुझको कुंऐ में से बाहर निकालो, उसके अनुसार उस अधिष्ठायक देव कृपा से श्रावकों ने उनको लापसी में डाला और नव के बदले स्थान से नव टुकडों में खंडित अवस्था में मिली। भगवान के कहे अनुसार आठ दिन में बाहर निकाली तब चिन्ह रह गये इससे नवखंडा पार्श्वनाथा कोरी लापसी में आठ दिन ये टुकडे रखे थे। कहलायी। १३५४ में हेमचन्द्र सूरिजी तथा धर्मघोष सू. म. द्वारा प्राचीन परन्तु भरूच में संघ में आये हुए आचार्य श्री जिनेन्द्र सूरिजी म. के कहने भोयरा की और प्रतिमाओं की लेख सूची की गयी। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४) 我用阿阿阿阿阿阿阿阿阿阿阿阿阿阿阿阿阿阿 यहाँ मन्दिर के योगों में ही पंचतीर्थ हैं। बहुत सारी प्रतिमायें बम्बई अहमदाबाद गयी हैं। सेठ श्री काला मीठा की पेढ़ी यहाँ प्राचीन हस्तलिखित ग्रन्थ अभी भी मौजूद हैं। घोघा बन्दर (भावनगर) यहाँ पर दो उपाश्रय हैं। धर्मशाला है। भोजनशाला है। सम्पूर्ण व्यवस्था हैं। भावनगर से घोघा बस सर्विस चलती हैं। श्री नवखंडा पार्श्वनाथ देशसरजी कमठे धरणेन्द्रे च स्वोचितं कर्म कुर्वति । प्रभुस्तुल्य मनोवृत्तिः, पार्श्वनाथः श्रियेऽतु वः । मूलनायक श्री नवखंडा पार्श्वनाथजी → मूलनायक श्री शान्तिनाथजी यहाँ का देरासर सुन्दरतामें अद्वितीय है। सारे सौराष्ट्र एवं गुजरात में काँच का भव्य सुन्दर मंदिर हैं। रंगीन काँच से अत्यन्त सुन्दर भव्य कलाकारीगरी से सुशोभित, मध्य में मीना कारीगरी से चमकता हुआ जगमगाता सुन्दर मंदिर देखकर तथा प्रभुजी की आँगी और देदीप्यमान मुख छवि निहारकर आँखे पवित्र, और मन भक्तिभाव से विभोर हुए बिना रह ही नहीं सकता हैं। आज से १५ वर्ष पूर्व जयपुर राजस्थान से काँच की कला के जानकार कारीगर के पास में सौन्दर्य युक्त कराये गये थे। २८९ वर्ष पुराना मन्दिर हैं। यहाँ सन् १६९९ में प्रतिष्ठा की गयी उसके पहले पर मन्दिर था। प्राचीन मूलनायक श्री पार्श्वनाथ थे। दाठा पंचतीर्थ का गाँव हैं। वि. सं. १५११ की साल में धातु का समवसरण मंन्दिर भरूच के गंधार गाँव से घोघा तीर्थ को प्रदान किया हैं। श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ कुमारपाल राजा द्वारा बनवाया गया श्री चन्द्रप्रभ जी का मन्दिर दरिया के पास हैं उसमें विजयदेवसू. म. की पादुका १७१६ की मौजूद हैं। शिखर बन्द मन्दिर हैं। उसमें १३५७ की साल की एक भव्य गुरुमूर्ति हैं। नाम पढ़ने में नहीं आता हैं। बस स्टेशन के पास जीरावाला पार्श्वनाथजी का मंदिर हैं। શ્રી નવખંડા Kalat ८. दाठा तीर्थ પાર્શ્વનાથજી દેવ यहाँ जैनों के १५० घर थे। हाल में अभी ३० घर हैं। यहाँ पर संस्था का गेस्ट हाऊस हैं। भोजनशाला भी चालू हैं। भाताखाता (नाश्ता विभाग) हैं। यहाँ पर रोजाना ५० यात्रीगण बाहर से आते हैं। महुआ रोड से अन्दर मार्ग में सड़क हैं। यहाँ से ही तलाजा भावनगर बस चलती हैं। श्री वीसा श्री माली तपागच्छ श्वेताम्बर मूर्तिपूजक जैन महाजन संघ इस तीर्थ धाम की व्यवस्था करता हैं। ধ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ भावनगर जिला 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂麻 樂樂 改茴茴茴茴茴茴茴面面面面面尚面面面茴茴茴茴茴甸街面凿凿凿面泼 मूलनायक श्री शान्तिनाथजी મુળનાયક સંભવ તીથજી ९. वरतेज तीर्थ दाठा तीर्थ देरासरजी श्री संभवनाथ देरासरजी oniometer for श्रीमहावीर जैन आराधना केन्द्र श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानमि 《來來來來來來來來來來來來樂來樂來來來來來來來來必 मूलनायक श्री संभवनाथजी 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂果猕麻 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री संभवनाथजी भावनगर के सेठ श्री पुरूषोत्तमदास हेमजी ने इस मंदिर शिखरबन्धी की ११६ वर्ष पूर्व विक्रम सं. १९२८ माघ सुदी १३ को निर्माण कराकर प्रतिष्ठा करी हैं। जैनियों के १०८ तीर्थों में इसका समावेश हैं। भावनगर जब चसा नहीं था उसके पूर्व घोघा जाते हुए यात्रीगणों के संघ वरतेज होकर जाते थे। यहाँ पर दो उपाश्रय दो धर्मशालायें हैं। जैनियों के हाल में २५ घर हैं। भावनगर से केवल ६ कि.मी. हाईवे रोड ऊपर हैं। १०. महुवा (मधुपुरी) तीर्थ श्री महावीर स्वामी देरासरजी मूलनायक श्री जीवित स्वामी महावीर स्वामी श्वेतवर्ण पद्मासनस्थ, ९१ से.मी. महुवा का प्राचीन नाम मधुमति था। इस प्रकार का उल्लेख प्राचीन ग्रन्थों में मिलता हैं । सेठ जावड सा जिन्होंने शत्रुजय गिरि का तेरहवाँ उद्धार कराया था उनकी जन्मभूमि का यह गाँव हैं। बारहवी सदी में कुमारपाल राजा के समय में सवा करोड सोने मोहरों से जिन्होंने उछामणी बोली बोलकर तीर्थमाला पहनी थी उन जगडूशा सेठ की भी यह जन्मभूमि हैं महावीर स्वामी की प्रतिमा को जीवित स्वामी कहते हैं इसका उल्लेख १४ वीं शताब्दी में लिखी गई तीर्थमाला नाम की पुस्तक में श्री विनयप्रभ विजयजी उपाध्याय जी ने किया हैं। श्री नंदीवर्धन राजा ने इस प्रतिमा को २५०० वर्ष पूर्व भराई थी। इस प्राचीन तीर्थ का शत्रुजय गिरिराज पंचतीर्थों में समावेश हैं। तीर्थो द्धारक पूज्य आ. श्री नेमिसूरीश्वरजी म. की यह जन्मभूमि और स्वर्गभूमि हैं। इस प्राचीन तीर्थ का संवत १८८५ माघ सुदी १३ में जीर्णोद्धार फिर से करके प्रतिष्ठा करने में आयी हैं। यहाँ पर पू. आचार्य श्री ने मिसूरीश्वरजी म. का जिस स्थान में अग्निसंस्कार किया था वहाँ नेमिविहार नाम प्रदान कर नवीन मंदिर का संवत २००६ में निर्माण कराया हैं । केशरिया आदीश्वर भगवान की प्रतिष्ठा हुई है। इसके पास में ही दूसरा नवीन मंदिर नेमिनाथ जिनालय का संवत २०१५ में निर्माण कराया हैं। महुवा रेल्वे स्टेशन हैं और बस के रास्ते में भी आ सकता हैं। गाँव के मध्य में ही मंदिर हैं। रिक्शा और घोडागाडी से आ सकते हैं। मंदिर के पास ही धर्मशाला हैं, भोजनशाला भी हैं। जैनियों के ४०० घर हैं। उना-भावनगर रोड पर आता हैं। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग १ - भावनगर जिला ECOND DISSIONEotolololololololo 2000 मूलनायक श्री जीवित स्वामी महावीर स्वामी SED શ્રીધર્મતાથવામિ मूलनायक श्री धर्मनाथजी लाख-लाख बार प्रभु वीर ने संभार जो, छल्यो छे सागर आनंदनो ? हीरा पन्नानी शुभ माला गुंथावजो सागर थी जल्दी तराय, छल्यो छे सागर आनंदनो. २ एक बार मीट मांडी बीरने निहालजो आवो आवो नाम स्मरावजो लब्धिनी ल्हेरो लहराय जगमगाती ज्योत झलकाय, ११. सावरकुंडला + लाखोंना हैया हरषाय, प्रभु पधरावी गृह मंदिर शोभावजी 'छल्यो छे सागर आनन्दनो ३ बोली बोली प्रभुना गीत गवरावजो छल्यो छे सागर आनंदनो. ४ (२७ श्री धर्मनाथजी देशभर Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८) मूलनायक श्री धर्मनाथजी पास में श्री शान्तिनाथ देरासर है। दोनों भव्य देरासर हैं। मोतीशा सेठ के समय की प्रतिमा है। १०० वर्ष पुराना देरासर है। वर्षगांठ जेठ सुद ६, जीर्णोद्धार सन् १९७३ में हुआ हैं। आखिरी अंजनशलाका प्रतिष्ठा पू. आ. श्री रामचन्द्र सूरिजी म. की खा में हुई थी। व्यवस्था - यहाँ पर जैनों के १४० घर हैं। दो उपाश्रय हैं। महाजन वाडी हैं। आयंबिल खाता चालू हैं। बस स्टेन्ड २ कि.मी. दूर हैं। अमरेली ३० कि.मी. पर हैं। भावनगर, राजकोट, पालीताणा की बसें मिलती हैं। यहाँ पर बोर्डिंग में नवीन शिखर बन्द देरासर हैं। सेठ श्री धर्मदास शान्तिदास की पेड़ी मैन बाजार, सावरकुंडला (भावनगर) १२. कीर्तिधाम तीर्थ पीपरला श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ कीर्तिधाम तीर्थ पीपरला मूलनायक श्री सीमन्धर स्वामी यहाँ पर नवीन सुन्दर शिखरबन्द देरासर का निर्माण कराने में आया हैं। • बगसरा के वतनी सेठ श्री प्राणलाल कानजीभाई ने अपने पुत्र कीर्ति के स्मरणार्थ यह देरासर वि. स. २०३२ में निर्माण कराया हैं। मूलनायक सीमंधर स्वामी का मुख्य देरासर हैं। प्रदक्षिणा में बीस विहरमान महाविदेह के तीर्थंकरों की शिखरबन्द देव श्रा. सु. ३ को निर्वाण पद प्राप्त करेंगे। देरियाँ हैं। गरम-ठंडे पानी की व्यवस्था हैं। सुन्दर धर्मशाला हैं, भोजनशाला है, उपाश्रय हैं। पालीताणा से सोनगढ़ जाते समय पीपरला आता हैं। नोट किया हैं कि श्री भरत क्षेत्र के आगामी चौबीसी के सातवें तीर्थंकर उदयस्वामी के निर्वाण के पश्चात और आठवें तीर्थंकर पेढ़ाल स्वामी परमात्मा के जन्म के पहले श्री सीमन्धर स्वामी आदि बीस विहरमान जिनेन्द्र Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ - भावनगर जिला શ્રી સીમંધર સ્વામી, आव्यो शरणे तुमारे, जिनवर करजो आश पुरी अमारी, नाव्यो भवपार मारो, तुम विण जग में सार ले कोण मारी-१ गायो जिन राज आजे हरख अधिकथी, परम आनंदकारी 'पायो तुम दर्शनासे, भवभय भ्रमणा नाथ सर्वे अमारी भवोभव तुम चरणोनी सेवा हुँ तो मागुंछु देवाधिदेवा सामु जुओ ने सेवक जाणी एवी उदय रत्ननी वाणी त्हाराथी न समर्थ अन्य दीननो उद्धार नारो प्रभु म्हाराधी नहिं अन्यपात्र जगतमा जोता जडे हे विभु-१ मुक्ति मंगल स्थान तोय मुझने, इच्छा न लक्ष्मीतणी आपो सम्यक्रन श्याम जीवने तो तृप्ति थाये घणी। -मूलनायक श्री सीमन्धर स्वामी १३. शिहोर शिहोर जैन देरासरजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी कोला (गांधीनगर १.३८२००९ Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 部影學會醫學影影影影學會影學影剧 . मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथ जी यहाँ पर २०० वर्ष पूर्व की प्राचीन प्रतिमा है। जीर्णोद्धार संवत २०४३ में हुआ हैं। संवत - २०१२ में हुआ आदीश्वर भगवान का दूसरा देरासर हैं। तीसरा देरासर अहमदाबाद रोड पर बना हुआ हैं। उपाश्रय दो तथा गाँव में एक कुल तीन हैं। धर्मशाला हैं। जैनों के २०० घर हैं। भावनगर रोड पर २० कि.मी. पर शिहोर आता हैं। EENE १४. धोला जंक्शन मूलनायक श्री महावीर स्वामी यहाँ पर भव्य शिखरबन्द देरासर प. पू. आ. श्री विजयरामचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के उपदेश से हुआ है। मूलनायक श्री महावीर स्वामी हैं। जंक्शन होने से ट्रेन में से उतरकर दर्शन करके तुरन्त पीछे जा सकते हैं। पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वर जी म. की निश्रा में सं. २०३९ वैसाख वद ५ को प्रतिष्ठा हुई हैं। श्रीमते वीरनाथाय सनाथायाद्भुतश्रिया। महानंद सरोराज-मरालायाहते नमः ।। कृतापराधेऽपि जने कृपामन्थरतारयोः । ईषद्बाष्पार्द्रयोर्भद्र, श्री वीरजिननेत्रयोः।। जयति विजितान्यतेजा सुरासुराधीश सेवितः श्रीमान् । विमलस्त्रास विरहित-स्त्रिभुवन चूडामणि भगवान् ।। मूलनायक श्री महावीर स्वामी १५. वल्लभीपुर तीर्थ (वला) बाजार में शंखेश्वर पार्श्वनाथ ७५ वर्ष पुराना देरासर हैं। गुरु मन्दिर में मूलनायक श्री आदीश्वरजी (भोयरे में) देवर्द्धि गणि आदि की मूर्तियाँ हैं। नीचे पू. आ. श्री नेमि सूरिजी कल्पसूत्र में इस प्राचीन तीर्थ का उल्लेख हैं। यहाँ पर महावीर स्वामी के महाराज की देरी हैं। अहमदाबाद भावनगर तथा पालीताणा रोड ऊपर देरासर निर्वाण पश्चात ९८० वर्ष में आगमों को लिपिबद्ध करवाने का कार्य हुआ हैं। यहाँ पर गाँव में मिले चार उपाश्रय हैं। धर्मशाला हैं। जैनों के ५५ घर हैं। था। उस समय देवर्द्धिगणि आदि ५०० आचार्य-गण मिले थे । १८०० सेठ जिनदास धर्मदास धार्मिक ट्रस्ट (कदम्बगिरि की शाखा) लहियो के पास आगम लिखवाये उस स्थान पर यह देरासरजी बंधवाया हैं। मु. वल्लभीपुर जि. भावनगर 10 यहाँ पर भोयरा में ५०० आचार्य महाराजों की प्रतिमायें विराजमान हैं। AEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ - भावनगर जिला AND 0 श्री आदीश्वरजी देरासरजी । मूलनायक श्री आदीश्वरजी SARAIAAAKAT आगमों को लिपिबद्ध करवाते समय (वाचना के समय उपस्थित) ५०० आचार्य - देवगण AAL AAAAAAA Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १६.कारीयाणी कारीयाणी जैन देरासरजी मूलनायक श्री शान्तिनाथजी SWAWAR TERE BHEE मूलनायक श्री शान्तिनाथजी अहमदाबाद के चन्दुभाई नबाव को स्वप्न में आये और उन प्रतिमाजी को यहाँ पर लाने के संकेत अंकित थे । यहाँ पर सेठ माणेकलाल चुन्नीलाल ने शिखरबन्द मंदिर बनाकर स्वयं ने प्रतिष्ठा १९९५ में माघ सुद १३ को प. पू. आचार्यदेव श्री विजय कपूर सूरीश्वरजी महाराज तथा पू.आ. श्री विजय अमृत सूरीश्वर जी म. सा. की निश्रा में की हैं। प्रतिमा प्राचीन हैं। चमत्कारिक प्रतिमाजी है। यहाँ पर देरासर में पट है उसके पीछे हाथ फेरे तो उसकी छाया दिखाई देती हैं। अन्धकार में प्रकाश पड़ता हैं। उपाश्रय हैं। बोटाद से बस मिलती हैं। जैनो के घर है। गांव की बस्ती ४००० हैं। जे प्रभुना अवतार थी अवनि मां शान्ति बधे व्यापती जे प्रभु नी सुप्रसन्न ने अमी भरी, दृष्टि दुःखो कापती, जे प्रभु भरयौवने व्रत ग्रही त्यागी बधी अंगना, ते तारक जिनदेवना चरण मां होजो सदा वंदना Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १ भावनगर जिला DDDDDDDDDDDDDDD मूलनायक श्री आवीश्वर जी १७. बोटाद बोटाद जैन देरासरजी मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान गाँव में मुख्य बाजार में यह देरासर हैं। मोतीशाह की टूक में से प्रतिमाजी लायी गयी हैं। प्रतिमाजी प्राचीन हैं। प्रतिष्ठा संवत १९०९ माघ सुदी १० मी को, जीर्णोद्धार १९५० एवं संवत १९९३ दो बार। अन्य मंदिर भी चोगान में हैं। चोगान में श्री मुनिसुव्रत स्वामी का देरासर हैं। नीचे भोयरा में श्री नेमिनाथ जी हैं। प्रथम मंजिल पर सीमन्धर स्वामी एवं चौमुखी हैं। मंडप में पूज्य नेमिसूरीजी म. की मूर्ति हैं। प्रतिष्ठा पू. आ. नेमिसूरिजी म. के हस्ते हुई हैं। परा में हर्ष विजयजी ज्ञानशाला हैं। सं. १९९४ से यहाँ पर श्री महावीर स्वामी का देरासर हैं। प्रतिष्ठा - सं. २००५ में रोहीशाला से प्रतिमा लायी गयी हैं। सहकार सोसायटी में श्री चिन्तामणी पार्श्वनाथ देरासर हैं। पाँचवा देरासरजी शंखेश्वर पार्श्वनाथ के जैन विद्यार्थी भवन में हैं। गिरिराज सोसायटी में भव्य देरासर बना हैं। वहाँ पर पू. आ. रुचकचंद्र सूरि जी महाराज की निश्रा में प्रतिष्ठा हुई हैं। आयंबिल भवन हैं। यहाँ पर लावण्य सूरि ज्ञानमंदिर भव्य हैं। और विशाल ज्ञान भंडार हैं। रेल्वे के मार्ग में भी अहमदाबाद-भावनगर सुरेन्द्रनगर से आ सकते हैं। चारों ओर से रोड चालू होता हैं। सेठ आनंद भी पेड़ी बीटा ( राग (राखनां रमकडां ने ...) आदिजिन प्रणमतां मारूं (२) हर्षे नाचे रे, जन्मजरा दुःख भूली जईने, आत्मसुख मां माचे रे, झूठी जगनी छाया माया, जल तरंग समानी; नाभिनंदनी छाया मांहे, मुक्ति राणी मझानी रे, आ. १ तत्वत्रयीनी श्रद्धा धरीने अहिंसादि पालन करीए; पंच प्रभु अ तारो लेता, भय वनमा नवि फरिये रे, आ. २. पूज्या में कुदेव कुगुरु, परिग्रही ने आरंभी ; नव तत्वों ने उंधा मान्या, बन्यो बहु हुं दंभी रे, आ. ३ घोर हिंसा प्रभुजी करी में, अलिक वचन अति बोल्यो ; चोरी करी करावी में तो, नरक दरवाजो खोल्यो रे, आ. ४ ब्रह्मचर्य मां हुं नवि रम्यो, परिग्रह ममता वलगी; भवसागर मां हवी रुलीओ, दखनी होली सलगीरे, आ. ५ क्या पुन्य थी तुमे मल्यां ते, हुँ नवि प्रभुजी जाणु ; बोले जिनेन्द्र तुज दर्शन थी तरवानुं हवे टाणुं रे, आ. ६ DDDDDDDDDDDDDDDDD (३३ Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४) मूलनायक श्री संभवनाथजी राग (ओ बचपन के दिन भुला न देना.....) ओ संभव जिनवर सेवं भावे, गुण गाता संतोष न थावे, ओ. सेना माताजी तात जितारी कंचन काया हय लंछन धारी पूजतां प्रेमे पातिक जावे । ओ. १ अजब गजब प्रभु छोड़ी माया केई शिव पाया मुझने पण तुझ ध्यानज फावे ओ. २ अगणित अवदात प्रभुजी तारा १८. परबडी चोसठ ईन्द्रो सेवा करनारा, भक्ति करतां निर्मल थावे, ओ. ३ लीधो आसरो प्रभुजी हारो स्वामी थइने दुःख निवारो त्रिभुवन स्वामी सेवक ध्यावे ओ. ४ कहुं छं प्रभुजी साचे साचूं मुक्ति बिना हुं कछु नवि याचुं, जिनेन्द्र तुज ने दिलमां लावे। ओ. ५ श्री कायनाथाय नमः श्री ताम्रमूर्ति suhana ०४ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ DDDDD परबड़ी जैन देरासरजी यहाँ पर हालार देशोद्धारक पू. आ. श्री विजय अमृत सूरीश्वर म. के उपदेश से जिन मंदिर का निर्माण निश्चित हुआ। उसमें पू. आ. श्री विजय मानतुंग सूरीश्वरजी महा. के उपदेश से शिखरबन्द जिन मंदिर बना। सुश्रावक रणछोड़भाई ने मूलनायक आदि का लाभ लिया। श्री संघ ने भव्य महोत्सव पूर्वक सं. २०४६ कार्तिक वद ११ को पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वरजी महा. की निश्रा में प्रतिष्ठा करवाई हैं। बगल में गारी आधार भव्य प्राचीन जिन मंदिर हैं। - was was was was as a s जयति शासनक as was was usua XDDDDDDDDDDDEX Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९ खंभालीया जामनगर की ओर अडवापस वांसजलीया की ओर स्केल कीमी । दर० १५ २०३५ भाणवड मियाणी 36 142 जामनगर की ओर बरेजातीर्थ) लटा राजकोट की ओर पोरबंदर राणावाव 7 कुतीयाणा म. अमरेली 30 बांटवा 19 - सोरठ वंथली (भेसाण जनागढ... गीरनार तीर्थ. रे बगसरा 22 जना। TY 122 भालज वीसावदर AT केशोद मेंदरडा 32Kधारी /24 शील / 'मालीया सासणगीर आद्री 151 चोरवाडरोड /52 ल्ला खांभा) 6)) तुलशीश्याम चोरवाडी तलाला, /आंकलवाडी की 25 20A अमरेली जील्ला. 125 प्रभासपाटण की ओर उना डीनार अजाहरा देलवाडा Page #59 --------------------------------------------------------------------------  Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गजरा गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला (३५ ACCOUNDOUD पोचालीचा Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १. गीरनार महातीर्थ तलेटी दृश्य तलेटी दृश्य तलेटी में श्री आदीश्वरजी Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : २- जुनागढ जिला पेढ़ी - सेठ देवचंद लक्ष्मीचंद (श्री आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी) बाबु की धर्मशाला इतिहास - प्राचीनकाल में उर्जयन्तगिरि, रैवतगिरि वर्तमान में गिरनार जी कहलाता हैं। जैन शास्त्रों में इस तीर्थ का अत्यधिक महत्त्व बतलाया गया हैं। श्री गिरनार तीर्थ को श्री शत्रुजय की पाँचवी ढूंक कही हैं। गिरनार पर्वत ऊपर ९४५ मीटर ऊंचाई पर मन्दिर हैं। ई. स. पूर्व छठी सदी में रेवानगर के राजा ने इस नेमिनाथ भगवान के मन्दिर का निर्माण करवाया। वैसी माहिती प्रभासपाटण से प्राप्त हुए ताम्रपत्र में से मिली हैं। उसके पीछे महाराज संप्रति |ने और वि. संवत ६०९ में काश्मीर के श्रेष्ठिओं के द्वारा उद्धार करवाने का उल्लेख हैं। बारहवीं सदी में वस्तुपाल तेजपाल, सिद्धराज के समय में मंत्री सज्जन और उसके पीछे कुमारपाल राजा ने जीर्णोद्धार करवाया हैं। | तेरहवीं सदी में मांडलिक राजा ने सुवर्ण के पतरो से दरवाजा मढ़वाया उसके पश्चात बीसवीं सदी में नरसी केशवजी ने । विक्रम संवत १२२२ में | कुमारपाल के मंत्री आम्रदेव ने पहाड़ का रास्ता (सीढ़ियाँ) सुगम करवाया। यह महान तीर्थ हैं। प्रथम तीर्थंकर से २४ तीर्थंकर भगवान के समय में अनेक चक्रवर्ती राजगण, श्रेष्ठिगण इस रैवताचल की यात्रा संघ लेकर जाने का उल्लेख हैं। यहाँ पर अनेक तीर्थंकरों का पूर्वकाल में पदार्पण हुआ हैं। अनेक मुनिवर तपश्चर्या करके मोक्ष सिधाये हैं। भावी (भविष्य में होने वाली चौवीसी यहाँ से मोक्ष प्राप्त होगा। श्री नेमिनाथ भगवान की यह प्रतिमा विगत चौवीसी के तीर्थंकर श्री सागरजिन के उपदेश से पॉचवे देवलोक के इन्द्र ने स्थापित करायी थी। जो भगवान नेमिनाथ के काल तक इन्द्रलोक थी , बाद में श्री कृष्ण के गृह मंदिर में रही थी। जब द्वारिका नगरी का नाश हुआ। उस समय श्री अंबिकादेवी ने इस प्रतिमा को सुरक्षित रखी और पश्चात श्री रत्नाशाह की भक्ति से प्रसन्न होकर यह प्रतिमा श्री अंबिका देवी ने उनको प्रदान की जिसकी फिर से प्रतिष्टा करवाने में आयी। श्री नेमीनाथ भगवान ने यहाँ पर दीक्षा ग्रहण की थी, केवल ज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष प्राप्त किया। सती श्री राजुल ने भी तपश्चर्या की थी और यहाँ से ही उनको मोक्ष प्राप्त हुआ। __यात्रीगण इस पतित पावन पवित्र भूमि के दर्शन करके धन्य बनते हैं। दूसरे मन्दिर - गिरनार पर्वत की तलहटी में आने वाले जूनागढ़ शहर में दो मंदिर हैं। तलहटी ४ कि.मी. हैं वहाँ पर मंदिर, धर्मशाला, भोजनशाला हैं। तलहटी के मन्दिर के पास से ही पर्वत पर की चढ़ाई शुरू हो जाती हैं। लगभग ३ कि.मी. ४२०० सीढ़िया चढ़ने के बाद पतित पावन श्री नेमिनाथ भगवान की मुख्य ट्रॅक का दरवाजा आता हैं। मूलनायक नेमिनाथ जिन मंदिर सामूहिक देरासरजी का दृश्य Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री अवेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ सामूहिक मंदिर Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला 1900 तीर्थ नायक श्री नेमिनाथ प्रभुजी (३९ Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ श्री कुमारपाल महाराज की टोक में मूलनायक श्री अभिनंदन स्वामी श्री संग्राम सोनी की ट्रॅक में मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी MASA श्री कुमारपाल महाराजा की टोंक श्री संग्राम सोनी की ट्रॅक श्राम चौमुखी जी की टोंक Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला (४१ ETTE प्रथम टोंक यह मंदिर १९०/१३० फुट लम्बे चौड़े विशाल चौक के मध्य में रमणीय मल्लकी टोंक, सती राजुल की गुफा, दूसरी चौमुखी ट्रॅक, चोरीवाला मंदिर, पहाड़ों से सुशोभित हैं मंदिर के सामने के भाग में मानसंग भोजराज की टंक गौमुखी गंगा, चौवीस जिनेश्वर की पादुकायें हैं। ऊपर की सभी टोंके हैं। वहाँ पर मूलनायक संभवनाथ भगवान हैं। मंदिर के चौक में कुंड है जहाँ श्वेताम्बरों की हैं। गौमुखी गंगा से आगे एक रास्ता सहसावन तरफ जाता पर आगे मेरकवसीटोंक हैं। उसमें मूलनायकश्रीसहस्रफणपार्श्वनाथ भगवान जहाँ नेमिनाथ भगवान की दीक्षा तथा केवलज्ञान कल्याणक का स्थान हैं हैं । इस ढूंक में आदिनाथ भगवान की विशालकाय प्रतिमा हैं। आगे संग्राम भगवान की चरण पादुकायें हैं। अभी वर्तमान में इस स्थान पर (सहसावन मे) सोनी की ट्रॅक आती हैं। बाद में तेरहवी सदी में निर्मित कुमारपाल की टंक समोसरण मंदिर तैयार हुआ हैं। उसमें दूसरे चौमुखजी की प्रतिष्ठा की हैं। जैन आती हैं। मूलनायक अभिनंदन स्वामी भगवान हैं। इसढूंक के पास भीमकुंड धर्मशाला बना है। यहां पर प्राचीन प्रतिमाजा विराजमान की है और गजपदकुंड हैं। मुख्य मार्ग पर आगे जाने पर वस्तुपाल तेजपाल की टंक महोत्सव पू. आ. श्री विजय हिमांशु सूरिजी म. की निश्रा में हुआ हैं। गाँव के आती हैं शिलालेख के उल्लेख अनुसार विक्रम संवत १२८८ में बनी हई थी। देरासर में से भगवान की प्रतिमा यहाँ पर लायी गई हैं। यहाँ पर तीन मंदिर हैं। - (१) स्तंभन पुरावतार पार्श्वनाथ (२) ऋषभदेव मुख्य सूचना - श्री गिरनार जी महातीर्थ के जीर्णोद्धार की कारीगिरी | भगवान का मुख्य मंदिर हैं और (३) महावीर स्वामी का मंदिर हैं। पीछे से श्री विक्रम संवत १९७९ में हुई हैं। गणधर के पादुकाओं की एवं देरीओं का शामला पार्श्वनाथ की प्रतिमा विराजमान की होगी। प्रतिमा पर विक्रम संवत जीर्णोद्धार संवत १९९३ में हुआहैं। गौमुखी गंगाके आगे के मुख्य मार्ग पर श्री १३५० का लेख हैं। टोंक में से बाहर निकलते मुख्य मार्ग पर श्री संप्रति राजा अम्बाजी की टोंक आती हैं। यह टोंक मुख्य टोंक से ३०० फीट ऊची हैं। की ट्रॅक आती हैं। मूलनायक श्री नेमिनाथ भगवान हैं। उसके बाद चौमुखीजी अम्बाजी श्री नेमिनाथ की अधिष्ठायिका हैं। मंत्री श्री वस्तुपाल तेजपाल ने यह श्री संभवनाथ भगवान की टोंक, ज्ञान बावडी, धरमशी हेमचन्द्र की टोंक, मदिर बनवाया है। NE Emakal ना FORE MPMJMLMAPrma Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ गिरिराज के पहाड़ पर पाँच टोंके हैं। जिनका विवरण इस प्रकार हैं:- | कला सौन्दर्य - पहाड़ पर वनस्पतियों से लहराता हुआ वृक्षों के साथ १ली टोंक - श्री नेमिमाथ भगवान की कुदरती दृश्य अनुपम हैं। मंदिरों में प्राचीन शिल्पकला का कार्य बहुत दूसरी टोंक - श्री अम्बाजी की सुन्दर हैं। तीसरी टोंक - ओघड़ शिखर । यहाँ पर नेमिनाथ जी की पादुकायें हैं। मार्ग दर्शन - जूनागढ़ शहर रेल्वे स्टेशन हैं। गुजरात एस.टी. का तथा एक ओटला पर शाम्बकुमार की पादुकायें हैं। विभागीय (मथक) कार्यालय हैं। चाहें जिस ओर से आने जाने के लिए रेल्वे चौथी टोंक - तीसरी टोंक के दूसरे शिखर पर श्री नेमिनाथ भगवान के और एस.टी बसे मिलती हैं। चरण हैं। (१५०० सीढ़ियों के पश्चात) एक दूसरी शिला पर प्रद्युम्न कुमार व्यवस्था - यहाँ पर गांव में दो जैन धर्मशालायें हैं। सार्वजनिक की पादुकायें हैं। धर्मशालायें भी हैं। तलहटी में आदीश्वर दादा का मंदिर हैं। धर्मशाला, पाँचवी टोंक-घने जंगल में पर्वत के ऊंचे शिखर पर जहाँ भगवान का भोजनशाला भी हैं । तलहटी में पहाड़ पर चढ़ने के लिए सीढ़ियाँ हैं। कमजोर मोक्ष हुआ है वहाँ गणधर वरदत्त मुनि की चरण पादुकायें हैं। यहाँ से एक अशक्त मनुष्यों के लिए डोली भी मिलती हैं। पहाड़ पर रहने के लिए भी रास्ता सहसावन, भरतवन, हनुमान धारा तरफ जाता हैं । १५०० सीढ़ियाँ धर्मशाला हैं। उतरनी पड़ती हैं। सहसावन से भी तलहटी की ओर रास्ता जाता हैं। अब पत्ता - सेठ देवचंद लक्ष्मीचंद की पेढ़ी जगमाल चौक सीढ़ियाँ बन गयी हैं। जूनागढ़ पिन - ३६२००१ श्री पद्मनाभ स्वामी सहसावन जिन मंदिर Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : २- जुनागढ जिला सहसावन पादुका सहसावन श्री नेमिनाथजी पादुका प्रभु दर्शन सुख सम्पदा, प्रभु दर्शन नवनिध। प्रभु दर्शन थी पामीये, सकल पदारथ सिद्ध -१ भावे भावाना भावीए, भावे दीजे दान । भावे जिनवर पूजिये, भावे केवल ज्ञान -२ जीवड़ा जिनवर पूजिये, पूजाना फल होय; राजा नमे प्रजा नमे, आण न लोपे कोय -३ फुलड़ा केरा बागमाँ, बैठा श्री जिनराय, जेम तारामां चन्द्रमा, तेम शोभे महाराय-४ वाडी चम्पो मोरिओ, सोवन पांखडीए, पार्श्व जिनेश्वर पूजिये, पाँचे आँगलीए -५ त्रिभुवन नायक तुंधणी, महा मोटो महाराज म्होटे पुण्ये पामीयो तुज दरिसन हुं आज - ६ आज मनोरथ सवि फल्या, प्रगटया पुन्य कल्लोल, पाप करम दूरे टल्या, नाठा दुःख दंदोल -७ प्रभुनामनी औषधि, खरा भाव थी खाय रोग पीड़ा व्यापे नहि, महादोष मीट जाय -८ सहसावन जिन मंदिर मूलनायक श्री नेमिनाथजी Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - - श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ - - २. सोरठ वंथली सोरठवंथलीजैनदेरासरजी मूलनायक श्रीशीतलनाथजी aA मूलनायक श्री शीतलनाथजी शिलालेख - संवत १९५६ में कुआखोदते समय उस स्थान से प्रगट हुई शीतलनाथ जी प्रभु का यह प्रासाददेश सोरठ रैवताचल के पास जूनागढ़, अंतर्गत वंथली में बंथली के निवासी संघवी मुलजी उका के सुपुत्र हरजीवन देवकरण मूलजी ने, पं. श्री गंभीरविजयजी म.सा. के शिष्य चारित्र विजयजी के सदुपदेश से अपने कल्याण हेतु निर्माण करवाया है। प्रतिष्ठा भी इस प्रासाद का निर्माण करवाने वाले ने मुनि श्री चारित्र विजयजी की निश्रा में संवत १९७१ जेठ सुदी ६ शुक्रवार वीर सं. २४४१ सन १९१५ को कराई। ऊपर के माल में श्री चन्द्रप्रभु-पद्मप्रभु जी एवं अजितनाथ की प्रतिमायें विशालकाय (साढ़े चार फीट) हैं। उन प्रतिमाओं का इतिहास इस प्रकार हैं: विक्रम संवत १९१३ की साल में श्रा. सु. दूज बुधवार को पूर्व दिशा का पाया खोदते समय जमीन में से निकली हैं। जिसकी प्रतिष्ठा संवत १९३१ वै. सु. १५ गुरूवार मुनिश्री गुमान वि.म. हस्तक हुई हैं। ऊपर के तल में श्री आदीश्वर प्रभु की तीसरी प्रतिमा हैं, जो पालीताणा से लायी हुई कहलाती हैं। यह प्रतिमासाड़े चार फुट की हैं। पास में महावीर स्वामी का देरासर है। ___ यह सोरठ वंथली ग्राम जूनागढ़ से १४ कि.मी. पर हैं। बस की व्यवस्था हैं। रेल्वे स्टेशन भी हैं। जूनागढ़-वेरावल हाईवे पर आता हैं। वर्तमान में जैनियों के ४० घर हैं। बस्ती४५००० उपाश्रय है धर्मशाला है। भाता खाता (नाश्ता विभाग) हैं। इस गाँव का नाम असल में देवस्थली था। यहाँ पर बहुत से देवालय थे। आज भी खुदाई करते समय प्राचीन देव मन्दिरों के अवशेष मिलते हैं। बागबगीचे आदि के कारण वर्तमान नाम वंथली हो गया। यहाँ वर्तमान में मूलनायक श्री शीतलनाथजी की विशालकाय पाँच फुट ऊँची प्रतिमाजी हैं । इस देरासर के तीन गर्भगृह हैं । मध्य में मूलनायक शीतलनाथजी, बाई तरफ के पास गर्भगृह में शान्तिनाथजी, दायी तरफ के गर्भगृह में पार्श्वनाथजी । मूलनायक श्री शीतलनाथजी की प्रतिमा विक्रम संवत १९५६ में गाँव की सीमा में कुआ खोदते समय निकली है। प्र-ब-ब -EPEEEEEEEEEEEEEET-सस Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला SSSSSSSESSER ३. आद्री 60 सcिa TRAPHEL मनHIEFTS RaLERCHICOL શુપાયૅનાથજી मूलनायकश्रीसुपार्श्वनाथजी आद्रीजैन देरासरजी मूलनायक - श्री सुपार्श्वनाथजी शिखरबद्ध २०० वर्ष पुराना मंदिर हैं। पाँच प्रतिमाये हैं। प्रतिष्ठा संवत १९६२ वै.व. १ बुध। बम्बई से दो प्रतिमाये ८२ वर्ष पहले आयी थी। देरासर के बरामदे में घर देरासर था वह प्राचीन था। उस समय मूलनायक श्री चन्द्रप्रभुजी थे जो वर्तमान में देरासर में विराजमान हैं। उपाश्रय है। धर्मशाला है। मांगरोल वेरावल हाईवे पर सुपासी गाँव के अन्दर के भाग में ५ कि.मी. हैं। यहाँ पर जैनियों के बहुत सारे घर थे। इस समय नहीं हैं। वेरावल पास होने से वहाँ से कोई-कोई लोग आते हैं। ४. चोरवाड TRENDER मुलनायक श्री चिंतामणीपार्श्वनाथजी चोरवाडजैनदेरासरजी 00000000000 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी ५०० वर्ष प्राचीन शिखरबंद देरासर सोनी महाजन ने निर्माण करवाया हैं। संवत १५२९ वै. सु. २ गुरुवार को इसकी प्रतिष्ठा हुई थी। सम्प्रति राजा के समय की २०० वर्ष जूनी प्रतिमाजी हैं। जीर्णोद्धार २०३९ वै. सु. १० ता. २१-५-८३ को करवाया गया हैं। प्राचीन घर देरासर के बाहर पू. आ. श्री विजय प्रतापसूरिजी की प्रतिमा है। यह उनका जन्म स्थान हैं । मांगरोल कालधर्म पाएथे। मांगरोल-वेरावल से यहाँ आ सकते हैं। मांगरोल से १८ कि.मी. हैं । चोरवाड़ की बस्ती २५००० हैं। दरिया किनारा से समीप होने से होली डे केम्प है। अतिथिगृह (गेस्टहाउस) है। जैनों की पहले बस्ती थी। वर्तमान में ४ घर हैं। ५. मांगरोल जाय पाना मूलनायक श्री नवपल्लवपार्श्वनाथजी मांगरोल जैन देरासरजी मूलनायक श्री नवपल्लव पार्श्वनाथजी यहाँ पर श्री नवपल्लंव-पार्श्वनाथजी मूलनायक की प्रतिमा लाल रंग की ५४ग ७ ईंच विराजमान है। जिसको सम्प्रति राजा ने भराइ हैं और कुमारपाल राजा के समय में यह देरासर वि.सं. १२५३ में निर्माण कराया गया है। ऐसा कहा जाता हैं कि इस प्रतिमाजी को लाने में उस समय टचली अंगुली खंडित हो गयी। प्रतिष्ठा के समय अपने आप अंगुली बराबर हो जाने से (नव फुट की) नव पल्लव इस प्रकार ख्याति मिली। इस कारण से नव पल्लव पार्श्वनाथ जी कही जाती है। तीन गर्भगृहों से युक्त शिखरबन्द देरासर है। देरासर के चोगान के बाहर दूसरे खंड में पंचतीर्थी दर्शन होते हैं जिसमें (१) शत्रुजय (२) सम्मेत शिखरजी (३) अष्टापद (४) गिरनार (५) आबू इन तीर्थों का सुंदर रंगीन आयोजन है। मोडेलो जैसी आकृति हैं। यहाँ भगवान के कल्याणक दिवसों का विधिवत पूजन होता हैं, घी की बोलियाँ लगती है। यहाँ पर गाँव में दूसरा सुपार्श्वनाथजी का शिखरबन्द देरासर भी है। यहाँ पर नव पल्लव पार्श्वनाथजी का देरासर समीप में है। दो उपाश्रय हैं। गाँव में एक उपाश्रय है। जैनों के ७५० घर थे। वर्तमान में ४५ घर हैं। जूनागढ़ से वेरावल हाईवे पर केशोद से दाई बाजू २५ कि.मी. दूर आया हुआ हैं। Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला देख्यो जिनजीनो देदार, मारो सफलथयो अवतार एक तूं ही छे आधार, मेरे यार-यार-यार-१ रत्नत्रयीनो भंडार तारा गुणोंनो नहि पार गुणी गुणो जाणनार, आपो सार-सार-सार-२ काम क्रोधादि हणनार, साचो ने ते नर सरदार तने जे पूजे अपार पामे पार-पार-पार - ३ तारी वाणी मनोहार टाले दूरित अपार रोक शोक टालनार, सेवू वार-वार-वार -४ तारा चरणों नो आधार मने उतारे भव पार नाम तारक धरनार मोहे तार-तार-तार-५ बुद्धि आणंद अपार, आपो लब्धि अमृत प्यार मांगु सेवा एक सार, अरजी धार-धार-धार-६ -मेरू तीर्थ की रचना ६. वेरावल (वेलाकुल पाटण) मूलनायक श्री सुमतिनाथजी मूलनायक-श्री सुमतिनाथजी यहाँ पर तीन देरासर हैं। मायला कोट में एक शिखरबन्दी प्राचीन देरासर है, प्रतिष्ठा वि. सं. १८८७ में हुई हैं, जीर्णोद्धार संवत १९९९ में हुआ हैं। ऊपर चौमुखजी हैं। तीन गर्भगृहों वाला देरासरजी है। श्री बहारकोट चिन्तामणि पार्श्वनाथ देरासर सोनी बाजार में हैं। वेरावल जैन देरासरजी श्री बम्बईवाला देवीदास सेठ द्वारा निर्मित जैन देरासर शिक्षक सोसायटी में हैं। यहाँ पर जैनियों के वर्तमान में २०० घर हैं। उपाश्रय तीनो ही देरासर के पास में हैं। राजकोट वेरावल रेल्वे मार्ग पर एवं बस के मार्ग से आ सकते हैं। | ___इस ग्रन्थ के सम्पादक की यहाँ पर २०१० में दीक्षा हुई हैं। TRE Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ७. चंद्रप्रभास तीर्थ - प्रभासपाटण PARAMHAN मूलनायक श्री चन्द्रप्रभ स्वामी VERTISRE 3ED KE EHARONANE EARORA PORAN Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला (४९ Ho प्रभास पाटण जैन देरासरजी - मूलनायक श्री चन्द्रप्रभ स्वामी भगवान पद्मासनस्थ श्वेत वर्ण ११५ से.मी. आकाश मार्ग से आयी हुई श्री अम्बिका देवी की इस मूर्ति की प्रतिष्ठा । समुद्र किनारे बसा हुआ प्रभास पाटण गाँव के मध्य में है। तीन मंजिल वि. सं. १३६५ में श्री धर्मदेवसूरिजी म. के हाथों से हुई हैं। HEाला देरासर हैं। सात गर्भगृह एक लाइन में हैं। श्री सगर चक्रवर्ती, चन्द्रयशा, चक्रधर, राजा दशरथ, पांडव, हस्तिसेन इस तीर्थ की स्थापना श्री आदिनाथ प्रभु के पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती राजा वगैरह यहाँ पर यात्रा हेतु पधारे थे। इसका उल्लेख है। विक्रम संवत ३७० महाराज ने की हैं। उन्होंने ही यह चन्द्रप्रभ पाटण शहर बसाया। देरासर का में धनेश्वर सूरि का रचा हुआ "शत्रुजय माहात्म्य' में इसका उल्लेख हैं। यह निर्माण कराया। विक्रम संवत ३७५ में वल्लभीपुर शहर नाश हुआ। उनके क्षेत्र प्राचीन समय में देवपटणम्, पाटण, सोमनाथ, प्रभास, चन्द्रप्रभास आकाश मार्ग से अधिष्ठायक देव, चन्द्रप्रभु की प्रतिमा तथा अम्बिकादेवी एवं वगैरह नामों से प्रख्यात था और अभी है। क्षेत्रपालों की प्रतिमाजी लाये। आकाश मार्ग से इस प्रतिमाजी के आगमन श्री जैन आगम ग्रन्थ बृहत कल्पसूत्र में भी इस तीर्थ का उल्लेख है। Time का उल्लेख विक्रम संवत १३६१ में प्रबन्ध चिन्तामणि ग्रन्थ में है। वर्तमान में मुहम्मद गजनी के समय और उसके पश्चात मुसलमान राज्य काल में इस विद्यमान मूलनायक श्री चन्द्रप्रभुजी के बिम्ब पर लेख नहीं हैं। तीर्थ को भारी क्षति पहुँची थी इस प्रकार का उल्लेख मिलता है। Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग- 2000 जगत गुरू विजय हीर सूरि जी के शिष्य विजयसेन सूरि जी की निश्रा में विक्रम संवत १६६६ पोष सुद ६ से माघ सुदी ६ तक अंजन शलाका और प्रतिष्ठा होने का उल्लेख हैं। पश्चात संवत १८७६ में जीर्णोद्धार हुआ था। अंत में मूल उद्धार हुआ उसकी शिला स्थापना हालार देशोद्धारक आ. श्री विजय अमृत सूरिजी म. की निश्रा में हुई। इस मंदिर के नीचे के भाग में आगम मंदिर हैं। यहाँ की तमाम मूर्तियाँ प्राचीन एवं चमत्कारिक हैं। ____ उसके बाद संवत २००८ माघ सुदी ६ शुक्रवार को पूज्य आ. श्री चन्द्रसागर सूरिजी म. के हस्ते प्रतिष्ठा हुई एवं वर्तमान नूतन जिनालय गजेन्द्र पूर्ण प्रासाद बना हैं। सरस्वती नदी के तट पर समुद्र किनारे बसे हुए गाँव में यह मंदिर अत्यन्त सुहावना एवं नयनाभिराम है। यहाँ पर बगल में श्री मल्लिनाथजी जिनालय हैं। उपाश्रय हैं। धर्मशाला, भोजनशाला है। गाँव में एक प्राचीन जीर्ण मंदिर हैं, जिसका जीर्णोद्धार आवश्यक हैं। इस १४ मंदिर में अति प्राचीन प्रतिमा हैं। यहाँ से सोमनाथ मंदिर ४०० मीटर हैं। यहाँ पर समीप में वेरावल रेल्वे स्टेशन ५ कि.मी. हैं। सोमनाथ बस डिपो पास में हैं केवल १०० मीटर। बस और कार मंदिर तक जा सकती हैं। सम्पूर्ण सुविधायुक्त जैन धर्मशाला और भोजनशाला भी हैं। ८.दीव 3886666666 दीव जैन देरासरजी मूलनायक श्री नेमिनाथजी मूलनायक श्री नवलखा पार्श्वनाथजी पद्मानस्थ पीत वर्ण ७६ से.मी. समुद्र के मध्य बसे हुए दीव गाँव के मध्य यह प्राचीन मंदिर हैं। अजाहरा के इतिहास के अनुसार अजयपाल राजा सेना के साथ यहाँ पर पडाव डाल कर रहा था। "बृहत् कल्प सूत्र' में भी इस तीर्थ का उल्लेख देखने को मिलता हैं। कुमारपाल राजा ने यहाँ पर श्री आदीश्वर भगवान का मंदिर निर्माण करवाने का उल्लेख आता हैं । विक्रम संवत १६५० में पूज्य आचार्य श्री हीरसूरिजी महाराज ने यहाँ चार्तुमास किया। इस तीर्थ स्थल का सदियों पहले अद्भुत नाम था। कहा जाता हैं कि नवलाख की आंगी थी। उल्लेख के अनुसार प्रभुजी का मुकुट, हार, आंगी नव-नव लाख में बनवाये थे। सम्भव हैं कि इस कारण ही नवलखा पार्श्वनाथ इस प्रकार नाम प्रचलित हुआ यहाँ पर मूलनायक उपरान्त श्री नेमिनाथजी, श्री शान्तिनाथजी की प्राचीन प्रतिमायें हैं। एक दन्त कथा इस प्रकार हैं कि प्रभुजी की प्रतिमा खंडित हो जाने से दरिया में पधरा दी थी परन्तु मंदिर खोला तो प्रतिमाजी आकर बैठी हुई थी। यह एक चमत्कारिक घटना हैं। दरिया के मध्य यह गाँव टापु पर बसा हुआ है। समीप में देलवाडा ८ कि.मी. रेल्वे स्टेशन है। ऊना से १३ कि.मी. होता है। ऊना से बस मिलती है। घोघला से बोट (पानी का जहाज) द्वारा भी आ सकते है। पेढ़ी - श्री अजहरा पंचतीर्थ जैन कारखाना ऊना (जिला जूनागढ़) यह पेढ़ी ऊना, अजाहरा, दीव, देलवाड़ा वगैरह तीर्थों की व्यवस्था करती हैं। होगा। PAC 0:00 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला 8.श्रीकलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर दीव जैन देरासरजी -मूलनायक नवलखा पार्श्वनाथजी ९. अजाहरा तीर्थ । 4 96 * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * केशर वर्ण ४६ से.मी. प्रभुजी की प्रतिमा के सम्बन्ध में कहा जाता हैं कि बीसमें तीर्थंकर के समय रघुवंशी राजा अजयपाल का रोग प्रभुजी के न्हवण के जल से दूर हुआ था, इस कारण राजा ने यह गाँव बसाया। मंदिर बनवाया और प्रतिष्ठा करवायी। यह गाँव बहुत ही प्राचीन हैं । आज भी खुदाई का काम करते समय प्राचीन प्रतिमायें मिल जाया करती हैं। १४ वीं सदी में विनयप्रभ विजयजी की रची हुई “तीर्थमाल' में भी इस तीर्थ का वर्णन हैं। जमीन में मिली हुई कायोत्सर्ग मूर्ति पर लेख है उसके अनुसार संवत १३२३ जेठवद ८ के दिन आचार्य श्री महेन्द्रसूरिजी ने प्रतिष्ठा कराई । यहाँ पर प्राचीन घन्टा हैं उसमें "श्री अजाहरा पार्श्वनाथ संवत १०३४ शाह रायचंद जेचंद" इस प्रकार लिखा है। रत्नसार नाम का व्यापारी अपने वाहन जहाज में परदेश जा रहा था। मध्य दरिया में अचानक जहाज अटक गया इतने में दैवी आवाज सुनाई दी कि तुम्हारे जहाज के नीचे पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा है उनके न्हवण जल से राजा अजयपाल का रोग मिट जाएगा। इस समय यह राजा सेना के साथ दीव बंदरगाह पर पड़ाव डालकर रहा था। इस व्यापारी रत्नसार ने प्रतिमा को दरिया में से बाहर निकालकर राजा अजयपाल को समाचार भिजवा कर सारा वृतान्त कहकर सुनाया। राजा तुरन्त ही आकर बाजे गाजे से अपने पड़ाव पर प्रभुजी की प्रतिमा को ले गया। और केवल ९ दिन में राजा निरोगी बन गया और यह नगर बसाया। मूलनायक श्री अजाहरा पार्श्वनाथजी Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ABORANJANESHALA अजाहरा तीर्थ जैन मंदिर ी मंदिर का निर्माण कराया प्रतिष्ठा करायी। अजय राजा का रोग हरण ऐसी चमत्कारी प्रतिमा के दर्शन करना एक बहुत बडा ल्हावा है। करने वाला होने से इस कारण यह अजाहरा पार्श्वनाथ कहलाया। इस बहुत प्राचीन तीर्थ है। चौदह-पन्द्रह बार जीर्णोद्धार हो चुका है। यहाँ प्राचीन तीर्थ के सम्बन्ध में बहुत सी चमत्कारपूर्ण बातें सुनने को मिलती हैं जो वर्ष में तीन बार मेला भरता हैं। कार्तिकी पूनम, चैत्र की पूनम और मगसिर सत्य है। वदी दशमी। - कहा जाता है कि, किसी समय देवगण के नाटक आरम्भ करने की मंदिर के भोयरा में से भी प्रतिमायें मिली है। यहाँ के मूलनायक श्री । आवाज सुनायी देती है। श्री अजयपाल का रोग न्वहण जल से मिट गया था, पार्श्वप्रभु की प्रतिमा रेत की बनी है और उस पर लेप करवाया गया है। बहुत इस कारण आज भी लोग उस जल को अमृत मानकर उपयोग करते हैं और ही दिव्य मनोहर प्रतिमा है। उनके रोग का निवारण हो जाता है एक समय इस प्रकार घटना हुई जीर्णोद्धार ऊना से पाँच कि.मी. पर आता है। देलवाड़ा से दो कि.मी. दूर है। के समय पुजारियों तथा कारीगरों को आरती उतारने के पश्चात कार्य शुरू ऊना-देलवाड़ा के रास्ते पर आता है। बस और कार मंदिर तक आ सकती। करने को कहा। कारीगर माने नहीं और काम शुरू करने गये तो तोप के है। धर्मशाला है। भोजनशाला भी चालू है। बराबर खूब जोर की आवाज हुई। संपूर्ण मंदिर में लाल रंग फैल गया। और इस तरह की अनेक चमत्कारिक घटनायें हुई है। . थोड़े वर्षों पूर्व ता- १७-९-७८ को धरणेन्द्रदेव नाग के स्वरूप में आकर प्रभुजी की प्रतिमा के सामने फण चढ़ाकर बहुत समय तक बैठा रहा। हजारों . श्रद्धालुओं ने आंखों से देखा। HARE HUAWLOD Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला DDDDDDDDDDDDDDDDDDA १०. देलवाडा तीर्थ (उना) BoheirhavyLEARCHURN Ras(Uygataa SupridetGLog-afegory NNACHERMERANSLEurt.d4 SARIBIDIOpanisuTERE saucer- tur PRADESLEE e R .dpustan A२०११ मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी देलवाड़ा जैन देरासरजी मूलनायक - श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी श्वेतवर्ण पद्मासनस्थ ३८ से.मी. प्रतिष्ठा कब हुई इसका उल्लेख मिलता नहीं हैं। परन्तु बहुत ही प्राचीन तीर्थ कहलाता हैं। मंदिर पर आगासी है। शिखर नहीं है। १०० वर्ष प्राचीन कहलाता हैं। अजाहरा पंचतीर्थी का तीर्थ है। यहाँ पर उपाश्रय है। जैनियों के घर नहीं है। यहाँ पर यात्रियों को भोजन करने की व्यवस्था है। ११. उना मूलनायक श्री आदिनाथजी जानी जाती है। इस जमीन में विशाल बगीचा है। उसको शाही बाग भी कहा पद्मासनस्थ, पीतवर्ण ७६ से.मी. जाता ऊना शहर का प्राचीन नाम उन्नतपुर था । बहुत प्राचीन स्थल है।इस है। इस स्थान में अनेक बार चमत्कार हुए हैं। गुरुदेव की इच्छानुसार एकबर मंदिर का निर्माण सम्प्रति काल का माना जाता है। 'तीर्थमाला' नाम की ने बहुत फरमान भी किये हैं। इसके मंदिर के पास ही दूसरे पाँच मंदिर हैं। एक १४वि सदी की पुस्तक में उल्लेख है। १६५२ में जिसने अकबर को बोध किया उपाश्रय है। दादावाड़ी में गुरुदेव के समाधि मंदिर पर छत्री बाँधी है। वहाँ पर था वे पू. आ. श्री विजयहीर सूरि महा. ने यहाँ पर कामधर्म को पाया था। एक उनकी और उनके पट्टधर की चरण पादुकायें हैं। ऊना से १ कि.मी. दूर है। समय धन धान्य से भरपूर विशाल नगर था। यहाँ पर ७०० जैन पोषधशालायें यहाँ के चौथे जिन मंदिर में संप्रति राजा की भराई हुई पार्श्वनाथ भगवान थी। वे भूतकाल की समृद्धि का ख्याल प्रदान करती हैं। की प्रतिमा दिव्य तेजवाली है। सभी प्रतिमायें सुन्दर हैं। संवत २०३५ में सौराष्ट्र की अजाहरा पंचतीर्थों में से एक तीर्थ हैं। यहाँ पर दो भोयरे हैं। जीर्णोद्धार हुआ है। एक में श्री आदिनाथ दादा और दूसरे में अमीझरा पार्श्वनाथ प्रतिमा है। ___ यहाँ पर जैनियों के ५० घर हैं। ऊना रेल्वे स्टेशन है तथा सौराष्ट्र गुजरात __कहा जाता है कि अनेक समय यहाँ पर अमृत के छीटे होते हैं। एक सफेद में बस मार्ग से जुड़ा हुआ है। ऊना बस स्टेन्ड तीर्थ के समीप में है। रहने के मूछों वाला बुवा सर्प प्रभुजी की प्रतिमा पर फण का छत्र करके बैठता है। लिए धर्मशाला है। जूनागढ़ से कोडीनार होकर ऊना जाया जाता है। पूज्य हीरसूरिजी म. की अन्तिम क्रिया हुई थी उस १०० वीघा जमीन को श्री अजाहरा पार्श्वनाथ पंचतीर्थ जैन कारखाना अकबर सम्राट ने संघ को भेंट प्रदान की थी जो आज दादावाडी के नाम से मु. ऊना, जिला- जूनागढ़, पिन-३६२५६० SSSSSSSSSS Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेताबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ Not e rtador MAHARA A adiplease जगद्गुरु पूज्य श्री हीर सू. म. चरण पादुका 'આદિવરભગવાન मूलनायक - श्री आदिनाथजी (ADRANI ऊना जैन मंदिर Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला १२. पोरबंदर मूलनायक श्री शान्तिनाथजी मूलनायक श्री वासुपूज्यजी. इस शहर में नीचे लिखे दो मंदिर हैं :(१) श्री शान्तिनाथ जिनालय (शिखरबन्दी) ३५५ वर्ष हुए लेख नहीं है। ठिकाना पारेख चकलो शेरी नं. १ (२) श्री वासुपूज्य स्वामी ८५० वर्ष प्राचीन कहलाता हैं। नीचे लिखे अनुसार लेख है। श्री शान्तिनाथ जिनालय (१) बरडा के राणा विक्रमजी के राज्य में यह जिन विहार नवीन निर्माण करवाया है। श्रीमाली ज्ञाति के प्रधान पौत्र सवजी को देखभाल में विक्रम संवत १६९१ माघसुदी १० पोरबन्दर शहर जैन संघ तरफ से यह मंदिर बनवाया है। आखिरी जीर्णोद्धार वि. सं. २०२८ (२) श्री वासुपूज्य स्वामी कल्पवृक्ष पर विराजित अति प्राचीन एवं भव्य प्रतिमाजी है। आखिरी जीर्णोद्धार - वि.सं. १९७६ जेठ सुद - ३ दोनों मंदिरों का वि.सं. २०५१ में अभी जीर्णोद्धार है। पोरबंदर जैन मंदिर Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १३. बरेजा तीर्थ adharna 1 मूलनायक श्री बरेजा पार्श्वनाथजी बरेजा तीर्थ जैन मंदिर मूलनायक जी : श्री बरेजा पार्श्वनाथजी जैन संघों के निश्चित किया कि प्रभुजी को बैल वगैरह की गाड़ी में C प्रतिष्ठा - इस तीर्थ का कोई लेख नही है। आखिरी जीर्णोद्धार वि.सं. बैठाने से गाड़ी जिस राज्य की सीमा में अटकती हो उस राज्य का संघप्रभुजी ०२५ में सेठ आनंदजी कल्याणजी की पेढ़ी ते तरफ से होने का लेख हैं। रखे। पोरबन्दर राज्य के बरेज गाँव में गाड़ी अटक गयी इस कारण पोरबन्दर पोरबन्दर - मांगरोल रोड पर अति प्राचीन प्रगट प्रभाविक श्री बरेजा जैन संघ ने भव्य शिखर बन्दी जिनालय बनवाया-१०८ पार्श्वनाथ जी में यहाँ मसपार्श्वनाथ शिखरबंदी भव्य तीर्थ विद्यमान है। के इस प्रतिमाजी की गिनती होती है। यह स्थान अज्ञात स्थल होने से। खास सैंकडों वर्ष पूर्व समुद्र किनारा के वेलुका गाँव के पास से यह श्यामवर्ण व्यवस्था नहीं हैं। पोरबन्दर संघ की धर्मशाला उपाश्रय वगैरह नवीन निर्माण आर्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमाजी प्रगट हुई। मांगरोल पोरबन्दर के बीच यह गाँव करवाने की भावना थी। । उस समय अलग-अलग राज्य थे। इस कारण मांगरोल और पोरबन्दर के विजय प्रभाकर सू. म. एवं और पू. आ. श्री पू.पं. श्री वज्रसेन वि. गणी के उपदेश से जीर्णोद्धार हुआ और उठाये शेष जिनों की प्रतिष्ठा हुई वि. सं. २०५१ में। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजकोट की ओर आटकोट स्केल दर०१५ २०२५ 28 उंटवड कीमी 2 चमारडी बाबरा बाबरा ल्ला चावडर राजकोट जिल्ला 28/ जेतपुर की ओर लाठी जी कुंकावाव र لدى अमरेली 18 लिलिया अ म रे ली तोरणीया की ओर 190 7. TS धारी सावरकुंडला । खांभा जी ल्ला राजुला धांटवड जाफराबाद डोलासा. उना - कोडीनार अर ब सा ग र . Page #83 --------------------------------------------------------------------------  Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ३ - अमरेली जिला (५७ केल कीमी २० राजकोट जिल्ला अमरेली जिला अमरेली। - क्रम गाँव पेज नं. ना अमरेली बाबरा लाठी ५७ ५८ ५८ जील्ला अरब सागर १. अमरेली अमरेली जैन मंदिर मूलनायक - श्री संभवनाथ जी मूलनायकजी श्री संभवनाथजी विक्रम संवत १८७७ में प्रतिष्ठा हुई है । जीर्णोद्धार सन १९७३ में हुआ है। यहाँ पर दो उपाश्रय हैं । धर्मशाला हैं । आयंबिल खाता चालू हैं। यहाँ पर आने के लिए बस की अच्छी व्यवस्था है। जूनागढ़ राजकोट, भावनगर, जामनगर से बसें मिलती हैं। आटकोट हाईवे पर से ६२ कि.मी. अन्दर है । राजकोट से ११२ कि.मी. । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ २. बाबरा बाबरा जैन मंदिर मूलनायक श्री विमलनाथजी प्रतिष्ठा २०२७ जेठ सुदी १० को पू.आ. श्रीविजय हिमांशुसरीश्वर जी म. की निश्रा में हुई हैं । राजकोट पालीताणा रोड़ पर हैं,प्रतिमा भव्य प्राचीन है। जैनियों के ११ घर हैं। मूलनायक श्री विमलनाथजी ३. लाठी - જૈન દેરાસર) “જળ ઉપાશ્રય २०१२ PRESENEMY तियात मिस लाठी जैन मंदिर मूलनायक श्री शान्तिनाथजी .(सुखडीया शेरी) प्रतिष्ठा २०३६ जेठ सुद ४ को पू. आ. श्री विजय रविचंद सूरीश्वर जी महाराज की निश्रा में हुई है। जैनो के ८ घर हैं। मलनायक श्री शान्तिनाथजी RAKAARAKAR Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सरजवारी स्केल ५-१० १५ २०२५ मालिया कीमी हलवद की ओर हलवद मोरबीन 20K - टंकारपुर वांकानेर थानगढ की ओर 20V जामनगर की ओर माप्रणबए। री डोलीयातीर्थ (चोटीला, कुवाडवा ल्ला) जी जामनगर की ओर कालावडू नोकाव राजकोकुवाड 2पालीयाद सरधार भाडला ल्ला 29 / विछीया) की ओर . छतर 40 - भोयरा "जसदण आदकोट गॉडल /40 का जामजोधपुर भावनगर 45 जामकंडोरणा/ भावनगर जील्ला 128 ॥ वासवड 4. बाबरा कोलकी पलेटाःY19 उपलेटा: मोटीमारड 1 जेतपुर घोराजा पोरबंदर की ओर ---ल कावाव की ओर जील्ला ग जुनागढ Page #87 --------------------------------------------------------------------------  Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ४ - राजकोट जिला सरजवारा मालिया ब हलवद की ओर हलवद ( रे बरवाल ..)...(न्द्र कौमी NO 20बलम रंगपर मोरबी 20- श टकारपुरे यांकानेर थानगड की ओर जी ओर जामनगर की पुडधरी वाणबोए जोलीचातीर्थ चिोटौला . वाडवाल्ला जी जामनगर की ओर 26 राजकोट कालावड 50 पालीवाद नाका सरधार विडीया की ओर ल्ला 'भोबरा जसदण मोडल मदको सदण जामशोधपुर भावनगर जामकंडोरणा जामकंडोरणा/ वीरपुर वासवड जील्ला वारपर बाबरा कोलकी /20 उपलेटा 19194 जेतपुर कुकावाव की ओर पोरबंदर की ओर धोराजी मोटीमार ढजी जील्ला 'जुनागढ राजकोट जिला कम पेज नं. ग्राम क्रम पेज नं. ग्राम ૬૭ ६८ राजकोट जेतपुर । धोराजी जाम कंडोरणा वींछिया पडधरी वांकानेर मोरबी बेला Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १. राजकोट IGIपार मांडवी चौक मंदिर मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी Ht શ્રીઆદેશ્વર હાઈટા. EVEL PERIEN विधानाय - શ્રીસુમતિ मांडवी चौक जैन मंदिर 261-30 मांडवी चौक भोयरे में श्री आदीश्वरजी BHO Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ४ - राजकोट जिला मांडवी चौक मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी १६६ वर्ष का प्राचीन मंदिर है। वि. सं. १८८२ वै. वद १० को प्रतिष्ठा हुई थी। और शान्तिनाथ तथा नेमिनाथ पास-पास में विराजमान हैं। ____ भव्य शिखरबन्द मंदिर हैं । भोयरा में भव्य प्रतिमा आदीश्वरजी की हैं। तथा कोटडा सांगाणी में से निकली प्रतिमा है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार होने पर २०४१ में हालार देशोद्धारक पू. आ श्री विजय अमृत सूरिजी म. तथा पू. आ. श्री भुवन सूरिजी म. की निश्रा में। मूलनायक सिवाय मार्गशीर्ष वदी १ को प्रतिष्ठा हुई थी। बाहर के भागों में पू. आ. श्री हेमसागर सूरि का गुरू मंदिर है। पास में उपाश्रय आंबेलशाला धर्मशाला ठिकाना - मांडवी चोक, देराशेरी 000000 प्रहलाद प्लॉट जैन मंदिर मूलनायक श्री महावीर स्वामी प्रहलाद प्लॉट मूलनायकजी श्री महावीर स्वामी इस शिखर बन्द मंदिर के ऊपर मार्ग में संप्रति राजा के समय की श्री मल्लिनाथ भगवान की प्राचीन प्रतिमाजी हैं। सं. २०४३ में पू. मु. श्री जंबू वि. म. की निश्रा में प्रतिष्ठा हुई हैं। इस संघ तथा देरासर का प्रारम्भ पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सूरिजी म. के उपदेश से उनकी निश्रा में हुआ था। -०० Cooo Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ वर्धमान नगर श्री संभवनाथजी मंदिर वर्धमान नगर श्री मूलनायक जी श्री संभवनाथजी सेठ श्री भाणजी धरमशी शापरीआ तथा सेठ श्री माणेकलाल चुनीलाल भाई की तरफ से शापरिया चेरिटेबल ट्रस्ट द्वारा यह भव्य जिन मंदिर तीर्थ ool स्थल बना है। अंजनशलाका पूर्वक प्रतिष्ठा वि. सं. २०३५ माघ सुदी ६ को पू. आ. श्री विजय रामचन्द्र सू. म. आदि की निश्रा में भव्य रीति से हुई है। यहाँ पर धर्म का विकास खूब ही अच्छा हुआ है। दो उपाश्रय आयंबिल शाला है। पेलेस रोड़ राजकोट D मंदिर छो मुक्ति तणा मांगल्य क्रीड़ाना प्रभु ने इन्द्र नर ने देवता, सेवा करे तारी विभु, सर्वज्ञ छो स्वामी वली शिरदर अतिशय सर्वना, घणुं जीव तुं घणुं जीव तुं भंडार ज्ञानकला तणा शुं बालको मा बाप पासे बालक्रीडा नव करे, ने मुखमांथी जेम आवे तेम शुंन उच्चरे। तेमज तमारी पास तारक आज भोला भावथी जेवु बन्यु तेवु कहुं तेमा कशुं खोटुं नथी वर्धमान नगर मूलनायक श्री संभवनाथजी DDDDDDDDDD Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग ४ राजकोट जिला - MAR रणछोड़ नगर मूलनायक श्री सुमतिनाथजी रणछोड़ नगर पू. हालार देशोद्धारक आ. श्री विजय अमृत सूरीश्वरजी म. की मूर्ति रणछोड़ नगर जैन मंदिर रणछोड़ नगर मूलनायक श्री सुमतिनाथजी यह मंदिर उपाश्रय भाई श्री रमेशचन्द्र हरगण दोढ़िया खीरसरावाला के आत्मकल्याण के लिए बनाया है। सेठ श्री हरगण मेरग दोढ़िया परिवार द्वारा निर्माण हुआ और प्रतिष्ठा कराई है। यह मंदिर पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सू. म. के उपदेश से बना हैं और उन्हीं की निश्रा में प्रतिमा वि. सं. २०४३ जेठ सुद १० को हुई है। पूज्य गुरुदेव अमृत सू. म. की भव्य मूर्ति देरी में है। में दान तो दधुं नहिं ने शील. पण पायुनाह, तप थी दमी काया नहि, शुभ भाव पण भाव्यो नहिं । अ चार भेदे धर्म मांथी, काँई पण में नव कर्तुं । म्हारुं भ्रमण भवसागरे निष्फल गयुं निष्फल गयुं । OF (६३ Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ HEA २. जेतपुर (काठी) जेतपुर जैन मंदिर मूलनायक जी श्री आदीश्वर प्रभुजी . उजल पा में देरासर है। १५० वर्ष प्रतिष्ठा को हुए हैं। फागण सुद ३ को. प्रतिष्ठा हुई है। राजकोट जूनागढ़ हाइवे उपर भादर के पास यह गाँव है। मू. पू. जैनियों ८० घर हैं। मूलनायक श्री आदीश्वरजी ३. धोराजी ROil मूलनायक श्री शांतिनाथजी धोराजी जैन मंदिर Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ४ - राजकोट जिला मूलनायक श्री शान्तिनाथजी प्रतिष्ठा संवत १८६४ वैशाख सुद ३-१८१ वर्ष प्राचीन शिखरबन्द मंदिर है। कहा जाता है कि, संप्रति राजा के समय में यह प्रतिमाजी भराई, निकावा गाँव से यहाँ लायी गयी हैं। जीर्णोद्धार :- १९५१ ई. सं. में हआ है। जैनियों के १५० घर हैं। ५० वर्ष दहले के प्लॉट में दुसरा मंदिर श्री पार्श्वनाथजी का हैं। ४. जाम-कंडोरणा ITY આ કાવેzસાગરમાવજ઼મ.સ.ના સદવિહેંશવાદ A Stવા છબીલદાસતડહેડલાધપ. ઉમામ્રાજક વીસસ્થાનડે પ નિમિને મનગર સં રેઝરર્ષ 1 जाम कंडोरणा जैन मंदिर मूलनायक श्री आदिनाथजी मूलनायक-श्री आदीश्वरजी १२५ वर्ष प्राचीन जैन मंदिर है। शिखरबन्दी है। जैनियों के १५ घर हैं। मुख्य आबादी पटेलों की है। तालुका - मथक है। कालावड़- जूनागढ़ रोड पर आता है। कालावड़ से ४० कि.मी. है। DOVVVV VEVON YOYOYNO 60 Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ५. वींछीया SHTRA શ્રી શી હોની સ્થિSિ, मूलनायक श्री शान्तिनाथजी वीछिया जैन मंदिर पू. आ. विजय अमृत सू. म, की चरण पादुका पू. अमृत सू. म. की अग्निसंस्कार भूमि गुरु मंदिर 9 Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग ४ राजकोट जिला मूलनायक जी यहाँ पर प्रभुजी सामने से पधारे पालीयाद के श्रावक को स्वप्न आया कि पटेल के खेत में यह प्रतिमा है। बहाने प्रतिमाजी लेकर वीछिया आ गया। इस प्रकार यह प्रतिमा प्राप्त हुई है। १२८ वर्ष पुराना मंदिर है। प्रतिष्ठा दिन जेठ सुद १० था। जीर्णोद्धार कराकर २०४१ में जेठ सुद ११ को पु. आ. श्री 'विजय नीति प्रभ सू. म. की निश्रा में प्रतिष्ठा करायी है। उनकी यह जन्मभूमि थी और यहाँ पर ही स्वर्गवास प्राप्त किया है। देरी में उनकी मूर्ति स्थापित की है। श्री शान्तिनाथजी BAC वस्य 300 मूलनायक श्री विमलनाथजी हालार देशोद्धारक पू. आ. श्री विजय अमृत सूरिजी म. यहाँ पर २०२२ फागण सुद १० को कालधर्म को प्राप्त हुए स्टेशन रोड ऊपर जवेरी जीन के सामने के प्लॉट में अग्नि संस्कार हुआ। वहाँ पर गुरु मंदिर बनवाकर चरणपादुकायें स्थापित की हैं। उनकी प्रतिष्ठा २०४० कार्तिक वदी ११ को पू. आ. विजय जिनेन्द्र सू. म. की निश्रा में हुई हैं। राजकोट से ६० और बोटाद मे ३४ कि.मी. है। ६. पडधरी मूलनायक जी श्री विमलनाथजी यह नूतन मंदिर श्री दीपचन्द भाई गार्डीजी ने बनवाया है। मंदिर की प्रतिष्ठा विक्रम सं. २०३८ माघसुदी १०. पू. आ. श्री विनयचन्द्र सूरिजी म. की निश्रा में हुई है। यहाँ पर एक प्राचीन मंदिर खंडित हैं। बि. सं. १६६४ माघ सुदी १० शनिवार को प्रतिष्ठा हुई है। उसके दरबार के गढ़ में अवशेष हैं। श्री रत्न चन्द्र गणि कृत पडधरी प्रासाद बिम्ब प्रवेशाधिकार स्तवन में से जानने को मिलता हैं कि, इस मंदिर का शिलान्यास वि.सं. १६६१ मा. व २ बुधवार को हुआ था। इस प्राचीन मंदिर का नाश किस प्रकार हुआ वह जानने में नहीं आता हैं। पडधरी जैन मंदिर ऊपर के स्तवन में ऐसा भी उल्लेख हैं कि कच्छ का जामरावल उसके प्रधान वणिक पेथराज थे। उनके दैवी संकेत हुआ और जामरावल से उनको हालार देश में लाये। वि. सं. १५५६ श्रा. व.८ को जामनगर बसाया। उन पेथराज के परिवार में आनंद एवं अबजी धर्मप्रेमी थे और पू. आ. श्री विजयसेन सूरिजी के उपदेश से आनंदजी के पुत्र मेघराज ने पडधरी गाँव में मंदिर बनवाया। जामनगर में भी आदिनाथ आदि भगवन्तों का ४२ गज ऊँचा २१ गज चौड़ा भव्य जिनालय बनवाया। (६७ Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८) પાત્ર વિગણિત જમણા કાપ મુકતા GUP मुलनायक श्री अजितनाथजी LESS ७. वांकानेर સધ્ધગીરી सभी cle ઘિાન તથા Do मूलनायक श्री अजितनाथजी इस भव्य नक्काशी युक्त मंदिर की १८५९ में वैशाख सुदी ७ को प्रतिष्ठा हुई। मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ है। सौ वर्ष ऊपर के श्री चन्द्रप्रभ स्वामी का दूसरा भव्य मंदिर है। उसका भी जीर्णोद्धार अच्छी प्रकार हुआ है। मू. पू. जैनियों के १९० घर हैं। इन प्रभुजी की राज ज्योतिषी नथुभाई ने १०० फुट लम्बी विगत पूर्ण जानकारी सहित लग्न पत्रिका बनाई है। राजकोट से ३० कि.मी. है। ८. मोरबी श्री अजितनाथजी जैन मंदिर मूलनायक श्री धर्मनाथजी विक्रम संवत १८१० जेठ वद १ को महेता वीरचंद लक्ष्मीदास तथा संघ ने मिलकर यह शिखर बन्द मंदिर बनवाया है। प्रतिमा प्राचीन है। बढ़वाण से लायी है। प्लॉट में श्री अजितनाथ प्रभु का देरासर भी है। पास में उपाश्रय है। राजकोट, तथा राजकोट से कंडला कच्छ हाईवे तथा जामनगर से कच्छ (वाया जोडिया) हाईवे पर आया है। सौराष्ट्र के हर शहर से बसें आती है। श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ 8 GNUT श्री सिद्धाचल नवणे जाता, हे मारू हर्ष घरे, ए गिरिवरनो महिमा मोटो, सुगता तनहुँ नृत्य करे। कांकरे कांकरे अनन्त सिद्ध, पावन ए गिरि दुःखड़ा हरे । अ तीरधनु शरणुं होजो, भवो भव बन्धन दूर करे। हे देव तारा दिलमां वात्सल्यना झरणां भर्या, हे नाथ तारा नयन में, करूणातणा अमृत भर्या, वीतराग तारी मीठी माधुरी, वाणी में जादु भर्वा, तेथीज अमे तारा शरण मां बालक बनी आवी चड्या Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ४ - राजकोट जिला RATNASANA SOOR मूलनायक श्री धर्मनाथजी मोरबी जैन मंदिर सकल तीर्थ वन्दु करजोड़, जिनवर नामे मंगल कोड, पहले स्वर्ग लाख बत्रीस, जिनवर चैत्य नमुं निश दिन ।।१।। बीजे लाख अठ्ठावीश कयां, बीजे बार लाख सद्दह्या, चौधे स्वर्गे अड लख धारन, पांचमें वन्दु लाख ज चार ।।२।। छद्रे स्वर्गे सहस पचास, सातमें चालीस सहस प्रासाद। आठ में स्वर्गे छ हजार, नव दश में वन्दु शत चार ।।३।। अग्यार बार में त्रण से सार, नव ग्रैवेयक त्रण से अठार। पाँच अनुत्तर सर्वे मलि, लाख चौरासी अधिकां वली।।४।। सहस सत्ताणुं त्रेवीश सार, जिनवर भवन तणो अधिकार, लांबा सो जोजन विस्तार, पचास ऊँचा बहोतेर धार ।।५।। एकसो एंसी बिंब प्रमाण, सभा सहित एक चैत्ये जाण, सो कोड बावन कोड संभाल, लाख चोराणुं सहस चौआल।।६।। सातसें उपर साठ विशाल, सवि विम्ब प्रणमुंत्रण काल, सात कोड ने बहोतेर लाख, भवनपतिमां देवल भाख।।७।। एक सो एंसी बिम्ब प्रमाण, एक एक चैत्ये संख्या जाण। तेरसें कोड नेव्यासी कोड, साठ लाख वन्दु कर जोड़ ।।८।। बत्रीसें ने ओगण आठ, तीर्छा लोकमाँ चैत्यनो पाठ, त्रण लाख ऐकाणुं हजार, त्रणसें वीस ते बिम्ब जुहार ।।९।। व्यंतर ज्योतिषी माँ वली जेह, शाश्वता जिन बन्दू तेह। ऋषभ चन्द्रानन वारिषेण, वर्द्धमान नामे गुणसेण ।।१०।। समेत शिखर बन्दु जिन वीस, अष्टापद वंदु चोवीस विमलाचलने गढ़ गिरनार, आबु ऊपर जिनवर जुहार।।११।। शंखेश्वर केसरियो सार, तारंगे श्री अजित जुहार अंतरिक्ख वरकाणो पास, जीरावलो ने थंभण पास ।।१२।। ग्राम नगर पुर पाटण जेह, जिनवर चैत्य नमुं गुण गेह, विहरमान वंदु जिन वीस, सिद्ध अनंत नमुं निशदिन।। १३ ।। अढ़ी द्वीपमाँ जे अणगार, अढ़ार सहस शीलांगना धार। पंच महाव्रत समिति सार, पाले पलावे पंचाचार ।।१४।। बाह्य अभ्यन्तर तप उजमाल, ते मुनि वंदु गुण मणिमाल। नित-नित उठी कीर्ति करूं, जीव कहे भवसायर तरूं ।।१५।। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७०) मूलनायक श्री पद्मप्रभु स्वामी ९. बेला मूलनायक जी श्री पद्मप्रभु स्वामी यह अत्यन्त ही प्राचीन तीर्थ है। आगे समय में मंदिर था। वर्तमान का मंदिर मुर्शिदाबाद वाले बाबू धनपतसिंह जी ने बनवाकर अर्पित किया है। विक्रम संवत १९२७ में प्रतिष्ठा हुई है। जीर्णोद्धार संवत २०३० में करवाया है। यहाँ की प्रतिमाजी २००० वर्ष प्राचीन है। यह प्राचीन लेख पढ़कर प्रमाण किया है। अनेक बार मंदिर में बाजे बजते हैं। घंटे बजते हैं। अनेक चमत्कार बहुत से भक्तों ने देखे हैं। व्यवस्था उपाश्रय, धर्मशाला, भोजनशाला हैं। मोरबी से कच्छ के मार्ग में १२ कि.मी. हैं। ॐ 用 श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ बेला जैन मंदिर फ्र पद्मप्रभुजी नु नाम भजो विषय कषाय ने मोह तजो, छड़ा जिनवर जगना नायक, त्रायक ये भवि जनने । करुणासागर करुणानागर, ध्यावो अना ध्यान ने, भजतां भावे (२) मुक्ति लहो, विषय. चोत्रीश अतिशय एहने छाजे, बार गुण शुभ राजे, वाणी पात्रीस गुणनी खाणी, अ पुण्य महिमा छाजे । प्रभुजी ना चरणे (२) लीन थजो. विषय. ।। २ ।। कौशाम्बी नगरीनो से राजा, पिता घर छे प्यारा, पद्म लंछन जस चरणे सोहे, माता सुसीमा सारा एहने ध्याने (२) नित्य रमजो, विषय. ।।३।। गुण अनन्ता धारे प्रभुजी, गातां नावे पारा, सिद्धि बधूना से छे पनोता, भविने सिद्धि देनारा 118 11 एना धर्मना (२) पाठ भणजो, विषय. ।।४।। मणि बुद्धि ने आनंद कारी, हर्ष कर्पूर सूरि राया, अमृत सूरिजी गुरुवर प्यारा, धर्मबोध सुख पाया, जपे जिनेन्द्र ( २ ) मुक्ति जजो, विषय. ।।५।। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जामनगर जील्ला मोरबी कच्छ की : राज्य घोरी मार्ग दूसरे मार्ग रेल्वे मार्ग आमरण mmmmmmm बालंभा जाडाया / लतीपुर 7 जांबुडा -. - - - - -- - - - - - - .. -- - - --- --- /फला धोल ओखा / सिक्का धुवान :::मोटा आंबला मुंगणी माटाखावडीनिजामनगर ER :::: ::::: राजकोट जील्ला गागवा मीठापुर A सलाया जावडाT amitmentथली (हडमतीयाittee गांगवा LA वसई " अलीयाबाडी Mpter छोटामोढा - - आराधनाधामः पडाणा/मोटी मोटावंडाला ANमोटामांढा खंढेरा 'आरंभडा: रॉबलसर चेला ATRA नवागामलाखांबावल. गोडंजन राजकोट की ओर वरवाला कानालुसन भलसाण । शे तलंश / हरिपुर -राजकोट की ओर द्वारका नया हरिपुरषदांता दाता MAmer . सिंहण मोडपर तिलश 1: हरिपुर-आरीखाणा वडमां खभालीया.का.सिंह HAMAND डबासंग। लालपुर खीरसरा कालावड HAMARI" NA रंगपर। तुंगी 4 गोरीजा' जल्याणपुर वेराड भाणवड जामजोधपुर the जामकंडोरणा की ओर "काटकोला उपलेटा की ओर जुनागढ जील्ला पोरबंदर की तरफ Page #101 --------------------------------------------------------------------------  Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला 668 जामनगर जील्ला राज्य घोरी मार्ग दूसरे मार्ग रेल्वे मार्ग आमरण/ वालेभा මම जोडीया लतीपुर जोवुडान फला घोल ओरवा - - निधुवान ----- वाकनमुमरा हडपतीया अलीयानाडmputy -मोटा आंवला मुंगणा माटाखावडजीजामनगर HEAT गागवाLA सहOaamanी राजकोट जील्ला गागवान मीठापुर राजकोट की ओर FEERA चेला गोईजा पोटावंडाला आराधनायोमयागामलाखातीवल पडाणामोटो वरवाला मानधनुसाण गोइंजAAAमोटामांदारामाराम हरिपु आरोस जा हरिपुदाता मिहण गोपालश खढरा ओर द्वारका माजकोट की Angrशतलश हारन-आरीखाणा खभालीया का.सिंहावासंग रंगपर/ लालपुर खीरस कालावड . तंगी මම गोरीजा जामजोधपुर HHA उपलेटा की ओर जामकंडोरणा की ओर काटकोना पोरबंदर की तरफ जनागद जील्ला क्रम गाँव क्रम गाँव पेज नं. ९७ ९८ २१ जामनगर धुंवाव अलीया बाड़ा जामवंथली जामनगर जिला पेज नं. २० मोटा मांढा दांता आराधना धाम हालार तीर्थ वडालीआ सिंहण २४ काकाभाई सिंहण रासंगपुर मोडपुर तीर्थ २२ ९८ २३ १०१ ध्रोल १०२ මම මුමුණම १०३ ८७ ८७ २७ पडाणा MSWWD000466m SKUUN २८ १० गागवा मुंगणी सीक्का २९ १०३ १०४ १०५ १०५ १०६ १०६ ११ जोडीया आमरण मोटा वडाला कालावड (शीतला) मोटी भलसाण तीर्थ चेला तीर्थ डबासंग शेतालुंश लालपुर जाम भाणवड जाम-खंभालीया नवू हरिपर गोइंज नाना मांढा ३० १२ वसई १४ ३२ १०७ १६ १७ ३४ ३५ मोटी खावड़ी नवागाम रावलशर लाखा बावल नाघेडी आरभंडा १०८ १०९ १०९ १११ ११२ १८ ३६ ३७ १९ ९६ । ०. 0 o 0 1004 10.00 0.00 00 Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२) - - -- - श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ - - - - - - १. जामनगर - अर्धशत्रुजय तीर्थ चांदी बाजार मंदिर जामनगर शहर में चौक के चार मंदिर तथा धर्मनाथ नेमिनाथ मंदिर शान्तिभवन तथा वंडा के ३ मंदिर तथा प्लॉट में हाथी वाला श्री विमलनाथजी का मंदिर रोड पर शाश्वत जिन मंदिर, ओसवाल कॉलोनी, कामदार कॉलोनी का मंदिर, पेलेश का मंदिर वगैरह यात्रा के स्थान हैं। जामनगर को अर्ध शत्रुजय की उपमा प्रदान की जाती है। वर्धमान शाह का बावन जिनालय, रायशी शाह का बावन जिनालय ये दो बाबन जिनालय हैं। ___ जामनगर शहर नवीन नगर के रूप में वि.सं. १५९६ में श्रावण सुद ७ को बसा। जामरावल ने यह शहर बसाया तब उनके साथ जैन लोग भी कच्छ में से आये थे और राज्य में उनका प्रमुख स्थान था। HEROIRALALI-RRE-RECORIAL Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग: ५ जामनगर जिला IAS ANNA R सेठजी का मंदिर मूलनायक श्री शादीश्वरजी दादा आदीश्वर दूर थी आव्यो, दादा दरिसन दीयो, कोई आवे हाथी घोड़े, कोई आवे पाय । कोई आवे चंड़े पयाणे, दादाने दरबार हाँ हाँ दादाने दरबार, दादा आदीश्वरजी शेठ आवे हाथी घोड़े, हैं आ पाय, राजा आवे चड़े पलाणे, दादा ने दरबार कोई मुके सोना रूपा, कोई मुके म्होर, कोई मूके चपटी चोखा, दादाने दरबार. शेठ मूके सोना रूपा, राजा मूके म्होर हूँ मुकूं चपटी चोखा, दादा ने दरबार. कोई मांगे कंचन काया, कोई मांगे आंख, कोई मांगे चरणनी सेवा, दादा ने दरबार. पांगलो मांगे कंचन काया, आंवलो मांगे आंख, हूँ मांगूं चरणनी सेवा, दादाने दरबारे हीर विजय गुरु हीरलो ने वीर विजय गुण गाय, शत्रुंजयना दर्शन करता आनंद अपार, हाँ हाँ आनंद अपार दादा. २ दादा. ३ दादा. ४ दादा. ५ दादा, ६ दादा. ७ श्री आदीश्वर (शेठजी) का मंदिर यह आदीश्वरजी का मंदिर, देरासर चौक में पोस्ट आफिस के सामने है। वह शेठजी के मंदिर के रूप में जाना जाता है। १६३३ में खात एवं वि. सं. १६५१ में पू. आ. श्री विजय देव सूरीश्वरजी म. की निश्रा में इस देरासर की प्रतिष्ठा हुई है। भव्य डबल रंगमंडप वाला मंदिर है। दूसरे रंगमंडप के मंदिर में महावीर स्वामी का मंदिर है जो सेठ श्री फूलचंद परशोत्तम तंबोली ने निर्माण कराकर २००४ में पू. आ. श्री विजय रामचन्द्र सूरीश्वर महा. की निश्रा में प्रतिष्ठा कराई है। श्री चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर ऊपर हैं जो १८७० में बनवाया है। पास में नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, धर्मनाथ मंदिर है। | इस मंदिर के बगल में वीशा श्रीमाली तपागच्छ ज्ञाति (जैन पाठशाला) उपाश्रय हैं। SS BALAM PU BO Q 美又 Dipocana s Binoa 2 (193 Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-9 3Goc6666666666666DC कारियाणी मंडन शान्ति प्रभु जी वदन कोटिवार प्रभूजी वदन काटिया श्री अचिरा मातानो जायो, विश्वसेन उत्तम कुल आया। धन धन तुम अवतार, प्रभुजा, ।।१।। छप्पन दिक्कुमारी हुलरायो, चौसठ इन्द्रो ने नवरायो जन जीवन आधार,प्रभजी. ||२|| चक्री तीर्थंकर पद भोगी. राजऋद्धि त्यागी थया योगी वरवा वर शिवनार, प्रभुजी, ।।३।। तुम साथे हंप्रभुजी मलीयो, कल्पतरु मुझ आंगणे फलीयो न रहे दुःख लगार, प्रभुजी ।।४।। तुम नामे भय सघलां भागे, अन्तर आतम नी ज्योत जागे वर्ते आनंद अपार, प्रभुजी. ।।५।। श्री वर्धमान शाह देशसरजी मूलनायक श्री शान्तिनाथजी (१) श्री शान्तिनाथ जी मंदिर श्री वर्धमान शाह का मंदिर यह मंदिर सेठ श्री वर्धमान शाह पद्मशी शाह ने बनवाया वि. सं. १६७६ वै. सु. ३ बुधवार को प्रतिष्ठा करावायी है। चाँदी बाजार चौक में है। बावन जिनालयों की प्रतिष्ठा १६७८ वै. सु. ५ को अचलगच्छ के पू. आ. श्री कल्याणसागर सूरीश्वरजी म. की निश्रा में करायी हैं। मुसलमानों के आक्रमण से थोड़े समय तक मूर्तियां अपूज्य रही और फिर प्रतिष्ठा खरतरगच्छ के श्री देवचन्द्र मुनि के हाथों से सं. १७८८ श्रावण सुदी ७ को प्रतिष्ठा करायी हैं। इस मंदिर का बावन जिनालय विशाल आन्तर चौमुख जिनालयों से भव्य हैं। Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला BRINE मेरो प्रभु शान्तिनाथ सुखकार, अशरण शरण ये जगत तारण, भविजन परम आधार, मेरो. करुणारस सरस सुपरिमल, अमल कमल गुणाधार, मेरो. जन मन रंजन अंजन निर्मल केवल दृष्टि दातार, मेरो. मरण निवारण अमृत रसायण सेवा सिद्धि दातार, मेरो. सेवत जिनेन्द्र प्रभु पद लीनो तारो आ संसार, मेरो. रायशी शाह देरासरजी मूलनायक श्री शान्तिनाथजी (3) चोरी वाला मंदिर मंदिर में तोड़ा-फोड़ी हुई। तेजशीशाहकच्छ जाता रहा बाद में दूसरे वर्ष आव। श्री रायशी शाह का मंदिर सोरठ देश से नवीन प्रतिमा शान्तिनाथजी की लाकर प्रतिष्ठा करायी। तेजशी शाह के पुत्र रायशी तथा नेणशी ने अपने पिता द्वारा बनवाये इस यह मंदिर भी चांदी बाजार के चौक में है। उसको रायशी तथा तेजशी शा प्रासाद का जीर्णोद्धार कराकर चारों और बावन देरियाँ बनवाकर शिखर उपर शाह ने बनवाया है। इस कारण ही रायशी शाह का मंदिर कहलाता है। उपरा उपर तीन चौमख मंदिर बनवाये। उनके बेवाई चापशी शाह ने भी उसमें जिसमें चोरी बनवायी गयी होने से चोरी वाला मंदिर भी कहलाता है। बावन लाभ लिया। प्रतिष्ठा १६७५ में अचलगच्छ नायक श्री कल्याण सागर जिनालय ऊपर तीन माला तक जैन मंदिर है। सूरीश्वर जी म. के हस्ते करायी। पार्श्वनाथजीकी अद्भुतभव्य प्रतिमाहैं। मूल मंदिर तेजशीशाहने १६२४ हना १५२४ नेणशी शाह ने अपने पुत्र रायशी सोमशी तथा करमशी के साथ मिलकर गतीमानले में बनवाया और प्रतिष्ठा पू. आ. धर्ममूर्ति सूरीश्वर म. के पास कराया था, संभवनाथजी का चौमुखी शिखरबंद देरासर बनवाया। प्रतिष्ठा १६७६ और १६४८ में बादशाह अकबर के सूबा खान आजमें मुजफर की तरफ से सेना लाकर चढ़ाई कर हालार देश छिन्न-भिन्न किया। प्रतिमायें उसने खंडित की। Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ K इस मंदिर में प्रवेश करते ही महावीर स्वामी के आगे भाभा पार्श्वनाथ चाँदी बाजार की गली में जैन धर्मशाला है। स्वामी की भव्य प्रतिमा है। पीछे चौमुखजी तथा चोरी, सहस्र फणा देवबाग में रलियात बाई आयंबिल खाता तथा पोपटलाल धारशीभाई पार्श्वनाथ और पीछे बावन जिनालय है। पास में हरजी जैन शाला है। वहाँ जैन भोजनशाला, लक्ष्मी आश्रम, उपाश्रय, भव्य ज्ञान भंडार है। पहले चार्तुमास होते थे। दुसरी तरफ मोतीचंद हेमराज जैन धर्मशाला है। जो फुलीबाई का डेला के - इस मंदिर के पीछे चौथा श्रीवासुपूज्य स्वामी का देरासर है। प्रतिष्ठा १६९० नाम से जानी जाती हैं ।पास में ही सेठ शान्तिदास खेतशी जवेरी द्वारा बनाया में हुई है। कच्छ के आस्करण शाह ने इस मंदिर का निर्माण कराकर पीछे दीक्षा गया शान्ति भवन जैन उपाश्रय में जैन मन्दिर है । जहाँ पर श्री आदीश्वर ले ली थी ऐसा कहा जाता हैं। यह स्थान लालबाग कहलाता है। प्रभुजी की अजनशलाका प्रतिष्ठा सं. २००२ मार्गशीर्ष सुदी ४ को पू. आ. CAN जाम रणजीतसिंह ने मंदिर के आसपास जगह का अभाव और गंदगी श्री विजय रामचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज की निश्रा में हुई है। यहाँ पर उत्तम हि देखकर चारों और बडा रास्ता बनवाकर मंदिर को अलग किया। इस कारण ज्ञान भंडार है और संस्कृत पाठशाला चलती है। अब भव्य तीर्थ के ट्रॅक की तरह वह सुशोभित है। ANJALD नमा मरिहता नमा मायरिया नमा उबज्डझायाण नमोलोए सबसाहूणे एसो पंच-नमुक्कागे सव्व-पावप्पशासपणे मंगलाच सव्वेसि पठमं हबई मंगलम NO SIVE चोरीवालादेरासरजी श्रीभाभापार्श्वनाथजी Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग ५ ५ जामनगर जिला भ ॐ भुव्या सरकाय H बलरामजी की भराई हुई ८७ हजार वर्ष प्राचीन मूलनायक श्री नेमनाथ प्रभुजी (महालक्ष्मी चोक) (७७ Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ (४) नेमिनाथजीकामंदिर - पंडया फली में श्री नेमनाथजी तथा धर्मनाथजी के मंदिर हैं। नेमिनाथजी की भव्य प्रतिमा द्वारका के दरिये में से यहाँ के मोणशी शाह के नाँव को लंगर डालकर उस लंगर से नाभि में से पकड़कर इस प्रतिमाजी को निकाला प्राप्त की। मंदिर निर्माण करते गिर जाता था। अतः पू. आ. श्री धर्ममूर्ति सूरीश्वरजी म. से पूछने पर देवी के उत्तर से यह मूर्ति नेमिनाथ प्रभु के दीक्षा लेने के बाद भाई बलदेव ने यह प्रतिमा बनायी थी और अपने घर में पूजा की। गृह मन्दिर की प्रतिमाजी है इस कारण शिखर नहीं बनेगा। जीवित स्वामी नेमिनाथजी को जानकर मोणसी शाहने आचार्य म. के पास सं. १६४८ माघ सुदी ५ को इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा करायी। श्रा. सु. ५ को पूजा एवं भव्य ऑगी होती हैं । दर्शनों के वास्ते हजारो भक्तजन उमड़ पड़ते हैं। __बगल में धर्मनाथजी का मंदिर सं. १६९५ में श्री अमरशी शाह ने बनवाया है। यह मंदिर जीर्ण होते १९९० में पुनः मुहुर्त कर १९९९ वै सु. ५ को पुनः प्रतिष्ठा की हैं। ऊपर के भाग में गोड़ी पार्श्वनाथजी हैं। (७) श्री विमलनाथ जैन मंदिर ४५ दिग्विजय प्लॉट में कोतरणी युक्त भव्य तीर्थ के समान श्री विमलनाथ जी का मंदिर है। भव्य प्रवेश द्वार हैं और विशालकाय दो हाथियों के होने से हाथीवाला मंदिर भी कहलाता है। इस मंदिर की अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव हालार देशोद्धारक पू. आ. श्री विजय अमृत सूरीश्वर म. तथा पू. आ. श्री भुवनसूरीश्वरजी म. की निश्रा में हुई है। रोड ऊपर १९९२ में गृह मंदिर था उसको रूपान्तर कर श्री शाश्वत जिनका हीरालाल ब्रजलाल मंदिर बना है। उसकी अंजनशलाका प्रतिष्ठा पू. आ. श्री कैलाश सागर सूरीश्वरजी म. की निश्रा में हुई है। ४ ५ दिग्विजय प्लॉट में तथा रोड ऊपर शान्तिभवन उपाश्रय है सामने कन्या छात्रालय है। मंदिर से नवीन जेल तरफ जाते विशाल श्री कुंवरबाई नथुभाई श्वे. मू. जैन धर्मशाला हैं। मंदिर के पीछे पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सुरीश्वरजी म. के सदुपदेश से स्थापित श्रीमति जशमाबेन वीरजी तथा मेघजी तथा वेलजी वीरजी दोढ़ीया श्रुतज्ञान भवन है। जैन प्राचीन एवं नवीन साहित्य संशोधन और प्रकाशन का बहुत बड़ा केन्द्र है। यह संस्था श्री हर्ष पुष्यामृत जैन ज्ञान भंडार ट्रस्ट (लाखा बावल) चलाती हैं। यहाँ पर श्री हर्ष-पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला (लाखा बावल) श्री महावीर शासन (मासिक) श्री जैन शासन साप्ताहिक तथा शंखेश्वर का श्री हा. वी. ओ.श्वे.मू. त. जैन धर्मशाला का संचालन होता है। (५)वंडाके तीन मंदिर पंचेश्वर टॉवर के पास जीवराज रतनशी के वंडा में श्री अजितनाथजी का गृह मंदिर हैं उसकी प्रतिष्ठा १९६३ में हुई है। उसके पीछे भरवाड पा होने के मार्ग पर श्री मुनिसुव्रत स्वामी का मंदिर है। झवेरी झवेरचंद लीलाधर नाथीबाई तथा संतोकबाई ने १९५६ में इसकी नीव रखी और १९५८ में माघ वदी ५ को मुनि श्री चारित्र विजय म. की निश्रा में प्रतिष्ठा करायी। पास में अजरामर हरजी का विशाल वंडा है। वहाँ पर आदीश्वर प्रभु का मंदिर सेठ अजरामर हरजी ने सं. १९५२ में निर्माण कराया है। आगे भीड-भंजन के मार्ग पर पोपटलाल धारशी जैन विद्यार्थी भवन है। जिसमें श्री शान्तिनाथ प्रभुजी का मंदिर है। जो सं. १९७८ में बनवाया है। (६) पेलेशकामंदिर गुलाब बाग का यह मंदिर पेलेश का मंदिर कहलाता है। जिसमें मूलनायक श्री महावीर स्वामी है। इस मंदिर की अजंन शलाका प्रतिष्ठा सं. २०४३ माघ सुदी ११ को पू. आ. श्री देवेन्द्र सागर सूरीश्वर जी म. की निश्रा में हुई है। खंभालिया नाका बाहर दिग्विजय प्लॉट में विस्तार में मंदिर है। Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला 送來乘來來來來來來來來來來來臬來來來果來來來 ADDDDDDDDDDDDDDDDR दिग्विजय प्लॉट मूलनायक श्री विमलनाथजी नेत्रानंदकरी भवोदधितरी श्रेयस्तरोमंजरी श्रीमद्धर्ममहानरेन्द्र नगरी व्यापलता धूमरी, हर्षोत्कर्ष शुभ प्रभाव लहरी, राग द्विषां जित्वरी, मूर्तिः श्री जिनपुंगवस्य भवतु श्रेयस्करी देहिनाम्। किं कर्पूरमयं सुधारसमयं किं चन्द्ररोचिर्मय, किं लावण्यमयं महामणिमयं कारूण्यकेलिमयम् विश्वानंदमयं महोदयमयं शोभामयं चिन्मयम् शुक्लध्यानमयं वपुर्जिनपतेर्भूयाद् भवालाम्बनम् पूर्णानंदमयं महोदयमयं कैवल्यचिद्दृग्मयम् रूपातीतमयं स्वरूपमयं स्वाभाविकी श्रीमयम् ज्ञानोद्योतमयं कृपारसमयं स्याद्वाद विद्यालयम् श्री सिद्धाचल तीर्थराज मनिशं वंदे युगादीश्वरम् विमलस्वामिनो वाचः कतकक्षोद मोदरा:. जयन्ति त्रिजगच्चेतो जल नैर्मल्य हेतवः दिग्विजय प्लॉट श्री विमलनाथजी मन्दिर (७९ >>>>>>>>>>>>>>>>> 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८०) 米米米米 一串串串串串串串串串 0.0.0.0.0.0.0.0.0.0.0 सुमेरक्लब रोड पर ओसवाल कॉलोनी में यह भव्य तीर्थ तुल्य मंदिर पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वरजी म. के उपदेश से बना है। इसकी प्रतिष्ठा अजंनशलाका के साथ २०३८ में वैशाख सुद ३ को पू. आ. श्री विजय सोमचन्द्र सूरीश्वरजी म. तथा पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वरजी म. की निश्रा में हुई है। इस प्रसंग में वै. सु. ३ को जिनेन्द्र सूरीश्वर जी म. की आचार्य पदवी हुई हैं। मंदिर के पास उपाश्रय तथा अन्दर जाते आयंबिल भवन तथा अतिथि गृह हैं। आगे कामदार कालोनी में पू. पं. श्री वज्रसेनवि म. के उपदेश से श्री नमिनाथ जिन मंदिर व उपाश्रय बना है। आयंबिल खाता भी है। यहां से हाईवे ऊपर आगे श्री वेलजी भाई हरणीया भव्य बड़ा मंदिर बना रहे हैं। जामनगर में फुलीबाई जैन धर्मशाला (देवबाग के पास), दूसरी जैन धर्मशाला चांदी बाजार चौक में तथा तीसरी जैन धर्मशाला दिग्विजय प्लॉट न्यू जेल रोड पर हैं। देवबाग में तथा बेडी के नाके के पास इस प्रकार दो जैन भोजनालय हैं। श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 泰泰好泰 दिग्विजय प्लॉट श्री विमलनाथजी मंदिर की प्रांगण में हाथियों ऊपर श्री पाल कुमार मयणा सुन्दरी (८) श्री चन्द्रप्रभ स्वामी जैन मन्दिर AMANNER "मय તૃતીયા’ 一衆米米米米米米米米米米 Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग ५ जामनगर जिला உலக ओसवाल कालोनी श्री चन्द्रप्रभ स्वामी मंदिर सुण्या हशे पूज्या हशे, नीरख्या हशे पण को क्षणे, हे जगत बन्धु चित्तमां, धार्या नहिं भक्ति पणे, जन्म्यो प्रभु ते कारणे, दुःख पात्र आ संसार मां हा भक्ति ते फलती नथी जे भाव शून्याचार मां, तारा थी न अन्य समर्थ दीननो उद्धारनारो प्रभु, माराधीन अन्य पात्र जग मा, जोता जड़े हे विभु.. मुक्ति मंगल स्थान तो मुझने इच्छा न लक्ष्मी तणी, आपो सम्यग्रत्न श्याम जीवने तो तृप्ति थाये घणी । ओसवाल कालोनी मंदिर मूलनायक श्री चन्द्रप्रभ स्वामी → Bielefone Kolathar ( શ્રીને Bond (८१ Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ FDMROG EPALI JEET HAREL श्रीमती जशमाबेन वीरजी, शाह मेघजी तथा वेलजी वीरजी दीटीया श्रूत ज्ञान-भवन PHEO ER (१) श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ज्ञान भंडार (२) श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला (३) श्री महावीरशासन कार्यालय (४) श्री जैन शासन कार्यालय (७) श्री हालारी वीसा ओसवाल श्वेताम्बर मूर्तिपूजक तपागच्छ जैन धर्मशाला (शरवेश्वर) कार्यालय, विविध विभागों द्वारा जैन साहित्य का विश्व केन्द्र ४५ दिग्विजय प्लॉट, जामनगर 41 +Mam Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग: ५ जामनगर जिला RDDDD0001010110000011011000R ※來來來來來來來槊乘果乘槊國槊來來來來來來來 શ્રીસુપાર્શ્વનાથજી. श्री सुपार्श्वनाथजी मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी प्रतिष्ठा दो बार हुई है । ४५० वर्षो पुराना मंदिर है। उपाश्रय धर्मशाला है। व्यवस्था सेठजी मंदिर जामनगर द्वारा होती है। पास में जो प्रतिमायें १९९१ जात मूलनायक श्री आदीश्वरजी ३. २. धुंवाव CIT धुंवाव जैन मंदिर माघ सुदी १० को पं. गंभीर वि. म. के शिष्य श्री चारित्र वि. म. की निश्रा में श्री छगनलाल भाणजी तंबोली ने स्थापित की है। अलीयाबाडा (८३ अलीयाबाड़ा जैन मंदिर ·乘來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 送來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來原 Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८४) DDDDDDDDDDDDDDD मूलनायक श्री ऋषभदेवजी प्रतिष्ठा वि. सं. २००० वै. सु. ६ को पू. आ. श्री विजय रामचन्द्र सूरिजी म. की निश्रा में हुई है। 100 1919મx41 કર્યું છે welder मूलनायक श्री अनन्तनाथजी जामनगर के उमेद कालीदास जी के स्मरणार्थ उनकी पत्नि हेमकोर बन ने बनवाया है। जो अभी दीक्षित साध्वी जी हैं। पू. आ. श्री विजयदान सूरिजी म. की प्रतिमा वाली गुरु की देरी हैं। धर्मशाला उपाश्रय हैं। ४. जामवंथली श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ ५. ध्रोल जामवंथली जैन मंदिर मूलनायक श्री अनन्तनाथजी प्रतिष्ठा वि. सं. १९४९ माघ सुदि ६ वि. सं. २०१९ जीर्णोद्धार पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र म. की निश्रा में हुआ। मूलनायक के सिवाय प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजय विनयचन्द्र सू. म. की निश्रा में हुई है। मूलनायकजी श्री शान्तिनाथजी जामनगर बसने के पूर्व पहले का शिखरबन्द मंदिर है। वि. सं. १५५० में प्रतिष्ठा हुई थी। अन्तिम जीर्णोद्धार वि. सं. २०४१ वै. सु. ३ पू. हालार • केसरी आ. श्री वि. जिनेन्द्र सूरिजी म. के उपदेश मार्गदर्शन अनुसार हुआ। धर्मशाला एवं उपाश्रय हैं। DDDDDDDDDDDDDDE Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ जामनगर जिला मूलनायक श्री शान्तिनाथजी શ્રી મુનિસુવ્રત मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी ६. जोडीया धोल जैन मंदिर जोडीया जैन मंदिर (८५ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ Bed Sonali SSPPE BALANCE BAL OG O मूलनायक जी श्री मुनिसुव्रत स्वामी ऊपर के भाग में अजितनाथजी ती प्रतिमा हैं। यह जोडिया आगे के समय गृह मंदिर प्रतिष्ठा वि. सं. १९२० माघ सुदी ५ बाद शिखरबन्द जिन बढा-चढा बंदरगाह था और नगरी थी। नौका चालकों का संगम स्थान था। मंदिर बना प्रतिष्ठा वि. सं. १९६४ वै. सु. ५ संप्रति राजा के समय की प्रतिमाजी है। जामविभाजी का राज्य वि. सं. १९८५, जीर्णोद्धार वि. सं. १९६८ वै. सु. ६ (२) वि. सं. २०२५ जै. सु. ९ (१) (३) वि. सं. २०४० मा. सु. ११ आमरण जैन मंदिर मूलनायक श्री शान्तिनाथजी प्रतिष्ठा वि.सं. १९३८ ७. आमरण विशेष- कच्छ मांडवी के सेठ झवेरचंद भवानजी ने उनकी पत्नि लाडकोर बाई के स्मरणार्थं यहाँ का मंदिर बनवाया है। जीर्णोद्धार वि. सं. શ્રીમદુધિયૉક સંદર વિદ્યાપનપ્રસંગે वाणानान्वषन ચંદ અફીણીત मूलनायक श्री शान्तिनाथजी १९७३ माघ सुदि ७ प्राचीन धर्मशाला है। २०४१ में उपाश्रय बना है। CARD DIALUNG BALAS NCO CiaJo + Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग ५ ५ जामनगर जिला 辘辘辘辘 श ८. मोटा वडाला (देरावाला वडाला ) 981830 स्वामा मूलनायक श्री चन्द्रप्रभु जी प्रतिमाजी ७०० वर्ष प्राचीन है। धोराजी से यहाँ आयी है। प्रतिष्ठा १९२१ माघ सुदि ७ गुरुवार श्री चारित्र वि. म. की निश्रा में हुई है। १०० वर्ष पूर्व का मंदिर है। संवत २०३२ में जीर्णोद्धार मनसुखलाल धनी वोरा के प्रयत्न से हुआ है। यहाँ पर जैनों के घर ४० थे । वर्तमान में ५ घर हैं । कालवड से १५ कि.मी. है। राजकोट कालावड हाईवे ऊपर ५ कि.मी. अन्दर है। શ્રી लुठन्तो नमतां मूर्ध्नि निर्मलीकार कारणम्, वारिप्लवा इव नमः, पान्तु पाद नखांशवः मोटा वडाला जैन देरासरणी तुभ्यं नमस्त्रिभुवनार्ति- हराय नाथ!, तुभ्यं नमः क्षितितलामल भूषणाय, तुभ्यं नमः त्रिजगतः परमेश्वराय तुभ्यं नमो जिन ! भवोदधि शोषणाम ९. कालावड (शीतला) दर्शनं देवदेवस्व दर्शनं पापनाशनम् दर्शनं स्वर्ग सोपानं दर्शनं मोक्षसाधनम् अन्यथा शरणं नास्ति, त्वमेव शरणं मम। तस्मात् कारुण्यभावेन, रक्ष रक्ष जिनेश्वर ! मूलनायक जी श्री नमिनाथ जी घर मंदिर वि.सं. २०३३ अ. सु. ३ शिखरबंदी वि.सं. २०४० माघवदी १० उपदेशक - गच्छाधिपति पू. आ. श्री कैलाश सागर सू. म. सा. तथा पू. आ. श्री विजय प्रभाकर सूरिजी म. । प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजय विनयचन्द्र सू.म. की निश्रा में हुई है। जामनगर जूनागढ़ हाईवे ऊपर हैं । (८७) Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (c) GAM मूलनायक श्री नेमिनाथ जी १०. मोटी भलसाण तीर्थ मोटी भलसाण तीर्थ जैन मंदिर श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग - १ कालावड जैन मंदिर Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला मूलनायक श्री सप्तफणा पार्श्वनाथजी जामनगर बसा उसके पहले का प्राचीन मंदिर हैं । जीर्णोद्धार (१) वि. सं. १८४७ (२) वि.सं.१९७३ (३) वि. सं. २०४८. जामनगर जिले में सबसे प्राचीन है। यह मंदिर वि. सं. १५०० में बना है। अन्तिम जीर्णोद्धार श्रीमती चन्द्रावती बालुभाई खीमचंद जवेरी ट्रस्ट रत्नपुरी मलाड की ओर से पू. आ. श्री वि. जिनेन्द्र रिजी म. के उपदेश से हुआ। २०४८ मार्गशीर्ष वदी ५ को ध्वजा दण्ड की प्रतिष्ठा हुई है। SANLauch યુ છે. મુખેદુ તમેપ્સ નાથ नियल होई. 154545HR: CHAR Halfa.. મહંસ યં ચક તોnikીસા ની MAHILA MEAN EMAR SlangICA देखी मूर्ति श्री पार्श्व जिननी नेत्र मारा ठरे छे. ने हैयु मारुं फरी फरी प्रभु ध्यान तारुं धरे छे, आत्मा मारो प्रभु तुझ कने, आववा उल्लसे छे, आपो एवु बल हृदय मां, माहरी आश एछे। मूलनायक जी श्री सप्तफणा पार्श्वनाथजी ११. चेला चेला जैन मन्दिर मूलनायक श्री अजितनाथजी Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भांग-१ सं मूलनायक श्री अजितनाथ भगवान प्रतिष्ठा - वि.सं. १९५२ माघसुद ५ विशेष - यहाँ पर पार्वतीबेन नामक श्राविका ने मंदिर बनवाया था, उसमें पहली प्रतिष्ठा के समय मूलनायक जिस स्थान पर थे, वहाँ उनको स्थायी रखकर दश वर्ष पूर्व मंदिर में बहुत सारा सुधार करवाया। २०३६ वैशाख सुदी १३ को दूसरे भगवन्तों की भी प्रतिष्ठा पू. आ. जिनेन्द्रसूरिजी महाराज की निश्रा में करवायी है। दो उपाश्रय वि. है। जामनगर से १३ कि.मी. है। जामनगर भाणवड हाईवे उपर गाँव हैं। शताब्दि महोत्सव बडे ठाठ से उजवाया है। समीप में चंगा प्राचीन हरिपर आरीखाणा खीरसरां में मंदिर है। और दर्शन करने योग्य है। अर्हन्त-मजितं विश्व कमलाकर भास्करम् आम्लान केवलाऽदर्श संक्रान्त जगतं स्तुवे १२. डबासंग puru - DID डबासंग जैन मन्दिर ઉપૂમિ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी मारुं न कोई विश्व मां मारा छो भगवान हछु प्रभुजी आपनो राखो मारी शान, स्वारथना सहुछे सगा निस्वारथ भगवान, लइलो मुझने शरणमां भक्ति करुं एकतान पतित ने पावन करो शरणागत प्रतिपाल, आ सेवक नी अरजी सुणो, कापो कर्म जंजाल, ज्यां सुधी तनमा प्राण छे, तारुं शरणु अरिहंत शासन तारुं शरण हो, भवोभव हे अरिहंत.... * मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान शिखरबन्द मंदिर है। प्रतिष्ठा वि. सं. १९६१ माघ सुदी-५ जीर्णोद्धार वि. सं. २०२३ में हुआ है। जामनगर-भाणवड रोड पर लालपर से १० कि.मी. है। जामनगर-पोरबन्दर ट्रेन यहाँ से निकलती हैं। पास में मच्छु बेराजा मंदिर है। AN Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला 00 १३. शेतालुंश शेतालुश जैन मंदिर मूलनायक जी श्री आदीश्वरजी. प्रतिष्ठा वि. सं. २०३८ जेठ सुदी ४ के दिन पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सूरिजी म.की निश्रा में हुई है। उनके उपदेश से मंदिर बना हैं । कानालुं जंक्शन से २ कि.मी. दूर है। वाया-जामनगर पास में नवागाम, डबासंग, मच्छु बेराजा मंदिर हैं। मूलनायक श्री आदीश्वरजी १४. लालपुर શ્રીધર્મનાથ પ્રભુજી. मूलनायक श्री धर्मनाथजी लालपुर जैन मंदिर (00 Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ - - सेठ रायशी वर्धमान पेढ़ी जामनगर इस मंदिर की व्यवस्था करती है। जामनगर भाणवड रोड पर तालुका का गाँव है। ४० कि.मी. है। ९२) - - - मूलनायक जी श्री धर्मनाथ भगवान प्रतिष्ठा - वि. सं. १९६० मार्गशीर्ष सुदी-६ विशेष - जामनगर के ओसवाल झवेरी मूलचंद हेमराज की विधवा एवं लालपुर के रहीश (१) शाह कचरा हेमशी की सुपुत्री मोंघीबेन ने यह शिखरबन्द मंदिर बनवाया है। (२) जिनबिंबऊना से लाये हैं। जो संप्रति राजा के समय के हैं। उनका बिंब प्रवेश वि. सं. १९५८ मा. सु. १० (३) निश्रामुनि श्री चारित्र विजयजी म. सा. मोंधीबेन के वरद हस्त से प्रतिष्ठा हुई। sussusus Q0QtQ १५. जाम भाणवड nત્રીપાર્શ્વનાથજી जाम भाणवड धर्मनाथजी जैन मंदिर मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी (१) मूलनायक जी श्री शान्तिनाथजी संप्रति राजा के समय की प्राचीन प्रतिमाजी है। प्रतिष्ठा की साल लेख में नहीं है। जीर्णोद्धार वि. सं. २००६ तथा २०४८ का लेख हैं। २००६ हालार देशोद्धारक पू. आ. श्री विजय अमृत सूरिजी म. की निश्रा में शिखर में प्रतिष्ठा करायी है। यहाँ के प्रभु पार्श्वनाथ अत्यन्त प्रभावशील है। चांपसी सेठ ने यह प्रासाद निर्माण कराया। पू. आ. जिनराजसूरि के द्वारा सं. १६६२ फा.सु.२ के दिन अमीझरा पार्श्वनाथ प्रभु शाह धारसी राजसी द्वारा प्रस्थापित की गयी उस समय ८० जिनबिम्बों की प्रतिष्ठा हुई थी। . इस तीर्थ के प्रतिष्ठापक श्री जिनराज सूरिरचित श्री अमीझरा पार्श्वनाथ स्तवन में गुणगान हैं कि, 'परखि पास अमीझरई भेरीओजी, भवियण भावेरे, रात दिवस अमृत झरे तिण साचो नाम कहावे रे,'. सं. १९५१ में शा. रवजी कचरा तथा आणन्दजी नथुभाई ने जीर्णोद्धार कराया। (२) मूलनायकजी- श्री पार्श्वनाथजी इतिहास - जाम भाणवड प्राचीन ग्रन्थों में भानुवड गाँव वैभव पूर्ण 100 नगरी थी। 200-20200 Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला 來來來來喚个奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥縣 विशेष - इस मंदिर के पिछले भाग में श्री मोहनलालजी महाराज के देरी के चरण चिन्ह हैं । जो पूर्व में खरतर गच्छीय थे उसके बाद तपागच्छीय बन गये। बम्बई का प्रथम शासनोद्धार वि. सं. १९३०-३५ इस प्रकार लेख है। प्रभुजी के अनेक स्तवन खरतर गच्छीय पट्टावली एवं १६८९ में मुनि श्री गुण विजयजी रचित १०८ पार्श्वनाथ स्तवन में हैं। भाणवड रेल्वे स्टेशन से २ कि.मी.। बस के रास्ते पोरबंदर जामनगर से जुडा हुआ है। १६. जाम खंभालीया जाम खंभालीया जैन मंदिर मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी (श्याम वर्ण) त्रिशिखरी मंदिर प्रतिष्ठा वि. सं. १८५१ आसोज सुदी - १० ४५० वर्ष पुराना मंदिर है। सिर्फ जीर्णोद्धार की जानकारी प्राप्त हुई हैं। जो नीचे लिखे अनुसार है। वि. सं. १९५४ में पू. बुद्धि विजयजी गणि के शिष्य पं. श्री आनंद वि, म. के उपदेश से (१) वि. सं. १९५१ (२) वि. सं. २०२३ वै.व. १(३) वि. सं. २०२५ वै. सु. १२ नवीन जिनबिम्बों के साथ दोनों तरफ मंदिर का विस्तार किया हैं। सेठ जेठालाल लक्ष्मीचंद ने परिश्रम करके अन्तिम दो जीर्णोद्धार करवाये हैं। पू. आ. श्री. जिनेन्द्र सूरि जी महा. की निश्रा में प्रतिष्ठा कराई है। जिन मंदिर में प्रवेश करते ओसरी के दोनों साइड के गोखलों में एक तरफ पू. आ. श्री वि. कर्पूर सूरिजी म. की दूसरी तरफ पू. आ. श्री वि. अमृतसूरिजी म. सा. की तिमा जी विराजमान हैं। मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी D000 Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ -४५० वर्ष पूर्व दूसरी जगह जिन मंदिर तैयार हुआ था। वहाँ पर महादेव का वरघोड़ा-रथ निकला रथ रूक गया प्रतिमाजी चली नहीं। उन्होंने जैन संघ को यहाँ का मंदिर प्रदान कर वह मंदिर लिया और वहाँ पर उन्होंने प्रतिमाजी स्थापित की। और उनके इस मंदिर में श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा हुई वैसा इतिहास है। जामरावल की जामनगर बसने के पूर्व यह राजधानी थी। जामनगर ओखा रेल्वे हाईवे ऊपर जामनगर से ५७ कि.मी. है। द्वारका के पास आरभंडा गांव में मंदिर है। VRENT श्री स्टेशन रोड जैन मंदिर मूलनायक श्री आदीश्वरजी स्टेशन रोड जैन मंदिर पू. आ. कुन्दकुन्द सू. म. स्मारक स्थल जामखंभालियास्टेशन मूलनायक जी ऋषभदेवजी श्री मद् विजय कुन्द कुन्द सूरिजी की स्मृति मंदिर और नूतन मंदिर बना हैं। मूलनायक ऋषभदेव विराजमान हैं। प्रतिष्ठा पू. पं. श्री पुंडरीक विजयजी म. की निश्रा में २०४७ माघसुद ११ शनिवार को हुई है। हालार रत्न पू. आ. श्री विजय कुन्द कुन्द सूरिजी म. की यह स्वर्ग भूमि है। गुरु मूर्ति की प्रतिष्ठा की है। स्टेशन पास में है। बगल में हा.वी.ओ. महाजनवाड़ी है। सकलाऽर्हत् प्रतिष्ठान मधिष्ठानं शिवश्रियः भुर्भुवः स्व स्त्रयीशान-मार्हन्त्यं प्रणिदध्महे। नामाऽकृति द्रव्य भावैः पुनतस्त्रि जगज्जनम् । क्षेत्रे काले च सर्वस्मिन्नर्हतः समुपास्महे आदिमं पृथिवीनाथ मादिमं निष्परिग्रहम् आदिमं तीर्थनाथं च, ऋषभ स्वामिनं स्तुमः Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (९५ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला 勾勾勾引勾勾勾勾勾国国国可可可可可可因 पू. आ. श्री विजय कुन्द कुन्द सू. म. गुरु मूर्ति पू. आ. श्री कुन्द कुन्द सू. म. समाधि मंदिर 四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四 १७. नवं हरिपर नवं हरिपर जैन मंदिर मूलनायक श्री आदीश्वरजी पूर्णानंदमयं महोदयमयं, कैवल्यचिदृग्मयं ; रूपातीत मयं स्वरूपमरणं स्वाभाविकी श्रीमयं; ज्ञानोद्योतमयं कृपारसमयं स्याद्धाद विद्यालयं ; श्री सिद्धाचल तीर्थराज मनिशं वन्दे युगादीश्वरम् । मूलनायकजी श्री आदीश्वरजी प्रतिष्ठा - वि.सं. २०२४ वै. सु.७ को पू. पं. श्री राजेन्द्र वि. म. तथा पू. पं. श्री जिनेन्द्र वि. म. की निश्रा में हुई हैं। यहाँ पर पू. पं. श्री भद्रंकर विजयजी म. की निश्रा में उपद्यान हुआ तथा उन श्री के उपदेश से इस जिन मंदिर का निर्माण हआ है। जामखंभालीया से जामसलाया रोड पर ५ कि.मी. दूर है। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १८. गोइंज गोईंज जैन मंदिर શ્રી નલિયા નાથ -मूलनायक श्री नेमिनाथजी जामनगर में दिग्विजय प्लोट में पू. आ. श्री विजयअमृत सू. म. से प्रतिमाजी वि. सं. २०१४ मा. सु. ६ के रोज अंजनशलाका कराकर पू. आ. श्री विजय कुन्द कुन्द सूरिजी म. की निश्रा में २०१४ वै. सु. ६ को प्रतिष्ठा करायी है। इस मंदिर को शेठ उत्तमचंद नथूभाई ने बनवाकर प्रतिष्ठा करवाई है। घी टी के सामने कांटे हालारी वीसा ओसवास का यह एक और अन्तिम गाँव है। जाम सलाया से ८ कि.मी. दूर है। १९. नाना मांढा नानामांढ़ा जैन मंदिर -मूलनायक श्री सुविधिनाथजी Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला POTOS मूलनायक श्री सुविधिनाथजी वि. सं. २००३ मगशिर सुदी ७ को प्रतिष्ठा हुई थी। २०३६ में शिखरबन्द मंदिर का निर्माण हुआ। आराधना धाम से ६ कि.मी. है। पास में मोटा आंबला में मंदिर है। २०. मोटा मांढा मोटामाँढा जैन मंदिर શ્રીવાસુપુજા 4 ફેઇટ मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी मूलनायकजी श्री वासुपूज्य स्वामी प्रतिष्ठा वि. सं. २०१९ वै. सु. ३ को अध्यात्म योगी पू. पं. श्री भद्रंकर विजयजी म. की निश्रा में हुई है। उपाश्रय २०११ में बना है। ___आराधना धाम तथा दांता से समीप है। इस गाँव में ४०० वर्ष पूर्व भव्य कारीगिरि वाला मंदिर बनाथाजोखंडित अवस्था में गांव बाहर है और उसमें शिवलिंग है। कहा जाता है कि सेठ वर्धमान शाह द्वारका बरात लेकर जा रहा था रात रहा वहाँ-वहाँ रास्ते में यहाँ तथा छीकारी तथा राण में बनवाये थे। ४०० वर्ष पुराना जैन मंदिर SHEOHA THA Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-2 २१. दांता મહાવી-ગામી मूलनायक श्री महावीर स्वामी दांता जैन मंदिर मूलनायकजी - श्री महावीर स्वामी प्रतिष्ठा - वि. सं. २००१ मगशिर बदी ११ को प्रतिष्ठा हुई है। प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजय मुक्तिचन्द्रसागरजी म. आदि की निश्रा में हुई थी। जीर्णोद्धार वि. सं. २०२२ में सेठ शामतभाई ने उत्साह से कराया है। यहाँ आयंबिल शाला है। २२. आराधना धाम - हालार तीर्थ ( वडालीआ सिंहण) जामनगर - जामखंभालीआ के हाइवे रोड पर यहाँ नवीन तीर्थधाम आराधना धाम सेठ नागपाल रायमल परिवार की ओर से भाई था' बना है। मूलनायक जी श्री महावीर स्वामी है। ९८ फुट ऊंचाई का शिखर है। वाघजी नागपाल भाई ने परिश्रम एवं उदारता से बनवाया है। ___पू. आ. श्री विजय प्रद्योतन सू. म. पू. आ. श्री विजयजिनेन्द्र सू. म.पू. जामनगर द्वारका हाईवे रोड पर वडालीया सिंहण के बगल में हालार आ. श्री विजय प्रभाकर सू. म. पू. पं. श्री वज्रसेन वि. म. की निश्रा में वि. तीर्थ मंदिर है। सं. २०४९ महा सुद १३ के दिन अंजनशलाका प्रतिष्ठा हुई है। विशाल संयोजक - शाह लालजी नांगपार रायमल चेरीटेबल ट्रस्ट समर्पण निधि। उपाश्रय, अतिथिगृह, आराधना भवन, भोजनशाला वि. की व्यवस्था है। पू. मुनिराज श्री महासेन विजयजी म. का यहाँ पर स्वर्गवास हुआ। उनका समाधि मंदिर है। Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला 0000mm आराधना धाम - हालार तीर्थ मूलनायक श्री महावीर स्वामी Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १००) आराधनाधाममहावीरस्वामीजैन मंदिर श्री महावीर स्वामी मंदिर में नक्काशी Sdke...MAC मूलनायक श्री महावीर स्वामी - अंजनपूर्व के a Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला (१०५ आराधना धाम जैन उपाश्रय पू. मु. श्री महासेन विजयजी म. समाधि मंदिर RADHANA PHAN आराधना धाम प्रवेश द्वार २३. वडालीआ सिंहण मूलनायकजी श्री संभवनाथ जी प्रतिष्ठा - वि.सं. २०४३ जेठ सुदी २ को पू. आ. श्री विजय प्रद्योतन सूरिजी म. की निश्रा में हुई है। HEREKAAMAARRRRRRRRRRRE Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ वडालिया सिंहण जैन मंदिर * श्रीसंभवनाथ भावान मूलनायक श्री संभवनाथजी २४. काकाभाइ सिंहण काकाभाई सिंहण जैन मंदिर मूलनायक श्री नमिनाथजी मूलनायक जी श्री नमिनाथजी यह मंदिर शाह गोविन्दजी मेघजी शाह प्रेमचंद गोविन्दजी हस्ते श्रीमती कान्ताबेन तथा उनके परिवार की ओर से बनवाया है। उन्होंने प्रतिमा भराई । प्रतिष्ठा २०४३ पोषवद १ को उपदेशक पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सूरिजी म.सा. की निश्रा में करवायी है। गाँव से रेल्वे स्टेशन २ कि.मी. दूर है। Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला (१०३ २५. रासंगपुर रासंगपुर जैन मंदिर मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी मूलनायकजी श्री सुपार्श्वनाथजी यह शिखरबंद मंदिर हालार देशोद्धारक पू. आ. श्री विजय अमृतसूरिजी म. के उपदेश से बना है। प्रतिष्ठा वि. सं. २००९ जेठ सुद १० को उनकी निश्रा में हुई है। गोखरु में पू. तपोरत्न आ. श्री विजयकर्पूर सूरिजी म. की गुरुमूर्ति हैं। समीप में मोटा लखीया मंदिर है। तथा मोडपुर तीर्थ ६ कि.मी. दूर है। २६. मोडपुर तीर्थ मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी मोडपुर तीर्थ जैन मंदिर Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 柬噢噢噢噢噢噢噢噢噢噢噢噢噢柬喚來來來來來源 व्यवस्था - जामनगर श्री विमलनाथ जैन मंदिर पेढ़ी के द्वारा होती है। मोड पर स्टेशन से १ किलोमीटर है। समीप में दलतुंगी तथा रंगपुर में सुन्दर मंदिर है। लखीया मंदिर समीप में है। मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी ४०० वर्ष पूर्व का मंदिर हैं। जीर्णोद्धार - अचल गच्छ मुनिराज श्री गौतम सागर म. सा. के सदुपदेश से शाह वर्धमान अमरसिंह सेठ ने इस जिनालय में सुमतिनाथ प्रभु की प्रतिमा वि. सं. १९९२ में वै. सु. ७ को विराजित करके जीर्णोद्धार करवाया हैं। २०३६ में पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सू. म. के उपदेश से डबासंग जैन संघ ने जीर्णोद्धार का लाभ लिया हैं। २७. पडाणा JOICE aacpepe24 पडाणा जैन मंदिर मूलनायक श्री संभवनाथजी मूलनायक श्री संभवनाथजी हालार में सर्वप्रथम अंजनशलाका यहाँ पर हुई उसके साथ ही प्रतिष्ठा हुई, प्रतिष्ठा वि. सं. २०१३ जेठ सुद ३ को पू. आ. श्री अमृतसूरिजी म. तथा पू. आ. श्री विजय भुवन सूरिजी म. की निश्रा में हुई है। हाईवे रोड़ से २ कि.मी. अंदर है। गाँव तक सड़क है। पास में ही रासंगपर नवागाम वि. मंदिर है। महाजन वाडी की व्यवस्था है। अद्य मे सफलं-जन्म अद्य मे सफला क्रिया, शुभोदयो दिनोऽस्माकं जिनेन्द्र तव दर्शनात् । पाताले यानि बिंबानि यानि बिंबानि भूतले, स्वर्गेपि यानि बिंबानि तानि वंदे निरन्तरम्। . सरस शान्ति सुधारस सागर, शुचितरं गुणरत्न महागर, भविक पंकज बोध दिवाकर प्रतिदिनं प्रणमामि जिनेश्वरं। DDDDDDDDDDDDDDDDDEOS Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला (१०१ 40 0 २८. गागवा गागवा जैन मंदिर मूलनायकजी - श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी । प्रतिष्ठा - वि.सं. २०३८ वै. व. ११ पू. आ. श्री वि.जिनेन्द्र सूरिजी म. की निश्रा में हुई है। सीका मुंगणी मंदिर समीप में हैं। मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी २९. मुंगणी A मुंगणी जैन मंदिर मूलनायक - श्री वासुपूज्य स्वामी प्रतिष्ठा - वि. सं. २०४० वै. सु. ७ पू. मुनिराज श्री महासेन विजय जी म. की निश्रा में हुई है। सीका से ३ कि.मी. है। मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी की AN Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ३०. सीका मूलनायक श्री सुमतिनाथजी सीका जैन मंदिर मूलनायक जी श्री सुमतिनाथजी यह शिखर बन्द मंदिर शाह मणिलाल धरमशी संघवी ने बनवाया है। प्रतिष्ठा वि.सं. २०२८ मिगशिर सुदी ६ को पू. पं श्री चन्द्रशेखर विजयजी म. की निश्रा में हुई है। जामनगर से बस आती है। ३१. वसई मूलनायक श्री संभवनाथजी प्रतिष्ठा - वि. सं. २०३३ वैसाख सुदी १० को पू. आ. श्री विजय । जयन्त शेखर सूरीश्वरजी म. आदि तथा पू. मु. श्री महासेन विजयजी म. | आदि की निश्रा में हुई है। गाँव हाईवो उपर है । गाँव की पश्चिम दिशा में खुदाई का काम करते | समय जिन मंदिर तथा खंडित प्रतिमाजी निकली। वहाँ पर वसन्तपुर गाँव था। उसका उल्लेख विवरण मिलता है। वसई जैन मंदिर d a Holi Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला (१०७ संभव संभव.२ संभव जिनवर विनति, अवधारों गुण ज्ञातारे, खामी नहीं मुज खीजमते, कदिय होशो फल दातारे। करजोडी उभो रहुं, रात दिवस तुम ध्याने रे, जो मनमा आणो नहि, तोशुकही थाने रे।। खोट खजाने को नहीं, दीजीये वांछित दानोरे, करुणा नजर प्रभुजी तणी, वाधे सेवक वानोरे । काललब्धि मुज मति गणो, भावलब्धि तुम हाथे रे, लडथडतुं पण गजबचुं, गाजे गयवर साधेरे । देशो तो तुम ही भला बीजा तो नवि जाचुं रे, वाचक जस कहे सांई शुं,फल से ओ मुज साचुरे। संभव.३ संभव,४ संभव.. RNVITA मजयहि मूलनायक श्री संभवनाथजी ३२. मोटी खावडी Halchalodido.com deaa000 0000000 THH मोटी खावड़ी जैन मंदिर Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ० ०. मूलनायक जी श्री चन्द्रप्रभस्वामी शिखर बन्द मंदिर हैं। बगल में घर मंदिर हैं। उसमें लिखे अनुसार वि.सं. १९३२ में बनाया है। प्रतिष्ठा वि.सं. १९३४ जीर्णोद्धार- वि.सं.२०२२ जेठ सुद २ यहाँ पर कच्छी दशा ओसवाल रहते हैं। यह श्री श्वे.मू. अचलगच्छ जी जैन संघ का मंदिर हैं। जामनगर खभालीया हाईवे ऊपर ही मंदिर हैं। पास में घर मंदिर १९३२में हुआ। १९३४ में उसकी प्रतिष्ठा पू.मुं. श्री महोदय सागरजी म. की निश्रा में हुई है। 866666 चन्द्रप्रभ प्रभोश्चन्द्र मरीचि निचयोज्जवला मूर्तिर्मूर्त सित ध्यान निर्मितेव श्रियेऽस्तु वः. मूलनायक श्री चंद्रप्रभस्वामी TAYAh ३३. नवागाम - जैनपुरी मूलनायक श्री चन्द्रप्रभुजी नवागाम जैन मंदिर Joo Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ५ - जामनगर जिला (CUR मूलनायक श्री चंद्रप्रभस्वामी प्रतिष्ठा वि.सं. १९७६ वैशाख सुद-७ को अचलगच्छ के मुनिमंडल अग्रेसर श्री गौतम सागरजी म. की निश्रा में हुई है। २०१३ अषाढ़ सुद में जीर्णोद्धार हुआ। पादर में बड़ी महाजनवाडी आंबेलशाला वि.हैं। पीपली स्टेशन ४ कि.मी.है। हाइवे पर बेड पास से ६कि.मी. नवागाम बसमार्ग है। इस गाँव में जैनों की ही बस्ती है। और उनका उत्साहदेखकरपू.आ. विजय अमृत सूरीजी म. 'जैनपुरी' कहते थे वह प्रभाव छाप दृढ़ हो गई। ३४. रावलसर 30000 म.पू. स Wલી નિવારણ Xx0 Bolers 02- 2NDRIOR ForPAHM403094ticiety रावलसर जैन मंदिर श्रीम मूलनायक श्री शान्तिनाथजी मूलनायक श्री शान्तिनाथजी इस मंदिर की प्रतिष्ठा वि.सं. २०३२ फाल्गुन सुदी ३ को पू.पं. श्री अभय सागर जी म. की निश्रा में हुई है। जामनगर खंभालीया हाईवे से १ मील अन्दर है। यहाँ से २ मील लाबाबावल, दो मील वसई तथा नाधेडी है। सुधासोदर वाग्ज्योत्स्ना निर्मलीकृत दिमुखः; मृगलक्ष्मा तमः शान्त्य, शान्तिनाथः जिनोऽस्तु वः, ३५. लाखाबावल - शांतिपुरी मूलनायकजी श्री शान्तिनाथजी विशेष- आ.श्री विजय जिनेन्द्र सूरिजी म. तथा मुनिराज श्री योगेन्द्र प्रतिष्ठा- वि. सं. २०११ जेठ सुदी २ को पू. हालार देशोद्धारक पू. आ. विजय म. की जन्मभूमि कर्मभूमि से गौरवशाली गाँव है। आयंबिल भवन, Jश्री विजय अमृत सूरिजी म. तथा पू.आ. श्री विजय भुवनसूरिजी म. की धर्मशाला हैं। १ निश्रा हुई है। सुन्दर उपाश्रय, ज्ञानभंडार है। महावीर शासन, जैन शासन जामनगर से द्वारिका रेल्वे लाइन ऊपर प्रथम स्टेशन है। हाइवे से २ प्रकट होते है। कि.मी.है पक्का रोड है। पास में कनसुमरा, नाधेडी, रावलसर मंदिर है। श्री हर्ष पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला द्वारा ३२५ से ऊपर ग्रन्थों का प्रकाशन हुआ है 66666666666666 Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ . ११०) * * E ETORIES ESH श्री हर्ष पुष्पामृत ज्ञान भंडार श्री हर्षपुष्यामृत जैन ग्रन्थमाला - કી શાંતિનાથ સ્વામી मूलनायक श्री शान्तिनाथजी Breap Rat NaIMIGIR- श्री लाखाबावल -शान्तिपुरी जैन मंदिर उपाश्रय ITORIC Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग ५ - जामनगर जिला NO Liso 2 Acoa मूलनायक - श्री मुनिसुव्रत स्वामी ३६. नाघेडी मूलनायक जी श्री मुनिसुव्रत स्वामी सुखकंद अमंद आणन्द, परम गुरु दीपतो, सुखकन्द रे, निशदिन सूतां जागतां, हईडा थी न रहे दूर रे, जब उपकार संभारीये तव उपजे आनंद पूर रे । तव ॥ जगत. सुख. ॥ २ ॥ 【文學 प्रतिष्ठा- वि.सं. २०३५ पोष वद- ११ पू. आ. श्री वि. जिनेन्द्र सूरिजी म. की निश्रा में हुई है। गोधले में पू. आ. श्री वि. अमृतसूरिजी म. की प्रतिमा है। जामनगर खंभालीया हाईवे से १ कि.मी. गाँव हैं। जामनगर ४ मील है। नाथेड़ी जैन मंदिर मुनिसुव्रत जिन बंदता, अति उल्लसित तन मन थाय रे, चंदन अनोपम निरखतां, मारां भव भवना दुःख जाय रे ॥ १ ॥ मारा भव भव नां दुःख जाये, जगत गुरु जागतो सुख कन्दरे, (ए आंकणी) फ्री फ्री फ्री फ्री फ्री फ्री फ्री फ्रम जुम हम फ्री फ्री फ्र DO प्रभु उपकार गुण भर्या, मन अवगुण एक न मायरे, गुण गुणानुबंधी हुआ, ते तो अक्षयभाव कहायरे ॥ ते ॥ जगत. ॥ सुख ॥ ३ ॥ अक्षम दद दीये प्रेमजे, प्रभुनुं ने अनुभव रूपरे, अक्षय स्वर गोचर नहि, ओ तो सकल अभाव अरूपरे । अ तो ॥ जगत | सुख ॥ ४ ॥ अक्षर थोड़ा गुण घणा, सज्जनता तन लिखाय रे, वाचक यश कहे प्रेम धी, पण मन मांहे परमादरे ॥ पण. ॥ जगत. ॥ सुख ।। ५ । 國文學 2008 (999 Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ३७. आरंभडा मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी मूलनायक प्रभुजी के दायी तरफ श्री शंखेश्वरापार्श्वनाथ बायीतरफ श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ आरंभडा वासुपूज्य स्वामी जैन मंदिर मूलनायक जी श्री वासुपूज्य स्वामी वि.सं. १९९७ में पू.आ. श्री विजय भक्ति सूरि म. की निश्रा में प्रतिष्ठा हुई है। पू.आ. विजय विनय चन्द्र सू.म.की यह जन्म भूमि हैं। प्राचीन द्वारिका तीर्थ आरंभडा गाँव के पास है। यहाँ से मीठापुर के पास वसई गाँव में प्राचीन बावन जिनालय खंडित है। श्री नेमिनाथ प्रभुजी के नाम से प्रसिद्ध श्रीकृष्ण वासुदेव की यह राजधानी थी- यहाँ पर द्वारिका तीर्थ का उद्धार करवाने की बहुत से जनों की भावना है। यहाँ के लोग मीठापुर रहते है। मे.नगीनदास वेलजी गांधी, मेन बाजार मीठापुर (ओखामंडल) जि. जामनगर शरणुं तमारु भवोभव हुं तो, त्रिकरण योगे याचुं छु। आज्ञा तुमारी शिरधारीने, पाय तुमारे लागुं छु, कर्मो ने हणवा भवाब्धि तरवा,आलंबन तुझ चाहुं छु। ने सुशील शिव सुन्दरी ने वरवा, अनुपम शक्ति मांगु छु। मूरति अलौकिक निरखी ताहरी, नयन युगल मुज अति ठरे, अमृत जेवी वाणी तारी, सुणीने मा चित्त ठरे, राज लेवाने हुं शिव नगरीनु, आव्यो छु हु अही कने, कृपा करीजे हे वीतरागी, द्यो प्रभुजी द्यो मने कृपा Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महेसाणा जील्ला पाटण की ओर शंखलपुर महेसाणा की ओर शंखेश्वरतीर्थ 143 स्कल कीमी द० १५ २०३५ . मांडलरामव . क च्छ जी ल्ला h +पाटडी विरमगाम बजाणा कुंडा उपरीयाणा एतिर्थ अहमदावाद yV की आर खेरवा / दा हणव " धांगा चराडवा 37 शाहपुर बा वद स र न्द्रनगर 18/ लखतर 57/ 1/.मोरखा 19 तावी. 125 22 नासुरेद्धनगर /] ढ़वाण । " शियाणी तीर्थ मुली लीबड़ी _._43 बगोदरा • वांकानेर डोलीयाती। सायला चोटील सुदामडा --धंधुका राणपुर 34) 1 राजकोट की ओर / पण भाव पालियाद बोटाद की ओर विनगर । बोटादकी ओर / जील्ला कमलापुर, जसदण की ओर Page #145 --------------------------------------------------------------------------  Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ६ - सुरेन्द्रनगर जिला (११३ WEBSTER महेसाणा जील्ला पाटण की ओर शखलपुर 11महेसाणा की ओर बडगाम नावाद ____च्छ जी ल्ला विरमगाम प्राणिया उपरीयाणा(निर्व अहमदावाद को ओर 27 चराइवा. जातपुर वा लखतरण सरोवर (सरा जी (नावी अमरनगर 14वलवाण शियाणी तीर्थ मानगड पीलीबही डोलीयाती सायला चाटील Aचुडा र सुदामडा वामणवोर धुका राणपुर बोटाद की ओर भावनगर वोटादकी ओर मालियाई राजकाटकी ओर जील्ला 333333888888888888888888888888888888888888888 कमलापुर/ जमदण की ओर ११४ गाम सुरेन्द्रनगर वढ़वाण शहर शियाणी तीर्थ लीबड़ी सुरेन्द्रनगर जिला पेज नं. | क्रम गाम ध्रांगध्रा ११७ हलवद ११९ बजाणा उपरीयालाजी तीर्थ १२० पाटडी १२१ जैनाबाद दसाडा १२५ वडगाम पेज नं. १२६ १२६ १२७ १२८ १२९ १३० चुडा १२१ नेमीश्वर तीर्थ डोलीया थानगढ़ १३० १३१ 88888888888888888888 8888888888888Sle Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ SSSSSSSSSSSSOOR १. सुरेन्द्रनगर WEDDD3333333333333333aaaaaDS मुख्य बाजार श्री वासुपूज्य स्वामी जैन मंदिर SOC४५० eshte 207DIC मूलनायक श्री अमझीरा वासुपूज्य स्वामी ई. संवत १९४२ में यह शिखरबन्द मंदिर का निर्माण कार्य शुरू हुआ। संवत १९४६ में श्रा.व.१ पू. मुनि श्री थोभण विजयजी के वरद हस्त से प्रतिष्ठा हुई। संघ की आबादी समृद्धि बढ़ती गई ।संवत २००६ में २३ देव कुलिकायें वगैरह बनी हैं। इस भवन की ८८ वी वर्षगाठ के दिन निरन्तर ६ घन्टे तक संवत २०३४ में श्रा.व. १ को अमृत झरता रहा। जिन मंदिर के शिखर, घूमटो, दीवालें, गर्भगृह और जिन प्रतिमाओं को अंगों ऊपर से अमृत झरता था। जिसको हजारों भक्तों ने आँखों से निहारा था। केशर वर्षा भी हुई थी। उस दिन से अमझीरा (अमृत की वर्षा करने वाले) वासुपूज्य कहलाते हैं। वंदू श्री वासुपूज्य नंदन! भला भावे सदा प्रेम थी, माता पूज्य जया तणा तनय! हे स्वामी नमुनेमथी, तार्या देव तमे घणा ज भवी ने, केवा खरा धर्म थी, चंपा नायक वासुपूज्य जिनजी आपो मने भव्य श्री। मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी बारे Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ६ - सुरेन्द्रनगर जिला (११५ वारस्या मूलनायक श्री महावीर स्वामी समीप में वीठल प्रेस में श्री महावीरस्वामी का भव्य जैन मंदिर है। उसकी अंजनशलाका प्रतिष्ठा पू.आ. विजय रामचन्द्र सूरिजी म. के द्वारा २०३४ फाल्गुन सुदी ११ को हुई हैं। इसके उपरान्त सेठ आनंदजी कल्याणजी पेढ़ी द्वारा महावीर स्वामी मंदिर कुन्थुनाथ मंदिर,चन्द्रप्रभ स्वामी आदि के भव्य मंदिर बने हैं। तथा बोर्डिंग तथा पानाचंद ठाकरशी छात्रालय तथा आसोपालव नया जंक्शन में मंदिर हैं। छे प्रतिमा मनोहारिणी, दुःखहरी श्री वीरजिणंदनी, भक्तो ने छे सर्वदा सुख करी, जाणे खीली चांदनी, आ प्रतिमाना गुण भाव धरीने जे माणसो गाय छे, पामी सघलां सुख ते जगतमा मुक्ति भणी जाय छे। विठ्ठल प्रेस जैन मंदिर मूलनायक श्रीमहावीर स्वामी विठ्ठल प्रेस श्री महावीर स्वामी जैन मंदिर REASOKRONARRIORROORKERAR म न Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 600 नवा जक्शन सावत्थि तीर्थ जैन मंदिर नवा जंक्शन जैन मंदिर मूलनायक श्री संभवनाथजी .. 000000000000000000 पू. आ.विजय अमृत सू.म. गुरुमूर्ति पू. आ. श्री विजय रामचंद्र सू.म. गुरुमूर्ति सावत्थी तीर्थ (सुरेन्द्रनगर) उपाश्रय और धर्मस्थानक ट्रस्ट प्लोट जामनगर के नकरे से जिनमंदिर तेयार | मूलनायक श्री संभवनाथजी हुआ है। प्रतिष्ठा २०४८ माघवदी १३ को पू.आ.श्री विजय नित्यानंद सूरीश्वर जी पू. आ. श्री विजय रामचन्द्र सू. म. प्रथम गुरुमूर्ति है। तथा पू. आ. म. तथा पू.आ. विजयजिनेन्द्र सूरीश्वरजी म. की निश्रा में हुई। यह जैन श्रीविजय अमृत सूरी म. की गुरुमूर्ति की प्रतिष्ठा भी हुई है। उपाश्रय तथा हितवर्धक मंडल डोलीया के उपक्रम में सेठ श्री वनेचंद वखतचंद मेहता धर्मशाला की व्यवस्था भी हुई है। शंखेश्वर और कच्छ के विहार का मार्ग है। टीकरवाला (घाटकोपर) सहकार से तथा श्री हा. वी. ओ. तपागच्छ जैन नवीन जंक्शन गोडाउन के पीछे दुधरेज रोड । 38066 Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (११७ गुजरात विभाग : ६ - सुरेन्द्रनगर जिला E-RE-RE-RELECRETAREE २. वढवाण शहेर ठठठठठलासन મનાથનાવી श्री आदीश्वर जैन मंदिर Sonomination RESP दीक्षा ग्रही प्रथम तीर्थ तमेज स्थाप्यु, कै भव्यतुं कठण दुःख अनंत काप्यु, सेवा प्रभु प्रणमीओ प्रणये तमोने, मेवा प्रभु शिवतणा अर्पो अमोने, 选奥奥傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘奥樂來來來來來來來來來來 मूलनायक श्री आदीश्वरजी श्री शान्तिनाथजी जैन मंदिर मूलनायक श्री शान्तिनाथजी 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來派 Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ नदी में श्री महावीर स्वामी चरणपादुका श्री महावीर स्वामी पादुका देरी पीanimualleg __मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान यहाँ पर प्राचीन जिनालय हैं । भव्य एवं सुंदर है । बगल में श्री शान्तिनाथजी का नवीन सुन्दर मंदिर बना हैं । इसका प्राचीन नाम वर्धमान पुरी था। यहाँ पर महावीर स्वामी भगवान पधारे थे। श्री आदीश्वर भगवान की प्रतिष्ठा संवत १८२९ माघ सुदी ७ बाजु में शान्तिनाथ भगवान की प्रतिष्ठा २००४ पू. आ. श्री नेमिसूरिजी म. के द्वारा हुई हैं। मकान का खुदाई के कार्य में संप्रति राजा के समय की ४ प्रतिमायें नीकली वे आदिनाथ मंदिर में चौमुख मंदिर बनाके स्थापित की। शामला पार्श्वनाथ जी का मंदिर है। जो ३०० वर्ष प्राचीन हैं । चौथा शीतलनाथ भगवान का शिखरबन्द मंदिर संवत २००४ वै. सु. ६ को प्रतिष्ठा हुई । भगवान की चरण पादुका मंदिर महावीर स्वामी यहाँ पधारे थे उनकी स्मृति स्वरूप भोगावा नदी के कांठे हैं। यह यात्रा स्थल है। यहाँ से बहुत सारी प्रतिमायें जमीन में से निकली हैं। आज भी खुदाई के कार्य में प्रतिमायें मिलती हैं। चरण पादुका मंदिर संवत १७५७ में निर्माण कराया। जीर्णोद्धार संवत २०२४ बिजली गिरने से चलित होने पर पुन: जीर्णोद्धार २०४१ में हुआ। यह प्राचीन नगर है। यहाँ पर राणकदेवी के सती होने का कहा जाता है। उसकी यहाँ देरी है। प्राचीन माघावाव है, परोपकार के लिए माघव दम्पति ने प्राणों की आहुति प्रदान कर जल प्रगट किया था ऐसा कहा जाता है। जैनों के घर २५०, धर्मशाला-भोजनशाला हैं। सेठ आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी सुरेन्द्र नगर से ५ कि.मी. है। सुरेन्द्र नगर अहमदाबाद हाईवे पर आता हैं। रेल्वे का बड़ा स्टेशन है। बहुत से स्थानों से बसें मिलती हैं। जमीन में से निकली हुई श्री चौमुख प्रतिमाजी : Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ६ - सुरेन्द्रनगर जिला (११९ ३. शियाणी तीर्थ IAN मूलनायक श्री शान्तिनाथजी शियाणी तीर्थ जैन मंदिर मूलनायक श्री शान्तिनाथजी लगभग १००० वर्ष पूर्व का यह मंदिर हैं। परम्परा से चली आने वाली श्रुति अनुसार सम्प्रति राजा ने मन्दिर का निर्माण कराया है। काठियावाड सर्वसंग्रह नाम की पुस्तक में इस प्राचीन तीर्थ का उल्लेख मिलता है। सं. १९९५ पू. आ. विजयसिद्धि सूरिजी के द्वारा लींबड़ी-वढ़वाण सुरेन्द्र नगर के संघों ने जीर्णोद्धार करवाया हैं। ___ यहाँ पर भोयरे में शान्तिनाथ प्रभु, ऊपर के भाग में पार्श्वनाथजी एवं चौमुखी जी की प्रतिमायें हैं। यहाँ पर धर्मनाथ प्रभुजी मेहमान रूप हैं जो टोकराणा गाँव में खुदाई करते समय मिली हैं, आज से पाँच वर्ष पूर्व खेत में से मिली थी। वह भी संप्रति राजा के समय की है। शंखेश्वर से पालीताणा जाते हुए यात्री गण संघ यहाँ से निकलते हैं। धर्मशाला है भोजनशाला है। लखतर - लींबड़ी रोड पर है। लींबड़ी से १४ कि.मी. यह तीर्थ हैं। सुरेन्द्रनगर जिला का यह प्राचीन तीर्थ है। सेठ आणंदजी कल्याण जी की पेढ़ी शाखा लीं बड़ी शियाणी तीर्थ कमेटी द्वारा व्यवस्था होती है। मु. लींबड़ी जिला सुरेन्द्रनगर Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२०) for मूलनायक श्री बाहुस्वामी शांतिनाथजी जैन मंदिर ४. लींबडी OR OL श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-9 श्री ક્યોરિ य रा inext मूलनायक श्री शान्तिनाथजी मूलनायक श्री बाहुजिन स्वामी सेठ आणंदवी कल्याणजी की पेढी लींबडी पाँचगर्भयुक्त तीन शिखरों युक्त ऊंची बांधणी का भव्य मंदिर है। उसका जीर्णोद्धार पू. अमृतसूरि म. के उपदेश से २०२२ में हुआ। प्रतिष्ठा पू. पं. श्री राजेन्द्र वि. म. तथा पं. जिनेन्द्र वि. म. की निश्रा में वि.सं. २०२३ मापसुदी १० को हुई है। टावर के पास श्री शान्तिनाथजी के मंदिर का जीर्णोद्धार कर वि. सं... २०२९ में पू. आ. श्री चन्द्रोदय सू. म. की निश्रा में प्रतिष्ठा हुई बोटिंग में भी शिखरबंद मंदिर है। यहाँ पर भव्य प्राचीन हस्तलिखित ज्ञान भंडार हैं। पूरबाई उपाश्रय में १९४७ पं. आनंद वि. म. और आ. कमल सू. म. की पं. पदवी झवेर सागरजी म. की निश्रा में अहमदाबाद के नगर सेठ आदि की उपस्थिति में हुई। उसकी पेन्टिंग तथा लेख है। तथा ७५ वर्ष बाद आनंद वि. म. के शिष्य हर्ष वि. म. के शिष्य कर्पूर सू. म., उनके शिष्य जिनेन्द्र सू. म. की गणि पं. पदवी २०२३ पौष सुदी १० को उसी स्थान पर हुई है। नेशनल हाईवे रोड पर आता है। बहुत से शहरों से बसें मिलती हैं। रेल्वे स्टेशन भी हैं। बढ़वाण से २१ कि.मी. दूर हैं। बगल में १५ कि.मी. शियाणी तीर्थ है। Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग :६- सुरेन्द्रनगर जिला (१२१ ५. चूडा શીદનાથ પ્રભુ पस्या 20. चूडा जैन मंदिर मूलनायक श्री आदीश्वरजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी यहाँ पर प्राचीन २२० वर्ष प्राचीन मंदिर था, वहाँ पर ही नवीन निर्माण कराया है। प्रतिमाजी प्राचीन है। प्राचीन मंदिर में सुविधिनाथ भगवान थे। नवीन मंदिर की प्रतिष्ठा हुई उस समय पू. आ. श्री धर्मसूरिजी म. ने कहा कि यह सुविधिनाथ की प्रतिमा नहीं है किन्तु आदीश्वरजी की प्रतिमा है। उस समय चमत्कार रीति से लंछन भी बदल गया। यह बात यहाँ के ट्रस्टी ने कही। प्रतिष्ठा विक्रम संवत १८०६ माघसुदी ५ को। जीर्णोद्धार संवत २०२० । सार्वजनिक धर्मशाला है। आयंबिल खाता चलता है। जैनियों के ५० घर हैं। ६. शंखेश्वर नेमीश्वर तीर्थ-डोलीया मूलनायक श्री शंखेश्वर नेमीश्वर ऊपर शिखर पर धातु के भव्य श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी यहाँ स्वतंत्र रचनायें श्री शंखेश्वर नेमनाथ शंखवादन तथा श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथ के प्रगटीकरण की रचनायें हैं और पू. आ. भ. श्री सिद्धि सूरीश्वरजी म. तथा पू. आ. भ. श्री कर्पूरसूरीश्वरजी म. तथा पू. आ. भ. श्री रामचन्द्र सूरीश्वरजी म. पू. आ. भ. पू. आ. श्री विजय अमृत सूरीश्वरजी म.. की मूर्तियां स्वतंत्र गुरु मंदिरों में प्रतिष्ठित हैं। ___यह नेशनल हाईवे पर भव्य तीर्थ है । पू. आ. श्री विजय अमृत सूरीश्वरजी महाराज के पट्टधर पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज तथा पू. मुनिराज श्री योगीन्द्र विजयजी म. के सदुपदेश से यह तीर्थ बना हैं। श्री जैन हितवर्धक मंडल द्वारा यह तीर्थ बना है। अंजनशलाका तथा प्रतिष्ठा महोत्सव प. पू. आ. भ. श्री विजय रामचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज आदि की निश्रा में पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वर जी म. के मार्गदर्शन के अनुसार अति भव्य रीति से उजवाया था। प्रतिष्ठा २०४६ फागुन सुदी ११ को हुई है। भव्य उपाश्रय, आराधना हॉल, धर्मशाला, भोजनशाला, भाताखाता वि. की व्यवस्था हैं। राजकोट और सुरेन्द्रनगर मध्य के तीर्थ हैं। राजकोट से ६५, चोटीला से २०, सायला से १४, सुरेन्द्रनगर से ३५, लीबड़ी से ४५ कि.मी. दूर है। नेशनल हाईवे नं. ८ ऊपर रोड पे है। Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ SMS ય શ્રીશંખેવા પાવૅનાથજી ળિ माया Nurna માનિ દેવ Fedegavina A8/2009 238 228 229 0908 mensagens SONAL पंचधातुओं के २२००किलोवजनवाले श्रीशंखेश्वरपार्श्वनाथ जिनेन्द्र R&REREREREREREASTERBRERERURERERURUR&R Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ६ - सुरेन्द्रनगर जिला 5 ध्वज MU3929 क्लश मानाय लसी dulh 6 पत्न महिना ANOOOD OOODOG YYYY NOONIMAR UUUUUN JUUUTUUD डोलीया : श्री शंखेश्वर नेमीश्वर जिनेन्द्र Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४) नमो ईशानाय नमो कुबेराय है नमो ब्रह्मणे 3 नमो वायव्य 30/0 श्री शंखेश्वर नेमीश्वर तीर्थ होलीया डै वरुणाय மணல் नमी इंद्राय १० הוהזה • + श्री दशदिक्पाल पट्टः नमो नागाय नमो नैकताय श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ 古市 नमो अन्नये जै नमो यमाय ४ Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ६ - सुरेन्द्रनगर जिला (१२५ ७. थानगढ chodaedodododotc000 मूलनायक श्री अजितनाथजी थानगढ़ जैन मंदिर (१) मूलनायक - श्री अजितनाथजी का १४० वर्ष प्राचीन मंदिर हैं। भव्य रीति से प्रतिष्ठा कराई है। पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सूरीश्वरजी म. के है 15 पाँच वर्ष पूर्व जीर्णोद्धार हुआ हैं। उपदेश से मन्दिर बनवाया और उनकी निश्रा में प्रतिष्ठा करायी है। इस ND (२) मूलनायक - श्री सुमतिनाथजी तरणे तर रोड पर ओसवाल विस्तार में हालारी वीशा ओसवाल जैनों के बस्ती होने के कारण बढ़िया कालोनी में सेठ श्री लखमण वीरपार ह. मारु परिवार (सोडसला वाला) आलम्बन बना है। रामजी भाई लखमण ने मंदिर उपाश्रय निर्माण कराकर प्रतिष्ठा सं. २०४८ माघसुदी ११ को कि मूलनायक श्री सुमतिनाथजी श्री सुमतिनाथजी जैन मन्दिर Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ८. ध्रांगध्रा श्री अजितनाथ जैन मन्दिर मूलनायक श्री अजितनाथजी मूलनायक - श्री अजितनाथजी यह प्राचीन मंदिर है ।इस राज्य में संवत १९२७ की साल में पर्युषण के दिनों में जीव हिंसा के निषेध का फरमान (आज्ञा पत्र) निकाला था इसका लेख है ।संवत १९८३ पौषवद-४ के रोज पाटणवाला सेठ नगिनदास करमचंद संघ लेकर यात्रा को निकला उन्होने जीर्णोद्धार करवाया है। उसका लेख मिलता है। नक्काशी के काम की प्राचीन कला देखने को मिलती है। दूसरा जीर्णोद्धार संवत १९९२ भा.सु.४ इस प्रकार लेख पढ़ने को मिलता है। श्री संभवनाथ मंदिर कपड़ा बाजार में है तथा महावीर स्वामी मंदिर महावीर स्वामी सोसायटी मेनरोड पर है। जैन भोजन शाला हैं रेल्वे स्टेशन पर सार्वजनिक धर्मशाला है। श्वे.मू.३००घर हैं। पेढ़ी - सेठ आणंदजी कल्याणजी की पेढ़ी ध्रांगध्रा दफ्तरी शेरी फोन | २०४ जि. सुरेन्द्रनगर,कच्छ हाईवे पर हैं। सुरेन्द्र नगर से ३५ कि.मी. है। बसें मिलती हैं। ९. हलवद मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी बहुत प्राचीन मंदिर है। प्रतिमा जी १००० वर्ष पुरानी है।३०० वर्ष पहले का यह मंदिर है। उसके पहले भी मंदिर था साबिति-साक्ष्य रुप में सोमपुरा | ब्राह्माण के घर में खाल कुआ खोदते समय १७ वर्ष पूर्व दो प्राचीन प्रतिमायें मिली थी। एक प्रतिमा ४०० वर्ष पूर्व मिली हुई श्री आदीश्वर तथा शीतलनाथजी हैं जो यहाँ के मंदिर में बिराजमान हैं उसमें यहाँ के मंदिर के मूलनायक के रुप में लेख है। अलाउद्दीन मुस्लिम काल में मूर्ति खंडित करने की प्रवृति चलती थी उस समय मूर्तियों को जमीन में भंडार कर देते थे। जिससे आज भी बहुत से स्थानों से प्राचीन प्रतिमायें जमीन में से निकलती हैं। ___संवत् १९५२ में फिर प्रतिष्ठा हुई है। दोशी परिवार ने प्रतिष्ठा करवाई है। मंदिर के वरंडे में ही उपाश्रय है।पीछे के भाग में भोजन शाला है। श्वे.मू. के ३० घर हैं ।सोमपुरा के १२००घर हैं।१६००० की बस्ती हैं। सुरेन्द्रनगर ध्रांगध्रा बहुत बसें मिलती हैं। बम्बई गाँधीधाम का रेल्वे स्टेशन हैं। ध्रागंध्रा से ३५ कि.मी., मोरबी से ४२ कि.मी. हैं। KP Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ६ - सुरेन्द्रनगर जिला 參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參賽參賽參等 हलवद जैन मंदिर जी 00000000 मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी १०. बजाणा 仍斷路斷券拳纷纷纷纷繁券擊拳擊峰斷纷纷繁纷纷纷纷纷拳经。 探斷喉拳缘缘聚缘缘聚缘聚缘缘拳拳拳拳擊缘 缘缘聚缘缘缘聚缘参纷繁除緊握拳 बजाणा जैन मंदिर मूलनायक श्री शान्तिनाथ जी आ संसारे डुबी रहयो छु,नथी कीनारो मलतो, सुमति आपो कुमति कापो, भवथी पार उतारो, केटला भव में कीधा प्रभुजी, केटला भव हवे करवाना आ भव ताहरुं शरण मल्युं, हवे बवजल पार उतरवाना 參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक - श्री शान्तिनाथजी इतिहास के अन्धकार को उलीचते हुए दृष्टि पड़ी हैं। दरिया की खाड़ी के काठे-बसा हुआ एक छोटा सा गाँव १५०० वर्ष के काल के झपेटों को खाकर मूलरुप खोकर बैठा हुआ आगे मीठापुर' जो आज का बजाणा, महमद बेगडा को वफादारी बतलाते जैन लोगों को २४ परगणे मिले थे। उनमें से यह गाँव व्यापार का केन्द्र था। कहा जाता हैं कि एक बजाज (कपड़े का व्यापारी) विद्या के बल से सुपडे में बैठ कर उडा। उसके प्राण यहाँ निकल गये इसलिए इस गाँव का नाम बजाणा पड़ा। महत्त्व - ४०० वर्ष पूर्व निर्मित यह प्राचीन मंदिर हैं जिसमें प्रतिमायें संप्रति महाराज के समय की भराई हुई हैं। सुन्दर मांडवी पर तीन प्रतिमायें हैं। साधु साध्वीओं का बड़ा भारी विहार है ।पांजरा-पोल वर्षो से चलता है। यहाँ के मंदिर का अन्तिम जीर्णोद्धार वि.स. २००७ आ.श्री सुबोध सागरसूरिजी म.की निश्रा में हुआ है । जैनों के पाँच घर हैं। शंखेश्वर सुरेन्द्रनगर ध्रागंध्रा क्रॉस रोड पर हैं। पास में पाटडी उपरीयलाजी शंखेश्वर तीर्थ हैं। ११. उपरीयालाजी तीर्थ उपरीयालाजी जैन मंदिर શ્રીઆ , ભગવાન श्री आदिनाथ भगवान मूलनायक-श्री आदिनाथजी वर्षों पूर्व इस विस्तार में घना जंगल था। रत्नाभाई कुंभार को इस स्थल में प्रतिमा हैं उनकों स्वप्न आया। खुदाई करते समय अभी जहाँ पर धर्मशाला है, उस स्थान से ही प्राचीन प्रतिमायें मिली हैं। उनमें संप्रति महाराज के समय की प्राचीन प्रतिमा एक मिली है ।भव्य शिखरबन्द मंदिर बनाकर उसकी प्रतिष्ठा वि. सं. १९१९ वै.सु. १० को की है। यहीं की भूमि में से दूसरी तीन प्रतिमायें मिली हैं, जो धातु की कायोत्सर्ग प्रतिमायें है। अन्तिम जीर्णोद्धार वि.स.१९४४ माघ सुदी १३ महोत्सव पूर्वक उजवाया, दीवाल, छत, गुम्बज ऊपर काँच का भव्य रमणीय काम हुआ हैं। ८६ वर्ष से अखंड ज्योति चालु हैं। यह प्राचीन तीर्थ है। वि.सं.१५ वी सदी पूर्व के ग्रन्थ में उल्लेख हैं। धर्मशाला, भोजनशाला की सुन्दर व्यवस्था है। विरमगाव रोड पर आया हुआ है। विरमगांव खाराघोड़ा रेल्वे मार्ग पर पाटडी गाँव से १० कि.मी. है। S Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ६ - सुरेन्द्रनगर जिला 686 O १२. पाटडी LAMASTRA मूलनायक श्री जीरावला पार्श्वनाथ जी पाटडी जैन मंदिर मूलनायक - श्री जीरावल पार्श्वनाथ जी इतिहास - बहुत प्राचीन गाँव है। वस्तुपाल मंत्री के समय में तेजपाल की पत्नी अनुपमादेवी ने धातु की प्राचीन प्रतिमाजी वि.सं. १२५८ में भराइ ऐसा लेख है। १२ वीं शताब्दी का मंदिर है। वारंवार जीर्णोद्धार हुए हैं। पास में नीचे श्री शान्तिनाथजी का मंदिर हैं, उसके बाजु में यहाँ पर सं.१९९२ में स्वर्गवास प्राप्त हुए प.पू.आ. श्री विजयदान सूरीश्वर जी म. का गुरु मंदिर हैं। गाँव के उत्तरी भाग में उनकी अग्नि संस्कार भूमि हैं। वहाँ पर पादुका देरी है। झाला राजपूतों का उत्पत्ति स्थान कहलाता है। व्यापार का केन्द्र है। बाबरा भूत यहीं पर हो गया है ऐसा कहा जाता है। यहाँ जैनियों के ६० घर है। उपरियालाजी तथा शंखेश्वरजी समीप में तीर्थ है। - परमगुल वारा सहित पू.आ. श्री विजयदान सू.म. गुरु मूर्ति पषमा जकन्द्रिय लेयिनिजीन्द्रिय चक्रीनि स्वता 100 Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३०) thuntining मूलनायक श्री शामला पार्श्वनाथजी १३. जैनाबाद दसाहा जैन मंदिर मूलनायक श्री शामला पार्श्वनाथजी संप्रति राजा के समय की प्राचीन पद्मासन की प्रतिमाजी श्याम वर्ण की है । १५० वर्ष पूर्व का मंदिर है। जीर्णोद्धार वि.सं. २०४० में हुआ है। जैनो का एक घर है। पाटडी दसाडा रोड के बीच के रोड पर गाँव है। १४. दसाडा श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ जैनाबाद जैन मंदिर मूलनायक श्रीशान्तिनाथजी पेढ़ी- सेठ जीवणदास गोडीदास २०० वर्ष पूर्व का मंदिर है। मूलनायक के बाजु में संप्रति महाराज द्वारा भराई हुई पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमाजी जमीन में से मिली है। जैनो के १५ घर है । शंखेश्वर, उपरियालाजी, वडगाव तीर्थ समीप में है। शंखेश्वर से वीरमगाम तथा सुरेन्द्र नगर रोड का केन्द्र है। प्रभुजन्म सुणी हरखाती, छप्पन कुमारी गीत गाती चोसठ इन्द्र पधारे हो मरकी रोग मिटाव्यो आपे नाम शान्तिनार्थ स्थापे, शान्ति शान्तिना दातार हो... रटना 7 रटना Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ६ - सुरेन्द्रनगर जिला (१३१ DDDDDDDD-R मूलनायक श्री शान्तिनाथजी १५. वडगाम वडगाम जैन मंदिर मूलनायक श्री आदीश्वर प्रभुजी ५०० वर्ष पूर्व का मंदिर है। वि.सं. १८७५ में जीर्णोद्धार हुआ उसके बाद वि.सं. २०१५ में हुआ है। एक समय श्री शंखेश्वरजी तीर्थ जितनी यात्रा की महिमा यहाँ धर्मियों के लिए थी। दसाडा श्री संघ व्यवस्था करता है। संप्रति महाराज के समय की प्राचीन प्रतिमा चमत्कारिक है। आज भी का. सु. १५ को मेला भरता है। जैनो का एक घर है। शंखेश्वर से १५ कि.मी. है। हाईवे से १ कि.मी. अन्दर है। मूलनायक श्री ऋषभदेवजी Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ स्कल कीमी ०५१०१५२०२५ EEEERA कारका रण - लोदापी--- MINS 126 डली S/Tकोटेश्वर नारायण हाजीपुर 130वाना गढ सरोवर वरंदा वापर SN गांगो नखाणा 42 कच्छवाका जी Aबाद Ed20 28 IRदेशलपा 26 25 कोठारा 24 गदसोसा करा Fri TU मरेन्द्रनगर आणीयाजी ल्ला जील्ला 63 जोनालय Wणाचाही 150 मोरबी की ओर 23 तीर्थ रिमोटो छावर इसग 33/ मिन्दाजी Ja/जल-25 साहनी न पाय क छ अ क्रम ग्राम पेज नं. १० १४४ १४६ कच्छ जिला पेज नं. क्रम ग्राम १३३ नलिया तीर्थ १३७ जखौ भुज १३७ वांकी तीर्थ १३७ १४ अंजार भवाऊ कटारिया तीर्थ लाकडिया १४६ भद्रेश्वरजी तीर्थ मुंद्रा भुजपुर मोटीखाखर नानीखाखर मांडवी सुथरी तीर्थ कोठारा तीर्थ तेरा तीर्थ १४७ १४८ १४४ १७० १४१ १५१ १४२ १८ पलासवा १७२ Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AI . ニニニニニ3333 にこにこ ニーランマニニニニ लिखपत --- ここニ===== कछ का रण - - - -- कीमी १० १५ २०२५ 333E%% 'लोदराणी"----- - --- 'लोदराणी -- - - खदीर - - - - - - 'खावडा सुजील्ला 126 बनासकांठा हराधनपुर घढूली 2.- - - - - कोटेश्वर HIND हाजीपुर ------- सातलपुर नारायण 30... सरोवर बरंदा मातानो गढ रवापर 38 AWANI आदेसर -- छिी 7 पदमपुर/ पलासवाडा नखत्राणा 28 PA ANवाढ लाकडीया 18 नलीया कंटारीया 40 18 देशलपर - --.छोटारण.... - - - - ---- - - - -- -- जख मोथाला कोठारा 24 सगढसीसा I KIRI ( सुरेन्द्रनगर - केरा (गाधीधाम 34/ जीनालय माणीयाजी ल्ला जील्ला लसुथरी 63 5 23 छसरा 331 भिर्टेश्वरी खा • . क क छ मुन्द्रा अ का Page #167 --------------------------------------------------------------------------  Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग :७- कच्छ जिला (१३३ १. भद्रेश्वरजी तीर्थ याय प्राचीन मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी मालानिमामिला मूलनायक श्री महावीर स्वामी मूलनायक श्री महावीर स्वामी पेढ़ी - वर्धमान कल्याण जी की पेढ़ी पतन ह्रास हुआ । जगडुशाह का समय १३१३-१४-१५ का हैं। कच्छ यहाँ की पेढ़ी से मिले हुई पुस्तक नाम श्री भद्रेश्वर वसई महातीर्थ । लेखक सहित सम्पूर्ण भारत में व्यापक दुष्काल पड़ा। एवं इस दुष्काल में सम्पूर्ण परतिलाल दीपचंद देसाई। प्रकाशक - गुर्जर ग्रन्थरत्न कार्यालय अहमदाबाद भारत को जगडुशाह ने अनाज की पूर्ति की थी और श्रेष्ठ दातार हुआ। पाटन १ में पेज नं. ७४ पर लिखी विगत के प्रमाण अनुसार तथा श्री आत्माराम के राजा अर्जुन देव का वंगवास सं.१३३१ में हुआ। उसकी गादी पर सारंग 2 केशवजी द्विवेदी के सन १८७६ में रचित 'कच्छ देशनो इतिहास' नामक देव आया। वह पाटन का राजा हुआ। श्री जगडुशाह का वि.सं.१३३१ के पुस्तक में बतलाये अनुसार महाभारत युग (जैनों का प्रमाण ८५ हजार वर्ष पूर्व स्र्वगवास हुआ था। यानी सारंगदेव के बचपन का जगडुशाह पूर्व) श्री युवनाश्व राजा की भद्रावती नगरी यही आज का भद्रेश्वर वसई समयकालीन था। इस भद्रेश्वर तीर्थ का जगडुशाह ने उद्धार कराया है। इसके महातीर्थ है। अमुक मतान्तर से मध्य प्रदेश के समीप हिंगणघाट, वसई एवं सिवाय भी बहुत से महानुभवों ने इसका उद्धार कराया हैं।बहुत सारी उन्नति चांदा के समीप आने वाला भांडुक नामक जो जैन तीर्थ है, वहाँ भी प्राचीन एवं अवनति देखी हैं। भद्रवती वंश के शासकों का शासन चलता रहा था। वहाँ पर अन्तिम राजा आगे वीर निर्वाण २३ में पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी ने श्री करण वाघेला (करण वेधेला) विक्रम की १४ वीं सदी के उत्तरार्ध तक था।) पार्श्वनाथजी की मूलनायक के रुप में इस भद्रेश्वर तीर्थ की प्रतिष्ठा की है। प्रसिद्ध विजय सेठ एवं विजया सेठानी भद्रावती में हुए हैं। उसी प्रकार श्री उसके बाद वर्तमान में वि.सं. १९३९ के प्राचीन मूलनायक श्री शामला जगडुशाह भी इस नगरी में हुआ है। जगडुशाह के पश्चात इस नगरी का पार्श्वनाथजी का अन्तिम जीर्णोद्धार के समय मंदिर के पीछे घूमती देरी नं. २५ Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ HिEO EETA DR MOTKE EOHD सा में स्थापना करके भद्रेश्वर के इस मंदिर की मूलनायक के रुप में श्री महावीर की प्रतिष्ठा करवाने में आयी और श्री महावीर भद्रेश्वर जिन मंदिर हआ। श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा के नीचे की गादी ऊपर सं. ६२२ वर्ष इस प्रकार लिखा हैं। यानी यह महावीर स्वामी की प्रतिमा मूल तो प्राचीन ही है यानी इस संवत १९३९ में फिर से उसकी प्रतिष्ठा हुई है। इस मंदिर की इस समय भव्य प्राचीन कलाकृति है। अत्यन्त दर्शनीय है। पेढ़ी की व्यवस्था अच्छी तरह चलती है बहुत धर्मशालायें हैं। जैन भोजनालय है। भद्रेश्वर में जैनों के घर नहीं है। प्राचीन शिलालेख मंदिर की बगल की गली में हैं। भद्रेश्वर में मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपर से मध्य के चाहे उस सीढ़ी से श्री महावीर स्वामी के दर्शन होते हैं। भद्रेश्वर मंदिर जी में प्रवेश करते ही दो खंभे हैं। प्राचीन शिलालेख वहाँ पर उत्कीर्ण है जो पढ़ने में नहीं आता है। भद्रेश्वर वसही (ता.मुद्रा) कच्छ फोन नं.६१(EX 'वडाला') शान नायक श्री वर्धमान, त्रिशलानंदन श्री महावार. विना भणे ओछे विद्वान, मेरु सागर सम धीर गंभीर शासन, चेतर सुद तेरसने दिन, प्रभु जन्म्या भविजन सुखकन्द, सिंह लंछन जग जीवन ओ. सिद्धारथ नृप कुल नभचंद शासन. सकल सुरासुर ओ पूजित, केवलज्ञानी श्री जिनराज वीतराग ओ मोहराज जित भवोदधि तारण तरण जहाज-शासन, समवसरण मां प्रभु बेसो, पर्षदा संवोधे ओ बार, शिव सुख लेवा जो चाहो, तो तजिये संसार असार -शासन, गावो ध्याबो वंदो ओ. उपकारी ओछे महादेव, गुरु कपूर सूरि अमृत ओ, जपेमानं ना बीजो देव-शासन PARAN भद्रेश्वर तीर्थ जैन मंदिर जी Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग :७-कच्छ जिला (१३५ २. मुंद्रा FDiarrello EACTET मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी महावीर स्वामी जैन मंदिर जी मूलनायक - श्री महावीर स्वामी श्री महावीर स्वामी का शिखरबन्द मंदिर है। तीस वर्ष प्राचीन हैं। जीर्णोद्धार श्री जिनलाभ सूरिजी श्री खरतरगच्छ आचार्य के उपदेश से वि. सं. २०३७ । श्री महावीर स्वामी श्री पद्मप्रभु स्वामी के मंदिरों में जीर्णोद्धार श्री खरतर गच्छ के मोहनलाल जी के शिष्य बुद्धिमुनि के शिष्य आनंद मुनिश्री के उपदेश से सं.२०३७ माघ शुक्ल १३ सोमवार को हुआ है। मुंद्रा में तपागच्छ जैन मंदिर श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मूलनायक की प्रतिमा ३५० वर्ष प्राचीन हैं और फिर इस शिखरबन्द मंदिर की प्रतिष्ठा वि.सं. १९१८पोष वदी ५ को हुई हैं। जीर्णोद्धार - वि.सं. २०३३ वै. व ११ पू.आ.श्री विजय कलापुण सूरिजी म. के उपदेश से हुआ है। जैनियों के ४० घर हैं। भोलो हतो भोलवाई गयो, तारा प्रेम मां पागल थयो। कामणगारो केटलो अक नजरमाँ तारो कर्यो, चीतडानो चोरनारो चालाक पण तुं तो केटलो, बोलावतो बधायने पाछो रहे तुं तो एकलो, आज सुधी में प्रभु तुझ पासे कशुं मांग्यु नथी, शीरताज स्वामी छो छतां में साह्यबी मांगी नथी, . अखूट खजानो ज्ञाननो, में ज्ञान पण मांग्यु नथी, तारा प्रेमसागर सिन्धु नुं ओक बिन्दु मुझने आपजे... CN Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३६) AKAR श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ SANTON.CO. ३. भुजपर मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी जैन मंदिर Pradhalanimal LimurgeneralhartRANA केशरीया आदीश्वर जी दादा मूलनायक - श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी श्री मुछाला महावीर स्वामी का मंदिर : श्री केसरिया आदीश्वर दादा का मंदिर हैं। मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा वर्ष १३७ में हुई। मुछाला महावीर (नवीन मंदिरजी) २०३३ में गुणोदय सागरजी म. हस्ते श्री मुछाला महावीर स्वामी की प्रतिष्ठा हुई है। तीसरे भोयरे में श्री केसरिया आदीश्वर दादाजी की प्रतिष्ठा आ. गुण सागर सूरिजी म. के शिष्य गुणोदय सागर सूरिजी की निश्रा में सं. २०३३ वै. सु. १३ को हुई है। घर ३५ हैं। A KOR/ Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग ७ कच्छ जिला 100 634 (20)(20) ४. मोटी खाखर AIGHT ७.२ (७०) (७०) (१०) (७०) ७०), ( मूलनायक श्री आदीश्वर जी मूलनायक श्री आदीश्वर जी प्रतिष्ठा सं. १६५९ फा. सुद १० को हुई। जैनों के घर १५० हैं । परन्तु स्थायी खुले ७० घर हैं । ५. नानी खाखर O मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी मोटी खाखर जैन मंदिर मूलनायक जी श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी की प्रतिष्ठा सं. १९४४ श्रावण सुद ५ सोमवार ता. २५-७-१८८७,८-६० मिनिट अंचल गच्छीय विवेक सागर के नीचे सुमति सागरजी, के हस्ते प्रतिष्ठा हुई। उपदेश दाता महिमा सागर जी एवं, विनयसागरजी । जैनों के घर १५० (अभी खुले ५५ ) शत्रुंजय पट एवं ज्ञान भंडार हैं। संवत २००६ श्रा. सुद ५ ता. १८-८-५० को ज्ञान भंडार हुआ। नानी खाखर जैन मंदिर जयति शासनम (१३७ Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 434) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ Poor 04 "00.00 050 90 NAGAO0 P... .00000 ६. मांडवी ROOT CASTHA मूलनायक श्री शान्तिनाथजी शान्तिनाथजी जैन मंदिर जी मांडवी आश्रम जैन मंदिर जी काँच का मदिर जी धर्मनाथजी (0.0 ०.90 Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ७-कच्छ जिला (१३९ XTILIZश्रीभOuruasRLALLunanTIIIIIIIIIIIIII ALMISTELLAINMy मूलनायक श्री शान्तिनाथजी श्री भीड भंजन पार्श्वनाथजी मांडवी जैन आश्रम मूललनायक श्री शान्तिनाथजी इस मंदिर की प्रतिष्ठा सं.२०१४ जेठ सुदी ३ बुध तारीख २१-५-५८ के दिन अंचल गच्छीय जिनेन्द्र सागर सूरिजी के शिष्य क्षमानंदजी के हस्ते करवायी है। जैन मंदिर के पीछे चन्द्रप्रभ स्वामी के मंदिर में आठ पट्ट हैं। श्री केशरियाजी, राजगृही, सम्मेदशिखरजी, शत्रुजय, गिरनार, अष्टापद, आबु, एवं भद्रेश्वर जी का पट्ट बहुत सुन्दर देखने लायक हैं । मांडवी, दादावाडी मंदिर में पार्श्वनाथजी मूलनायक है। प्रतिष्ठा १०२ वर्ष पूर्व हुई है। दूसरा तीन शिखरों से युक्त अजितनाथजी का मंदिर है। श्री शीतलनाथजी के मंदिर की प्रतिष्ठा २०० वर्ष पूर्व हुई है। श्री भीडभंजन पार्श्वनाथ जी की पौने सातसौ वर्ष पूर्व प्रतिष्ठा हुई। मंदिर जी नवीन ऊपर के शीतलनाथ जी के सामने समवसरण नीचे चौमुखी ... पार्श्वनाथजी हैं। और बगल में श्री भीड भंजन पार्श्वनाथजी है। बहुत ही प्रभावपूर्ण तीर्थ है। जैनों के घर ४१० हैं। मांडवी धर्मनाथ जी का मंदिर काँच का है। वह प्राचीन है। ऊपर सुपार्श्वनाथजी मंदिर है। श्री शान्तिनाथ जी का घर मंदिर है। यह मूर्ति ७०० वर्ष पूर्व जामनगर से आयी। इस मंदिर का निर्माण हुए तीन सौ से ऊपर वर्ष हए इसमें पार्श्वनाथजी नीचे बाजु में चौमुख जी महावीर स्वामी हैं। मांडवी वि.सं. १६०० में बसा था। मूलनायक श्री शान्तिनाथ जी आश्रम अलग-अलग स्थान मध्य का अन्तर कि.मी. अलग-अलग स्थान कि.मी. मध्य का अन्तर EMARKS ४४ अहमदाबाद-शंखेश्वर १२५ शंखेश्वर-राधनपुर राघनपुर गाधीधाम गांधीधाम- भद्रेश्वर भद्रेश्वर- मुन्द्रा मुन्द्रा- मांडबी मांडवी- सुधरी सुथरी- कोठारा कोठारा- जखौ जखौ-नलिया नलिया- तेरा तेरा-भुज भुज- अंजार अंजार-गांधीधाम भुज- भद्रेश्वर भुज- अहमदाबाद जखी- अहमदाबाद जखो-जामनगर जखौ- भावनगर जखौ- पालीताणा जखौ- वडोदरा जखौ-मुंबई X ० Xm ६४४ १३ २८ ANSAR Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शनं : भाग-१ (o ७. सुथरी तीर्थ 500 मूलनायक श्री घृतकल्लोल पार्श्वनाथजी सुथरी तीर्थ जैन मंदिर चलती हैं। हर वर्ष २५ हजार जैन यात्रीगण यहाँ पधारते हैं । पेढ़ी और पांजरापोल यहाँ का श्री संघ चलाता हैं। - जैनियों के घर तो २५० हैं। परन्तु खुल्ला ८० हैं। एक जैन धर्मशाला और जैन यात्रीगृह हैं। कोठारा ११ कि.मी. हैं। ता. अबडासा कच्छ ता. टे. कोठार मूलनायक श्री घृतकल्लोल पार्श्वनाथ श्री घृतकल्लोल पार्श्वनाथजी के मंदिर की प्रतिष्ठा १८९८ बैसाख सुदी ८ रविवार को हुई। अंचलगच्छ के नवीन मंदिर की प्रतिष्ठा आ.श्री मुक्ति सागरसूरिजी के हस्ते वि.सं.१९७५ वै. सु ३ बुधवार को हुई हैं। जामनगर के पास जो वर्तमान में शिकारी गाँव के नाम से जाना जाता हैं। . वहाँ पर पू.आ.श्री कल्याण सागर सूरिजी की निश्रा में मंत्रीगण श्री वर्धमान शाह एवं पद्मसिंह शाह के हाथों श्री घृतकल्लोल पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा हुई थी। उन्होंने यहाँ श्रावक को स्वप्न में कहा मैं सुथरी जाता हूँ मुझे खोजना नहीं। यहाँ पर सुथरी में श्रावक को स्वप्न में कहा कि- घी के घड़े में से मुझे बाहर लाओ। उसने वहाँ पर देखा तो घी में प्रतिमा कल्लोल कर रही थी उस 3 कारण से घृतकल्लोल पार्श्वनाथ नाम पड़ गया। यहाँ के दशा ओसवाल का अधिकांश भाग बम्बई वगैरह स्थानों में १ बसता हैं।धार्मिक आराधना हेतु बम्बई वगैरह से आते हैं। उनमें पर्युषण करने हेतु अवश्य आते ही हैं। जैन पाठशाला चलती है।साधर्मिक भक्ति स्थायी Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग :७- कच्छ जिला (१४१ ८. कोठारा तीर्थ कोठारा तीर्थ जैन मंदिर मूलनायक श्री शान्तिनाथ जी SELEO बाजु के श्री सुमतिनाथ जी गोखले की कारीगरी 依像儀陳康康康康德康康康康康康康康康 Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ दबदबदबदबदब मूलनायक श्री शान्तिनाथ जी यहाँ का घंटा २०० किलो वजन का है। जो लन्डन से १८६० में लाया अंचलगच्छीय आ.रत्नसागरसूरिजी म.के हस्ते प्रतिष्ठा वि.सं. १९१८ में गया है। मुख्य शिखर के सामने पुंडरीक स्वामी का मंदिर है। मुख्य मंदिर के हुई है। पाँच गर्भद्वार आठ शिखरों सहित सुन्दर कलायुक्त ८५ फुट ऊँचा मध्य बायी तरफ आदीश्वर स्वामी के आगे चिन्तामणि मंदिर पार्श्वनाथ की देरी शिखर है। भोयरे में प्राचीन मूलनायक हैं। पहिली मंजिल पर धर्मनाथजी ऊपर चौमुखा शामला पार्श्वनाथ है। मुख्य मंदिर के आगे बाये आदीश्वर चौमुख है। आँईलपेन्ट के चित्र १२५ वर्ष प्राचीन है। यहाँ की कलाकृतियाँ चौमुख हो कर स्वतंत्र चौमुखी मंदिर को जाया जाता है। मुख्य मंदिर के आगे अद्भुत हैं । रंगमंडप पर पत्थर की अद्भुत कारीगरी है। मुख्य मंदिर के पीछे दायें हाथ को महावीर स्वामी का मंदिर है। ऊपर अजितनाथजी का मंदिर है। दायी तरफ श्री स्वतंत्र मंदिर पार्श्वनाथ जी का १२२ वर्ष प्राचीन हैं। उसके ___अबडासा पंचतीर्थी का यह एक तीर्थ है ।कुल २५० प्रतिमायें है। शेठ केशव ऊपर की ओर सामने चौमुख आगे बाँयी तरफ भो एक स्वतंत्र शान्तिनाथजी जी नायक यहाँ के थे जिन्होने शत्रुजय के ऊपर टोंक निर्माण करायी है। का मंदिर चारसो वर्ष प्राचीन है। भोयरे में कुन्थुनाथजी उपरान्त आरस की जैनों के कुल ३०० घर हैं। जिनमें ५०घर खुले है। जैन धर्मशाला,जैन चौवीसी-१ एवं पंचतीर्थी आरस की है। भोयरे के दो कमानों के ऊपर भोजनशाला एवं आयंबिल भवन हैं। मांडवी से कोठारा ५८ कि.मी. है। सम्पूर्ण भव्य एवं विशाल मंदिर का आधार हैं। सुथरी तीर्थ होकर यहाँ आते है। ९. तेरा तीर्थ बबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबबदबदबददददददद |ાધી. જદાવલા પાર્શ્વનાથ ભગવાન मूलनायक श्री जीरावला पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री शामलिया पार्श्वनाथजी Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ७ - कच्छ जिला (43 MD.0000006. DO000000 boo RAHAKAMACinitionalota STRETITIENTIS T TAIHITTTTTITITICIT श्रीजीरावलापार्श्वनाथजैन मंदिर मूलनायक - श्री जीरावला पार्श्वनाथजी शामला पार्श्वनाथ का मंदिर ५०० वर्ष प्राचीन हैं । सुथरी में लघु श्री जीरावला पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा १९१५ में हुई है। शामलिया शिखरबन्द अजितनाथ का मंदिर इस शामलिया पार्श्वनाथ के मंदिर जितना पार्श्वनाथ एवं बहुत देरिया एवं जीरावला पार्श्वनाथ का जीर्णोद्धार वि. सं. ही प्राचीन है। जीरावला पार्श्वनाथ के बगल में प्राचीन गृह मंदिर में सिद्धचक्र २०३८ माघ सुदी ५ शनिवार ता.३०-१-८२ को हुआ। यहाँ पर सब मंदिरों बहुत सारे विराजमान हैं। आशातना न होवे इसकी पूर्ण व्यवस्था है।घन्टा के नव शिखर हैं। और नव गुम्मट हैं । देखने लायक यात्रा का स्थल है। ७७ किलो का लन्दन निर्मित (वि.सं.१८५८) घन्टे पर लिखा हुआ है। जीरावला पाशर्वनाथ के ऊपर के तल पर पद्मप्रभु स्वामी है। जीरावला शत्रुजय आदि तीर्थ और ज्ञान मंदिर वि.सं.२०३१ में बना है। चौदह राज पार्श्वनाथ मंदिर में तीन गर्भद्वार हैं। एवं पहले तल में भी तीन गर्भगृह हैं। श्री लोक के साथ ७ तीर्थो के पट्ट वगैरह मढे हुये हैं। अन्तिम छ: वर्षों में ९२ और जीरावला पार्श्वनाथ एवं शामलिया पार्श्वनाथ एवं पद्मप्रभस्वामी की हजार यात्रीगण आये हैं। ३२ वर्ष का श्री मन्त भगवान दास प्यारेलाल प्रतिमायें सम्राट संप्रति राजा ने भराई हैं। (अहमदाबाद वालो ने) की काँच के काम की कारीगरी अद्भुत की गई हैं। धर्मशाला है। भोजन की व्यवस्था हो सकती है। ता. अबडासा (कच्छ) तार - तेरा - टेली- नलिया * * * * * * * * * * * * राता जेवा फूलड़ा ने शामला जेवो रंग । आज तारी आंगीनों काँई, रूडो बन्यो छे रंग प्यारा पासजी हो लाल, दीन दयाल मने नयणे निहाल ॥१॥ ** ** * ** * * * तूं छे मारो साहिबो ने, हुँ छू तारो दास, आश पूरो निज दासनी, काई, सामली अरदास,प्यारा. ॥३॥ देव सघला दीठा तेमा, एक तू अवल्ल। लाखेणुं छे लटकु त्हारू देखी रीझे दिल्ल. प्यारा ॥४॥ कोई नमे पीरने, कोई नमे छे राम, उदयरत्न कहे प्रभुजी, मारे तुमशु काम् । प्यारा ॥५॥ जोगीवाडे जागतो ने, मातो धिंगड मल्ल, शामलो सुहामणो काई, जीत्या आठे मल्ल, प्यारा. ॥२॥ Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ BEO. भी सोल विधा देवी यन्त्र EHI Ce १०. नलीया तीर्थ HOTOGADhupirat ONGpa Tar24 मूलनायक श्री शान्तिनाथ जी मलनायक चन्द्रप्रभूजी ERIAL Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ७ कच्छ जिला AN SAPA SAPTA BALAN SSPEA जलिया तीर्थ जैन मंदिरजी मूलनायक जी श्री चन्द्रप्रभु स्वामी जी पेढ़ी- सेठ नरसी नाथा चेरिटी ट्रस्ट श्री चन्द्रप्रभ स्वामी के बगल की दोनो ओर देरियों में वीर स्वामी तथा महावीर स्वामी (प्राचीन मूर्ति हैं। इन सबकी प्रतिष्ठा सेठ नरसीनाथा नागडा की ओर से उनकी देखरेख में उनके हस्ते करवाने में आयी है। श्री शान्ति माथजी मंदिर में वि.सं. १९११ में प्रतिष्ठा कराने वाले भारमल तेजसी मेहता, श्री अष्टापद जी के मंदिर की तथा साथ ही आठ देरियों की प्रतिष्ठा वि.सं. १९९८ में हुई। बनाने वाले सेठ नरसीनाथा के सुपुत्र हीरजी नरसी साथा है। श्री चन्द्रप्रभ स्वामी के बायें हाथ में देरी में मूलनायक श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा बहुत ही प्राचीन है। सेठ श्री नरसीनाथा यहाँ के रहने वाले थे। उन्होने शत्रुंजय ऊपर तथा पालीताणा शहर में मंदिर बनवायें हैं। श्री शान्तिनाथ जी मंदिर, श्री अष्टापदवी, जीरावला पार्श्वनाथ की इस प्रभुजी के पास के गाँव वडसर में मूलनायक के रुप में विराजमान थे। य Broad कुदरत के प्रकोप से जैनियों की बस्ती समाप्त हो गयी पीछे नलिया से पूजारी पूजा करने आता था। बाद में ट्रस्ट बोर्ड के निर्णय से चन्द्रप्रभ स्वामी का मंदिर के पीछे नवीन मंदिर निर्माण करवा कर सं. २०२७ में अंचल गच्छ के आचार्य श्री गुणसागर सूरिजी म. की निश्रा में प्रतिष्ठा हुई। मुख्य मंदिर श्री चन्द्रप्रभ स्वामी की प्रतिष्ठा १८९७ में हुई। उपर के सब मंदिर भव्य और सचमुच में देखने लायक हैं। कारीगरी, कला, सुन्दरता दर्शनीय हैं। बहुत बड़ा ज्ञान भंडार हैं। आगम की प्रतें (शास्त्र) बहुत हैं। जैनियों के कुल ४०० घर है। उनमें १३५ घर खुल्ला है। यहाँ से तेरा १८ कि.मी. दूर है। सेठ नरसी नाथा चेरिटी ट्रस्ट फंड, ३०९ नरसीनाथा बम्बई नं. ९ (यहाँ पर मुनीमजी जेठाभाई लखमसी लोडाया के हस्ते विगत प्राप्त हुई हैं। नलिया) CRUSS NEPSE BRUSS PIPORA (१४५ TOD Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६) DDDDDDDDDDDDDDDD ११. जखी मूलनायक श्री महावीर स्वामी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ १२. भुज मूलनायक जी श्री महावीर स्वामी अबडासा के पंचतीर्थ का यह गाँव है। प्रतिष्ठा वि.सं. १९०५ में हुई थी। पुनः प्रतिष्ठा २०२८ में हुई। सेठ जीवराज तथा सेठ भीमसी रत्नसी ने यह मंदिर निर्माण करवाया है। माघ सुदी ५ को हर वर्ष उत्सव होता हैं। यह मंदिर रत्नटूक कहलाता है। कोट के भीतर दूसरे आठ मंदिर हैं। कोट में ९ मंदिरों के शिखर पास-पास में होने से दृश्य अत्यंत रमणीय लगता है। यहां से नलिया १५ कि.मी. तेरा २८ कि.मी. है। धर्मशाला और भोजनशाला की व्यवस्था है। मूलनायक जी श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ की प्रतिष्ठा १६६३ में साधु आनंद शेखर की निश्रा में कल्याण सागर सूरिश्वर के उपदेश से हुई। पार्श्वनाथ जी मूलनायक बहुत प्राचीन है। मंदिर में शिलालेख है। चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मंदिर तीर्थ समान है । २६ मूर्तियाँ आरसकी हैं। भमती में ५ देरियाँ भगवान की है। एक देरी अम्बा जी की है। एक दादागुरु की है। भुज में कुल चार मंदिर शिखरबन्द हैं। भुज शहर की स्थापना वि.सं. १६०३ में हुई है। माणेक लाल शाह कंगनलाला भुज की ओर से नीचे लिखी माहिती प्राप्त हुई है। जखौ जैन मंदिर जी ऋषभदेव भगवान का मंदिर श्री कल्याण सागर सूरिजी म. के उपदेश से कच्छ के राव भारमलजी सा. ने वि.सं. १६५६ में निर्माण करवाया। शान्तिनाथजी का मंदिर संघ ने बनवाया है। वि.सं. १८५० में प्रतिष्ठा हुई ।। पार्श्वनाथ जी वि.सं. १८७७ में स्थापना हुई। संभवनाथजी की प्रतिष्ठा वि.सं. २०१६ माघ वदी ६ गुरुवार को दादाबाड़ी में हुई। जैनों के ६०० घर हैं । जिसमें से ३५० खुल्ले है। आयंबिल भवन, जैन भोजनालय हैं। सार्वजनिक पांजरापोल है। DDDDDDDDDDDDDDDDDX Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग :७- कच्छ जिला भुज जैन मंदिर 500000000000000 107001 मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी १३. वांकी तीर्थ मूलनायक श्री वर्धमान स्वामी (श्री महावीर स्वामी) ग्राम में प्राचीन श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रभु का मंदिर है। वि.सं. | २०३२ के माघ वदी ६शुक्रवार को खनन विधि वि.सं.२०३२ के फागुण सुदी ७ सोमवार को शिला स्थापना हुई। वि.सं. २०४५ वैसाख वदी ६ ता.. २६-५-८९ के शुभ दिवस पू.आ. श्री कलापूर्ण सूरिश्वरजी म.सा. की। पावन निश्रा में अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव उजवाया। उस समय से भक्त । भावुकों की वणझार वांकी तीर्थ के आंगण में हमेशा चलती रहती हैं। ५१" ईंच के अत्यन्त मनोहर एवं नयनाभिराम श्री वर्धमान स्वामी जी मूलनायक रुप में प्रतिष्ठित है। नदी किनारे बहुत ही रमणीय वातावरण है। तीन जिन मंदिर, तीन भव्य शिखरों से सुशोभित हैं। तीन-तीन विशाल एवं भव्य रंग मंडप हैं। जिनालय में प्रवेश करते ही प्रथम नृत्य मंडप आता है। उसके बाद नवपद मंडप और उसके बाद भव्य मेघनाद मंडप आता है। एवं विशाल भमती, आकर्षक ५२ पट्ट कुलिकाओं का कार्य चल रहा हैं। जो भारतवर्ष भर में अद्वितीय बनेगा। २५१ ईंच १५१ ईंच की लम्बाई चौड़ाई का जिन मंदिर है। तीर्थ के विशाल प्रांगण में दो अतिथि गृह, धर्मशाला, भोजनशाला की सुन्दर व्यवस्था है। उपाश्रय, आराधना हाल वि.बहुत ही सुन्दर व्यवस्था है। VAVAVAY मूलनायक श्री महावीर स्वामी Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ -१२ १७५ से २०० घर है। वर्तमान में २५ से ३०घर हैं। गाँधीधम से भद्रेश्वर तीर्थ होकर गुंदाला पास से भुज को आती हुई सड़क पर पत्री से आगे आत्ता हैं। भद्रेश्वर तीर्थ से ३० कि.मी. हैं। वर्धमान तत्वज्ञान जैन विद्यालय, वांकी तीर्थ, ता. मुन्द्रा-जिला कच्छ पिन ३७०४२५ फोन ४०-२२ | १४. अंजार मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी अंजार जैन मंदिर जी→ मूलनायक जी - श्री वासुपूज्य स्वामी पेढ़ी - श्री अंजार तपगच्छ जैन संघ,शास्त्री रोड, अंजार गच्छ। अंजार- श्री वासुपूज्य स्वामी के मुख्य मंदिर के मैनेजिंग ट्रस्ट श्री युत मनुभाई देव राज शाह (पडाणा हालार वाला) प्रमुख श्री उपरान्त ट्रस्टी श्री । हीरालाल प्रेमचंद संघवी से यहाँ की ऐतिहासिक माहिती नीचे लिखे अनुसार मिली है। मूलनायक -श्री वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमा प्राचीन, अत्यन्त भव्य एवं आकषर्ण उत्पन्न करने वाली हैं। ऊपर के तल में मूलनायक श्री आदीश्वर है। नीचे तीन गर्भद्वार हैं। आरस की प्रतिमा २५ उपरान्त एक आरस की चौमुखीजी है। यहाँ धातु की छुटे प्रतिमा जी ऊपर संवत १५१२ का लेख हैं। दूसरी एक धातु प्रतिमा ऊपर १५६५ का लेख है। तीसरी एक धातु की पंचतीर्थी ऊपर संवत १४२६ का लेख है। एक धातु के छुटा प्रतिमा जी ऊपर १५१२ का लेख है। एक धातु की छोटी प्रतिमा जी ऊपर १५३२ का । लेख है। एक पंचधातु की प्रतिमाजी परिकर सहित श्री महावीर स्वामी की हैं। उसके ऊपर संवत १४२६ कार्तिक सुदी१५ का लेख है। इस मंदिर का मूल प्राचीन शिललेख मिलता नहीं है। इस मंदिर को संवत २०१२ के अषाढ़ सुद १४ की रात्रि में ९ बजे अंजार में हुए भयंकर धरती कंप के कारण नुकसान पहुंचा था। इससे उसका जीर्णोद्धार संवत २०१६ माघसुदी १० रविवार को हुआ। यह प्रतिष्ठा प. पू. आ. श्री विजयकनक सूरीश्वरजी म. की निश्रा में हुई है। यह मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी के मुखकमल ऊपर गुलाबी झाय दिखती है। और खूब ही सुन्दर एवं आकर्षक दिखाई देती है। इस मंदिर के कम्पाउन्ड में तीन देरिया हैं। इनमें मध्य की देरी में श्री गौतम स्वामी, श्री जितविजयदादा तथा पूज्य आ. विजयानंद सूरीश्वरजी हैं। इसके दायी बाजू एक देरी पर प. पू. श्री विजयकनक सूरीश्वर की मूर्ति है । गौतम स्वामी की बायी बाजू मणिभद्र वीर की देरी है। यह मंदिर २५० वर्ष ऊपर का हैं। अंजार शहर ५०० वर्ष हुए बसा है। अंजार मंदिर के चौगान में बाजू में नवीन उपाश्रय तीन माला का नमूनेदार है। बगल में आयंबिल भवन है। और । तीन रूम की छोटी धर्मशाला है। एक पाठशाला ११० की संख्या वाली चलती है। दादावाड़ी में ऊपर मूलनायक विमलनाथ भगवान की मूर्ति अत्यन्त प्राचीन है । यह मूर्ति जोधपुर (राजस्थान) से लायी गयी है। अंजार श्री सुपार्श्वनाथ की सं. १८१६ जेठ सु. १३ को प्रतिष्ठा हुई है। जैनों के १६० घर हैं। Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ७- कच्छ जिला (१४९ १५. भचाउ मूलनायक श्री अजितनाथजी मूलनायक - श्री अजितनाथजी श्री अजितनाथजी का यह शिखरबंद मंदिर १५० वर्ष प्राचीन है। नवीन तीन माल का बना है। दो घर मंदिर हैं । एक में मूलनायक संभवनाथ दूसरे में मूलनायक चिन्तामणि पार्श्वनाथ। पू. आ. श्री विजय कनक सूरीश्वर जी म. का स्वर्गवास भचाऊ में २०१९ में हुआ है। जैनों के तीन सौ घर हैं। मूलनायक श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी AARAL पू. आ. श्री विजयकनक सू. म. गुरुमूर्ति Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ AKAL १६. कटारीया तीर्थ श्री कटारिया तीर्थ जैन मंदिरजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी ११.३१४१५ मूलनायक - श्री महावीर स्वामी १५० वर्ष पूजे गए। परन्तु नवीन जीर्णोद्धार के समय १९७८ में यहाँ कटारिया मंडन श्री महावीर स्वामी शिखरबंद मंदिर है। तीन आरस की ___ कटारिया गाँव में पुनः प्रतिष्ठित किये। प्रतिमायें हैं। इस मंदिर का जीर्णोद्धार श्री विजयानंद सूरि के प्रशिष्य कनक नीचे भोयरे में मूलनायक नेमिनाथ भगवान है। नीचे भोयरे में तीन विजयजी म. सा. की निश्रा में एवं उपदेश से यहाँ के श्वेताम्बर जैन संघ मे वि. प्रतिमायें आरस की हैं और इसके उपरान्त दो कायोत्सर्ग की आरस की हैं। सं. १९७८ के वैशाख सुदी ३ रविवार को कराया है। शासन देव एवं देवी की यहाँ की बोर्डिंग प्रसिद्ध है। उसमें जैन शिक्षण उत्तम प्रकार से दिया जाता प्रतिष्ठा पू. आ. श्री कनकसूरिजी म. की निश्रा में संवत १९९३ में हुई है। है। इस बोर्डिंग में पढ़े हुए करीब दस साधु महाराज हैं। यहाँ पर श्वे. मू. जैनों इस मंदिर में भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा के ऊपर सं. १६५३ का लेख के तीन घर हैं । जैन उपाश्रय है। एक धर्मशाला, एक भोजनशाला, है। मंदिर ५०० वर्ष प्राचीन है। आयंबिल खाता है। भचाऊ एवं लाकडीया के मध्य में यह तीर्थ आता है। अलाउद्दीन खिलजी यहाँ आया और उसके आक्रमण से बचने के लिए इन भगवान को पास के आनन्दपुर (वांढीया) गांव में ले गये वहां पर प्रायः PARAN A Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ७ - कच्छ जिला (१५१ १७. लाकडीया मूलनायक श्री शान्तिनाथजी लाकडीया जैन मंदिरजी मूलनायक - श्री शान्तिनाथजी संवत १८६४ में इस मंदिर की प्रतिष्ठा वैसाख सुदी १० को यति श्री की निश्रा में हुई । प्राचीन शिलालेख नहीं है। संवत २००६ में बिजली गिरने से यहाँ के शान्तिनाथजी के मंदिर में नुकसान हो गया, उसका जीर्णोद्धार पू. आ. श्री कनक सूरिजी म. की निश्रा में २००७ में वैशाख सु. ५ शुक्रवार को यहाँ के संघ की तरफ से हुआ। पू. आ. श्री विजय कनक सूरीश्वरजी म. के पट्टधर पू. आ. श्री देवेन्द्र सूरिजी म. का जन्मस्थल लाकडीया (वागड) है। तत्वज्ञविजयजी पू. कनकसूरिजी म. के शिष्य थे उनका भी लाकडीया जन्म हुआ और वे विद्वान थे। दोनों की दीक्षा भी यहाँ पर ही हुई। श्वे. मू. पू. जैन विशा ओसवाल और विशा श्रीमाली के २०० घर हैं। जैन उपाश्रय है, आयंबिल भवन है। नबूधाय उशुक्राय 13सूर्याय प्रमाणपत्र 3 केतवे सहव नमः GIR 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來源 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२) FREE श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ : १८. पलांसवा MEGREELAI HAAREE HTTER मूलनायक श्री शान्तिनाथजी मूलनायक जी- श्री शान्तिनाथजी इस मंदिर की प्रतिष्ठा सं. १९१० में हुई थी। इसके पहले यहाँ पर शिखरबन्द मंदिर था। इसका शिलालेख मिलता नहीं है। ३०० वर्षों पुराना पलांसवा जैन मंदिरजी. यह मंदिर अजितनाथजी का पहला मूल मंदिर था। बाद में पच्चीस वर्ष अलग मूर्ति पहले माले पर प्रतिष्ठित की। कोई ज्ञानवान पुरूषों ने कहा कि मंदिर में चार मूर्तियां आरस की होवें यह अच्छा नहीं है। इसलिए संघ ने अलग पलासवा गाँव के पश्चिम में गुरु मंदिर है। उसमें यहाँ स्वर्गस्थ तीनो के प्रतिष्ठित करायी। चरण हैं। जैन पाठशाला है और बहुत प्राचीन समय से चलती हैं आंबेल यह पलासवा ग्राम ९०० वर्षों पूर्व बसा है । दादा श्री विजय कनक शाला-पाठशाला कनक सूरिजी म. सा. के उपदेश से सं. १९८७ से चालू सूरिजी महा. (कच्छ - वागड़ देशोद्धारक) इस गाँव में जन्मे थे। मंदिर जी के हैं । पांजरापोल यहाँ के ही संघ के हस्ते चलती है। मंदिर को संघ ने बगल में गुरु मंदिर सं. २०२१ में बनवाया उसमें गुरुदेव श्री कनक सूरिजी म. बनवाया हैं। की मूर्ति स्थापित की। इस मंदिर के मूलनायक श्री शान्तिनाथजी के दाईं यहाँ बहिनों एवं भाईयों कुल मिलकर ४० जनों ने दीक्षा ली है यहां पर तरफ पुराने मूलनायक श्री शान्तिनाथजी है। पहले यहाँ पर मंदिर ऊपर प्राचीन समय का ज्ञान भंडार प्रख्यात है। बिजली गिरी इससे मूर्ति खंडित हुई। बाद में दरिये में पधराने की विचारणा चलती तब प. पू. दादा श्री विजयसिद्धि सूरिजी म. सा. तथा पूज्य नेमिसूरि "अक्षय जी म. के शिष्य श्री उदय सूरिजी म. सा. ने समुद्र में पधराववाने की मना की। ताया” बराबर इस समय नवीन मूलनायक के सो वर्ष से ऊपर तीन चार वर्ष हुए थे। इससे गुरुदेव श्री सिद्धि सूरिजी म. ने शताब्दी महोत्सव उजवने का उपदेश प्रदान किया अतः २०२८ में भव्य महोत्सव उजवाया। __यह मंदिर ३०० से ३२५ वर्ष प्राचीन है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार वि. सं. १९१० में गोरजी श्री पद्म विजयजी के उपदेश से उनकी निश्रा में हुआ। आज गोरजी पद्म विजयजी प्रतिष्ठा के पश्चात पू. पं. श्री मणिसागरजी दादा के शिष्य हुए। पू. मुनि श्री पद्म विजयजी तथा उनके शिष्य मुनि श्री जितविजय जी दादा स्वर्गवास सं. १९८० कच्छ-वागड़ देशोद्धारक, उनके शिष्य हीर TIT विजयजी तथा आ. श्रीकनक सूरिजीम.संसार-अवस्था के सगे चाचे-भत्तीजे ये साधु-जीवन में गुरु-शिष्य हैं। दोनों की जन्म भूमि पलासवा है। प्रचार Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठि लखपत च्छ जी 盘 सांतलपुर ल्ला मवसारी सुइगाम वाराडी भोरोल तीथे 金 ढीमा 29 रा 13 मोरवाडा 13 13 वाव भामरनवा राधनपुर 25 गडब 34 थराद 35 28 भाभरजीना 20 ना 27 ज जोधपुर की ओर दियोदर 13 18 24 - समी ㄖˋ धानेरा 56 स he 金 ऋणी. 13 शीहोरी कंबोड़! 43 समदरी की ओर स्था सा खीमंत 17 13 भरत का 盘 'भिलडीयाजी तीर्थ डुवा 18 पायावाडा णा 26 पाटण रा शीरोही की ओर धणीयावाडा भोडनारा I 22 30 दांतीवाडा काणोदर 32 सोधपुर 47 चित्रामणी 位 पालनपुर जी ज्य 38 40 14 स्केल कीमी ० ५ १० १५२०२५ आबरोड 19 दाता अबाजा खेरालु विसनगर की ओर 35 22 तारंगा हिल ल्ला 22 सा 'कुभारायाजी ब कर कां ठा जी ल्ला Page #189 --------------------------------------------------------------------------  Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग :८- बनासकांठा जिला 2G जोधपुर की और न भारतबीया Jशोरोटी को और रोटी की और र ज्य कीमी०२० बालारा AYणीवावाडा -भाराल तार्थ धानेरा खीमंत अवरोड 19 ल्ला सीसा) वराट वाम भारीयाना भरत ब 30/दांतीवादा चित्रामणी 40 20गाला) को ---20.9ोलनपुर दाता बना सका निमि26 ठा 35 दियोटर। काणोदर - डीयाजी तो हवा 32/ तिभाभरजांनी 1358डेवा सिजणी. 13 गोहोरों को 434 ल्ला मोरवाडा सारंगा हिल 2014ल्ला 891 रा -26 णा 26 सा सीध्यपुर जी खेराल पाटण विसनगर की ति वराह ओर 25 सांतलपर नाखत बनासकांठा - जिला ग्राम क्रम पेज नं. क्रम पेज नं. ग्राम १५४ ११ १६८ १५५ १६९ खीमत पांथावाडा भोडोतरा घानेरा १५६ सांतलपुर राघनपुर भीलडियाजी तीर्थ डीसा रुणी तीर्थ पालनपुर दांता १७० १३ १४ १६० १७० १५ १७१ १६२ १६३ १६५ १७२ १७४ १७ १८ हुवा धराद ढीमा तीर्थ भोरोल तीर्थ कुंभारियाजी तीर्थ दीओदर ЭнПэп १६६ १७४ বার १६७ १९ १७७ धरा १६८ १७८ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १. सांतलपुर यी MANE मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी मूलनायक श्री अनन्तनाथजी समूह मंदिर मुनिसुव्रत स्वामी जैन मंदिरजी Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग :८- बनासकांठा जिला (१५५ 參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 मूलनायकजी - श्री अनन्तनाथजी । सुमतिनाथजी का मंदिर नवीन हैं। इस मंदिर में मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिष्ठा श्री मुनिसुव्रत स्वामी - श्री सुमतिनाथजी संवत १९९१ में हुई है। मूलनायक श्री अनन्तनाथजी का मंदिर अमडका गोविन्दजी तथा लाघा श्री सुमतिनाथ का गुम्मटवाला मंदिर प्रतिष्ठा २०२६ मे हुई है इसमें तीन तथा शवगण तथा रूपशी डोसा ने कराया है। जीर्णोद्धार श्री संघ ने करवाया गर्भगृह एवं तीन शिखर हैं ।बायी और गर्भगृह में मूलनायक श्री शान्तिनाथ है। मंदिर अमडका का है। (अमडका-अटक) संवत १८६५ के वैशाख वदी ____ अति प्राचीन है। उसकी महिमा आज भी मौजूद है। प्रतिमा के सात टुकड़े ७ सोमवार को पं. श्री धर्मविजयजी की निश्रा में प्रतिष्ठा करायी है। हुए। गोरजी के मार्गदर्शन के अनुसार ७ दिन के बदले ६ दिनों में ही लापसी विधि - जाडेजा श्री मूलवाजी तथा हामजी के राज्य के मध्य हुआ। में से निकालते प्रतिमा जुड़ तो गयी परन्तु निशानी रह गई है ऐसा कहा जाता आरस की मूर्तियाँ १८ जो सब प्राचीन हैं। श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी का हैं। पांजरा पोल बहुत बड़ा है। श्री जैन संघ व्यवस्था करता है। जैनों के ५५ शिखरबन्द मंदिर आरस के ७ प्राचीन एवं भव्य आकर्षक प्रतिमायें हैं। यहाँ के घर हैं। यह शहर २०० वर्षों का प्राचीन है। आयंबिल शाला है। तीन मंदिर प्राचीन प्रतिमाओं युक्त उसी प्रकार दो मंदिर प्राचीन एवं २. राधनपुर 券缘斷综鬚條断探蟹缘缘缘缘缘拳拳拳拳。 gawu are rational InRaipur श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिरजी: 參參參參參參參參參參參參參參參參參 मूलनायक श्री सातफणा पार्श्वनाथजी मूलनायक - श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी यह नगरी प्राचीन है एवं हाईवे ऊपर आती है।इसका इतिहास भी बहुत है। श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ का पाँच गर्भगृहों युक्त एवं तीन शिखरों वाला उत्तम कला कारीगरी युक्त विशाल एवं भव्य प्राचीन प्रतिमाओं से सुशोभित यह बड़े से बड़ा मन्दिर है। इस मंदिर की विजयसेन सूरिजी म.सा. ने प्रतिष्ठा की है। इस गाँव में २४ मंदिर है। दूसरे मंदिर - विशाल आदीश्वरजी के मंदिर में मूलनायक बड़े आदीश्वरजी की प्रतिमा कुमारपाल के समय की है। इस मंदिर के वि.सं. १९९७ में दो सो वर्ष हुए है। उजा की पोल में शान्तिनाथ भगवान अति प्राचीन वि.सं.६०८ का मंदिर राधनपुर में है। वहाँ पांच गर्भगृह और तीन शिखरों से युक्त है। सबसे प्राचीन और सबसे पहले का है। सातवीं शताब्दी के शुरू में राधनदेव राजा ने यह राधनपुर बसाया तब से यहाँ शान्तिनाथ की प्रतिष्ठा हुई है। श्री सहसफणा पार्श्वनाथजी मूलनायक वाला यह मंदिर राधनपुर में सबसे बड़ा तीन मंदिर में से एक (१) श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ (२) श्री आदीश्वर दादा का (३) श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथजी । पाँच गर्भगृहों वाला एवं तीन शिखरों वाला है। नीचे भोयरे में तीन गर्भगृह हैं ।एवं श्री शीतलनाथ मूलनायक वाला यह मंदिर प्राचीन है। पाँच गर्भगृह हैं। यह मंदिर १०० वर्षो से ऊपर का है। मूर्तियाँ मनोहर हैं। श्री धर्मनाथजी का चौमुखी का मंदिर १०० वर्ष से अधिक का सुन्दर मंदिर है। Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ J-E- --- --- -- ----- ३. श्री भीलडीयाजी तीर्थ श्री भीलडीया जी तीर्थ जैन मंदिर मूलनायक जी - श्री भीलडीया पार्श्वनाथ जी ___ भीलडी स्टेशन और हाइवे के ऊपर गाँव है। यह पहले भीलपल्ली तब प्राचीन मंदिर में प्रतिमा भोयरे में थी। वि. सं. १९३६ में जीर्णोद्धार कहलाती थी। कपिल केवली के हस्ते इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई है ऐसा किया था। तीन गृभगृहों वाला नये भव्य मंदिर की २०२७ जेठ सुदी १० को कहा जाता है ।संप्रति राजा से भी प्रतिष्ठा करवाने की मान्यता है। यह नगरी पू. आ. श्री विजयभद्रसूरिजी म. के हस्ते प्रतिष्ठा हुई थी। जूना डीसा श्री बावही नाम से भी प्रसिद्ध थी।तब १२५ शिखरबन्द मंदिर थे।१२१८ में संघ इस तीर्थ की व्यवस्था सम्हालता है। और उसमें पू. आ. श्री Na श्री जिनचन्द्र सूरिजी को जिनपति सूरिजी ने यहाँ पर दीक्षा प्रदान की ॐकारसूरिजी महा. तथा पू. आ. श्री सुबोधसागर सूरिजी म. की प्रेरणा है। थी।१३१७ में ओसवाल श्रेष्ठी भुवनपाल शाह ने जीर्णोद्धार किया था। बावन जिनालय होने पर २०२७ में पू. आ. श्री विजयरामचन्द्रसूरि जी १३४४ में सेठ लखमशी द्वारा श्री अम्बिका देवी की प्रतिष्ठा का उल्लेख म. की निश्रा में भव्य अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव के साथ ही बावन है। १४ वीं शताब्दी में श्री सोमप्रभ सूरीजी म. का चातुर्मास था। नगरी का जिनालयों की प्रतिष्ठा हुई । जिसमें भव्य लोद्रवा पार्श्वनाथ, सीमन्धर विनाश जानकर पहले का सु. १४ को चोमासी कर नगर छोड़कर राधनपुर स्वामी, सहस्रफणा पार्श्वनाथ की तीन महीधर मंदिर में प्रतिष्ठा हुई और सब गये थे। सोमप्रभ सूरीजी म.को तपा खरतर अंचल गच्छ के आचार्यो ने यहाँ पार्श्वनाथजी पधराये । इस भव्य तीर्थ की यात्रा करके धन्य बनना चाहिए। आचार्य पदवी प्रदान की थी। १३९३ में अलाउद्दीन ने आक्रमण कर नाश हर वर्ष मार्गशीर्ष (पोष) वदी १० को मेला भरता है। जूनाडीसा संघ ने करने का ज्ञात होता है। जली हुई ईटें वि. निकलती हैं। इस तीर्थ की बहुत ही अधिक प्रगति कराकर प्रसिद्धि करायी है और बहुत वि.सं.१८७२ मे धरमशीभाई कामदार की प्रेरणा से इस प्राचीन मंदिर के ही उत्तम भक्ति आराधना होती है। * पास भीलडिया गाँव फिर से बसा। धर्मशाला, भोजनशाला वि. की उत्तम व्यवस्था है। 到學影图影創督凰督凰影剧剧剧剧剧學創图慰 VIDI . V Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ८ - बनासकांठा जिला 956) aarc00000 WORDOI HD 9900000809080SURANUSURUROHORORRORTAURU GRURORURGRURGRURURURURURURUS मूलनायक श्री भीलडीया पार्श्वनाथजी HARYANA Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ શ્રીસહસ્ત્રફણા પાર્શ્વનાથજી है.60 सहफणा पार्श्वनाथजी श्री लोद्रवाजी पार्श्वनाथजी भीलडीयाजी जैन मंदिरजी Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग :८- बनासकांठा जिला (१५९ શ્રી સીમંધર સ્વામી Jeani. ellasi पुख्खलवई विजये जयोरे, नयरी पुंडरी गिणी सार, श्री सीमन्धर साहिबा रे - राय श्रेयांसकुमार जिणन्दराय धरजो धर्मस्नेह ॥१ ।। मोटा नाना अंतरो रे गिरुआ नवि दाखन्त, शशि दरिसन सायर वधेरे, कैरव बन विकसन्त, जिणन्द. ।। २ ।। ठाम कुठाम नवि लेख वे रे, जग वरसन्त जलधार, कर दोय कुसुमे वासिये रे, छाया सवि आधार । जिणन्द. ।। ३ ।। राय ने रंक सरीखा गणोरे, उद्योते शशी सूर, गंगा जल ते बिह तणारे, ताप करे सवि दूर । जिणन्द. ।। ४ ।। सरीखा सहुने तारवा रे तिम तुमे छो महाराज मुझशुं अन्तर किम करोरे, बाह्य ग्र ह्यानी लाज । जिणन्द, ।।५।। मुख देखी टीखें करे रे, ते नवि होय प्रमाण, मुजरो माने सवि तणो रे, साहिब तेह सुजाण, जिणन्द. ।।६।। वृषभ लंछन माता सत्यकी रे, नंदन रुक्मिणि कन्त, वाचक जश एम विनवे रे, भय भंजन भगवन्त । जिणन्द. ।। ७ ।। श्री सीमन्धर स्वामीजी भीलडीयाजीबावनजिनालय Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ GOGS ४. डीसा नवाडीसा-श्री पुरुषादानीय पार्श्वनाथ जैन मंदिरजी Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग ८ बनासकांठा जिला એક શ્રી મહાવીરસ્વામીનું 72800239726 मूलनायक श्री महावीर स्वामी नेमिनाथ नगर मूलनायक श्री नेमिनाथजी महावीर स्वामी जैन मंदिरजी मूलनायक जी श्री महावीर स्वामी नवा डीसा नगर में जैन मंदिरों की सूची प्रथम नवाडीसा श्री महावीर स्वामी जिनालय ठि. रिसाला बाजार, श्री पुरिसादाणी पार्श्वनाथजी सदरबाजार सो वर्ष प्राचीन है। मूर्ति ५१८ वर्ष प्राचीन है। श्री नेमिनाथजी नेमिनाथ सोसायटी श्री चार शाश्वत जिन श्रीपालनगर सोसायटी श्री महावीरस्वामी जैन बोर्डिंग श्री आदीश्वरजी श्रेयांस सोसायटी ऊपर के बहुत से मंदिर शिखरबन्द हैं। श्री छोगाजी नथाजी का घर मंदिर ठि. सोनीवास नवाडीसा श्री नेमचंद जेसिंगलाल का घर मंदिर ठि. रिसाला श्री चंपकलाल दीपाजी का घर मंदिर ठि. सदरबाजार रिसाला नूतन मंदिर की प्रतिष्ठा अंजनशलाका सह २०३७ में पू. आ. श्री विजय रामचन्द्र सूरिजी म.सा. की निश्रा में भव्य रीति से हुई थी । डीसा बनासकांठा जिला का सेन्टर है। हरेक तरफ से साधन मिलता है। (१६१ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२) गोडी पार्श्वनाथजी चरणपादुका ५. ऋणी तीर्थ रूणी तीर्थ नवीन जैन मंदिरजी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ रूणी तीर्थ जैन मंदिरजी Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग :८- बनासकांठा जिला YOX मूलनायक - श्री गोडी पार्श्वनाथ यहाँ पर प्राचीन मंदिर हैं ५०० वर्ष प्राचीन - यह घुमट वाला मंदिर है। प्राचीन देरी में गोडी पार्श्वनाथ की चरण पादुका (पगला) है। जहाँ पर मंदिर था वहाँ पर दुसरा मंदिर थरा के रहने वाले शाह कालिदास घेलचंद ने नया बनाया है। __पाटण (गुजरात) के कुमारपाल राजा का राज्य था। यहाँ आ.श्री हेमचन्द्राचार्य म. की परम तारक निश्रा में वि.स.१२२९ में प्रतिष्ठा महोत्सव अंजनशाला कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य देवश्री हेमचन्द्राचार्य के शिष्य रत्न बालचन्द्र ने खराब मुहूंत (आचार्य पदवी के लोभ में) देखा। अजयपाल को राजगद्दी कालोभ था। सच्चा मुहूर्त था तब वहाँ से प्रतिमा लेकर आदमी आया उससे पू.श्री को अशुभ षडयन्त्र ज्ञात हुआ। उसी समय उन्होने कहा कि मेरी एवं कुमारपाल राजा की मृत्यु ६ माह में होगी- उन तीन प्रतिमाओं की सच्चे मुहूंत में अंजनशाला हुई उनमें से एक पाटण के भोंयरा में एक तारंगा और एक महेमदाबाद को पधराई। आज इस प्राचीन मंदिर के बाजु में नूतन मंदिर तैयार हो रहा है। उपाश्रय नवीन तैयार है। यह जैन तीर्थ बनासा कांठा जिला के काँकरज । तालुका के || रूणी ग्राम में है थरा से ३ कि.मी. है। ६. पालनपुर SSSSSS सब बात कही पाप के निवारण करने को कहा ।आचार्य जी ने उनको पार्श्वनाथ प्रभुजी का मंदिर बनाने तथा प्रभुजी का न्हवण जल छीटने को कहा। उन्होंने भी उसी प्रकार किया एवं निरोगी हो गया तथा धर्म की प्रभावना की। वह विद्वान था। बहुत सारे ग्रन्थ बनाये थे। 'पार्श्व पराक्रम आयोग' नाम का नाटक ग्रन्थ आज भी मौजूद है। राणकपुर की प्रतिष्ठा कराने वाले में श्री सोम सुन्दर सूरि म. का वि. सं. १४३० में यहाँ पर जन्म हुआ। जगदगुरू हीरसूरिजी म. का १५८३ में यहाँ है जन्म हुआ। इस मंदिर के सामने बहिनो का उपाश्रय है। यह उनकी जन्म भूमि गिनी जाती है। इस मंदिर में दूसरी भी भव्य प्रतिमायें है। १३५५ में माँ अम्बिका की मूर्ति तथा १२७४ में सर्वदेव सूरिजी म. की गुरु प्रतिमा में लेख है। दूसरे १४ मंदिर हैं उनमें भी प्राचीन प्रतिमायें है ।शान्तिनाथ मंदिर मोटा ब्रह्मवास में १८४८ वै.सुदी ६ शुक्रवार प्रतिष्ठा का लेख है। महावीर स्वामी मंदिर के मंडप में १९८९ माघ सुदी १३ दुसरे गुरूवार को पालनपुर निवासी हीरालाल रायचंद के भणशाली परिवार ने प्रतिष्ठा कराई ऐसा लेख है। यहाँ तथा अमीरगढ मे निकली हुई ११७५ तथा १८४४ की महावीर स्वामी आदि की प्रतिमाओं की १९९८ में आ.ललित सूरिजी महा. कस्तूरसूरिजी महा.के वासक्षेप से प्रतिष्ठा करायी है। पल्लवीया पार्श्वनाथ जैन मंदिर जी मूलनायक - श्री पल्लविया पार्श्वनाथजी हनुमान शेरी, पालणपुर आबु के परमार राजा धारावर्ष देव के भाई प्रहलाद ने तेरहवी सर्दी में प्रहलादनपुर अपने नाम से बसाया। यह प्रहलादन राजा जैन धर्मी बना और यह जिन मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करायी ।संयोगवश इस प्रतिमा का उत्थापन हुआ और सं.१२७४ में फाल्गुन सुद ५ को कोरंट गच्छीय आ. श्रीक्क सूरिजी म.के हस्ते वर्तमान प्रतिमा की प्रतिष्ठा हुई ।प्रहलादन पार्श्वनाथ राजा के नाम से कहलाया। अभी वे पल्लवीया पार्श्वनाथ कहलाते है। कहा जाता है कि राजा प्रहलाद ने आबू देलवाड़ा की एक विशालकाय धातुमय प्रतिमा गलाकर अंचलेश्वर महादेव के मंदिर में नंदी बनाया था। उससे उसको कोढ़ निकला वह जंगल मे जाता रहा वहाँ श्री शालिभद्र सूरिजी म.उसको मिले। Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ CRPCOCCU JA88888888888888888888888MYR888888YRONYSOSYS 8&VRU3R8R&RURGRUBERERERERERERUR ERURURURU 25. SHRI PRAHLAVIYA PARSHVANATH BHAGAVAN (श्रीप्रविया पानाय भगवान) श्री पल्लवीया पार्श्वनाथजी पालनपुर 888888888888888888888888888888888888888888 Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ८ - बनासकांठा जिला (१६५ HI-EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEN ७. दांता दांता जैन मंदिरजी मूलनायक श्री शान्तिनाथजी मूलनायक श्री शीतलनाथजी संप्रति राज्य के समय का प्राचीन मंदिर है। वर्तमान के मंदिर स्थल से खुदाई कार्य करते समय चार भगवान की चार प्रतिमायें निकली हैं जो इस स्थान में प्राचीन मंदिर था उसकी साबीति देती है। कुल १५ प्रतिमायें है। आदीश्वर दादा की पद्मासन अति प्राचीन प्रतिमाजी है। जमीन में से निकली श्री अजितनाथजी की भव्य प्रतिमा मलाड ट्रस्ट रत्नपुरी में मूलनायक है। वर्तमान में जीर्णोद्वार का कार्य चालू है । उपाश्रय है। भविष्य में पेढी, धर्मशाला भोजनशाला बनवाने का विचार है। यह दांता गाँव स्टेट था। प्राचीन नगर है। चारो ओर कोट है। जूना खण्डहर उसकी प्राचीनता बताते हैं। पालनपुर से बस-जीपें चलती हैं। याबागाय 來來來來來來來來來來來來噢噢來噢噢噢噢噢噢源 Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ८. भाभर श्री मुनिसुव्रत स्वामी जैन मंदिरजी मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी यह मंदिर लगभग १०० वर्ष प्राचीन है। तीन मंदिर गाँव में है ।इस जिनालय की प्रतिष्ठा वि.स.१९५२ श्रा.सु... १० के रोज हुई। भोजनशाला, उपाश्रय, पाठशाला, जैन बोर्डिंग वगैरह की व्यवस्था बहुत ही अच्छी है। -मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ८ - बनासकांठा जिला E-EFFEEEEEEE---- ९. वाव मूलनायक श्री गोडी पार्श्वनाथजी श्री गोडी पार्श्वनाथजी जैन मंदिर मूलनायक श्री गोडी पार्श्वनाथजी इस जिन मंदिर की प्रतिष्ठा पू. ऊँकार सूरिजी म. सा. के हाथ से वि. सं. २०३० में हुई। इस मंदिर में सुन्दर कला एवं कारीगरी वाला पटासन है। श्री अजितनाथ की धातु की प्रतिमा प्राचीन है। प्राचीन ३ मंजिल मंदिर पूर्व में था। जो लोगों ने देखा था। प्राचीन स्थान से खुदाई का काम करते समय प्राचीन मंदिर निकला। उसी स्थान पर नवीन जिन मंदिर बनवाया हैं। यह स्वर्ण की प्रतिमा हैं ऐसा मानकर अल्लाउद्दीन लेने आने वाला था। उस भय से थराद से श्रावक यहाँ पर लाया और दूसरी मूर्ति को वरख लगाकर बनाया जिससे शंका न हो। श्री गोडी पार्श्वनाथजी के लेख में वि.सं. १४३२ वर्ष फा. सुदी-२ भृगुवासरे अचलगच्छ श्री मद्नरेन्द्रसूरि गच्छेशितुः पिप्पलाचार्य अभयदेव सूरिणाम् उपदेशेन उसमर्थ शार मेवा धाडके। ___ इस लेख द्वारा निश्चिन्त होता है कि प्रगट प्रभावी पार्श्वनाथ की मूल प्रतिमा इस जिनालय में प्रतिष्ठित मूर्ति है। यह लेख प्रभुजी के पीछे हैं। यह मंदिर गाँव के बाहर था। यहाँ से गोडी गाँव का ४ घन्टे का रास्ता है। जो वर्तमान में पाकिस्तान में हैं। -RE-RELESEHORE - R E - - Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १६८) १०. थरा DROINTMETRana REASTRO थरा जैन मंदिरजी Poli प्रगट प्रभावी श्री गोडी पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा बहुत ही चमत्कारपूर्ण है। शिखरबन्दी मंदिर है। पास में दो मंदिर हैं। आदीश्वर दादा महावीर स्वामी | आदीश्वर की प्राचीन प्रतिमा है। उपाश्रय एवं आयंबिल खाता है। यह जैन तीर्थ भाभर से दीयोदर रोड EOHHE ऊपर आता है। यहाँ पर कुल बस्ती १०००० की हैं। जैन घर २५० आसपास हैं। श्री गोडीजी पार्श्वनाथ तीर्थ मु. थरा - ३८५५५५ ता. कांकरेज (जिला बनास कांठा) उत्तर गुजरात मूलनायक श्री शान्तिनाथजी ११. खीमत ERALASAR मूलनायक श्री चन्द्रप्रभ स्वामी यह भव्य मंदिर १०० वर्ष प्राचीन है। इस जिनालय की वि. सं. १९९५ म. सुद ७ के रोज पूज्य आ. रंगविमल सूरि म. सा. के हाथों से प्रतिष्ठा हुई है। 'मुख्य मंदिर के उपरान्त छोटे मंदिरजी ४ हैं। विशाल रंगमंडप है। LATE आदीश्वर दादा का जिन मंदिर २५० वर्ष प्राचीन है। तदुपरांत चिन्तामणि पार्श्वनाथ जी की प्रतिमा जमीन में से चुदाई करते समय मिली है। ओली आयंबिल खाता वगैरह चलते हैं। बहुत विहार रहता है। विशेष - पू. सुदर्शन विजयजी म. सा. ने इस गाँव में दीक्षा ग्रहण की थी। ANIA KHNAAD ESH Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ८ - बनासकांठा जिला (१८९ LILLAGE श्रीdung बीएन मूलनायक श्री चन्द्रप्रभु जी चन्द्रप्रभ स्वामी जैन मंदिरजी १२. पांथावाडा श्री आदीश्वर जैन मंदिरजी मूलनायक श्री आधीश्वरजी मूलनायक आदिनाथजी यह ७५० वर्ष पूर्व का प्राचीन जिन मंदिर है। जीर्णोद्धार हुआ है। जीर्णोद्धार पू.आ. ऊँकार सूरीश्वरजी म. के उपदेश से वि. सं. २०४२ वैशाख सुदी ६ के रोज हुआ। दूसरा शीतलनाथजी का जिन मंदिर है। यह जिन मंदिर वि. सं. २०४७ वै. सु. ६ के रोज नवीन बना है। पू. आ. विजय कपूर सूरीश्वरजी म. सा. की देरा हैं। जिन्होंने यहाँ पर नि. सं. २००२२ माघ सुदी ११ को स्वर्गवास प्राप्त किया था। वे महा तपस्वी थे । श्री नेमचन्द कस्तूरचन्द सवाणी व्यवस्था संभालते है। Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१. १३. भोडोतरा मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी पांथावाडा के पास यह गाँव है। १४. धानेरा श्री शन्तिनाथजी जैन मंदिर मूलनायक श्री शान्तिनाथजी Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ८ - बनासकांठा जिला (१७१ RSS - मूलनायक - श्री शान्तिनाथजी यह ७००/८०० वर्ष प्राचीन भव्य जिनालय है। रंगमंडप सुन्दर है। पहले यह भोयरा था। दुसरा दादा आदीश्वरजी का शिखरबन्द मंदिर है। गिरी पहाड़ से यह प्रतिमाजी लायी गयी है। इस जिन मंदिर की प्रतिष्ठा वि. सं. २०३९ में हाई । नीचे कुलदेवीजी का सुन्दर मंदिर है। नवीन सोसायटी में भी दो जिन मंदिर है। पूज्य रामसूरिजी म. डेलावाला क सद् उपदेश से इस मंदिर का निर्माण हुआ है। प्रदक्षिणा में चित्रपट हैं। अचिरानंदा शान्ति जिणंदा शान्तिसुखदातार, वंदन भावे करूं ॥१॥ विश्वसेन नृपना कुलमाँ ओ दीवो, मृगलाञ्छन मनोहार वंदन, ॥ २॥ इन्द्र चन्द्र नर नागेन्द्र देवो, सेवा तुज करनार । वंदन. ॥ ३॥ गर्भथकी पण मारी निवारी-सार्थक नाम धरनार । वंदन. ॥४॥ पारेको प्रभुजी आपे बचाव्यो, अभयदान देनार । वंदन ।। ५॥ दावानल सम आ भव थी बचावी द्यो शिवनार। वंदन. ॥६॥ लाखाबावल माँ आप बिराजो सयल संघ सुखकार। बंदन, ॥७॥ गुरु कर्पूर सूरि अमृत विनवे, करजोडी वारम्वार। वंदन, ॥८॥ म MEIN १५. डुवा S पyार्य है। SHAIL.GAN 2520 QEAGLE हुवा जैन मंदिरजी मूलनायक श्री अमीझरा पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री अमीझरा पार्श्वनाथजी इस मंदिर का जीर्णोद्धार वि. सं. १८३९ में का. व. ६ के रोज हुआ है। इन प्रभुजी का अनोखा चमत्कार देखने को मिलता हैं। कोई चोर मंदिर में चोरी नहीं कर सकता है। आगे कोई चोर प्रभु के आभूषण मुकुट वगैरह चुरा ले गया और वापिस दे गया। पद्मप्रभुजी का मंदिर भोयरा में पहले था। जो अभी ऊपर लाकर पार्श्वनाथजी मंदिर की पास में जिन मंदिर बनवाया है। भोयरे के ऊपर यह जिन मंदिर है। यहाँ का जो भोयरा है वह भीलडीयाजी में निकला है ऐसा कहा जाता है। उपाश्रय दो प्राचीन और दो नवीन उपाश्रय है। धर्मशाला भोजनशाला की अच्छी व्यवस्था है। जैन घर ५ हैं। व्यवस्था : धानेरा श्वे. मू. त. जैन संघ करता है। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १६. थराद મિતવીરવાત્રી मूलनायक श्री महावीर स्वामी मूलनायक श्री आदीश्वरजी HED श्रीमहावीरस्वामीजैन मंदिरजी Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ८ - बनासकांठा जिला (१७३ मा SOINE ALMH TATION છે. પિતાથી मूलनायक श्री विमलनाथजी समीप में श्री पार्श्वनाथजी EOHD TAKA मूलनायक श्री महावीर स्वामी भगवन्त पहले का प्राचीन जिन मंदिर अत्यन्त प्राचीन था। वह जमीन में दब गया। भूमि में होने से कभी-कभी पानी भर जाता था। इससे ये प्रतिमाजी लाकर नवीन मंदिर में प्रतिष्ठित की। यहाँ पर १० मंदिर है। शासन नायक भगवान महावीर स्वामी की वि. सं. १५४१ में यहाँ पर भूगर्भ में से ५ फुट की प्रतिमा प्रगट हुई। वह प्राचीन है। थराद जैन संघ ने २४ देहरी शिखरों युक्त भव्य मंदिर बनाया है। थराद के संघपति आभू प्रसिद्ध है। उन्होंने अपना १३४० में शत्रुजय का संघ निकाला था। यह प्रसिद्ध मंदिर वीरपाल धरु नाम के यहाँ के राजा की बहिन ने बनाया था। यहाँ पर श्री वटेश्वर सूरिजी ने थिराप्रद गच्छ की स्थापना की थी। पू. आ. वि. यतीन्द्र सूरि म. सा. के सदुपदेश से अंजनशलाका वि. सं. २००८ माघ सुदी ६को हुई। पास में ऋषभदेव जी की अंजनशलाका वि. सं. २००१ फा. सु.५ के दिन हुई। मंदिर में विशाल प्रांगण हैं। सुन्दर रंगमंडप हैं। डीसा ५५ कि.मी. भोरोल तीर्थ २२ कि.मी. हैं। बस और टैक्सियाँ मिलती हैं। ESHENBE बलदासाचारपनि SUMMERCIRS50Dalna समीप में श्री महावीर स्वामी S साल BHA FORal R EPAROR E.AJE DOE SIN Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - - - - - - - १७. ढीमा - - श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ - - - -- ढीमा तीर्थ जैन मंदिर -मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी मूलनायक - श्री पार्श्वनाथजी यह मंदिर अति प्राचीन १५०० वर्ष प्राचीन हैं। प्रथम कुमारपाल महाराज के समय में जीर्णोद्धार हुआ था। द्वितीय जीर्णोद्धार वि. सं. १९८७ में हुआ। गर्भगृह में भोयरा हैं उसके उपर अगर की लकड़ी उपर निर्माण कार्य हुआ हैं। तारंगा के बराबर ही निर्माणकार्य यहाँ पर हैं। प्राचीन समय में यह एक नगरी होगी। अत्यन्त प्राचीन लेख हैं। परन्तु पढ़ने में आता हो ऐसा नही हैं। मंदिर के चारों और वरंडा हैं। उपाश्रय हैं डीसा से बस कार मिलती हैं। १८. भोरोल तीर्थ Y- - - - भोरोलतीर्थ जैन मंदिरजी - - - - Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ८ - बनासकांठा जिला (१७५ भोरोलतीर्थ मुलनायक श्री नेमिनाथजी ON Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ A भोरोल तीर्थ मंडन - श्री नेमिनाथ भगवान यहाँ मंदिर में तीर्थनायक श्री नेमिनाथ प्रभु की श्याम पाषाण की भव्य प्रतिमाजी देखते हुए आँखें शीतलता का अनुभव करती हैं। बैठने के पश्चात उठने का मन नहीं होता हैं। २४ कुलिकाओं से सुशोभित यह मंदिर अत्यन्त भव्य हैं। उपाश्रय की भोजनालय, और यात्रीगणों से पवित्र बनी धर्मशाला इस तीर्थ की भव्यता में बहुत ही वृद्धि करती है। कार्तिक तथा चैत्र की पूर्णिमा को मेला भराता है। १२६१ में श्री नेमिनाथजी की प्रतिष्ठा श्री जयप्रभ सूरिजी ने की थी। १३०२ में अचलगच्छ के पुण्यतिलक सूरिजी महा. के उपदेश से पुजा शाह ने ७२ जिनालय बनवाये थे। ग्यारह वीं से सोलहवीं शताब्दी में इस स्थान पर आठ किलोमीटर के घेराव में पीपलपुर पट्टण नाम की आबाद नगरी थी। यहाँ पर ६० क्रोडाधिपति निवास करते थे। जैनों की बहुत बड़ी बस्ती होने से इस नगरी में से पीपलगच्छ की स्थापना हुई। श्री नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा कृषक को खुदाई करते समय दृष्टिगोचर हुई उस समय उनकी नासिका खंडित थी। इस कारण से वह प्रतिमा तालाब में विसर्जित करायी। फिर १९६० में प्रगट हुई। जिसको भोरोल गाँव में लाकर विराजित की। उस समय प्रतिमा में से अमृत झरता था जिस अमृत से मुनि श्रीरत्नविजयजी की नष्ट हुई आँखों को तेज मिला था। १५० से २०० वर्ष पूर्व समीप के वाव थराद वि. गाँवों से जैन श्रावक यहाँ आकर बसे थे। जिसमें मेता, वीरवाडीया, संघवी वगैरह अटक मुख्य थी। जैन श्रावक यथाशक्ति धर्माराधना करते थे। नेमिनाथजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा सं. १९९९ को पू. आ. श्री शांतिचन्द्र सू. म. के हस्तों से फा. सु. ३ को हुई। _ मंदिर का मूल से जीर्णोद्धार कराके २४ जिनालय बना है। उनकी अंजन प्रतिष्ठा सं. २०५२ वै. सु.७ को पू. राजतिलक सू. म. पू. महोदय सू. म. आदि के कर-कमलों से होगी। | MATALAAMANAS यहाँ आने वाले यात्रियों को निवास करने, भोजन, स्नान, पूजा-सेवा करने वगैरह की सुंदर व्यवस्था है। भोरोल आमें के लिए थराद से बसे आती जाती हैं। आव्यो शरणे तुमारा, जिनवर करजो, आश पुरी अमारी; नाव्यो भवपार मारो, तुमविण जगमां सार ले कोण मारी ? गायो जिन राज आजे हरख अधिकथी, परम आनंदकारी; पायो तुम दर्शनाशे, भवभय-भ्रमणा, नाथ सर्वे अमारी. भवोभव तुम चरणोनी सेवा, हुं तो मागुं छु. देवाधिदेवा; सामु जुओने सेवक जाणी, ओवी उदयरत्ननी वाणी. Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ८ - बनासकांठा जिला (१७७ १९. कुंभारीयाजी तीर्थ पुनाराया जाताथ जन मादरजा मूलनायक श्री नेमिनाथजी गुरु महाराज ने मंदिर के काम के समाचार पूछे । पासिल ने कहा देवगुरु ९१ इंच की यह प्रतिमाजी सुन्दर एवं भव्य है। पूर्व में यह कुंभारीया गाँव की कृपा से चलता है ऐसा कहा। उसमें अम्बिका को अपना नाम नहीं लेने आरासणा नाम से पहचाना जाता था। यह बहुत बड़ी नगरी थी। अब यहाँ से गुस्सा आया। खान बन्द हो गयी काम अटक गया। अवशेष मिलते हैं बाकी जंगल है। पासिल ने पाटण से वादी देव सू. म. तथा हाँसी श्राविका को आमंत्रण कहा जाता है कि विमलशाह मंत्रीश्वर ने यह मंदिर १०८८ में बनवाया भेजा। पश्चात देव ने भव्य रीति से प्रतिष्ठा करायी। हाँसी ने पासिल के पास था। सबसे बड़ा मंदिर नेमिनाथजी का है। आ. श्री वादीदेव सूरिजी म. ने आज्ञा मांगी नव लाख रू. खर्च करके मेघनाद मंडप कराया। पासिल को भी (११७४-१२७६) में यहाँ नेमिनाथ प्रभु की प्रतिष्ठा की थी। यह मंदिर काम पूर्ण होने पर संतोष हुआ। आरसणा के गोगा मंत्री के पुत्र श्री पासिले ने बनवाया था। वादी देवसूरिजी ऐसी अनेक प्रकार भव्यता से मन को आकर्षित करने वाला तीर्थ है। म. सा. ने नेमिनाथ जी की प्रतिष्ठा करायी थी। अन्य मंदिरों में १११८ यहाँ पर महावीर स्वामी, पार्श्वनाथजी, शान्तिनाथजी, संभवनाथजी के ११३८ के लेख हैं। १६७५ माघ सुदी ४ को श्री विजय देवसूरिजी म. के जिन मंदिर हैं। महावीर स्वामी के मंदिर की सूक्ष्म कला एवं कारीगरी है। हाथों से जीर्णोद्धार पश्चात प्रतिष्ठा कराने का लेख है। बहुत से कल्याणक आदि के प्रसंग उत्कीर्ण है। कायोत्सर्ग में ११७९ संवत् है। ____गोगा मंत्री पुत्र पासिल पाटण गये। वहाँ राजविहार मंदिर को सूक्ष्मता से पार्श्वनाथ के परिकर में १२१२ संवत है। नेमिनाथजी के मंदिर के रंगमंडप में कायोत्सर्ग में १३१४ संवत है। देखने गया। वहाँ पर हाँसी नाम की श्राविका ने मजाक की कि क्या सूक्ष्मता अम्बाजी गाँव से एक कि.मी. दूर दांता मार्ग पर यह तीर्थ है। आबु रोड से देखते हो, तुम्हें ऐसा मंदिर बनवाना हैं? पासिल तो गरीब था उसने नम्रता २४ कि.मी. है। धर्मशाला भोजनशाला की व्यवस्था है। जीर्णोद्धार से कहा 'मेरे से ऐसा मंदिर बनेगा? फिर भी बने तो आपको आना पड़ेगा। चलता है। उसने अम्बिकाजी की आराधना की। सीसे की खान चाँदी की बन गयी सेठ आनंदजी कल्याण जी पेढ़ी कुंभारीया पो. अम्बाजी (ता. दांता) मंदिर चालू किया। जि. बनासकांठा। SKAR HOGESAR Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री नेमिनाथजी -मूलनायक श्री नेमिनाथजी २०. दीओदर MinimlMANTI दीओदर शान्तिनाथजी जैन मंदिर मूलनायक श्री शान्तिनाथजी Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डीसा दांता की ओर स्केल TTTTTTE कीमी ० ५ १० १५ २०२५ । पालनपुर की ओर सेनवासना धरोइन - मेवाणा Vल्ला तारगा । 19 A सिधपुर 26 1.खेरालु राधनपुर इडर की ओर सा 1. उजा 23/Tवडनगर 1816 उपपुर 25 . 27| 2वीसनगर लोद्रा समी 15 ले धोणोज 21 चाणमा ++2ी गांभु कबोइ __nt 19 तकनेरा 19 हारिज गावा जी हिंमतनगर महेसाणा वजापुर 47 आगलोड 125/- मुजपुर मोढेरा 6.14 शंखलपुरा बेचराजा - - Jलीबोद्वा ल्ला . लोलाडा 'शंखेश्वर HIURHI सीतपुर की ओर पंचासर -नदासण घेलडा की ओर वडगाम की ओर . पानसर कडा रांधेजी जील्ला कललि. गांधीनगर वामंजशेरीसा भोयणी खोडीयार की ओर • विरमगाम अहमदाबाद Page #217 --------------------------------------------------------------------------  Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला दांता की ओर NPPS सेनवासमा जाणा ल्ला / 14सारंगा AAA खेरालु की ओर का बडनगर 'बालम वीमनगर मयी 15THAN बना स कां ठा A221 पायास्या कालिगभुमो 115 हारित 19 ति करा ति विजापुर /लीबोग ल्ला 415मजपुर जला नि लोनाडा शंखेश्वर 118 / . । पचासरतमालपुर की ओरK OM दमर.. मेला की ओर/ बडगाम की ओर आ जील्ला पशाभार ) रण धानमर 125 A कतान गांधीनगर वाज शरीसा श्रावणी 31r खोडोबार की ओर विरमगाम क्रम पेज नं. १८० १९. in o Errorg २४. गाम कंबोई तीर्थ हारीज विजापुर 'आगलोड मोढेरा महेसाणा तीर्थ गांभु तीर्थ कनोडा धीणोज चाणस्मा रूपपुर तीर्थ पाटण चारूप तीर्थ मेत्राणा तीर्थ सिद्धपुर तांरगाजी तीर्थ वडनगर तीर्थ महेसाणा जिल्ला पेज नं. गाम वीसननगर १८० ऊँझा १८१ वालम तीर्थ १८३ २२. शंखलपुर. १८४ २३. कडी १८४ कलोल १८७ २५. लोलाडा तीर्थ २६. मुंजपुर २७. पंचासर १८९ शंखेश्वरजी तीर्थ १९० रांतेज तीर्थ भोयणी तीर्थ १९३ वामज तीर्थ शेरीशा तीर्थ १९५ पानसर तीर्थ १९७ ३४. नंदासण तीर्थ १८७ १०. १८८ २०५ २०६ r २८. १२. १३. १४. २९. २११ १९० १९२ m २१२ m १५. २१४ m २१५ २१८ m १७. १८. २२० -सब- ब - ब- ब- ब- ब-RELA Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१८०) 麗麗邋邋邋邋邋邋邋麗麗辘辘 १. कंबोइ तीर्थ मूलनायक जी श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी मूलनायक जी श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी मूर्तियों के शिलालेख वि. सं. १५०४, १५०५ का हैं। सन १६५९ में मोगल सम्राट अकबर प्रतिबोधक पूज्य आ. श्री विजय हीर सूरिजी म. की निश्रा में अंजन शलाका प्रतिष्ठा हुई है। सम्प्रति राजा के समय की प्रतिमा है। दो जीर्णोद्धार वि. सं. १४६८ वि. सं. २००३ में हुए हैं। और सुन्दर रंगरोगन हुआ है। श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-9 कंबोई तीर्थ जैन मंदिर कहा जाता है कि कभी-कभी रात में घन्टा ध्वनि, झांझर की झनकार नाटारंभ धूप की खुशबू फैलती है। थोड़े वर्षों पूर्व पू. आ. श्री भक्ति सूरीश्वरजी म. सा. शिष्यों के साथ पधारे थे तभी बाजे, नगारे घन्टा ध्वनि दोपहर में हुए। बहुत मनुष्यों ने सुनी । T व्यवस्था - सेठ लालभाई के सुपुर्द है। सं. २००१ से कमेटी व्यवस्था करती है। २. हारीज सुन्दर धर्मशाला, भोजनशाला, भाता खाता स्थायी चालू है। मेहसाणा से राधनपुर से बस जीपें मिलती हैं। मूलनायक श्री नेमिनाथजी काँच का सुन्दर नक्काशी का काम है। पाटण से जगराड गाँव से लायी । प्राचीम प्रतिमाजी है। पहले इस विस्तार में मंदिर था। पास में गादला गाँव में से खुदाई का काम करते समय प्राचीन खंडित प्रतिमाजी मिली है। जैनों के ७० घर हैं। 麗麗麗麗麗麗麗麗辘辘辘辘辘辘 Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला मूलनायक श्री नेमिनाथजी हारीज जैन मंदिरजी ३. विजापुर मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी यह जिन मंदिर अति प्राचीन है। सम्प्रति राजा के समय की प्रतिमा है। १००० वर्ष पहले का प्राचीन निर्माण कार्य देखने को मिलता है। नीचे तलघर में मुसीबत के समय प्रतिमाओं का भंडारण हो सके इसके लिए भोयरा है। ऊपर दो मंजिल हैं। पहली मंजिल में नेमिनाथजी दूसरी मंजिल में अजित नाथजी बगल में आदीश्वर प्रभु का गर्भगृह है। नवपदजी एवं शत्रुजय के पट हैं। शिखरबन्द बनाने का विचार चल रहा है। परन्तु वर्तमान में घुमट वाला मंदिर है। पीतल की नक्काशी वाला दरवाजा है। चारों ओर कोट है। आरसकी - ४० धातु की १०० से ऊपर प्रतिमायें है। यह नवीन भव्य मंदिर है। पू. आ. श्री बुद्धिसागरजी म. के गुरु मंदिर वगैरह हैं। यहाँ पर १ करोड़ के खर्च से ज्ञान भंडार बन रहा हैं। ५००० हस्तलिखित प्रतियाँ हैं। ४५ आगम ताड़पत्रों में तैयार किये हैं। पू. आ. सुबोधसागर सूरीश्वरजी म. के उपदेश से यह निर्माण कार्य हुआ हैं। भव्य विशाल धर्मशाला हैं। भेजनशाला हैं। उपाश्रय दो है। यात्रीगण आते हैं। व्यवस्था उत्तम है। GON -मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२) 可可网 get मूलनायक श्री स्फुलींग पार्श्वनाथजी 又 24 Dro श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ स्फुलिंग पार्श्वनाथ जी जैन मंदिर LABORA चिन्तामणि पार्श्वनाथजी मंदिर श्री बुद्धिसागर सूरीश्वर जी स्मृति मंदिर 又 Downl 欧美图 又又LO文 Q R S D5048 2 503 30 DOG Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग:९ - महेसाणा जिला (१८३ । ४. आगलोड मूलनायक श्री सुमतिनाथजी श्री सुमतिनाथ जैन मंदिर मूलनायक - श्री सुमतिनाथजी पाँच प्रतिमायें जिसमें दो प्रतिमा सम्प्रति राजा के समय की देखने को विजापुर गाँव के पास यह तीर्थ हैं। जैन शासन रक्षक देव श्री वीर मिलती हैं। ४०० से ५०० वर्ष प्राचीन यह जिन मंदिर है। मणिभद्रजी का यहाँ स्थान है। माणेकभाई जैन धर्म का अनुयायी एवं जैन धर्म (१)श्रीगोडीपार्श्वनाथजी जिन मंदिर का रक्षण करता-करता देवलोक पाकर जैन धर्म की विघ्नों से रक्षा करते हैं। यहाँ पर जीर्णोद्धार पहले हो गया हैं। बगल में वासुपूज्य स्वामी का नूतन मंदिर यह जिनालय ४००/५०० वर्ष पूर्व का प्राचीन है। Rबना हैं। धर्मशाला, भोजनशाला हैं। यात्रीगण आते हैं। श्री सुमतिनाथ जिनालय की पुनः प्रतिष्ठा वि. सं. २००८ माघ सुद १० के शुभ दिन हुई है। Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ६. मोढेरा मोढेरा जैन मंदिर JITORI मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी यहाँ का सूर्य मंदिर भारतीय शिल्पकला के लिए प्रख्यात है। मेहसाणा से यहाँ आने के लिए बस जीपें मिलती हैं। बहुचराजी से १३ कि.मी. है। यहाँ मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी श्वेत पद्मासनस्थ सुन्दर प्रतिमाजी है। दो मंजिल का मंदिर वि. सं. १९७५ जे. सु. ३ को प्रतिष्ठा । यह प्राचीन तीर्थ स्थल ९ वीं सदी का माना जाता है। श्री बप्पभट्ट सूरिजी ने वि. सं. ८०७ में श्री सिद्ध सेन सूरिजी के पास यहाँ पर दीक्षा ली थी। श्री बप्पभट्ट सूरिजी विद्या से यहाँ हमेशा दर्शन करने आते थे। Ge ७. महेसाणा - सीमंधर स्वामी तीर्थ १४५ ईंच विराटकाय, १२ फुट ऊँची, श्वेत पद्मासनस्थ प्रतिमाजी है। हाईवे पर होने से यह भव्य विशाल मंदिर खूब शोभायमान लगता है। पू. आ. देव श्री कैलाशसागर सूरिजी म. के उपदेश से यह मंदिर बना है। श्री सीमन्धर स्वामी के तीर्थ रूप में प्रख्यात हुआ है। प्रतिष्ठा २०२८ वै. सु. ६ को हुई है। धर्मशालाओं, भोजनशाला की सुविधा है। मंदिरजी का विशाल चौगान है। गुम्मट की कला सुन्दर है। इसके उपरान्त तेरह मंदिर गाँव में है। जिसमें प्राचीन मंदिर श्री मनमोहन पार्श्वनाथ का (दो मंजिल का) है। ____ इस प्राचीन मंदिर का स्तम्भ कला का काम तथा गुम्मट की कारीगरी अद्भुत है। महो. यशोविजयजी संस्कृत जैन पाठशाला है। जैन श्रावकों के घर २०० हैं। ___ महेसाणा - रेल्वे-बस मार्ग से हर एक स्थान से आ सकते हैं। अहमदाबाद दिल्ली नेशनल हाईवे ऊपर मंदिर है। Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला (१८५ CCXEXOD000 3R88888888888888888888888888888888888888888888887 38888888888888888888888888888888888888888888 100000000000monstaboonssponden ॐNERIमचरस्थानों श्रीसीमन्धरस्वामी तीर्थ-मूलनायक श्रीसीमन्धरस्वामी 388888888888888888888888888888888888888 Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AMERIAAMLILAHIDANLLAIL. क 4EHALREEN AMITRA Priyana S मेहरा श्री सीमन्धर स्वामी तीर्थ मेहसाणा मेहसाणा शहर श्रीमनमोहन पार्श्वनाथजी मंदिरजी COMमा मूलनायक श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂果麻 ८. गांभु तीर्थ 0000000000000000000000000 Manand શ્રી ગભીરા પાČનાથ 13 RE मूलनायक श्री गंभीरा पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री गंभीरा जी पार्श्वनाथजी २५०० वर्ष पहले की श्वेत पद्मासनस्थ सम्प्रति राजा के समय की यह प्रतिमा है। १०० वर्ष पूर्व हर रोज प्रतिमाजी के हाथ में से एक चांदी का ॥ प्रमुदितः प्रणमामि यशोगुरुम् ॥ Bचार સિધ્ધ 렛 नय C ९. कनोडा गांभुतीर्थ जैन मंदिरजी सिक्का गर्भगृह में पड़ता था। प्रतिमा जमीन में से निकली हैं। ऐसा कहते है। इस प्रतिमा का दिन में तीन समय स्वरूप बदलता है। ऊपर की मंजिल पर श्री भीडभंजन पार्श्वनाथजी है। नीचे नव प्रतिमाजी हैं। महा (१८७ ● प्रमुद्रितः प्रणमामि सरस्वतीम्॥ 乘乘乘乘乘乘來樂來樂來樂來樂來樂耎乘乘國國樂來來來來來來來 पू. महोपाध्याय श्री यशोविजयजी म. सरस्वती मन्दिर 麻樂樂樂樂敏敏敏敏敏樂樂樂敏敏敏樂樂樂樂樂麻 Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८) श्री.श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ F-HD उपाध्याय श्री यशोविजयजी महाराज की जन्मभूमि उत्तर गुजरात में मेहसाना जिले में, मेहसाना मोढेरा रोड़ पर मुख्य मार्ग से २ कि.मी. अंदर कनोडा नाम का गाँव है। केवल २०००-२२०० मनुष्यों की आबादी वाला गाँव है। यहाँ से प्रसिद्ध तीर्थ गांभू-जहाँ श्री गंभीरा पार्श्वनाथ भगवान है। वह तीर्थ मात्र ६ कि.मी. होता है। और धीणोजा गाँव ८ कि.मी. होता है। इस गांव में विक्रम के १६७७ के आसपास पूज्यपाद, उपाध्याय यशोविजयजी महाराज का जन्म हुआ था। पिता का नाम नारायण और माता का नाम सौभाग्यदेवी था। उनका एक बड़ा भाई पद्मसिंह था। दोनों भाइयों ने पूज्यपाद जगद्गुरु श्री हीरसूरिजी महा. के उपाध्याय श्री कल्याणविजयजी म. के शिष्य श्री लाभविजयजी म. के शिष्य पूज्य पं. श्री नयविजयजी महाराज के चरणों में जीवन समर्पण किया एवं पूज्यपाद आ. श्री विजयदेवसूरिजी महाराज के वरद हस्त से वि. सं. १६८९ में पाटण में दीक्षा को स्वीकार किया। पश्चात् गुरु म. के साथ काशी पधारे और वहाँ पर मुनिवेश में रहकर भट्टाचार्य पंडित के पास तीन वर्ष तक षट्दर्शनों का अभ्यास किया। अनेक ग्रन्थ बनाये। वि. सं. १७१८ में अहमदाबाद में उनको उपाध्याय पद अर्पण करने में आया। "लघु हरिभद्र" का यश मिला। (वि. सं. १६६६ की लिखी पू. महो. हस्त मिलती है और उसमें यशो वि. गणि' ने लिखी ऐसा है। इससे सं. १६४५ में जन्म का संभव है। वि. सं. १७४३ में डभोई में वे स्वर्गवासी हुए। कालधर्म प्राप्त किया। जिनशासान के ज्योतिर्धर पुरुष की यह जन्मभूमि है। वर्तमान में यहाँ पर एक गृह जिन मंदिर है। गांव वाले पटेलभाई एवं ब्राह्मण भाई भावुक हैं। विहार में पधारते पूज्य साधु-साध्वी महाराज की वैयावृत्य सुन्दर होती है। गाँव वालों ने तथा पूज्यपाद शासन सम्राट श्री के समुदाय ने पू. आ. भ. श्री देवसूरिजी म. पू. आ. भ. श्री विजयहेमचन्द्र सूरिजी महाराज तथा पू. पं. श्री प्रद्युम्न विजयजी महाराज के सदुपदेश से यहाँ श्री युत् के.एल. सेठ परिवार (साँवरकुंडला वाला) प्रेरित उपाध्याय श्री यशोविजयजी सरस्वती सदन का निर्माण किया है। उसमें काँच का प्रार्थना मंदिर बनवाने में आया है। उसमें पूज्यपाद उपाध्याय यशोविजयजी महाराज की गुरुमूर्ति तथा सरस्वती देवी की मूर्ति पधरवाने में आयी है। तथा दोनों दीवालों के ऊपर उपाध्यायजी महाराज के जीवन-प्रसंगों के १२ चित्र सुन्दर मनोहर शैली में अंकित करने में आये हैं। यहाँ की पावन भूमि का स्पर्श करने से एक सरस्वती पूज्य पुरुष के परमाणुओं का लाभ होता है। मेहसाना से केवल १५ कि.मी. ही है। पक्का रास्ता है। घर मन्दिर तथा उपाश्रय रमणीय है। मेहसाना गांभू जाने वाले इस तीर्थ के दर्शन का भी अवश्य लाभ लें। 0909 909 89 १४. धीणोज मूलनायक श्री शीतलनाथजी धीणोज जैन मन्दिर Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला । (१८९ प्र -पथ मूलनायक - श्री शीतलनाथजी ___ऊपर के भाग में श्री अजितनाथ भगवान है। ४०० वर्षों का प्राचीन मन्दिर है । संप्रति राजा के समय की प्राचीन प्रतिमा है। ६० वर्ष पूर्व जीर्णोद्धार करके कांच का काम किया गया है। यह मन्दिर मूलजूटवा प्रगट पार्श्वनाथजी का प्राचीन मंदिर था। पू. आ. श्री भद्रंकरसूरिजी म. की जन्मभूमि है। मोती विजय पाठशाला, उपाश्रय, पांजरापोल, आदि है। जैन घर १२५ थे। वर्तमान में दो घर हैं। यहाँ आने के लिए मेहसाना से बस-जीपें मिलती हैं। {{{{{{{{{{{{{{{{{{{ ११. चाणस्मा L चाणरमा जैन मन्दिर मूलनायक श्री भटेवा पार्श्वनाथजी मूलनायक - श्री भटेवा पार्श्वनाथजी कत्थई रंग-पद्मासनस्थ यह प्रतिमाजी रेती, छाण, मिट्टी से बनायी गयी है। परिकर युक्त प्रतिमाजी भटुआर गाँव के सूरचन्द्र श्रावक को मिली थी। १३३५ तथा १५३५ में अन्तिम वि. सं. १८३२ को प्रतिष्ठित हुए है। ऐतिहासिक जानकारी सचित्र मन्दिर की भमती परिक्रमा में है। इसके उपरान्त २४ प्रतिमाजी भमती में हैं। सुन्दर रंगमंडप है। सात शिखरों से संयुक्त मन्दिर है। ६ लाख प्राचीन प्रतिमा कही जाती है। भोजनशाला, भाताखाता है। पूर्व में ५०० जैनियों के घर थे । वर्तमान में ६० घर हैं। मेहसाना हारीज रोड पर है। स्टेशन से १ कि.मी. है। स्टेशन के ऊपर धर्मशाला है। मेहसाना से बस जीपें मिलती हैं। JODSSSSSSSSS Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९०) 8 優惠 露露露露露露露露聪聪聪 मूलनायक श्री नेमिनाथजी १२. स्पपुर तीर्थ . मूलनायक श्री नेमिनाथजी एक ही आरस पत्थर की पद्मासन की प्राचीन प्रतिमा है। यह ग्राम १६०० वर्ष पूर्व बसा था। उस समय की यह प्रतिमाजी है। पूर्व में पास में मंदिर था। ७००-८०० वर्ष से यह मन्दिर बना है। १३. पाटण मूलनायक श्री पंचासरा पार्श्वनाथजी पबासण के साथ की प्राचीन भव्य प्रतिमा की विक्रम संवत ८०२ में प्रतिष्ठा की गई है। अति भव्य शिखरबंधी देरासर में आरस की भमति में २४ तीर्थंकर है। ये प्रतिमा पंचासरा गाँव से लाई गई होने से इस प्रतिमा को पंचासरा पार्श्वनाथ के नाम से जाना जाता है । ये शहेर गुजरात की प्राचीन राजधानी थी । विक्रम संवत ८०२ में अणहिलपुर पाटण बसा । वनराज चावडा धर्मप्रेमी राजवी थे। प्रसिद्ध जैनाचार्य श्री शीलगुणसूरिजि ने वनराज की माताजी को आश्रय दिया था और इस लिए वनराज में धर्म संस्कार आये थे । ये प्राचीन तीर्थ जैसे पाटण की जाहोजाली सिद्धराज और कुमारपाल के समय में पराकाष्टा पर श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग १ 0000000000 MI 1241 रूपपुर जैन मन्दिर पास में शंकरजी का मन्दिर है। उसके भोयरे में से यह प्रतिमाजी निकली है। भमति में २४ प्रतिमाजी हैं। देवी अंबाजी की प्राचीन प्रतिमा है। जो जमीन में से खुदाई करते समय मिली है। प्राचीन बावड़ी है। चाणस्मा जैन संघ व्यवस्था करता है। 1 पहोंची थी । भव्य बाज़ार, महेल और मंदिर थे। संवत १३६० में पाटण का पतन हुआ । १३६८ में फिर से बसा । आज खंडहरे उस समृद्धि की याद देने के लिए खड़े है । अनेकबार उसका जिर्णोद्धार हुआ है । पाटण का इतिहास बहुत बड़ा है। ये राजनगरी धर्मनगरी थी। आज वो जाहोजलाली नही पर ८५ जैनमंदिर है । दो सहस्त्रकुट देरासरे है । उपरोक्त देरासर ८०२ में था जहाँ वो ही जगा पर फिर से बनाया गया है। उपाश्रयो धर्मशालाओ, भोजन- शालाओं की बहुत सी सुविधाए है। पौषधशाला हेमचंद्राचार्य ज्ञान मंदिर इत्यादि है। रेल्वे बस गुजरात के प्रत्येक शहरो से मिलती है। यहाँ के पटोणे प्रख्यात है । "पडी पटोणे भात फाटे लेकीन फीटे नहीं" ये बहोत कुछ कह जाता है | Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला (१९१ UN ORAGCO.CON WINDOI Sacaradac A888888888888888888888888888888888888888 888888888888888888888888888888888888888888888888856 CREDESIREPREFERS50 - पाटण - श्री पंचासरा पार्श्वनाथजी 888888888 8888888888888888888888888886 Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९२) 一对 2 Doad 【文又回 AROO पाटण - श्री पंचासरा पार्श्वनाथजी जैन मंदिर चास्प तीर्थ १४. श्री चारुप तीर्थ जैन मंदिर O 94 DeceS COEDS श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ SO Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला (१९३ मूलनायक श्री शामला पार्श्वनाथजी यह तीर्थ बहुत पुराना मांडवगढ़ के महामंत्री पेथडकुमारने विविध स्थानपे ८४ तीर्थ स्थान बनवाया है। उसमें चास्प एक है । यहाँ पे १ वार की फणावाली पार्श्वनाथजी की श्यामवर्ण की प्रतिमा प्रतिष्ठित की है । जीसकी प्रतिष्ठा प्रभावशाली शीलगुण सूरिजी के शिष्य श्री देवचंद्रसूरि ने की है । तत्त्वनिर्णय नामक ग्रंथ में इसका उल्लेख है, कि नेमिनाथ के लिए २२२२ साल के बाद गौड देश के श्री अषाढी श्रावक ने तीन प्रतिमाएं बनवाई थी। इसमेंसे यह एक है | जो समुद्रमे से देवने निकाल कर दी थी। यह प्रतिमाजी को यहाँ से ले आये इस को २००० साल हो गया है। पूराने समय में बहुत बडा तीर्थ और नगर था । मारवाड से महान आचार्य श्री वीराचार्यजी यहाँ आये थे । उस समय सिद्धराज राजा पाटणसे यहाँ दर्शन करने के लिये आये थे । सं. २००६ मे यहाँ पाये की खुदाइ का काम करते समय बावन जिनालय का अस्तित्व मीला इस के बाद खुदाई का काम बंध कर दीया था । यह तीर्थ हजारो साल पूराना है, दूसरे लोगों मे भी असत्य बोलनेवाले यह प्रतिमा की कसम नहीं लेते। सुविधाए पाटण से तीसरा रेल्वे स्टेशन है जो १ कि.मी. दूरी पर है । चोकीदार के साथ कारखानाकी ओर से बैलगाडी आती है जो १० कि.मी. अंतर पर है | पाटण से बस भी चलती है । भोजनशालाकी बहुत अच्छी सुविधाए है और बडी धर्मशाला है । पहले जैनोके १००० घर थे अभी ओक भी घर नहीं है। मूलनायक श्री शामला पार्श्वनाथजी १५. मेत्राणा तीर्थ (सिद्धपुर) मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान अखंड दीप की ज्योत के साथ कभी कभी वासक्षेप भी यहाँ वि. सं. १३४३ में प्राचीन देरासर था । कीसी कारण . झरता है | केशर के छंटकाव होते है । अमी झरता है, घंटनाद उसका विनाश होने के बाद १०० साल पहले इसी जगह पर भी होता है। फीर से देरासर बना है। १७ वीं सदी तक यहाँ पूराना देरासर देरासर के चारों और भमति है । भमति की दाहिनी और था जीसका विनाश होने के बाद प्रतिमाजी को भूमि में पधराई गर्भगृह में पार्श्वनाथ प्रभुकी मनोहर एकलतीर्थ परिकर के साथ गई थी । वि. स. १८९९ की सालमें लोहार की बेटी को स्वप्न आरसकी प्रतिमा है जीस में लेख है की वि.स. १३५१ में नागर आया और खुदाइ काम करते समय यह प्राचीन प्रतिमाजी गच्छीय श्री पालु के कल्याण के लिये उसके भाई वयजलने यह नीकली थी । उसको वि.स. १९०१ में देरासरमें स्थापने के बाद मूर्ति भराई थी। यह पार्श्वप्रभु का देरासर मूल सं. १०७३ में था वि.स. १९४७ वैशाख सुद ३ के दिन फीर से प्रतिष्ठत किया । एसा लेख मिलता है। शिखरबंध तीन दरवाजे वाला, शृंगार चोकी के साथ ९ तोरण है। इस तरह मेत्राणा प्राचीन तीर्थ है । उपाश्रय, विशाल अंदर के भागमें ९ तोरण है जो दोनों मीलके १८ तोरण है। धर्मशाला और भोजनशाला है। सिद्धपुर-पाटण से १२ कि.मी. तीन गर्भगृह में और एक मूलनायक के नीचे के भागमें मूर्ति है की दूरी पर है वहाँ से बस मीलती है । मेत्राणा से मेत्राणा रोड जीसके उपर १६६४ की साल का लेख है। स्टेशन १.१/२ कि.मी. की दूरी पर है। Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ . मूलनायक श्री आदीश्वरजी मेत्राणा तीर्थ जैन देरासरजी १६. सिद्धपुर (पाटण) Date ना4000 सिद्धपुर जैन देरासरजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग ९ महेसाणा जिला 辘辘辘願麗麗. मूलनायक श्री महावीर स्वामी सोलंकी वंश के समय से बना हुआ यह बहुत पूराना तीर्थं है । उपरकी मंझील पे सुलतान पार्श्वनाथ की भव्य प्रतिमा मौजूद है। इन्द्रनगरी से भी अच्छी इस नगरी में ज्ञाननगर ग्रंथ लिखा गया था । वि. स. १६४१ में सिद्धपुर मे पाँच मंदिर थे । एसा पारसनाथ चमत्कार पुस्तक में उल्लेख है । उस समय श्री पार्श्वनाथ मूलनायक थे । २४ देवकुलिका से बना हुआ शिखरबंधी सिद्धविहार उत्तुंग जिनालय श्री सिद्धराजने सं. १४२६ में बनवाया था जिर्णोद्धार वि.स. २४८५ वि. २०१५ वैशाख सुद६ के दिन हुआ, पू.आ. श्री विजयरामचंद्रसूरिजी म. की निश्रा में अमदावाद कमिटि हस्तक प्रतिष्ठा हुई। मंदिर की देखभाल आनंदजी कलयाणजी की पेढी करती है । यह तीर्थ रेल्वे और बस मार्ग से गुजरात नगरो से जुड़ा हुआ है। के १७. तारंगाजी तीर्थ Csc तारंगा तीर्थ जैन देरासर दृश्य ( १९५ 願麗麗麗麗聪 ዉ Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ RAM 02OD 27. SHRI AJITNATH BHAGAVAN (श्रीमतिनाय (111) तारंगा तीर्थ मूलनायकश्री अजितनाथजी Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९७ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला 藝勤參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 SEARCH 22022SS मूलनायक श्री अजितनाथ भगवान चारो ओर पर्वतो के बीच और प्रकृति की गोदमें बना हुआ भव्य मनोहर जिनालय है. जिसमें पथ्थर की अद्भुत कलाकृतिवाला शिखरंबध मंदिर गुर्जर नरेश राजर्षि कुमारपाल द्वारा स्थापित कीया गया ऐसा वि.स. १३०२ का लेख है । उसका शीखर १४२ फूट उँचा है जीस से " उँची उँची तारंगाकी टोच रे" एसा स्तवन बना है। पहाड पर तीन देरीयाँ है । १ घंटे मे वहाँ जा के वापस आ शकते है । एक ही पटांगण में दूसरा ४ देरासर है । देरासर में बहुत भव्य रंगमंडप और विशालकाय स्थंभ है, पटांगण में चोमुख, अष्टापद, नंदिश्वर दीप की कलात्मक देरीयाँ है, देरासरमें ७ फूट बडी पबासन के साथ प्रतिमाजी है, मंदिर के तीन प्रवेशद्वार है । १४७९ और १६४२ में इसका जिर्णोद्धार हुआ है । मूलनायक की प्रतिमाजी में दरारे पड गई है। जब आग लगती है तब पानी झरता है एसी लकडीयोसे बना हुआ है। विशाल भोजनालय, धर्मशाला, और उपाश्रय है। उपर के मार्ग से उ. गु. के हर एक स्थान से बस मीलती है । तारंगा हील स्टेशन ६ कि.मी. की दूरी पर है। तारंगा तीर्थ जैन देरासरजी की नक्कासी १८. वडनगर तीर्थ 參參參參參參參參參參參參參參參參參參參密斯 मूलनायक श्री महावीर स्वामी मूलनायक श्री अदबदजी श्री आदीश्वरजी 參參參參參參參參警鈴警鉴斷路斷斷斷勞警警參參參參勤勤 Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ AALANA महावीर स्वामी जैन देरासरजी देरासरजी की कलाकृति WALO अतिशमन ३. स मूलनायक श्री महावीर स्वामी ५२, जिनलाय से बना यह पुराना जिनमंदिर है । यह मंदिर का जिर्णोद्धार वि.सं. २०२८ में हुआ था । संप्रति महाराजा के समय का यह जिनालय है । आरस का कलात्मक बना हुआ सिंहासन अच्छा लगता है | उपाश्रय और भोजनालय भी है। ये ३०,००० की बस्ती से बना एक छोटा सा शहर है । जैनो के २५ घर है । पाठशाला, धर्मशाला और पांजरापोल है । १. मूलनायक श्री आदीश्वरजी (चौटावाला देरासर) २. महावीर स्वामी (हाथीवाला का देरासर) ऋषभदेव स्वामी (भोजक का देरासर) ४. चोमुखजी देरासर ५. प्राचीन घर देरासर यहाँ पे मूलचंददादा नामके भक्त हो गया । मूलचंद दादा को भगवान ने अंतिम समय पर दर्शन दिये । मूर्ति में से थोडा भाग भक्त के पास आया । गौरीकुंड (जैनों का सूरजकुंड है) वहाँ महावीर प्रभु की (कुंड के अन्दर) पथ्थर की मूर्ति है। उत्तर गुजरात की पुनित भूमि में महेसाणा जीले में तारंगाजी तीर्थ के पास जैनो का वैभवपूर्ण प्राचीन और धार्मिक शहर वड़नगर है । जहाँ पूर्वे महातीर्थाधिराज शेजय महा गिरिराज की तलहटी थी । उस नगरी में दो जिनालय और दूसरा तीन जैन मंदिर आज भी मौजुद है । यह गाँव जैन भोजक से सुप्रसिद्ध है उन्होने यहाँ पर मंदिर भी बनवाया है । जैन संघ में प्रसिद्ध संगीतकार श्री हीरालाल ठाकुर और श्री गजानन ठाकुर यह दोनों ही वड़नगर के है । वड़नगर - ३८४३५५. राग (रंग लाग्यो मने प्रभु...या, मने व्हालुं बापुजी..) मने व्हालुं महावीर केरुं नाम छे रे; अना हृदये अहिंसानुं धाम-मने ० तात सिद्धार्थ माता त्रिशला रे, वळी जन्म क्षत्रियकुंड ग्राम. मने ०१ लीधुं संयम संसार छोडीने रे, वळी ध्यान लगावे निष्काम, मने ०२ अणे केवलनाग लीधुं शाश्वतुं रे, दे देशना करुं हुं प्रणाम. मने ०३ ते तो त्यागी अनेकने बनावता रे, लेवा मुक्तिपुरी- मुकाम. मने गुरु कर्पूर अमृत गुणखाण छे रे, भवभीतोर्नु शुभ विश्राम. मने ०५ प्रभु पंथे क्यारे अमे चाल| रे, ____ कहे जिनेन्द्र शुभ परिणाम. मने ०६ मेर Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (१९९ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला 6 १९. वीसनगर तीर्थ 0 5. Soo Joo తారాం 000 0. 00000 वीसनगर जैन देरासरजी రాం मूलनायक श्री कल्याणी पार्श्वनाथजी రా मूलनायक श्री कल्याणजी पार्श्वनाथजी यह पुराना तीन मंझीला का देरासर है । ईस लिये बड़ा 'अष्टापदजी देरासर भी बहुत अच्छा है । शांतिनाथजी देरासर माना जाता है । यह जिनालय वीरनगर के पोरवाड प्रभूजी का जिनालय लाल दरवाजा के पास है । श्रावक शेठ गुलाबचंदने बनवाया है। सं. १८६३ फा. सुद अनंतनाथजी प्रभका जिनालय काजीवाडा में है। ३ के दिन प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । उससे पहले यहाँ सुमतिनाथ और शांतिनाथ जिनालय (दिपडा दरवाजा) के पास पूराना देरासर था । उसकी प्रतिमा महेसाणा के पूराने है। आंबेलशाला, धर्मशाला, भोजनशाला और भी कुएं में से मिली थी । दूसरी मंझील पे सहस्रफणा पार्श्वनाथजी उपाश्रय है । यहाँ पर ४०,००० हजार की बस्ती है । जैनो के और तीसरी मंझील पे गोड़ी पार्श्वनाथजी का जिनालय है । ६०० घर है। सुहानी भमति भी है। Todbalaraasliterate toda y २०. ऊंजा मूलनायक श्री कुंथुनाथजी यह सुहामना बड़ा जिनालय है । ८०० साल पुरानी प्रतिमा इस जिनालय में है । यहाँ पे शिखरबंध तीन देरासर लोगो को धर्म का संदेश देता है । और तीन घर देरासरजी भी है। जैनों के ४०० घर है। गुजरात में व्यापार का यह प्रमुख नगर है। Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २००) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री कुंथुनाथजी ऊंझा जैन देरासरजी २१. वालम तीर्थ B202 मूलनायक श्री नेमिनाथजी ।। यह देरासर बहुत पुराना है । सौराष्ट्र में जैसे गिरनार है उसी तरह उत्तर गुजरात में वालम तीर्थ है । नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमा बहुत पुरानी है। भारत के जैन तीर्थो का इतिहास में वालमतीर्थ भी बहुत प्रचलित है। म यहाँ पे भक्तजनों की आवन-जावन बहुत रहती है। जैन भोजनशाला और धर्मशाला की बहुत सी सुविधा है। यह तीर्थ विसनगर-ऊंझा के रास्ते पर आया हुआ है। महेसाणा, ऊंजा, विसनगर से एस.टी.बसे मीलती है । विसनगर से ८ की.मी. और ऊंजा से १४ कि.मी. यह वालम तीर्थ है। वालम तीर्थ जैन देरासरजी Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग ९ - महेसाणा जिला DoceDoDop GROUPONDOD वालम तीर्थ मूलनायक श्री नेमिनाथजी 2000000000 (२०१ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ SOOOOOO २२. शंखलपुर । मूलनायक श्री शान्तिनाथजी भोयरा में श्री नवखंडा पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री शान्तिनाथजी हाल के देरासर को २५० वर्ष होने का कहा जाता है ।अंखड दीपक चालू है।यहाँ पर प्राचीन मंदिर था। जिसमे, संप्रति महाराजा के समय की नवखंडा पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाजी थी। जो हाल के नीचे भोयरा में विराजमान है ।पद्मासन वाली भव्य प्रतिमाजी है ।अन्तिम जीर्णो द्वार वि.सं.१९०५ जेठ वदी-८ लिखा है। यह ग्राम प्राचीन नगरी थी ।वर्तमान में बहुयराजी के रूप में भी जाना जाता है ।जैनों के २० घर है। समीप में रांतेज भोयणी वि.तीर्थ है। बिहार का रास्ता है। बहुचराजी से १ कि.मी. है। शंखलपुर जैन मंदिर Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला (२०३ २३. कडी कडी जैन मंदिर SACSC मूलनायक श्री आदीश्वर जी SAMPARA HARSHASHAN मूलनायकजी-श्री आदीश्वर दादा यह मंदिर पहले शेठवाल देरासर कहलाता था। यहाँ पर कमल पर संप्रति महाराजा के समय की २५०० वर्ष की प्रतिमा है। यह मंदिर दो मंजिलो का था।नीचे भोयरा में मूलनायक की प्रतिमा थी।पहली मंजिल पर जीरावला पार्श्वनाथ और दूसरी माल पर गोडी पार्श्वनाथजी है।अंखड ज्योती चलती है। प्रारम्भ से जीर्णोद्वार आखिरी वि.सं.२००५ में हुआ है। श्री संभवनाथजी एवं श्री चिन्तामणी पार्श्वनाथजी का मंदिर बाजार में है। यह कडी ग्राम प्राचीन नगरी थी। वि.सं. १३४७ में बसा ग्राम मुस्लिमों मराठों अंतिम गायक वाडी के राज्य में था। जैनों के ११५ घर है ।धर्मशाला तथा कन्या छात्रालय है। छात्रालय में मंदिर है। मेहसाणा-अहमदाबाद लाईन में कडी रेल्वे स्टेशन है। SHRSHAASARAS २४. कलोल मूलनायक - श्री चिन्तामणी पार्श्वनाथजी सम्प्रति महाराजा के समय की प्राचीन प्रतिमा है। जमीन में से खुदाई का काम करते समय पुरूषादानी पार्श्वनाथ मिले है। जो बताते है कि इस स्थल . पर प्राचीन मंदिर होगा। दो मंदिर पास-पास में ही है। जैनो के ३० घर है। अहमदाबाद-मेहसाणा-रोड पर है। समीप में शेरीसा तीर्थ है। Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ कलोल जैन मंदिर मूलनायक श्री चिन्तामणी पार्श्वनाथजी २५. लोलाडा DD लोलाड़ा जैन मंदिर -मूलनायक श्री शान्तिनाथजी Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला प्र- --- -- मूलनायक - श्री शान्तिनाथजी वि.सं.१२२४ में इस नगर के राठोड़ वंश के राऊत दुलगर को पू.आ.श्री. जयसिंह सूरिजी ने प्रतिबोध प्रदान कर जैन किया इसके वंशज ओसवाल जाति में पड़ाइया गोत्र से जाने जाते है।अचल गच्छ के आचार्य श्री मेरूतुंग सूरि.म.के उपदेश से वि.सं.१४२९ में श्री माली पुत्र आरया के तथा वि.सं.१४३८ में तेजु श्राविका ने जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा की है।वर्तमान वि.सं.१४५२ में प्रतिष्ठित हुए श्री शान्तिनाथ भगवान विद्यमान है। वनराज चावड़ा और पू.आ.श्री कल्याण सागर सूरिजी की जन्म भूमि कहलाती है।पूर्व के समय में यह नगरी थी। यहाँ प्राचीन तीर्थ था जो समय-क्रम से नाश को प्राप्त हुआ। उसी स्थान पर वर्तमान में देरासर है। (२०५ -- - - - मुसलमान यहाँ के राठोड़ो को वटलाये वे मालेसलाम जरासिया के रूप में आज जाने जाते है। वैसा आर्यकल्याण गौतम स्मृति ग्रन्थ में लिखा है। ८०० वर्ष पूर्व २४ परगणा की राठोड़ वंश की गरसीया राजधानी थी। विक्रम की बारहवी सदी में प्राचीन मंदिर था उसमे संप्रति महाराजा द्वारा स्थापित प्रतिमा वर्तमान में मौजूद है। पू.आ.श्री ओंकार सूरिजी म.के उपदेश से शिखरबन्द जिनालय बना है। बारम्बार जीर्णोद्वार हुआ है। अन्तिम वि.सं.२०३७ में माघ वदी ३ को प्रतिष्ठा हुई है। जैनों के ६ घर है। शंखेश्वर से १३ कि.मी. है। शंखेश्वर मेहसाणा के मार्ग पर आता है। बसे मिलती है। समीप में शंखलपुर है। २६. मुंजपर alanising video मूलनायक श्री शान्तिनाथजी मूलनायक श्री गोडी पार्श्वनाथजी मूलनायकजी-श्री शान्तिनाथजी पेढी-मेघजी भाई हीरजी भाई की पेढी मुजपुर ७०० वर्ष पूर्व का गुम्मटवाला मंदिर है। संप्रति महाराजा के समय की प्रतिमा है। ऊपर के भाग में प्राचीन प्रतिमा है। अंतिम वि.सं. २०४४ में जीर्णोद्वार हुआ है। गोडीजी पार्श्वनाथ प्राचीन शिखर बन्दी मंदिर है। अखंड दीपक चालू है। जैनो के ८ घर हैं। धर्मशाला,पांजरापोल है। शंखेश्वर १० कि.मी. है। E-RE -EFER- E- - - - - - - - - Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६) 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 Dipip मुजपुर श्री गोडीजी जैन मंदिरजी मूलनायक - श्री महावीर स्वामी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-9 樂樂樂樂麻 राग (आओ आओ हे वीर स्वामी......) कापी कापो हे पार्श्व प्रभुजी मारा दुखड़ा आज मारा दुखड़ा आज कापो, मारा दुखड़ा आज राय अश्वसेन पिता तुम्हारा, वाराणसी भूप सार वामा माता ने जाय तमे छो, सर्प लंछन जयकार दीक्षा लेई प्रभु कर्म खपावी केवल ने वरनार चोत्रीस अतिशय छाजे तुमने, बार गुण धरनार कापो... २७. पंचासर कापो..... कापो..... मेघ नादे प्रभु देशना आपे, भवी दुःख हरनार, एहवी देशना वेरझेर भूली, सांभले पर्षदा बार. पूर्व वेर थी कमठ वरसावे, वरसाद एक धार, वे नागेन्द्र प्रभु कष्ट जाणी, सेवा करे सुखकार. कापो.... कापो गुरु कर्पूर अमृत गुणे, पार्श्व वरे शिवनार, पाये पडीने जिनेन्द्र विनवे, आपो सेवा श्रीकार, कापो... पंचासर जैन मंदिरजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी • वर्ष यहाँ पर अत्यन्त प्राचीन मंदिर के अवशेष पड़े हैं। उनके मूलनायक श्री पंचासरा के पार्श्वनाथ थे। ये प्रतिमाजी वि.सं. ८०२ में पाटण में प्रतिष्ठित हुई है। यहाँ का मंदिर खंडित हो जाने से वर्तमान की जमीन पर ५० पूर्व दूसरा मंदिर बना है। दूसरी प्राचीन सुंदर प्रतिमा वर्तमान मंदिर में है। पंचासरा से पाटण तक आगे के समय में भोयरा था। यहाँ पर वनराज चावड़ा का जन्म होना कहा जाता है और शील गुण सूरिजी ने उसको आश्रय दिया था। जैनों के पाँच घर है। यहाँ से शंखेश्वर १० कि.मी. होता है। रोड़ से एक कि.मी. अंदर है। पांजरापोल चबूतरा वि. है । 來來來來來乘乘乘乘乘乘乘乘乘) 樂樂敏敏敏敏敏樂樂樂敏敏敏敏樂樂樂樂樂樂 Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला (२०७ RAROO hto -OSS HEME QGAKE ध्याज 13 चन्त 10 AR मालाप फारसमुद्र मधली Jiitojala NET २८. शंखेश्वरजी तीर्थ AUTAHILDLED मलनायक श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ समाला शासन श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी जैन मंदिर CRIMARSHARE मूलनायक - श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी पेढी-शेठ जीवणदास गोडीदास वाया-वीरमगाँव (१) श्री शंखेश्वरा महातीर्थ अत्यन्त प्राचीन ८७ हजार वर्षों का कहा जाता है। सुन्दर शिखरोंवाला भव्य जिनालय है। पुरे विश्व में प्रसिद्ध है। हजारों यात्रीगण आते हैं। अनेक धर्मशालाये हैं। विशाल भोजनालय चलता है। आषाढ़ी श्रावक तीन प्रतिमा स्थापित करते है। वे चारुप संभात एवं शंखेश्वर में विराजमान है। उनका जैन ग्रन्थों में वर्णन है। वासुदेव-श्रीकृष्ण का प्रति वासुदेव-जरासंघ के साथ युद्ध हुआ-जिसमें जरासंघ ने यादवों की सेना ऊपर जरा छोड़ी उससे सेना मूर्छित हो गयी। शलाका पुरूष श्रीकृष्ण एवं नेमि कुमार ऊपर उसका असर नहीं हुआ। श्रीकृष्ण चिन्तित हो गया श्री नेमि कुमार ने कहा कि धरणेन्द्र के पास पार्श्वनाथ की प्रतिमा है। उसको अटम तप की आराधना करके स्थापित करना और उस प्रतिमा के न्हवण से जरा विद्या उपद्रव जायगा। श्री कृष्ण ने कहा में साधना करूँ तब जरासंघ आकर यादव सेना को काट दे - उसकी रक्षा कौन करे? नेमि कुमार ने कहा मैं करूंगा। श्री कृष्ण अट्ठम तप के साथ ध्यान में बैठ गया। नेमिकुमार अकेले रथ में शंख फूंकते सेना को इतनी शीघ्रता से प्रशिक्षण करता है जिससे सबको शंख फूंकते श्री नेमिकुमार का रथ दिखायी देता है - इससे नेमिकुमार को शंखेश्वर के रूप में सब कहते है। श्री कृष्ण को धरणेन्द्र ने पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा प्रदान की, न्हवण करके सेना ऊपर जल छींटा। सेना जागृत हो गयी। श्री कृष्ण ने हर्ष में शंख बजाया और शंखेश्वर ग्राम बसाया - बहुत ऊँचा जिन मंदिर बनवाया और यह प्रतिमा स्थापित की - वह द्वारिका के राजमहल में से दर्शन करता था - ८७ हजार वर्ष पूर्व का यह प्रसंग है। वर्तमान में सिद्धराज के मंत्री सज्जन शाह ने पू. आ. श्री देवचन्द्रसूरि जी म. की निश्रा में ११५५ में यह उद्धार कराया था। मंत्री वस्तुपाल तेजपाल ने पू. आ. श्री वर्धमान सूरिजी म. के मुँह से इस तीर्थ की महिमा जानकर आवश्यक उद्धार १२८६ में कराया और बावन जिनालयों के ऊपर सुवर्ण कलश चढ़ाये - १३०२ में झींझुवाडा के राजा दुर्जन शैल्य ने जीर्णोद्धार कराया। १४ वी सदी में अलाउद्दीन खिलजी के सैनिकों ने नुकसान किया उस समय श्री संघ में प्रतिमाजी को दूसरी जगह सुरक्षित रखी, १६५६ में बादशाह शाहजहाँ ने राजनगर के नगरसेठ श्री शान्तिदास के नाम शंखेश्वर का फरमान बनाकर दिया। पू. आ. श्री सेनसूरिजी म. के उपदेश से गंधार मानाजी श्रावक ने १६२८ से १६७८ के मध्य जीर्णोद्धार कराया। १७६० में पुनः जीर्णोद्धार कर विजयप्रभ सूरिजी म. के पट्टघर विजयरत्न सूरिजी के हाथों प्रतिष्ठा करायी। AAAAAR मान सकसSAMASKARKAROSHANKARI Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला (२०९ कविवर उदयरत्न जी आये उस समय मंदिर बन्द था, उन्होंने स्तुति की और द्वार खुल गया-यह प्रसंग प्रसिद्ध है। यह अत्यन्त प्राचीन एवं प्रभाविक शंखेश्वर तीर्थ है। आज प्रगट रूप में हजारों यात्रीगण इस तीर्थ का लाभ प्राप्त कर रहे हैं। ___यहाँ पर चैत्र एवं कार्तिक की पूनम तथा मगसिर वदी १० का मेला भरता है। वदी १० को हजारों अट्ठम और नवकारशी होती है। नये वर्ष प्रारंभ दिन को और पूनम को हजारों यात्रिक आते हैं। चैत्री ओली की भी सामुदायिक आराधना होती है। प्रत्येक वर्ष में स्वतंत्र हजारों यात्रिक अट्ठम करते हैं। प्राचीन बावन जिनालयों के स्थान आज समीप में मौजूद है। (२) श्री महावीर स्वामी का शिखरबन्दी भव्य जिनालय नवीन ही बना है। परिक्रमा में चोकी मंदिर तीन हैं । तेरह वर्ष हुए यह नवीन आगम मंदिर बना है। भोजनशाला, उपाश्रय, धर्मशाला वि. की.व्यवस्था है। आगम मंदिर मूलनायक श्री महावीर स्वामी 0000000000 आगम मंदिर जैन मंदिर जी Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ RRORAKAR (३) श्री भक्ति पार्श्वनाथ १०८ शिखर युक्त श्री पार्श्वनाथ प्रभु का भव्य जिनालय हाईवे रोड पर बना है। यहाँ पर भी सुन्दर विशाल धर्मशाला है। उपाश्रय है। आराधना के लिए शान्त रमणीय स्थान है। वीरमगाम रोड पर श्री हालारी वीशा ओसवाल श्वे. मू. तपागच्छ जैन धर्मशाला का बडा संकुल बना है। उसमें भव्य श्री अमृतेश्वर पार्श्वनाथ जिनेन्द्र प्रासाद बन रहा है। अनेक धर्मशालाओं तथा भोजनशालाओं की व्यवस्था है। जैनों के १०० घर है। राधनपुर वीरमगाम रोड ऊपर यह तीर्थ है, सब और से वाहन व्यवहार मिलता है। अब मोहे ऐसी आय बनी, श्री शंखेश्वर पास जिनेश्वर, मेरे तुं एक धनी, अब. ॥१॥ तुम बिन कोई चित्त न सुहावे, आवे कोडी गुणी, मेरो मन तुज पर रसियो, अलि जिम कमल भणी अब. ॥ २ ॥ तुम नामे सवि संकट चूरे, नागराज घरणी, नाम जंपु निशिवासर तेरो, अशुभ मुजकरणी। अब. ॥ ३ ॥ कोपानल उपजावत दुर्जन, मथन वचन अरनी, नाम जपुं जलधार तिहाँ तुज, धारूँ दुःख हरनी। अब, ॥४॥ मिथ्या मति बह जन हे जगमें, पद न धरत धरनी, उनको अब तुज भक्ति प्रभावे, भय नहिं एकनी। अब. ॥५॥ सज्जन-नयन सुधारस अंजन, दुरजन रवि भरनी, तुज मूरति निरखे सो पावे, सुख जस लील घनी। अब.॥६॥ भक्ति विहार १०८ पार्श्वनाथ तीर्थ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी भक्ति विहार १०८ पार्श्वनाथ तीर्थ जैन मंदिर Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला 避喚奥奥奥率奥奥奥奥奥奥奥奥來來來來來來來歷 3. 阿 1074式 gium cuma高 કોગ્રીરારિ રામનારમા પૂર્ણ કર सरस्वती 派唤奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥噢噢噢噢噢噢噢來源。 的來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 मूलनायक श्री नेमिनाथजी 从本,欧來加 रांतेज तीर्थ जैन मंदिरजी 倒影剧剧影剧影剧影剧影剧影剧/剧剧影盤 Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ M मूलनायक-श्री नेमिनाथजी खुदाई का काम करो - उसके अनुसार करने से प्रतिमाजी मिलीं। यहीं ६०० वर्ष पूर्व यह बहुत प्राचीन बावन जिनालय की टेकरी थी जो प्राचीन प्रतिमाजी वर्तमान में बावन जिनालय में विद्यमान है। अहमदाबाद जमीन मे से निकला है - कोई समय दट गया होगा। यह गाँव प्राचीन काल में जीर्णोद्धार कमेटी ने इस मंदिर का तीन बार जीर्णोद्धार किया है। रत्नावती नगरी कहा जाता था। बगल में कटोसण (धनपुर) नाम का गाँव वर्धमान तपोनिधि पू. आ. श्री विजय राजतिलक सूरिजी म. की निश्रा में था। वहाँ के श्रावक को अधिष्ठायक ने स्वप्न में कहा - जिससे उस स्थान में प्रतिष्ठा हुई है। धर्मशाला, भोजनशाला वि. की व्यवस्था है। मेहसाणा से खुदाई करते समय बावाजी की टेकरी में से सम्पूर्ण जिनालय बाहर आया। २८ कि.मी. है। पास में भोयणी तीर्थ है। कटोसण रोड संघ के प्रयास से जनता आश्चर्य चकित हो गयी। परन्तु मंदिर में से मूर्ति मिली नहीं। श्रावकों मंदिर बना है। तीर्थ कमेटी व्यवस्था करती है। ने तप किया। देव ने प्रगट होकर कहा- कि पास में ग्वालों के घर है वहाँ ३०. भोयणी तीर्थ भोयणीतीर्थ श्रीमल्लिनाथजीजैन मंदिर Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला (२१३ ट सम्मpne Kot NUT Cat ध्यान 437 OPAN 00 चन्द्र कलश এয়ার मानाथ जारसमक्ष नमी विमान वृक्ष रत्नराविr BUSIC भोयणी तीर्थ मूलनायक श्री मल्लिनाथजी Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक जी - श्री मल्लिनाथजी उस स्थान पर वर्तमान में मंदिर मौजूद है। सोलंकी वंश के ठाकुरों ने प्राचीन एवं दिव्य प्रतिमाजी है, बगल में कुकवाव नामक गाँव में कुआ। जमीन प्रदान की। कारखाने ने कायमी पहरा दिया। वि.सं. १९३० निकला का खुदाई का काम हो रहा था, वहाँ पर दोपहर को आराम कर रहे केवल | और १९४३ माघ सुदी १० को नवनिर्मित मंदिर में प्रतिष्ठा की। तीन शिखरों नामक पटेल के कान में अलग-अलग आवाजें अपने आप होने लगी। जब युक्त देरासर चमत्कारी प्रतिमाजी दिव्यता फैला रही हैं। कार्तिक चैत्र, श्रावण उसने खडे होकर देखा तो मोटी परत के नीचे प्रतिमाजी दिखाई दी। और दो | में पूनम को मेला भरता है। हजारों यात्रीगण आते हैं। कायोत्सर्ग प्रतिमायें भी दिखाई दी। बाहर निकालने के पश्चात् कुकवाव एवं कड़ी कटोसन लाईन में यह रेल्वे स्टेशन है। कड़ी, शंखेश्वर, भोयणी के लोगो के मध्य में प्रतिमाजी रखने के सम्बन्ध में विवाद हो गया। अहमदाबाद, वीरमगाँव से बसे मिलती है। कड़ी से ७ कि.मी. होता है। अन्त में बिना बैलगाडी में प्रतिमाजी रखने और गाड़ी जिस ओर जाय उस भव्य धर्मशालाओं भोजनशालाओं की सुन्दर व्यवस्था है। ओर उसको जाने देना - इस प्रकार तय होने पर गाड़ी भोयणी आयी और खडी हो गयी। XX ३१. वामज तीर्थ ... बामज जैन तीर्थ मंदिर मूलनायक श्री आदीश्वरजी And Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला (२१५ मूलनायक जी - श्री आदीश्वर दादा पेढ़ी - सेठ आनंदजी कल्याण जी, अहमदाबाद संप्रति महाराज के समय की भव्य प्रतिमा है। एक सन्यासी को स्वप्न आने पर जमीन में से निकाली है। प्रथम गांव में श्रावक ने यहाँ पर भगवान को रखा - उसके बाद धर्मशाला के कक्ष में रखा। मंदिर बन जाने पर वहाँ प्रतिष्ठित किया। ____ यहाँ पर प्राचीन मन्दिरों के खण्डहर है। पहले प्रख्यात तीर्थ होगा यहाँ से शेरीसा तक भोयरा था। १५६२ में श्री लावण्य गणी ने आलोचना विनति में इस तीर्थ का उल्लेख वर्णन किया है। इसके पश्चात् का कोई इतिहास नहीं मिलता है। १९७९ में यह प्रतिमाजी निकली - नवनिर्मित जिन मंदिर में पू. आ. श्री उदय सूरिजी महाराज की निश्रा में वि.सं. २००२ वैशाख सुदी १३ को प्रतिष्ठा हुई। छोटी धर्मशाला है। कलोल-मेहसाणा रोड पर गाँव हैं। कलोल १६ कि.मी. है और आदरेज से ५ कि.मी. है। बसें एवं कारें मिलती है। * ** ** ** ** ** ** ३२. शेरीशा तीर्थ मूलनायकजी - श्री पार्श्वनाथजी पेढ़ी - आनंदजी कल्याण जी अहमदाबाद प्राचीन तीर्थ था, जो कामक्रम से नाश को प्राप्त हुआ। सामने के भाग में खुदाई का काम करते हुए बहुत सी प्रतिमाये मिली है। १६ वीं सदी में मुस्लिम आक्रमणों के समय खंडित हो गयी, मंदिर भूमि पर वि. सं. १९५५ में पू. आ. श्री नेमीसूरिजी महाराज के उपदेश से यह मंदिर बना । वि. सं. १९८८ में इसका लेप हुआ है। २००२ में नूतन मंदिर में उनकी निश्रा में वै. सु. १० को प्रतिष्ठा हुई। ____ यहाँ पर रोहनपुर नगरी थी। १८ वीं सदी में पू. आ. देवेन्द्र सूरिजी महाराज द्वारा पार्श्वनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा होने का उल्लेख है। वे लोग पार्श्वनाथ थे। वे खंडित परिकर में है। १३ सदी में वस्तुपाल तेजपाल एवं उनके भाई मालदेव तथा उनके पुत्र पुनसिंह ने कल्याण के लिए शेरीसा तीर्थ में नेमिनाथ की प्रतिमा स्थापित की थी। कवि लावण्य के समय वि. सं. १५६२ में शेरीशा स्तवन की रचना की है। इससे ज्ञात होता है कि यहाँ पर तीर्थ था। सोलहवी सदी में मुस्लिम आक्रमणों के कारण तीर्थ खंडित हो गया। १९५५ में खंडित जिनालयों की खुदाई करते समय कितनी ही प्रतिमायें मिली थी। शेरीशातीर्थ देरासर में भूमिगृह में विराजित श्री लोढ़ण पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाजी दिव्य तेजवाली एवं चमत्कारिणी है, पद्मावती देवी की प्राचीन प्रतिमा वर्तमान में नरोडा में है। प्राचीन ग्रन्थों में इस तीर्थ की प्राचीनता का उल्लेख है। भोजनशाला, धर्मशाला, उपाश्रय है। कलोल से ७ कि.मी. है। रेल्वे स्टेशन ८ कि.मी. है। KV Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ शेरीशा तीर्थ जैन मंदिर Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला (२१७ (MOOPOPRADI IndaiaIBAR IA 2852888888888888888888888888888888888888888888888888 OF श्री पार्श्वनाथ भगवान - श्री शेरीशा तीर्थ 88888888888888888888888888888888888888888 Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ३३. पानसर तीर्थ MIMIMIMaharma पानसर तीर्थ जैन मंदिर मूलनायक जी- महावीर स्वामी यहाँ की जमीन में से बहुत सी प्रतिमायें मिली हैं। जो प्राचीन समय में यहाँ पर तीर्थ स्थान होने के प्रमाण प्रदान करती है। वर्तमान समय की भी प्रतिमायें जमीन में से मिली हैं। बहुत ही दिव्य एवं चमत्कारिक प्रतिमायें हैं। धर्मशाला, भोजनशाला वगैरह है। कलोल से ३० कि.मी. दूर है। AAAAAAM Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग ९ महेसाणा जिला - allere in आ भ (२१९ मूलनायक श्री महावीर स्वामी cocoa pia dan Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२०) 長長長長長長長長長長 ३४. नंदासण तीर्थ 南安 行业 કંપની કાવ્ય કામગ मूलनायक जी श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी तारो तारो पारसनाथ तारो, तमारा गुण नहिं भुलूं, तबलता उगार्यो नाग कालो - तमारी बात शुं बोलुं (साखी) कमठ पंच अनि तपे, बाल तपस्वीराज, नाग बले छे काष्ठ माँ जुओ अवधि ज्ञाने जिनराजरे, काष्ठ चिरावी काढियो, संभलाव्यों नवकार । तमारी १ धरणेन्द्र आसन चल्युं आव्यो प्रभुनी पास, नाग रूप करी उंचक्या, शिर छत्र फणा आकाशरेथाक्यों कमठासुर हवे, नम्यों प्रभुना पाय, चन्द्र कहे गुणपासना, जैन शालाना भाईयों गाय रे तमारी. २ धरण इन्द्र पद पामियो ऐवो मोटो प्रभुनो उपकार रे जोगभोग की बातही समझाचे शुभ पेर पण शीखामण थी वस्यु कमठ बावानी आँख माँ झेर रे तमारी. ४ कमठ मेघमाली धयो प्रभु काउसग्गमाँ धीर, जल बरसावे जोरमाँ आवे नाके अड्या छे नीर रे, तमारी. ३ तमारी. ५ तमारी. ६ तमारी. ७ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ मूलनायक जी श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी जयत्रिभुवन नंदारण जिनालय पेढ़ी यहाँ पर प्राचीन जिनालय था। जिसके खंडहर गाँव में है। वर्तमान में प्रतिमाजी एक हॉल में रखी थी। यह प्रतिमाजी बहुत प्राचीन है और गाँव में खण्डहर हुए मंदिर में से लायी गयी है। ७०० वर्ष प्राचीन है। पाँच जिनबिम्ब है। गाँव में से जैन एवं हिन्दु वसती दूसरी जगह चली गयी। अब हाईवे पर अष्टकोणी शिखर बन्द भव्य जिनालय बना है। वि. सं. २०४३ में माघ सुदी ११ को खात मुहूर्त हुआ है। पू. आ. श्री विजयराजेन्द्र सूरि जी म. के उपदेश से कार्य चलता है। बि. सं. २०५१ में अष्टकोणी शिखरबन्द भव्य जिनालय में प्रतिष्ठा हुई है। धर्मशाला, भोजनशाला, वि. है। मेहसाणा से ३० कि.मी. हाईवे पर है। ॐ 不 *** **** Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ hc शोपार की आर सा णा विजापुर ल्ला 26 अंबाजी गांधीनगर की ओर विलासणा ठा 30 27 कां ना श्री. स आरासर 21 10 F प्रांतिज अ ह दहेगाम की ओर दाबाद जी ल्ला 23 डडर.. 20 28 पोशीनातीर्थ 45 तलोद 血 खेडब्रह्मा A वडाली 15 asोली 18 रा खे 28 38 बामणा, हिंमतनगर. सा ब र कां ठा/ धउवा मोडासा 16 - भीलोडा धनसुरा 16 17 बायड विजयनगर STM 15 28 21 फलासिया की ओर स्था शामलाजी टींटोइ जी कीमी ल्ला खीरवारा की ओर डुंगरपुर की ओर धर मालपुर स्केल Ն १० १५२०२५ न नवागाम पंचमहाल जील्ला लुणावाडा की ओर Page #261 --------------------------------------------------------------------------  Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १० - साबरकांठा जिला (२२१ आबूरोड अपोशीनातील अंबाजी X ( ना ज स्केल १० १५२०२५ आरामर कीमी कां खेडवह्या फलासिया की ओर वडाली शीपोर कवलासा सा भीलोहा 15 -खोरवारा की ओर /K गरपुर को ओर शामलाजों णा जी बामणा हिमतनगर MOR टीटोई विजापुर सा ब र कां ठा/ ल्ला मोडासा 11 धनसुरा मालपुर गांधीनगर की ओर /पंचमहाल जील्ला लुणावाडा की ओर अह/म वायड दहेगाम की ओर दा बा द जी ल्ला -1 Fr ) ल्ला खा जी कपड़वज की ओर डॉ साबरकांठा जिला क्रम पेज नं. ૨૭ गाँव हिम्मतनगर टींटाई तीर्थ नाना पोशीना तीर्थ मोटापोशीना तीर्थ पेज नं. | क्रम ૨૨૨ ૨૨૩ २२४ ૨૨૭ गाँव ईडर तीर्थ वडाली खेहब्रह्मा ૨૨૮ २२९ Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२) / / /// श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ / /// /// | / 9. Cm आभापुरी से आयी हुई प्रतिमाजी 惡來奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥噢噢噢噢噢奥奥奥奥奥网 मूलनायक श्री महावीर स्वामी 伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞伞奥奥奥來必 हिम्मतनगर श्रीमहावीरस्वामीजैन मंदिर 倒影剧影倒影剧剧/剧/剧剧//// Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२३ गुजरात विभाग : १० - साबरकांठा जिला 500 CO 1000 DOD० 2009 D०.०००.०० ०० Soo मूलनायकजी - श्री महावीर स्वामी शिखरबन्द सात शिखर एवं नक्काशी युक्त अत्यन्त प्राचीन यह जिन मंदिर है। चम्पापुरी नगरी से सम्प्रति राजा के समय की प्रतिमाजी लायी है। पुरातत्त्व खाता, हस्तक, प्राचीन खंडहर हुआ देरासर वर्तमान में आज भी देखने को मिलता है। इस जिनालय का जीर्णोद्धार वि. सं. २०३५ में हुआ है। आदीश्वर दादा ऋषभदेव स्वामी, अजितनाथ प्रभु, शान्तिनाथ प्रभु, सुमतिनाथ प्रभु ये पाँच जिनालय भी है। धर्मशाला प्राचीन थी वह वर्तमान में नवीन बनी है। जैन भोजनशाला परा में तथा देवचंदनगर में है। जैन घर लगभग ४०० है। २.टींटोइ तीर्थ मूलनायक जी श्री मुहरी पार्श्वनाथजी टीटोई यह दर्शनीय तीर्थ है। लब्धिनिधान गणधर महाराज श्रीमद् गौतम स्वामी ने अष्टापद पर्वत पर रचित “जय चिन्तामणि' चैत्यवंदन में मुहरी (पार्श्व) दुःख दुरित खंडण इस वाक्य से जिसकी स्तुति करी है वे श्री मुहरी पार्श्वनाथ प्रभु की चमत्कारी और देदीप्यमान मूर्ति टीटीई नगर के इस भव्य जिनालय में है। ___ यह प्रतिमाजी यहाँ से ८ कि.मी. दूर शामलाजी के पास आती है। मेश्वो. १००० सरोवर के पाल के समीप दटे गये जिन मंदिर में स्वप्न देकर यह प्रतिमा मिली है। वि. सं. १८२८ की वर्ष में टीटोई जैन श्वे. संघ ने भगवान को यहाँ पर प्रतिष्ठित किया। २५०० वर्ष की प्राचीन प्रतिमा है। ऐसा कहा जाता है। आयंबिल खाता तथा उपाश्रय है। इस तीर्थ में आने के लिए शामलाजी एवं हिम्मतनगर से बसे तथा जीप की व्यवस्था है। मूलनायकश्री मुहरी पार्श्वनाथजी RSS (o Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४) DDDDDDDDDDDDDX Play मुहरी पार्श्वनाथजी मन्दिर ३. नाना पोशीना तीर्थ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग - १ SALE मूलनायक जी श्री विघ्नहरा पार्श्वनाथजी कुंभारिया से मोटा पोशीना ३० कि.मी. है। मोटा पोशीना में चार शिखर बन्द मंदिर है । यहाँ पर भी धर्मशाला एवं भोजनशाला की सम्पूर्ण व्यवस्था है। व्यवस्था - सेठ आणंदजी मंगलजी की पेढ़ी (ईडर) करती है। पोशीना तीर्थ आने के लिए अहमदाबाद, हिम्मतनगर तथा ईडर से बस एवं जीप की व्यवस्था है। इस पोशीना तीर्थ के बाजु में कुंभारीया जी है। तारंगा से ५० कि.मी. है। + मूलनायक श्री पोशीना पार्श्वनाथजी Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२२५ गुजरात विभाग : १० - साबरकांठा जिला 66666666 नाना पोशीना जैन मंदिर 30000000000 ४. मोटा पोशीना तीर्थ 00.00 Joo मोटा पोशीना तीर्थ जैन मंदिर SSSSSS Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ क्रोड-क्रोड वंदना श्री वीरजी स्वीकारजो, चित्तनो तुं चोर कहेवाय, जिन त्हारी मनहर आंखलड़ी रोज-रोज पातिकडा मारा निवारजो, आनंद-मंगल वरताय, प्रभु तुज सुणतां वात लडी डगले पगले त्हारा गुणो संभारता, गुणो म्हारा प्रभु खूब अजवालता, साँचु गुण झट लेवाय, जिन. चन्द्र चकोर ज्यु प्रीतड़ी में बांधी पाप कर्मों नी कुडी टाली में आंधी, हवे नहि वियोग सहाय, जिन. मोह राय प्रभु तुझ दर्शन थी डरियो, प्रभु तुझ पूजन थी दरियों हुं तरियो, ___ क्यारे प्रभु भेला थवाय, जिन. गुरु कर्पूरसूरि अमृत बोले त्रण जगत माँ कोण त्हारी तोले गुण गावाने दिल लोभाय. जिन. मूलनायक श्री महावीर स्वामी मूलनायकजी : श्री महावीर स्वामी श्री पोशीनाजी साबरकांठा जिला में ईडर से २२ कि.मी. दूर ऐतिहासिक तीर्थ है। गगनचुम्बी पांच शिखरों से सुशोभित जिनालय १२ वीं सदी में अठारह देश के अधिपति महाराज कुमारपाल ने बनवाये हैं। पोशीनाजी में विराजित प्रगट प्रभावी श्री पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा २१०० वर्ष प्राचीन संप्रति महाराज के समय की है। यह प्रतिमा लगभग १ १२०० वर्ष पूर्व कंथेर के वृक्ष के नीचे से निकली थी। वि. सं. १४८१ में जीर्णोद्धार का शिलालेख है। बाद में १७ वीं शताब्दी में आ. श्री विजय देव सूरिजी म. के समय में जीर्णोद्धार करवाने का उल्लेख है। दूसरी प्रतिमाओं के ऊपर वर्तमान में १२०१ से १७ वी शताब्दी के उत्तरार्द्ध तक के लेख मिलते हैं । थोड़े वर्षों पूर्व इस तीर्थ का जीर्णोद्धार तथा जिन बिम्ब प्रतिष्ठा पू. आ. श्री लब्धि सू. म. सा. के उपदेश से हुई थी। - इस तीर्थ का चमत्कार खूब है। यात्री गणों के आगमन का दिव्य संदेश प्रदान करने भारी पवन में भी पाँच शिखरों की ध्वजाओं में से कोई भी एक ध्वजा स्थिर होकर यात्रीगणों का आगमन सूचित करता है। पू. गुरु महा. स. उद्घाटन के प्रसंग पर पधारे थे - उनको मध्य रात्रि में बहुत ही कर्ण प्रिय संगीत गुंजायमान होता था। जेठ सुदी ११ को ध्वजा चढ़ाई जाती है। मार्गशीर्ष वदी १० को बहुत विशाल मेला भरता है। वि. सं. २०४३ में आ. स्थूलभद्र सूरिजी म. की निश्रा में चन्द्रप्रभुजी आदि जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा, दीक्षा, नूतन उपाश्रय, धर्मशाला, भोजनशाला आदि शुभ अवसर प्राप्त हुए। इस पोशीना तीर्थ में आने के लिए अहमदाबाद, हिम्मतनगर, ईडर से बस-जीप मिलती है। MOM AM KOM AM NOM AON . * * * * * * * Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १०- साबरकांठा जिला (२२७ -E- E EEEEEEEEEEEEEEECH ५. ईडर तीर्थ શ્રી શાંતિનાથ ભગવાન मूलनायकजी - श्री शान्तिनाथजी श्री महावीर स्वामी भगवन्त के २८५ वर्ष बाद श्री संप्रति महाराज ने इस तीर्थ पर शान्तिनाथ प्रभु की प्रतिष्ठा कराई होगी, इस प्रकार का उल्लेख जानने को मिलता है। श्री कुमारपाल राजा ने इन तीर्थों का जीर्णोद्धार एवं श्री आदिनाथ भगवन्त की प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा करायी थी। शान्तिनाथ भगवन्त की भी प्रतिष्ठा करायी थी। यह तीर्थ विराट नगर के ऊंचे स्थान पर सुशोभित हो रहा है। पहाड़ों के किले में आया यह तीर्थ अत्यन्त रमणीय है। इस पहाड़ की ६०० सीढ़ियाँ है। ईडर का यह गढ़ खूब ही विख्यात है। गाँव में कुल ५ जिनालय विद्यमान है। यहाँ पर ईडर में लाख की बस्ती है। जैन बस्ती के १०० घर है। कुमारपाल के जीर्णोद्धार कराने के पश्चात उन मंदिरों का जीर्णोद्धार गोविन्द सेठ श्री के बाद चम्पक श्रेष्ठी ने जीर्णोद्धार करवाया १६८१ में विजयदेव सूरिजी म. ने आदीश्वरजी की नवीन प्रतिमा स्थापन की। अन्तिम १९७० में पू. आ. श्री लब्धिसूरिजी महा. के उपदेश से जीर्णोद्धार हुआ। उन्होंने इस तीर्थ के विकास हेतु उत्तम प्रेरणा की थी। आ. श्री आणंद विमल सूरिजी का १५४७ में एवं आ. श्री विजय देव सूरिजी का १६६५ में यहाँ पर ही जन्म हुआ था। मूलनायकश्री शांतिनाथजी ईडर श्री शान्तिनाथजी जैन मन्दिरजी 噢噢噢噢噢噢噢噢噢噢噢來噢來噢來噢噢麼 Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ६. वडाली वडाली जैन मन्दिर SAR मूलनायक श्री अमीझरा पार्श्वनाथजी मूलनायक जी- श्री अमीझरा पार्श्वनाथजी पार्श्वनाथ प्रभु का यह मंदिर लगभग १२ वीं शताब्दी के पूर्व का है। प्रतिमाजी अत्यन्त चमत्कारी है। इस प्रतिमा से अमृत झरता है इससे अमृत झरने वाली अमीझरा पार्श्वनाथ प्रतिमा के रूप में जानी जाती है। उपरान्तः (१) आदिनाथजी जिनालय (२) शान्तिनाथ जिनालय है। शान्तिनाथ जी के बावन जिनालयों में एक देरी के पबासन में १२७५ वै. सु. ४ का जीर्णोद्धार एवं श्री आ. श्री सोमुन्दर सूरिजी म. की निश्रा में प्रतिष्ठा होने का लेख है। एक मन्दिर खण्डहर अवस्था में है। वह भी शान्तिनाथजी का कहलाता है। उपाश्रय एवं आयंबिल भवन है। ईडर से खेडब्रह्मा रोड के मध्य वडाली गाँव का स्टेशन एक कि.मी. है। ईडर से वडाली १४ कि.मी. है। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १० - साबरकांठा जिला (२२९ ७. खेडब्रह्मा मूलनायक श्री महावीर स्वामी मूलनायक श्री आदीश्वरजी मूलनायकजी - श्री महावीर स्वामी यह तीर्थ अत्यन्त प्राचीन है। वर्तमान में जो मंदिर है वह ५०० वर्ष प्राचीन है। इसके उपरान्त यहाँ पर आदीश्वर प्रभु का भी मंदिर है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार वि. सं. २०२८ में आणंदजी कल्याणजी की ओर से करवाने में आया है। परिक्रमा में भोयरे में भगवान की प्रतिमा है। _यहाँ पर अम्बाजी के मंदिर में खुदाई का काम करते समय अनेक जैन प्रतिमायें मिली थी, अम्बाजी की मूर्ति भी मिली है। उसके पूर्व यहाँ पर श्री नेमिनाथजी का मंदिर भी होना चाहिए। यहाँ पर बस्ती ५००० की है। जैन घर ७० वाड़ी एवं जैन धर्मशाला है। बस स्टेन्ड थोडी दूर है। रिक्क्षा मिलती है। कार-बस मंदिर तक जाती है। LORDER खेडब्रह्मा महावीर स्वामी जैन मन्दिर Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३०) " श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ F विजापुर की ओर हिंमतनगर की ओर स्कल १० १५ २०३ कीमी उनांवा डोलराणा मा णाजी n / उनावा NO रांधेजा ल्ला कोलवडा टिटोडा पेथापुर चलोडा ____10/ वांबोल बाबांधीनगर शेरपा M0 10 डभोडा - दहेगाम की ओर 20/ वलाड खोडिगारअडालज ति त कोवा चांदखेडा, 16 मोटेरा - अ हम अहमदाबाद की ओर गांधीनगर जिला क्रम पेज नं. गाँव गांधीनगर कोबा २३१ ૨રૂર Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्केल कीमी । ८ २० २५ २०३० विजापुर की ओर हिंमतनगर की ओर जी ल्ला, डोलराणा 20 म रांधेजा रांधेजा ल्ला चलोडा कोलवडा + / 10 । टिंटोडा / पेथापुर h 10वांबोल ग्राधानगर 85 * जी J डभोडा - दहेगाम की ओर (अडालज वा अ ह म दा दा अहमदाबाद की ओर Page #273 --------------------------------------------------------------------------  Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जरात विभाग : ११- गांधीनगर जिला (२३१ - - - - - - - - - - - - - - - - १. गांधीनगर यहाँ पर नवीन भव्य तीर्थ तुल्य मंदिर बना है। भोयरे में श्री शान्तिनाथजी है। सेक्टर नं. २२ में है। जैन बन्धुओं के ७५ घर है। गुजरात के पाटनगर में यह तीर्थ है। अहमदाबाद साबरमती से २२ कि.मी. है। **************** राता जेवा फूलड़ा ने, शामल जेवो रंग, आज तारी आंगीनो काई रूडो बन्यो रंग प्यारा पासजी हो लाल, दीन दयाल मुने नयणे निहाल प्यारा.....१ जोगीवाडे जागतो ने, मातो धिंगड मल्ल शामलो सोहामणो कांई. जीत्या आठे मल्ल, प्यारा.....२ तुं छे मारो सायबो ने हुंछु तारो दास, आसा पूरो दास नी कांई, सांभली अरदास, प्यारा.....३ देव सघलां दीठा तेमां, एक तू अवल्ल, लाखेणुं छे लटकुं ताहरु, देखी रीझे दिल, प्यारा.....४ कोई नमे पीरने ने, कोई नमे राम, उदयरत्न कहे प्रभु, मारे तुमशुंकाम, प्यारा..... मूलनायक श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी 309 गांधीनगर जैन मंदिर -CELECIO-ETECTECE--E-ELECRE-E-ELEC Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२) 119102100000 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 २. कोबा तीर्थ मूलनायक श्री महावीर स्वामी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ © ba 樂樂 पेढ़ी- महावीर जैन आराधना केन्द्र (कोबा) द्वारा तीर्थ निर्मित हुआ है। महावीर स्वामीजी की भव्य प्रतिमा है। यहाँ की प्रतिमा जी आगरा से लायी गयी है। १००० वर्ष पूर्व की प्रतिमा है। नीचे भोंयरे में प्रतिमाजी विराजमान है। ऊपर के भाग में श्री महावीर स्वामी है। पू. आ. श्री कैलाशसागर सूरि म. की यह स्वर्गभूमि है। उनश्री के प्रपट्टधर पू. आ. श्री पद्मसागर सूरिजी महा. के उपदेश से यह केन्द्र बना है। तारीख २२ मई के रोज दोपहर में २ बजे सूर्य की किरणें प्रभुजी के मुख पर पड़ती हैं। ऐसी व्यवस्था यहाँ की गई है। भगवान श्री महावीर स्वामी के प्रेरणाप्रद संदेश सारे विश्व में गूंजता करना एवं जैन धर्म एवं साहित्य का प्रचार-प्रसार-रक्षण करने का मुख्य हेतु इस तीर्थ का है। जैन म्यूजियम, आर्ट गैलरी, प्राचीन साहित्य, हेन्डी क्राफ्ट (हस्त शिल्प), काष्ठ फलकों पर उत्कीर्ण कलाकृतियाँ आदि विभाग है। जैनधर्म पूर्ण कलाओं से विकसित था। इसकी जानकारी प्रदान करना यहाँ का लक्ष्य है। महावीरालय, गुरु मन्दिर, आराधना भवन, ज्ञान मंदिर, उपाश्रय, मुमुक्षु कुटीर यात्री आवासगृह, भोजन- गृह मुद्रणालय एवं दवाखाना व निर्माण हो रहे हैं। अहमदाबाद से १० कि.मी. गांधीनगर से ११ कि.मी. हाईवे तीर्थ क्षेत्र सुशोभित है। ऊपर यह 乘槃來來來來來來來來來來來來來來來來來來來桌來來來來來來來》 कोबा तीर्थ - जैन मंदिर जी 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂皮 Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ / बेचराजी महेसाणा की ओर कीमी स्केल । १० १५ २०२५ मांडल गांधिनगर जील्ला गांधीनगर बायड ल्ला (मांडल दहेगाम विरम्गामा हल्ला साणूटाथलतेज- अहमदावाद . H31 सरखेजात्रवाद 8अ ह टा ___43र | नलसरोवर C184 /कपडवंज हमदाबाद/ A) 37ल्ला कठेल महेमदाबाद सावत्थीतीर्थ पि37 " 'लखतर सवला बारेजा - 19/ सुरेन्द्रनगर /घोलका जी 27 लींबडी -43 लींबडी की ओर Xनीमोदरा कलिकुंड त 11/कोठ अरहोज 16 __ वटामणो डा । न्द्र Lथ लिंबड़ी की फेदरा W 28 तारापुर की ओर धंधुका पीपली 297 ___291 वनग 1 अखात को .28 717 का बरवाला बावलीयावाला. पालीताणा की ओर जील्ला । खं Page #277 --------------------------------------------------------------------------  Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १२ - अहमदाबाद जिला क्रम ર 3 ४ ५ ६ ७ ८ भा बोटाद न व राणपुरी दसाडा सुरेन्द्रनगर 27 न्द्र रे लिंबडी की अलाउ ल्ला ᅲ जी लखतर मांडल 43 र 29 सा मांडल लीबडी लीवडी की ओर बरवाला गाँव कर्णावती (अहमदाबाद) थलतेज तीर्थ सरखेज तीर्थ बेचराजी ब बावला सावत्थी तीर्थ कोंठ (गागड) धोलका कलिकुंड तीर्थ (धोलका) जलसरोवर 30 21 धंधुका विरमगाम जी ल्ला जावलीयावाला ठा 35 पालीताणा की ओर जील्ला खं कां चलते अहमदाबाद ॐ अ हम दा बाद भि 34 फेदरा 24 12 र २३४ २४२ २४३ २४४ (नीमोदर ह कोठ अराज वटाम २४५ २४६ २४७ २४८ महेसाणा की ओर पीपली भा पेज नं. साद 15ft सरखेज 全 तला सावधीतीर्थ का त गांधिनगर जील्ला खे बाजा गांधीनगर घोलका जी कलिकुंड ती डा 28 तारापुर की और अखात अहमदाबाद जिला g १० ११ १२ १३ १४ १५ १६ खेडा दहेगाम क्रम गाँव बारेजा बरवाला राणपुर अलाउ धंधुका वीरमगाम ल्ला कठेल महेमदाबाद बायड मांडल धोलेरा तीर्थ कपडवंज उ स्केल कोमी ५१० १५ २०२५ पेज नं. २४९ २५० २५० २५२ २५३ २५४ २५४ २५६ (२३३ Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १. कर्णावती (अहमदाबाद) तीर्थ अहमदाबाद श्री हठीसिंग उशरीसिंग का धर्मनाथ प्रभुजी का बावन जिनालय अहमदाबाद की स्थापना वि. सं. १४३८ में हुई थी। ऐसा कहा जाता मस्जिद के रूप में परिवर्तित करवाया गया। बणभणाट मच गया नगर सेठ ने है। परन्तु उसके पूर्व यहाँ पर आशावल (पल्ली) एवं कर्णावती नगरी होने शाहजहाँ को यह विदित कराया। उन्होंने मन्दिर सही सलामत यथा रूप में का उल्लेख मिलता है। आशा नगरी दसमी शताब्दी के पूर्व थी। दशमी रखने की आज्ञा प्रदान की.। पश्चात शाहजहाँ के पुत्र औरंगजेब ने उसको |शताब्दी में वहाँ पर भाभा पार्श्वनाथजी का विशाल मंदिर था। नष्ट कर ही डाला। आज उस मंदिर का नामनिशान भी नहीं है। १७४६ में उदयन मंत्री ने उदयन विहार नामक मंदिर बनाया था। ग्यारहवी शताब्दी यहाँ पर १७८ जिनमंदिर थे । ५० हजार श्रावकगण थे। में पल्लीपति आशा को पराजित कर राजा कर्णदेव ने कर्णावती नगर में आज भी अहमदाबाद में २२५ मंदिर हैं। पराओ, पालडी, उस्मानपुरा, परिवर्तित किया था। वह नगर जैनधर्म का केन्द्र था। शान्तु मंत्री ने यहाँ पर शान्तिनगर वि.विस्तारों में बहुत हीअच्छे-अच्छे मंदिर बने है। पोलों मे मन्दिर विशाल मंदिर बनाया था। श्री हेमचन्द्राचार्य महा. ने यहाँ पर प्राथमिक ___ होने पर भी बस्ती कालोनी में चली जाने से संख्या कम होती जा रही है। परा अभ्यास किया था। पेथड़ शाह ने विशाल ज्ञान भंडार निर्मित कराया था। में वस्ती बढे तब वहाँ नवीन मंदिर बनाना होवे तो पोलो वाले वस्ती न होवे या नगर सेठ शान्तिदास जी का मुसलमान समय में बहुत मान था। उनके वहाँ संख्या कम होवे एवं मंदिर बहुत अधिक होवें तो वे मन्दिरों की प्रतिमाजी द्वारा १६८२ में निर्मित विशाल श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर १७०० में को परा में प्रदान कर बड़ी भारी भक्ति और शक्ति प्रदान कर सकते हैं। POP Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग: १२ - अहमदाबाद जिला (२३५ - (१) श्री हठीसिंग का मंदिर मूलनायक जी - श्री धर्मनाथ भगवान पेढ़ी - शेठ श्री हठीसिंग केसरीसिंह ट्रस्ट दिल्ली दरवाजा बाहर अत्यन्त सुन्दर नागर बांधणी वाला बावन जिनालयों से युक्त भव्य मंदिर हठीभाई की वाडी-उद्यान के रूप में प्रसिद्ध अहमदाबाद में मुख्य-रोड पर आता है। वि.सं. १९०१ में शेठ श्री हठीसिंह केशरीसिंहजी खात-मुहूर्त किया। वि. सं. १९०३ माघ वदी ११ गुरुवार को पू. आ. शान्तिसागरजी म. की निश्रआ में प्रतिष्ठा हुई है। तीन दरवाजे विशाल रंग मंडप युक्त है। जिनालय में नीचे भोयरा है जिसमें प्रतिमाजी हैं। संभवनाथ - मंदिर (झवेरीवाड) सबसे अधिक प्राचीन मानने में आता पतासापोल श्री महावीर स्वामी का भव्य मंदिर है। अन्य बहुत से देरासर हैं। तथा प्राचीन ग्रन्थ भंडार भी है। यहाँ पर शेठ लालभाई, दलपत भाई| भारतीय संस्कृति विद्या मंदिर है। जिसमें ग्रन्थ, प्राचीन चित्र, शिल्प कृतियाँ आदि का संग्रह है। शेठ आणंदजी कल्याणजी पेढ़ी ई. सं. १८८० में| पंजीकरण (रजिस्टर्ड) हुई, जो अनेक तीर्थों को संभालती है। श्री शंखेश्वर भोयणी, कलोल तीर्थ कारखाना पेढ़ी बहुत से मंदिरों को आरस प्रदान करती है - वे भी यहाँ पर है। जीर्णोद्धार कमेटी यहाँ पर है। जो अनेक मंदिरों के उद्धार में अभिरुचि लेती है। जैन संघ जैन शासन में मुख्य गिने जाते हैं। श्रेष्ठी गण शासन का कार्य करते है। १. हठीभाई वाडी, २-३. मिर्ची पोल में, दो रतन गोलवड, धर्मशालायें है। पांजरापोल (रोलिफरोड) उपाश्रय के पास जैन भोजनशाला है। अनेक रेल्वे स्टेशन, बस डिपो एवं अन्य दूसरी व्यवस्थायें बहुत सी है। संभवनाथ - मंदिर (उस्मानपुरा) वि. सं. २०१६ में उसकी प्रतिष्ठा हुई मूलनायक श्री धर्मनाथजी Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ (२) हाल्ला पोल (रीलिफ रोड अहमदाबाद) मूलनायक जी - श्री शान्तिनाथजी संप्रति महाराज के समय की बहुत सारी प्राचीन प्रतिमायें पद्मासन के साथ विराजमान हैं। भोयरा सहित भव्य जिनालय ५६ पाषाण की एवं ५० धातु की प्रतिमाये विराजमान हैं। यह देरासर बहुत ही प्राचीन कहा जाता है। भोयरा में श्री गौतम स्वामी की विशाल प्रतिमा है। ASKAR નજી हाल्लापोल मूलनायक श्री शान्तिनाथजी कालुशी की पोल श्री संभवनाथजी (3) कालुशी की पोल मूलनायक जी - श्री संभवनाथजी ५२० वर्ष पूर्व का प्राचीन मंदिर है। यहाँ पर चित्रांकित शत्रुजय का पट अवलोकन करने योग्य है। वि. सं. १५२७ में प्रतिष्ठा हुई है। नीचे भोयरे में श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ स्वामी की प्राचीन प्रतिमा है। श्यामवर्ण है। मूल प्रतिमाजी को स्थायी रखकर गर्भगृह का जीर्णोद्धार वि. सं. २०२१ में हुआ है। कालुशी की पोण श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी BARRARARKA I Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग १२ अहमदाबाद जिला A निशापोल मूलनायक श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथजी (४) निशापोल (झवेरीवाड) मूलनायक जी - श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथजी ५०० वर्ष से बहुत ही अधिक प्राचीन मंदिर है। नीचे भोंयरे में सात फुट की विशाल प्रतिमाजी है। १०२४ जिन प्रतिमा स्वरूप पंचधातुमय श्री सहस्रकूट सम्पूर्ण अहमदाबाद में दूसरा कहीं पर नहीं है। इसके उपरान्त गौतम स्वामी भगवान भी है। आदीश्वर भगवान की सात फुट विशाल प्रतिमाजी है। प्रतिमाजी अति प्राचीन है। वि. सं. १५६२ में नगर सेठ के कुटुम्बी जनों ने प्रतिष्ठा करायी है। ऐसा कहा जाता है कि प्राचीन समय में इस मंदिर के दर्शन करने आने वाले को एक एक स्वर्ण मुद्रा (गिनी) प्रदान करनी पडती थी। लकड़ी के मंडप में नक्काशी का काम अत्यन्त सुन्दर है। (२३७ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ SSSS गांधी रोड फताशाह की पोल मूलनायक श्री महावीर स्वामी Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १२ - अहमदाबाद जिला (२३९ (५) फताशाह की पोल - गांधी रोड मूलनायक जी- श्री महावीर स्वामी यह मंदिर प्रथम प्राचीन अवस्था में दक्षिण संमुख एवं काष्ठ निर्मित था, वि. सं. १९८१ की साल में इसको निकालकर शेठ उमाभाई रूपचंदजी के द्रव्य से पाया । नींव से नवीन बनाया गया। दूसरे दानदाताओं ने भी दान RA प्रदान किया, तदनुसार उसका काम हुआ है। वि. सं. १९२२ के मगशिर सुद सप्तमी को इसकी प्रतिष्ठा हुई है। अहमदाबाद नगर में यह प्रमुख मंदिर गिना छ जाता है। DHHOT EDS MIRE गांधी रोड फताशाहकी पोल श्री महावीर स्वामी जैन मंदिर LEONE उस्मानपुरा श्री संभवनाथ जैन मंदिर Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ (६) उरमानपुरा मूलनायक श्री संभवनाथजी आश्रम रोड पर भव्य मंदिर है। प्रतिष्ठा २०१६ में हुई है। MORA खाता-पिता उठता-बेसता तुज नाम मंत्र मुज दये वसजो श्वासे-श्वासे-रोमे-रोमे मुझ अन्तर भीते तुम रहेजो, क्षण-क्षण समरूँ पल-पल समरूँ-एक तान आवी मलजो, अष्ट कर्मनो अंतज थाओ-बस एकज आशा मुझ फलजो। करुणा सिन्धु त्रिभुवन नायक तुं मुझ चित्तमां नित्य रमे। चाकरी चाहुँ अर्हनीश तारी भवथी मन मारुं विरमे। श्री सिद्धाचल मंडन साहिब-तुज चरणे सुरनर प्रणमें।। सम्यग्दर्शन मुझने आपो, विश्वना तारणहार तमे। AAREERSE उस्मानपुरा मूलनायक श्री संभवनाथजी IN NHANH साबरमती श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ जैन मंदिर Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १२ - अहमदाबाद जिला (२४१ (७) साबरमति रामनगर (अहमदाबाद) मूलनायक जी-श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी ये प्रतिमाजी दिव्य तेजवाली है। पू. आ. श्री विजयसेन सूरिजी महा. के पट्टधर पू. आ. श्री विजयउदय सूरिजी म. की निश्रा में इस मंदिर की ७० वर्ष पूर्व प्रतिष्ठा हुई है। यहाँ पर दूसरे चार मंदिर है। समीप में केशवनगर तथा राणीप वि. मंदिर है। यहाँ पर पाडापोल में से लायी गयी धातु की प्रतिमाजी बहुत प्राचीन है। 4 ऊपर के भाग में गोडीजी पार्श्वनाथ, नूतन शंखेश्वर पार्श्वनाथ, आशापुरा पार्श्वनाथ की प्रतिमाये है। वर्तमान के सूरि श्रेष्ठ आ. भ. श्री विजय रामचन्द्र सूरिजी महाराज यहाँ पर पुखराज आराधना भवन में २०४७ को चार्तुमास हेतु विराजमान थे। उन श्री के उपचार हेतु पालडी ले गये- वहाँ पर ९६ वर्ष की आयु में समाधिपूर्वक स्वर्गवास को प्राप्त किया। उनश्री की अपूर्व श्मशान यात्रा यहाँ पर आयी एवं २ लाख की जनमेदिनी के मध्य अग्नि संस्कार सम्पन्न हुआ। वहाँ पर उनश्री का स्मारक बन रहा है। यहाँ पर जैनों के दो हजार घर है। अहमदाबाद के जैन धार्मिक विस्तारों में साबरमती एक महान एवं अद्भुत विस्तार है। साबरमती मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी समाटनगर प्यारा. मूलनायक - श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी सम्राट नगर सेक्टर - ३/१० घोडासर, हाईवे, अमदावाद अमदावाद - दिल्ली हाईवे रोड उपर नारोल से १।। कि.मी. एवं नारोला से ९ कि.मी. दूर सम्राट नगर आया है। शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की १७०० वर्ष प्राचीन भव्य प्रतिमा डेमोल गाँव से लायी गयी है। अगल-बगल में जैनों के ५० घर है। बाजू में पटवा औद्योगिक क्षेत्र है तथा अनेक जैन भाईयों के कारखाने है। इस प्रतिमा का दर्शन कर नाना प्रकार के अनुभव महान योगी पुरुषों को हुवे है। यह स्थान प. पू. आ. देव श्री प्रभाकरसूरीश्वर जी म. सा. के सदुपदेश से निर्मित हुआ है। विहार-मार्ग पर यह स्थान होने के कारण भविष्य में सुन्दर विकास होने की सम्भावना है। २०० फुट चौडे हाईवे ऊपर यह स्थान आता है। दूर-दूर से दर्शनो के लिये अनेक भावुक भव्य आत्मायें आती है। प्यारा-प्यारा हो पार्श्व प्रभुजी-दुःख दोहग हरनार, दुःख दोहग हरनार, प्यारा-दुःख दोहग हरनार, श्री शंखेश्वर पार्श्व जिनेश्वर, अजरामर पदधार, अक्षय सुखनो तू भोगी छे, हुंदुःखियो संसार प्यारा. ।।१।। तूं वैरागी प्रभु वीतरागी, हूँ प्रभु रागी अपार, तारो मारो मेल मले क्याँ? कोण समझावे सार, प्यारा.।।२।। शिवमारग आराधन काजे, शुभ राग धरनार, . मैत्री आदि शुभभावना योगे तुम साथे मलनार। प्यारा. ।।३।। प्रभुगुणरागी, विभाग त्यागी, मुक्ति पामे निरधार, एम प्रभु तुज वचन सुणीने, आव्यो तुज दरबार। प्यारा.।।४।। तुज मुज अंतर भांगवा काजे, दर्शन द्योने दयाल, गुरु कर्पूर सूरि अमृत अरजी, ध्यान माँ ल्योने कृपाल। प्यारा. ।।५।। Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ २४२) SCENE २. थलतेज तीर्थ पानायलगवान श्रीयतामसी। यभगवान શ્રીવાસુપુજચસ્વ SDO JATNARAI मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी भोयरा में मूलनायक श्री ऋषभदेवजी मूलनायक जी - श्री ऋषभदेव स्वामी पेढ़ी-मुक्ति धाम जैन मंदिर, थलतेज श्री मुक्ति धाम केसर चन्द्र सूरिजी जैन विद्यापीठ ट्रस्ट ऊपर के भाग में श्री ऋषभदेव नीचे के भाग में श्री चन्द्रशेखर पार्श्वनाथ एवं पद्मावती की विशाल प्रतिमाजी विराजमान है। । जिन मंदिर, उपाश्रय, धर्मशाला, विद्यापीठ, दवाखाना, गुरुमंदिर, अतिथिगृह, भोजनशाला, भाताखाता, छात्रालय है। संस्था के प्रेरक-सौराष्ट्र केसरी आ. श्री विजयभुवन रत्न सूरिजी म. वि. सं. २०४२ वै. सु. ३ को उनश्री की निश्रा में प्रतिष्ठा हुई है। वहाँ पू. आ. म. का समाधि मंदिर तथा श्री आदीश्वरजी ती चरण की प्रतिष्ठा है। अहमदाबाद से ५ कि.मी. अहमदाबाद गाँधीनगर रोड पर है। समीप में कोबा तीर्थ व गाँधीनगर तीर्थ के भव्य मंदिर है। देखी श्री पार्श्वतणी मूरति अलबेलडी, उज्ज्वल भर्यो अवतार रे, मोक्षगामी भवथी उगारजो, शिवधामी भवथी उगारजो। देखी.।।१।। मस्तके मुकुट सोहे, काने कुंडलिया, गले मोतन का हार रे मोक्षगामी भवथी उगारजो। देखी. ।।२।। पगले पगले तारा गुणो संभारता, अंतर ना विसरे उचाटरे, मोक्षगामी भवथी उगारजो। देखी. ।।३।। आपना दरिशने आतमा जगाड्यो, ज्ञान दीपक प्रगटावरे, मोक्षगामी भवथी उगारजो। देखी. ।।४।। आतमा अनंता प्रभु आपे उगारिया, तारो सेवक ने भव पार रे, मोक्षगामी भवथी उगार जो। देखी. ।।५।। KAR Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १२ - अहमदाबाद जिला - - - - - - - - - थलतेज तीर्थ जैन मंदिर ३. सरखेज तीर्थ सरखेज जैन मंदिर मूलनायक जी - श्री वासुपूज्य स्वामी यह मंदिर शिखरबन्दी एवं प्राचीन है, ऊपर के भाग में चौमुखी कुंथुनाथजी का मंदिर है। पू. आ. श्री विजय चन्द्रोदय सूरिजी म. की प्रेरणा से जीर्णोद्धार हुआ है। तथा उपाश्रय, भोजनशाला, धर्मशाला, भाताखाता वगैरह का काम चलता है। विहार का क्षेत्र होने से सुविधायें बढी हैं। यह मंदिर १५० वर्ष पूर्व का कहा जाता है। अहमदाबाद राजकोट हाईवे मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी पर १० कि.मी. है। JI-CRELECREEEEEEEEEEEEEEEEE Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ४. बावला RRRRSON ROHORROREONAKRA SAMA बावला जैन मंदिर R मूलनायक श्री आदीश्वरजी मूलनायक जी - श्री ऋषभदेव भगवान मध्य में ऋषभदेव भगवान दायी ओर श्री नेमिनाथ भगवान बायी और श्री पार्श्वनाथ भगवान इस प्रकार त्रिशिखरी तीन शिखरों से युक्त मंदिर है। वि. सं. १९६४ वै. सु. १० को प्रभुजी को प्रतिष्ठित किया है, बविला जैन संघ ने यह मंदिर बनवाया है। जैनों के ८० घर है। उपाश्रय है। आयंबिल शाला है। अहमदाबाद हाईवे पर है। R POORORR दादा-दादा आदि प्रभुजी, शत्रुजय शणगार, तुम चरणों थी तीरथ पावन, तीर्थ करे उद्धार, भव तारक मे तीरथ सांचु, भवताप हरनार । दादा....१ तारक तीर्थ माहे भमता, भव मां भमे न लगार, यात्रु चरण कज रज फरसता, कर्मरज दूर करनार। दादा....२ तीर्थ पतिनी लक्ष्मी ते पामे, तीर्थपति पूजनार, सात क्षेत्र मां निज धन वौवे, अनंत धन लेनार। दादा.:..३ तीर्थ यात्रा विधिए करता, उतरीये भवपार, तीरथनी आशातना करतां, डुबीए आ संसार। दादा....४ मनोहर मूर्ति प्रभुजी तुमारी, दुःख दोहग हरनार, दर्शन पीयूष पान करीने, तृप्त थयो न लगार। दादा....५ भवो-भव प्रभु तुम चरणों नी सेवा, मले जो शिवसुख सार, गुरु कर्पूर सूरि अमृत विनवे, कर जोडी आ वार। दादा....६ Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १२ - अहमदाबाद जिला (२४५ 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂蛋蛋飯 ५. सावत्थी तीर्थ (बावला) > ··->>->>->>-··············>>->>->>->>->> AMBA मूलनायक श्री संभवनाथजी मूलनायक जी श्री संभवनाथजी यहाँ श्री जिनचन्द्रसूरिजी म. के मार्ग दर्शन एवं प्रेरणा से इस नवीन तीर्थ ने मूर्त रूप ग्रहण किया है। वि. सं. २०३९ से काम चालू है। धर्मशाला, भोजनशाला, उपाश्रय, साधना मंदिर, आराधना भवन वगैरह बन रहे है। मंदिर, भोजनशाला, धर्मशाला वगैरह बन गये है। वि. सं. २०४६ माघ सुदी ११ को प्रतिष्ठा हुई है। बहोतेर जिनालय युक्त भव्य जिनालय है। हाईवे पर बावला से ४ कि.मी. है। बावला से बगोदरा तरफ जाते हुए हाईवे रोड पर यह आता है। 乘來來來來來來來來來來來來無來來來來 सावत्थी तीर्थ- मूलनायक श्री संभवनाथजी ※樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂魚 Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६) C मूलनायक श्री आदीश्वरजी ६. कोंठ ( गांगड ) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग - १ श्री कोंठ जैन मंदिरजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी यहाँ पर प्राचीन मंदिर था। मुस्लिम काल में उसका नष्ट हो जाना कहा जाता है। उस मूल स्थान से ही वर्तमान में प्रतिमाजी मिली है। यहाँ के श्रावक को स्वप्न आने पर खुदाई का काम करके प्रतिमाओं को बाहर लाये । दिव्य चमत्कारिक प्रतिमाजी है। पहली प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजय नेमिसूरिजी महा. सा. के हस्ते हुई है। उसके बाद दूसरी प्रतिष्ठा वि. सं. १९३७ में पू. आ. श्री विजय मेरुप्रभ सूरिजी म. सा. के द्वारा हुई है। तीन शिखों से सुशोभित मंदिर है। C जैनों के घर १५० थे । वर्तमान में १० घर है। बगोदरा हाईवे से १२ कि.मी. अन्दर कौंठ गाँव है। अहमदाबाद-धंधुका रोड़ बड़ोदरा तरफ जाती हुई बस यहाँ होकर जाती है। धोलका कलिकुंड जिसका प्राचीन नाम . विराट नगरी था वह २२ कि.मी. है। DDDDDDDDDDD Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १२ - अहमदाबाद जिला ७. धोलका श्री શ્રી આદિનાથ oogarorarorarwargonor मूलनायक श्री आदीश्वरजी धोलका आदीश्वरजी जैन मंदिर मूलनायक - श्री आदीश्वर जी यह प्राचीन नगरी है। मंत्रीश्वर वस्तुपाल दंडनायक था ।प्राचीन जिन मंदिर थे।वर्तमान में तीन मंदिर है। यहाँ पर श्री आदिनाथजी के भोयरा में से प्रभुजी ले जाकर हाईवे ऊपर श्री कलिकुंड तीर्थ बना है। वह यहाँ से एक कि.मी.होता है। मुज अवगुण स्हामुं मत जुवो, बिरूदत्तमारू संभालो, पतित पावन तुमे नाम धरावो, मोह विडंबना टालो रे, सिद्धगिरि मंडन पाय नमीजे, रीसहेसर जिनराय, नाभिभूप मयदेवानंदन,जगत जंतु सुखदाय रे, स्वामी तुम दर्शन सुखकार, तुम दरशन थी समकित प्रगटे, निज गुण ऋद्दि उधार रे, स्वामी। पुरव नवाणु वार पधारी,पवित्र कर्यु शुभ धाम , साधु अनन्ता कर्म खपावी, पहोंच्या अविचल ठामरे।। स्वामी. भारे कर्मी पण तें तार्या, भवजलधी थी ऊगार्या मुज सरिखा किम नाते संभार्या, चित्त थी केम उतार्या रे, स्वामी. श्री नय विजय विबुध पय सेवक, वाचक जस कहे साधु विमलाचल भूषण स्तवनाथी, आनंद रस भर मांचुरे। स्वामी. पापी अधम पण तुम सुपसाये, पाम्या गुण समुदाय अमे पण तरंशु शरण स्वीकारी, महेर करो महाराय रे, स्वामी *************** तरण तारण जगमाहि कहावो, हंछ सेवक ताहरो, अंबर आगल जईने केम जाँचु, महिमा अधिक तुमारो रे, वामी. Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (BC) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ /////影剧影影影剧影剧剧影量感 | L. (mm) मूलनायक श्री कलिकुंड पार्श्वनाथजी यहाँ पर पूज्य आ.श्री विजय राजेन्द्र सूरिश्वरजी म.के उपदेश से भव्य तीर्थ बना है। ऊँची निर्माण-शैली के २४ जिनालय है,धोलका से लाये मूलनायक पार्श्वनाथ आदि है। हाईवे ऊपर है। धर्मशाला, भोजनशाला, वि.संपूर्ण व्यवस्था है। यात्रीगण खूब आते है। पीछे शत्रुजय तीर्थ रचना 她 」 致逾画画画画画前画画画前画画画画前画画画画画画画画画画画 柬學率嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛傘傘傘傘傘傘傘樂奥 मूलनायक श्री कलिकुंड पार्श्वनाथजी कलिकुंड तीर्थ जैन मंदिर 路來奧奥奥傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘派 Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग १२ अहमदाबाद जिला मूलनायक श्री शान्तिनाथजी ९. बाजा मूलनायक जी - शान्तिनाथजी यहाँ पर पूर्व में चिंतामणि पार्श्वनाथ की धातु की प्राचीन प्रतिमा थी एवं भोयरा में मंदिर के नीचे के भाग में थी। जीर्णोद्धार को १२५ वर्ष हो गये है। भोंयरे में विराजित शान्तिनाथजी के ऊपर के भाग में मूलनायक के रूप में प्रतिष्ठित की है एवं नवीन मंदिर बनाया गया है। दूसरा श्री आदीश्वर जी का मंदिर है। अहमदाबाद खेड़ा रोड़ ऊपर आता है। बारेजा जैन मंदिर ********* राग (आवो आवो हे वीर स्वामी....) आवो आवो है शान्तिप्रभुजी, मुज अंतर मोझार, मुव अंतर मोझार प्रभुजी उतारो भव पार, राग द्वेष अरि दूर करीने, पाम्या केवल नाण, साचो कल्याण मार्ग बतावी, कर्यो उपकार जगभाण, आवो... त्रिभुवन स्वामी, त्रण भुवन मां, तुम सम नाहि कोई देव, इन्द्र चन्द्र ने नागेन्द्र देवा, करे अहेनिश तुम सेव तुझ पद सेवा मेवा बिना प्रभु, रझल्यो आ संसार, मोर करी सामुं जुवो स्वामी, माफी मांग अपार, भाग्यवंत नरनारी पामे, तुम पद सेव सुखदाय, किरण योगे तुझ पद सेवतां, दुःख दोहा सवि जाय, आयो.... अनंत काले हि प्रभु मलियों, छोडुं नहि तुम साथ, तुम भक्ति माँ मुझ मन मलियुं, हवे शिव सुख छे हाथ, कायाणी मंडन प्रभु गुण गावा, खडे पगे तैयार, गुरु कर्पूर सूरि अमृत भाखे, धन धन तस अवतार, Abar रेसन आवो..... आवो.... आवो..... आवो... आवो.... (२४९ Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 張路路路路路路路路路路路路路路路路路路紧密资验资必须 १०. बरवाला 參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 參參參參參參參參參參參參參 मूलनायक श्री पद्मप्रभु स्वामी बरवाल जैन मंदिर मूलनायक श्री पद्मप्रभु स्वामी मूलनायक प्रभुजी ४५० वर्ष प्राचीन प्रतिमा है। मारवाड़ से लायी गयी है। २०० वर्ष प्राचीन यह मंदिर है। प्रतिमाजी के ऊपर लेख है। यहाँ के नगर सेठ श्री घेलाशा धर्मप्रेमी थे। दानेश्वरी भी थे, उन्होने ही यह मंदिर बनाया है। ___पुनः प्रतिष्ठा संवत २०२३ वै.सु.१० पू.आ.श्री कैलाश सागर सूरिजी म.के द्वारा हुई है। चौमुखी भी २०२३ में बनी है। जैनियों के वर्तमान में १० घर है। प्रत्येक वर्ष १००० के लगभग साधु साध्वी पधारते हैं। पालीताणा-अहमदाबाद खंभात,शंखेश्वर जाते-आते समय विहार का रास्ता है। अहमदाबाद-भावनगर हाईवे पर आता है। ** *** *** ** ** * * * ** ** *** *** *** ११. राणपुर मूलनायकजी- श्री शान्तिनाथ भगवान यहा पर गुम्मट युक्त घर मंदिर है। प्रतिमाजी के सम्बंध मे इतिहास मिलता नहीं है ।परन्तु संप्रति राजा के समय में भराई हुई है। शिमाणी में प्रतिमाजी है - वैसी ही है। ___इस मंदिर के अहाते में ही दूसरा एक मंदिर है। जिसकी वि.सं.१९८१, माघ सुदी ६ को प्रतिष्ठा हुई है। जिसमें मूलनायक श्री सुमतिनाथजी है। शाह नागरदास परसोत्तम दास ने बनवाया है। इसी ग्राम में श्री श्रेयांसनाथ का भव्य शिखरबन्दी मंदिर संवत २०१७ में मोदी नरोत्तमवास-छगनलालजी ने बनवाया है। उसकी भव्य अंजनशलाका पूर्वक २०१७ फाल्गुन सुदी ७ को प्रतिष्ठा पू.आ.विजयरामचन्द्रसूरिजी महा. मनोहर सूरिजी महा. अमृत सूरिजी महा. की निश्रा में हुई थी, इस गावं में जैनो के ६४ घर है। भावनगर-सुरेन्द्रनगर रेल्वे लाईन का। स्टेशन है। सी तरफ से बसे मिलती है। 無為無參费费费费费费费费 發發發發參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १२ - अहमदाबाद जिला ાપ્રતિપાલમા Or Quint GK NE Do શ્રી શં. સાથ मूलनायक श्री शान्तिनाथजी श्री नरोत्तम भाई मोदी का जैन मंदिर मूलनायक श्री श्रेयांस नाथजी उपाय स्व நிண்ட 15; 29 श्री नरोत्तम दास छननलाल मोदी का जैन मंदिर Role श्री कर्मचार (२५१ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १२. अलाउ NEW मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी पू. गुरुदेव अमृत सू. म. की मूर्ति मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी यह ऊँची विशाल रचना का भव्य मंदिर है। संवत १८८५ में इसको बनाया है। पू.आ.श्रीविजय नेमी सूरिजी म. के हाथो इसकी प्रतिष्ठा प्रभावक रूप में हुई थी। द्वितीय प्रतिष्ठा पू.आ.श्री अमृत सूरिजी म.के द्वारा प्रतिमाजी गल जाने से पुन: नवीन प्रतिमा जी प्रतिष्ठित करने के कारण तीसरी प्रतिष्ठा पू आ. विजय जिनेन्द्र सूरिजी म. की निश्रा में संवत २०३३ में माघ सुदी १० को हुई है एवं जीर्णोद्धार भी हुआ है। वरंडा में भव्य शत्रुजय पट है। उसमें गोखले में पू. आ. श्री विजय अमृत सूरिजी म. की मूर्ति है । प्रथम जीर्णोद्धार राणपुर के शेठ नागरदास परसोत्तमदास ने सं. १९९९ में करवाया है। बोडाद ८ कि.मी. है। साधन आवागमन के मिलते है। यहाँ से राणपुर १४ कि.मी. दूर। अलाऊ जैन मंदिर Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १२ - अहमदाबाद जिला (२५३ १३. धंधुका ॐBAR 100KGESH मूलनायक श्री आदीश्वरजी मूलनायक श्री शान्तिनाथजी आदीश्वर जी जैन मंदिर श्री हेमचन्द्राचार्य जी म. गुरुमूर्ति Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५४) मूलनायक श्री शीतलनाथजी इस मंदिर की प्रतिष्ठा सं. २०१० में मगशिर सुदी ५ को पूज्य बागड़ देशोद्धारक आ. श्री कनकसूरिजी म. की निश्रा में हुई है। सोसायटी में श्री वासुपूज्य स्वामी मंदिर बस स्टेन्ड के समीप में है। बहुत से यात्रीगण आते है। पू. हेमचन्द्र सू. म. की प्राचीन मूर्ति है। जैनों के १२० घर हैं । अहमदाबाद- पालीताणा हाईवे विहार का रास्ता है। मूलनायक श्री शान्तिनाथजी १४. वीरमगाम ********* *** श्री हेमचन्द्र सू. म. की जन्मभूमि है। उसके अनुरूप स्मारक उप जीवन के प्रसंग आरस में उत्कीर्ण गुरु मंदिर तैयार हुआ और प्रतिष्ठा २०५२ फा सु. १० को पू. आ. श्री राजतिलक सू. म. पू. आ. श्री महोदय सू. म. से हुई। मूलनायक श्री शांतिनाथजी यह प्रतिमाजी प्राचीन है। १५० वर्ष पहले पाटण से लाई गई है। यहाँ के मंदिर बहुत प्राचीन है । ३५० वर्ष पहले बनाये है। संप्रति महाराज के समय में प्रतिमा पाटण के कृषक के खेत में से (गाडरिया पार्श्वनाथजी) मिले है। पद्मासन के साथ छोटी प्रतिमा है। इस प्रतिमा के लिए गाँव के लोगो और जैनों के बीच विवाद होने पर गाडी में प्रभुजी को बिठाकर बेल जिस तरफ जाए उस तरफ जाने देना नक्की किया गया। पाटण से गाडी मांडल में आकर खड़ी हुई और मांडल में प्रभुजी विराजमान हुए। ऐसा कहा जाता है। एक ही **ka श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-9 १५. मांडल मूलनायक श्री शांतिनाथजी संघवी फली में मंदिर है । १९९२ फागुन सुदी ५ को प्रतिष्ठा हुई है। ७५ वर्ष पूर्व दूसरा जीर्णोद्धार हुआ था। जैन सोसायटी के श्री संभवनाथजी मंदिर की प्रतिष्ठा २०३७ माघ सुदी **** १३ को पू. आ. विजय मानतुंग सूरिजी म. की निश्रा में हुई है। नूतन चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा २०४० पौष वद २ को पू. आ. श्री विजय राजेन्द्र सूरिजी म. की निश्रा में हुई है। स्टेशन ऊपर श्री संभवनाथ जी मंदिर की प्रतिष्ठा पू. आ. हेमचन्द्र सू. म. की निश्रा में हुई है। यहाँ पर धर्मशाला है। ** ***** कंपाउन्ड में तीन मंदिर है। आखिरी जीर्णोद्धार वि. सं. २०४० में हुआ है। कुल पांच मंदिर है। वस्तुपाल तेजपाल की जन्मभूमि है। यहाँ श्री रामचन्द्रजी सीता की खोज में आए थे ऐसा कहा जाता है। यहाँ के मंदिर में प्राचीन ताडपत्रीय जैन ज्ञान भंडार की जेरोक्ष नकले है। जैनो के १६० घर है। शंखेश्वरजी वीरमगाम रोड पर है। शंखेश्वर तथा • उपरीयालाजी तीर्थ पास में है। Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १२ - अहमदाबाद जिला (२५५ मूलनायक श्री शान्तिनाथजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी HALA PARIA जैन मंदिर EDHA POARTH सर ARORA ERE ECOMMira Era R Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 66 १६. धोलेरा तीर्थ શ્રી ધોલેરા જૈન તિર્થ. તા.ધંધુકા पक NP Moonmoon 0000000 HAMARINDIA मूलनायक-श्री ऋषभ देव स्वामी धोलेरा जैन मंदिर मूलनायकजी - श्री ऋषभदेव स्वामी यहाँ का मंदिर १९० वर्ष प्राचीन है। प्राचीन काल में धोलेरा बंदर व्यापार का केन्द्र था। वह मंदिर पालीताणा श्री मोतीशा टुंक है। यहाँ पर धर्मशाला, भोजनशाला की व्यवस्था है। अहमदाबाद से कलिकुंड होकर ९८ कि.मी. बडोदरा-भावनगर हाईवे पर है। भावनगर से ६० कि.मी. धंधुका से १७ कि.मी. दूर है। 38686 Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कीमी ० स्केल ५ १० १५ २०२५ वटामण 立 ह अ दा Fo खं भा 28 10 अहमदाबाद की ओर 22 खंभात जी का 29 अमदावाद की ओर तारापर श्री. नार/ अमदावाद की ओर • खेड़ा मातर राणज गी शकरपुर अ ल्ला महमदाबाद 13 16 धर्मज बोचासण कठलाल खात 107 महुधा नडीयाद पेटलाद 22 ति आणंद-. सा खेडा 28 17 वासद -12 बुरिसद 逾 दहेवाण लाडवे 15 ब र वालवोड कपडवर्ज 14 13 7 उमरेठ, 18 25 आंत्रोली उमेटा) 'आंकलाव • मोडासा की ओर 34 22 5 कां बायड ठा "ठासम डाकोर वडोदरा जी वडोदरा की ओर ल्ला जी वालाशिनोर ल्ला च पं हा ल जील्ला गोधराकी ओर Page #303 --------------------------------------------------------------------------  Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १३ - खेड़ा जिला (२५७ पोलमा की ओर कोमीरप०३० र बालाशिनो " अमदावाद की ओर अमदावाद ल अहमदाबाद की ओर लाडवेल कठलाल जील्ला गोधराकी ओर महुधा हेमदाबाद जाकोर नडीयाद YX.LTA आंत्रोली आणंद.. जी पेटलाद/ वासद तारमर Ns पर्म -12- २ बॉरसद " बोचासण राणज IA 'आंकलाव वालवोडा दहेवाण उमेटा खंभात ति'शकरपुर का अखा त 0 वडोदरा की ओर वडोदरा खं भात ECH खेड़ा जिला मुल BHEO क्रम गांव पेज नं. क्रम गांव पेज नं. FILMum ૨૮ १०. २७१ खेड़ा मातर तीर्थ २५५ ११. ર૭ર बोरसद वालवोडतीर्थ दहेवण उमेटा सोजीत्रा १२. २६० ૨૬૨ तारापुर नार WWW. १३. १४. वासद २६३ १५. आकोली २७४ BHI Si २६४ १६. २७७ पेटलाद स्थंभन तीर्थ-खंभात शकरपुर तीर्थ रालज तीर्थ २६५ १७. आणंद नडियाद कपडवंज २७५ २७० १८. २७७ OHHA Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ २५८) १. खेड़ा मूलनायक श्री भीडभंजन पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री अमीझरा पार्श्वनाथजी अमीझरा पार्श्वनाथ जैन मंदिर भीडभंजन जैन मंदिर Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १३ - खेडा जिला (२५९ मूलनायक श्री भीड़भंजन पार्श्वनाथजी वि. सं. १७ वी. सदी में पू. उपाध्याय उदयरत्न जी महा. हो गये है, वे खेड़ा के थे और उनका मियां गाम में कालधर्म हुआ था। श्री जंबू स्वामी रास खेड़ा का प्राचीन नाम खेटकपुर था। एक ही कम्पाउन्ड में अमीझरा की रचना यहां पर ही हुई थी। यहाँ पर वि. सं. १७४९ में भीड़भंजन पार्श्वनाथ, वासुपूज्य स्वामी, महावीर स्वामी वगैरह मंदिर हैं। पार्श्वनाथ मंदिर था। जिसका जीर्णोद्धार वि. सं. १९२५ में उपाश्रय, वात्रक नदी के तट पर हरियाला नामक गांव में पू. साधु म. बैठे थे उस धर्मशाला आदि सहित करवाने का लेख था। खेड़ा के पास से देवकी समय उनको आभास हुआ - कि मानो प्रभु यह कह रहे हैं कि अखंड | वणसोल नामक गाँव में से वि. सं. १७२४ का एक लेख मिला है। इस तीर्थ दीपक के साथ भूमि में दबी प्रतिमा है, उनको बाहर निकालो। पू. साधु का अंतिम जीर्णोद्धार हुये वि. सं. २०२८ मगशिर सुदी ३ को पू. आचार्य श्री महा. ने अपने को आभास हुई घटना की बात खेड़ा जैन संघ को कही गाजे | विजय रामचन्द्र सूरिजी म. की निश्रा में मंदिर की प्रत्येक प्रतिमाजी की फिर के साथ अखंड दीपक के साथ प्रतिमाजी को लाये । वे ही प्रतिमा आज से प्रतिष्ठा हुई है। पू. हर्ष विजय दादा की स्वर्गभूमि है। वर्तमान में विराजमान है और ५०० वर्ष पूर्व मंदिर बनवाया है - अनेक बार | वात्रक नदी के किनारे देरी थी - रास्ता बंद होने से पादुका नूतन प्रतिष्ठा जीर्णोद्धार हुआ है। यहां कुल ९ मंदिर थे उनमें से ३ मंदिर जीर्ण हो गये उनके के समय मंदिर के कम्पाउन्ड में प्रतिष्ठित है। तपो मूर्ति पू. आ. श्री विजय प्रतिमाजी इस मंदिर में विराजमान है। अखंड दीपक आज भी चालू है। कर्पूर सूरि म. की यह निवास-भूमि थी। यहाँ मंदिर की पेढ़ी में अमूल्य नीलम स्फटिक की प्राचीन प्रतिमाजी है। घर - १५०, विशाल धर्मशाला, भोजनशाला, उपाश्रय, पांजरापोल, जिनकी हर रोज सेवा-पूजा भी होती है। पाठशाला आदि संस्थाये है। पटेल भावसार वि. भी जैन था। २. मातर तीर्थ मातरतीर्थजैन मंदिर TUA Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६०) DDDDDDDDDDDDDDDDX 逃 CAS मूलनायक श्री साचा सुमतिनाथजी 嫩嫩嫩嫩嫩嫩 श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायकजी श्री साचा सुमतिनाथजी ठे. साचा देव कारखाना मातर जि. खेड़ा संप्रति महाराज के समय की प्रतिमाजी है। मंदिर का वारंवार जीर्णोद्धार हुआ है। अंतिम वि. सं. १९९७ में जीर्णोद्धार हुआ है। यहाँ की प्रतिमाजी सुहुज गांव की जमीन में से निकली है। जब प्रतिमाजी को यहाँ ला रहे थे उस समय भारी वर्षा के कारण वात्रक नदी में पूर की संभावना थी। संघ ने रूक जाने का निर्णय किया परंतु रथचालक को पानी के स्थान पर रेती दिखी और रथ किनारे मातर पहुंच गया। उस समय से साचा देव की प्रसिद्धि सुमतिनाथजी को मिली। बावन जिनालय युक्त शिखर बन्द भव्य मंदिर है। पू. बाप जी म. श्री सिद्धि सूरिजी म. को यहाँ मंदिर के नीचे शलय है, वैसा स्वप्न आने पर जीर्णोद्धार की पेढ़ी ने खात्री की खूब नीचे मनुष्य के हाड़ पिंजर निकले। २००७ में मूल जिनालय का जीर्णोद्धार हुआ। पू. सिद्धि सू. म. पू. लब्धि सू. म. पू. रामचन्द्र सू. म. की निश्रा में प्रतिष्ठा हुई है। जैनों के घर है । वि. सं. २०४३ में धर्मशाला, भोजनशाला, उपाश्रय नये बने है। खेड़ा से जा सकते हैं। खेड़ा से ५ कि.मी. है। ******* *** ३. सोजीत्रा मूलनायकजी श्री महावीर स्वामी इस गाँव में हालार देशोद्धारक पू. आ. श्री अमृतसूरि म. का जन्म हुआ है। मोती शाह शेठ की जन्मभूमि है। पालीताणा में मोतीशा की टँक प्रख्यात है। दानवीर तथा धर्मप्रेमी था। इस मंदिर के पास में शेठ मोतीशाह के द्वारा निर्मित मंदिर था । अजितनाथ भगवान मूलनायक थे और काष्ठ की कलाकारी युक्त मंदिर था। जो जीर्ण हो जाने से नवीन शिखर बन्द यह मंदिर बना है। २५०० वर्ष पूर्व की चौवीस जिनों की आरस तथा धातु की प्रतिमायें हैं। तीन चौबीसी भगवान है। वि. सं. २०३८ में आ. श्री विजय चन्द्रोदय सूरिजी म. की निश्रा में प्रतिष्ठा हुई है। मंदिर के बाहर श्री विजय कस्तूर सूरिजी म. की देहरी है। उनकी स्वर्ग भूमि है। जैनों के घर २५, धर्मशाला एवं उपाश्रय है । **** DDDDDDDDDDDDDDDX Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १३ - खेड़ा जिला (369 每每与国与国好了好了好了好了好了好了好了好了 LUE(MIC Leust. 四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四四 मूलनायक श्री महावीर स्वामी शेठ मोतीशाह मंदिर के मूलनायक श्री अजितनाथजी महावीर स्वामी जैन मंदिर शेठ मोतीशाह जैन मंदिर Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 8000 झूले. झूले. झूले. झूले. राग - (आवो-आवो हे वीर स्वामी) झूले-झूले हे भविजन प्यारा । वीर प्रभु पारणामांय, वीरप्रभु पारणामांय प्यारा । वीरप्रभु पारणामांय, चैतर सुदी तेरस मध्य रमणी, प्रभु जन्म्या सुख दाय, छप्पन दिक्कुमारी हुलरावे, प्रभुना गुण गीत गाय, मेरु पर प्रभु जन्म ओच्छव करी, इन्द्रो नंदीश्वरे जाय, अट्ठाई महोत्सव यात्रा करीने, सौ स्वर्गे सिधाय, राजा सिद्धार्थ महोत्सव करीने, नाम वर्धमान थपाय, रत्न जडित कंचन पारणा मां, वीरजी नित्य पोढ़ाय, त्रिशला माता हरखे झुलावे, चांदीनी डोरी खेंचाय, घुघरी घमके घम घम पभुजी, हरखे अति हर्ष दाय, इन्द्र इन्द्राणी चामर ढाले, प्रभु देखी हरषाय, चन्द्र सूरज प्रभु दर्शन करवा, रोज रोज फेरा खाय, मस्तके मुकुट मोतीनी माला, प्रभु कंठे सोहाय, कुंडल काने केडे कंदोरो, कल्लीओ कांडे दीपाय, वीरप्रभुने हरखे झुलावी, संघ सकल हरषाय, भक्तिभाव थी प्रभुजे झुलावे, तस घर मंगल थाय, हजार बेने पाँचनी साले, श्रावण अमास कहेवाय, गुरु कर्पूर सूरि अमृत गावे, वीर पारणुं शिवदाय। झूले झूले. शेठ मोतीशाह ४. तारापुर मूलनायकजी - श्री भीड़भंजन पार्श्वनाथजी ४०० वर्ष पहले का मंदिर है। स्तवनों में उल्लेख है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार हुआ है। विहार मार्ग है। खंभात अहमदाबाद-वडोदरा बगोदस हाईवे ऊपर है। KALED શિ પરા વિતા Edolti 3030838 मूलनायक श्री भीड़भंजन पार्श्वनाथजी Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १३ - खेड़ा जिला (२६३ ५.नार मूलनायकजी - श्री शान्तिनाथ भगवान -यहाँ घर मंदिर था। उसके सामने नवीन शिखर बन्द मंदिर ८० साल पहले बना है। शिखर पर सोना का कलश है, छोटी प्राचीन प्रतिमा है। जो संप्रति महाराजा के समय की होगी-ऐसा अनुमान लगता है। पू. मंगल विजयजी म., पू. मेरू प्रभ सू. म. दो भाई थे। उनकी ये जन्मभूमि है। पू. आ. श्री विजयदान सूरिजी म. की देरी है। पटेल लोग जैन धर्म पालते है। १०० घर है। तारापुर से ५ कि.मी. है। मूलनायक श्री शान्तिनाथजी अकॉन्द्रियायोकवि निद्रव मटि ६. पेटलाद पेटलाद जैन मंदिर मूलनायक जी- श्री कल्याण पार्श्वनाथजी यहाँ मंदिर है, घर २०० है। (लीमडी शेरी) प्रतिष्ठा वै. सु. ६ है। मूलनायक श्री कल्याण पार्श्वनाथजी Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 影剧/剧影剧影影影影影影影剧 ७. स्थंभन तीर्थ - खंभात )))))) ) ) 際柬興來興奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥派 मलनायक श्री स्थंभन पार्श्वनाथजी 奥樂奥樂奥傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘來來來 // श्री स्थंभन पार्श्वनाथ जिन मंदिर //// //倒影图督凰影图 Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२६५ गुजरात विभाग : १३ - खेड़ा जिला 6666666 67 बजार में चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर भोयरे में मलनायक श्री स्थंभन पाश्र्वनाथजी D बजार में मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ वाभा -એ૬ , खारवाड़ी मूलनायक श्री सीमन्धर स्वामी पू. आ. श्री विजय प्रेम सू. म. गुरु मूर्ति Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ HD NAATS.रा imit અજા wimmimi શ્રઆદીશ્વરભગવાન माणेक चोक मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी जमीन में से निकले हुए श्री आदीश्वरजी १७०.निलोपट जमीन में से निकले हुए श्री पार्श्वनाथजी जमीन में से निकला धातु का समवशरण Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १३ -खेड़ा जिला (२६७ KPQ माणेक चौक भोयरा में मूलनायक श्री आदीश्वरजी जीराड पालो भोयरा में मूलनायक श्री नेमनाथजी मूलनायकजी - श्री स्थंभन पार्श्वनाथजी यह मंदिर खारवाडा में है। श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी के तीन मंदिर एवं उसी पोल-पोल में मंदिर मिलकर ६९ मंदिर है। माणेक चौक भोयरा पाला, खारवाड़ा, चोकसीपोल, बाजार, बोर पीपलो, मांडवी पोल वि. में बहुत मंदिर है। खंभात की वैभव समृद्धि वर्षो से प्रख्यात थी। वि. सं. ११११ में श्री अभयदेव सूरि म. को दैवी प्रेरणा मिली और भूगर्भ में यह भव्य स्थंभन पार्श्वनाथजी की प्रतिमा प्रगट हुई है। प्रतिमाजी की कला तथा कारीगरी ध्यान से अभ्यास करने योग्य है। इस खंभात गाँव में आज भी अति प्राचीन अवशेष मिल आते है। यहाँ पर श्री कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य म. सा. ने दीक्षा ग्रहण की थी। यह तीर्थ प्राचीन एवं भव्य है। खंभात प्राचीन बन्दर एवं व्यापार का केन्द्र था। जीराडा पाला चिन्तामणि मंदिर में नीचे नेमिनाथ जी है - वे गिरनार जाते समय यहाँ स्थिर हुए ऐसा कहा जाता है। बाजार चिन्तामणि भोयरा में स्थभन्न पार्श्वनाथ, माणेक चोक भोयरा में आदीश्वरजी, वाघमासी खडकी भोयरा में शान्तिनाथजी की विशाल प्रतिमायें दर्शनीय है। माणेक चोक में संप्रति राजा के समय की ५२ प्रतिमा निकली है और वहाँ पर प्रतिष्ठित संघवी की पोल में भी ३० प्रतिमाजी हजार वर्ष प्राचीन निकली हैं। दहेवाण नगर में भव्य श्री महावीर स्वामी जिनालय गोलाकार है - उसमें २४ जिन एक सरीखे एक लाईन में है। नीचे सीमन्धर स्वामी है। उनकी बाजु में २० विहरमान तथा दायीं तरफ अतीत की चौवीशी, बायी बाजु भविष्यत् काल की चौबीसी है। इस मंदिर की प्रतिष्ठा अंजन शलाका पू. रामचन्द्र सू. म.की निश्रा में हुई है। बजार चिन्तामणि मंदिर के पास पू. नीति वि. दादा, पू. आत्मारामजी महा., पू. कमल सू. म., पू. लब्धि सू. म., पू. दानसूरि म., पू. प्रेम सू. म. की मूर्तियाँ एवं गुरु मंदिर है। पू. प्रेम सू. म. की स्वर्गभूमि है। पू. रामचन्द्र सू. म. के गुरु मंदिर की प्रतिष्ठा भी हुई है। खारवाडा में पू. वृद्धिचन्द्रजी म., पू. नेमि सू. म. के गुरु मंदिर है। जैनमें के घर १००० है। उपाश्रय, धर्मशाला, भोजनशाला है। श्री अंबालाल पानाचंद यात्रिक गृह माणेक चोक में बना है। यात्रिकों के लिए पूर्ण सुविधा है। समीप में २ कि.मी. शंकरपुर तीर्थ में भव्य चिन्तामणि पार्श्वनाथ तथा गुरु मंदिर में पू. गौतम स्वामीजी तथा पूर्व के अनेक महापुरुषों की मूर्तियाँ है। धर्मशाला वि. है। उसी प्रकार खंभात से रालज तीर्थ ६ कि.मी. है। जहाँ पर भव्य मंदिर, उपाश्रय, धर्मशाला है। ये दोनों ही यात्रा के धाम है। AN रासर Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -२६८) ampoobed श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ राग (मीठा लाग्या ने मने.....) .. मोक्षे सिधाव्या महावीर स्वामी, गौतम करे विलाप रे, वीर वीर हे महावीर रे, देव शर्माने प्रतिबोध करीने, पाछा वल्या गौतम स्वाम रे, निर्वाण सांभली मार्गे प्रभु नुं आँखे छे आंसुडानी धार रे, देता उपालंभ महावीर स्वामी ने, अन्ते कर्यो केम मने दूर भाग मागत हुं केवल माँ शुं? छेडे वलगत शुं स्वाम रे भूल मारी ए वीतराग स्वामी, विचारे पदे वीतराग रे, धाति कर्मनो नाश करीने, केवल अमृत वरनार रे, बोले जिनेन्द्र एवा प्रभुनी, भक्ति छे मंगल कार रे, दहेवाणनगर जैन मंदिर वीर. ॥ १ ॥ बीर. ॥ २१॥ रे, वीर ॥ ३ ॥ वीर ॥ ४ ॥ वीर ॥ ५ ॥ वीर. ।। ६ ।। वीर. ।। ७ ।। *** 4 दहेवाण नगर मूलनायक श्री महावीर स्वामी Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १३ - खेड़ा जिला ८. शकरपुर तीर्थ સ્વામી નેમ યોધન શ્રી સીમંધરે मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री सीमन्धर स्वामी श्री सत्यसायी श्री गौतम स्वामी आदि गुरु मूर्ति श्री भद्रबाहु स्वामी Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ पोरी खंभात विभाग का यह तीर्थ है। खंभात से २ कि.मी. दूर है। तपगच्छ अमर जैन शाला संघ व्यवस्था संभालता है। -शकरपुर जैन मंदिर ९. रालज तीर्थ Paroo मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी रालज जैन मंदिर खंभात के समीप यह तीर्थ है, खंभात से ७ कि.मी. है। तपागच्छ अमर जेन शाला के वहिवट में यह तीर्थ है। 6 * Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १३ - खेड़ा जिला (२७१ १०. बोरसद शामला पार्श्वनाथजी जैन मंदिर मूलनायक श्री शामला पार्श्वनाथजी मूलनायकजी - शामला पार्श्वनाथ भगवंत प्रतिमाजी चांपानेर से लायी है। पास में सहस्रफणा पार्श्वनाथजी है। अन्तिम जीर्णोद्धार सं. २०२४ वै. सुद ५ को हुआ है। पहली प्रतिष्ठा वि. सं. १९८७ जेठ सुद ५ को प. पू. आ. श्री लब्धि सूरिजी म. की निश्रा में, दूसरी प्रतिष्ठा वि. सं. १९९२ में हुई। मंदिर की सुन्दरता में वृद्धि की। हाईवे ऊपर गाँव है। काशीपुरा में भव्य जिन मंदिर है। और जीर्णोद्धार करके विशाल मंदिर बन रहा है। हाईवे ऊपर सुमतिनाथजी का भव्य मंदिर बना है। समीप में वाल-वोड तीर्थ में १५० वर्ष प्राचीन चन्द्रप्रभु का मंदिर है। देखी मूर्ति श्री पार्श्व जिननी नेत्र मारां ठरे छे, ने हैयुं मारुं फरी-फरी प्रभु ध्यान तारुं धरे छे, आत्मा मारो प्रभु तुझ कने, आववा उल्लसे छे, आपो अर्बु बल हृदयमां, माहरी आश ओछे, Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२) कल શ્રી ચંદપ્રભ સ્થાસી ११. वालवोड तीर्थ वालवोड तीर्थ - मूलनायक श्री चन्द्रप्रभ स्वामी दहेवाण जैन मंदिर श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १२. दवण वालवोड तीर्थ - जैन मंदिर बोरसद से १० कि.मी. है। जीर्णोद्धार हुआ है। पू. सिद्धि सू. म. का गुरु मंदिर है। सौराष्ट्र- बम्बई के विहार मार्ग पर संक्षिप्त मार्ग पर यह तीर्थ आता है। ***** बोरसद से पास ही है। यह तीर्थ महीसागर के तट पर है। पू. रामचन्द्र सू. म. की जन्म भूमि है। यहाँ से आरा उतर कर कावी तीर्थ जाते है। अब गंभीरा का पुल बन जाने से आरा उतरना अब कम पड़ा है। **** Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग १३. खेडा जिला QQ V W मूलनायक श्री सुमतिनाथजी S43 १३. उमेटा उमेटा जैन मंदिर मूलनायक श्री संभवनाथ भगवान तीन शिखर वाला गगन चुम्बी यह मंदिर ५०० वर्ष प्राचीन है। प्राचीन प्रतिमायें हैं। रायण-पगला (चरण पादुका) एवं चौमुखी मंदिर है। पू. लब्धि सू. महा की गुरु प्रतिमायादि है। यह मंदिर पूर्व में मुस्लिम काल में नीचे के भाग में भोंयरे में था । संप्रति काल में प्राचीन सुमतिनाथ है। तथा दूसरी ६०० वर्ष प्राचीन धातु प्रतिमाजी है। जैनों के १० घर है। बड़ोदरा से नवीन रोड पर ११ कि.मी. है। समीप में आंकलाव, कोसीन्द्रा, नवाखल, चमारा, ब्राह्मण गाम, गंभीरा, नवापरा है। १४. वासद मूलनायकजी - श्री संभवनाथ भगवन्त यहाँ पर २०० वर्ष पूर्व घर मंदिर था। मानों प्रतिमाजी का कोई संकेत था कि अचानक प्रतिमाजी चल गये। यह प्रतिमा छाणी से लाये थे संभवनाथजी जिनालय को ८५ वर्ष हो गये हैं। प्रतिष्ठा विधि वि. सं. १९६२ वै. सुद६ के रोज करने में आयी थी। जैनों के २५ घर हैं। अहमदाबाद- बम्बई हाईवे पर एवं रेल्वे उपर वासद आता है। वड़ोदरा से १५ कि.मी. है। HORN SKE SSESS (२७३ 興路選選選選選選選 Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ SACRORREARNERIKARAN TET वासद जैन मंदिर LATED STION -मूलनायक श्री संभवनाथजी १५. आकोली आकोली जैन मंदिर मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी मूलनायकजी - श्री वासुपूज्य स्वामी ४०० वर्ष प्राचीन शिखर बन्द मंदिर है। प्रतिमाजी बहुत ही प्राचीन है। भूगर्भ में से निकली है। वहाँ मूल स्थान पर मंदिर प्राचीन था। एवं भूमि में दबा गया। आंतरसोबा गाँव के शेठ को स्वप्न आया- एवं खुदाई का काम करते समय प्रतिमाजी निकली। ऊपर के भाग में केसरियाजी भगवान है। पीछे की ओर मणिभद्रजी का मंदिर है। पाँच घर है। उपाश्रय, धर्मशाला है। नडियाड से ३५ कि.मी. कपड़वंज से ७ कि.मी. है। * * *** Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १३ - खेड़ा जिला (२७५ १६. आणंद GAUR Featीतपत आणंद जैन मंदिर मूलनायक श्री शान्तिनाथजी मूलनायकजी - श्री शान्तिनाथ भगवान (बदामी वर्ण) स्टेशन रोड़, एस.टी. स्टेन्ड के पास मंदिर है। संप्रति महाराज के समय की दिव्य चमत्कारी प्रतिमाजी है। जीर्णोद्धार करके वि. सं. २००७ वै. सु. ६ को प्रतिष्ठा हुई है। जैनों के १०० घर है। धर्मशाला है। १७. नडीयाद मूलनायकजी - श्री शान्तिनाथ भगवान (बदामी रंग) । एवं प्राचीन मंदिरों का जीर्णोद्धार करके वि. सं. २०३७ में मूल स्थान पर हीरा कालीदास की खड़की में यह मंदिर है। शिखर बन्द मंदिर निर्मित किये है। संप्रति महाराज के समय की प्रतिमायें हैं। दूसरे दो प्राचीन जैन मंदिर गाँव में है। पटेल जैन धर्म को पालते है - और मंदिर और मिल्कत संभालते हैं। ७०० वर्ष प्राचीन मंदिर है। मूल मंदिर जीर्ण हो जाने से सात में से पांच | बाहर से नौकरी या धन्धा वास्ते आये हुए जैनों के २५० घर है। ५० घर - मंदिरों के प्रतिमाजी यहाँ शान्तिनाथ भगवान के मंदिर में विराजित की हैं। पटेल जैनों के है। खेड़ा ५ कि.मी., आणंद १५ कि.मी. है। MAINA Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ नडियाद जैन मंदिर मूलनायक श्री शान्तिनाथजी झुकी. झुकी. राग - (सारी-सारी राते तेरी....) झुकी-झुकी प्रभुजीने भावे नमुं छु, भावे नमूं छु प्रभु पाये नमुं छुरे भावे नमुं छु । वाणी अनुपम प्रभुजी नी गाजे, मुक्ति महल नी सीडी विराजे । झुकी. अद्भुत गुणगण थी ओछाजे रे। भावे. जीवन नैया मारी भीम भव दरिये, मोह तरंगो थी हेले चढीओ। डूबसे डूबी एह मारी नैयारे। भावे. अज्ञान-आँधी चोमेर फैलाई छे, मिथ्यात्व-मेघमाला मंडाई छे, आधि व्याधि आदि जल पारावार रे। भावे. झुकी. वाट छे वसमी ने जावू छे पार, सारा सुकानी विना नहि रे आधार, सुकानी बनी प्रभु पार उतारो रे। भावे. शान्तिनाथ प्रभु वंदन करुं छु उपदेश अमृत दिल मां धरूं छु, कहे जिनेन्द्र प्रभु तारो आधारो रे । भावे. झुकी. Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १३ - खेड़ा जिला । (२७७ १८. कपडवंज कपडवंज जैन मंदिर मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी SAMAY पार्श्व जिनेश्वर बन्दी अरे, त्रण भुवन शिरताज तारजो अमने नाथजी रे, त्रेवीसमा जिन राजा। पार्श्व....१ वाराणसी नगरी भली रे, अश्वसेन नरपति तास, वामा मातानो लाडको रे, ब्रोडे जे भवना पाश, पार्श्व ....२ लंछन सर्पनु शोभ तुंरे, करुणारस भंडार कमठ धरणेन्द्र उपरे रे, समकित तारुं उदार। पार्श्व....३ नवकार मंत्रना जापनो रे, प्रयोग नागने काज, करी प्रभु तार्यो तेहनेरे, बनाव्यों ते देवराज । पार्श्व ....४ अजब प्रतापी देखतारे, शरणे आव्यों देव, विनंती महारी ओक छेरे, जिनेन्द्र आपजो सेव। पार्श्व....५ मूलनायक - श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी वाघणवाली खड़की में यह मंदिर है। शान्तिनाथ भगवान का वाणीया शेरी में २०० वर्ष प्राचीन मंदिर है। यहाँ पर प्राचीन मंदिर था जिसमें धातु की प्राचीन प्रतिमाजी थी वह मंदिर जीर्ण हो गया इससे संघ ने आरस प्रदक्षिणा वाले ३१ शिखर शिखरिओं वाला बनाये है। आ. श्री विजय लक्ष्मी सूरिजी म. की निश्रा में प्रतिष्ठित प्राचीन जैन मंदिर काष्ठ का था। वि. सं. २०११ जेठ सुद ४ को पू. आ. श्री माणिक्य सागर सूरि जी म. एवं हेमसागर सूरिजी म. के वरद हस्त से अंजन शलाका के साथ प्रतिष्ठित भगवान विराजमान है। अखंड दीपक चालू है। मंदिर के पास में आ. श्री आनंदसागर सूरिजी म.सा. की गुरु मूर्ति की प्रतिष्ठा हुई है। जैनों के २०० से उपर घर है। धर्मशाला, भोजनशाला है। अहमदाबाद वडोदरा से बसे मिलती है। नडियाद गोधरा के समीप में है। Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ aloNDS WONDOLET रा मालपुर की ओर कांठा कीमी पकड़ कडाणा व डा 307 संतरामपुर -30 5वांसवाडा की ओर KAमोटी झेर 1 लुणावाड़ा जीत झालाद लीमडी লো शहेरा प चाम हा ल32 vn ध्य कासरा का मेवालीयारा दाहोद +- 2.30 रतलाम पीपलीय नीलीमखेडा खंडोला प्र की ओर 20दौतार सीमलीया 40 . देवगढबारीया, इन्दोर जे दे की ओर कालोल 48 शा परोली- सगतला डो कानपुर XXहालोली पावागढ़ टोकारीया की ओर 8388888888888888888888888888888888888888RTREAM पानीमाइन्स ल्ला जांबुघोडा 18888888888888888888888888888888888888888800 जोजे छोटा उदेपुर की ओर वडोदरा की। ओर गीरज वांधोडीया "रा बोडेली कोसिंद्रा की ओर पंचमहाल - जिला क्रम ग्राम क्रम ग्राम पेज नं. २७९ पेज नं. २८१ गोधरा परोली तीर्थ पावागढ़ तीर्थ दाहोद २८० ર૮ર AMAYOOOOOOOOOOETRY 8888888888888888888888888888888888888888 Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ __स्केल कीमी । ०१५२०३५ - कां ठा जी ल्ला रा mज मालपुर की ओर "कडाणा Mमोटी झेर । वांसवाडा की ओर संतरामपुरु...30 30 णावाडा लीमडी ल्ला) म हा ध्य य दाहोद +++ हा ल 24 पीपलाल्हाद B+ लीमखेडा रतलाम ठासरा की सेवालीया PAK गोधरा रतलाम M खंडोला प्र की ओर 207दौतार इन्दोर 20 सामलाया 40: देवगढबारीया, दे की ओर X/26 परोली कालोल डो 44132 कानपुर Xहालोली पावागढ़ सगतला टोकारीया की ओर - - : समलाया की ओर पानीमाइन्स ल्ला जांबघोडा जोजे 'छोटा उदेपुर की ओर वडोदरा की ओर द । जी गीरज वांधोडीया बोडेली कोसिंद्रा की ओर Page #327 --------------------------------------------------------------------------  Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२७९ गुजरात विभाग : १४- पंचमहाल जिला 2000 666 30003 १. गोधरा શીદતિની; एसनाथ न श्री शांतिना मूलनायक श्रीशान्तिनाथजी-दोनोऔर श्रेयांसनाथजीतथा शान्तिनाथजी मूलनायकजी - श्री शान्तिनाथजी आदि सात प्रतिमाये तथा गोधरा की प्राचीन छोटा मंदिर में लायी गई प्राचीन मंदिर ६०० वर्ष का था। इस प्राचीन मंदिर में मूलनायक श्री । मूलनायक श्री धर्मनाथ आदि तीन प्रतिमाये आचार्य श्री सागरानंद सू. म. के शान्तिनाथ की प्रतिमा खंडित हो जाने के कारण श्री संघ ने दहेज नगर से। शिष्य श्री सुरेन्द्र सागरजी म. आदि मुनिवरों की निश्रा में वि. सं. २०१९ को संप्रति महाराज के द्वारा भराई हुई थी श्री शान्तिनाथ प्रभु की अलौकिक मगशिर सुदी एकम को प्रतिष्ठित की है। प्रतिमाजी तथा पावागढ़ से लायी गयी चिन्तामणि पार्श्वनाथ आदि २८ उपाश्रय, धर्मशाला, भोजनशाला है। प्रतिमाजी की वि.सम. १९९८ के फा. व. ३ के रोज आ. श्री विजय अहमदाबाद-इन्दौर रेल्वे मार्ग पर आता है। वडोदरा-अहमदाबाद से बसे नेमिसूरिजी और आ. श्री विजय अमृत सूरिजी म. विजय लावण्य सूरिजी म. मिलती है। आदि के वरद हस्त से प्रतिष्ठित कराने में आयी है। ४० वर्ष पूर्व सोसायटी में नवीन मंदिर उपाश्रय बना है। जीर्णोद्धार - मूल गर्भगृह के शिखर के साथ स्थायी रखकर आसपास दो । नवीन गर्भगृह बनवाये है। और पावागढ़ से लायी चिन्तामणि पार्श्वनाथ Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3.6 湖南省茴茴茴茴茴茴茴茴茴茴茴茴茴茴茴茴茴茴尚古古古古古尚省深 RCO) 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 गोधरा जैन मंदिर Pores decke श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 蛋麻 हँसता बांध्या जे जे कर्म रडता नवि छुटाये, २. परोली तीर्थ जणुं छं हु तो पण स्वामि मुझ मनडु अकडाए, उदय मां आवे छे ज्यारे आकुलव्याकुल थाऊ सद्बुद्धि कांई ओवी आपो जेम समाधि पाउं अहीं रही हूं तुझने याचं एवी भक्ति मुझने देजे, भावना बंधन तोड़ी शकुं हुं ओवी शक्ति मुझने देजे, असार मांधी सार ग्रहुँ हुँ छुटवा युक्ति मुझने देजे, बंधन मां बंधायो छु हूं छुटवा मुक्ति मुज ने देजे, 乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘 परोली तीर्थ जैन मंदिर मूलनायक श्री नेमिनाथजी 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂麻 Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १४- पंचमहाल जिला मूलनायकजी श्री नेमिनाथजी (श्याम वर्ण) पेढ़ी वेजलपुर (जि. पंचमहाल) जैन संघ ट्रस्ट पंचमहाल जिला के देवगढ़ बारिया तहसील (तालुका) में आया हुआ छोटा राजपूत ठाकुरों की बस्ती है। यहाँ देव को सत्य देव गिनने में आता है। सब धर्म के लोग मानते है। छाणी गाँव के श्रावक को स्वप्न आया कि गाँव के बाहर कर नदी के मध्य में नेमिनाथ प्रभु की प्रतिमाजी है। खुदाई का काम करते समय परिकर के साथ मूर्ति मिली। बैलगाड़ी में प्रतिमा लाते समय वर्तमान स्थल पर ठहर गयी वहाँ पर मंदिर बनाया है। कहा जाता है कि इस गाँव से चार कोस (१३ कि.मी.) गाँव दूर धनेश्वरी नगरी थी। मुस्लिम आक्रमणों से नष्ट हो गयी, प्राचीन प्रतिमाजी नदी के किनारे भूमि में दब गई होगी। ई. सं. १४८४ में महमद बेगड़ा ने आक्रमण किया वैसा मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी 555 कहा जाता है। प्राचीन प्रतिमाजी सम्प्रति महाराजा ने भराई हो ऐसा कहा जाता है। यह प्रतिमाजी पहले पावागढ़ में थी। वहाँ से धनेश्वरी बाद में परोली आयी होगी। वि. सं. १८८३ में जीर्णोद्धार हुआ उस समय रंग मंडप की कमान पर लेख था। अंतिम ई. सं. २०३० में जीर्णोद्धार हुआ है। सम्प्रति महाराजा के समय की प्राचीन प्रतिमा व ५०० वर्ष पूर्व का मंदिर है। वस्तुपाल - तेजपाल के समय में बहुत जैन मंदिर थे। फा. सु. ११ को मेला भराता है। उपाश्रय, भोजनशाला, धर्मशाला है। गोधरा से १७ कि.मी. हालोल से १५ कि.मी. है। बसे मिलती है। ३. पावागढ तीर्थ पावागढ़ जैन मंदिर राग ( धन्य श्री वीर प्रभु प्यारा ) सुपार्श्व जिन जी प्यारा, अभयनो डंको देनारा डंको देनारा स्वामी डंको देनारा, सुपार्श्व. पिता प्रतिष्ठित पृथ्वी माता लंछन स्वस्तिक सारा, वाराणसी नगरीना प्रभु तुमे छो, जगजीवन आधारा, बसो धनुषनी आपनी काया, मूल थी माया मारनारा, बीसलाख पूर्व आयु पामीने, विराज्या मोक्ष मोझारा, कर्पूर अमृत गुरु जिनेन्द्र प्यारा, वन्दे अपारा, अभय. अभय. अभय. अभय. अभय. (२८१ Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२) मूलनायकजी श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ पेढ़ी, श्री परमार क्षत्रिय जैन सेवा ट्रस्ट, पावागढ़ यहाँ पर चिन्तामणि पार्श्वनाथ प्रभु का जिनालय बना है। नीचे के भाग में नाकोड़ा सहस्रफणा पार्श्वनाथजी विराजमान है। वर्तमान में ही बि. सं. २०४७ का नूतन तीर्थ है । इस तीर्थ स्थल के प्रणेता श्री परमार क्षत्रियोद्धारक आचार्य श्री विजय इन्द्रदिन्न सूरिजी महा. है । उद्धारक गुरुभक्त दानवीर श्रीपाल जी जैन पौत्र अरुणकुमार जैन । जैन तीर्थ का प्राचीन इतिहास ऐसा कहता है कि यह पावागढ़ तीर्थ बीसवें तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामी के समय का मानने में आता है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग १. सम्राट अशोक के वंशज गंगसिंह ने सन् ८०० में पावागढ़ किला एवं जिन मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया। यह पहाड़ श्वेताम्बर जैनों का तीर्थ स्थान था। आज एक भी श्वे. जैन मंदिर रहा नहीं है। अचल गच्छाधिष्ठायिका देवी श्री कालिका देवी का यह प्रसिद्ध स्थान गिना जाता है। नीचे पावागढ़ गाँव है। धर्मशाला, भोजनशाला वगैरह है। हिन्दुओं का तीर्थधाम है। भोजनशाला जैन कन्या (प.क्ष.) छात्रालय, बोर्डिंग, पावागढ़ हालोल रोड़ पर आता है। वडोदरा से ५२ कि.मी. है। हालोल में नवीन मंदिर है। पावागढ़ से ७ कि.मी. दूर है। ४. दाहोद दाहोद जैन मंदिर मूलनायकजी श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी पेढ़ी - गिरधरलाल हेमचंद भाई शाह नेताजी बादार दाहोद पहले घर देरासर था। सं. २०३६ में शिखरबन्द मंदिर बनाया। प्रतिष्ठा की। श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ भगवान की खूबसूरत प्रतिमा है। अतिशय चमत्कारी प्रतिमाजी है। नागेश्वर तीर्थ तथा रतलाम इन्दौर आदि जाने के लिये हाईवे उपर ही आने के कारण यात्रियों को दर्शनों का लाभ मिलता है। जैनों के १०० घर है। Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ठासरा की ओर ___स्केल कीमी ० ६१० १५ २०२५ गोधरा की ओर पीपलोद की ओर आणंद (सावली सबोल म स्वासद 'सोखडा/ बोरसट । पावागढ 21 Xछाणी जांबुघोडा चांदपुर वडादरा वाघोडीया DAXM 15. छोटाउदेपुर अलीराजपुर खंभात का पादरा 1 बोडेली देरापरा या अखात भवाल अणस्तु अणस्तु । , पडभोई 1n 48 कोसीन्द्रा Tn. वणछरा T / करजणYA मीयागाम IN । सांदोद कवांट जंबुसर को ओर नसवाडी /25 चाणोद तिलकवाडा तणखला सीनोर सालसर राजपीपला . गुरुडेश्वर ओर .. ल्ला केवडीयाकोलोनी मोटीकोरल सुरत की च नर्मदाबंध • झगडीया Page #333 --------------------------------------------------------------------------  Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १५ - वडोदरा जिला (२८३ SAGA सरा की और कीमो रूक ध्य आप यारपुर डायोडीया अलीराजपुर खंभात का-IN अखात / भ की कोसीन्द्रा नि अणूळगा। पी काHA जीवामTA अंबसर (जसवाडी In 125 तपाखला राजपीपला गाडेबारीयाकोला पोटीकोरल मुश्त की ओर ल्ला विडीयाथोलोती. नर्मदा अगडीया वडोदरा जिला क्रम क्रम गाँव वडोदरा पेज नं. २८४ २८५ छाणी गाँव पेज नं. मीयांगाम २८८ बोडेली तीर्थ २८९ दर्भावती (डभोइ) तीर्थ २९० सिनोर २९२ पादरा दरापरा तीर्थ २८६ ૨૮૭ करजण ર૮૩ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १. वडोदरा As कोठी पोल - मूलनायक श्री शान्तिनाथजी घडियाली पोल - मूलनायक श्री कुन्थुनाथजी घडियाली पोल जैन मंदिर कोठी पोल जैन मंदिर Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १५ - वडोदरा जिला - ---RELETELEPEET-CELELETELELA मूलनायकजी - श्री कुंथुनाथ भगवान घडियाल पोल - जानीशेरी नाके कुन्थुनाथजी का प्राचीन मंदिर दिव्य प्रतिमाये चमत्कारी है। गुम्मट वाला है। शिखर बंदी शान्तिनाथ प्रभु का दूसरा मंदिर कोठी पाल मेनरोड पर आया हुआ है। वो बहुत ही जीर्ण हो गया था। जीर्णोद्धार बाद वि. सं. २००८ माघ सुदी ६ को प्रतिष्ठा हुई। उपदेशक पू. आ. श्री वि. प्रताप सूरिजी म., विजय धर्मसूरिजी म. की खडी प्रतिमाये है। लगभग यहाँ पर ३६ मंदिर है। बहुत सारे उपाश्रय है। यह प्राचीन सुन्दर नगर है । गायकवाडी राज्य था। राजमहल था। गुजरात, महाराष्ट्र के बहुत से भागों का राज यहाँ से चलता है। अहमदाबाद - बम्बई हाईवे तथा रेल मार्ग पर है। २. छाणी 傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘來來來來來來來噢噢噢噢噢奥奥奥奥奥奥些 मूलनायक श्री शान्तिनाथजी .. छाणी जैन मंदिर मूलनायकजी- श्री शान्तिनाथजी यहाँ १००० वर्ष पूर्व का मंदिर है। संप्रति राजा के समय की प्रतिमाजी है। पार्श्वभाग में विशाल प्रतिमा आदीश्वर दादा की है। वि. सं. १७०० में अंजन हुई है। बहुत से स्थानों पर प्राचीन प्रतिमाये छाणी से लायी गयी है। ऐसा कहा जाता है। मंदिर को १०० वर्ष होते बडा महोत्सव हुआ। यहाँ के शताधिक साधु-साध्वी है और अनेक आचार्य है। इससे यह प्राचीन तीर्थ होगा-ऐसा मालूम होता है। वडोदरा से १० कि.मी. है। -------- - - ---TELENCER Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ३. पादरा 285 पादरा जैन मंदिर मूलनायक श्री संभवनाथजी संभव देव ते धुर सेवो सवेरे, लही प्रभु सेवन भेद, सेवन कारण पहली भूमिका रे, अभय अद्वेष अखेद। संभव. १ भय चंचलता हो जे परिणामनीरे, द्वेष अरोचक भाव, खेद प्रवृत्ति हो करता थाकीये रे, दोष अबोध लेखाय। संभव.२ चरमावर्त हो चरण-करण तथारे, भव परिणति परिपाक, दोष टले वली दृष्टि खुले भली रे, प्राप्ति प्रवचन वांक। संभव.३ परिचय पातक घातक साधु शुं रे, अकुशल अपचय चेत, ग्रन्थ अध्यात्म श्रवण मनन करीरे, परिशीलन नय हेत। संभव.४ कारण जोगे हो कारज नीपजेरे, अमां कोई न वाद, पण कारण विण कारज साधीओरे, ओ निजमत उन्माद। संभव.५ मुग्ध सुगम करी सेवन आदरेरे, सेवन अगम अनुप, लेजो कदाचित् सेवक याचना रे, आनंद घन रस रूप। संभव ६ D मूलनायकजी - श्री संभवनाथजी यह मंदिर ५०० वर्ष पूर्व का है। आगे के मंदिर में चन्द्रप्रभुजी मूलनायक थे। उस मंदिर का विशाल विस्तार किया और मूलनायक के रूप में संभवनाथजी को प्रतिष्ठित किया। यह प्रतिमाजी भी प्राचीन है। पू. आ. श्री रामचन्द्र सूरिजी महा. का निवास स्थान है और पू. आ. श्री जिस भगवान की पूजा करते थे, उन शामला पार्श्वनाथजी का मंदिर भी वर्तमान में बिराजमान है। जो दरापूरा गाँव से प्रतिमाजी लाये थे वे प्रतिमा प्राचीन है। ____ शान्तिनाथ मंदिर जहाँ पर है वहाँ पर पूर्व में मू. ना. वासुपूज्य स्वामी थे। १३५ वर्ष पूर्व का है। वर्तमान में उसका जीर्णोद्धार हुआ है। पहले यहाँ पर ५०० घर थे- वर्तमान में ११० घर है। वडोदरा से २० कि.मी. है। कावी, गंधार, अणस्तु, दरापरा तीर्थ समीप में है। जयनिशाना शामला Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२८७ गुजरात विभाग : १५ - वडोदरा जिला - - - - - - - - - - - - ४. दरापरा पथ मूलनायक श्री शान्तिनाथजी, श्री सुमतिनाथजी (दूसरे मंदिर में) भोयरे में श्री अजितनाथजी श्री शान्तिनाथ भगवान की तथा अजितनाथजी भगवान की मूल प्रतिष्ठा संवत १२०० की अवधि में तथा सुमतिनाथजी भगवान की प्रतिष्ठा सं. १८०० की अवधि में करने में आयी। तीन बार जीर्णोद्धार हुआ। अंतिम जीर्णोद्धार प. पू. आ. भ. श्री प्रताप सूरीश्वरजी के पट्टधर शिष्य आचार्य म. श्री धर्म सूरीश्वरजी के उपदेश से सं. २०१६ में करने में आया है श्री शान्तिनाथजी भगवान की प्रतिमा श्री संप्रति राजा के समय की है। ओर श्री अजितनाथजी की प्रतिमा ४१ इंच की रेत, छाण माटी की है। जिसका सं. २०४० में मोती का लेप करवाया है। दोनो जिनालय प्राचीन है। श्री सुमतिनाथजी प्रासाद श्री तारंगाजी के शिल्प के अनुसार है। पू. आ. मेरुप्रभ सूरीश्वरजी म. के सद्उपदेश से हर महीने पूनम के दिन समूह स्नात्र पढवाने में आता है। जिसमें १०० से लेकर १२५ श्रावक-श्राविकाएं लाभ लेती है। उस दिन भाता (अल्पाहार) अथवा भोजन की व्यवस्था रखी जाती है। दोनो मंदिर शिखरबन्द है। गाँव में जैनों की बस्ती २५० से ३०० घर की थी। कालक्रम से गाँव को छोड़कर चले जाने से वर्तमान में श्रावकों के नहीं है। वड़ोदरा की पंचतीर्थी में आने वाले तीर्थ पादरा, दरापरा, कुराल, वणछरा और कावी है। यात्री गण एवं साधु-साध्वीजी महाराज आदि दर्शन हेतु पधारते हैं। भोयरे में श्री अजितनाथजी ५. करजण मूलनायकजी - श्री मुनिसुव्रत स्वामीजी शेठ जिनदास धर्मदास पेढ़ी - करजण पहले घर मंदिर था - धातु की कुंथुनाथजी की प्रतिमाजी थी। वि. सं. १५११ में पू. श्री सेन सू. म. के हस्ते अंजनशलाका होने का लेख है। यहाँ पर दो जिनालय है। बजार के मन्दिर में नेमिनाथ प्रभुजी बिराजमान है। गुम्मटवाला जिनालय भी प्राचीन है। वि. सं. १९९१ वै. सु. १० को जीर्णोद्धारं बाद प्रतिष्ठा हुई है। वर्तमान में मुनिसुव्रत स्वामी बिराजमान है। वह नवीन मंदिर वि. सं. २०११ में बना है। सोसायटी में नया चौमुख मंदिर बना है। जैनों के १७० घर है। अमदाबाद हाईवे पर है। मियांगाम रेल्वे स्टेशन से पास में है। -ELETELEGREEEEEEEEEEEEEEEENA Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ edo १२igami श्रीम जानagad करजण जैन मंदिर मूलनायक श्री नेमिनाथजी DIROIN ६. मियांगाम D1THE BAICORabihani EDICAR 18 R OCAL मियांगाम जैन मंदिर स मूलनायक श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १५ - वडोदरा जिला मूलनायकजी - श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी पू. श्री मनमोहन पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमाजी खंडित होने से | कानमां कानमां कानमा, तारी कीर्ति सुणी में कानमां ॥१॥ संभवनाथ प्रभुजी प्रतिष्ठित किये है। यह मंदिर २५० वर्ष प्राचीन होने की घड़ी घड़ी मेरे दिल थी न वीसरे,चित्त लाम्युं तुझ ध्यान मां, तारी.॥२॥ जानकारी मिलती है। प्राचीन प्रतिमा एक श्वेत, एक बदामी दर्शनीय है। | प्रातिहारज आठ अनोपम, सेवा करे एक तान मां तारी. ॥ ३ ॥ अखंड दीपक चालू है। चार गुम्मटों के साथ शिखरबन्द संभवनाथजी का वाणी अतिशय पांत्रीश राजे, वरसे समकित दान मां तारी. ॥ ४॥ जिनालय सुशोभित हो रहा है। यहाँ शिखरबन्दी तीन मंदिर है। १ पार्श्वनाथ तुम सम देव अवर नहिं दूजो, अवनितल आसमान मां तारी. ॥ ५ ॥ भ., २ शान्तिनाथ भ. एवं ३ संभवनाथ भ. । मंदिर के नीचे के भाग में । देखी देदार परम सुख पायो, मगन भयो तुम ज्ञा मां तारी. ॥ ६॥ प्रतिष्ठित है। पिलर ऊपर मंदिर बना है। वामानंदन पास पंचासर, प्रगट अकल म्हांन मां तारी. ॥ ७ ॥ वर्तमान जैनों के २ घर है। करजण से आ सकते है। मियांगाँव करजण जिन उत्तमपद शुं रंग लाग्यो, चोल मजीठ ध्यान मां तारी.॥८॥ साथ ही बोला जाता है। स्टेशन है। बस मार्ग से भी आ सकते है। ७. बोडेली तीर्थ बोडेली जैन मंदिर मूलनायक श्री महावीर स्वामी Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९०) ___ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ GE मूलनायकजी - श्री महावीर स्वामी जिनभद्र विजयजी का गुरु मंदिर है। जैनेतर जाति में जैन धर्म का प्रचार पेढी - श्री परमार क्षत्रिय जैन धर्म प्रचारक सभा बदलने वाला सुन्दर प्रयत्न हो रहा है। प्रभु की प्रतिमा सौम्य एवं दिव्य है। यहाँ पर आदिवासी लोगों का अत्यन्त व्यापक विस्तार है। अहिंसा धर्म ____ इस परमार क्षत्रिय जाति की वस्ती के ५०० गांव है। बस्ती के पाँच का प्रचार कार्य सुन्दर रीति से श्री परमार क्षत्रिय जैन धर्म प्रचारक सभा द्वारा । लाख तीस हजार लोक आराधक हुए हैं । उपाश्रय, भोजनशाला, हो रहा है। इस परमार क्षत्रिय जाति में से ६० साधु भगवंत एवं ५० पंडित बने धर्मशाला, बोर्डिंग, आश्रम वगैरह है। वडोदरा से ४५ कि.मी. है। डभोई है। धर्म का प्रचार, प्रसार तथा जीवदया, सामाजिक प्रवृत्तियाँ इस सभा द्वारा वड़ोदरा से बस मिलती है। सुन्दर रीति से चल रही है। ___ यहाँ पर महावीर स्वामी का मंदिर है। नीचे भोयरे में पद्मप्रभु उपर पार्श्वनाथजी है। सामने पद्मावती मंदिर एवं परमार क्षत्रियोद्धारक मुनि श्री ८. दर्भावती (डभोइ) तीर्थ आदीश्वरजी जैन मंदिर मूलनायक श्री आदीश्वरजी m श्रीमाली बागा श्री जैन मंदिर Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १५ - वडोदरा जिला प्रगट प्रभावी पार्श्वनाथजी श्रीमाली वागा श्री लोढण पार्श्वनाथजी मूलनायकजी - श्री आदीश्वरजी ऋषभदेव तथा धर्मनाथ भगवान के मंदिर जीर्ण होने पर नींव से जीर्णोद्धार शेठ देवचंद धर्मचंद की पेढ़ी श्रीमाला वागा श्री डभोई पू. आ. श्री जम्बुसूरिजी म. सा. की निश्रा में सं. २००४ माघसुदी ६ के दिन यह जिनालय प्राचीन है। ऊपर के भाग में ऋषभदेव प्रभु । दर्भावती करने में आया। पू. आ. श्री विजय जम्बु सूरिजी म.सा. डभोई के वतनी थे। पार्श्वनाथ । १५०० वर्ष पूर्व की शिल्पकला है। नदी किनारे से धोबी को १७ वीं सदी के महान पुरूष पू. उ. श्री यशोविजयजी म. डभोई में स्वर्गवासी स्वप्न आया - इससे प्रतिमाजी मिली । सप्तफणों से विराजित लेप युक्त प्रभुजी । हुए थे। उनके चरण-उनके अग्निसंस्कार के स्थान पर बनाये है। के दायें पद में सं. १८४५ । धर्मनाथ के बायें पैर में सं. १६७० का लेख है। यहाँ पर दूसरा (लोढण पार्श्वनाथ) शामला पार्श्वनाथ का अलग मंदिर केशरियाजी आदिनाथ भगवान विराजित किये है। भव्य महोत्सव प्रतिष्ठा है। यह प्रतिमाजी छाण-मिट्टी की अत्यन्त प्राचीन है। आखिरी जीर्णोद्धार विधि सं. २००५ में हुई है। साथ में मुनिसुव्रत स्वामी एवं चन्द्रप्रभु तीन वि. सं. १९९० में हुआ है। सागरदत्त नाम के श्रेष्ठी ने इस प्रतिमाजी को छाण जिनालयों का विनिमय हुआ। गुरु ज्ञान मंदिर बनवाया। मिट्टी से बनवाई, वि. सं. १९७१ में कुआ में से बाहर निकाली वहाँ अभी सामने चन्द्र विहार में सं. १८३९ को मूलनायक चन्द्रप्रभु वै. सुदी ६ को । ____ मंदिर मौजूद है। सं. २००७ में प्रतिष्ठित हुए। इस प्राचीन नगरी का किला १३वीं सदी का एक सौ घर है। मंदिर, उपाश्रय, धर्मशालायें है। है। महामंत्री वस्तुपाल लघु बन्धु तेजपाल सेनापति ने १७० देव कुलकिओं डभोई-छोटा उदयपुर जाते समय मध्य में आता है । वड़ोदरा से ३० सहित का भव्य जिनालय बनवाया है। कि.मी. दूर है। ____ बाहर के भाग में विजय दानसूरिजी म. का गुरु मंदिर है। अन्य मंदिरों में ऋषभदेव म., धर्मनाथ म., मुनिसुव्रत स्वामी वगैरह प्राचीन काष्ट के ***** मंदिर थे। * * * * * * * * * * Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९२) આ આદીનાથાય નમ OCTO 000 मूलनायक श्री आदीश्वर दादा सिनोर जैन मंदिर ९. सिनोर Bading ve श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ વારાપૂજય રવાનો मुलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी एवं ओबरे में श्री शान्तिनाथ प्रभुजी मूलनायकजी वासुपूज्य स्वामी यहाँ पर दूसरा सुमतिनाथजी का जिनालय है। भोयरे में शान्तिनाथजी की मूर्ति सम्प्रति महाराजा के समय की है। पद्मावती बाग में मंदिर है। वहाँ पू. आ. सौभाग्य सू. म. अमर विजय म. के. चरण हैं। दोनो लक्ष्मी मंदिरों में पट उत्तम है। समीप में रायसंगपुरा, प्रतापनगर, कारवण, साइली राजपीपला में मंदिर है। (नम्रदातट) पिन- ३९१११५ ' file Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पादरा वडोदरा 13 स्केल H मवाल/-35 कीमी ६ १० १५ २०२५ •देगायकावी आसाटी वणछरा मांसर रोड कोसींदा की ओर करजण की ओर M 1/ल्ला द राजपीपला अ गरूडेश्वर केवडीय कोलोनी नर्मदा बंध गंधार YO खा वागरा .TA Vinनीकोरी. . राजपारडी एकल तीर्थ भरूच झघडीया) र ) च 40 भाडभुत वेजलपुर दहेज डेडीयापाडा - नेत्रंग तलोद की ओर अंकलेश्वर18 गबारा हांसोट 18 त वडी की ओर इलाव उमर पाडा की ओर सुरत की ओर जी ल्ला Page #345 --------------------------------------------------------------------------  Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १६ भरूच जिला क्रम १ 3 ४ y ६ ७ ८ भा त का अ खा राधार आमोद गाँव कावी तीर्थ जंबूसर वणछरा तीर्थ गंधार तीर्थ आमोद अलीपोर तीर्थ कुशल तीर्थ दहेज तीर्थ எஸ் पादस सुरत ओर 1 13 करण की ओर डो पडव भ पेज नं. २९४ २९५ २९६ २९७ २९९ ३०० ३०१ ३०१ त राजवाडी उ यहाँ की आर जी च भरूच जिला क्रम ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ जी ल्ला उमर पाडा की ओर डीपा here गडवा ल्ला 21 कमी ● कोलोनी वेजलपुर नीकोस तीर्थ गाँव समती विहार तीर्थ क्लोद की ओर स्कूल ५ १० १५२०२५ झघडीयाजी तीर्थ अंकलेश्वर राजपीपला शुक्ल तीर्थ पेज नं. ३०२ ३०४ ३०४ ३०५ ३०६ ३०७ ३०८ (२९३ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९४) LIEDOR GAOLOLL भुण गायक श्री. ภา D S मूलनायक श्री आदीश्वरजी (सासका - जैन मंदिर (सास का मंदिर) १. कावी तीर्थ मंदिर ) वान श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ લાયક શ્રી ધર્મનાથ ભગવાન ठ ه - मूलनायक श्री धर्मनाथजी (बहुका मंदिर) સોિ मूलनायकजी श्री आदीश्वर भगवान सर्वजीत प्रासाद (सास का मंदिर) रत्न तिलक प्रासाद (बहु का मंदिर) श्री ऋषभदेव जी महाराज की पेढ़ी, कावी तीर्थ गुजरात के भरूच जिला में आने वाला वि. सं. ८८३ के वर्ष का यह तीर्थ है। कावी का नाम कापी-कापीकानगरी थी। उसके बाद कंकावटी नगर के नाम से प्रख्यात हुआ। इस समय कावी नाम प्रसिद्ध है। वर्षो पूर्व बंदरगाह का व्यापार होने के कारण जैनों की ८०० घर की बस्ती थी। एक समय खंभात में व्यापार के हेतु बसे हुए बड़नगर निवासी (कहा जाता है कि a नागर जाति के थे और आ. श्री हीर सूरिजी म. के उपदेश से जैन बने थे।) भाडीक शेठ का पुत्र बाढुक शेठ इस तीर्थ की यात्रा करने आया। उसने जिन मंदिर बहुत जीर्ण-शीर्ण हुआ देखा इस कारण उन्होंने सं. १६४९ की साल में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। उसमें श्री आदीश्वर भगवान की संप्रति महाराज के समय की मूल प्रतिमा थी। उसी प्रतिमा की प्रतिष्ठा आ. श्री वि. हीर सूरिजी महा. के शिष्य आ. श्री वि. सेन सूरिजी म. सा. के पास Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १६ - भरूच जिला करा कर मंदिर का नाम सर्वजीत प्रासाद रखा। एक समय बटुक शेठ की धर्मपत्नी हीराबाई उनकी पुत्रवधु वीराबाई के साथ यहाँ पर यात्रा के लिये आयी। नवीन मंदिर में दर्शन करते समय वीराबाई के दिमाग में बारसाख (दरवाजे का लकड़ा) लगा जिससे खिन्न होकर उसने कहा - "सासुजी आपने मंदिर तो बहुत ही बढ़िया बनाया है" परन्तु दरवाजा नीचा करने से मंदिर की शोभा में कमी रक्खी है। यह सुनकर सासुजी ने मीठी टकोरचुटकी मारी कि "तुम अपने पिताश्री के यहाँ से धन-द्रव्य मंगाकर दुसरा मंदिर बनाकर दरवाजा ऊँचा कराओं यह सुनकर पुत्रवधु ने पाँच वर्ष में देवविमान सदृश मनोहर बावन जिनालयों वाला मंदिर तैयार कराकर सं. १६५४ वें वर्ष में आ. श्री विजय सेन सूरिजी म. के वरद हस्त से श्री धर्मनाथ भगवान की अंजनशलाका करायी। प्रतिष्ठा कराकरमंदिर कानाम रत्नतिलक प्रासाद रक्खा। इससे सासु-बहु के मंदिर से कावी तीर्थ प्रख्यात है। AARA मंदिर का अभी वर्तमान में जीर्णोद्धार वि. सं. २०३९ में दस लाख के खर्च से हुआ है। अखंड दीपक चालू है। २० लाख के खर्च से नवीन भोजनशाला बनी है। जैन भवन बना है। शेठ श्री जयंतिलाल अमीचंद घाटकोपर वाले बहुत ही भावुक सेवा-भावी एवं दानवीर है। जो इस तीर्थ की व्यवस्था सम्हालते है। भोजनशाला, उपाश्रय, होल, धर्मशाला वि. की सुन्दर व्यवस्था है। वडोदरा से जंबूसर-भरूच की बस मिलती है । भरूच से ट्रेन द्वारा भी आ सकते हैं। पास में वणछरा, पादरा, कुराल, केरवा मासर रोड, खंभात आदि है। खंभात और कावी का दरियाई रास्ता के बीच सिर्फ १० कि.मी. का अंतर है। जैन बहु का मंदिर Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६) Came मूलनायक श्री पद्मप्रभ स्वामी २. जंबूसर मूलनायक जी श्री पद्मप्रभ स्वामी संप्रति महाराजा के समय की यह प्रतिमाजी एवं मंदिर है। नीचे भोंयरे में नेमिनाथ एवं उपर के भाग में आदीश्वरजी की प्रतिमाजी है। वासुपूज्य स्वामी का प्राचीन मंदिर शिखरबन्द है । भरूच - वडोदरा से बस मिलती है। समीप में कावी गन्धार तीर्थ है। ३. बणछरा तीर्थ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ जंबूसर जैन मंदिर जयति शासनम मूलनायकजी चिन्तामणि पार्श्वनाथजी यह प्रतिमाजी अति प्राचीन सुन्दर एवं प्रभावपूर्ण है। यह गाँव प्रथम वच्छ नगर था। जहाँ पर भोजनशाला, धर्मशाला, उपाश्रय, भाताखाता है। बड़ोदरा से पादरा से एवं जंबुसर से आ सकते है। Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (२९७ * गुजरात विभाग : १६ - भरूच जिला 6666666666666 ** * * ** * अहो! अहो! पासजी! मुझ मलियारे, मारा मनना मनोरथ फलिया- अहो. तारी मूरति मोहन गारी रे, सहु संघने लागे प्यारी रे, तमने मोही रह्या सुर नरनारी- अहो.१ अलबेली मूरत प्रभु! तारी रे! तारा मुखड़ा उपर जाऊँ वारी रे, नाग नागणीनी जोड उगारी- अहो.२ धन्य-धन्य देवाधिदेवारे, सुरलोक करे तारी सेवारे, _ अमने आपो शिवपुर मेवा - अहो.३ तमे शिवरमणीना रसियारे, जई मुक्ति पुरी मां वसीयारे, मारा हृदय कमल माहे वसिया - अहो.४ जे कोई पार्श्वतणा गुण गाशेरे, भव-भवनां पातक जाशेरे, तेना समकित निरमल थाशे - अहो.५ प्रभु त्रेवीसभा जिन रायारे, माता वामा देवीना जायारे, अमने दरिशन द्योने दयाला- अहो. ६ हु तो लली लली लागुंछु पायरे, मारा उरमां ते हरख न मायरे, अम माणेक विजय गुण गाय - अहो.७ मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी ४. गंधार तीर्थ मूलनायक - श्री अमीझरा पार्श्वनाथ भगवान ७० ईंच की प्राचीन प्रतिमाजी (श्वेत) अमीझरा पार्श्वनाथ महाराज की पेढ़ी मु. गंधार, वाया-वागरा, जि. भरूच, ३ मंदिर है। पहले १७ मंदिर थे। उस समय जैन धर्म का यहाँ जय जयकार होगा। भरूच से ४५ कि.मी. यह तीर्थ है। गुजरात का दूसरे नंबर का बंदरगाह था। विक्रम की सोलहवी शताब्दी में प. पू. आ. श्री हीर सूरीश्वरजी म. ने ३०० साधु ७०० साध्वियों के साथ तीन चौमासे किये । मुगल सम्राट अकबर के बुलाने पर उनको प्रतिबोध-संबोधन करने हेतु यहाँ से मान पूर्वक गये थे। अंतिम औरंगजेब बादशाह के समय में यहाँ के बंदरगाह का विनाश हुआ। उस समय यहाँ के श्रावको ने विचार कर यहाँ श्री अमीझरा पार्श्वनाथ की ७१ इंच की प्रतिमाजी को भोयरा में रख दी और ऊपर मस्जिद आकार का उस समय मंदिर बनाया। शेष छोटी प्रतिमाये राजपूत राज्यों में भेज दी। समुद्र के किनारे यह गन्धार गाँव ५०० वर्ष प्राचीन है। शान्त एवं रमणीय सुन्दर स्थल है। पू. आ. देव श्रीमद् विजय रामचन्द्रसूरिजी म. की वि. सं. १९६९ में दीक्षा हुई थी। इसके उपरान्त का सु. १५, मा.व.१०, चै.सु.१५, फा.सु. १२ को मंदिर की वर्षगांठ उजवाती है। वर्तमान में मंदिर के १२५ वर्ष हो गये । अन्तिम २०३७ में जीर्णोद्धार हुआ है। पहले यहाँ प्राचीन मंदिर इतिहास में उल्लेख है। उस अनुसार था। वि. सं. १६५८ में पू. आ. श्री हीर सूरिजी म. ने प्रतिष्ठा कराने के उल्लेख है। पास में २४ जिनालय श्री महावीर स्वामी के है। सं. २०२८ में पू. आ. श्री वि. रामचन्द्र सूरिजी म. ने यह प्रतिष्ठा करायी है। उपाश्रय है, धर्मशाला, भोजनशाला की व्यवस्था है। भरूच से २६ कि.मी. वागरागाँव होकर जाना होता है पास में भरूच कावी और दहेज तीर्थ है। *** * * ** * * ********* * *** * **** ००० Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ पत्थरने पारस करनारा, प्यारा पारसनाथ, जंगल मां मंगल करनारा, प्यारा पारसनाथ भववनमा हुं रखड़ी रह्यो छु नर्क निगोदनां दुःखे दह्यो छु दुःखीने अमृत सींचनारा, प्यारा. मोहनागथी मूर्छित थयो छु विवेक शुद्धि भूली गयो छु अज्ञान तिमिर ने हरनारा, प्यारा. अनंत जीवन मारा धूल थयां छे, लाभे कर्मना पुंज रह्या छे कर्म ईंधन ने बालनारा, प्यारा. जीवन नैया मारी डूबी रही है विराट सागर मा हेले चडी छे हे भवसागर थी तारनारा, प्यारा. तारे चरणे हु जीवन धरूं छु समर्पण तनमन वचन करुं छु सुकान सोप्यु जिन जयकारा, प्यारा. तार के डूबाड तारे आधीन छे तुझ पद अमृते मुज मन लीन छे, जपे जिनेन्द्र हे प्रभु प्यारा, मलनायक श्री अमीझरा पार्श्वनाथजी प्यारा. गंधार तीर्थ जैन मंदिर Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १६ - भरूच जिला (२९९ ५. आमोद आमोद श्वे. मू. पंच का मंदिर मंदिर नं. ३ - मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी का शिखर बंद मंदिर है। १९२६ में निर्मित वर्षगाठ पोष वदी - ५ (सरियापोल) प्रदिक्षणा में चौमुख जी है। प्रतिमाओं को सुरक्षित रखने के लिए भोयरे की व्यवस्था है। गाँव के मूलनायक श्री अजितनाथजी मुख्य बाजार में यह प्रथम मंदिर आता है। मंदिर के समीप जैनों के घर है। भरूच - जंबूसर मार्ग उपर भरूच जिले के जैन तीर्थ कावी-गंधार केखाडा दहेज झघडिया एवं भरूच जाने के लिये आमोद जंक्शन है। इसके उपरान्त वडोदरा जला के पादरा तहसील का वणछरा तीर्थ को जाने के लिए (१) श्री अजितनाथ (२) श्री अजितनाथ (३) श्री मुनिसुव्रत स्वामी इस आमोद से ही सीधा रास्ता है। इसके उपरान्त करजण समीप का अणस्तु प्रकार कुल तीन मंदिर है। तीर्थ तथा मियागाम की प्रसिद्ध पांजरा पोल जाने के लिए भी आमोद से ही (१) श्री जैन श्वेताम्बर मंदिर (पंचों का) (मुख्य) (२) श्री आमोद जैन जा सकते है। प्राचीन तीर्थ गंधार जाने के लिये सबसे सीधा रास्ता यहाँ से ही श्वेताम्बर मूर्ति पूजत वांटा मंदिर (३) श्री मुनिसुव्रत स्वामी जैन श्वे. मंदिर दिर | पडता है। पूर्व में लाड श्रीमाली जैनों की छत्रीसी में आमोद की गणना होती मंदिर नं. १ मूलनायक श्री अजितनाथ भगवान - भोयरे में - श्री थी। सौराष्ट तथा अहमदाबाद तरफ से विहार करते पू. साधु-साध्वी भगवन्त भीडभंजन श्री पार्श्वनाथ की प्रभावपूर्ण एवं चमत्कारी भव्य प्रतिमा ऊपर के गंभीरा बोरसद के सीधे मार्ग से आमोद आकर गंधार-भरूच झघडिया होकर मेडे पर श्री आदिनाथ भगवान (वर्षगाठ माघ सुदी १०) बम्बई जा सकते है। यहाँ के धार्मिक संस्कारों के सिंचन का कारण बारमास मंदिर नं. २ -४०० वर्ष प्राचीन मूलनायक श्री अजितनाथजी का नीचे श्रावक-श्राविकायें आवश्यक क्रियायें करती है। और आमोद में से ११ भाई श्री शान्तिनाथ भगवान की संप्रति राजा के समय की प्राचीन प्रतिमा है। पास बहिनों की दीक्षायें भी हुई है। श्री रत्नाकर विजयजी ज्ञान भंडार ५० वर्ष में दो उपाश्रय है। तीन मंजिल वाला यह मंदिर है। प्राचीन है। जिसमें प्राचीन ग्रंथ तथा हसतलिखित प्रतियाँ है। मूलनायक श्री अजितनाथ भगवान के भव रंगमंडप में उत्कीर्ण किये है। साल गिरी- मार्ग शीर्ष सुदी - ११ मंदिर के समग्र विस्तार में पहले जैनों के करीबन ४० घर है। भव्य प्राचीन पद्धति से बनाया गया जैन उपाश्रय है। सम्पूर्ण गर्भगृह कांच का बनाया गया है। मंदिर की जमीन ठाकुर साहब ने प्रदान की थी उसके कार्यवाहक बाहर गाँव के जैन थे। उन्होंने संघ की सहायता से मंदिर बनवाये। SA Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३००) - - / / LLLLLL - - - - - - -- पहले गोरजी का उपाश्रय था। उनके पास प्राचीन हस्तलिखित ज्योतिष आदि की प्रतें थी। उसमें से कुछ हस्तलिखित प्रतें प्राप्त हुई जो यहां के रत्नाकर विजयजी ज्ञान भंडार में है। प्राचीन पुस्तकें तथा प्रतें भी है। ७० घर है। ३०० जैनों की संख्या है। भरूच से ३५ कि.मी. जंबुसर, वडोदरा स्टेट हाईवे नं. ६ तथा नेशनल हाईवे नं. ८ पर से करजण आमोद कोस्टल हाईवे। आमोद का मूल नाम सुगंधपुर था। ठाकुर का गाँव गिना जाता था। काशी में पढ़े हुए विद्वान ब्राह्मण थे । और जैनों का एक मंदिर भी था। बस्ती भी जैनों की बहुत सारी थी। श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ - - -- देशी (मुझे महावीर बिना नहि चैन पडे....) मुझे वीतराग बिना नाहि चैन पडे, नाहि चैन पडे, नाहि चैन पडे - मुझे. जित शत्रु नंदन जग सोहे _सवि काज सरे मुझ तुझ वडे- मुझे. विजया सुत विण अवरने सेवे ते भविप्राणी भव में रखडे- मुझे. अपूर्व वीर्योल्लासे करीने, जीत्या तुमे कर्मतणा झगडेदेव अनेरा में जग में जोया तुझ सम नाहि काई जगमें बड़े - मुझे. कर्पूर सम निर्मल तुझ गुणने गावे अमृत भक्ति वडे। ६. अलीपोर मूलनायक जी - श्री गोडी पार्श्वनाथजी अलीपोर तीर्थ (दक्षिण गुजरात) बीलीमोरा से १५ कि.मी. की दूरी पर और बम्बई-अहमदाबाद हाईवे रोड उपर आता है। जहाँ पर श्री गोडी पार्श्वनाथ भगवान सं. ११४४ में प्रतिष्ठित हुए। स्थायी भाता प्रदान करने की व्यवस्था है। जीर्णोद्धार हुआ है। भोजनशाला है। श्री जयकुमार दुर्लभ भाई शाह अगियारी स्ट्रीट, बीलीमोरा - ३९३६२१ हुँ छु अनाथ, मारो झालजो रे हाथ, विनवू छु प्रभु पारसनाथ ! हुंछु प्रवासी नथी कोईनो संगाथ, विनवु. सगा सम्बन्धी स्नेही ओ सहुं, तोये निराधार, एकलवायो छु अवनिमां, तारो छे आधार जावूछे दूर-दूर देजोरे साथ, विनवू. भडभडती आगथी नागने उगार्यो, नयनो थी वरसावी नेह, संसार तापे हुये बलुंछ उगारो लावीने स्नेह, दीन बंधु छो दीनोना नाथ, विनवू. मुक्तिनगर मां जावं छे, वचमाँ छे सागर मोटो, आगल जऊं त्या पाछो पहुं छु, मारग मलियों खोटो. तारजो रे ओ त्रिभुवनना नाथ, विनवू. प्रेम धर्मना जगाव, तारा शुद्ध चित्तो मा, प्रभु पार्श्वजी वसाव तारा शुद्ध चित्तो मां ॥१॥ थंमण पार्श्व जिनजी प्यारा, छो राग द्वेष थी न्यारा, तारां कर्मने हटाव, जई शिव महेलो मां. ॥२॥ तुं चार गतिमा रूल्यो, जो धर्म भावना भूल्यो, सुन्दर भावना जगाव, तारा शुद्ध चित्तो मां. ॥३॥ जीव पुण्य उदये अही आव्यो वली मिथ्या भाव वमाव्यो, जिनराज धर्म सुहायो, तारा शुद्ध चित्तो मां. ॥ ४॥ रहो नित्य नाम जिन रटता, हटशे हृदयनी जडता, सुख जामशे अनुपम, तारा शुद्ध चित्तो मां ॥५॥ निज चित्त ठाम जो आवे, लब्धि आत्म कमल मां जागे गुण गणो अति अभराशे, तारा शुद्ध चित्तो मा. ॥६॥ - - - - -- - - -- - -- - - - - --- Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १६ - भरूच जिला मूलनायक श्री श्रेयांसनाथजी SAMOA SEO ७. कुल तीर्थ मूलनायक जी श्री श्रेयांसनाथजी भरूच जिले में आमोद के पास कुराल तीर्थ आता है। मूलनायक श्री श्रेयांसनाथ प्रभु की भव्य प्रतिमा है। प. पू. आ. देव श्री रामचन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ने संसारी अवस्था में इस तीर्थ में रहकर १२ मास तक जिन पूजा भक्ति की थी। उनके एवं प. पू. आ. देव श्री प्रभाकर सूरीश्वरजी महाराज के सदुपदेश से इस तीर्थ का जीणोद्धार हुआ है। मंदिर अत्यन्त रमणीय है छोटी धर्मशाला बनवानी है। दो सौ वर्ष का प्राचीन मंदिर है। जीर्णोद्धार होने के पश्चात पुनः प्रतिष्ठा प. पू. आ. श्री विजय विक्रम सूरीश्वरजी म. तथा पू. आ. श्री प्रभाकर सूरीश्वरजी की निश्रा में हुई थी। इस तीर्थ की व्यवस्था दिनेश भाई शाह नगीन दास चूडगर महात्मा गांधी रोड जैन मंदिर के पास वडोदरा पास में है। , तुमे बहु मैत्री रे साहिबा, मारे तो मन एक तुम बिना बीजो नवि गमे, ओ मुझ म्होटी रे टेक. श्री श्रेयांस कृपा करो। मनराखो तुमे सवि तणां पण कीहां एक मली जाओ, ललचाओ लख लोक ने साथी सहज न थाओ, श्री. ॥ २ ॥ राग भरे जन मत रहो, पण तिहुँ-काल विराग, चित्त तमारा रे समुद्र नो, कोई न पामे रे ताग श्री. ॥ ३ ॥ एवा शुं चित्त मेलव्युं, केलव्युं पहेलां न कांई सेवक निपट अबूज छे, निवशो तुमे सांई श्री. ॥४॥ निरागी शुं किम मिले, पण मिलवानो एकांत, वाचक यश कहे मुझ मिल्यो भक्ते कामण कन्त, श्री. ॥५ ॥ मूलनायक श्री महावीर स्वामी यहाँ की प्रतिमाजी बहुत प्राचीन है। बहुत सारी प्रतिमायें जमीन में से निकली है । वि. सं. १६६४ में पू. आ. श्री हीर सूरिजी महा. सा. ने प्रतिष्ठा की है। आज भी बहुत सी प्रतिमायें जमीन में से दबी हुई पड़ी है। कहा जाता है कि अभी ही पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा निकली है। मूलनायकजी ८. दहेज तीर्थ Shres को मूल स्थान पर रखकर जीर्णोद्धार कराकर वि. सं. २०२५ में पुनः प्रतिष्ठा पू. आ. श्री धर्मसूरिजी म. सा. के द्वारा हुई है। धर्मशाला, उपाश्रय है। भरूच से ४५ कि.मी. दूर है। बसें मिलती हैं। कहा जाता है कि घोषा गांव में यदि कुत्ता भसे तो दहेज सुनाई देता है। यानी समुद्र मार्ग से दहेज घोघा से समीप होता है। (३०१ Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ दहेज तीर्थ जैन मंदिर मूलनायक श्री आदीश्वर ९. समली विहार - अश्वावबोध तीर्थ - भस्च । श्री मुनिसुव्रत स्वामी (श्रीमाली पोण भरूच) वही मंदिर आज जुमा मस्जिद के स्वरूप में नर्मदा नदी किनारे खड़ा है। (१) भारत की प्राचीन नगरी, गुजरात का भव्य बंदरगाह था। अत्यन्त ऐसा कहा जाता है। इसमें आबू देलवाडा की नक्काशी देखने को मिलती प्राचीन मंदिर विद्यमान है। जैन शास्त्रों के अनुसार श्री मुनिसुव्रत स्वामी ने है। अनेक साधु महात्मा जैनाचार्य यहाँ प्रायश्चित्त लेने पधारते। ऐसा कहा अश्व को प्रतिबोधित किया था। वह देव बना और अपने अगले जन्म के जाता है। प्रायः ५०० वर्ष पूर्व खिलजी के समय में हमले हुए वही उन्होंने उपकारी मुनिसुव्रत स्वामी का मंदिर बनाया था। इससे अश्वाबोध तीर्थ प्रतिमाओं को श्रीमाली पोल में लाकर मंदिर बनाया। पहले प्रतिमाओं को स्थापित हुआ। अपने मकान में रखे । यहाँ पर गहरे कोठार में सात मंदिर थे उनको इकट्ठा (२) समली - विहार : सिंहल (लंका) के राजा की कुमारी सुदर्शना करके तीर्थोद्धार का कार्य पू. आ. श्री विक्रमसूरिजी म. के उपदेश से हुआ अगले भव में समली (पक्षी) थी। शिकारी के बाण से घायल की गयी साधु-, है। श्रीमाली पोल के इस मंदिर में नीचे के भाग में भक्तामर मंदिर सुन्दर बना भगवन्तों से "नमो अरिहंताणं" सुनते वह समाधि से मृत्यु को प्राप्त हुई और है। मूलनायक आदीश्वर भगवान के रंग मंडप में आजु-बाजु पू. लब्धि सिंहल द्वीप की राजकुमारी बनी। जैन सेठ छींक आने पर “नमो सूरिजी म. तथा भक्तामक स्तोत्र के रचयिता श्री मानतुंग सूरिजी की बन्दी अरिहंताणं बोला- उसको सुनकर जाति स्मरण हआ- उसने लंका से अवस्था की खडी प्रतिमाजी वगैरह है। भरूच आकर समली विहार मंदिर बनाकर मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिष्ठा धर्मशाला, भोजनशाला है। अहमदाबाद-बम्बई रेल्वे तथा हाईवे मार्ग करायी। इस तीर्थ के कई जीर्णोद्धार हुए है। अन्तिम उदायन मंत्री के पुत्र पर जंक्शन है। गंधार ४५ कि.मी., कावी ७५ कि.मी., जगडिया २० बाहड मंत्री ने कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य जी के पास प्रतिष्ठा कि.मी. है। करायी। Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १६ - भरूच जिला (३०३ मुनि सुव्रत मया कीजे रे, मन मां आणि महिर, महिर विहूणा मानवी रे, कठिण जणाये कहीर जिनेश्वर तुं जग नायक देव, तुज जगहित करवा टेव, बीजा जुओ करता सेव, जिनेश्वर तुं जग नायक देव जि . ।१। अरहट्ट क्षेत्रनी भूमिकारे, सिंचे कृतारथ होय, धाराधर सघली धरा रे उद्धरवा सज्ज जोय जि.।२। ते माटे अश्व उपरे रे, आणि मन माँ महिर, आपे आव्या आफणी रे, बोधवा भरूअच शहेर जि. ३ । अण प्रारथता उद्धर्या रे, आपे करी य उपाय, प्रारथता रहे विलवता रे, ओ कुण कही ओ न्याय जि. ४ | सम्बन्ध पण तुझ मुझ विचेरे, स्वामी सेवक भाव, मान कहे हवे महेरनोरे, न रह्यो अजर प्रस्ताव जि. ५। मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी भरूच जैन मंदिर Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 影剧影剧影剧影剧影剧影剧影剧影图學影剧全感 90.AQ वेजलपुर तीर्थ जैन मंदिर ઋષભદલ સ્વામિ કવિઓ - मूलनायक - आदीश्वरजी भरूच के ही विभाग रूप इस वेजलपुर में श्री आदीश्वरजी का भव्य मंदिर, उपाश्रय वगैरह है। यह यात्रा स्थल है। मूलनायक श्री आदीश्वरजी 設逾逾逾逾前前前前前前逾逾逾前JJJJJJJJJJJJ設 過嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛來嘛 ११. नीकोरा तीर्थ नीकोरा तीर्थ जैन मंदिर શ્રી આદેશગવાન " मूलनायक श्री आदीश्वरजी 影劇圈圈影剧剧影剧/剧影剧影影感 Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १६ भरूच जिला E0% (३०५ 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂敏敏敏樂樂樂樂医 मूलनायकजी श्री आदीश्वर भगवान मुख्य मंदिर नदी के किनारे पर था, वह डूब जाने से प्रतिमाजी और छत खिसकाकर ले आये । प्रतिमाजी मूल थी उसकी प्रतिष्ठा सं. २०३० में की तथा २०२४ में नूतन सुंदर मंदिर बनवाया। भरूच से यहाँ आ सकते है। पेढी मूलनायकजी श्री आदीश्वर भगवान १२. झघडीयाजी तीर्थ श्री रिखव देव महाराज की ट्रस्ट पेढ़ी दूसरा पुंडरीक स्वामी का मंदिर। २७ इंच के सफेद आरस में प्रतिमा जी उत्कीर्ण की है। श्री दक्षिण गुजरात में नर्मदा किनारे आया हुआ श्री जगडीयाजी तीर्थ सम्पूर्ण भारत में सुप्रसिद्ध है। प्रतिमायें मिली उस समय यह गाँव राजपीपला स्टेट में था। सात वर्ष तक महाराजा ने प्रतिमाओं की पूजा की। संघ के विनती करने पर राजा ने प्रतिमाओं को सोपा और भरूच जगडीया संघ ने सुन्दर शिखरबन्द मंदिर बनाकर सं. १९३९ वै. सु. ४ को जीर्णोद्धार करके पुनः प्रतिष्ठित किये। प्रतिमाये संप्रति महाराजा ने भरवाई है। ई. सं. १९४४ का भी लेख है। दूसरा महत्व यह भी है कि वि. सं. १९२१ में गाँव के खेत में से थोड़ी प्रतिमायें मिली। जब तक भरूच वड़ोदरा के श्रावक वहाँ के राजा के पास प्रतिमाजी लेने गये तब राजा ने कहा कि मैं मंदिर बनवाकर इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराऊंगा। क्योंकि यहाँ पर एक भी श्रावक नहीं है। यदि तुम श्रावक लोग यहाँ आकर रहो तो मैं तुम लोगों के सुपुर्द करूँगा। यहाँ ३० वर्ष राजा ने व्यवस्था करके श्रावकों को मंदिर सुपुर्द किया। धर्मशाला, भोजनशाला, उपाश्रय है। अंकलेश्वर, सूरत, भरूच, अहमदाबाद से बसों की तथा रेल के मार्ग से भी आ सकते है। निकोरा, भरूच व शुक्ल तीर्थ समीप में है। ***** 337 PaiNOJ 不來來來來來來來來來來來來來必 झघडीयाजी तीर्थ जैन मंदिर 樂樂樂樂&&&&&樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂魚 Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ शेजूंजा गढ ना वासी रे, मुजरो मानजो रे सेवकनी सुणी वातोरे, दिल मां धारजो। मैं दीठो तुझ देदार, आज मने उपज्यो हर्ष अपार साहिबानी सेवारे, भव दुःख भांज शेरे॥१॥ अरज अमारी रे, दिम माँ धारजो रे, चोरासी लाख फेरारे, दूर निवार जोरे। मने दुर्गति पडतो राख, दरिशण वहेलेरु रे दाख। साहिबानी सेवारे, भव दुःख भांजशे रे ।।२।। दोलत सवाई रे - सोरठ देशनी रे. बलिहारी हुँ जाऊं रे प्रभु तारा वेषनी रे, तारुं रूडं दीर्छ रूप, मोह्या सुरनर वृंद ने भूप, साहिबानी सेवा रे. भव दुःख भांजशेरे ।।३।। तीरथ न कोई रे शत्रुजय सारिखुरे, प्रवचन पेखी रे कींधु में पारखं रे। ऋषभने जोई जोइ हरखे जेह त्रिभुवन लीला पामे तेह साहिबानी सेवा रे - भव दुःख भांजशेरे ॥४॥ भवोभव मांगुरे, प्रभु तारी सेवनारे, भावठ न भांगे रे - जगमां ते विना रे प्रभु मारा पूरो मनना क्रोड, अम कहे उदयरत्न कर जोड, साहिबानी सेवा रे- भव दु:ख भांजशेरे।।५।। olaTOS: RKAदि मूलनायक श्री आदीश्वरजी १३. अंकलेश्वर A CARERAKES B etternitate on मूलनायक श्री शान्तिनाथजी अंकलेश्वर जैन मंदिर a Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग १६ भरुव जिला : - ES SEEN DALANS SUPER STA K FY पाचस्यापरी किन्द्रिय मूलनायकजी श्री शान्तिनाथजी यहाँ पहले प्राचीन मंदिर था हुई और शिखर बंद मंदिर बना है। इसके बाद १९९१ में विस्तार कर प्रतिष्ठा अन्तिम जीर्णोद्धार कराके वि. सं. २०११ माघ सुदी १० को नवीन प्रतिष्ठा करायी है। यहां पर प्राचीन पट है। जी आइडीसी में मंदिर है। और यहां पास में सं. २०५२ में नया मंदिर भव्य बना है। भरूच - सूरत के मध्य रेल्वे स्टेशन तथा हाईवे पर है। दीन्द्रिय वि क सेन्ट्रि NK तिच जीन्द्रिय मूलनायक श्री सुमतिनाथजी दिव जलचर १४. राजपीपला चे forg सेयर राजपीपला जैन मंदिर मूलनायकजी - श्रीसुमतिनाथ भगवान प्राचीन प्रतिमायें खंभात तथा छाणी से लायी गयी है। यहाँ जीर्णोद्धा के बाद प्रतिष्ठा वि. सं. २०१६ माघ सुदी ११ के दिन हुई है। भरूच तथा अंकलेश्वर से आ सकते है। समीप में झघडिया जी तीर्थ है। ANCE CAN BAIN CALAS SYRU 鏡 (३०७ FDF 2014 Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ Co06666666 १५. शुक्ल तीर्थ A શ્રી ડી. / / / કેeગવાત मूलनायक श्री आदीश्वरजी शुक्ल तीर्थ जैन मंदिर मूलनायकजी- श्रीआदीश्वरजी नर्मदा नदी के किनारे बसा हुआ गाँव जिसका पूर्व नाम भृगुनगरी था। वह आज शुक्ल तीर्थ कहा जाता है। यहाँ घर मंदिर था। वहाँ वीर सं. २४१२ में शिखरबंद मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करी है। पांच धातु की प्रतिमाये बहुत प्राचीन है। समीप में झघडीया तीर्थ है। नेत्रंग, राजपीपला वि. मंदिर है। भरूच से १२ कि.मी. दूर है। प्रथम जिनेश्वर प्रणमीये, जास सुगंधीरे काय, कल्पवृक्ष परे तास इन्द्राणी नयन जे, भंग परे लपटाय, रोग उरग तुझ नवि नडे, अमृत जे आस्वाद, तेह थी प्रतिहत तेह मांनु कोई नवि करे, जगमा तुमशुंरे वाद विगर धोई तुझ निरमली, काया कंचन वान, नहि प्रस्वेद लगार तारे तुं तेहने, जे धरे ताहरूं ध्यान, राग गयो तुझ मन थकी, तेहमां चित्र न कोय, रूधिर आमिष थी राग गयो तुझ जन्म थी, दूध सहोदर होय, श्वासोश्वास कमल समो, तुझ लोकोत्तर वाद, देखे न आहार निहार चरम चक्षु घणी अहवा तुझ अवदात चार अतिशय मूल थी, ओगणीश देवना कीध कर्म खप्याथी अग्यार चोत्रीश एम अतिशया समवायांगे प्रसिद्ध जिन उत्तम गुण गावतां, गुण आवे निज अंग पद्म विजय कहे अह समय प्रभु पाल जो, जेम थाऊं अक्षय अभंग १० Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्केल कीमी ०५ १० १५ २०२५ अंकलेश्वर भरू ता वालीया अंग की ओर सागबारा की ओर - हांसोटकीओर Als u 14 - पी.मांगरोल / काम /15 डिकेश्वर ओलपाड .कामरेज 409 महाराष्ट्र राज्य मांडवी उकाइ 1/ अ रांदेर 13 सोनगढ खडण की.126.. a बारडाला 16 पलसाणा। वालोड नवसारी) चीखली की ओर - डांग जील्ला वासदा की ओर वलसाड जील्ला Page #363 --------------------------------------------------------------------------  Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १७ - सुरत जिला (३०९ ZOOM OPE हा चन ध्वज कलश SSEX M मालाय लक्षमी वृषभ स्केल कोमी ० ५ १० १५ २०२५ MALAAN 03COM भरूच जील्ला IPअंकलेश्वर ग की ओर सागवाराकोर हासोदकोओर मिसन 11 स त र मोडवी AAE. h 13 पलसाणा चोखली की ओर वलसाड जील्ला. खासदा की ओर डांग जील्ला सुरत जिला क्रम गाँव रांदेर तीर्थ सुरत पेज नं. ३१० ३१० Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१०) मूलनायक श्री जीरावला पार्श्वनाथजी १. रांदेर तीर्थ मूलनायकजी श्री गोडीजी पार्श्वनाथ भगवान प्राचीन मंदिर का वर्तमान में सम्पूर्ण जीर्णोद्धार हुआ है। मंदिर ८०० वर्ष प्राचीन है । प्रतिष्ठा बाकी है। बहुत ही प्राचीन प्रतिमायें हैं। सुरत से ब मिलती है। २. सुरत मूलनायकजी आदीश्वर भगवान गोपीपुरा इस विस्तार में दूसरे १० मंदिर है। मूलनायक आदीश्वर दादा की बहुत प्राचीन प्रतिमाजी है। मंदिर के ऊपर के भाग में शान्तिनाथ भगवान है। सामने श्यामवर्ण पार्श्वनाथ जी तथा बाहर के गोखले में प्राचीन प्रतिमा है। जीर्णोद्धार १०० वर्ष पूर्व हुआ। वर्तमान में थोड़ा सुधारा हुआ है और मंदिर की शोभा में वृद्धि हुई है। श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ 'रादेर तीर्थ जैन मंदिर (२) श्री वासुपूज्य स्वामी ( संगराम पुरा सुरत) तापी नदी के किनारे बसे सुरत शहर में इसके सिवाय दूसरे बहुत मंदिर है। उपाश्रय बहुत है। वड़ोदरा, भरूच, नवसारी स्थानों से एस. टी. बसें मिलती है। बम्बई रेल मार्ग पर आया है। बड़ा शहर है। धर्म की नगरी है। Q Q Q Q Q Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १७ - सरत जिला (399 TIONED मूलनायक श्री आदीश्वरजी mmH आदीश्वरजी जैन मंदिर संग्रामपुरा जैन मंदिर दादा आदीश्वरजी, दूर थी आव्यो, दादा दरिशन दीयो, कोई आवे हाथी घोडे, कोई आवे चले पलाणे, कोई आवे पग पाले, दादा ने दरबार, हाँ-हाँ दादा ने दरबार, दादा आदीश्वरजी, दूरथी आव्यो, दादा दरिशन - दीयो .....१ शेठ आवे हाथी घोड़े, राजा आवे चले पलाणे, हुँ आQ पगपाले, दादाने दरबार, हाँ-हाँ दादाने दरबार.....दादा आदीश्वरजी....२ कोई मूके सोना रूपा, कोई मूके महोर, कोई मूके चपटी चोखा, दादा ने दरबार हाँ-हाँ दादाने दरबार, दादा आदीश्वरजी .....३ शेठ मूके सोना रूपा, राजा मूके महोर। हुँ मूकुं चपटी चोखा, दादा ने दरबार हाँ-हाँ दादाने दरबार, दादा आदीश्वरजी .....४ कोई मांगे कंचन काया, कोई मांगे आँख, - कोई मांगे चरणनी सेवा, दादाने दरबार, हाँ-हाँ दादाने दरबार, दादा आदीश्वरजी.....५ पांगलो मांगे कंचन काया, आंधलो मांगे आंख, हु मांगु चरणनी सेवा, दादाने दरबार, हाँ-हाँ दादा ने दरबार, दादा आदीश्वरजी .....६ हीर विजय गुरू हीरलो ने वीर विजय गुण गाय, शत्रुजयना दर्शन करतां, आनंद अपार हाँ-हाँ आनंद अपार, दादा आदीश्वरजी, _दूर थी आव्यो; दादा दरिशन दीयो IRDO AA R Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२) व त्र सुरत १०८ तीर्थ मूलनायक श्री सुविधिनाथजी ॐ अहं महावीर महावीर, प्रभु महावीर गुण गावो रे वीर प्रभु नुं स्मरण करीने, भव सागर तरी जावो रे रोमे रोमे महावीर महावीर नित्य नित्य भजीये भावे रे ; श्वासे श्वासे महावीर भजिये, तो महावीर गुण आवो रे, हरतां फरतां महावीर महावीर, महावीर ध्यान न छोडो रे, उठतां-बेसतां खातां पीतां, महावीर थी मन जोड़ों रे, वीर प्रभुनु ध्यान ज धरतां, आत्म ज्योति जागेरे, आभव ने परभवना सखे, अंतर बेरी भागेरे, वीर प्रभु शरण सांच, बीजे क्यांई न राचोरे, गुरुजी अक ज राह बतावे, महावीर मारण साचोरे, ॐ अर्हं महावीर महावीर प्रभु महावीर गुण गावोरे ॐ आई १ ॐ अहं २ ॐ अर्ह ३ ॐ अर्ह ४ ॐ अर्ह ५ सुरत-आजम मंदिर मूलनायक श्री महावीर स्वामी जानना ओ दीवडा ने श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ - ༥ནས་ཕསསན་སོ वीरे झगमग राख्या रे, त्रण लोकना नाथे सौना, तिमिर टाली नांख्या रे, ज्ञानना....१ डगले पगले रंग राग मां, भान भूली सौ महाले, द्वेष क्लेष ने वेर झेर मां दिव्य जीवन ने गाले रे, ज्ञानना. २ स्वप्न सरीखी झूठी माया, रंग पतंग जिम काया माया, मोह मदिरा पान करावी. करमे नाच नचाया रे ; ज्ञानना... ३ माया ममता दूर तजे ते, चोरासी नव रूले समता मांही रमता ते तो परमातम पद झुले रे, ज्ञानना....४ काण अनंत हुं धमीयो तोदे, आशा न पुरी थई, सुखड़ा ने दुःखडानी वातो. जेवी तेवी रही है, ज्ञानना....५ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरत की ओर सुरत की ओर बारडोली सुरत जील्ला स्केल कीमी । द १० १५ २०२८ कालीयावाली नवसारी वीजल AA -उनाई की ओर डांग जील्ला तपोवन वधइ की ओर १ बीलीमाराम चीखली व ल सा ड/ वास 1916. पीठा/26 वलसाड, Sna वांकल धरमपुर 13. /26 ____ उदवाड़ा ग बगवाडा अंभेटी दमण CDA पनि 4 वापी अच्छारी 00 फणसा उमरगांव INS सेलवास . पेंट नासीक की ओर दादरा m मुंबई की ओर महाराष्ट्र राज्य मुंबइ की ओर Page #369 --------------------------------------------------------------------------  Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १८ - वलसाड जिला क्रम १ २ ३ ४ ५ ६ ७ सुरत की ओर अ वलसाड उदवाड़ा बगवाड़ा र ब सा सुरत की ओर तपोवन नवसारी वीजल f मुंबई की ओर वलसाड़ उदवाड़ा ग बगवाडा फणसा उमरगांव रोड़ गाँव नवसारी मधुमती जलाल पोर तपोवन धारामिति बीलीमोरा बोलामा 26 E कालीयावाली वापी अच्छा बारडोली चीखली पीठा. 26 दादरा शि वलसाड वांकल सेलवास महाराष्ट्र राज्य सुरत जील्ला धरमपुर 13 अंभेटी उनाइ की ओर 35 वलसाड जिला पेज नं. ३१४ ३१५ ३१६ ३१७ ३१७ ३१८ ३१९ क्रम ८ वासदा ९ १० ११ १२ १३ १४ 14 डांग जील्ला धड़ की ओर नासीक की ओर गाँव वापी स्केल कमी ०५१० १५ २०१५ दमण सेलवास अच्छारी दादरा किलापारडी टुकवाड़ा पेज नं. ३१९ ૩૨૦ ३२१ ३२२ ૩૨૨ ३२४ ३२४ (३१३ Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १. नवसारी - मधुमती मूलनायक - श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी इतिहास - ८०० वर्ष प्राचीन मंदिर है। यह मंदिर वस्तुपाल-तेजपाल के समय का है। जीर्णोद्धार यहाँ की पेढ़ी की तरफ से मूलनायकजी को यथास्थान रखकर बाकी के देहरीओं की प्रतिष्ठा वि. सं. १९८८ माघ सुदी ६ के दिन की है। गुजरात के महामंत्री श्री वस्तुपाल, तेजपाल ने इस नगर में ५२ जिनालयों वाला प्रासाद बनवाया था। आज यह मंदिर विद्यमान नहीं है। परन्तु पार्श्वनाथ प्रभु की अद्भुत प्रतिमाये उस समय की है। महावीर नगर और बोर्डिंग में अच्छे मंदिर बने हैं। व्यवस्था- जैनों के २००० घर, भोजनशाला, धर्मशाला, उपाश्रय हैं। बम्बई रेल्वे मार्ग तथा नवसारी बस के रास्ते जुड़ा हुआ। सुरत से अहमदाबाद बसे मिलती है। ΣΚ Σ. मधुमती - मूलनायक श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथजी ROPEReleasesKase मधुमतीजैन मंदिर Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १८ - वलसाड जिला (३१५ २. जलालपोर YAD जलालपुर जैन मंदिर मूलनायक श्री शान्तिनाथजी मूलनायकजी - श्री शान्तिनाथजी इतिहास - प्राचीन प्रतिमायें है। १०० वर्ष २०५२ में हुए हैं। यह प्राचीन निर्माण कार्य से ज्ञात हुआ है। आ. श्री कमल सूरिजी महाराज इस स्थान से स्वर्गवासी हुए, जिससे उनकी गुरु मूर्ति भी यहाँ पर है। * * * कर्या घणां में पाप जीवन मा ओक ओक थी भारे, ____ अश्रु टपकी पडे आंखथी याद करुं छु ज्यारे, थाशे शुं मुझ जईश प्रभु क्या भवसायर छे भारे, पश्चातापे बली रा छे आ अंतर त्यारे... अहमने ममनी मथामण मां जीवन आखं खोयु पण आ स्वार्थी जगमां स्वामी मारुं कोई न थयु, तलसी रह्यों छु रात दिन मेलववा जीवन साथी, पण तुज विना क्याये न मलीयो मोटो जीवन साथी पू. आ. श्री विजयकमल सू. म. शुरु मूर्ति Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६) 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 ३. तपोवन धारागिरी 19010001000900100 Thre wwww मूलनायक श्री शान्तिनाथजी - श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग - १ 樂樂麻 मूलनायकजी - श्री शान्तिनाथजी इतिहास - यहाँ शान्तिनाथ भगवान का सुंदर मंदिर है। भोयरे में शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु विराजमान है। अंजन शलाका प्रतिष्ठा पू. आ. श्री भुवन भानु सूरिजी म. के वरद हाथों से अत्यन्त उल्लास पूर्वक वि. सं. २०४३ में हुई । २००० आदमी बैठ सके इतना विशाल रंग मंडप है। पू. पं. श्री चन्द्रशेखर विजयजी महाराज की प्रेरणा से विद्यार्थियों को धार्मिक शिक्षण-संस्कार मिल सकें इस आशय से उनके रहने वगैरह की सारी व्यवस्था के आयोजन रूप तपोवन है। व्यवस्था - नवसारी से ५ कि.मी. । धर्मशाला, भोजनशाला की सुन्दर व्यवस्था है। रेल्वे बम्बई-अहमदाबाद मार्ग पर गाँव है। तपोवन रोड से १ कि.मी. है। तपोवन जैन मंदिर **** 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 ※乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘國泰奧良乘桌與桌來來 Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १८ - वलसाड जिला (३१७ TD. ४. बीलीमोरा मूलनायक श्री शान्तिनाथजी बीलीमोरा जैन मंदिर मूलनायक - श्री शान्तिनाथजी वर्तमान चौवीसी में वीसवें मुनिसुव्रत स्वामी के शासन में सिद्धचक्र वी आराधक श्रीपाल मह राज यहाँ पर पधारे थे- ऐसी ऐतिहासिक जानकारी मिलती होने से अत्यन्त प्राचीन बब्बर कोट के नाम से विख्यात था। वर्तमान मूलनायक श्री शान्तिनाथ भगवान की वि.सं. १८९९ फा. सु. को प्रतिष्ठा हुई । शान्तिनाथ प्रभु की प्रतिमा संप्रति महाराजा ने भराई है। जीर्णोद्धार के पश्चात सन् १९५४ में प्रतिष्ठा हुई है। एक सौ पच्चीसजन घर है। नवसारी, सुरत से बसे मिलती है। रेल्वे मार्ग भी है। ५. वलसाड मूलनायकजी - श्री महावीर स्वामी भगवन्त २०० वर्ष प्राचीन यह मंदिर है। प्राचीन प्रतिमायें बाहर से लायी गयी है। महावीर सोसायटी में महावीर स्वामी का मंदिर है। बम्बई हाइवे पर रेल्वे स्टेशन है। Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८) 樂樂樂樂樂敏敏敏樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂麻 ------------->>>>>>>>>>>>>> oil while uniton मूलनायक श्री महावीर स्वामी मूलनायकजी - श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी - श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ६. उदवाडा वलसाड जैन मंदिर उदवाडा श्री जैन मंदिर मूलनायकजी- श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी श्री केशरीचंद मोतीचंद ओसवाल ने अपनी पुत्री को दर्शन समीप में होवे इस कारण यहाँ पर मंदिर बनाकर प्रदान किया है। वापी पंच तीर्थ मे यह मंदिर गिना जाता है। दरिया से यह समीप में है। वर्तमान में प्राचीन धर्मशाला है। १६ कमरों की सुन्दर धर्मशाला, भोजनशाला बनी है। 選乘乘來來來來來來來來 ·乘來來來來來來來來來來來來來送 बम्बई-अहमदाबाद हाईवे पर स्टेशन है। 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂麻 Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग १८ वलसाड जिला DDDDDDDDDD00 ७. बगवाडा मूलनायक श्री अजितनाथजी मूलनायकजी - श्री अजितनाथजी यहाँ पर पहले घर मंदिर था। उसके बाद शिखरबन्द मंदिर बना । और उसकी प्रतिष्ठा वि. सं. १४६८ में हुई। संप्रति राजा के समय की चमत्कार युक्त प्रतिमा है। प्राचीन मंदिर की व्यवस्था दमण से होती थी उसके बाद लगभग २०० वर्ष पहले बगवाडा जैन संघ के भाई राजस्थान में से आये हुए उनको व्यवस्था सोंपी। जीर्णोद्धार वि. सं. १९६८ जेठ सुदी में हुआ है। यहाँ पर पेशवा के समय का किला है। जो मंदिर के पीछे है। अभी डेढ़ एकड़ जमीन संघ को मिली है। जिससे धार्मिक प्रवृत्तियों का विकास होगा। सुन्दर आलीशान धर्मशाला है। भोजनशाला एवं उपाश्रय है। बगवाडा- बम्बई वापी के पहले का रेल्वे स्टेशन है। हाइवे पर है। लोकल ट्रेने यहाँ से छूटती है। वापी से ६ कि.मी. व उदवाड़ा से ३ कि. मी. है। बगवाडा जैन मंदिर ८. वापी मूलनायकजी श्री अजितनाथजी इस मंदिर की प्रतिष्ठा विधि वि. सं. १९९१ फा. सुदी २ के दिन करवाने आयी है। गाँव में चिन्तामणि पार्श्वनाथ का प्राचीन मंदिर है। सोसायटी में अजितनगर में शिखरबन्द जैन मंदिर है। जी.आई.डी. सी. में भी बड़ा मंदिर श्रीपाल नगर मुंबई द्वारा बना है। दूसरा घर मंदिर भी है। ३५०० घर है। उपाश्रय, धर्मशाला है। अहमदाबाद- बम्बई रेल्वे तथा हाईवे मार्ग पर आता है। “अक्षय तृतीया” DDDDDDDDDDDD (३१९ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२०) नय६ DDDDD मूलनायक श्री अजितनाथजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी ९. दमण !!!! श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-9 ここ! अजितनाथजी जैन मंदिर दमण जैन मंदिर ※ここ Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १८ - वलसाड जिला मूलनायकजी- श्री आदीश्वरजी यह बहुत ही प्राचीन तीर्थ तथा प्राचीन प्रतिमाजी है। नवीन रूप में जीर्णोद्धार हुआ है। अंग्रेजों का संस्थान था। वर्तमान में यह भारत सरकार का है। छोटाबड़ा दमण इन दो भागों में बसा है। वापी होकर जाते है। वापी से ११ कि.मी. है। दस घर, उपाश्रय है। धर्मशाला है। १०. सेलवास MU LPUMEN मूलनायक श्री आदीश्वरजी सेलवास जैन मंदिर मूलनायक श्री आदीश्वरजी यह विशाल सुन्दर शिखरबन्द जिनालय है। पू. आ. श्री विजय रविचन्द्र सूरिजी म. की निश्रा में प्रतिष्ठा हुई है। यह केन्द्रशासित प्रदेश दादरा-नगर हवेली का मुख्य शहर है घर ६०० है। विशाल धर्मशाला, भोजनशाला है। वापी से नरोली होकर यहाँ आ सकते है। Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२) ૨,સંઘમહેર જ્ઞાન) (GA નકલી એ દેવ Patole प्रति vajah ११. अच्छारी મૂળનાય ક શ્રી ાસ પ થવામીજ मूलनायकजी श्री वासुपूज्य - स्वामी मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी गाँव में १०० वर्ष पहले का सुविधिनाथजी का घर मंदिर है। जैनों के १५ घर है। वापी से यहाँ पर आ सकते है। जीर्णोद्धार चलता है। १२. दादरा श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-9 अच्छारी जैन मंदिर मूलनायकजी श्री शीतलनाथ भगवान यह प्राचीन मंदिर है। इस नूतन जिनालय की प्रतिष्ठा वि. सं. २०२८ को पू. आ. श्री विजय रामचन्द्र सूरिजी म.सा. के वरद हाथों से हुई। दमण निवासी धर्मप्रेमी शेठ श्री सोभागचंद नवलचंद संघवी परिवार मुख्य दाता है। पहले पोर्तुगीज शासन था। वर्तमान में केन्द्र शासित प्रदेश दादरा नगर हवेली के रूप में जाना जाता है। घर दस है। सेलवास से और वापी से यहाँ आ सकते है। Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुजरात विभाग : १८ - वलसाड जिला 290sar मूलनायक श्री शीतलनाथजी दादरा जैन मंदिर Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ >>>>>>>>>>>>>>>>>> 送來來來來來來來來來來來來來來來來來吧來來來原 मूलनायक श्री चन्द्रप्रभ स्वामी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग - १ १३. किल्ला पारडी किल्ला पारंडी जैन मंदिर मूलनायकजी - श्री चन्द्रप्रभ स्वामीजी पहले प्राचीन मंदिर था। जिसका सं. १९६३ में जीर्णोद्धार हुआ और दमण से श्री चन्द्रप्रभ भगवान की प्रतिमाजी स्थापित की। वर्तमान में पूरे मंदिर का जीर्णोद्धार किया है। देहरासर में श्री चन्द्रप्रभ स्वामी, श्री अभिनंदन स्वामी श्री धर्मनाथ स्वामी श्री महावीर स्वामी श्री शान्तिनाथ तथा श्री पार्श्वनाथ की प्रतिमाये आरस की सं. १९६३ में स्थापित की है। मंदिर के ऊपर के भाग में प्राचीन प्लास्टर आफ पेरिस का कामकाज हुआ है। अभी इसमें रंगरोगन कराकर आकर्षण पूर्ण बनाया है। ४० घर है। विहार का रास्ता है। समीप में अतुल उदवाड़ा वलसाड है। नेशनल हाईवे नं. ८ पास में है। पिन- ३९६१२५ १४. तीथल तीर्थ 送來樂來樂來來來來來來 नमो परिहंताएं नमो सिध्दाएंग नमो पायरिया नमो उवज्झायाण, नमो लोए सव्वसाहूणं एसो पंच-नमुक्कारो सव्व-पाव-प्पासा मंगलाएणं च सव्वेसि पदम हवड़ मंगलम 來來來來來來來來來來來來來必 ← मूलनायक श्री धातु के चिंतामणि पार्श्वनाथ 樂樂樂樂敏敏敏敏樂樂樂樂敏敏敏敏敏敏敏樂麻 Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग श्री श्वेताम्बर जैन तीर्थ दर्शन राजस्थान राज्य भाग - १ Page #383 --------------------------------------------------------------------------  Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान राष्ट्रीय घोरी मार्ग = राज्य घोरी पार्ग रेल्वे मार्ग राजस्थान विभाग पजाब हरियाणा जुन्जुन उतरप्रदेश बीकानेर सिकार /अलवर / पाकीस्तान नागोर जयपुर धालपुर । जेसलमेर अजमेर जोधपुर टोंकन सवाई माधोपुर बारमेर प्राला भालवारा कोटा जालोर/सिरोही चितोडगढ़) । मध्यप्रदेश DEO झालावास्ता गुजरात गरपाबास ADDDDDDDDDDDDDD (३२७ Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ OOOOOO D सीरोही जील्ला पाली जील्ला Joo C राष्ट्रीय घोरी मार्ग = राज्य घोरी मार्ग रेल्वे मार्ग कारटा जनावेडा जालोर जील्ला T T नाणा सिरोही विरवाला मांडवारा वामणवाडा पीडवाडा 1 अजारी जीरावला नांदीया भीमाना AT कोजरा .ir दलदर गुलाबगंज ओर T शिरोडा मीरपुर आबु॥ देलवाडा अचलगढ़ भारजा उथमण रेवदर IMA पिस्वा वरमाण नीतोडा बावना उदेपर जील्ला मुंगथला लाज दियाणा माधवली दत्ताणी नोटा डबाणी वालदार I धनाणी. पाना नं. कम 6०0 ३२९ ३३१ ३३१ ३३२ १६. कम गाँव जीरावला तीर्थ मुंगथला तीर्थ रेवदर तीर्थ वरमाण तीर्थ गुलाबगंज तीर्थ शिरोडी तीर्थ श्री मीरपुर तीर्थ सिरोही तीर्थ श्री बामणवाडाजी तीर्थ वीरवाडा तीर्थ नांदिया तीर्थ कोजरा तीर्थ १३. पेसवा तीर्थ पाना नं. ३५५ ३५५ ३५६ ३५७ ३५७ ३५८ MY MY MY MY MY MY my my my my कम गाँव १४. अजारी तीर्थ १५. पीडवाडा तीर्थ नाणा तीर्थ १७. बेडा तीर्थ १८. जुना बेडा तीर्थ दत्ताणी तीर्थ धवली तीर्थ डबाणी तीर्थ रोहिडा तीर्थ २३. नितोडा तीर्थ २४. बावनी (भावरी) तीर्थ २५. दीयाणा तीर्थ २६. लोटाणा तीर्थ पाना नं. ३४५ ३४७ ३४८ ३४८ ३४९ ३५० ३५० ३५१ ३५१ ३५२ ३५३ ३५३ ३५४ २०. गाँव लाज तीर्थ धनाणी तीर्थ बालदा तीर्थ उथमण तीर्थ गोहिली तीर्थ मंडार तीर्थ कोरटाजी तीर्थ ओर तीर्थ भीमाना तीर्थ . भारजा तीर्थ देलंदर तीर्थ आबु-देलवाडा तीर्थ आबु-अचलगढ तीर्थ و २१. ३३८ २२. MY MY MY MY MY MY MY MY کلا کا کالا ११. ३४० ३४२ ३४३ ३४४ ३८. ३६८ Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला (३२९ मला सम्म १. श्री जीरावला तीर्थ पूराने मूलनायक श्री जीरावला पार्श्वनाथजी नये मूलनायक श्री जीरावला पार्श्वनाथजी | देखी मूर्ति श्री पार्श्वजिननी नेत्र मारां ठरे छे । |ने हैयुं मारुं फरी फरी प्रभु ध्यान तारुंधरे छे; आत्मा मारो प्रभु तुज कने, आववा उल्लसे छे, आपो अबुं बळ ह्रदयमां, माहरी आश ओ छे ।। WSS PPIRM EROASTEROINE छे प्रतिमा मनोहारिणी दुःखहरी श्री वीरजिणंदनी, भक्तोने छे सर्वदा सुख करी जाणे खीली चांदनी; आ प्रतिमाना गुण भाव धरीने जे माणसो गाय छे, | पामी सघळां सुख ते जगतमां मुक्ति भणी जाय छे ।। जीरावला मूलनायक श्री महावीर स्वामीजी THE Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३०) व व व व व व व व व व व व व स म स व स व स म स मूल नायक श्री जीरावला पार्श्वनाथजी हाल मूल नायक श्री नेमिनाथजी श्री जीरावला पार्श्वनाथजी जैन देरासरजी नये मूलनायक हाल में है और प्राचीन जीरावला पार्श्वनाथजी बाँये की और देरासर की बहार है। उनकी दाहिने और श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी उनकी निकट में श्री नेमिनाथजी प्राचीन मूलनायक यहाँ २०० साल रहें हैं। उनकी प्रतिमा हैं । उनकी सामने की भमती में कमरे में जमीनमें से नीकले हुए महावीर स्वामी की बडी प्रतिमा है । यह बहुत प्राचीन है । प्राचीन जीरावला पार्श्वनाथजीकी प्रतिमा दूध और बालु की बनाई गई है। जो अद्भुत और विघ्नहर है। मंत्र साधना की सिद्धि देनेवाली है । वि.सं.३२६ मे कोडीनगर के शेठ श्री अमरासाने जीरावला पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया था आ. श्री देवसूरीजी म. ने भूमि में से प्रतिमाकी शोध की और अधिष्ठायक देवके मार्गदर्शन अनुसार यहाँ वि.सं. ३३१ में श्री देवसूरीजी म. के हस्तों से उसे दीक्षा ग्रही प्रथम तीर्थ तमे ज स्थाप्युं, कै भव्यनुं कठण दुःख अनंत काप्युं; सेवा प्रभु प्रणमीओ प्रणये तमोने, मेवा प्रभु शिव तणा अर्को अमोने, ******* श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ पथराई वि. सं. ६६३ में जेतासा खेमासा द्वारा श्री मेस्सूरिजी म. की निश्रा में और १०३३ में आ. श्री सहजानंदसू म. की निश्रा मे तेतलीनगर शेठ श्री हरदासजी ने उध्धार करवाया। हाल में मूलनायक श्री जीरावला पार्श्वनाथजी और भमति मे देरी की प्रतिष्ठा वि. सं. २०२० वैशाख सुद६ सोमवार के दिन संपन्न हुई। पं. तिलक बि. और वीर विजयजी म. के उपदेश से विजय हिमाचल सू.म. के वरदू हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई । यहाँ । २०२० के पहले नेमनाथजी मूलनायक बैठे थे और २०० साल तक वे थे उसके पहले प्राचीन जीरावला पार्श्वनाथ मूल नायक थे। यह जगा अति रमणीय और शांतिदायक है । अवश्य यात्रा करने योग्य है बड़ी धर्मशाला भी है। भोजनशाला की सुविधा है। आबुरोड से ४८ कि.मी. है। रेवदर ५ कि.मी. है ता. रेवदर । म जयति शासनम विभव व वव व व व व व व व व व व व व Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला (३३१ २. मुंगथला तीर्थ मुगथला तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी मूलनायक श्री महावीर स्वामी पेढी : कल्याणजी परमानंदजी - सिरोही राजस्थान श्री महावीर स्वामी आबुरोड के निकट सिरोही से लाई हुई प्रतिमा पर सं.१०७१ का लेख है । ६० से ज्यादा खंभेवाला रंगमंडप है । एक खंभे पर सं. १४४२ का लेख है । गर्भगृह के शिलालेख के मुताबिक श्री महावीर स्वामी छद्म अवस्था में इस जगे पधारे थे । और आबु आदि जगे पर उन्होंने विहार किया था । उस समय महावीर स्वामी की आयु लगभग ३७ साल की थी । और उस समय श्री पूर्ण राजाने यह देरासर बनवाया था । श्री केशी गणधर के कर कमलों से यह मूलनायक श्री महावीर स्वामी की प्रतिष्ठा की थी। अंतिम जीर्णोद्धार ता. १९-५-१९५९ सोमवार के दिन हुआ था । (१) मुलनायक श्री महावीर स्वामी की बड़ी प्रतिमा काउस्सग्गीया है। (२) गर्भागार के आगे बड़ी प्रतिमा रंगमंडप में श्री पार्श्वनाथ की दो बाजु में काउस्सग्गीया है । एक जगा पर सं.१३८९ का लेख है । जीर्णोद्धार के बाद २०१५ में वैशाख सु. १० के दिन पू.आ. हर्ष सूरीजी म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई । गाम में एक भी जैन का घर नहीं है । पुजारी परमार राजपुत कुटुंब के साथ रहते है | श्री कल्याणजी परमानंदजी की पेढी (पीढ़ी) सिरोही यहाँ का वहीवट कर रही है। ३. रेवदर मूलनायक श्री शातिनाथजी मूलनायक श्री शांतिनाथजी की प्रतिष्ठा वि.सं. २०३५ में हुई। पहले पुराना मंदिर था उपर की मंजिल में आदीश्वरजी प्राचीन है। जैन के ५५ घर है - यहाँ का संघ व्यवस्था करती है, एक बडी धर्मशाला है। यह स्थान जीरावला तीर्थ जाते समय बीच में आता है । इसका अंतर ५ कि.मी. है । स Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ EEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEER Hal मूलनायक श्रीशांतिनाथजी रेवदर जैन तीर्थ देरासरजी ४. वरमाण तीर्थ मूलनायक श्री महावीर स्वामी रंगमंडप में काउस्सग्गिया में संवत १२५१ का लेख है। रंगमंडप के आगे प्राय : ४२ स्थंभका दूसरा मंडप है। और एक शासन देव का छोटा मंदिर है जीस मे संवत १२४२ का लेख है (वरमाल वर्धमान) ब्रह्मानपुर मूलनायक श्री महावीर स्वामी २५०० साल पुराने है संवत २०३६ में यहाँ का जीर्णोद्धार हुआ था मूलनायक श्री महावीर स्वामी. श्री महावीर स्वामी की विद्यमानता में भरा हुआ है और प्रतिष्ठित है। उपर की मंजिल में मूलनायक श्री सुमतिनाथजी है, और यहाँ एक ही प्रतिमा उपर की बाजुमें है । नीचे के भागमें मूलनायक श्री महावीर स्वामी की साथ सात आरस की प्रतिमाए है । यह स्थान दर्शनीय और माहक तीर्थ है । एक बडी धर्मशाला और भोजनशाला भी है - यह तीर्थ की व्यवस्था और संचालन मंडार का जैन संघ करता है। मंदिर की निकट में एक शासन देवी की बडी मूर्ति है, जीसकी पूजा होती है । यहाँ एक स्वतंत्र कक्ष है, जीसमें श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथका बड़ा पाँच फूट का फोटोग्राफ है - यहाँ जैनो के ५ घर है। श्री श्रेणिक महाराजने यह महावीर स्वामी की प्रतिमा भराइ है, और स्थापना भी उन्होंने करवाई है कहानवड़ बहुत बड़ा है । शुक्लतीर्थ जैसा यहाँ प्राचीन मंदिर है। मुलनायक श्री महावीर स्वामी - SEREEEEEEEEEEEEEEEER Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला वरमाण तीर्थ जैन देरासरजी ५. गुलाबगंज श्री पार्श्व नाथ मूलनायक श्री पुराने पार्श्वनाथजी गुलाबगंज जैन देरासरजी (३३३ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ Che मूलनायक श्री नागेश्वर पार्श्वनाथजी गर्भगृह में हाल के मूलनायक श्री नागेश्वर पार्श्वनाथ की बाँये और गोख में पूराने मूलनायक श्री नागेश्वर पार्श्वनाथजी सं.१५४५ में भराये थे-नये मूलनायक श्री नागेश्वर पार्श्वनाथजी हाल में अतिथि स्वरूप बिराजमान है - इस की प्रतिष्ठा अब होनेवाली है । काम चल रहा है। जैनों के ८ घर है। श्री विजय लक्ष्मी सू.म. की यह जन्मभूमि है । एक जैन धर्मशाला है। kontAAADMAAVADADAAGADAAADAACADACAMAirA ६. शिरोडी शिरोडी जैन देरासरजी US s मुलनायक श्री गोडी पार्श्वनाथजी मंदिर छो मुक्ति तणा, मांगल्य क्रीडाना प्रभु ने इन्द्र नर ने देवता, सेवा करे तारी विभुः; सर्वज्ञ छो स्वामी वळी, शिरदार अतिशय सर्वना; घणुं जीव तुं घणुं जीव तुं, भंडार ज्ञानकळा तणा. मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी रंगमंडप में है । कुमारपाल के समय की बहुत पुरानी प्रतिमाएं है एक महावीर स्वामी की प्रतिमा उपर की मंजिल पर है । सं.१५३० का लेख है। आयंबील शाला भी है । जैनों के १२५ - घर है । जैन धर्मशाला भी है । जीर्णोद्धार हुआ है । सं. २०१८ में पू. आ. श्री विजय प्रेमसूरीजी म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई है। पीछे की ओर तीन मूतियाँ जो भगवान चिंतामणी पार्श्वनाथजी की है । वह सब कुमारपाल के समय की है। शुं बाळको मावाप पासे बाळफ्रीडा नव करे; ने मुखमांथी जेम आवे तेम शुं नव उच्चरे ?; तेमज तमारी पास तारक ! आज भोळा भावथी, - जेवू बन्युं तेवू कहुं, तेमां कशुं खोटुं नथी. 0AL CAN K Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (4 राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂大麻 ७. श्री मीरपुर तीर्थ 汉诸省寧市古古街市尚古古古古古 मीरपुर तीर्थ जैन देरासरजी की नक्काशी ← मूलनायक श्री गोडी पार्श्वनाथजी 乘樂來來來來來來來, 12t+ti 來來來來來來來來來 मीरपुर तीर्थ जैन देरासरजी 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂麻 Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६) VDDDDDDDDDDDDDDDDD धर्मशाला की उत्तर की और है। यह तीनों देरासर पश्चिमाभिमुख है । यहाँ हमीरगढ नामका बड़ा नगर था । हमीर हट्ट नामक देवड़ा शाख के राजपुत राजाने यह नगरी का निर्माण किया था पहले यहाँ उसकी राजधानी थी। बाद में सिरोही राजधानी हुई । किला है । आज यहाँ कोई घर नहीं है । यहाँ से से जानीवाली गोड़ीजीकी श्याम मूर्ति पायधूनी मुंबई में है। यहाँ श्रावक के ६० घर थे जो सब मुंबई गये है; बाकी तीन घर यहाँ मेड़ा गाँव में रहेते हैं। और दो घर वेलांगरी में रहते हैं। झालोर के राजा ने यह हमीर की राजधानी हमीरगढ़ पर चढ़ाई की पर छ महीने तक किले के बहार फोज को रहना पड़ा था पर किला उसके हाथ नहीं आया तब एक दिन हमीरगढ के श्रावक श्रेष्ठी राजाने उसे गढ़ को तोडने की माहिती के लिये उसे पकड़ा उसने धाणता गाँव से अपने ससुराल आ रहा था । तब झालोर के डरके मारे छूपा रास्ता दिखा दिया उत्तर की पहाड़ी पर से तोपबाजी शुरु की राजा के महल की दक्षिण पूर्व की पहाड़ी पर से नीचे से और उपर से भी तोपबाजी शरु की फीर यह हमीरगढ का पतन हुआ आज इस बात को ३०० साल बीत चूका है । आज यहाँ पहले की बस्ती में से बचे हुए नया मीरपुर में रहेते हैं । जो यहाँ से रास्ते के निकट थोड़ी सी बस्ती वाला गाँव है। श्री महोबतसिंह सोहनसिंह सोढा यहाँ के चोकीदार है । (राणा - मु. उमरकोट पंजाब) से यह माहिती प्राप्त हुई है । यहाँ का राजवंश सिरोही में राज करता है । चौथा श्री महावीर स्वामी का देरासर है। इस में मूलनायक श्री महावीर स्वामी नीचे सं.१२५३ का लेख है । और भी बहुत सी प्रतिमाएं है। पार्श्वचंद गच्छ के स्थापक श्री पार्श्वचंद्र सू. श्री म. की यह जन्मभूमि है । १६ वी सदी में वे हो गयें है । - मूलनायक श्री गोडीजी पार्श्वनाथजी पेढी कल्याणजी परमानंदजी पेढी यह देरासर संप्रति राजा के समयका है । सं. ८२१ में श्री जयानंद सू.म. के उपदेश से मंत्री श्री सामंत ने जीर्णोद्धार करवाया है । वि. सं. १५५२ में दूसरा जीर्णोद्धार करवाया है। यह मूलनायक पार्श्वनाथजी की प्रतिमा देलवाड़ा आबुसे यहाँ लाई गई है । सामनेवाली छोटी देरी में २ भगवान कुमारपाल के समय के है। पाँच छोटे देवालयों में कुल मीलाकर १२ भगवान है और यह सब कुमारपाल के समय के है। एक मूर्ति में गादी पर सूजाडसिंह की नक्कासीवाली मूर्ति है। यह मीरपुर (हमीरपुर) आबु के पीछे के भाग में कोई बस्ती नहीं है । वहाँ पांच शीखरवाला मंदिर है । नीचे से उपर तक नक्कासी की गई है। जो बहुत ही अद्भुत | और बारीक है । यह मंदिर देलवाड़ा-अचलगढ और कुँभारिया से कम नहीं है उतनाही वह बेनमुन है जितना वे मंदिरे है । सर्वश्रेष्ठ अद्भुत और सौंदर्य से हरीभरी कुदरत के बीच में खड़ा है । यह स्थान अवश्य यात्रा करने के योग्य है । मंदिर का जीर्णोद्धार और प्रतिष्ठा पू. श्री नेमीसूरीजी म. परिवार के पट्टधर श्री लावण्यसूरीजी म. और उनके पट्टधर श्री सुशीलसूरीजी म. और श्री मनोहरसूरीजी म. और वाचक श्री चंद्रन विजयजी म. | और वाचक श्री विनोद विजयादि की निश्रामें सं. २०३८ ज्येष्ठ मास की पंचमी गुरुवार २७-५-८२ के दिन हुइ थी यहाँ कोई गाँव नहीं है। इस तीर्थ का कारोबार श्री कल्याणजी परमानंदजी की पीढी चलाती है। जो सिरोही मै है । यह प्राचीन मंदिर मुख्य देरासरजी गोडीजी पार्श्वनाथ का पूराना है । उनके पीछे दोनों छोटे देरासरजी है । मूलनायक सिर्फ एक एक प्रतिमाजी है। जीस में श्री शांतिनाथजी की मूर्ति कुमारपाल के समय की है। सुपार्श्वनाथजी भी प्राचीन है। चौथा देरासर श्री महावीर स्वामी का है । जो तीनों की सामने । लाख लाख वार प्रभु पार्श्वने वधामणा, अंतरियुं हर्षे उभराय. आंगणीये अवसर आनंदना. मोतीनो थाळभरी प्रभुने वधावजो, मीठा मीठा गीत प्रभुना गयडावजो, सेवा भक्तिनी धून लगावजो अंतरनी ज्योत जगाय. आंगणिये. ४ अक्षते लेजो वधाय. आंगणिये १ करुणानिधि प्रभु देवाधिदेवा, पुण्य उदयथी प्रभुजी निहाळ्या, श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ दर्शनथी दिलडा सौना हरखायां आनंद उरमा न माय. आगणिये, केसर चंदनथी पूजा रचावजी, सिरोही रोड़ से ३७ कि.मी. आबूरोड से ६० कि.मी. सिरोही १६ कि.मी. मीरपुर स्टेशन ३ कि.मी. है। धर्मशाला और भोजनशाला की सुविधा है। भवोभव हारी है चाहे छं सेवा शिवरमणी जल्दी वराय. आंगणिये. ५ मुक्तिनां द्वार प्रभु अमने बतावजो, लव्य लक्ष्मणनी कीर्ति फेलावजो हीराना हार प्रभु कंठे शोभावजो आनंद मंगल वर्ताय, आंगणिये. ६ लाखेणी आंगी रचाय, आंगणिये. ३ ★ ※ここDDDDDDDDDDDD!ここ! Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला नेनेति 110 (३३७ 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂敏; ८. सिरोही E मूलनायक श्री ऋषभदेवजी ※東來( दूसरे देरासरमें मूलनायक श्री आदीश्वरजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी श्री आदीनाथ मंदिर बावन जिनालय है, यह सिरोही सं. १४८२ में महाराव शिवभाण के पुत्र शेषमलाजी चौहान ने बसाया था। शहर की स्थापना के पहले इस जगा पर सं. १३२३ में आसो सु. पंचमी के दिन एक भाविक शेठ ने यहाँ का शांत वातावरण को देखते हुए आदीनाथ भगवान का मंदिर शरु किया । सं. १३३९ में आषाढ सुद ३ और मंगलवार के दिन इसकी प्रतिष्ठा संपन्न हुई ईसे अचल-गच्छ का मंदिर कहा जाता है । सं. १६१० में मागसर सुद १० के दिन हीर सू. म. को यहाँ आचार्य की पदवी प्रदान कि गई १६३४ में महा सुद पंचमी चार मंझिल के चौमुखी श्री आदीनाथजी की प्रतिष्ठा हीर सू.म. ने करवाई है । १५२० में आ. श्री हरिभद्र सू.म. ने चिंतामणि पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा करवाई है। यहाँ भी हीर सू. मं. की ३ फूट की प्रतिमा है । जीसमें सं. १६५९का लेख है । संवत १६५७ में शांतिनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा जिनचंद्र सू.म. के हस्तों से हुई जिनदत्त सू. जिनकुशल सू.म. की मूर्तियाँ है । सं. १६६१ का लेख है । श्री संभवनाथजी, शीतलनाथजी, गोडी पार्श्वनाथजी, कुंथुनाथजी (१६५३) श्री महावीर स्वामी (१७२१) श्री अजितनाथजी (१६५८) श्री नेमिनाथजी, श्री शांतिनाथजी, श्री आदीनाथजी आदि के १९ मंदिर है । अचल गच्छ श्री आदीश्वरजी जैन टेम्पल संस्थान, टेम्पल गली मु. सिरोही, सिरोही रोड से २४ कि.मी. की दूरी पर है। *** 來來來來來來來 ·乘果來來來來來來來來來來 सिरोही समूह जैन देरासरजी 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂麻 Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ K सिरोही जैन देरासरजी समूह दश्य _ ९. श्री बामणवाडाजी तीर्थ मूलनायक श्री महावीर स्वामी पेढी - कल्याणजी परमानंदजीकी पेढी-सिरोही पो.वीरवाड़ा 00 साल पहले श्री नंदिवर्धन राजाने श्री महावीर स्वामी का यह देरासर बनवाया और जीवित स्वामी की प्रतिष्ठा करवाई. बावन जिनालयमें भमति में संप्रति और कुमारपाल - विमलशाह के समय की बहुत प्रतिमाजी है । संप्रति राजा हर साल वहाँ यात्रा के लीये आते थे । इस प्रकार नागार्जुनसू.म. स्कंदनसूरीजी पादलिप्त सू.भी हररोज पाँच तीर्थ की यात्रा करते थे इसमें यह तीर्थ है । सं. ८२१ में पोरवाल मंत्री सामंत शाहने जयानंदसू.म. के उपदेश से जीर्णोद्धार करवाया नई प्रतिष्ठा वीर सं.२५०१ जयेष्ठ मासमें पू.आ.श्री सूशील सू.म. के वरद हस्तो से हुई। परमात्माश्री महावीर स्वामी के कानों में कीले (खीला) लगाये थे वो जगा इस देरासर की बाजू में है | जीस पर उनके चरण है। और उसकी पर श्री महावीर स्वामी की काउस्सग्गिया प्रतिमा की प्रतिष्ठा की थी । इस तीर्थ पर समेत शीखरजी की प्रतिकृति बनाई है । और छोटी देरीओं में चरण पादूका है । कोई प्रभुजी की रचना भी है । नीचे महावीर स्वामी का तीर्थ और उपर पाँच देरासरजी है । और चरण पादुकाएं भी है । नीचे की बाजु में दो देरासरजी है | नीचे श्री महावीर भगवान के २७ भवों का पट्ट दर्शन है । अमराजी रावल ब्राहमण की मूर्ति सं. १८२१ मैं पधराई है । जो महावीर स्वामी को रूबरु मीलते और बात भी करते थे । वे परम भक्त थे ऐसा कहा जाता है । सिरोही रोड ३ कि.मी. है । पींडवाडा ८ कि.मी. है । सिरोही शहर १६ कि.मी. है। धर्मशाला बस स्टेन्ड के सामने है। JAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAANAYANTOSHANAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला HिHHOE SON श्री बामणवाडाजी तीर्थ व्यु IBE BHHO ROO NEL ED RAHA IDOCIANE AI MOHANE Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ madrama-HANS श्री महावीर स्वामी चरणपादुका जनम जयनि 4- बामणवाड़ाजी तीर्थ मूलनायक श्री महावीर स्वामी १०. वीरवाड़ा तीर्थ मूलनायक श्री विमलनाथजी मूलनायक श्री विमलनाथजी स्वामी का बड़ा देरासर है । इस के पहले यहाँ आदीश्वर भगवान मूलनायक थे - जो भमति में है। यह मंदिर संप्रति राजाने बनवाया था । सं १४१० में जीर्णोद्धार हुआ है । जैनों के ५० घर है - पहले २०० घर थे - यह सब पोरवाल जैन है - यह जिनालय बावन जिनालय है । यहाँ का कारोबार विमलनाथ जैन पीढी (ता. पिंडवाडा) हस्तक है । शेषमलजी हजारीमलजी जो यहाँ के ट्रस्टी है । उनकी ओर से माहिती मीली है । बाजुमें पुराना गाँव वासिया था । वहाँ एक संप्रति राजा का देरासर है। महावीर स्वामी मूलनायक है । बहुत खंभे है । सिरोही रोड १० कि.मी. है । सिरोही शहर १४ कि.मी. है । बामणवाड़ाजी १ कि.मी. है । यहाँ धर्मशाला है । Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग १ सिरोही जिला मूलनायक श्री महावीर स्वामी ६०० साल पूराना वीरवाड़ा तीर्थ जैन देरासरजी गाँव में मूलनायक श्री विमलनाथजी मूलनायक श्री विमलनाथजी (३४१ Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ११. नांदीया तीर्थ नांदिया तीर्थ देरासर तीर्थ व्यु सुण्या हशे पूज्या हशे, नीरख्या हशे पण को, क्षणे, हे जगतबंधु चित्तमां, धार्या नहीं भक्तिपणे; जन्यो प्रभु ते कारणे, दुःखपात्र आ संसारमा; हा भक्ति ते फळती नथी, जे भाव-शून्याचारमां. मूलनायक श्री जीवित स्वामी - महावीर स्वामी मूलनायक श्री जीवित स्वामी (महावीर स्वामी) बड़ा बावन जिनालय है । मूलनायक श्री जीवित स्वामी की प्रतिष्ठा श्री नंदीवर्धन राजाने करवाई थी - यह मंदिर २५०० साल पूराना है । नीचे भमति में अमुक प्रभुजी है। सं. १२५० और संवत १६५० के लेख है। सं. १२०१ में जीर्णोद्धार हुआ था सं.२००८ का लेख बहुत सी प्रतिमा के नीचे है । उस समय जीर्णोद्धार हुआ होगा । जैनों के १२० घर है । यहाँ का कारोबार जैन संघ द्वारा कीया जा रहा है । नांदिया प्राचीन गाँव है नांदिया गाँव में श्री मुनिसुव्रत स्वामी की प्रतिष्ठा सं. २०१८ में हुई थी - नया शिखरबंध देरासर है। लालचंदजी पींडवाडा वाले जीर्णोद्धार का वहीवट करते थे- यहाँ भोजनशाला भी है - सिरोही रोड १० कि.मी. - सिरोही शहर २० कि.मी. बामणवाड़ा ६ कि.मी. पर है। नांदिया तीर्थ प्रभुवीर चरण स्थान Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला १२. कोजरा तीर्थ AIMIRE 000000 1000 पूराने मूलनायक श्री मुनिसुव्रतस्वामी गोखमें 500 -मूलनायक श्री संभवनाथजी कोजरा तीर्थ देरासर व्यु Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ R FLARSHA मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी वि. सं. १२१४ में यह देरासर की प्रतिष्ठा हुई थी । मूलनायक श्री पार्श्वनाथ थे । इसके पहले श्री संभवनाथजी प्राचीन थे । हाल में वे प्रथम मंझील पर है । हालके मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी की वि. सं. २०३५ में प्रतिष्ठा संपन्न हुई है। जैनों के २० घर हैं । जैन धर्मशाला और उपाश्रय भी है। आरस के पथ्थर यहाँ से बहार जाते है। देवोऽनेकभवार्जितोर्जितमहा - पापप्रदीपानलो, देवःसिद्धवधूविशालह्रदया - लंकारहारोपमः; देवोऽष्टादशदोषसिन्धुरघटा - निर्भेदपंचाननो, भव्यानां विदधातु वांछितफलं श्रीवीतरागो जिन; ख्यातोऽष्टापदपर्वतो गजपदः सम्मेतशैलाभिधः; न १३. पेसवा तीर्थ MROMA पेसवा तीर्थ जैन देरासरजी A IRDOSHARETIREMEसस मूलनायक श्री कुंथुनाथजी मूलनायक श्री कुंथुनाथजी यहाँ मूलनायक श्री कुंथुनाथंजी स्वामी का देरासर है। उसकी प्रतिष्ठा संवत २०१९ में हुई है। उसके पहले यही कुंथुनाथजी ४०० साल से है । कुंथुनाथजी की प्रतिमा बहुत प्राचीन है । धर्मशाला और आयंबीलशाला भी है । जैन परिवार के करीब १०० घर है। मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी : शिवगढ से यह श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की प्रतिमा लाई गई है इसलिये उसे श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ कहा जाता है । यह श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा सं. २०३८ ज्येष्ठ सुद २ के दिन संपन्न हुई है। प्रतिमाजी प्राचीन है । पूर्व सन्मुख में दो मंदिर है । यह श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी की मूल प्रतिष्ठा सं. १६२० में संपन्न हुई थी । ईसके पहले लाजमें शिखरबंध देरासर में यह प्रतिमा मूलनायक के रूप में थी । वहाँ कोई जैन न होने से यहाँ लाकर प्रतिष्ठा की। यहाँ के प्राचीन प्रतिमा मूलनायक कुंथुनाथजी जैसी ही प्रतिमा उंझा (उ. गुजरात) में है। Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग १ सिरोही जिला १४. अजारी तीर्थ अजारी तीर्थ सन्मुख देरासरजी का दृश्य मूलनायक श्री महावीर स्वामीजी शेठ कल्याणजी सौभागचंदजी की पेढी, पींडवाडा(जि-सिरोही) यह तीर्थ के मूलनायक श्री महावीर स्वामी अति सुंदर और दर्शनीय है। विशाल बावन जिनालय है। मूलनायकजी की प्रतिमा प्राचीन है । यह २५०० साल पुराना मंदिर राजा संप्रति का बनाया हुआ है। गर्भगृह में बाजु में दो आरस की चोबिसी है। जीसमें से एक का वि. सं. १२४३ का लेख है। दस साल पहले इसका जिर्णोद्धार हुआ है। जैनों के १५ घर है जैन उपाश्रय भी है। भमती के पीछे श्री आदीनाथजी के नीचे सं. १५२३ का लेख है । यहाँ के पुजारी प्रतापजी पूंजमाजी रावल आज चौथी पीढी से पूजारी के रूपमें है। श्री महावीर स्वामी आदि की बहुत अच्छी सेवा पूजा करते है और बहुत अच्छी सफाई भी रखते है । देवी सरस्वति की प्राचीन मूर्ति पहले. मूलनायक श्री महावीर स्वामी के पीछे हाल में जहाँ बड़े आदीश्वर है। उनकी सामने हाथ जोड़कर बैठे हुओ जैसे दिखाई देते है । वहाँ से देवी को सं. २०२७ में जब यह देरासरजी का जीर्णोद्धार हुआ तब प्रवेशद्वार के दाहिने हाथ की पास एक कोने में स्वतंत्र मंदिर बनाकर उनमें स्थापना की है। इस मूर्ति पर सं. १२६१ का लेख मौजूद है। इस देरासर के नीचे उपर के देरासर जैसा पर थोड़ा छोटा एक मूंहरा (ई) है उसे अभी ताला लगाया हुआ है। हरे में भी बहुत सी प्रतिमाजी है। इस तीर्थ का जीर्णोद्धार करके सं. २०२७ में पू. आ. श्री विजयरामचंद्र सूरीश्वरजी म. ने ईसकी प्रतिष्ठा की थी। यहाँ कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यजी पर माताश्री सरस्वतिजी प्रसन्न हुए थे । गाम अजारी पींडवारा से २ कि. मी. की दुरी पर है। ** (३४५ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ SAHALASSHAHARAM श्रीमहावी MAHARMATHALISAILINDE ADHUttar Co अहा केवु भाग्य जाग्युं, वीर नां चरणो मळ्यां ; रोग शोक दारीद्र सघळां, जेहथी दूरे टळ्यां . अहा //9// फेरो फर्यो छे. दुर्गतिनो, शुभगति तरफेणमां; अल्पकाळे मोक्ष पामी, विचरशुं आनंदमां. अहा //R// जेमना तपनो न महिमा, करी शके शक्रेश भी; तेमने हुं स्तवं शुं बालक, शक्तिनो ज्यां लेश नहि, अहा. ||३|| कामधेनु कामकुंभ, चितामणि प्रभु तुं मळयो; आज मारे आंगणे, श्री वीर कल्पतरू फळ्यो . अहा. //४|| लब्धिना भंडार व्हाला, वीर वीर जपता थयां; गौतम श्री मोक्षधामी, जे प्रभुनी खरी दया. अहा. //५// BOEIC CE Fasna मूलनायक श्री महावीर स्वामी (२५०० साल पूराने) * * * * REPARAMARREARRRRRRRR पीछे के भाग में श्री आदीश्वरजी ५०० साल पूराने कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्यजी PREETAR BARRORI E RRORKERSORESORROKHARA Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला (३४७ १५. पींडवाड़ा तीर्थ श्री पीडवाड़ा जैन देरासरजी व्यु दृश्य सुद ६ पू. आ. श्री विजय प्रेमसूरीश्वरजी म. तथा और उनके मुख्य पट्टधर श्री रामचंद्र सू. म. के वरद हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न मूलनायक श्री महावीर स्वामी पीढी शेठश्री कल्याणजी सौभाग्यचंदजी पीड़वाडा । यह श्री महावीर स्वामी का देरासर है । प्रतिमाजी राजा संप्रति के समय की हैं । रंगमंडप में धातु के दो काउस्सग्गिया छ फूट की उंचाई के है । उसके नीचे वि.सं. ७५५ का लेख है । एक आदीश्वर और एक महावीर स्वामी के अलावा भमति में एक रूम में धातु की अनेक प्रतिमाजी हैं । निकट के बसंतपुर नगर के मँहरे में से निकले है । आज वह जगा जंगल के रूप में है। यह महावीर स्वामी देरासरजी का जीर्णोद्धार सं. २०१६ वैशाख १. महावीर स्वामी का देरासर पांचसो साल पूराना है । २. गोडीजी पार्श्वनाथ देरासर प्राचीन था थोड़े साल पहले जीर्णोद्धार हुआ है । मूलनायक पांचसो साल पूराने है । ३. शंखेश्वर पार्श्वनाथ का देरासर बीलकुल नया है इसकी प्रतिष्ठा सं. २०३४ में संपन्न हुई थी । जैन धर्मशाला और भोजनशाला है । जैन पाठशाला है । Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १६. नाणा TOP KOHOR नाणा जैन देरासरजी व्यु 52 KAMAN SOME मूलनायक श्री जीवीत स्वामी मूलनायक महावीर (जीवीत) स्वामी. २५०० वर्ष पूराना देरासर है । मूलनायक श्री महावीर स्वामी सं.१०६७ से १६५९ लेख मिलता है । जीवीत स्वामी बदलाये हैं। इस प्रतिमा पर १५०५ श्री शांतिसूरीश्वरजी म. का लेख है। बावन जिनालय के दर्शन करने योग्य है । गाँव में १३० जैनो के घर है । नंदीश्वर पट्ट १२७४ की साल का है । दो उपाश्रय और धर्मशाला है। बेडा से ६ कि.मी. दूर है। पाकीर से मूर्ति लाई गइ है । वह श्री पार्श्वनाथ मूलनायक है। १७. बेड़ा मूलनायक श्री संभवनाथजी सं. १६१२ में यह मंदिर बना था । रंगमंडप की एक प्रतिमा पर सं. १६७२ का लेख है । दूसरी प्रतिमाजी संप्रति राजा और कुमारपाल के समय की है | सिरोही जिले में बहुत देरासरजी और स्तंभ है । वैसे यहाँ भी ५०-७५ स्तंभ है। यहाँ बेडा में संभवनाथ बावन जिनालय प्राचीन है | जैनों के ३०० घर है । वहीवट जैन संघ द्वारा चलता है | उपाश्रय ४ है। एक धर्मशाला है । रंगमंडपमें ४ संभवनाथजी है जीसमें एक में सं. १२७२ का लेख है । पूराने मूलनायक श्री मुनिसुव्रतस्वामी प्राचीन है । नीचे लेख है । भमति में बहुत सी प्रतिमाजी संप्रति राजा और कुमारपाल राजा के समय की है । पूराने मूलनायक पर सं. १६३४ का लेख है। * * * * * * Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १सिरोही जिला (३४९ ICICROR बेड़ा जैन देरासरजी मूलनायक श्री संभवनाथजी (४०० साल पूराने) १८. पूराना बेडा पूराना बेड़ा जैन देरासरजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी प्राचीन श्यामवर्ण दादा पार्श्वनाथजी मूलनायक है । प्रायः15 बारवीं सदीके है । यह पूराना बेड़ा का मंदिर जंगल के विस्तार में है । जहाँ अन्य जाति के लोग बसवाट करते है । एक छोटा उपाश्रय भी है । बडी धर्मशाला भी है। गाँव है । जैनों का कोई परिवार नहीं है। मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १९. दत्ताणी . दत्ताणी जैन देरासरजी I भान मुलनायकदादाश्रीसीमधरस्वामियाजीमहावीर मूलनायक श्री सीमंधर स्वामी यह तीर्थ प्राचीन है। और हाल में विकास हो रहा है । रेवदर . की निकट में है। मूलनायक श्री सीमंधर स्वामी AAALTH | २०. धवली तीर्थ RS धवली जैन देरासरजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी रेवदर और दत्ताणी तीर्थ के पास यह तीर्थ हैं। मूलनायक श्री महावीर स्वामी TH Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला 辘辘辘辘辘辘辘邈邈骣辘辘辘辘麗麗. HETAWAY मूलनायक श्री शांतिनाथजी २१. डबाणी तीर्थ मुलनायक श्री पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री शांतिनाथजी यह प्राचीन देरासर है धवली के निकट में हैं रेवदर होके आ सकते हैं । डवाणी जैन देरासरजी २२. रोहिडा रोहिडा जैन देरासरजी न (३५१ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२) 2072 172 X निकट के देरासरजी के मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी 2015 मूलनायक श्री चितांमणि पार्श्वनाथजी 文學 文學 ऋण मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी यह प्राचीन देरासरजी है । दूसरा भी पार्श्वनाथजीका देरासरजी है स्वरूपगंज से ६ कि.मी. की दूरी पर है। यहाँ का संघ अचलगढ तीर्थ आदी का वहीवट चलाता है। २३. नीतोड़ा तीर्थ • श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ BIM nas usus रा नेत्रानंद करी भवोदधितरी, श्रेयस्तरोर्मंजरी; श्रीमद् धर्ममहानरेन्द्रनगरी व्यापल्लताधूमरी; हर्षोत्कर्ष शुभ प्रभाव - लहरी, रागद्विषांजित्वरी; मूर्तिः श्रीजिनपुंगवस्य भवतुं श्रेयस्करी देहिनाम् ENLAN किं कपूरमयं सुधारसमयं कि ! चन्द्ररोचिर्मय, किं लावण्यमयं महामणिमयं कारुण्यकेलिमयम्; विश्वानंदमयं महोदयमयं, शोभामयं चिन्मयम; शुक्लध्यानमयं, वपूर्जिनपतेर्भूयाद्भवालम्बनम् नीतोड़ा तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री चितांमणि पार्श्वनाथजी यह तीर्थ छोटी मारवाड के पंचतीर्थ में गिना जाता है । यह Oax BARAM स्थान १२ वी सदी के पहले का है । मंदिर में बालेश्वर यक्ष की मूर्ति है । स्वरूपगंज से ५ कि.मी. और दियाणा से ८ कि.मी. दूर हैं 72 20 Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला मूलनायक २४. बावनी (भावरी) तीर्थ चयन श्री वासुपूज्य स्वामी मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी यह प्राचीन देरासर है स्वरूपगंज से २ कि.मी. अंदर की बाजु में हैं । यहाँ से नितोडा ३ कि.मी. दूर है । De बावनी तीर्थ जैन देरासरजी २५. दीयाणा तीर्थ मूलनायक श्री जीवित स्वामी महावीर स्वामी यह प्रभुजी भगवान महावीर के भाई नंदिवर्धनने बनाया है और बावन जिनालय मंदिर भी बनाया है नाणा-दियाणा नांदिया जीवित स्वामी वांदिया यह प्रतिमाँ श्री महावीर स्वामी की विद्यमानता की है । पहले यहाँ कोई नगर होगा अभी यहाँ जंगल है पट और बावडी में १३-१४ सदी के लेख है । १४३६ में यहाँ पार्श्वनाथ चरित्र रचा गया है । यहाँ से स्वरूपगंज १८ कि.मी. दूर है । नितोडा तीर्थ होकर यहाँ आ सकते है । स्वरूपगंज महावीर भवन से जीप मील शकती है। धर्मशाला और भोजनशाला है । हे देव ! तारा दिलमां वात्सल्यना झरणां भर्या, हे नाथ ! तारा नयनमां करुणातणा अमृत भर्या, वीतराग तारी मीठी मधुरी वाणीमां जादु भर्या, तेथी ज अमे तारा शरणमां बाळक बनी आवी चडया (३५३ <- मूलनायक श्री जीवित स्वामी महावीर स्वामी Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४) दीयाणा तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी २६. लोटाणा तीर्थ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ लोटाणा तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री आदिश्वरजी यह प्रतिमा श्री शेत्रुंजय तीर्थ के १३ वें उद्धार के मूलनायक की मानी जाती है। यहाँ काउस्सगीया मूर्ति पर ११४४ और ११३० के लेख है। अंतिम उध्धार सं. २०१६ में संपन्न हुआ था । सिरोही रोड २० कि.मी. बामणवाडाजी १६ कि.मी. नांदिया ७ कि.मी. के अंतर पर है। 麗麗躐聪聪 Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला 147 (th मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी २७. लाज तीर्थ २८. धनाणी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी मंदिर के स्थंभ पर सं. १२४४ का लेख है । इसलिये यह पूराना मंदिर है। सं. १९७७ में जीर्णोद्धार हुआ है। धनारी के पू श्री महेन्द्र सू के वरद हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। हाल मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी है। हर साल मृगशीर्ष मास की वद १० के दिन यहाँ मेला लगता है। धर्मशाला है यहाँ से सिरोही रोड १८ कि.मी. कोजरा तीर्थ ३ कि.मी. चामुंडेरी २३ कि.मी. दूर है। पो. कोजरा ता. पींडवाड़ा | तारो० तारो तारो हे प्रभुजी प्यारा, शान्तिनाथ भगवान तारो तारो हे प्रभुजी प्यारा, शान्तिनाथ भगवान भवसागरमा बुडता मुजने, उतारो भवपार; तुज वियोगे भवमां भमीयो, शांति न मळी लगार. तारो० आधि व्याधिने उपाधिमां, दाझयो अपरंपार; करुणादृष्टि महेर करीने, शांत करो आवार.. विषय कषायने वश थइने, गुना कर्या अपार जेवो तेवो दास जाणीने, माफ करो दयाळ. पुण्योदये तुम दर्शन पामी, तरियो आ संसार; हवे प्रभु मुजने दूर न करशो, ह्रदय धरीने प्यार. गुरु कर्पूर सूरि अमृत भाखे, विनतडी अवधार; भवोभव हुं हुं दास तमारो; नहि भुलु उपकार. 1 तारो० तारो० तारो० लाज तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री शांतिनाथजी बनास नदी के तट पर धनारी गाँव में पूरोहित महोल्ले में यह । तीर्थ है। शिलालेख १३४८ के मिलते है। पहले यहाँ मूलनायक श्री आदीश्वरजी थे जीर्णोद्धार के समय पर शांतिनाथजी मूलनायक बनाये गये होगे जिनेन्द्र सू. म. के वरद् हस्तों से मूलनायक के रूप में श्री पार्श्वनाथजी को विराजमान किया गया है। स्वरूपगंज स कि.मी. है आबु सिरोही रोड़ पर १ कि.मी. अंदर की बाजु में है। (३५५ Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ धनाणी जैन देरासरजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी २९. बालदा तीर्थ बालदा तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी यह तीर्थ हाल में बहुत विकसित हुआ है । वीरवाड़ा निकट सनवाडा के पास है | सिरोही शहर ९ कि.मी. के अंतर पर है। मूलनायक श्री महावीर स्वामी Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला (३५७ ३०. उथमण तीर्थ उथमण तीर्थ जैन देरासरजी GAR मूलनायक श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी गाँव के बहार पर्वत की तलहटी में यह मंदिर है । मंदिर के रंगमंडप में सं. १२५१ का मंडप बनाने का लेख है । कुएं पर १२४३ में यह मंदिर में धनेश्वर श्रावक और उसके कुटुंबीजनों की ओरसे यह कुँआ बनाने का लेख है । श्रावण वद १० के दिन ध्वजा आरोपण होता है । मूलनायक की गद्दी के नीचे बहुत सुंदर नक्कासी है । धर्मशाला है । जवाई बंध स्टेशन २० कि.मी. । सिरोही २२ कि.मी. और शिवगंज १० कि.मी. दूर है । ता. शिवगंज. ताराथी न अन्य समर्थ दीननो उद्धारनारो प्रभु, माराथी नहि अन्य पात्र जगमां, जोता जडे हे विभु; मुक्ति मंगल स्थान तो मुजने इच्छा न लक्ष्मी तणी, आपो सम्यग्रत्न श्याम जीवने तो तृप्ति थाये घणी. ३१. गोहिली मूलनायक श्री गोड़ी पार्श्वनाथजी यह मंदिर १३ वी सदी का है और बावन जिनालय है। मंदिर की रचना आकर्षक है । १२४५ में यहां के ठाकोरने कुछ भेट दिया है ऐसा शिलालेख है । मृगशीर्ष वद १० के दिन यहाँ मेला लगता है धर्मशाला है - सिरोही ३ कि.मी. और सिरोही रोड २० कि.मी. के अंतर पर है। o CAME AAR Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ सहा गोहिली जैन देरासरजी मूलनायक श्री नवफणा पार्श्वनाथजी ३२. मंडार मंडार जैन देरासरजी मूलनायक श्री शीतलनाथजी Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग १ सिरोही जिला PO 雞 DON मूलनायक श्री महावीर स्वामी मूलनायकजी की विशालकाय प्रतिमाजी है । यह प्राचीन नगरी थी। खुदाई करने पर अनेक मंदिरों के खंडहर दिखाई देते है। यहाँ दूसरां धर्मनाथ प्रभुजीका मंदिर है। जमीन में से मिले हुए काउस्सग्गीया श्री पार्श्वनाथजी और विमलनाथजी विशालकाय और दर्शनीय है विमलनाथ भगवान पर १२५९का लेख है । १९२० में जीर्णोद्धार कराने बाद श्री महावीर स्वामी की प्रतिष्ठा संपन्न हुई है। महान आ. श्री वृद्धवादी सूरीश्वरजी की यह जन्मभूमि है । उनका जन्म संवत ११४३ में हुआ था । सं. १२८७ में आबु देलवाडा की लावण्य वसही मंदिर के वार्षिक उत्सव कमिटि में यह गाँव का नाम है । आबुरोड से ५० कि.मी. दूर है आबूरोड डिसा की बस यहाँ होके जाती है । । *** अ लाख लाख वंदन अमारा महावीरने, ऋत 724 आंगणीये अवसर आनंदना. १ मूरति मनोहर देखी जिणंदनी, अंतर माने छे, S लाख लाख भवथी तराय; (मारा) हइडे हरख न माय, आंगणीये. २ देशना दीधी छे. तमे क्रोधी कौशिकने, ३३. कोरटाजी तीर्थ कोरटाजी तीर्थ जैन देरासरजी 20 घडी अथी आनंदनी; तार्यो तमोओ पाम्यो मुकितना पंथने; (प्रभु) कीधो तमोओ उपकार. आंगणीये.३ बाकुला वहोरीने तमे चंदनाने तारी, केवल दइने थया महां उपकारी; (प्रभु) तारो अमोने शी वार. आंगणीये. ४ राखो अमोने प्रभु शरणे तमारी, सेवकनी विनंती तमेलेज उर धारी; (मने) मोक्ष मारगडो देखाड. आंगणीये. ५ 西區 (३५९ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६०) मूलनायक श्री महावीर स्वामी यह मंदिर २५०० साल प्राचीन है। भगवान महावीर के बाद ७० साल पर यह मंदिर की प्रतिष्ठा उपकेश गच्छीय औशवंश के स्थापक पार्श्वनाथ संतानीय श्रीकेशी गणधर के प्रशिष्य और आ. श्री स्वयंसूरीश्वरजी म. के शिष्य श्री रत्नप्रभ सू. म. दो रूप धारण करके ओशिया और कोरटा दोनों स्थान पर अक ही मुहूर्त पर प्रतिष्ठा संपन्न करवाई थी । श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ सं. १०८१ में कवि धर्मपालने सत्यपूरीय महावीर महोत्सव में कोरटा तीर्थ का वर्णन मीलता है। १७२८ में यह तीर्थ उद्धार और मूल प्रतिमाजी लुप्त होने पर नई प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा संपन्न हुई है । यह प्रतिमा खंडित होने से सं. १९५९ में नई प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा श्री राजेन्द्र सू.म. ने वैशाख सुद १५ के दिन करवाई थी प्राचीन प्रतिमाजी मंदिर में बिराजमान है । सं. १२५२ में जाहड़ मंत्री द्वारा नाहडवसही बनाने का और आचार्यदेव वृद्धदेव सू.म. के वरदू हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न होने का लेख है। हाल में यह मंदिर नहीं है । गाँव में आदीनाथजी का पूराना मंदिर है। प्रतिमा भव्य है। जवाई बंद से २८ कि.मी. शिवगंज से ८ कि.मी. के अंतर पर है। धर्मशाला है। जी. पाली. ३४. ओर ओर तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग सिरोही जिला) मूलनायक श्री आदीश्वरजी शिलालेखमें ओड नाम है । अंबिकादेवी की मूर्ति में ११४१ का लेख है और भगवान महावीर का कार्योत्सर्ग प्रतिमा में सं.१२४२ का लेख है । पंद्रहवीं सदी में साधुचंद्र रचित चैत्य परिपाटी में महावीर स्वामी मूलनायक है । बाद में जीर्णोद्धार के समय पर आदीश्वरजी मूलनायक हुओ थे । प्रतिमाजी सुंदर और दर्शनीय है। धर्मशाला है । आबुरोड ६ कि.मी. दूर है। ** * **** ****** ***** ३५. भीमाना Kolkol6 Orite भीमाना तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी यह प्राचीन तीर्थ आबु के निकट है । ओरसे किंवरली होकर यहाँ आया जाता है । यहाँ से स्वरूपगंज निकट में है । मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी AR मस्टरमा VVV Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 北 沙南省诸省尚省尚省诸省尚古街市尚古街省尚尚古古古省诸 ※來來來槃來來來槃乘果 wwwwwww मूलनायक श्री आदीश्वरजी ३६. भारजा ३७. देलंदर श्री श्वेतांबर जैन तीर्थं दर्शन : भाग-१ 樂樂樂 樂樂版 मूलनायक श्री आदीश्वरजी यहाँ प्राचीन देरासर है । स्वरूपगंज से रोहिड़ा ६ कि.मी. । रोहिड़ा से भारजा ६ कि.मी. और वहाँ से आबु रोड १२ कि.मी. दूर है । बिच में किंवरली तीर्थ है । स्वरूपगंज से अंदर के रोड पर रोहिड़ा भारजा किंवरली तीर्थ आते है । श्री भारजा तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी 樂樂樂樂樂樂樂樂 देलंदर जैन देरासरजी 樂樂樂樂樂樂樂樂樂 【來來來來來來來來來來 मूलनायक श्री आदीश्वरजी यह प्राचीन मंदिर के स्तंभ पर सं. ११०१ का लेख हैं । अक हजार साल पहले का यह मंदिर है । दूसरा एक गादी में १३३१ 3 9.成功. 1 樂樂樂樂樂麻 樂樂 Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला ३८. आबु डेलवाड़ा तीर्थ आबु - देलवाड़ा विमल वराही मूलनायक श्री आदीश्वरजी (३६३ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ विमल वराही आदीश्वरजी जैन देरासरजी ००० प्राचीन नीलमणी के श्याम आदीश्वरजी भूमी से नीकले हुए २५०० वर्ष प्राचीन Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला श वृषभ हाथी मालाय चन्द्र Judaiy ध्वज कलश पका सरोवर क्षीरसमुद्र देलवाड़ा आबु मूलनायक श्री आदीश्वरजी विमान 43 motobf रत्नराशि अनि (३६४- ए |||||| Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 些柬樂喚來來來來來來來來來來來來來來來來 सीधारिशेण स्वामीजी 傘傘傘傘傘傘傘傘奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥察 U率傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘傘來來來來來來來來來來來來來來來醫 “ 。 些柬奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥來來來來來來來來喚 Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला 605099950 आबु - देलवाड़ा तीर्थ मंदिर समूह दृश्य (३६५ Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ EE) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ 參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 आबु - देलवाड़ा श्री पार्श्वनाथजी उतुंग जैन देरासरजी 中斷除缘缘缘券缘缘泰拳拳擊拳券泰券等券等券等券等券等券等券斷路斷券等券 壩斷路斷蜂蝶纷纷繁盤螺券擊紧拳纷繁纷斷纷纷縣紧器紧拳拳振斷经斷斷斷经 आबु - देलवाड़ा नक्काशी Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DOO 2.0 राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला (३६७ 666666666666666 मूलनायक श्री आदीश्वरजी की स्थापना की थी। विमलवसही एक अद्भुत मंदिर है । स्तंभ देलवाड़ा तीर्थ माउन्ट आबु पर है । और दूसरे पाँच मंदिरों के तोरण छत और द्वारों की नक्कासी देखते वहाँ से हील ने का मन नहीं होता। १ समूह में यह तीर्थ है। श्री विमलवसही में श्री आदीश्वरजी है श्री लूणवसही में श्री ऐसा ही भव्य मंदिर मंत्री श्री वस्तुपाल तेजपाल ने अपने भाई । नेमिनाथजी है । श्री पित्तलवसही में आदीश्वरजी है और लुणिंग की मूर्ति भराने की अंतिम इच्छासे यहां विमलवसही के श्रीविमलवसही के आगे श्री महावीर स्वामी का देरासर है और सामने बावन जिनालय युक्त लुणिंग वसही बनाई है। उसमें सं खतरवसही में उत्तुंग ३ मंझिल के चौमुखजीमें श्री पार्श्वनाथजी है । १२८७ फाल्गुन वद ७ को नागेन्द्र गच्छाचार्य श्री विजयसेन श्री विमलवसही और श्री लुणवसही देरासर बावन जिनालय है। सूरीश्वरजी म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न कराई थी। इस और अद्वितीय नक्काशी है । जो सारी दुनिया में विख्यात है। मंदिर में तेराह करोड़ पचपन लाख रुपये का खर्च किया था मूल मंदिर के द्वार निकट देराणी जेठानी के गोख अत्यंत सुक्ष्म है विमल मंत्रीश्वरने यहाँ मंदिर बनवाने के पहले कोई मंदिर नक्काशी वाले बनाये है । पीछे हस्तीशाला और कुटुंबीजनों की । विद्यमान न था इसलिये ब्राह्मनलोगने जमीन लेते समय विरोध मूर्तियाँ आदि भी बनाई गई है। मंदिर को देखते हम दंग रह जाते किया। अंबिका देवीने जमीन में आदीश्वरकी प्रतिमा है जैसा कहा हैं और अद्भुत ऐसा उद्गार निकलता है। विमल वसही और और नीलवर्णकी ७१ ईंच की प्रतिमा यहाँ चंपक वृक्ष के नीचे से लुणिंग वसही वे दुनियाभर के अद्भुत कलायुक्त मंदिर है। प्रगट हुई और विरोध बंध हो गया । यह प्रतिमा विमल वसही की भमती में है। यह प्रतिमा श्री भरतमहाराजाने आबु पर चौमुख इस मंदिर को सं. १३६८ में अल्लाउदीन खिलजीने क्षति जिनमंदिर बनाया था और बाद में इसमें बिराजमान किया होगा पहुचाइ था इसका उद्धार १० साल बाद चद्रासह क ज्यष्ठ पुत्र... और पीछे धरतिकंप से हो सकता है कि यह सारा मंदिर नष्ट हुआ श्रेष्ठी पेथड़शाहने करवाया था। होगा । यह प्रतिमा बहुत प्राचीन और २५०० साल पूरानी मानी तिसरा मंदिर पित्तल वसही है । उसमें भीमाशाहने मंदिर जाती है। श्रुतकेवली से भद्रबाहुस्वामी रचित बृहतकल्प सूत्र में यह बनाकर धातु के परिकर युक्त श्री ऋषभदेव प्रभुंजी बिराजमान तीर्थ का निर्देष है। इसलिये यह तीर्थ प्राचीन माना जाता है। किये है । यह बावन जिनालय जैसा है। पर हाल में अलग अलग विमलशाह मंत्री गुर्जरनरेश भीमदेव के मंत्री और सेनापति थे मंदिर है । मंडप में भव्य प्रतिमा है । जो महीधर प्रासादो में से बाद में चंद्रावती के दंडनायक बने थे उन्होंने धर्मघोष सू.म. के होने की संभवना है । इसके बारे में पूरे ईतिहास की जानकारी पास युद्ध अदि किये थे उसका प्रायश्चित मांगा । पू. श्रीने इस नहीं हुई है । जीस से ऐसा भी कहा जाता है की वि. सं.१५२५ में प्रायश्चित में आबु तीर्थ का उद्धार करने को कहा। अहमदाबाद के सुलतान महंमद बेगड़ा के मंत्री सुंदर और गदा ने यह पित्तलहर मंदिर का निर्माण किया है । में जब, २०३७ में विमलशाहने अपनी पत्नी श्रीदेवी की सलाह से और विनिमय आबु गया उस समय पेढी की बुक में भीमाशाह का ईतिहास पण से पानी की तरह द्रव्य खर्च किया, द्रव्य बिछाकर जमीन खरीद उपलब्ध नहीं है । यह मैनें पढ़ा और अचलगढ गये वहाँ तलहटी की १५०० कारीगर काम में लगाये थे और नक्काशी करते समय में पांडवो का अचलेश्वर मंदिर भूमि में से निकला है । उसे देखते जो आरस का भूका नीचे गीरे उसके भारोभार सोना अखंडित के । उसमें श्रावकों की मूर्तियाँ देखी और उसमें भीमाशाह आदि के लिये और खंडित के लिये चांदी दी जाती थी । ईस मंदिर के नाम पढ़कर पेढी में उसकी नोंध करवाई थी महाराणा प्रताप को निर्माण में उस समय १८ करोड़ त्रेपन लाख रूपये खर्च किया था । मदद करनेवाले भामाशाह यही थे ऐसा कहा जाता है । परंतु यह वि. सं. १०८८ में श्री आदीश्वरजी आदि बावन जिनालय की बात संशोधन की है। प्रतिष्ठा आ. श्री धर्मघोष सू.म. के वरद् हस्तों से संपन्न की थी। विमल वसही का जीर्णोद्धार उनके वंशज मंत्रीश्री पृथ्वीपाल ने विमल वसही के आगे छोटासा श्री महावीर स्वामी का मंदिर १२०४ में करवाया था । सं. १३६८ में अलाउदिन खीलजी ने इस है । संकुल के प्रवेशद्वार की बायें और तीन मंझिला उत्तुंग खतर मंदिर को नुकशान किया था इसका उद्धार मंदोर के शेठ गोसन वसही मंदिर है जीसे कारीगरों ने बनाया है और भव्य कला उसमें तथ भीमा के भाइओं के पुत्र धनसिंह महनसिंह और उनके पुत्रो ने भी उतारी है. वह खारे पथ्थर का है । विमल वसही और लुणिंग कराया था । वि. सं. १३७८ में वैशाख सुद-९-के दिन श्री ज्ञान वा वसही के बावन जिनालय आरस पहाण के है । सहा कर सू. म. के. वरद हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न करवाई थी । विमलशाह आबु की आबोहवा बहुत ही खुशनुमा होने के कारण बहुत ने मंदिर के साथ हस्तीशाला बनाई थी और ७२ जिनों की माताओं सारे लोग यहाँ आते है और इन सब मंदिरों को देखकर उनकी ప్రాంతం తాతారాం తాం తాంత్రం రాత్రి 60 Coo Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ श्री श्वेत यात्रा सफल है । जैसा अहेसास होता है और पहले के जमाने के सांकलचंद परिवार ह. श्री हेमचंदभाई छबीलदास द्वारा यह वर्षगांठ लोगों की श्रध्धा भक्ति की अनुमोदना करके आश्चर्य चक्ति हो की अद्वितीय उत्साह के साथ उत्सव मनाया जाता है । दोनों बावन जाते है। यहाँ धर्मशाला भोजनशाला आदि है। पेढी की व्यवस्था जिनालयों और देरीओं को ध्वजा आरोपण होता है और इस लिये सुंदर है। वहाँ सेंकडों कुटुंब आते है। आबुरोड से देलवाडा ३४ कि.मी. है। आयुरोड से तलहटी ७ कि.मी. दूर है। आबुरोड से माउन्ट आबु ३२ कि.मी. है। देलवाडा २ कि.मी. और वहाँ से अचलगढ तीर्थ कि.मी. है। ५ यह सब देरासरों का जीर्णोद्धार शेठ श्री आनंदजी कल्याणजी की पेढी द्वारा शेठ श्री कस्तुरभाई लालभाई ने दक्षता और मार्गदर्शन अनुसार मूल कलामें भेद न रहे। इस बात को ध्यान में रखकर कराया है। सब जिन मंदिरों की और मूर्तियों की प्रतिष्ठा अत्यंत भव्य महोत्सव पूर्वक परम शासन प्रभावक तपागच्छ गणाधिश पू. आचार्य देव श्रीमद् विजयरामचंद्र सू. महाराजा की "पूनित छाया में 'उनके वरद् हस्तों से सेंकडो साधु-साध्वी और जारों श्रावक-श्राविका की हाजरी में वि. सं. २०३४ के ज्येष्ठ सुद ४ के दिन करवाई है और वह अद्भुत प्रसंग को देखनेवाले उसे भूल न शकेंगे। इतना ही नहीं परंतु शेठ श्री छबीलदास दर्शन यह स्थल हवा खाने का स्थल बन चुका है। अब यहाँ होटल रहेणांक सब कुछ होने के कारण यह स्थल पहले जैसा शांत नहीं है । जिनमंदिर प्रवासीओं के लिए दो पहर १२ से ६ बजे तक दर्शन के लिये खुले रहते है । ३९. आबु-अचलगढ तीर्थ शेठ श्री कल्याणजी परमानंदजी पेढी मु. देलवाडा पो. माउन्ट आबु ३०७५०१. जि. सिरोही. फोन मा. आबु- २४ आबु- अचलगढ़ जैन देरासरजी Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला (३६९ मूलनायक श्री आदीश्वरजी म मूलनायक श्री आदीश्वरजी पंच धातु के चौमुख प्रतिमाजी है । उंचाई ५९ ईंच लगभग है। शेठश्री अचलसिंह अमरसिंह जैन श्वेतांबर पेढी-अचलगढ पो. ओरिया (मा. आबु) जी. सिरोही-राजस्थान | आबु पर्वत के सब से उंचे शिखर (उंची चोटी) पर राणा कुंभाने बनाये हुए किल्ले में समुद्र की सपाटी से १४०२ मीटर उंचाई पर है १ श्री आदीनाथ भगवान २ श्री शांतिनाथ भगवान ३ श्री कुंथुनाथ भगवान और अन्य मंदिर है श्री आदीनाथ भगवान का यह प्रसिध्ध चौमुखी मंदिर का निर्माण राणकपुर तीर्थ के निर्माता शेठ श्री धरणाशाह के बड़े भाई रत्नाशाह के पौत्र और बादशाह ग्यासुद्दिन के महामंत्री शूरवीर-दानवीर श्री सहसा शाहने पू.आ.श्री सुमति सू. म. से उपदेश पाकर उस समय यहाँ के | महाराजा की अनुमति लेकर बनवाया था वि. सं. १५६६ फाल्गुन शु.१० के दिन १२० मन वजन की विशालकाय धातु के श्री आदीनाथ प्रभुजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा पू.आ. श्री जनकल्याण सू. म. के शुभ हस्तों से संपन्न हुई । चौमुखी में पूर्व दिशा के श्री आदीश्वर प्रभुजी और दक्षिण दिशा के श्री शांतिनाथ प्रभुजी की प्रतिमाएं डुंगरपुर के राजा सोमदास के मंत्री ओसवाल श्रेष्ठी श्री साल्हाशाह ने १५१८ में पू. आ. श्री लक्ष्मीसागर सू. म. के वरद हस्तों से अंजनशलाका प्रतिष्ठा करवाई थी। LAM SC Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७०) सादर श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ PRASARAMAVASHमामा R . और पश्चिम दिशा के श्री आदीनाथजी की प्रतिमा भी श्री RI साल्हाशाह आदीने भरवाई थी और वि. सं. १५२९ में उसी पू. | आ. श्री के शुभ हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न करवाई थी मूलनायक की BEI दोनों ओर धातु के काउस्सग्गीया वि. सं. ११३४ में भरवाये थे वे दोनों साचोर मंदिर के लिये बनी हुई प्रतिमाजी का लेख है । दूसरी मंझिल पर भी चार धातु के प्रतिमाजी है। पूर्व दिशा के अलौकिक प्रतिमाजी २१०० वर्ष प्राचीन है । वैसा माना जाता है। यहाँ लगभग १८ जीतनी धातु की प्रतिमाएं है जीसका वजन १४४४ मन माना जाता है । प्रतिमाजी चमकदार और अति मनोहर है। कहा जाता है की यह सब प्रतिमाएं डुंगरपुर के कारीगरों द्वारा बनी हुई है। विशालकाय उंचा मंदिर है । उपर से पूर्व दिशाका विशाल प्रदेश मनोहर लगता है । यह सब प्रतिमाजी अलग अलग समय पर बनी हुई है। फीर भी सब समान दिखाई देती है। दूसरी मंझिल पर पूर्व दिशा के धातु की प्रतिमाजी प्राचीन और अति भव्य है । तलहटी से ४०० मीटर की ऊंचाई पर यह मंदिर आते है। डोली मीलती है । तलहटी के पहले रास्तेमें श्री कुमारपाल महाराजा का प्राचीन और भव्य मंदिर है यह थोडा अंदर की ओर है पूछने पर जा सकते है । बीच में ओरीयामें जिनमंदिर है पर यहाँ पहले तलाश करना जस्री है तब ही दर्शन हो सकते है । निकट में धर्मशाला और भोजनशाला है। आबु रोड और आरणे के बीच में भी धर्मशाला है मा. आबु की तलहटी में शांति आश्रम में रहने की और साधु-साध्वी को उतरने की सुविधा है । मानपुर में देरासर आदी है। आबु रोड स्टेशन से ३७ कि.मी. है । वहाँ से मा. आबु देलवाड़ा होकर यहाँ आ सकते हैं । आबु रोड से देलवाडा बस जाती है । टेक्षी भी मिलती है-आबु-देलवाडा बड़ा तीर्थ है । यहाँ से ३ कि.मी. अरवली पर्वत का सबसे बड़ा शिखर गिना जाता है । वहाँ देरी में श्री आदीनाथ प्रभुजी की पादूकाएं है - अचलगढ़ तलहटी मा.आबु से १० कि.मी. दूर है और देलवाडा से ७ कि.मी. दूर है। ARAHASRARHAARRASRANAMARA ROCKRONAROKHORRORAMAHAKARI * * * * * अचलगढ देरासरजी की नक्काशी लावला अचलगढ नीचे मूलनायक श्री शांतिनाथजी SHARMA Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला 1110112112121079101109010 पाली जील्ला राष्ट्रीय घोरी मार्ग राज्य घोरी मार्ग रेल्वे मार्ग क्रम 9. २. ३. ४. ६. ७. ८. ९. खीमेल 金 तखतगढ़ खीवांदी कोरटाजी जालोर जील्ला गाँव बीजापुर हथंडी तीर्थ सेवाडी वांकली १०. बाली 'फालना 地 址 'सेसली लुणावा भद्रंकरनगर (लुणावा) सेसली बोया सादडी मुंडारा तीर्थ सीरोही जील्ला सांडेराव खुडालासेवाडी 址 राणी जाखोडा, 1 वाली • जोधपुर जोल्ला बीजोवा पाना नं. ३७२ ३७२ ३७४ ३७५ ३७५ ३७६ ३७७ ३७८ ३७९ ३८० लुणावा 樂樂樂樂樂樂樂 पाली 金 मंडारा I नाडोल कीर्ति स्तंभ ᄑ सादडी वरकाणा भद्रकरनगर ि हथंडी (राता महावीर) मुछाला महावीर राणकपुर & कम ११. १२. १३. राजपुर १४. १५. देसुरी १६. १७. १८. १९. २०. देसुरी घाणेराव गाँव मुछाला महावीर घाणेराव राणकपुर तीर्थ नाइलाइ तीर्थ नाडोल तीर्थ वरकाणाजी तीर्थ बीजोवा तीर्थ राणी तीर्थ • बोया नाडलाइ रायपुर नागोर जील्ला जैनरण उदेपुर जील्ला पाना नं. ३८१ ३८३ ३८४ ३८५ ३८८ ३८९ ३९० ३९२ ३९३ ३९४ ३०. बांकली कम गाँव २१. खीमेल २२. फालना २३. खुडाला २४. सांडेराव २५. २६. २७. २८. २९. खीवान्दी तखतगढ़ जाखोडा अजमेर जील्ला 樂樂樂麻 पाना नं. ३९५ ३९६ ३९७ ३९८ ३९९ ४०० पाली महावीर तीर्थ (कोरटाजी) ४०२ ४०० ४०३ (3.9 ※ 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 ४०४ (३७१ ※來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來照 Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-2 Con 3 - 0 - 6 100 566666 १. बीजापुर °C A बीजापुर जैन देरासरजी श्रीसंभवनाथजी मूलनायक श्री संभवनाथजी ५०० से ६०० साल पूराना यह मंदिर है । मूलनायक संप्रति राजा के समय का है । बाजु में श्री चंद्रप्रभु स्वामी का देरासरजी है जैनों के १४० घर है । ४ उपाश्रय है आयंबील खाता और जैन पाठशाला भी है। मूलनायक श्री संभवनाथजी PROINNAR NAAAAAAAAAAAAA MAYAWAIHIDANANANAYAAAAAAAAAAAAAAAAAADAANIYA S २. हथुडी तीर्थ 'oooo मूलनायक श्री महावीर स्वामी यहाँ पहले हस्तीकुंडी नामक नगरी थी आज तो सीर्फ छोटासा : गाँव है । यहाँ के जैन बाली की ओर गये है, श्री राते महावीर स्वामी मूलनायक है । जो २००० साल पूराने है। यह देरासर भी २००० साल पूराना है | दो बडी धर्मशाला है । जैन भोजनशाला और उपाश्रय भी है | श्री हथुडी राता महावीर स्वामी मंदिर का निर्माण वीरदेव श्रेष्ठी द्वारा वि.सं. ३७० में हुआ था । प्रथम जीर्णोद्धार जैन राजपुत राजाओने वि.सं. ९९६ में करवाया था । वैसा लेख गर्भगृह में से निकला था । यह बार साख पर लिखा है । गर्भगृह की आगे की चौकी के स्तंभ में वि.स. १३३५-३६ का लेख मीला है । रंगमंडप में विजयानंद सू. म. की बडी मूर्ति है। हथुडी जैन देरासरजी नीचे भूयहरामें ३.१/२ से ४ फूट की श्री महावीर स्वामी की गुलाबी रंग की मूर्ति है और गले में माणेक की माला दो आंटेवाली मूर्ति के साथ है । यह सुंदर और दर्शनीय है । SSSSSSSSSSS Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला (३७३ अंतिम जीर्णोध्धार विजयानंद सू. म. के परिवार के आ. श्री विजय वल्लभ सू. म. के वरद् हस्तों से वि.सं. २००६ के मृगशीर्ष मास की सुद ६ के दिन संपन्न हुआ था । अंजन प्रतिष्ठा हुई थी। भमति के आगे चौक में श्री यशोभद्र सू. म. की मूर्ति देरी में है। जीस के पर सं. १३४४ के महा सुद ११ का लेख है | उसकी आगे नव आचार्य आदि के पादुका और छत्रियाँ है । देरासर के पीछे के भाग में देवी चक्रेश्वरी की मूर्ति पर सं. १९५९ का लेख है । पून्य सागरजी के शिष्य मुनि श्री पद्म सागरजी ने प्रतिष्ठित किया है। इसके अलावा प्राचीन देरासर के अवशेष दिवाल पर लगाया है और इस के नीचे दिवाल में लगाया हुआ वि. सं.१७२२ का लेख है । एक कमरे में पुरानी हथुडी नगरी के अवशेष रखे गये हैं। जीसमें वि. सं. १०५३ का प्रबासण है। विशाल जिनालय करने के लिये भमती के वि. सं. ९७३, ९९६, १०५३ का शिलालेख यहाँ से नीकाल कर अजमेर के संग्रहस्थान में ले गये है । इस बात का उल्लेख दरवाजे पर प्रवेश करते समय उपर लिखा है । राता महावीर की मूर्ति लाल चूनावाली पहले दिवाल बनाकर बाद में मूर्ति की नक्काशी की गई है । नीचे भूयहरे में महावीर स्वामी की मूर्ति की (नई) प्रतिष्ठा वि. सं. २००६ में संपन्न हुई है । सं. २००६ में गादी सहित राता महावीर को उसी जगे पर आधार दे कर दो मास तक अध्धर रखकर नीचे ३० फूट का खड़ा गाड़कर उसके नीचे से पूराना पबासन निकाल कर उसके पर मूलनायक पहले की तरह उसी जगह पर भगवान को बिठाए गये हैं। प्राचीन हथुडी नगरी के अवशेषों जैन संघ की जगा के बाहर आज भी मौजुद है । हाल में विशाल समवसरण मंदिर पू.मु. श्री अरुणविजयजी म. के उपदेश से बने हैं । उनकी जन्मभूमि विजापुर है । पू. पं. श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर और पू.आ. श्री कलापूर्ण सू.म.की निश्रामें सं. २०२९-३१-३२ में उपाधान हुए तब से यह तीर्थ ज्यादा प्रचार में आया है | बाली से नाणा जाते समय सेवाडी होकर बिजापुर गाँव से ३ कि.मी. के अंतर पर है। VIRAIL लालरंग के महावीर मँयहरे में महावीर स्वामी Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७४) मूलनायक श्री शांतिनाथजी सेवाडी जैन देरासरजी ३. सेवाडी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ महावीर प्राचीन मूलनायक कम चार स्वामीजी AUR पूराने मूलनायक श्री महावीर स्वामी मूलनायक श्री शेतिनाथजी यह तीर्थ की स्थापना सं. ११७२ में हुई है । प्रतिमाएं भव्य है यह १३ वी सदी की है। सं. २०१४ फाल्गुन सु. १३ के दिन श्री शांतिनाथजी बावन जिनालय का जीर्णोध्यार हुआ है यह प्रतिमाएं संप्रति राजा के समय की है। पूराने मूलनायक महावीर स्वामी रंगमंडप में है और यशोभद्र सूरी की बड़ी मूर्ति रंगमंडप में है जीसमें सं. १२४४ का लेख है। भमति में मूलनायक मुनिसुव्रतस्वामी की श्याम मूर्ति संप्रति राजा के समय की भव्य और देदीप्यमान है । यह देरासर २००० साल पूराना है । जैनों के ४०० घर है । दो उपाश्रय और जैन धर्मशाला है । बाली से नाणा के रास्ते पर १६ कि.मी. के अंतर पर है । (राता) लाल महावीर स्वामी तीर्थ भी इसी रास्ते पर है । दूसरा देरासर बहार के भाग में है ।। चालवल Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला 行街省尚省油省尚古街古古面省南市尚湖尚诚尚古尚诚尚 樂樂樂樂樂樂樂樂樂 मूलनायक श्री आदीश्वरजी C 樂樂樂 B. Buran मूलनायक श्री नागेश्वर पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री चौमुखजी आदीश्वरजी श्री चौमुखजी आदीश्वरका देरासर १०० साल पूराना है । 4. Eguren) लुणावा जैन देरासरजी MeGene Coil (Riseen) (304 樂味烧 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 VB) - भद्रंकरनगर जैन देरासरजी 樂樂樂敏敏敏敏敏敏敏敏樂敏敏敏樂樂麻 Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७६) KOCA मूलनायक श्री नागेश्वर पार्श्वनाथजी यह खड़ी प्रतिमाजी ९९ ईंच की है। इस तीर्थ की प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजय प्रद्योतन सू.म. और पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सू. म. की निश्रा में हुई है । गोलवाड पंचतीर्थो में इस नये तीर्थ का समावेश किया गया है भव्य तीर्थ है। भोजनशाला, धर्मशाला की सुविधा है । यह तीर्थ पाली- लुणावा रास्ते पर है। लुणावा से १.१ ।। (ढ) कि.मी. के अंतर है। लुणावा फोन नं. २८ : Anta MAPID) 124 1 मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी तुं छे गुणनो दरीयो प्रभुजी अवगुणे हुं भरीयो छु, तुं क्षमानो अदभुतसागर कषाय कटुंबे वरीयो जगदीश्वर तुं छे निर्विकारी विकारोधी आवरीयो कुं ६. सेसली तारी द्रष्टिना ओक कीरणथी ज्ञान गुणे पांगरीयो छु...... मागुं अक ज भवोभव मलजो तुज चरणोनी सेवा, देव निरंजन निराकार ने निस्पृह मलजो अवा भवना बंधन तूटया जेना देव तमे छो अवा, श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ भवना बंधन तोडी नाखवा मांगु तारी सेवा..... सेसली तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री दादा पार्श्वनाथजी सेसली गाँव में श्री दादा पार्श्वनाथजीका प्राचीन देरासर है । रंगमंडप में नीचे सं. ११८७ का लेख है। एक दूसरा लेख वि. सं. १४९३ का है। यहाँ जैनों के घर बिलकुल नहीं है। रावल पूजारी आठ पेढी से पूजा करते है । यह देरासर ९०० साल पूराना है । इसका वहीवट वाली जैन संघ द्वारा होता है। दादा पार्श्वनाथजी का मुख हसता हुआ प्रसन्न है। मूर्ति चमत्कारिक है । भद्रंकरनगर १ कि.मी. है। लुणावा ३ कि.मी. पर है। बाली ३ कि.मी. पर है । फालना १० कि.मी. पर है। मीठड़ी नदी के तट पर है। Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (३७७ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला 警警觉參參參參參參參參參參參參參參參參參 ७. बोया मूलनायक श्री शांतिनाथजी बोया जैन देरासरजी 搬搬搬搬家搬家搬家搬家躲拳盤拳擊拳纷纷纷鄧蝦蟹蟹斷 耶券频緣券餘缘聚缘纷纷拳盤拳拳拳龄杀拳紧紧紧紧券券券券察 मूलंनायक श्री शांतिनाथजी बोया गाँव में श्री शांतिनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १८८३ में हुई है बहुत सारे लेख है। रंगमंडप मे दाहिनी और परिकर साथ मूर्ति में सं. १२८६ का लेख है । काउस्सग्गिया आदीनाथ में सं. १२५१ का लेख है । निकट में पूराने मूलनायक पार्श्वनाथजी के आगे धातु के चोविसी पर सं. १९४ का लेख है । रंगमंडप में दाहिनी ओर श्री वासुपूज्य स्वामी में सं. १२८६ अषाढ सुद ४ का लेख है । यह देरासर २५०० साल पूराना है । जैनों के एक भी घर नहीं है । जैन धर्मशाला है । बोया गाँव में रंगमंडप में श्री पार्श्वनाथजी है उनकी नाभी में से हररोज सवेरे १० बजे अमी झरता है । वि. सं. १२०० तक पार्श्वनाथजी मूलनायक थे । नीचे भूयहरा था १२ फूट जमीन में दिवाले हैं । पहले बावन जिनालय थे उसका एक अनुमान है । बोया का पूराना नाम बहुविया सं. १२५१ तक था उसके पहले उसका नाम बरवा था। भवि भावे देरासर आवो, जिणंदवर जय बोलो; पछी पूजन करी शुभ भावे, ह्रदयपट खोलोने....१ (साखी) शिवपुर जिनथी मागजो, ___ मागी भवनो अंत; लाख चोराशी वारवा, कयारे थइशुं अमे प्रभु संत... भवि ओम बोलोने भवि...२ (साखी) मोघी मानव जींदगी, मोंघो प्रभुनो जाप; जपी चित्तथी दूर करो, तमे कोटी जनमनां पाप... हृदय पट खोलोने..भवि..३ (साखी) तुं छे मारो साहिबो, अने हुं छु तारो दास; दीनानाथ मुज पापीने, तमे आपोने शिवपुर वास... हृदय पट खोलोने...भवि ४ (साखी) छाणी गामनो राजीयो, नामे शान्ति जिणंद; आत्म कमलमां ध्यावतां, शुद्ध मले लब्धिनो वृंद... हृदय पट खोलोने भवि...५ 鄧肇參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३७८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग ८. सादडी. सादडी जैन देरासरजी मूलनायक श्री शांतिनाथजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी सादडी गाँव में प्रवेश करते ही श्री पार्श्वनाथ भगवान का सादडी गाँव में श्री पार्श्वनाथजी का प्राचीन शिखरबंध देरासर शिखर बंध देरासर आता है । श्री शांतिनाथजी के नीचे सं.२००६ है। राणकपुर का देरासर बंधाने के समय यह देरासर बना हुआ है। का लेख है । दोनो बाजु की डेरीओं मे पादुकाजी है। बहुत सी प्रतिमाएं संप्रति राजा के समय की है । एक प्रतिमाजी में मूलनायक श्री आदीश्वरजी सं. १६५३ का लेख है । रंगमंडप में एक परिकर पंचतीर्थी आरस सादडी बस स्टेन्ड की निकट में तीन देरासरजी है । श्री की है उस पर सं. १५०३ का लेख है और पार्श्वनाथजी की बाँये आदीश्वर देरासर में श्री आदीश्वर, श्री धर्मनाथ और श्री ओर परिकर पंचतीर्थी श्याम आरस के पार्श्वनाथजी संप्रति राजा पार्श्वनाथ तीन गर्भगृह में तीन मूलनायक प्राचीन संप्रति राजा के के समय के है शायद वे पूर्व मूलनायक भी होंगे ऐसा अनुमान समय के है । यह देरासरजी की प्रतिष्ठा सं. २०१५ में पू.आ. श्री किया जाता है । यह शिखरबंध देरासर ९०० साल पूराना है । वल्ल्भ सूरी म. के पट्टधर पू.आ. श्री समुद्र सू. म के वरद् हस्तों से अर्धबावन जिनालय है । एक मूर्ति के नीचे कि चेइन थी यह कुछ संपन्न हुई है । एक कंपाउन्ड में दो अलग देरासर शिखरबंदी है । नवीनसा लगता है । बाजु में शांतिनाथजी का घर देरासर है। दूसरे देरासर के मूलनायक आदीश्वर संप्रति राजा के समय के है । उपाश्रय में श्री माणीभद्र वीर है । श्री महावीर स्वामी का तीसरा चौमुखजी आदीनाथजीका गुंबजवाला है । प्रतिष्ठा सं. समवसरण मंदिर नया है । वि. सं. २०३५ में पू.आ. श्री सुशील २००५ में संपन्न हुई थी। सू. म. के वरद् हस्तों से संपन्न हुई है | श्री महावीर स्वामी का इनमे से चौथा नागेश्वर पार्श्वनाथजी देरासर श्री बाबुलालजी बडे होल में छोटा तीन शिखरवाला काच का देरासर नया है । रांकाने पू.आ. श्री विजयरामचन्द्र सू. म. के उपदेश से बनाया था । मूलनायक की सं. २०३६ में प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । जैन सं. २०४९ में पू.आ. श्री इन्द्रदिन सू. म. के वरद् हस्तों से पावापुरी मु. सादडी । यहाँ से राणकपुर १० कि.मी. पर है । प्रतिष्ठा संपन्न हुई है। निकट में फालना स्टेशन है। MONNOVE MONOMOVE WOW NO VO NO Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला, (३७९ ९. मुंडारा तीर्थ मूलनायक श्री शांतिनाथजी श्री शांतिनाथजी का मंदिर संप्रति राजा के समय का है । २००९ में जिर्णोध्धार हुआ है । २४ देरी में भमति में प्रायः सब भगवान संप्रति राजा के समय के है । जैनों के ४०० घर थे । जीस में आज सिर्फ १०० घर रह गये है । कुल बस्ती (आबादी) ८ हजार की है। ५ जैन धर्मशाला है । ५ उपाश्रय है । २ आयंबीलशाला है। गाँव की बहार जंगल में श्री आदीश्वरजी का शिखरबंध मंदिर है । विशाल धार्मिक जगा है । प्रतिष्ठा आज से १५० साल पहले हुई थी जिर्णोद्धार हुआ है। श्री पार्श्वनाथ देरासर है । उसकी प्रतिष्ठा ७५ साल पहले हुई थी. 4-मुलनायक श्री शांतिनाथजी मुंडारा तीर्थ जैन देरासरजी Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८०) मूलनायक श्री विमलनाथजी १०. बाली मूलनायक श्री विमलनाथजी बाली का श्री विमलनाथजी मंदिर शिखरबंध है । ५०० साल पूराना विशाल और भव्य है । २० साल पहले जिर्णोधार हुआ था। पहली मंझिल पर भदेवजी मूलनायक है। दूसरी मंझिल पर श्री शीतलनाथ मूलनायक है। भूयहरे में श्री शीतलनाथजी प्राचीन है । इसके पहले श्री ऋषभदेवजी मूलनायक थे । जिर्णोध्धार होने के समय विमलनाथजीकी पधरामणी की थी । भूयहरे में ४ बड़ी प्रतिमाजी है । १. राता महावीर, २. श्री सुपार्श्वनाथजी, ३. वासुपूज्य स्वामी, ४. नाम नहीं है बहुत पुराना है मंदिरका जिर्णोध्धार वि. सं. १०४० में हुआ था। हाल के मूलनायक श्री विमलनाथजी आदि की वि.सं. २००६ मे बाली के श्रावकोने प्रतिष्ठा की थी। तीन शिखरबंध देरासर है । १ विमलनाथ । २ मनमोहन पार्श्वनाथ ३ चंद्रप्रभस्वामी ४ घर देरासरजी धर्मनाथ भगवान उपाश्रय । ५ घर देरासर श्री सुपार्श्वनाथ प्राचीन धातु के परिकर के साथ । ६ संभवनाथजी विमलनाथजी के देरासर में सं. ३०० का लेख है। सबसे पहले मूलनायक श्री शांतिनाथजी बाद में श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ मूलनायक श्री मनमोहन पार्श्वनाथजी (२५०० साल पुराना ) आदीश्वरजी और हाल में विमलनाथजी है। विमलनाथजी के पहले आदीश्वर मूलनायक थे जीस की प्रतिष्ठा श्री विजयवीर सू. म. ने की थी । बावन जिनालय था परंतु भमति में मूर्ति को पधराया नहीं था । परंतु संघ में कुछ गरबड़ और अशांति का वातावरण होने से सं. २००६ में श्री विमलनाथजीकी प्रतिष्ठा संपन्न हुई और देरासर फीरसे बनाया गया । यह गाँव २००० साल पूराना है। पार्श्वनाथजी सेवा गावँ के तालाब में से निकले थे गाड़ा यहाँ आया और फीर देरासर का निर्माण किया और प्रतिष्ठा संपन्न हुई। यहाँ हाल में जैनों के १००० पर है ११ जैन उपाश्रय है । जैन पाठशाला चालु है । साधु और साध्वीजी को पढाने की एक पाठशाला भी है । जीस में पंडित हिंमतलालजी ने अच्छा काम किया है। वे गत में स्वर्ग को सिधार गये है। जैनों में संप की भावना भली भांति देखाई देती है। फालना ७ कि.मी. के अंतर पर है। फालना और सादड़ी के बिच में बाली आता है। फ्र 루 Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग २ पाली जिला 7 बाली श्री विमलनाथजी जैन देरासरजी 20 वीर तारुं नाम वहालुं लागे हो स्वाम, शिवसुख दाया, क्षत्रियकुंडमां जन्म्या जिणंदजी, दिगकुमरी हुलराया हो स्वाम शिव. १ माथाना मुगट आंखोना तारा, जन्मथी मेरु कंपा, हो स्वाम शिव. २ मित्रोनी साथे रमता रमतां, देवे भुजंग रूप ठाया, हो स्वाम शिव. ३ निर्भय नाथे भुजंग फेंकी, आमलकीडाने सोहाया, हो स्वाम. शिव. ४ | महावीर नाम देवनाथे त्यां दीधुं, चारित्र लइ प्रभु कर्मो हटाइ, पंडित विस्मय पाम्या, हो स्वाम. शिव. ५ | हिंसा मृषा चोरी मैथुन वारी, ११. मुछवाले महावीर केवलज्ञान प्रगटाया, हो स्वाम. शिव. ६ मुछवाले महावीर जैन देरासरजी आत्म कमलमां शैलेथी साधी, परिग्रह बूरा बताया हो स्वाम. शिव. ७ शिवलब्धि उपाया, हो स्वाम. शिव. ८ (३८१ PREME CONNEC 又 Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ARNERSHARMicke मूलनायक श्री मुछवाले महावीर स्वामी मूलनायक श्री मुछवाले महावीर स्वामी श्री मुछवाले महावीर स्वामी मूलनायक का २२ जिनालय सं. ६०० साल के पहले के हैं। श्री मुछवाले महावीर स्वामी की मूर्ति २५०० साल पहले के जीवित स्वामी है । भगवान की हैयाति के समय भराई गई है । पहले मात्र एक छोटा सा देरासर था । जो गर्भ गृह है । वह १५०० साल पहले का है । बाकी के सब विशाल जगा ६०० साल पहले की है । पर्वत की तलहटी में है। यहाँ से जंगल शुरु होता है । वातावरण शांत है। सं. २०२२ में शिखर और ध्वजा का प्रतिष्ठापन हुआ । यहाँ का वहीवट घाणेराव से होता है | बड़ी धर्मशाला और भोजनशाला है। मुछवाले महावीर की भमति में श्री विजय देव सू. म. की चरण पादुका है । जहाँ वि. स. १७१७ महा सुद १३ का लेख है । भमति में प्रभुजी की २१ देरीयाँ है । सं. २०२२ में वैशाख सुद ८ (अष्टमी) के दिन प्रतिष्ठा संपन्न हुई है । भमति में एक प्रतिमाजी पर सं. १२४५ का लेख है । प्रभुजी की दूसरी मूर्ति में सं. १७८६ का लेख है । एक आरस का वीश स्थानक और सिद्धचक्र है । भमति के दूसरे कोने में पादूका में सं. १७९४ माघ सुद १३ का लेख है। भमति में अंतिम श्री महावीर भगवान की ४ फूट की बड़ी प्रतिमा के नीचे सं. १९०३ का लेख है । शांतिसागर सूरिजी के वरद् हस्तों से अंजनविधि अमदावाद में हुई थी । परिकर प्राचीन है। श्री गौतम स्वामी की छबी सं. १९९२ में स्थापित की थी । बादमें श्री हिरविजय सू. म. के परिवार के श्री अनुयोगाचार्य श्री हितविजयजी की मूर्ति सं. २०२४ की है। यह स्थल राणकपुर से २२ कि.मी. और नाडलाई से १६ कि.मी. के अंतर पर है। _केशर की कटोरी बाल देखने के बाद महाराणा ने पूजारी जीसे पूछा क्या भगवान को मुछे हैं ? पूजारीजीने हसते हसते हा कह दी और कहा की भगवान समय समय पर अनुठा रूप धारण करते है । महाराणा ने यह मुछवाले महावीर भगवान के दर्शन कराने को कहा पूजारी संकट मे आ पड़ा तीन दिन तक अनन्य भक्ति की प्रभुजी को मुछे देखने में आई राणाजीने दर्शन किये मुळे रह गई उस समय से यह मुछवाले महावीर के नाम से प्रसिद्ध है। HONKANSHAIR PAIN प्यारा छो प्राण थकी वहाला जिणंदजी, जुओ छो शेनी वाट रे; वीर मारा पार उतारजो, मोक्षगामी भवथी उगारजो, प्यारा. अज्ञान दशामां बहु पाप कीधा छे, कहुं शुं मारी वात रे.१ झांझवाना वीर जल सरखा सुखोना मोहमां, आखर बन्यो बेहाल रे. वीर.२ रागी द्वेषी मारा झेरी जीवनमां, नेत्र अंजन अमी छांटरे. वीर. ३ वासनाना तत्त्वो बूरा मुंझवे छे अमने, काढो ए कर्मना काट रे. वीर. ४ डगले पगले प्रभु आपने संभालं, अंतरना जाय उचाट रे. वीर. ५ पतितपावन मारा जीवन उद्धारक, हैयामां वसजो नाथ रे. वीर. ६ दर्शन पूजन तारां भावे करीने, जावे सुयश मुक्तिघाट रे. वीर.७ ys usuys RASHA Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला ★ मूलनायक श्री आदीश्वरजी १२. घाणेराव मूलनायक श्री आदीश्वरजी यह आदीश्वरका मंदिर १ हजार साल पूर्वका प्राचीन है । शिखरबंध है । कुमारपाल के समय की मूर्ति है। श्री केशरियाजी आदीनाथ घर देरासर नया है। श्री धर्मनाथ का देरासर कुमारपाल के समय का है । श्री गोडीजी पार्श्वनाथ कुमारपाल के समय के है । दर्शनीय है | रंगमंडप में बहुत सी प्रतिमाएं शाके १६८० वि. सं. १०१४ की है। महावीर स्वामी और आदीश्वर परिकरयुक्त है। एक काउस्सग्गिया में सं. १०१४ शाके १६८० का लेख है । दो काउस्सग्गिया नेमनाथ, शांतिनाथ सब सं. १०४० के है। बहार के लेखमें भी उपरकी संवत लिखी है । जीरावला पार्श्वनाथ सं. २०२४ वैशाख सुद ६ सोमवार का लेख है । घाणेराव में ११ घाणेराव जैन देरासरजी (३८३ व भव शिखर बंध देरासरजी है। श्री कुंथुनाथजी वि. सं. १८७२ शाके १७३७ में प्रतिष्ठा की गई थी। यह बड़ा देरासर है। राणकपुर तीर्थ के निर्माता धरणाशाह के वंशज १४-१५ वीं पीढ़ी के यहाँ निवास करते है । श्री कीर्तिस्थंभ : घाणेराव श्री नव नाकोड़ा पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा श्री हिमाचल सू. म. के वरद हस्तों से सं. २०३८ महा सुद १४ के दिन संपन्न हुई थी। यह १२वां मंदिर है इसके सामने चौमुखजी पार्श्वनाथजी है श्री महावीर स्वामी चौमुखजी ९ मी मंझिल पर है और हिमाचल सू. म. की मूर्ति और नाकोड़ा भैरवजी ७ वीं मंझिल पर है। नया नाकोडा तीर्थ कहलाता है। व व व व व व व व व व व व भ भ भ भ भ भ भ . Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १३. राजपुर राजपुर जैन देरासरजी मूलनायक श्री शांतिनाथजी मूलनायक श्री शांतिनाथजी वहीवट कर्ता : आनंदजी कल्याणजी पीढ़ी - सादडी । जंगल में यहाँ पहले नगरी थी हाल प्राचीन अवशेष मिलते है । जहाँ श्री शांतिनाथजी का शिखरबंध सुंदर मंदिर है । देरासर मूल पहाड की ओर है । कुमारपाल के समय का है । रंगमंडप में चौमुखी के नीचे सं. १४७८ का लेख है । बाजु में धर्मशाला है । मूलनायक की दाहिने ओर भगवान के नीचे से सं. १४९३ का एक लेख है। अचिरानो नंदन दीनदयाळ, नमीये शान्ति तीर्थेशने, जेहनी कांति झाकझमाळ, नमीये शान्ति तीर्थेशने. विश्वसेनना कुले राजे, नंदन आ दीपक सम आजे, करुणासिन्धु त्रिभुवनपाळ, नमीये ०१ सोलमा जिनेन्द्र पंचम चक्री, मिथ्यामति त्यांथी गइ वक्री, अज्ञान तिमिरना ओ काळ, नमीये ०२ मृग लंछन सोहे चरणे, प्रभुजी आव्यो तारे शरणे, बनजो माहरा रखवाळ. नमीये ०३ मेरु स्नात्र हारुं करता, निर्मलता सुरेन्द्रो सौ वरता, हारी भक्ति करूं उजमाळ, नमीये ०४ वार्षिक दान तें दीधुं, मिथ्यामति माने नहि सीधुं, तुज पर मूके खोटा आळ. नमीये ०५ बचाव्यो पारेवो भारी, पूर्व भवे करुणा दिल लावी, तेमां पाप माने वाचाळ. नमीये ०६ विजय कपूरसूरीश्वर राया, अमृतसूरि सेवता पाया, वंदन जिनेन्द्र प्रभु त्रिकाळ. नमीये ०७ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला SAOOrto का A 5d चम कलश LOSSIP MOHIROM पासावर मानाय जारसमुद्र नमी CERET रत्नराशि १४. राणकपर तीर्थ मूलनायक श्री आदीश्वरजी Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 3CE) 樱 又 राणकपुर तीर्थ जैन देरासरजी राणकपुर दूसरे देरासरजी के मूलनायक Ä图 国 श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ राणकपुर घुम्मट 又一 i Pro 2 DSON DAD Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला (३८७ मूलनायक श्री चौमुखजी आदीश्वरजी परिकरवाली भव्य मूर्ति है और निकट में वैसी ही मूर्ति 5 राणकपुर मंडन चौमुखजी के आगे सं.१४९६ का एक लेख पार्श्वनाथजी की है और निकट में धरणाशाह की मूर्ति है। है । श्री धरणाशाहने यह मंदिर बनाया है । चौमुखजी मुख्य नलिनी गुल्म विमान (१२वाँ देवलोक) जैसा यह देरासर आदीश्वर पीछे मूर्ति कुमारपाल के वस्तुपाल-तेजपाल की है उसकी संघवी धरणाशाह के द्वारा बनाया गया हैं यह आदीश्वर देरासरजी आसपासमें चौथी मूर्ति भी उसी समय की है १४४४ स्थंभ की प्रतिष्ठा सं. १४९६ में आ. देवश्री सोमसुंदर सू.म. के वरद् कलायुक्त है विशाल मंदिर में नक्कासी अद्भुत है । दूसरे बहुत से हस्तों से संपन्न हुई थी । इसका जिर्णोद्धार शेठ श्री आनंदजी लेख है । सं. १४१६ के पहले के समय के कोई नहीं है। कल्याणजी की पीढी की ओरसे कीया गया है । और उसकी मुख्य देरासरजी श्री चौमुखजी आदीश्वरजी की भमति में ६ प्रतिष्ठा पू.आ. श्री उदयसूरीश्वरजी म. के हस्तों से सं. २००९ फूट के प्रभुजी की नीचे सं. १६७५ का लेख है । प्रतिमाजी फाल्गुन सुद पंचमी के दिन हुई थी । यहाँ सुपार्श्वनाथजी के नीचे । प्राचीन है । भमती के चौक में नंदीश्वर दीपकी आरस की दो बडी सं. १५१६ का लेख है । जो पढा जा शकता है। प्रतिमाएं है । वहाँ शेठ की खड़ी मूर्ति के नीचे सं. १७२३ का मूलनायक आदीश्वरजी की बहार दाहिनी बाजु में भमति में | लेख है । भमति में श्री शांतिनाथजीकी परिकरयुक्त बड़ी मूर्ति के अष्टापद तीर्थ मंदिर है । उसकी प्रतिष्ठा सं. १५३२ में आ. श्री नीचे सं. १५१३ का लेख है । नाक उपर से खंडित है । निकट में । लक्ष्मीसागर सू. म. ने की थी। हाथी पर शेठानीजी बैठे है। वैसी ही ३-३.१/२ फूट की श्री नेमनाथजी की मूर्ति में भी नाक सं. १७२८ का लेख है । यह मंदिर आ. श्री सोमसुंदर सू. म. के उपदेश से बंधाया गया है । यह मंदिर को बनानेवाले शेठ श्री की नोंक (अणी) पर खंडित जगा है जो मरम्मत की गई है। धरणाशाह नांदिया निवासी शेठ कुंवरपाल और शेठानी कामलदे के भमति की सभी छोटी बड़ी प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा सं. २००९ पुत्र थे और वे राणा कुंभा के शूरवीर मंत्री भी थे, उनको मंदिर फाल्गुन सुद ५ बुधवार के दिन प्रतिष्ठा संपन्न हुई है । भमति में बनाने की भावना जागृत हुई स्वप्न में नलिनी गुल्म विमान देखा श्री सुपार्श्वनाथ फणा सहित नीचे स्वस्तिक लांछन श्यामवर्ण और वैसा ही यह मंदिर बनवाया दीपा कलाकार ने उनकी सूचना अनुसार नकशे बनाये वे पसंद आये उसे सात मंझिला बनाने की योजनाथी पर अंत समय नजदिक है । वैसा महेसुस हुआ सिर्फ तीन मंझिल को पूर्ण किया । चार दिशाओं में चार महीधर प्रासाद चार शिखरों से जुड़ी हुई चार बड़ी देव कुलिकाये है। और ७६ शिखरबंध धजाओ के साथ छोटी देव कुलिकायें है ऐसे कुल मिलाकर ८४ देवकुलिकायें ८४ लाख जीवयोनी वाले भवसागर को पार करने के लिये है । चारों दिशा में ४ मेघनाद मंडप अद्वितीय है। १४४४ स्थंभ हैं और हर ओक स्थंभ के पास कोई भी एक देरी के भगवान दिखाई देते है । वैसी रचना बनाई गई है । हर एक स्थंभ विविध और भिन्न कारीगरी से युक्त है । स्थंभो की उंचाई ४० फूट की है और उसमें भी बहुत बारीक नक्काशी है। मेघमंडप एक से बढ़कर एक जैसी कला और कारीगरी पूर्ण है। चौथा मंडप उनके भाई रला शाह का है । भाई की उदात्त भावना को साकार करने के लिये सब से बढकर नक्काशी काम किया गया है । आबु की नक्काशी और राणकपुर की बांधनी - तारंगा की उंचाई और शत्रुजयका महिमा कहावत है २५०- २५० किलो के दो नरमादा घंट - जीसमें से " ओं" रणकार निकलता है जो राणकपुर नक्काशी सर्प सीडी तीन कि.मी. की दूरी पर से सूनाई देता है । यहाँ पार्श्वनाथ भगवान और नेमिनाथ भगवान का भी मंदिर है । गोलवाड़ पंचतीर्थी का यह मुख्य स्थल है। धर्मशाला और भोजनशाला की सुविधा है । सादडी से यह तीर्थ १० कि.मी. की दूरी पर है। 883 0.6000- % 69999. 0000000 0 Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८८) मूलनायक श्री विमलनाथजी देसुरी जैन देरासरजी १५. देसुरी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ दीवानीम COESRERABA दूसरे देरासरजी के मूलनायक श्री शांतिनाथजी मूलनायक श्री विमलनाथजी श्री विमलनाथजी का देरासरजी नया है । शांतिनाथजीका जिनमंदिर करीब ९०० साल पूराना है । ३ मूलनायक प्राचीन संप्रति राजा के समय का है । जैनों के करीब २८० घर है। कुल चार देरासरजी है। विमलनाथजी के पहले बाहर देरी में श्री चिंतामणी पार्श्वनाथजी मूलनायक थे जो बहुत चमत्कारिक है तिसरा श्री संभवनाथजी का देरासरजी है। चौथा श्री आदीनाथजी का देरासरजी है। भोजनशाला है । जे प्रभुना अवतारथी अवनिमां शांति बधे व्यापती, जे प्रभुनी सुप्रसन्न ने अमीभरी, दृष्टि दुःखो कापती; जे प्रभुए चरयौवने व्रत ग्रही, त्यागी बधी अंगना, ते तारक जिनदेवना चरणमां होजो सदा वंदना. Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला १६. नाडलाई तीर्थ ० ०.0000000 नाडलाई तीर्थ जैन देरासरजी 60000000000 नाडलाई शत्रुजय मूलनायक श्री आदिश्वरजी , नाडलाई गीरनारजी मूलनायक श्री नेमिनाथजी Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९०) शक हालघर मूलनायक श्री आदीश्वरश्री यह प्राचीन मंदिर है । वि. सं. १०१० में यति श्री यशोभद्र सू. म. गर्भद्वार और शिखरबंध देरासरजी केशीगर जोगी शीवमंदिर तपेश्वर महादेव यह दोनों गुड़ा बालोतरा की निकट में आया हुआ खेड़ा गाँव से आकाश मार्ग द्वारा लाये थे इसमें शर्त थी की जब कुकड़ा बोले उस समय मंदिर को छोड़ देने का । उस समय केशीगर जोगीने कुकडे की नकली आवाज निकाली इस लिये यशोभद्रसूरीने महावीर स्वामी जिनालय गाँव की बहार छोड़ दिया । और शीवमंदिर जब सच्चा कुकडा बोला उस समय गाँव के बीच में रखा इस प्रकार दोनों ने अपने अपने गुरु की आज्ञा अनुसार काम पूर्ण किया यह बनाव वि.स. १०१० में बना हुआ था । इसमें मूलनायक श्री महावीस्वामी थे श्री ऋषभदेव प्रभु को कब मूलनायक बनाये उसकी कोई साल मिलती नहीं है। २. श्री मुनिसुव्रत स्वामी घर देरासरजी की प्रतिष्ठा सं. २०२८ में हुई। पहले यह मंदिर निकट में नहीं था । ३. श्री अजितनाथ शिखरबंध देरासरजी । मुनिसुव्रतस्वामी के अलावा सब १० देरासर शिखरबंध है। ४. श्री नागफणा सुपार्श्वनाथजी का देरासरजी । इसके पहले मूलनायक प्राचीन पार्श्वनाथजी थे । ५. श्री शांतिनाथजी का मंदिर बहुत प्राचीन है । उसकी नक्काशी बहुत अद्भुत है। ६. श्री नेमिनाथजीक प्राचीन मंदिर है। बाफणा कुटुंब रो बनाया हुआ है । नारदजी ने इस गाँव बनाया था । यह गाँव F FE में श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्नने यह देरासर बनाया था । ८. ७. श्री सोगठीया पार्श्वनाथजीका प्राचीन देरासर चडालिया कुटुंब ने बनवाया था । यहाँ से शेत्रुंजय पर जा सकते है । श्री गोड़ीजी पार्श्वनाथजी का प्राचीन देरासर है। ९. श्री वासुपूज्यस्वामी का देरासर प्राचीन है । १०. श्री शत्रुंजय तीर्थ का प्राचीन देरासर पहाड़ पर है। ११. श्री गिरनार तीर्थ का प्राचीन देरासर सहसावन सहित पहाड मूलनायक श्री पद्मप्रभस्वामी मूलनायक श्री पद्मप्रभस्वामी की प्राचीन भव्य प्रतिमाजी है । देरासर भी बड़ा और विशाल है । मूलनायक के आगे श्री काउस्सग्गिया भगवान पर वि. सं. १२१५ वैशाख सुद १० का लेख है । और सं. १६८६ का अषाढ सुद ५ शुक्रवार का मूलनायक की नीचे लिखा हुआ लेख है । वैसे तो प्रतिमाजी काउस्सग्गिया और रंगमंडप में बहुत सारी प्रतिमाजी भगवान संप्रति और कुमारपाल राजा के समय की है झालोर के किले में से ४०० साल पहले श्री पद्मप्रभस्वामी को साये गये थे। पहले मूलनायक शांतिनाथजी थे २ श्री कुंथुनाथजी घर देरासर ३ श्री शांतिनाथजी और नेमिनाथजी देरासर श्री पद्मप्रभस्वामी के मंदिर में भूयहरा है। सब बंध है। कंपाउन्डमें अनंतनाथ दाहिने बाजु में श्री क श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ पर है दोनों पहाड़ पर गिरनार और शेत्रुंजय की रचना है। आने जाने मे करीब देढ घंटा लगता है । चढाव बहुत नहीं है। मूलनायक श्री आदीश्वरनाथजी सादड़ी के बहार राणकपुर देरासर जाते समय रास्तें में चोर डाकु और कुर प्राणीओं की तकलीफ के कारण यहाँ एक शेठने देरासर बनवाया । इसे बनानेवाले केसरीमलजी धारवाड़ वाले ने बनाया है। उनका परिवार यहाँ रहता है। धारवाड़ में भी रहते है । करीब ५०० साल पहले यह देरासरजी बनवाया गया हैं। यहाँ के पुजारी देवाजी रावल ने कहा कि नाडलाई ट्रेकरी पर आदीश्वरजी का देरासर है । वह देरासरजी खेड़ा से उठाकर यशोभद्रसू. म. ने नाइलाई टेकरी पर प्रतिष्ठा की २००० साल पूराना पद्मप्रभ स्वामी का देरासरजी है । नेमिनाथजी का देरासर भी पूराना है । भक्तामर स्तवन बनानेवाले मानतुंग सूरिजी म. की मूर्ति पूरानी है। यहाँ से राणी २८ कि.मी. फालना ४० कि.मी. देसुरी .कि.मी. और घाणेराव १३ कि.मी. अंतर पर है। अष्टमंगल MON १७. नाडोल तीर्थ SMa गोड़ीजी पार्श्वनाथ के छोटे मंदिर है । श्री श्यामवर्ण चौमुख आदीश्वरजी प्राचीन है। बावन जिनालय है। और जलमंदिर, एक पादुकाजी, मूलनायक के पीछे छत्री है। अभी काम चालु है । शांतिनाथजी का मंदिर प्राचीन है । प्रतिष्ठा १६८६ में संपन्न हुई है । पहले दूसरे मूलनायक होने की कल्पना है । रंगमंडपमें दो प्रतिमाजी संप्रति के है। सुमतिनाथ दाहिने ओर पद्मप्रभस्वामी बाँचे बाजु है। खुदाई काम करते समय यहाँ से निकले हुए एक फर्लांग दूर खेत में से निकले हुए सुमतिनाथ और पद्मप्रभस्वामी संप्रति राजा के समय के है । श्री नेमिनाथजी के जो हाल में प्रतिमा हैं। जो बादमें प्रतिष्ठित हुई है । पहले के नेमिनाथजी भूयहरे में है पर कीसीको मिलते नहीं है । " Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला श्री मानदेव सू. म. ने जीस जगा पर बैठ के लघु शांति का मनाई थी । उसकी निकट में भूयहरा है । यह नाइलाई सुपार्श्वनाथजी के देरासर में मिलता है । दूसरा भूयहरा मानदेव सू. म. की मूर्ति और लघु शांति मनाई थी वह जगा मंदिर से बहार निकलते ही थोडी दूरी पर है । जीसकी अंदर नेमिनाथजी की बड़ी मूर्ति है । परिकर है और वह खंडित है चोविस भगवान है । उसकी अंदर यह नेमिनाथजी खंडित है । भूयहरे में उतरकर हम देख शकते है । लघु शांति ३०० साल पहले यहाँ बनाई थी । जैनों के ३५० घर है। तीन उपाश्रय, - एक धर्मशाला, एक भोजनशाला है । यहाँ का संघ इस जगा का वहीवट करता है । श्री नेमिनाथजीका यहाँ देरासर है । वह गंधर्वसेन राजा ने २७०० साल पहले बनवाया था। उस समय से आज तक घी का अखंड दिया जलता है। __मानदेव सूरिने गिरनार पर समाधि युक्त कालधर्म पाया था श्री नेमिनाथजीका बावन जिनालय होगा हाल में वह जगा खाली है । जिर्णोद्वार में पूराने अवशेष दूर कर दिये है । यहाँ से राणी स्टेशन १० कि.मी. की दूरी पर है । fua मूलनायक श्री पद्मप्रभस्वामी Seताजा प्रभु दर्शन सुख संपदा, प्रभु दर्शन नवनिध; प्रभु दर्शनथी पामीये, सकल पदारथ सिद्ध. भावे भावना भावीओ, भावे दीजे दान; भावे जिनवर पूजीओ; भावे केवळ ज्ञान. जीवडा जिनवर पूजीओ, पूजाना फल होय; राज नमे प्रजा नमे, आण न लोपे कोय. फूलडां केरा बागमां, बेठा श्री जिनराय; जेम तारामां चंद्रमा, तेम शोभे महाराय. वाडी चंपो म्होरियो, सोवन पांखडीओ; पार्श्व जिनेश्वर पुजीये, पांचे आंगणीये. त्रिभुवन नायक तुं धणी, मही मोटा महाराज; म्होटे पुण्ये पामीयो, तुज दरिसन हुं आज. आज मनोरथ सवि फल्या, प्रगटया पुन्य कलोल; पाप करम दुरे टळ्या, नाठा दुःख दंदोल. प्रभु नामनी औषधि, खरा भावथी खाय; रोग पीडा व्यापे नहि, महादोष मीट जाय. नाडोल तीर्थ जैन देरासरजी जाणमा Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १८. वरकाणाजी तीर्थ NTRVASHITAANAल्या SANATANTRA राता जेवा फूलडां ने, शामळा जेवो रंग; आज तारी आंगीनो काइ, स्डो बन्ये छे रंग. प्यारा पासजी हो लाल, दीनदयाल मने नयणे निहाल. ॥१॥ जोगीवाडे जागतो ने, मातो धिंगड मल्ल; शामळो सोहामणो काइ, जीत्या आठे मल्ल. प्यारा ० ।।२।। तुं छे मारो साहिबो ने, हुं छु तारो दास; आश पूरो निज दासनी काइ, सांभळी अरदास. प्यारा ० ॥३|| देव सघळा दीठा तेमां, ओक तुं अवल्ल; लाखेणुं छे लटकुं हारूं, देखी रीझे दिल्ल, प्यारा ० ।।४।। कोइ नमे पीरने ने, कोइ नमे छे राम; उदयरल कहे प्रभुजी, मारे तुम शुं काम. प्यारा ||५|| मूलनायक श्री वरकाणा पार्श्वनाथजी वरकाणा तीर्थ जैन देरासरजी EMAIHA Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला (३९३ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी । श्री वरकाणा पार्श्वनाथ प्राचीन प्रतिमा है। देरासर भी पूराना है । अंतिम जिर्णोद्धार सं. २०१४ में हुआ था । भमतियाँ का जिर्णोद्धार सं. १९८९ में हुआ था । मूलनायक और भमति में रंगमंडप में सभी प्रतिमाजी बहुत ही सुंदर और आकर्षित दिखाई देती है । भमति में अमुक प्रतिमाजी पर सं. १९५१ का लेख है। बहुत सी स्वस्पवान और नाजुक प्रतिमाए संप्रति के समय की है भमति में तीन भगवान में से बीच में हर एक भगवान की प्रतिमा के नीचे सं.१९५१ का लेख है । बाजु के स्वतंत्र मंदिर भमति के चौमुखजी के नीचे सं. २०१४ फाल्गुन सुद ३ और शुक्रवार का लेख है । मूलनायक पार्श्वनाथ सन्मुख बाँये और भमति में सं.. १९९१ में जिर्णोद्धार होने का लेख है । मूलनायक की बिलकुल निकट में छोटा परिकर प्राचीन है | परंतु बड़ा परिकर सं. २०१४ | में हुआ है । प्रतिमाजी मूलनायक पार्श्वनाथजी बाजु के खेत में से करीब १६०० से २००० साल पहले निकले थे यह देरासर संप्रति राजाने बनवाया था। तीसरे रंगमंडप के एक स्थंभ पर सं. १००३ | का लेख है । एक धातु के पंचतीर्थी पर सं. १५२५ का लेख है। यह सोमसुंदर सू. म. से प्रतिष्ठित श्री मुनिसुव्रत स्वामी है । चारों रंगमंडप कलायुक्त है । दुसरे रंगमंडप में एक हाथी है । जीसके पर यह देरासर बनानेवाले शेठ और शेठानी बैठे है । चौथे रंगमंडप के आगे बड़े हाथी पर अंबाडी में शेठ शेठानी की मूतियाँ होने का संभव है । जीस में बड़ी मूर्तिकी डोक पर हार है और हाथ जूडे हुए है मूलनायक के आगे प्रथम रंगमंडप में बाहर के दाहिने भागमें भमति में सं. १६६१-१६८८ और सं. १७०० उपर का लेख है । उसके आगे सं. १६९४ का लेख है । गर्भगृह में प्रभुजी की बाँये। और दाहिने और छड़ वाली जाली है । भमति में प्रभुजी के नीचे । सं. १२५६ का लेख है । भमति में कई प्रतिमाजी है वह मंदिर के मूलनायक की निकट में है। इसकी पर सं. १९५८ का लेख है।। वरकाणा गढ में प्रवेशद्वार के निकट में भींत में सं. १५८५ और सं. १६८२ का लेख है। पyyyyyyyyyyy)))) 6000 १९. बीजोवा तीर्थ meccacccc बीजोवा तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री चिंतामणी पार्श्वनाथजी (११०० साल) (00 Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९४) 澄樂樂樂樂樂樂敏果味 梁樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂魚 1110110001010110 मूलनायक श्री चिंतामणी पार्श्वनाथजी वरकाणा के निकट बिजोवा में श्री चिंतामणी पार्श्वनाथ है उसके नीचे सं. ११२३ का लेख है । भमति में श्री पार्श्वनाथजी के नीचे १७७२ का लेख है । भमति में प्रभुजी की नीचे और एक लेख है । जीसमें सं. । १९०३ लिखा है । जैनों के ३५० घर है धर्मशाला और आयंबिलशाला भी है । देरासरजी ११०० साल पूराना है । बाहर दूसरा श्री संभवनाथजीका देरासरजी है राणी स्टेशन से और वरकाणा तीर्थ से ५ कि.मी. के अंतर पर है। राणी स्टेशन से राणीगाम २ कि.मी. है । जनम जयति मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी सरस शांति सुधारस सागरं, शुचितरं गुणरत्न महागरं; भविकपंकज बोध दिवाकरं, प्रतिदिनं प्रणमामि जिनेश्वरं. श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ २०. राणी तीर्थ राणी तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी यहाँ के मूलनायक सुपार्श्वनाथजी प्राचीन है । वि. सं. २०१६ में इस प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । वह प्रतिष्ठा १७५ साल पहले हुई थी। जो हाल में देरासरजी पर है। भूयहरे में सहस्रफणा पार्श्वनाथ बाजु के देरासर में ऋषभदेवजी की प्रतिष्ठा संवत २०३४ में हुई थी उपर के भागमें श्री सुमतिनाथजी है । जैनो के २६० घर है, ४ उपाश्रय और २ धर्मशालाएं है । राणी स्टेशन पर देरासर उपाश्रय और जैनों के घर भी है। 《乘乘乘乘乘來來來來來來喚來來無來來來來來來來來來來來來來必 ※乘乘乘乘乘來來來良來桌來乘乘乘來桌來來來來原 Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला (३९५ Gooooo २१. खीमेल मूलनायक श्री शांतिनाथजी खीमेल जैन देरासरजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी १२५ साल की आयु के बाद स्वधाम पधारे थे । यह गजोजी सं. १९२१ में मूलनायक श्री आदीनाथ की प्रतिष्ठा हुई है। नगिबाई के समय में इस मंदिर के पहले पूजारी थे । बावन आ. श्री रत्नसागर सूरिजी के द्वारा अंजन हुआ था इस देरासर के जिनालय बनानेवाले नगिबाई १२५ साल की आयु तक जीवित थे गर्भगृह से बाहर निकलते बाँये ओर भगवान के नीचे सं. १८२१ यह बात हाल के पूजारी तेजाजी ने कही थी । तेजाजी की अटक का लेख है। सामने सं. १९२१ जो दाहिने बाजु गर्भगृह की बाहर माली है। वे आठ पीढी से यहाँ के पूजारी है। है । जीसकी अंजन शलाका विधि आ. श्री रत्नसागरसूरि के वरद् श्री शांतिनाथजी मूलनायक संप्रति राजा के समय के हैं । यह हस्तों से हुई है । बावन जिनालय की भमति में भगवान की। प्राचीन मंदिर संप्रति राजाने बनवाया था । जिद्धिार हुआ है। 10 प्रतिष्ठा पू.आ. श्री विजयानंद सू. म. के पू.आ. श्री विजयकमल मूलनायक श्री शांतिनाथजी की प्रतिष्ठा सं. ११३४ वैशाख सुद सू.म. के आ. श्री विजयलब्धि सू. म. ने सं. १९९९ में की थी। १० के दिन हुई है और यह प्रतिष्ठा आ. श्री हेमचंद्र सू. म. ने | इस मंदिर के प्रवेशद्वार पर श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथजी चौमुखजी की थी कुमारपाल को बोध देनेवाले भी वही थे वहां श्री है । इस मंदिर की बाहर मूलनायक की दाहिने ओर श्री पावापुरी पार्श्वनाथजी दोनों धातु के थे और प्रतिष्ठा बाद में हुई थी। की रचना है। श्री महावीर स्वामी आदि की प्रतिष्ठा हुई है | श्री यहाँ जैनों के ३५० घर है । इस तीर्थ का वहीवट यहाँ का आदीनाथजी मंदिर के बाहर बाँये और कंपाउन्ड के बाहर एक संघ करता है । उपाश्रय है | ऋषभदेव मंदिर के पास धर्मशाला है। अलग श्री पार्श्वनाथजी का धुंबज वाला देरासरजी है । इस देरासर जो गाँव की बाहर है । यहाँ से राणी ४ कि.मी. और फालना ११ की मूल प्रतिष्ठा सं. १८२० में संपन्न हुई थी। यह लेख प्रवेशद्वार कि.मी. के अंतर पर है। पर है। यह बावन जिनालय श्री नगिबाई ने अकेले ही बनाया है। श्री जलमंदिर में श्री महावीर स्वामी मूलनायक है उसके नीचे सं. २०१३ का लेख है। दाहिने ओर गौतम स्वामी और बाँये ओर सुधर्मस्वामी के आगे पादुकाजी है जीसमें सं. २०१२ का लेख है । पूजारी के नाम तेजाजी, पूर्वाजी, कश्मेजी, दलाजी और गजोजी । यह गजोजी 0 0 Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९६) - श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ २२. फालना फालना जैन देरासरजी মা ক্লান্ত मूलनायक श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी प्रभु जगजीवन जगबंधु रे, सांइ सयाणो रे, तारी मुद्राओ मन मान्युं रे, जूठ न जाणो रे. तुं परमातम तुं पुरुषोत्तम वाला मारा, तुं परब्रह्म स्वस्पी; सिद्धि साधक सिद्धांत सनातन, तुं त्रण भावे प्रस्पी रे, सांइ सवाणो रे. तारी. ||१|| ताहरी प्रभुता त्रिहुं जगमाहे वा ० पण मुज प्रभुता मोटी, तुज सरीखो माहरे महाराजा, माहरे नहि कांइ खोट रे. सां. ||२|| तुं निर्द्रव्य परमपदवासी वा० हुं तो द्रव्यनो भोगी; तुं निद्रव्य परतो गुणधारी, हुं करमी मूलनायक श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी यहाँ श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजीका विशाल देरासर है सं. २०३५ ज्येष्ठ सुद १४ शनिवार के दिन पू. ह्रींकार सू. म. के पद्मसूरि म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई है । नीचे भूयहरे में श्री पार्श्वनाथजी की बडी प्रतिमाजी है । बाहर के भाग में एक छोटी सी देरी में भगवान की पादुकाए है दूसरी एक छत्री में भी दादा साहेब की चरण पादूकाएं है । जिनेन्द्र पद्म ज्ञानमंदिर बनाया जा रहा है । अंबाजी नगर में नेमिनाथजी का भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है । धर्मशाला का कार्य पूर्ण हो चूका है । जैन धर्मशाला और भोजनशाला निकट में है । आयंबीलशाला, चंदनबाला जैन भोजनशाला, २ जैन उपाश्रय भी है। यहाँ जैनों के १०० से १५० घर है । यह माहिती श्री हस्तीमलजी उमेदमलजी मरलेचा द्वारा मिली है । गाँव फालना तहेसील बाली | दूसरा देरासर शाश्वता जिन चौमुखजी है। वहाँ वल्लभकीर्ति स्तंभ है । श्री पार्श्वनाथ जैन छात्रालय है । 5 गुण हुँ तो गडवासी वा० माहरे नहि को हुं करमी तुं अभोगी रे. सां. ।।३।। तुं तो अस्पी ने हुं स्पी वा० हुं रागी तुं नीरागी, तुं निर्विष हुँ तो विषधारी, हुं संग्रही तुं त्यागी रे. सां. ||४|| ताहरे राज नथी कोइ ओके वा० चौद राज छे माहरे, माहरी लीला आगल जोतां,। अधिकु शुं छे ताह. सां. ||५|| पण तुं मोटो ने हुं छोटो वा ० फोगट फुल्ये शुं थाय; खमजो ओ अपराध अमारो, भक्तिवशे कहेवाय रे. सां. ।।६।। श्री शंखेश्वर वामानंदन, वा ० उभा ओलग दीजे, स्प विभु धनो मोहन पभणे, चरणोनी सेवा प्रभु दीजे रे. सां. ||७|| . Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला --स-सससससससससससससस २३. खुडाला मूलनायक श्री धर्मनाथजी खुडाला जैन देरासरजी मूलनायक श्री धर्मनाथजी श्री धर्मनाथजीका यह देरासर ८०० साल पुराना है । जीसे पोरवाड वंश के रामदेवजी के पुत्र श्री सुराशाह ने बनवाया था । उनके भाई नलधर ने १२४३ में प्रतिष्ठा करवाई थी १५२३ / १५४३ में दूसरी प्रतिमाजी बिराजमान की गई थी । यह मंदिर नया बन रहा है । मूलनायक कुमारपाल महाराजा के समय के है। आरस की और भी अनेक प्रतिमाएं है जो प्राचीन है । फालना स्टेशन ३ कि.मी. के अंतर पर है । वहाँ एक धर्मशाला भी है जो स्टेशन पर है। आवो आवो रे वीर स्वामी मारा अंतरमां, मारा अंतरमां पधारो मारा अंतरमा आवो.१ मान मोह माया ममतानो, मम अंतरमा वास; - जब तुम आवो त्रिशला नंदन, प्रगटे ज्ञान प्रकाश. आवो आवो हे वीर स्वामी ! मारा अंतरमां. २ आत्मा चंदन परकर्म सर्पनुं नाथ अतिशय जोर; दूर करवाने ते दुष्टोने, आप पधारो मोर. आवो आवो. ३ माया आ संसार तणी, बहुं वरतावे छे केर; श्याम जीवनमां आप पधारो, थाये लीला लहेर, आवो आवो.४ भक्त आपना शेठ सुदर्शन, चढया शूळीओ साच; आप कृपाओ थयु सिंहासन, बन्या देवना ताज. आवो आवो. ५ चंदनबालाने बारणे आव्या, अभिग्रह पूरण काज; हरखित चंदनबाला नीरखी, पाछा वळ्या भगवान. आवो आवो. ६ रडती चंदनबाळा बोले, क्षमा करो भगवान; कृपा करो मुज रंक ज उपरे, ल्यो बाकुळा आज आवो आवो. ७ बारे व्रतमा एक नहि व्रत, छतां थशे भगवान; श्रेणिक भक्त जाणी प्रभुओ, कीधा आप समान. आवो आवो. ८ N 歐歐歐歐歐歐歐歐歐剧剧剧影剧剧/剧影图 Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३९८) सा मूलनायक श्री शांतिनाथजी २४. सांडेराव मूलनायक श्री शांतिनाथजी हाल में मूलनायक श्री शांतिनाथजी है। पहले मूलनायक आदी पार्श्वनाथ महावीर स्वामी जो बाँये ओर हैं। मूलनायक श्री शांतिनाथजी महाराजा कुमारपाल के समय के है । रंगमंडप में ६ बड़ी प्रतिमाजी संप्रति राजा के समय की है। बावन जिनालय हो रहा है। मंदिर सपाटी के नीचे है। वर्षाऋतु के समय में यहाँ पानी भरता है । अंक छोटे स्थान में पानी समा जाता है । देरासर महाराजा संप्रति के समय का है पूराने पार्श्वनाथजी और महावीर स्वामी रंगमंडप में है। सं. ९६९ में यशोभद्र सू. म. के हस्तों से श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ सांडेराव जैन देरासरजी प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। बादमें मूलनायक श्री शांतिनाथजी की प्रतिष्ठा २०० / ३०० साल पहले प्रतिष्ठित किये गये थे । उसी स्थान पर पहले नागदेव प्राचीन थे सं. २०३८ में इनकी प्रतिष्ठा संपन्न की थी। नागदेव खंडित होने के कारण दूसरे बिठाये गये हैं। दो शिखरबंध देरासरजी है। एक घर देरासर भी है। दूसरे शिखरबंध देरासर में मूलनायक श्री आदीश्वर केशरीयाजी की। प्रतिष्ठा सं. १९८७ में हुई थी। घर देरासर में पार्श्वनाथजी है । शांतिनाथजी देरासर में सं. १०११ का लेख था परंतु हाल में नहीं है । एक आ. श्री की प्रतिमा के नीचे ११९७ का लेख है । वल्लभीपुर के अंत बाद वहाँ से बहुत सी चीजे आई थी। वैसा उल्लेख है। जैनों के ६०० में से आज सीर्फ़ १००/१२५ घर है। धर्मशाला है । झालोर आहोर के रास्ते पर फालना से ११ कि.मी. के अंतर पर है। Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला श्री आदिश्वरजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी २५. तखतगढ मूलनायक श्री आदीश्वरजी ९० साल श्री आदीश्वरजी ९० साल पहले पूराने देरासर में प्रतिष्ठित थे । बाद में जब नया देरासर हुआ तब वहाँ प्रतिष्ठिा पहले जोधपुर के लाल पथ्थर की मूर्ति पूराने देरासर में थी २ घर देरासर और ५ शिखरबंध देरासर है। दूसरा श्री आदीश्वरजी का शिखरबंध बड़ा देरासर है। जीसमें मूलनायक राजा संप्रति के समय के हैं । जीसमें दाहिने ओर गर्भगृह के गोख में वासुपूज्य स्वामी की प्रतिमाजी संप्रति के समय के हैं गर्भगृह में कुल पांच प्रतिमाजी है। श्री ऋषिमंडल महायंत्रराज ताम्रपत्र पर अभिषेक करके गर्भगृह के बाहर दाहिनी ओर है। यह देरासर नया बनाया गया है। पहले के मूलनायक श्री आदीश्वरजी जो पहले भी मूलनायक थे उनकी तखतगढ जैन देरासरजी (३९९ प्रतिष्ठा सं. २०१३ में संपन्न हुई थी। प्रतिष्ठा पू. पं. श्री कल्याण विजयजी गणि और विद्वानमुनि श्री सौभागय विजय और मुनि श्री मुक्तिविजय आदिकी निश्रा में हुई थी । भमति में दाहिने और चौमुखजी - शेत्रुंजय आदि का पट्टा । उसके आगे एक देरी में देवकुलिका और सुमतिनाथजी ईन तीनों की प्रतिष्ठा श्री कल्याण विजयजी गणि द्वारा संपन्न थी । आदि मूलनायक की बाँये ओर भमति में एक देरी में संभवनाथ ३ प्रतिष्ठित हैं । सुमतिनाथ में २ नये और एक पूराने है तीसरे रंगमंडप में बहुत पट्ट है । तखतगढ आहोर से २५ कि.मी. और सांडेराव से २० कि.मी. के अंतर पर है। DDDDDDD、ここここに Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४००) ··········· 樂樂樂樂樂樂樂 मूलनायक श्री शांतिनाथजी 梁梁樂樂樂 २६. जाखोड़ा मूलनायक श्री नवलखा पार्श्वनाथजी नवलखा मंदिर प्राचीन है । सं. ९६८ में सांडेराव तीर्थ की प्रतिष्ठा के समय मंत्र शक्ति से पाली से घी लाया जाता था उसके ९ लाख देते समय वो श्रावक ने वह रुपीये लेने का इन्कार किया । इसी कारण यहाँ मंदिर बनाने की योजना हुई। यह मंदिर पूर्ण होने के बाद इसे नवलखा मंदिर का नाम दिया गया है । ११४४ में ईस का जिर्णोद्धार हुआ था । १६८६ में फीर से जिर्णोद्धार कराके वहाँ मूलनायक महावीर स्वामी को बदलकर पार्श्वनाथ प्रभुजी को बिराजमान किये गये है और वही नवलखा पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध है । 1 २७. पाली श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन जाखोड़ा जैन देरासरजी मूलनायक श्री शांतिनाथजी यह प्राचीन देरासर है । सं. १५०४ का लेख है । मूर्ति भव्य है । पहाड़ों के बीच जाखोड़ा गाँव में यह देरासर आया हुआ है । पोमावा के शेठने उपाश्रय और नया देरासर बनवाया है। जवाई बंध स्टेशन से १३ कि.मी. और शिवगंज से ८ कि.मी. और सुमेरपुर से ७ कि.मी. की दूरी पर यह तीर्थ आया हुआ है । नेमिनाथजी है और बाँये ओर श्री नेमिनाथजी के नीचे सं. ११४४ माघ सुदी ११ रविवार का लेख है । मूलनायक श्री महावीर स्वामी के नीचे संवत ११५८ अषाढ सुद ८ गुरुवार का लेख है । दाहिनी ओर गोखमें संवत ११७८ फाल्गुन सुद १३ की श्री आदीनाथजी की मूर्ति भी संप्रति राजा के समय की है बाँये के गोख में चंद्रप्रभ स्वामी की महाराजा कुमारपाल के समय की प्रतिमाजी है । यह पाँचों ही प्रतिमाजी प्राचीन और भव्य है । पूराना महावीर स्वामी का मंदिर पार्श्वनाथजी के पीछे स्वतंत्र देरासर है । हालमें पार्श्वनाथजी की भमति में मूलनायक पार्श्वनाथजी के बराबर पीछे के भाग में है। श्री महावीर स्वामी की मूर्ति बहुत सुंदर और आकर्षक है। श्री महावीर स्वामी की प्रतिमाजी सम्राट संप्रति के समय की है । उनके दाहिने और 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 選桌來來來來來來來來來來來來來 भाग-१ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी की बाँये ओर भमति में श्री ऋषभदेवजी की प्रतिष्ठा सं. ११७८ फागण सुद ११ शनिवार के दिन हुई थी । यह तीनों प्रभुजी राजा संप्रति के समय के है । मूलनायक की दाहिने ओर भमति में लेख युक्त नेमिनाथजी और दाहिने ओर महावीर स्वामी और आदीश्वरजी संप्रति राजा के समय के है । दोनों गोखमें पार्श्वनाथजी महाराजा श्री कुमारपाल के 樂樂樂樂樂大麻 樂樂樂果 Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४०१ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला समये के है । मूर्ति बहुत ही भव्य और सुंदर है । भमति में आरस की सादी पंचतीर्थी श्री पार्श्वनाथजी की मूर्ति नई है । भमति में श्री धरणेन्द्रकी मूर्ति आंटिधुंटीवाली है । जैन धर्मशाला १, भोजनशाला १, उपाश्रय ८ से १०, जैनों के घर लगभग २००० है। पाली में ९ दर्शनीय देरासरजी है १ श्री नवलखा पार्श्वनाथजी नवलखा रोड बस स्टेन्ड, २ सुपार्श्वनाथजी का देरासरजी-गुजराती कस्बा, ३ श्री शांतिनाथजी का देरासर-केरिया दरवाजा, ४ श्री केसरीयाजी देरासर-भेस्वार रोड, ५ श्री गोडी पार्श्वनाथजी का देरासर-सोमनाथ रोड, ६ श्री भाखरी (मानपुरी) पार्श्वनाथजीका देरासर छोटी पहाडी पर २०० पगथी है । १ खरतर गच्छ श्री शांतिनाथजी का देरासरजी गोंढोंकावास । २ जालरवा दादावाडी, स्टेशन रोड । व्यक्तिगत जैन देरासरजी, १ केसरीयाजी देरासरजी मूलनायक श्री नवपल्ला पार्श्वनाथजी लाखोटिया रोड । २ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथजी देरासर डागागली । पाली स्टेशन मंदिर से ३ कि.मी. के अंतर पर है । पाली आवोने वीरजी आव्या आंगणीये, चंदना जुवे छे. जिला है | धर्मशाला है । नवलचंद संप्रतचंद की पेढी गुजराती वाट रे; वीरजी आव्या आंगणीये ||9|| कटला पाली ३०६४०१ फोन नं. पीढी : ६७४७ - फोन नं. मंदिर सादर राजकुमारी वळी बालकुमारी, चंदना अनुं छे नाम, और धर्मशाला : ६९२९ वीरजी आव्या आंगणीये ||२|| माथे मुंडेल वळी, पगमा छे बेडली, ओक पग उंबर बहार रे, वीरजी आव्या आंगणीये ||३|| सूपडाने खुणे अडद ना बाकुळा, अट्ठमना उपवास रे, वीरजी आव्या आंगणीये. ||४|| आनंदी जोयुं मुख पाछा ते वळीया, पछी वरसे आंसुडानी धार रे. वीरजी आव्या आंगणीये. 1/५// चंदना ओ वीरजीने पारणुं कराव्यु, वरत्यो छे जय जयकार रे, विरजी आव्या आंगणीये. //६// ननन JABAR पुराने महावीर स्वामी (२००० साल पहले का) Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ SAL सम HARE OG V दिया जा MAMMIMirmi. EVER HOE ERYSE पाली जैन देरासरजी २८. महावीर तीर्थ (कोरटाजी) मूलनायक श्री महावीर स्वामी पुराने मूलनायक श्री महावीर स्वामीनार Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : २ पाली जिला 樂樂 >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>> 樂樂樂 fe THE 1ST तिम कोरटाजी जैन देरासरजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी जयति शासनम 梁樂樂樂樂樂 के तीर्थ है उससे १ कि.मी. की दूरी पर यह तीर्थ आया हुआ है । प्राचीन मूलनायक श्री महावीर स्वामी भी यहाँ बिराजमान है । कोरटाजी की यात्रा करनेवालों को यह लाभ लेना जरूरी है । आपस में पालड़ी थानावली में भव्य देरासरजी है खिवांदी-वांकली आदि निकट में है। जवाई बंध स्टेशन से यहाँ आ सकते है । 8 २९. खिवान्दी है मूलनायक श्री महावीर स्वामीजी यह प्राचीन तीर्थ है। कोरटाजी तीर्थ २५०० साल पूराना 梁樂樂大 ४ FBiH E is ne (४०३ Roy Rs Rs CINES खिवान्दी जैन देरासरजी *來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來》 ※來來來來來來來槃與奧來果來果乘果來果來果來原 Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४) मूलनायक श्री महावीर स्वामीजी देरासरजी २०० साल पूराना है । प्रतिमाजी महाराजा संप्रति के समय के है प्रथम प्रतिष्ठा पू. पं. श्री कल्याण विजयजी गणिवर के वरद् हस्तों से हुई थी । बाद में २०३२ में फीरसे पू. आ. श्री दर्शनसागर सू.म. की निश्रा में थी। कार्तिक सुद १० के दिन यहाँ मेला लगता है और साधर्मिक भक्ति भी होती है । दूसरे देरासरों में श्री आदीश्वरजी शेत्रुंजय मंदिर है जीसमें २० विहरमान और गत २४ है श्री सप्तफणा पार्श्वनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा सं. २००९ में पू. आ. श्री विजय मंगल प्रभसूरीश्वरजी म. मुलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी की निश्रा में हुई थी। फीर से प्रतिष्ठा सं. २०४९ वैशाख सुद ६ के दिन पू. आ. श्री विजय गुणरत्न सू.म. की निश्रा में हुई थी । केसरियाजी मंदिर की प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजय जिन प्रभ सू.म. की निश्रा में हुई थी । ज्ञान मंदिर की प्रतिष्ठा पू. आ. श्री जिनेन्द्र सू. म. की निश्रा में संपन्न हुई थी। एक नया मंदिर बन रहा है । यहाँ जैनों के ५०० घर है निकट में वांकली मुनि सुव्रत स्वामी पोमावा सुविधिनाथजी देरासरजी है । यह तीर्थ सुमेरपुर से ८ कि.मी. जवाई बंध स्टेशन से २० कि.मी. के अंतर पर है। टेक्षी मिलती है । धर्मशाला और भोजनशाला की सुविधा है । ३०. वांकली श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ वांकली जैन देरासरजी मूलनायक श्री मुनिसुव्रतस्वामीजी में यह प्राचीन देरासरजी हैं। यह अक अच्छा तीर्थ माना जाता है । निकट में खिवान्दी, कोरटाजी आदि तीर्थ है । निकट सुमेरपुर शिवगंज आदि शहर है। शिवगंज में १४ देरासरजी और सुमेरपुर में ४ देरासरजी है। स्टेशन जवाई बंध से वाहन है • मिलते है । पू. आ. श्री विजय सुधांशु सू. म. की यह जन्मभूमि है । 麗麗麗麗麗麗麗質優質 Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ३ उदयपुर जिला (४०५ उदयपुर जील्ला राष्ट्रीय घोरी मार्ग राज्य घोरी मार्ग रेल्वे मार्ग HHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHHH पाली जील्ला भीलवाडा जील्ला काकरालो राजनगर सायरा देलवाडा सिरोही जील्ला मजावडी Kगोगुंदा, एकलींगजी HAA आयड इसराल उदयपुर चीतोडगढ जील्ला Karya केशरीयाजी बनासकांठा जील्ला पलाना 4MAHARAJ क्रम पाना नं. ४०६ ४१६ गाँव सायरा मजावड़ी गोगुंदा ईसराल उदयपुर uo डुंगरपुर जील्ला वांसवाला जील्ला क्रम गाँव पाना नं. क्रम गाँव पाना नं. आयड ४१० ११. केलवा ७. केसरिया धुलेवा तीर्थ ४११ १२. कांकरोली-राजनगर तीर्थ ४१७ 'पलना १३. एकलिंगजी ४१९ देलवाड़ा-उदयपुर. ४१४ १४. सविना तीर्थ १०. खमनोर ४१५ ४०६ ४०७ ४०८ ४०९ ४२० मय THEO Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६) 曦曦曦 श्री शीतलनाथ श्री महावीर स्वामी श्री वासुपूज्य स्वामी मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी १. सायरा मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी राणकपुर से उदयपुर आते समय बिच में सायरा गाँव में श्री वासुपूज्य स्वामी का शिखरबंध देरासर आता है। यह ४५० साल पूराना है। बालकेश्वर मुंबई से यह मूर्तियाँ सं. १९६० में लाई गई थी। अंतिम जिर्णोद्धार सं. २०३७ में संपन्न हुआ था। यह तीर्थ का कारोबार यहाँ का संघ चलाता है। यहाँ जैनों के ३२ घर है । जैन धर्मशाला और आयंबील खाता चलता है । दूसरा श्री शांतिनाथजी का शिखरबंध देरासर है। यह मंदिर गाँव की बिच में है । इसकी प्रतिष्ठा सं. १९९५ में संपन्न हुई थी । श्री वासुपूज्य स्वामी की प्रतिष्ठा भी सं. १९९५ में संपन्न हुई थी । मूलनायक ३ प्राचीन है । गाँव में शांतिनाथजी भी प्राचीन है । श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ सायरा जैन देरासरजी Pg.406 9. देख्यो जिनजीनो देदार, मारो सफल थयो अवतार; ओक तुं ही छे आधार, मेरे यार यार यार. रत्रयीनो भंडार, तारा गुणोनी नहि पार गुणी गुणो जाणनार, आपो सार सार सार. काम क्रोधादि हणनार, साचो ते नर सरदार, तने जे पूजे अपार, पामे पार पार पार तारी वाणी मनोहार, टाळे दूरित अपार; रोग शोक टाळनार, सेवुं वार वार वार. तारा चरणोनो आधार, मने उतारे भवपार; नाम तारक धरनार, मोहे तार तार तार. बुद्धि आनंद अपार, आपो लब्धिअमृत प्यार; मांग सेवा अक सार, अरजी धार धार धार. २. मजाबड़ी मूलनायक श्री नवपल्लव पार्श्वनाथजी यहाँ श्री नवपल्लव पार्श्वनाथजी आदि की १४ मूर्तियाँ है । सब यहाँ कम्पाउन्ड में रायण के वृक्ष के नीचे से निकली है। यह सब मूर्तियाँ संप्रति राजा और कुमारपाल और वस्तुपाल के समय की है । जिर्णोद्धार का काम ७ साल तक चला सं. २०३७ में जिर्णोद्धार हुआ गमेरलाल सिंधी गोगुंदा में रहते है। अन्य लोग भी प्रभुजी को मानते हैं । ६ Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग ३ उदयपुर जिला मूलनायक श्री नवपल्ला पार्श्वनाथजी (२००० साल) ****** मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी ( ११०० साल पूराने) ३. गोगुंदा मजावड़ी जैन देरासरजी (४०७ ******** गोगुंदा जैन देरासरजी Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी श्री सिंहसूरीश्वरजी म. के वरद् हस्तों से सं.१६९९ में प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । श्री पार्श्वनाथ मूलनायक लंछन सर्प भगवान के दाहिने अंगुठे और अंगुली के बीच में से निकलकर लंछन की जगा पर सर्प तरह वींटा हुआ है मुख नीचे चला गया हो जैसा लगता है। ४. इसराल मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी (२००० साल पुराने) इसराल जैन देरासरजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी लोग प्रतिष्ठा संपन्न हुई है । बाँये ओर श्री विमलनाथजी है जगलवाडी में श्री पार्श्वनाथ परिकर युक्त है राणा जगसिंह के निकट की बाडी में यैसा ही मंदिर है। जो शंकरजी का मंदिर का समय में बंधाया गया यह देरासर है । प्रतिमा संप्रति राजा के समय जाता है। राज्य के हस्तक है श्री पार्श्वनाथजी रंगमंडप में दाहिनी की है । रंगमंडप में दो बड़ी प्रतिमाजी के नीचे सं. १५०८ का लेख और बड़े भगवान श्री सुविधिनाथजी है । सं.१५०८ का लेख है... है। मूलनायक के आसन के नीचे डीझाइन है और पैर के नीचे भी रंगमंडप में चौमुखी उपर के भागमें स्थापित किये गये है। डिझाईन है । सोमसुंदर सूरि के पट्टधर श्री रत्नशेखर सू.म. के वरद् Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ३ उदयपुर जिला 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 ५. उदयपुर >>>>>>>>>> 9999A मूलनायक श्री पद्मप्रभुजी BROHANDAN श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथजी 1323334353 COUCHEME उदयपुर पद्मप्रभुजी जैन देरासरजी श्री कल्पवृक्ष पार्श्वनाथजी 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 (809 大蛋肉 來來來來來來來來來來來來來來來來來 【來來來來來來來來來送 乘集來原 Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१०) मूलनायक श्री पद्मनाभ स्वामी हे । उपाश्रय के उपर के भाग में श्री अजितनाथजी का घर देरासर मूलनायक श्री पद्मनाभ स्वामी में शाके १६८४ सं. १८१९ है । उदयपुर में बावन जिनालय का देरासर भी प्राचीन है। यहाँ का लेख है। निकट में श्री आदीनाथजी की मूर्ति में सं. १८१७ में उपाश्रय में सं. १८१७ का लेख श्री गोरजी की गड़ी की निकट में श्री वर्धमान सूरीजी ने प्रतिष्ठा की थी पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा है। गोरजी की गद्दी खाली है श्री चौमुखजी महावीर पर अशोक वृक्ष श्री तिलकसागर सूरिजी ने की थी मूलनायक के अलावा ६ बड़ी है। श्री शीतलनाथ जी के अलंकार बहुत ही सुशोभित है । जीस प्रतिमाजी पर सं. १८१७ का लेख है जिनचंद्रसू. म. अभयदेव में हिरा माणेक जडित अंक डगला मुकुट और कुंडल भी है। एक सूरीजी का लेख है। शासनदेवी के नीचे सं. १८१९ का लेख है। आंगी संपूर्ण सोने की है और एक चांदी की भी है। यह वाचन जीसमें श्री वर्धमान सूरी के श्री हीरसागरसूरी के वरद् हस्तों से जिनालय उदयपुर में सबसे बड़ा और पूराना है। श्री शीतलनाथजी प्रतिष्ठा संपन्न होने का लेख है। मूलनायक १३२ ईंच के है । श्री की आरस की चोविसी धातु के परिकर के साथ मूलनायक हैं। सहस्रफणा पार्श्वनाथजी का पट्ट है । सं. १८४७ का लेख है। श्री निकट में भगवान वासुपूज्य स्वामी है जो आरस के है और यह पार्श्वनाथजी की अद्भुत रचना है गर्भगृह और रंगमंडप में श्री बावन जिनालय और शीतलनाथजी के पहले के है रंगमंडप में श्री कुमारपाल महाराजा के समय की प्रतिमाजी है । निकट में विशाल संभवनाथजी के नीचे सं. १७८१ लिखा हुआ मालुम होता है। श्री उपाश्रय भी है। शेत्रुंजय पहाड़ के दृश्य की रचना आज से ४०० साल पहले की है. । पहाड़ पर आठ आरस की मूर्तियाँ त्रिगढ़ के उपर पित्तल के चौमुखजी और पद्मावती की एक बड़ी छत्री है। उदयपुरमें नंदीश्वर द्विप के नीचे पादुकाएं हैं। वहाँ सं १८४७ का लेख है। देवी चक्रेश्वरी की बड़ी मूर्ति के साथ देरी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ LA MILLIT AN Mas H BURJAR मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी ६. आयड़ BERNOU मूलनायक श्री आदीश्वरजी Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ३ उदयपुर जिला (४११ मंदिरो का उल्लेख किया है । पार्श्वनाथजी की प्रतिमा में सं. १८०१ का लेख है । आदीश्वर भगवान का भव्य मदिर है। यह मूर्ति महाराजा कुमारपाल के समय की है जिर्णोद्धार २०२१ में हुआ था १३ वीं सदी में महाराजा जयसिंह के समय में श्रावक हेमचंद्र ने समग्र आगम ग्रंथो को ताड़पत्र पर लिखवाये थे उग्र तप करनेवाले पू. आ. श्री जगच्चंद्र सू. म. को यह राजाने 'तपा' बिस्द प्रदान किया था तब से यह पूर्वका गच्छ "तपागच्छ'' के नाम से जाना जाता है । तपागच्छ कोई नया गच्छ नहीं है आचार्य श्री शास्त्रार्थमें अपराजित होने के कारण उन्हें राजाने "हिरला" का भी बिरुद दिया था श्री शांतिनाथजीकी प्रतिष्ठा १८१७ की साल की है दूसरे चार मंदिर भी यहाँ है जीसमें तीन १२ वीं सदी के है एक मंदिर में पू. जगच्चंद्रसूरीश्वरजी म. की मूर्ति की प्रतिष्ठा सं १९९५ में संपन्न हुई थी । यहाँ १९९९ में जिर्णोद्धार हुआ था और पू.आ. श्री नीति सू. म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । उदयपुर स्टेशन १ कि.मी. है । उदयपुर से दर्शन करने आनेकी की सुविधा है। आयड जैन देरासरजी सन्मुख द्दश्य मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी इस तीर्थ में पू.आ. श्री बलिभद्र सू. म. के उपदेश से जैन धर्म अंगिकार करने वाले राजा अल्लुराज के मंत्री श्रावक ने पार्श्वनाथका मंदिर बनाया था और पू. आ. श्री यशोभद्र सू. म. के वरद् हस्तों से उनकी प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । यह विगत सं. १०२९ के पहले की है क्योंकि कवि धनपाल ने ११ वी सदी में "सत्यपुर मंडन महावीरोत्सव" में आयड तीर्थ बावन जिनालय us us us us ७. केशरीयाजी - धुलेवा तीर्थ मूलनायक श्री आदीश्वरजी की अमुक जाति के अलग अलग शिवमंदिर आदि है पहले यह यहाँ श्री केशरीयाजी आदीश्वर का प्राचीन विशाल और आदीश्वरजी की मूर्ति यहाँ के निकट में डुंगरपुर के बाजु में आया अद्भुत कला-नक्कासी युक्त जैन देरासर है दर्शन करते समय हुआ बड़ोदा गाँव से वि. सं. ९७० में यहाँ लाई गई थी। इसलिये यैसा लगता है की भगवान हमारी सामने देखते हों । यह प्रतिमा उसे प्राचीन माना जाता है । जैन भोजनशाला है । धर्मशाला सिर्फ श्यामवर्ण की और बड़ी है । सब यह मानते है के यह मूर्ति बड़ी एक है, पर बहुत बड़ी है । ऋषभदेवजी पर सें गाँव का नाम चमत्कारी हैं श्वेताम्बर और दिगंबर के झगड़े वर्षों से चल रहे हैं। ऋषभदेव गाँव रखा गया है। गाँव की आबादी १० हजार की है यहाँ श्वेताम्बर जैनों के घर बहुत कम है । दिगंबर के ज्यादा है। । ऋषभदेवजी की मूर्ति बहुत मनोहर - प्रभावशाली और चमत्कारी वैश्नव समाज, सनातनी, आदिवासी आदि कोम अपने अपने ढंग मानी जाती है इस प्रतिमाजी को लंका में रावण द्वारा पूजी जाती से पूजा करते हैं । हिन्दु जब भगवान को थाल धरातें है उस समय थी। बाद में श्रीराम उसे अयोध्या में पूजते थे। बाद में उज्जैन में लहसुन डुंगली के अलावा कंदमूल और अन्य शाकभाजी भगवान । और फीर बडोदा में थी; वहाँ से सं.९७० में यहाँ लाई गई थी। को अर्पित करते हैं कभी लड़ाई झगड़ा हो जाता है । इस लिये। केशर चढाने की प्रथा है । इस लिये उसे केशरीयाजी केशरीयालाल यहाँ सशस्त्र पूलिस रहती है ताकिं जान हानी न होने पाय राणा के कहा जाता है । भील जाति के लोग उन्हे काला बाबा के नाम से समय में यह मंदिर का वहीवट राज्य सरकार द्वारा चलता था । पहचानते है। अब इसका वहीवट राज्य सरकार हस्तक है कंपाउन्ड में हिन्दुओं Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२) केशरीयाजी श्री ऋषभदेवजी TS! मन्दिर भगवान केसरियाजी श्री केशरियानाथजी नमः आंगी बनी छे प्रभु आजनी रळीयामणी, श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ आदिजिन भेटो अलबेलडा. १ उज्जवल मंदिरो नयणे निहाळता, ज्ञानदिवाकर वंदन करतां, चित्त पामे छे. विसरामरे. आदिजिन. २ रायण पगला पुंडरीकस्वामी, सिध्यां अमारा काम रे. आदी.. ३ केशरीयाजी तीर्थ जैन देरासरजी तिमिर हटाकर तेज दिखाया, दीठा में सिद्धगिरि स्वामरे, दर्शन कीधां अभिराम रे. आदि. ४ तीर्थ शत्रुंजये सिध्या अनंता, मोह मदिरा वाम रे. आदि. ५ धर्म ताहरो प्रभु दिल मेरे वसियो, गावो रे गिरिगुण ग्राम रे आदि. ६ सुयश वा शिव धाम रे. आदि. ७. Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ३ उदयपुर जिला ***% *% *% *% मूलनायक श्री आदीश्वरजी पलाना जैन देरासरजी ८. पलाना वार पूराना मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी श्री पार्श्वनाथजी हाल में रंगमंडप की बाँये और ओटे पर है। यह देरासर सं. १६१२ में बनाया गया था । जहाँ मूलनायक पार्श्वनाथजी थे । अब नई अंजन पू. श्री नेमिसूरी म. के परिवारवाले पू. विज्ञानसूरी म. के पट्टधर पू. कस्तुरसूरि म. ने सं. २०३१ पोष वद १० के दिन की थी। सब जैनों के ३५ घर है । पार्श्वनाथजीकी मूर्ति १००० साल पूरानी है । दो उपाश्रय है। यहाँ का संघ वहीवट चलाता है। पो. पलाना। जि. उदेपुर (राजस्थान) (४१३ Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ९. देलवाडा - उदयपुर देलवाडा जैन देरासरजी मुलनायक श्री आदीश्वरजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी दूसरे देरासर में श्री आदीश्वरजी देवकुल पाटण (दलवाडा) मेवाड़ । १ श्री पार्श्वनाथजी मूलनायक की प्रतिष्ठा सं. १४८४ में हुई थी । बावन जिनालय है । पर सब में मूर्तियाँ नहीं है । दाहिने और श्री अभिनंदन स्वामी है उसके नीचे सं. १४८४ का लेख है । निकट में दो काउस्सग्गिया है और उसकी निकट में दूसरा पार्श्वनाथजी का देरासर है । जहाँ मूलनायक की निकट में पार्श्वनाथजी के दो काउस्सग्गिया है । उसके नीचे एक पूँयहरा है । देरासर बहुत प्राचीन है । पूँयहरे में राजा संप्रति के समय की १३ प्रतिमाजी है । श्री कुंथुनाथजी के नीचे सं. १४९४ का जिर्णोद्धार का लेख है। श्री महावीर स्वामी के नीचे भी सं. १४९४ का लेख है। श्री आदीश्वर भगवान का जिर्णोद्धार का काम चल रहा है । भमति के सब भगवान प्राचीन है । मूलनायक श्री आदीश्वरजी के गर्भगृह में श्री पार्श्वनाथजी के दो काउस्सग्गिया है । रंगमंडप में भगवान की पादूका की दोनों ओर नाग ओर मोर दर्शन करते दिखाई देते है । उपर के कल्पवृक्ष में सं. १४९१ का लेख है । श्री आदीश्वरजी के नीचे जो लेख है । वह जिर्णोद्धार हुआ था । यह बताता है । सं. १४६९ की साल लिखी गई है । मूलनायक की प्रतिमा महाराजा कुमारपाल के समय की है। श्री आदीश्वरजी की प्रतिष्ठा सं. १४८४ में हुई थी । आ. श्री सोमसुंदर सू. म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी श्री संतिकरं स्तोत्र आ. श्री सोमसुंदर सूरी ने यहाँ बनाया था । यहाँ पहले ३०० जिन मंदिर थे कल्पवृक्ष o Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग ३ उदयपुर जिला । हाल में सिर्फ चार है । महाराजा कुंभाजी का समय का देरासर है उदयपुर वि. सं. १६१६ में बसाया गया था । श्री सोमसुंदर सू. म. द्वारा अंजनशलाका की हुई मूतियाँ २-शेत्रुंजय, २ - गिरनार २- पावापुरी, २ - राजगृही, २ चंपापुरी, २-भूताला (जो यहाँ से १० कि.मी. दूर है।) २-खंडित, २-आबु, २-तारंगा आदि की अंजन शलाका वि. सं. १५०८ में की गई थी वैसा उल्लेख है । संवत १३३९ में आ. श्री यशोभद्रसूरी (रांडेरगच्छ ) म. ने करेड़ा बुंजडा सविना-सिसार और नाई में यह पांच जगे पर एक ही मुहूर्त में श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा संपन्न करवाई थी और पांच जगे पर प्रतिष्ठा करानेवाले शेठ और शेठानी भी एक थे । हुअ थे । जीन्हों नें शेत्रुंजयका १६ वाँ उद्धार किया था । राय कोठारी गोत्र कर्मा शाह भी १५८७ में कावेरीया गोत्रीय बने थे । यह कर्मा शाह के वंश में भामा शाह पैदा हुए थे। उनके छोटे भाई ताराचंदजी को जब सादडी (घाणेराव ) की जागीर मिली थी । यह ताराचंदजी जब स्वर्गवासी हुए तब उनके साथ १३/ व्यक्ति ने अपनी जान अर्पण की थी यह थे मोर-घोडी - कुत्ता-शेठानी-नायी सेवक-सेविका-दासी आदि उपरवाली माहिती हमें गुरशम राजमलजी गमरलाल उमर ८१ वर्ष उनसे मीली थी । यहाँ के मंदिर बप्पारावल के वंशज देवादित्य देलवाड़ा बसाया था । सुपार्श्वनाथ (हलदीघाटी) देलवाडा में है (सं. १०३२) जैनों के २५० घर है । यह स्थान उदयपुर से २६ कि.मी. दूर है । गोपाल गिरि = ग्वालियर के राजा जो तोमार वंश के थे उसे उपदेश देनेवाले श्री बप्पभट्टि सू. म. थे उनको ९२६ में उपदेश दिया था । इसी आमराजा के तोमार वंश में श्री कर्मा शाह Foor मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी Coatian 8 १०. खमनोर (४१५ खमनोर जैन देरासरजी Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री आदीश्वरजी यहाँ पांच मंदिर है। का लेख बावन देरी की निशानी हो ऐसा मालूम होता है। (१) मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी प्राचीन है । सं. १५८५ है। श्री मंदिरेश्वर सू. म. ने प्रतिष्ठा की थी इनके अवशेष आज भी दूसरा पढ़ा नहीं जाता । (२) श्री पार्श्वनाथजी मूलनायक है जीसमें मौजुद है । देरासर के पीछे पूर्व भागमें कंपाउन्ड में भमति में एक बड़े पार्श्वनाथजी जो वाघजी सूरा गुढका परिवार द्वारा बिठाये भूयहरे में से दो खंडित मूर्तियाँ निकाली है। ज्यादा होने का संभव गये हैं । जीसमें धातुका भव्य और किंमति परिकर है । पू. जिनेन्द्र है। ५ आदीश्वरजी-३ सं. १५४८ का लेख है । यह प्राचीन है। सू.म. के वरद् हस्तों से अंजन शलाका हुई थी । यहाँ और रंगमंडप में पादुकाएं है । सं. १७३१ दिखाई देती है । पादुकाएं ऋषभदेवजी में सं. २००६ में जिर्णोद्धार हुआ था । मंदिर प्रतिमा श्री विजय देव सू.म. और विजयप्रभ सूरी म. आदि की है । सं. और पादुकाएं १८५८ के समय की प्राचीन है । पुराना लेख नहीं २००६ में जिर्णोद्धार हुआ था । पंचधातुकी प्रतिमा में सं. १६०३ मिलता । वीर सं. २४५९ है । ३ श्री मल्लीनाथजी की प्रतिमा का लेख है । पू. आ. श्री जिनेन्द्र सू.म. द्वारा प्रतिष्ठा संपन्न हुई प्राचीन है - ४ श्री शांतिनाथजी -३ प्राचीन प्रतिमाजी है सं. थी। ईस बाजु के अनेक देरासरों का जिर्णोद्धार उनके उपदेश और ११९८५ में ईसका जिर्णोद्धार हुआ था । सं. १३०३ वैशाख वद ५ मार्गदर्शन से हुआ है और भी होना चालु है । ११. केलवा मूलनायक श्री शांतिनाथजी केलवा जैन देरासरजी मूलनायक श्री शांतिनाथजी यहाँ बावन जिनालय है । रंगमंडपमें काउस्सग्गिया प्रभुजी है । श्री सं. १६९४ में मूलनायक श्री शांतिनाथजी का शिखरबंध गोडीजी पार्श्वनाथजी-१ में सं. १२१६ का लेख है । यहाँ देरासर बना । मूलनायक श्री शांतिनाथजी राजा सांप्रति के समय चंद्रप्रभुस्वामी मंदिर में तेरापंथी भिक्षा के फोटोग्राफ है और मंदिर के हैं । एक मूर्तिपूजक जैन द्वारा नित्य पूजा होती है बाकी सब में दानपेटी भी है। यह माहिती यति. श्री माधवलाल महात्मा के तेरापंथी है । उनके १०० घर है । दूसरा देरासर श्री द्वारा मिली है । चंद्रप्रभुस्वामी-१ मूलनायक प्राचीन है और सांप्रति के समयके है। ★ ★ ★ ★ ★ ★ 3 6 6 6 6 6 6 6 COM Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ३ उदयपुर जिला 週镌 हाथी वृषभ サト ||||||||| लभी मालाय चन्द्र सूर्य १२. कांकरोली त ध्वज कलश पासरोवर श्रीरसमुद्र राजनगर तीर्थ DELBE मुलनायक श्री आदीश्वरजी विमान रत्नराशि अन (४१७ Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ दयाल शाह किला जैन देरासरजी (श्री दयाल शाह का किला) के अलावा सब समार काम चालु है । यहाँ मूलनायक के पीछे मूलनायक श्री चौमुखजी आदिनाथजी माले पर जाने की सीढ़ी है । जीसके नीचे एक मुँयहरे में चार श्री आदिनाथ चौमुखजी मुलनायक हैं । महाराणा राजसिंह के प्रतिमाजी है । जो राजा सांप्रति के समय की मानी जाती है । रराज्यकाल में सं. १७३२ शाक १५९७ वैशाख सुद ७ गुस्वार के | सं.१४८६ का एक लेख भी है । भमति में एक दूसरा ऋषभदेवजी दिन श्री दयाल शाहने यह नौ मंझिला मंदिर बनवाया था। हाल में | के नीचे १४४१ का लेख है। श्री विजय प्रभसूरीजी म. की प्रतिमा यहरा के साथ तीन मंझिल है । बादशाह औरंगझेब के समय में | के नीचे सं. १७८२ का लेख है । यहाँ नव प्रतिमाजी आ. श्री ईसे राजा का महल समझकर बाकी मंझिल तोड दी थी । गोरजी | भूवनभानु सू.म. द्वारा अंजन किया गया है और भी पाँच प्रतिमाजी. के द्वारा प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । रंगमंडपमें प्रायः सो स्तंभ है । प्राचीन है । दयाल शाह के प्रथम पत्नी सूर्यद और द्वितीय पली मंदिर पहाडी पर है २५० पगथी है । इस मंदिर को दयालशाह | पाटमदे और उनके पुत्र शाँवलदास और पली मृगादे । समस्त जीर्थराज या दयाल शाह किला के नाम से जाना जाता है । उपर | परिवार सह कल्याण सागर सूरी के पट्टधर श्री सुमतिसागर सूरी के भागमें बनाई हुई प्रतिमा (श्री आदिनाथजी) श्वैतांबर जैन और उनके पट्टधर विनय सागर सूरीजी ऐसा लेख है । दयालशाह तिमा ३ फूट से ज्यादा दिखती है | सामने पूंडरीक स्वामी का | के पिताजी राजाजी और माताजी रयणादे के चार पुत्रो में से मंदिर है जहाँ प्राचीन पूंडरीक स्वामी है । दाहिने और विमलनाथ | दयालशाह चौथे पुत्र थे उनको संघवी की पदवी मिली थी । और बाँय ओर संभवनाथजी सं. २०३५ में प्रतिष्ठित हुआ है । ओशवाल के सुखपरिया वंश के तेनाजी का यह परिवार माना उनके दाहिने ओर शेर्बुज्य पट्ट और बाँये ओर गिरनार पट्ट सं. | जाता है । २०३३ रंगीन है पू. श्री दानसूरीजी म. आ. पू. प्रेमसूरी म. के पू. दूसरे काउस्सगिया में विजयगच्छ आचार्य का सं. १४६४ का आ. हीरसूरी म. द्वारा विमलनाथ और संभवनाथजी की प्रतिष्ठा | लेख है । चौमुखजी के मुख्य भगवान आदिश्वरजी पूर्वाभिमुख है। संपन्न हुई है । प्राचीन नगाड़ा ४ फूट के व्यास से भी बड़ा है । कांकरोली से यह तीर्थ ५ कि.मी. राजसमंदर से १.१/५ इस मंदिर के सामने दूसरा मुँयहरा है । वहाँ प्राचीन खंडित मूर्ति | कि.मी. और उदयपुर से ६० कि.मी. की दूरी पर है। । बाजु में विशाल सरोवर है । जो पानी से भरा हुआ है प्रतिष्ठा Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ३ उदयपुर जिला (४१९ १३. एकलिंगजी एकलिंगजी जैन देरासरजी मूलनायक श्री शांतिनाथजी यह प्राचीन तीर्थ है । शांतिनाथजी बड़ी प्रतिमावाले नागद्रद तीर्थ यहाँ से १ कि.मी. के अंतर पर है । उदयपुर से २५ कि.मी. दूर है। मुलनायक श्री शांतिनाथजी शांति जिनेश्वर साचो साहिब, शांतिकरण इन कलिमें हो जिनजी, तुं मेरा मनमें तुं मेरा दिलमें, ध्यान धुएं पल पलमें साहिबजी..तुं मेरा १ भवमां भमतां में दरिशन पायो; आशा पूरो ओक पलमें हो जिनजी...तुं मेरा २ निर्मळ ज्योत वदन पर सोहे, निकस्यो जयुं चंद बालमें हो जिनजी..तुं मेरा ३ मेरो मन तुम साथे लीनो, मीन वसे जयुं जल में हो जिनजी तुं मेरा...४ " जिनरं", कहे प्रभु शांति जिनेश्वर, दीठोजी देव सकलमें हो जिनजी तुं मेरा....५ । गिरूआ रे गुण तुम तणा, श्री वर्धमान जिनराया रे; सुणता श्रवणे अमी झरे, म्हारी निर्मल थाये काया रे. गि. १ तुम गुण गण गंगाजळे, हुं झीलीने निर्मल थाउ रे; अवर न धंधो आदएं, निशदिन तोरा गुण गाउं रे. गि.२ झील्या जे गंगाजले, ते छिल्लर जल नवि पेसे रे; जे मालती फूले मोहिया, ते बावल जइ नवि बेसेरे. गि.३ ओम अमे तुम गुण गोठशें, रंगे राच्या ने वळी माच्या रे; ते केम परसुर आदरे, जे परनारी वश राच्या रे गि. ४ तु गति तुं मति आशरो, तुं आलंबन मुज प्यारो रे, वाचक यश कसे माहरे, तुं जीव जीवन आधारो रे. गि.५ .५४ ७.१४१५ Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२०) श्री श्वेतांवर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १४. सविना तीर्थ सविना तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री सविना पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री सविना पार्श्वनाथजी श्री पार्श्वनाथजीका प्राचीन मंदिर है । श्री महावीर स्वामी परिकर युक्त है । जिर्णोद्धार सं. १९२० में हुआ था । श्री पार्श्वनाथजी कुमारपाल के समय के प्राचीन है । दाहिने और बाँये बाजु की प्रतिमा कुमारपाल के समय की है । सं. १६८९ में मूलनायक श्री पार्श्वनाथ लेख युक्त है । दूसरा रंगमंडप सारे भारत में अजोड है । पोष शुद १० के दिन मेला लगता है । १० हजार की संख्या में लोग आते हैं और दर्शन के बाद करीब ७५०० लोग प्रसाद लेते है। प्रभु भजन कर प्रभु भजन, प्यारु प्यारु मने प्रभु भजन; जेनी वाणीनी मने प्रीति लागी छे, ते प्रभु पासे मारे करवू गमन. प्रभु. १ ऋषभ अजित संभव अभिनन्दन, सुमति पद्मम सुपार्श्व रटन. प्रभु. २ चंद्र सुविधि शीतलजिन अर्ची, श्रेयांस वासुपूज्य विमल जिणंद, प्रभु. ३ अनंत धर्म शांति कुंथु अर मल्लि, सुव्रत नमि नेमि पार्श्व भजन. प्रभु. ४ वीर प्रभु भजो वीर थवाने, चोवीश जिनवर मोंघा रतन. प्रभु. ५ आत्मकमलमा लब्धि लेवा, सेवो सेवो प्रभु करी यतन. प्रभु. ६ Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ४ चितोडगढ जिला राष्ट्रीय घोरी मार्ग राज्य घोरी मार्ग रेल्वे मार्ग चीतोडगढ जील्ला EN- भीलवाला जील्ला --NH भीलवाला जील्ला THEO बुंदी जील्ला चितोडगढ करेडा भोपाल सागर कोटा जील्ला छ उदेपुर जील्ला बांसवाला जील्ला क्रम पेइज नं. ४२२ गाँव चितोडगढ़ करेडा भोपाल सागर तीर्थ ४२३ FANAR ERAH Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ HEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE १. चितोड गढ़ श्री आदेश्वर भगवान आचायाहार श्रा माथजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी विकातिनीधारकामलज भी विजय पू. आचार्य देव श्री हरीभद्र सुरीश्वरजी महाराज १. मूलनायक श्री आदीश्वरजी शांतिनाथजी के नीचे सं. १५९६ का एक लेख है । भमतिमें दूसरी बहुत सी प्रतिमाजी है । जो सब महाराजा सांप्रति-कुमारपाल और गढ़ के उपर आठ मिल का किला है । यह किला मौर्य वंश वस्तुपाल तेजपाल के समय की है । लडाई के समय में अनेक के चित्रांगद द्वारा बनाया गया है । सो उसे चित्रकुट का किला भी प्रभुजी को |यहरे में रखे थे | बाद में उन्हे बहार निकालकर कहा जाता है । सं. ८०० में गोहील वंशीय बप्पा रावलने राजा जिर्णोद्धार किया था । गाँव में जैनों के १२ से १५ घर है.। गढ़ मान को हराकर जीता था । १२ वीं सदीमें सिद्धराज ने यहाँ राज पर सिर्फ ओक घर है । यह ७ देरासरजी गढ़ की उपर है। किया था। श्री शांतिनाथजी और श्री महावीर स्वामी मूलनायक का श्री आदीश्वर भगवान मूलनायक चितोड गढ़ में बावन जिर्णोद्धार सं. १८७१ महा सुद १३ के दिन हुआ था । श्री जिनालयमें है । प्रतिष्ठा ९०० साल पहले हुई थी। गोमुख यक्ष के शांतिनाथजी की मूर्ति के नीचे श्री कुमारपाल की मूर्ति है । आ. नीचे सं. १४४८ महा सुद २ के दिन फीर से प्रतिष्ठा हुई थी। ऐसा लेख है । रंगमंडपमें बाँये ओर श्री शांतिनाथजी कुमारपाल श्री गुणसुंदर सूरी म. के द्वारा प्रतिष्ठा हुई थी । श्री महावीर स्वामी महाराजा के समय की हैं । दाहिने ओर श्री अजितनाथजी की बड़ी के नीचे सं. १५५५ का लेख है । दाहिनी ओर सं. ११९८ और मूर्ति है । जो कुमारपाल के समय की है। बाँये ओर सं. १११० का लेख है । चौमुखी कुंड की निकट में २. श्री पार्श्वनाथजी का देरासर उपर के मुताबीक है पार्श्वनाथजी का देरासर है । १४ वीं सदी का सप्त मंझिलवाले मूलनायक की (दाहिने) ओर श्री संभवनाथजी और बाँये ओर श्री कीर्तिस्तंभ में आदीनाथ भगवान आदि की अनेक मूर्तियाँ दिखाई आदीश्वरनाथजी है उनकी प्रतिष्ठा सं. २००५ में संपन्न हुई थी। देती है । सं. २०२९ महा सुद १३ को श्री हरिभद्र सू. म. स्मृति मूलनायक की प्रतिष्ठा प्राचीन समय की है । रंगमंडप में दाहिनी मंदिर में मूलनायक महावीर स्वामी और श्री हरिभद्र सू. म. के ओर देरीमें श्री हरिभद्रसूरी म. जीन्होंने १४४४ में ग्रंथकी रचना अलावा खरतर गच्छ के आचार्यों की प्रतिष्ठा हुई है । यह मंदिर की थी और यह चितोडगढ़ में ही उनका जन्म हुआ था। उनकी खरतर गच्छ का नया है। प्रतिष्ठा भी २०१४ में संपन्न हुई थी । सामने नीतिसूरीजी की मुसलमानों द्वारा अनेक हुमले के कारण मंदिर और किले को प्रतिष्ठा भी सं. २०१४ में हुई थी। यह देरासर भी आदीश्वरजी क्षति पहुँची है । चितोड गढ़ जैसा कोई ओर गढ़ नहीं है ऐसा कहा के मुख्य देरासर की तरह पूराना है। जाता है । सं. १५८७ में शत्रुजय का उद्धार करनेवाले मंत्री ३. यह श्री पार्श्वनाथजी का देरासर बाजुवाले पार्श्वनाथजी से कर्माशा बच्छावत यहाँ के थे । यह स्थान उदेपुर से पूर्व की ओर भी पूराना है । नं. १ के देरासर श्री आदीश्वरकी भमति में श्री ११५ कि.मी. के अंतर पर है। धर्मशाला है । -------ELEEEEEEEEEEEEER Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ४ चितोडगढ जिला (४२३ चितोड गढ़ - समूह जैन देरासरजी २. करेड़ा भोपाल सागर तीर्थ मूलनायक श्री करेड़ा पार्श्वनाथजी एक प्राचीन स्तंभ पर सं. ५५ का लेख है । मालुम होता है की यह मंदिर २००० साल पूराना है । यह बावन जिनालय और मूलमंदिर का नीवसे लेकर शिखर तक का जिर्णोद्धार श्री कस्तुरभाई लालभाई की प्रेरणा से और मार्गदर्शन से श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ ट्रस्ट अमदावाद के ट्रस्टीओं की सीधी देखभाल नीचे हुआ था । वि.सं. २०२९ श्रावण वद ९ के दिन आरंभ करके लगभग १२.१/२ लाख का खर्च किया गया है । यह करेड़ा पार्श्वनाथ के देरासर में प्रभुजी की प्रतिष्ठा वि. सं. की १० वीं सदी में मांडवगढ़ के महामंत्री श्री पेथडशाह ने की थी बावन जिनालय में सब पार्श्वनाथजी है । मूल देरासर की दाहिने ओर देरासर में आदीश्वरजी है । बाँये ओर के देरासर में श्री महावीर स्वामी है । उनकी प्रतिष्ठा वि. सं. २०३३ महासुद १३ बुधवार पूनर्वसु नक्षत्र मीन लग्न कन्या नवाँश शुभ रवि योग में पू. नेमिसूरी म. के परिवार के लावण्यसूरी म. के दक्षसूरी म. के सुशीलसूरी म. और वाचक विनोद आदि गणि और मरुधर रत्न श्री वल्लभ विजयादि की निश्रा में उदयपुर के जैन श्वेताम्बर संघ के द्वारा प्रतिष्ठा संपन्न हुई है। मूलनायक श्री के पीछे भमति में श्री पार्श्वनाथजी बिराजमान है हाल के मूलनायक की तरह वे भी पहले गर्भगृह में मूलनायक थे यह बात यहाँ के मुनिमजी द्वारा जानने को मिली है । शायद यह राजा सांप्रति के समय के है । १००० साल पूरानी प्रतिमाजी है । हाल के मूलनायक भी पूराने है । गर्भगृह के उपर और रंगमंडप की उपर जैसे दो शिखर है । श्री करेड़ा पार्श्वनाथजी हाल के मूलनायक प्रभुजी के दाहिने ओर नीचे ओर बाँये की ओर उपर है | आगेवाली प्रतिमाजी की दृष्टि गर्भद्वार और रंगमंडप के द्वार पर तीच्छी दिखती है । फीरभी जैसा लगता है की भगवान देरासर के प्रवेशद्वार के साथ द्दष्टि मिला रहे हों । मूल प्रतिष्ठा भट्टारक श्री यशोभद्र सू. म. ने की थी । उन्होंने एक ही मुहूर्त पर पाँच देरासर की प्रतिष्ठा की थी। अकबर बादशाह यहाँ दर्शनकरने आये थे । सं. १३४० में | झांझणशाह ने सात मंझिला मंदिर बनवाया था । पर आज उसका कोई निशान तक नहीं है। यह स्थान उदयपुर से ५६ कि.मी. के अंतर पर है । बिचमें कपासन फतेहनगर आता है। Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४) कानमां कानमां कानमां, तारी कीर्ति सुणी में कानमां घडी घडी मेरे दीलथी न वीसरे, चित्त लाग्युं तुज ध्यानमां तारी ०२ प्रतिहारज आठ अनोपम, सेवा करे ओक तानमां. तारी ०३ वाणी अतिशय पांत्रीश राजे, वरसे समक्ति दानमां. तुम सम देव अवर नहि दुजो, अवनितल आसमानमां देखी देदार परम सुख पायो, मगन भयो तुम ज्ञानमां वामानंदन पास पंचासर, प्रगट सकल म्हानमां. जिनउत्तम पदशुं रंग लाग्यो, चोळ मजीठ ध्यानमां जयति शब्द तारी ०४ तारी ०५ तारी ०६ तारी ०७ तारी ०८ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ भोपाल सागर तीर्थ जैन देरासरजी DDDDDEX मुलनायक श्री करेड़ा पार्श्वनाथजी DDDD Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ५ जालोर जिला (४२५ बददददददददददद ददददददददददद जालोर जील्ला राष्ट्रीय घोरी मार्ग राज्य घोरी मार्ग रेल्वे मार्ग +++++++++++++++++++HHHHHH बारमेर जील्ला आहार जालोर उमेदपर सीवाना भिनमाल जसाल सीरोही जील्ला साचार वालोतरा बनासकांठा जील्ला क्रम १. गाँव जालोर आहोर उमेदपुर शिवाना बालोतरा जसोल साचोर (सच्चउरि) भीनमाल पेइज नं. ४२६ ४२८ ४३० ४३० ४३१ ४३२ ४३३ ४३५ वडगाम ४३७ Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १. जालोर मूलनायक श्री महावीर स्वामी मूलनायक श्री महावीर स्वामी जालोर शहर के निकट में स्वर्णगिरि पर्वत पर यह तीर्थ आया हुआ है । वह जालोर का किला है । जालोर शहर जो विक्रम की दुसरी सदी में जाबालीपुर के नाम से बसाया था । उसे स्वर्णगिरि कनकाचल भी कहा जाता था । बहुत से करोडाधिपति यहाँ बसे हुए थे और उस समय के राजा आदि द्वारा यक्षवसति और अष्टापद आदि जिन मंदिरो का निर्माण किया गया था । वि. सं. १२६ से १३५ तक महाराजा विक्रम के वंशज श्री नाहड राजा के समय में यह मंदिर बने हुओ होंगे जैसा अनुमान है । मेस्तुंग सू.म. कृत विचार श्रेणी और श्री महेन्द्रसूरी म. रचित अष्टोत्तर तीर्थमाला में यह तीर्थ का उल्लेख है । सकलार्हत् स्तोच में कनकानचल शब्द से यह स्वर्णगिरि की स्तुति की है । कुमारपाल महाराजा ने १२२१ में यक्षवसति मंदिर का जिणोद्धार कीया था । और १२२१ में उन्हों ने बनाया हुआ पार्श्वनाथ मंदिर "कुमार विहार" की प्रतिष्ठा श्री वादीदेव सू.म. ने की थी १२५६ में पू. पूर्णचंद्र सू. म. द्वारा तोरण प्रतिष्ठा सं. १२५६ में मूल शिखर ध्वज दंड प्रतिष्ठा और १२६८ में श्री रामचंद्रसूरी म. द्वारा स्वर्ण कलश की प्रतिष्ठा हुई थी सं. १२८१ में बादशाह जहाँगीर के समय में यहाँ के राजा गजसिंह के मंत्री मुणोत श्री जयमलजीने जिनमंदिर और अन्य मंदिरोंका जिर्णोद्धार कराया था । मंत्रीकी पली सम्पदे तथा सोहागदे थे और उन्होंने अनेक प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा की थी जो आज भी मौजुद है । जयमलजी के जिर्णोद्धार कराने के बाद जयसागरजी गणि के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न कराई थी और वोही यक्षवसति मंदिर है ऐसा कहा जाता है । अन्त में आ. श्री राजेन्द्रसूरीश्वर जी म. के उपदेश से जिर्णोद्धार हुआ था । __तलहटी में जालोर शहर में १२ मंदिर है । सं. ८३५ में रचि हुई कुवलयमाला श्री उद्योतन सू. म. ने श्री आदीनाथ मंदिर में पूर्ण की थी । उस समय यहाँ बहुत मंदिर थे जिसमें अष्टापद मंदिर भी था । आबु के लुणिंग वसहि के शिलालेख में भी अष्टापद मंदिर का वर्णन है । १२३९ में राजा उदयसिंह के मंत्री श्री यशोवीर में आदीनाथजी के मंदिर में भव्य और कलायुक्त मंडप बनाया था । सं. १३१० में भी उदयसिंह के समय में मंत्री श्री जैतसिंह के आयोजन मुताबिक भगवान महावीर के मंदिर में २४ जिनबिंबो की प्रतिष्ठा हुई थी। तब राजा आदि आये थे । MAHARASHTRA Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ५ जालार जिला (४२७ 0. 00000 0000000 00 जिसमें पालनपुर और वागड़देश के श्रावक मिले थे। १३४२ में सामंतसिंह के द्वारा अनेक प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। सं. १३७१ में जिनचंद्र सू. म. की उपस्थिति में दीक्षा और मालारोपण उत्सव हुआ था । उसके बाद सत्ताधारी के आक्रमण से इन मंदिरो को बहुत नुकशान हुआ था । और कलापूर्ण मंदिरो को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था । जैसे अनेक नमुने और किले पर की मस्जिद और हरजी खांडा मस्जिद में है । जहाँ कई पर जैन शिलालेख भी है । सं. १६५१ में फीर से यहाँ मंदिर होने का उल्लेख है। हाल में कुल १२ मंदिर है। यहाँ के यशोवीर मंत्रीने आबु के मंत्री श्री वस्तुपाल के मंदिर की प्रतिष्ठा में भाग लिया था । उस समय ८४ राजाओं और अनेक मंत्रीओ और आगेवानों ने भी भाग लिया था । यशोवीर शिल्प विशारद थे और उन्होंने वस्तुपाल के मंदिरो में भी १४ भूल बताई थी। उनके गुण और विद्वता की बहुत प्रशंसा हुई थी। यहाँ के मुणोत जगपाल के पुत्र नेणसी जोधपुर के राजा जशवंतसिंह के दिवान थे उन्होंने जैसी कुशलता दिखाई थी कि नेणशी की ख्यात काव्य रचना हुई जो आज भी प्रख्यात है। किले पर के चौमुख मंदिर जो अष्टापद मंदिर है । और जो पार्श्वनाथ मंदिर है । वह कुमार विहार है । जालोर के श्री नेमिनाथ मंदिर में सं. १६५६ में प्रतिष्ठित जगतगुरु श्री हरिसूरीश्वरजी म. की मूर्ति है । नवनिर्मित श्री नंदिश्वर मंदिर भी सुंदर है । स्वर्णगिरि पर २.१/२ कि.मी. लंबा और १.१/४ कि.मी. चौड़ाई का किला है। जिसमें मंदिरों का दृश्य अद्भुत है । उपर और नीचे धर्मशाला है । भोजनशाला है । शिरोही से ७५ कि.मी. दूर है । सांडेराव से ६५ कि.मी. भिनमाल से ७० कि.मी. है 122 नाकोड़ा से ८० कि.मी. है । स्वर्णगिरि जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढी बस स्टेन्ड की निकट में । धर्मशाला फोन नं. ११६ जालोर जालोर तीर्थ जैन देरासरजी (0 Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ AL जालोर तीर्थ सुवर्ण गिरि मंदिर BXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX GAUR FOROK २. आहोर मूलनायक श्री गोडीजी पार्श्वनाथजी १. मूलनायक श्री गोडीजी पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा सं... १९३६ में संपन्न हुई थी । भमति की सब प्रतिमाजी में सं. | १९५५ का लेख है। २. श्री पार्श्वनाथ शिखरबंध देरासर तीनों प्रतिमाजी के नीचे सं. १५४५ का लेख है । दूसरे दो भगवान गर्भगृह की बाहर की बाजु में है । नीचे सं. २००१ का लेख है । मूलनायक का परिकर नया है । निकट में बड़ी जैन धर्मशाला है और उसकी निकट में दादावाडी है। ३. श्री विमलनाथजी की प्रतिष्ठा सं. २००५ में हुई थी उसके पहले के मूलनायक श्री ऋषभदेवजी की प्रतिष्ठा सं. १९५५ में हुई थी । जो हाल रंगमंडप में विद्यमान है। श्री ऋषभदेवजीकी नीचे सं. १४५५ का लेख है । गर्भगृह में चार सुपारी जैसे दो कंगुरे खंडित है | उपर चौमुखजी है उसके पीछे भमति में एक कमरे में बड़े अद्भुत श्री वासुपूज्य स्वामी आदि अनेक प्रतिमाएं साथिया, कमल, मगर, गेंडा की है। उपर के भगवान चौमुखीजी के लांछन है। ४. श्री मूलनायक शांतिनाथजी एक देरासर में ६०० साल पूराने है । बाकी के सब सांप्रति के समय के है तपावासी जैन औंशवाल के महोले हैं । तपगच्छ जैन उपाश्रय है । यह स्थान जालोर से २० कि.मी. है । वहाँ से १५ कि.मी. उमेदरपुर और १० कि.मी. पर तखतगढ़ है । AR che R Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग: ५ जालोर जिला 10:01 010 Samus मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी अब मोहे औंसी आय बनी; श्री शंखेश्वर पास जिनेसर, मेरे तुं ओक धनी. अब गाशा तुम बिन कोइ चित्त न सुहावे, आवे कोडी गुणी; मेरो मन तुज पर रसियो, अलि जिम कमल भणी. अबणाशा तुम नामे सवि संकट चूरे, नागराज धरणी, नाम जपुं निशिवासर तेरो, अ शुभ मुजकरणी. अबणाशा कोपानल उपजावत दुर्जन, मथन वचन अरनी; नाम जपुं जलधार तिहां तुज, धारुं दुःख हरनी. अबागा मिथ्यामति बहु जन हे जगमें, पद न धरत धरनी; उनको अब तुज भक्ति प्रभावे, भय नहि अकनी. अबणाशा सज्जन-नयन सुधारस अंजन, दुरजन रवि भरनी तु मूरति निरखे सो पावे, सुख जस लीलधनी. अबणाक्षा. आहोर जैन देरासरजी DEFEE (४२९ Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३०) - - - - - - - श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ - - - - - ३. उमेदपुर २. उमदपुर मूलनायक श्री भीडभंजन पार्श्वनाथजी उमेदपुर जैन देरासरजी मूलनायक श्री भीडभंजन पार्श्वनाथजी श्री चमत्कारिक भीडभंजन पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा इस नये । देरासरजी में सं. १९९५ के मृगशीर्ष सुद-१० शुक्रवार के दिन हुई थी। अंजन शलाका सं. १९९१ में हुई थी । पाँच पार्श्वनाथजी मूलनायक समान है। १. भीडभंजन, २. दुसरे गर्भगृह में, ३. तीसरे गर्भगृह में, ४. दाहिनी ओर रंगमंडप में, ५. बाँये की ओर रंगमंडप में, कम्पाउन्ड में विशाल जगा है। रमेशा अंग रचना होती है । देरासर शिखरबंध है । मूलनायक ७३ इंच के है। उपरकी मंजिल में श्री महावीर स्वामी मूलनायक है । गाँव में जैनों के ४० घर है । दरवाजे पर दो बड़े हाथी है । पू. आ. श्री वल्लभसूरि म. के पट्टधर पूर्णानंद सू. म. की महेनत और उपदेश से उनके वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । देरासर के बाहर बड़े चौगान में उनकी समाधि पर एक देरी का निर्माण हो रहा है । यहाँ पार्श्वनाथ उमेद जैन बालाश्रम चलता है। १७५ विद्यार्थी हैं भोजनशाला भी है । यह स्थान आहोर से १५ कि.मी. और तखतगढ़ से १० कि.मी. दूर है । सांडेराव जालोर रोड पर है। . ४. शिवाना मूलनायक श्री गोडीजी पार्श्वनाथजी श्री गोड़ीजी पार्श्वनाथ मूलनायक तीन गर्भगृह में और दो रंगमंडप में है । सं. १९२७ शाके १८०१ में प्रतिष्ठा हुई थी । सब भगवान राजा सांप्रति के समय के है। तीनों गर्भगृह शिखरबंध है। श्री गोडीजी पार्श्वनाथ यहाँ ८७० साल पहले प्रतिष्ठित हुओ थे । हाल में पूरा देरासर नया बनाया गया है। (२) चौमुखजी नये पार्श्वनाथ (३) आदीश्वर चौमुखजी (४) वासुपूज्य स्वामी (५) अजितनाथजी यह पाँचों देरासर शिखरबंध है । यहाँ जैनों के १२०० घर है। - - - - - - - - - - - Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ५ जालोर जिला DO मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी ALA || श्री विमलनाथ स्वामिने नमः॥ 文 2 Decad मूलनायक श्री विमलनाथजी मरा मरा मर ५. बालोतरा शिवाना जैन देरासरजी PICCAN DON FO श्री तलनाथ स्वामिने नमः विजय हिमाच पूराने मूलनायक श्री शीतलनाथजी √ 美 ZOak (४३१ Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ - - - श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ - - - मूलनायक श्री विमलनाथजी यह श्री विमलनाथजी देरासर शिखरबंध है । उपर की मंझिल पर श्री शितलनाथजी १५०० साल पूराने हैं । जो पहले नीचे मूलनायक थे । श्री विमलनाथजी का जिर्णोद्धार सं. २०३२ में हुआ था और प्रतिष्ठा भी संपन्न हुई थी । सब मिलाकर यहाँ पाँच देरासर है 19 विमलनाथजी, २ शांतिनाथजी - ३, ३ पार्श्वनाथजी, ४ श्री केसरिया आदीश्वरजी ५ श्री धर्मनाथजी सब शिखरबंध है । यहाँ जैनों के ८५० घर है । आयंबिल भवन और जैन धर्मशाला भी है। = बालोतरा जैन देरासरजी ६. जसोल मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी जसोल जैन देरासरजी मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी श्री सुपार्श्वनाथजीका देरासर प्राचीन और शिखरबंध है । इस के लेख में यह लिखा है । श्री शांतिनाथजी की गद्दी के नीचे सं. देरासर की आसपास गढ़ है । तलहटी में आया हुआ है । भींत के १२३० और १५२४ का लेख है । गद्दी नक्काशीवाली है । जैनों चौड़ाई ३.१/२ फूट की है । श्री सुपार्श्वनाथजी सं. १६८२ में के घर २५० है। प्रतिष्ठित हुआ थें । आरस की ७ प्रतिमाजी हैं । धातु की ४ श्री इसरचंद धींगडमल चालिसा (ट्रस्टी) है । मु. जसोल, प्रतिमाजी हैं । जसोल का पूराना नाम आशावाल था । सं. १६८२ वाया बालोतरा, जिला बाड़मेर पीन-३४४०२४ है। 醫學影剧剧剧剧剧剧剧剧剧剧剧剧剧剧 Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ५ जालोर जिला BACCH ७. साचोर (सच्चउरि) 412139 82 मूलनायक श्री महावीर स्वामी साचोर (सच्चउरि मंडण ) (४३३ Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ तूडवाया फीर किला और मंदिर तोड़ा और सूवर्ण मूर्ति दिल्ही ले गया । एक जैसी भी लोकोक्ति है कि मूर्ति का अंगूठा तोडने के 2 बाद शासनदेव ने मूर्ति को कुँए में अद्दश्य कर दिया और जब सुवर्णका अंगूठा बनाकर जोडने के बाद मूर्ति प्रगट होगी पर वो शक्य न हुआ । यहाँ महावीर मंदिर की निकट में ओक बड़ी मस्जिद है । वही यह असली मंदिर होने का सब अनुमान लगाते है | यह मस्जिद के पथ्थर में सं. १३२२ वैशाख सुद १३ के दिन भंडारी छाड़ा शेठ द्वारा महावीर भगवान के मंदिर का जिर्णोद्धार हुआ था । ऐसा लेख है । श्री महेन्द्रसूरी म. कृत अष्टोत्तरी तीर्थ माला में कनोज के राजा ने १३ वीं सदी में कास्ठमय वीर जिनका मंदिर बनाने का उल्लेख है । वर्तमान में जिवित स्वामी महावीर मंदिर है । इसे कब बनाया था । यह बात का कोई उल्लेख नहीं मिलता परंतु जहाँ आज श्री महावीर स्वामी है वह सं. १४७७ वैशाख वद १ के दिन अंचल गच्छ के श्री जयकीर्ति सू. म. ने अंजन किया था । ऐसा उल्लेख है । उसी प्रकार बड़े वासुपूज्य स्वामी मंदिर में मूल मूर्ति में सं. १४७६ वैशाख वद १ का लेख है । आदीश्वरजी की मूर्ति में है । सं. १४७६ वैशाख वद १ पिप्पल गच्छ के शांतिसूरि म. संतानीय उदयानंद सू. म. का लेख है । ब्रह्मशांतियक्ष में भी उसी साल तिथि और उदयानंदसूरि का नाम है । छोटे वासुपूज्य में भी १४७६ में वैशाख वद १ का दिन साचोर जैन देरासरजी लिखा हुआ है । अंचलगच्छ के यहाँ ५०० घर थे जो सिर्फ दो कुटुंब के है वे सब स्थानकवासी बन गये है और आज भी है उनके श्री. महावीर मूलनायक श्री महावीर स्वामी स्वामी की कायमी ध्वजा आदि के आदेश आज भी चलता है । यह तीर्थ भगवान महावीर के समय में भी था । इस लिये पूजा करने के कार्य से और स्थानिक मुनियों के प्रभाव से स्थानक "जग चिंतामणि" चैत्यवंदनमें श्री गौतम स्वामी भगवानने “जयउं में वे जाते है । ऐसा माना जाता है । वीर सच्चउरि मंडण" जैसी प्रार्थना की है। वह स्तोत्र में नगरी का हाल में पंचका मंदिर जो जिवित स्वामी का माना जाता है। नाम सत्यपुरी बताया है । वि. सं. १३० में नाहड़ राजाने गगनचुंबी पर इस का कोई उल्लेख नहीं है । हाल में सारे मंदिर की हालत मंदिर बनाकर सुवर्णकी वीर प्रभुजीकी प्रतिमाकी प्रतिष्ठा श्री खराब हो गई है । जिर्णोद्धार होने के बाद १९६३ वैशाख सुद ३ जज्जिगसूरीश्वरजी के वरद् हस्तोंसे कराई थी। यह उल्लेख विविध के दिन यति महाविजयजी के वरद् हस्तोंसे प्रतिष्ठा संपन्न हुई तीर्थकल्पमें श्री जिनप्रभसूरि म. ने १४ वीं सदी में लिखा है। है। अब भी जिर्णोद्धार करके २०३८ महा सुद १४ के दिन पू. कविवर धनपाल ने सत्यपुरीय मंडन महावीरोत्सव स्तोत्रं में वीर श्री शांतिचंद्र सू. म. के पट्टधर श्री कनकप्रभ सू. म. के वरद् प्रभुजी की प्रतिमा का बहुत महिमा गाया हैं । यह तीर्थ की महिमा हस्तोंसे प्रतिष्ठा हुई थी । तपगच्छका महावीर स्वामी जीर्ण और बढ जाने से इर्षा के कारण ११ वीं सदी में मालवा के राजा ने आशात होने से हालार देशोद्धारक श्री विजय अमृत सू. म. ने आक्रमण किया था । १३४८ में मोगल सेनाने १३५६ में ___इसका जिर्णोद्धार हो सके इस लिये उन्होंने १७ साल तक घी का अलाऊदिन के भाई अलेफखान ने भी आक्रमण किया था । पर त्याग किया था । इस मंदिर का जिर्णोद्धार करके इसकी प्रतिष्ठा वह सफल न हुआ । १३६१ में अलाऊद्दिन खिलजी खुद आया . २०१३ मृगशीर्ष सुद६ के दिन पं. श्री कंचन विजयजी (कनकप्रभ और जोशी को दबाकर जान लिया की जहाँ तक कीर्तिस्तंभ है तब सू.म.) के वरद् हस्तोंसे संपन्न करवाई थी। खरतर गच्छका श्री तक किला या मंदिर नहीं तूटेगा । यह जानकर कीर्तिस्तंभ को शांतिनाथजीका मंदिर १४७९ महा सुद ४ के दिन प्रतिष्ठा संपन्न 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來喚來來來來來來來來過 Y-GEEEEEEEEEEEEEEEEEEER Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ५ जालोर जिला (४३५ 2 हुई थी । इसका फीर से जिर्णोद्धार करके २०४९ महा सुद १३ के. दिन गणि मणिभद्रसागरजी म. के वरद् हस्तोंसे प्रतिष्ठा हुई थी। उस समय बहुत दानभेट की आवक हुई थी । वासुपूज्य स्वामीकी मूर्ति १४७५ वैशाख वद १ का लेख है । यह १९८५ में बना हालमें बड़ा मंदिर बन रहा है । वह पहले सवगच्छ बाद में चौदसियो गच्छ और हाल में सत्यपुरी गच्छ गिना जाता है। स्टेशन पर श्री कुंथुस्वामी का मंदिर है । उसकी प्रतिष्ठा २०३८ महासुद १३ के दिन पू.आ. श्री कनकप्रभ सू. म. के वरद् हस्तोससंपन्न हुई थी । धातु की बहुत सारी प्रतिमाजी जमीनमें से निकली है। यहाँ १ जिवित स्वामी मंदिर, (मूलमंदिर) २ अचलगच्छ .मूलमंदिर, ३ पोसाल सवगच्छ मंदिर, ४ पूनमिया गच्छ मंदिर, ५ आदीश्वर मंदिर, ६ दोशी महोल्ले में पदमावती मंदिर आदि की कोई माहिती या स्थान उपलब्ध नहीं है । विद्यमान मंदिरों में भगवान महावीर स्वामी वासुपूज्य स्वामी मंदिर, स्वामी आदीश्वरजी मूलनायकों की मूतियाँ दिखाई देती है । ब्रह्मशांतियक्ष की स्तुति आती है । यहाँ के बड़े वासुपूज्य स्वामी मंदिर में १४७६ वैशाख वद १ के लेखवाली वह मूर्ति है । उसमय सुंदरजी की यह जन्मभूमि है । धर्मशाला बस स्टेन्ड की निकट में है । भोजनशाला है। कच्छ राधनपुर वाव थराद से साचोर तक नेशनल हाईवे है । जो बाडमेर जाता है । जालोर, भिनमाल, राणीवाडा, सिरोही, आबु, जोधपुर हाईवे है । थराद ४५ कि.मी. भिनमाल ६२ कि.मी. राणीवाडा २० कि.मी. और बाडमेर ११० कि.मी. के अंतर पर है। ८. भीनमाल मूलनायक श्री शांतिनाथजी भीनमाल जैन देरासरजी Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ GNA मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी आज का पार्श्वनाथ मंदिर प्राचीन और मुख्य है । प्रतिमाजी यह नगर कब बसाया था ईसका कोई उल्लेख नहीं मिलता पर १०११ का लेख है । यह और दूसरी प्रतिमाजी गझनीखानने है। फीर भी ऐसा माना जाता है । कि यह स्थल एक समय पर रखी थी। पर उसे शांति न होने के कारण संघ को वापस कर दी गुजरात की राजधानी का शहर था । पौराणिक कथाओं में भी उसे थी । संघवी वरजांग शेठ ने सं. १६६२ में भव्य मंदिर बनाकर प्राचीन नगरी मानी है । सत्ययुगमें श्रीमाल, चेतायुगमें रत्नमाल, स्थापना की थी उस समय गझनीखानने भी १६ सूवर्ण कलश द्वापरयुगमें पूष्पमाल और कलियुगमें उसे भिनमाल कहा जाता है। चढाए थे। यह उल्लेख पूर्णकमलमुनि रचित भिनमाल स्तवन में भगवान महावीर यहाँ विहार के समय पधारे थे और विक्रम की १ है। कवि माघ के स्वर्गवास बाद भिनमाल था उसे भिल्लमाल के ली सदी में श्री वज्रस्वामी यहाँ पधारे थे । जैन पट्टावली अनुसार नाम से लोठा जानते थे । वीर निर्माण से ७० वर्ष बाद श्री रत्नप्रभसूरिजी म. के समयमें शंखेश्वर गच्छ के उदयप्रभ सू. म. ने सं. ७९१ में प्राग्वट श्रीमाल के राजकुमार सुंदर और मंत्री श्री उहडने यहाँ से और श्रीमाल के बहुत सारे ब्राह्मणोंको जैन बनाये थे । सिद्धर्षि निकलकर ओसिया नगरी बसाई थी । जहाँ श्रीमाल के अनेक गणिने उपमिति भव प्रपंचा की रचना सं. ९९२ में यहाँ की थी। कुटुंबने निवास किया । यह नगरी ६४ कि.मी. मे थी ८४ दरवान पिंडनियुक्ति टिकाकार आचार्य वीर गणि की यह जन्मभूमि है । थे ८४ करोड़पति श्रावक थे और ६४ श्रीमाल ब्राह्मण और ८ गाँव में ८ और बहार की ओर २ मंदिर है। यह सब ८ से १४ प्रागवाट ब्राह्मण थे । सेंकडो की संख्या में शिखरबंध मंदिर थे। वीं सदी तक के है। गांधी मता वास में शांतिनाथजी मंदिर की श्री जिनदास गणिने सं. ७३३ में निशीथ चूर्णिमे ईस नगरी को प्रतिष्ठा श्री हीरविजय सू. म. ने सं. १६३४ में की थी समृद्धशाली बताई है। पार्श्वनाथजी-शांतिनाथजी और बड़े कमरे में श्री महावीर स्वामी पू. उद्योतन सू. म. ने सं. ८३५ में कुवलयमाला में ईसे मंदिर एक साथ में है । महावीर स्वामी का देरासर बड़ा है । ऐसा प्रभावित नगरी बताई है। सात से दसवीं सदीमें प्राभाविक आचार्य कहा जाता है कि श्री पार्श्वनाथ मंदिर आकाश मार्ग पर जा रहा यहाँ पधारे थे और अनेक महान ग्रंथो का निर्माण किया था । था । उसे सिद्ध यति ने यहाँ गाँव की बिच में उतारा जो दसवीं सदी में यहाँ से १८ हजार श्रावकों ने गुजरात प्रति प्रस्थान हाथीवाला मंदिर है। उसके साथ परिकर युक्त महावीर स्वामी किया था । जीसमें मंत्री विमलशाह के पूर्वज श्री नानाशाह भी .. मंदिर है । संघवी सूमेरमलजीने यहाँ नया मंदिर बनवाया था । श्री थे । अंग्रेज व्यापारी निकोल उपलेट जो इ.स. १६११ में यहाँ महावीरजी में धर्मशाला और भोजनशाला है । भिनमाल रेल्वे आया था । उसने भिनमाल के किले का घेराव ५६ कि.मी. का स्टेशन से १ कि.मी. के अंतर पर है । बस स्टेन्ड भी १ कि.मी. बताया है। आज ८ कि.मी. दूर जालोरी दरवाजा है । इस विस्तार की दूरी पर है । जालोर और सिरोही जावाल साचोर से भिनमाल की आजुबाजु की छोटी छोटी पहाड़ीओं में खंडहर दिखाई देते है। पक्की सड़क है । रटना लागी छे अंक तारी हो शांतिनाथ, रटना लागी छे अंक तारी. हत्थिणापुर नगरीनो स्वामी, पिता विश्वसेन पामी; माता अचिराना जाया हो....रटना. प्रभुजन्म सुणी हरखाती, छप्पन कुमारी गीतडां गाती; चौसठ इन्द्र पधारे हो....रटना मरकी रोग मटाव्यो आपे, नाम शांतिनाथ स्थापे; शांति शांतिना दातार हो...रटना. नव पदवी मोटी जेमां, जिनेश्वर ओक ज भवमां; षट पदवीना धरनार हो....रटना लाख अेक वरसनुं आयु, ५ लाख संयमे वीताव्यु; खोलवा मोक्षनुं द्वार हो...रटना. संयम स्वीकार्यो ज्यारे, मास ओक वीत्यो त्यारे; प्रगटाव्यु केवळ ज्ञान हो....रटना अधाति कर्मोन गाळी, शरीर स्पी बंधन टाळी शीघ्र पहोंच्या सिद्धगति मोझार हो...रटना संसारनां सुख खारां, मुजने न लागे प्यारां आपजो मुक्तिमां वास हो...रटना जेवा नयनमां तारा, अहवा शांतिनाथ मारा करजो उज्जवळ उध्धार हो...रटना वेलबाइ स्वामी गुरणी प्रतापे शिष्या आत्मिक आनंद चाखे; लेवा अविचल स्थान हो...रटना . 路參參參參參參參參參參參參參參參參 Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग: ५ जालोर जिला मूलनायक श्री महावीर स्वामी श्री महावीर स्वामी चरणपादुका ९. वडगाँव मूलनायक श्री महावीर स्वामी यह तीर्थ प्राचीन है। यहाँ महावीर स्वामी पधारे थे ऐसा कहा जाता है। महावीर स्वामी की चरण पादुकाजी यहाँ है । राणीवाड़ा से १० कि.मी. के अंतर पर है। धानेरा और सिरोही के साथ रोड से जुड़ा हुआ है। asगाँव जैन देरासरजी महावीर सुकानी थइ ने संभाळ, साचो किनारो मुजने बताव, नैया मधदरिओ डोलती; तुं छे जीवननो सारथी. जीवन नैया भवसागरमां डोलती, आशानी आगमां अंधारे झुलती बागे मायाना मोजा अपार, हां हुं तारा आधारथी महावीर. 9 वैभवना वायरा दिशा भुलावता, आशाना आमला मनने डोलावता, तोफान जाम्युं छे. दरिया मोझार, होडी हलकार मारती महावीर. २ उंचे छे आम अने नीचे छे धरती, जुठो जाण्यो आ सघळो संसार, कायानी नावनुं काचुं छे लाकडु, दोरी भक्तिनी झाली किरतार, (४३७ मान्यो छे अंक में साचो तुं सारथी, जीवुं छु तारा आधारथी- महावीर. ३ तुं छे मदारी ने हुं हुं तारुं माकडु, निककुं हुं खोटा संसारथी -महावीर. ४ तोफानी सागरथी नैयाने तारजो, छल्ली अमारी आ अरजी स्वीकारजो, प्रभुजी दर्शन दोने तत्काळ, झुरुं हुं तारा वियोगथी महावीर. ५ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८) जेसलमेर जील्ला राष्ट्रीय घोरी मार्ग राज्य घोरी मार्ग रेल्वे मार्ग पाकिस्तान रामगढ़ N क्रिष्नागढ लोद्रवा इस्लामगढ अमरसर वहमसर जेसलमेर क्रम गाँव का नाम १. जेसलमेर २. बह्मसर ३. अमरसर ४. लोद्रवपुर ५. पोकरण शिव बारमेर जिल्लो पाना नं. ४३९ ४४२ ४४२ ४४३ ४४६ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ बीकानेर जील्ला पाकरण Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ६ जेसलमेर जिला (४३९ १. जेसलमेर SATTA मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 880) ORB 美国 De जेसलमेर तीर्थ जैन देरासरजी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग ६ जेसलमेर जिला मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी यह मंदिर जेसलमेर गाँव की निकट में छोटी पहाड़ी पर किले में है । रावल जेसलजी ने अपने नाम पर से यह किला का निर्माण किया था । इसे सं. १२१२ में बनाया था । उनके भतिजे भोजदेव की गद्दी लोद्रवा में थी । चाचा भतिजे के बिच में अनबन होने से जेसलजी ने महंमद घोरी के साथ संधि करके लोद्रवा पर चढ़ाई की थी। भोजदेव और हजारों योद्धा की मृत्यु हुई और लोद्रवा बेरबिखेर हो गया । लोद्रवा से श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी यहाँ लाये गये थे । लोद्र राजपुतों की राजधानी लोद्रवापुर में थी यह राज्य सगर राजा के आधिन था। उनके पुत्र श्रीधर और राजधर जैनाचार्य से उपदेश पा कर जैन धर्मी बन गये थे । और उन्होंने यह चिंतामणि पार्श्वनाथजी का मंदिर बनाया था। प्रतिभाजी पर सं. २ का लेख है । यह लेख २००० साल से भी प्राचीन है । यह प्रतिमाजी जेसलमेर लाने के बाद १२६३ में फाल्गुन सुद ३ के दिन आ. श्री जिनपति सूरीश्वरजी द्वारा प्रतिष्ठा संपन्न हुई। यह उत्सव श्रेष्ठि श्री जगधरने बड़ी धामधूम से मनाया था । आ. श्री जिनपति के बदले श्री जिनकुशल सू. म. के हाथों से प्रतिष्ठा हुई थी। ऐसा भी कहा जाता है । उसके बाद १४५९ में श्री जिनराज सू. म. के उपदेश से मंदिर का प्रारंभ हुआ और १४७३ में श्री जिनवर्धन सू. म. के वरद् हस्तों से राउल लक्ष्मणसिंह के राज्यकाल में रांका गोत्रीय श्री जयसिंह नरसिंह द्वारा प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। तब से इसका नाम लक्ष्मण विजय मंदिर रखा गया है। यह मुख्य मंदिर है। दुसरे मंदिर १६ वीं सदी में बने थे। यहाँ लगभग २७०० जैन परिवार थे और धर्म का केन्द्र था । शिल्पकारों ने भी यहाँ अपनी कला का बड़ा भारी प्रदर्शन किया है । मंदिर और मकानों पर भी उत्कृष्ठ कला के नमुने देखने को मिलते है। यहाँ के पीले मजबुत पथ्थरों पर सुक्ष्म कला कि अद्भुत नक्काशी देखने को मिलती है। यहाँ की कला को देखकर आबु देलवाड़ा-राणकपुर, खजुराहो की कला की तुलना कर सकते है। जेसलमेर में श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ मुख्य है। उसकी भमति में एक प्रभुजी को दाहिने और २४ देव देवियों की मूर्तियाँ है जो आरस की है। यहाँ सं. १४७१ का लेख है । मंदिर की भमित में अमुक प्रतिमा यहाँ के पीले रंग के आरस की बनाई गई है। २ श्री शितलनाथजी का देरासर की प्रतिष्ठा सं. १४९९ में संपन्न हुई थी। हाल में मूलनायक श्री शांतिनाथजी है। ३ श्री संभवनाथजी देरासरजी की प्रतिष्ठा सं. १४९८ में संपन्न हुई थी। श्री जिनदत्त सू. म. के कपड़े अंक संदूक में बड़ी देखभाल से रखे गये हैं सहस्त्र फणा लोद्रवा पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १६७५ में संपन्न हुई थी । भूयहरे में जो ज्ञान भंडार है । वह जिनभद्रसूरि ज्ञान भंडार है । यहाँ एक जगे पर छोटे पार्श्वनाथजी है, स्फटिक महावीर स्वामी, कसोटी के पार्श्वनाथजी, सुखड़ की प्रतिमाजी, सिद्धचक्र सच्चे मोती के है । धरणेन्द्र पद्मावती सहित पार्श्वनाथ और महावीर स्वामी जन्म माता सहित पूराने रंगीन फोटोग्राफ है जिनभद्रसूरी भंडार में ४२६ आगम ताड़पत्र पर लिखी हुई एल्युमिनियम की पेटी में रखी हुई है। तीन धातु का रंगीन कल्पवृक्ष है । सरस्वति का बड़ा पट्ट है । आगम प्रभाकर श्री पूण्य विजयजी म. सा. ने यह सब का संशोधन कार्य किया है। उनका भी यहाँ फोटु रखा है । ४२६ आगम की ताड़पत्र की पेटी यहाँ से दूसरे भूयहरे में है । यहाँ चिंतामणि की भगति में एक बड़ा लेख है। संभवनाथजी के मंदिर में भमित के पीछे तीन चौमुखजी एक दूसरे के उपर है । वहाँ १५१८ का लेख है । यहाँ एक शिलालेख भी है। सं. १५०५ की साल एक महायंत्र में लिखा है । ४ श्री शांतिनाथजी मंदिर है। पंचधातु के पंचतीर्थी बड़े है । यह शांतिनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १५८३ में संपन्न हुई थी यहाँ नीचे एक बड़ा लेख है । ५ अष्टापदजी का देरासरजी है। ६ एक देरासर पर ताला लगाया हुआ है। अंदर जाने का कोई प्रबंध न होने से बहार से दर्शन करने पड़ते है। ७ श्री चंद्रप्रभस्वामी का अद्भुत नक्कासीवाला प्राचीन मंदिर है। ८ श्री ऋषभदेवजी का देरासर है जीसमें रंगमंडप में भरत बाहुबली की मूर्ति काउस्सग्गिया की नीचे है। सं. १५३६ का लेख भी है । ९ श्री महावीर स्वामी का देरासर प्राचीन है जो उपर के सब देरासरों से अलग आया हुआ है। श्री शेत्रुंजय महा तीर्थ के बाद इतनी सारी प्रतिमाजी सिर्फ यहाँ ही देखने को मिलती है । यहाँ के ज्ञान भंडार के नाम नीचे दिये है। १ श्री ब्रह्मभंडार - किले के मंदिर में २ तपागच्छीय भंडारआचार्य गच्छ के उपाश्रय में ३ बृहतखरतर गच्छीय भंडारभट्टारक गच्छ के उपाश्रय में । ४ लोकागच्छिय भंडार-लोका गच्छ के उपाश्रय में । ५ डुंगरशी ज्ञान भंडार-डुंगरशी उपाश्रय में । ६ थी शाह भंडार थीरशाह शेठ की हवेली में है । यहाँ के धीरशाह शेठ, संघवी श्री पांचा शेठ, संडासा शेठ, जगधर आदिने धर्म के बड़े काम किये है। धीरुशाहने शेत्रुंजय का संघ निकाला था और लोद्रवपुर तीर्थ का अंतिम जिर्णोद्धार भी किया था। संघवी श्री पांचा शेठ ने शेत्रुंजय के १३ दफा संघ निकाले थे । शेठ संडासाने किला बनाया था। और मंदिर के लिये मुलतान जाने की कथा बहुत रोचक है। धर्मशाला और भोजनशाला है । किले पर भी धर्मशाला है । जोधपुर से बाडमेर रोड है । धर्मशाला से रेल्वे स्टेशन १.१/२ कि.मी. दूर है। किले के मंदिरो से स्टेशन करीब २ कि.मी. के अंतर पर है । श्री जेसलमेर लोद्रवापुर पार्श्वनाथ जैन श्वेताम्बर ट्रस्ट जैन मंदिर जेसलमेर फोन नं. ३० (४४१ Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ---- - - ---- - --- -- २. ब्रह्मसर ब्रह्मसर जैन देरासरजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथजी यहाँ के अमोलकचंदजी माणेकलालजी ने यह देरासर बनाकर सं. १८८४ में प्रतिष्ठा करवाई थी। फीरसे सं. १९४४ में मोहन मुनिके वरद हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी वह मूर्तिको जेसलमेर के किलेसे लाई गयी है । १.१/२ कि.मी. दादावाडी है छोटी धर्मशाला है। जेसलमेर १३ कि.मी. दूर है । यह स्थान जेसलमेर - बागरा मार्ग पर है । जेसलमेर की पेढी द्वारा वहीवट चलता है । S * +0-0-04 Fooo ३. अमरसर मूलनायक श्री ऋषभदेवजी श्री ऋषभदेवजीका मंदिर सं. १९२८ में पटवा हिंमतरामजी बाफनाने बनाया था । श्री जिनमहेन्द्रसूरिजी म. के वरद् हस्तोंसे ईनकी प्रतिष्ठा संपन्न हुई है । मूल देरासरजी की नक्कासी अद्भुत है । हालमें जिर्णोद्धार का काम चलता है । यहाँ जेसलमेरकी बारिक नक्कासी वाला यह देरासर गाँव बाहर है | रोडसे थोड़ा चलना पडता है | बाफना कुटुंबवालोने अकेलेही यह देरासर बनाया है । बाजुमें थोडी सी जगा है । जो बाफना शेठकी है। शेठजी की मूर्तिमें सं. १९२८ माघ सुद १३ का लेख है। यह देरासर श्री जिवनलाल बाफनाने बनाया है। उसके पीछे एक बड़ा - - - --- तालाब है ।उसके सामने ओसवाल पंचायत का मंदिर जो डूंगरसिंह जति के नामसे पहचान जाता है । उस समये मुस्लिम आक्रमण चालु था । लडाई बंध होने के बाद विक्रमपुर से यह मूर्ति वापस ले आये थे । यह विशालकाय मूर्ति पर वि. सं. १५१४ का लेख है। पीछे के भाग में जतिने इलमसे बनाया हुआ एक कुँआ है । कम्पाउन्डमें जिर्णोद्धार का सं. १९०३ का लेख है । बाग में जतिने उपाश्रय किया था। इसके सामने रास्ते पर एक जिनमंदिर है । जो शेठश्री सवाईरामजी प्रतापचंदजी का है । जैन धर्मशाला रोड पर है। जेसलमेर स्टेशन ३ कि.मी. दूर है । जेसलमेर-लोद्रवा रोड पर है। - -ब-ब बस Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ६ जेसलमेर जिला मूलनायक श्री आदीश्वरजी ४. लोद्रवपुर तीर्थ मूलनायक श्री सहस्रफणा (लोद्रवा ) पार्श्वनाथजी प्राचीन कालमें लोद्र राजपुतों की यह राजधानी थी और उसे लोद्रवपुर कहा जाता था यहाँ भारत का प्राचीन विश्व विद्यालय था श्री सगर राजा के पुत्र श्रीधर और राजधरने जैनाचार्य के पास से उपदेश ग्रहण करके वे जैनधर्मी बन गये थे । उन्होंने श्री चिंतामणि पार्श्वनाथ का मंदिर बनवाया था । यह बात सहज गणिवरने शतदल पद्मयंत्र की प्रशस्ति में लिखी है । जो गर्भगृह की दाहिने ओर देखने को मिलती है। जेसलजीने जेसलमेर बसाया था । उसे उनके भतिजे लोद्रवा के राजा राजदेवकी साथ अनबन हो गई और मुहंमदघोरी की साथ उसने संधि कर युद्ध किया । राजदेवकी हार हूई लोद्रवा तहसनहस हो गया तब यह चिंतामणि पार्श्वनाथ को लोद्रवा से जेसलमेर लाये गये और वही आज मुख्य देरासरजी के मूलनायक है सं. २ का लेख आज भी यहाँ मोजुद है । जो २००० साल पूराना है । शेठ श्री धीरशाहने यह प्राचीन मंदिरों का जिर्णोद्धार किया था । जब वे शेत्रुंजय यात्रा संघ से वापस आ रहे थे । तब उन्हें दो प्रभुभक्त सोमपुरा कारीगर मीले उन्होंने जिवनभर की महेनत से बनाई हुई सहस्रफणा पार्श्वनाथ की और अन्य दो मूर्तियाँ लेकर मुलतान जा रहे थे । उस समय भगवान ने उन्हें स्वप्न में कहा कि इन मूर्तियाँ धीरुशाह को दे देना और धीरशाह को स्वप्न में कहा कि इन मूर्तियों को रख लेना दूसरे दिन दोनों मिले और शेठने अमरसर जैन देरासरजी मूर्तियों के वजन बराबर सोना (सूवर्ण) देकर यह मूर्तियाँ खरीद कर ली लकड़ी के रथ में मूर्तियाँ लाई गई थी और सुंदर नक्कासी वाला रथ भी साथ में दे दिया जो आज भी लोद्रवपुर में है 1 वैसा कहा जाता है कि शेठ इस रथ को तीर्थयात्रा में भी साथ ले गये थे । दुर्लभ कसोटीवाले सहस्रफणा पार्श्वनाथजी कहा जाता है । सं. १६७३ में मृगशीर्ष सुद १२ के दिन आ. श्री जिनराज सूरिश्वरजी म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । थीरुशाह ने प्राचीन तीर्थ का उद्घारकर के बड़ा सुकृत्य किया अंतिम जिर्णोद्धार सं. २०३४ में हुआ था । पार्श्वनाथ के नीचे १२३७ का लेख है । एक तूटे हुओ परिकर में ११२२ का लेख है । पहले के समय में जैनाचार्य यह रास्ते से मूलतान जाते थे और उन्होंने राजकुमारो को प्रतिबोध किया था। बाद में लोद्रवपुर तीर्थ की स्थापना कि गई थी। आज यहाँ नगर के अवशेष पाये जाते है । यहाँ अधिष्ठायक नागदेव का भी स्थानक है जो कभी कभी दर्शन भी देते है। मद्रास के तीर्थ दर्शन का प्रतिनिधि मंडल जब यहाँ आया था । तब उन लोगों को दर्शन हुये थे । दूसरे सहस्रफणा पार्श्वनाथ भमति में मूलनायक की बाँये ओर प्रवेशद्वार की निकट में अक छोटे देरासर में विराजमान है। धर्मशाला और भोजनशाला है । यह जगा जेसलमेर से १५ कि.मी. दूर है । वहीवट जेसलमेर की पेढी द्वारा होता है। फोन नं. ३० यह लोद्रवा पार्श्वनाथजी की यात्रा बहुत महत्व की है। (४४३ Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1888 仁 FE PEON 阿刁難又回 CONC FIG NURED 国 लोद्रवपुर तीर्थ प्रवेशद्वार •लोद्रवपुर तीर्थ जैन देरासरजी Fotok RAS 用 ARNO E 軻 NEO 可口 「學 श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ YGY नागराज स्थानक H Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग ६ जेसलमेर जिला तार by teac मूलनायक श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथजी 832 (४४५ Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ गुंबज ५. पोकरण मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी । पोकरण जैन देरासरजी Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ६ जेसलमेर जिला SEARNOORATOPATI - मूलनायक श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथजी जिनसागरसूरी के शासन के श्री जिन उदय सूरी द्वारा पोकरण श्री चिंतामणि मोटा पार्श्वनाथजी ११ फणा वाले किशनदेव राजा के समय में प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । श्री है । सं. १५४८ में प्रतिष्ठा हुई है । १६ वीं सदीमें यह देरासर ऋषभदेव की ४ प्रतिमाएँ प्राचीन संप्रति राजा के समय की है। बनाया गया है । प्रतिमाजी आकर्षक है । सं. १८५६ में एक तीन इंच की छोटी आरस की प्रतिमाजी है । एक आरस जिर्णोद्धार हुआ था । १८८३ में फीर से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। की बड़ी चोविसी भी है । बड़ी पद्मावती देवी की फणा वाली तीनों देरासर शिखरबंध है । दूसरे देरासरजी में श्री शांतिदायक मूर्ति गर्भगृह में है। रंग मंडप में देवी चकेश्वरी आरस के है । पार्श्वनाथजी चिंतामणि पार्श्वनाथ से उँचाई में छोटे है । ९ फणा दाहिनी और हर एक देरासर में बड़े गोल पथ्थर पर सिंदूर है, सं. १८५६ में जिर्णोद्धार करके यह पार्श्वनाथजी की लगाया है । यह कोई देव की मूर्ति दिखाई देती है । मूलनायक प्रतिष्ठा हुई है । छ पादूकाजी अलग अलग जगा पर है । यह बड़े आकर्षक और भव्य है । स्टेशन १ कि.मी. के अंतर पर है । तीर्थका वहीवट जेसलमेर लोद्रवा पार्श्वनाथ पेढी के हस्तक है। यह तीर्थ जोधपुर-जेसलमेर रोड पर आया हुआ है । छोटी तीसरे श्री ऋषभदेवजी देरासर भी शिखरबंध है । शाके धर्मशाला भी है। यह तीर्थ का कारोबार जेसलमेर तीर्थ पेढी १७४८ का लेख पोकरण नगर के खरतर गच्छीय श्री. द्वारा चलता है । मु. पोकरण जि. जेसलमेर. "अक्षय तृतीया" नमो मरिहंताणं नमो सिध्दाएंग नमो मायरियाणं नमो उवज्झाया नमो लोए सबसाहणं एसो पंच-नमुक्कारी सव-पावप्पणासो मंगलाए च सवेसि पठम हवड़ मंगलम अमे तमारा बालुडाने, हा बालुडाने, द्वार तमारे आव्या रे, | भाव भक्तिनी भेट लइने, दर्शन करवा आव्या रे... अमे तमारा बालुडाने...१ चंडकोशीने उगारवाने, विष सही अमी दीधुं रे अवा दीन दयाळु प्रभुजी, शरण तमारूं लीधुं रे. अमे....२ अगणित छे उपकार तमारा, दीन दयाळा दीन दयाळा; भक्तवत्सल भगवान तमे छो, भकतोना रखवाळा रे. अमे....३ राग द्वेषथी अळगा राखी, भ्रातृभावने प्रगटावो रे; धर्म प्रमाणे वर्तन करीओ, ओवी वृत्ति जगावो रे. अमे....४ महावीर जिनने विनवू कर जोडी, सत्यनुं भान करावो, संमति आपी सकळ विश्वमां; सुखशांति प्रसराबो रे. अमे...५ Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८) 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 ····················· जोधपुर जील्ला राष्ट्रीय घोरी मार्ग राज्य घोरी मार्ग रेल्वे मार्ग जेसलमेर जील्ला बीकानेर जील्ला N फलोधी 'ओसीया बारमेर जील्ला F गांगाणी मंडोर नाकोडा क्रम गाँव का नाम 9. २. जोधपुर ३. ४. ५. ६. ७. ८. श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग樂樂樂心 ओसीयाजी तीर्थ फलोधी तीर्थ मंडोर तीर्थ भावडी कापरडाजी तीर्थ गांगाणी नाकोडाजी तीर्थ जोधपुर नागोर जील्ला कापरडाजी पाली जील्ला पाना नं. ४४९ ४५२ ४५४ ४५४ ४५५ ४५६ ४५८ ४६० बीलारा 送來來來來來來來來來刺來來來來來來無來來來 來果來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ७ जोधपुर जिला १. ओसीयाजी तीर्थ ओसीया तीर्थ मूलनायक श्री महावीर स्वामी (४४९ Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन: भाग सिद्धारथना रे नंदन विनवू, विनतडी अवधार; ___ भवमंडपमा रे नाटक नाचीयो, हवे मुज दान देवराव, हवे मुज पार उतार. सिद्धा.१ त्रण रतन मुज आपो तातजी, जेम नावे रे संताप; दान दियंता रे प्रभु कोसीर कीसी ? आपो पदवी रे आप. सिद्धा.२ चरण अंगुठे रे मेरु कंपावीयो, मोडयां सुरनां रे मान; अष्ट कर्मना रे झगडा जीतवा, दीधां वरसी रे दान. सिद्धा.३ शासननायक शिवसुख दायक, त्रिशला कुखे रतन; सिद्धारथनो रे वंश दीपावीयो, प्रभुजी तमे धन्य धन्य सिद्धा.४ वाचकशेखर कीर्तिविजय गुरु पामी तास पसाय; धर्मतणा अह जिन चोवीसमा, विनयविजय गुण गाय. सिद्धा.५ ओस्वाल प्रतिबोधक पू.आचार्य श्री रत्नप्रभ सूरीश्वरजी म. ओसीया तीर्थ जैन देरासरजी Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ७ जोधपुर जिला (४५१ 0 मूलनायक श्री महावीर स्वामी ईस नगरी के प्राचीन नामे उपकेश, पट्टन, उरकेशपुर मेलपुर, पट्टर, नवनेरी आदि है । यह नगरी बहुत बड़ी थी। लोहवाट और तिवारी उसके महोल्ले थे । १४ वीं सदि में रची हुई उपकेशगच्छ पट्टावली अनुसार विक्रम संवत ४०० पूर्व महावीर स्वामी के निर्वाण के बाद ७० वर्ष में श्री पार्श्वनाथ प्रभुजी के सातवें पट्टधर श्री रत्नप्रभसूरीश्वरजी म. ५०० शिष्यों के साथ यहाँ पधारे थे उस समय यहाँ राजा उपलदेव और मंत्री उहड़ थे। दोनों ने बोध ग्रहण कर जैन धर्म को अंगीकार किया और यह महावीर स्वामी का मंदिर बनवाया था । और श्री रत्नप्रभसूरीजी म. के वरद् हस्तों से इसकी प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । श्री रत्नप्रभसूरीजी म. ने शुरवीर राजपुतों को व्यसन त्याग करवा के जैन धर्मी बनाये थे और ओसवंश की स्थापना की थी । आज भी उन ओशवाल परिवारों में परमार-राठोड-सोलंकी वि. गोत्र है । यह ओसवाल भारत के अलावा परदेश में भी है। यह लोग समृद्धिवान है; और जैन धर्म की प्रभावना, जिवदया और परोपरकार के बहुत से काम करते है। अद्भुत कारीगरी वाले श्री महावीर स्वामी मूलनायक के देरासर में रंगमंडप बाहर आते. दाहिने बाजु में दिवाल में एक प्राचीन शिलालेख है । उसमे सं. १२३४ के मृगशीर्ष वद ७ मंगलवार के दिन जिर्णोद्धार होने का लेख है । दूसरा लेख सं. १८०२ में जिर्णोद्धार हुआ है । यह लेख भी है। . एक नक्कासी वाले दरवाजे पर सं. १०३६ आषाढ़ सुद १० का लेख है । एक सभामंडप में सं. १२३४ में जिर्णोद्धार होने का भी लेख है । श्री महावीर स्वामी मूलनायक की प्रतिमाजी बालु की बनाई गई है; और उसके पर सुवर्ण का लेप किया है । सारे राजस्थान में यह सब से पूराना मंदिर है । करीब २५०० साल पूराना है । इससे पूराना राजस्थान में कोई मंदिर नहीं है । कम्पाउन्ड में श्री जिनदत्तसूरीजी की आरस की १ मूर्ति है । बारिक नक्कासीवाली छोटी देरी में नई मूर्ति बिठाई है । बाजु में पादूकाजी है । एक दूसरी देरी में भी प्राचीन मूर्ति है । एक जगे पर प्राचीन कलाकृति वाला तोरण भी है। यह एक ही पथ्थर में से बनाया है। तीसरी देरीवाली मूर्ति सब से प्राचीन है । जहाँ जिनराजकी नई प्रतिमाजी है । देरासर के बाहर के भाग में सं. १२९१ का लेख है । जीस में २२ देवीओं की मूर्ति ८ जो जमीन में से निकली है और जीस के नीचे सं. १३५१ का लेख है । इसकी साथ में काउस्सग्गिया की मूर्ति भी निकली थी । जीसमें सं. ९३४ का लेख है । जो आज दिल्ही के संग्रहस्थान में है। भमति में चौथी देरी में प्रभुजी जो कपास की पूणी में से बनाये हुए नाग-नागिन का भव्य और चमत्कारिक एक दूसरों से मिला हुआ जोडा है । जो यहाँ के अधिष्ठायक है। जीसकी पर चांदि का लेप किया गया है । भमति में एक देरी है । जहाँ ४ अखंड दीपक ज्योत है । मूलनायक की दाहिनी ओर कम्पाउन्ड में एक देरी में ऋषभदेवजी है। दूसरी में श्री पार्श्वनाथजी है । मूलनायक के सामने कम्पाउन्ड है । सभा मंडप भी है । जीस में १२३१ माघ सुद ८ का लेख है। मूलनायक की बाँये ओर जहाँ कंपाउन्ड है । वहाँ देरी में श्री जिनदत्तसूरीजी की मूर्ति और पादुकाएं है । दूसरी में संभवनाथ, तीसरी में नेमिनाथ, चौथी में ऋषभदेवजी की बड़ी मूर्ति जो ५०० साल पूरानी और परिकरयुक्त है । उसके सामने इसी प्रकार की मूर्ति है । मोहनलालजी महाराज की मूर्ति इस भाग में है । २०० साल पहले उन्हों ने बालु के नीचे ढके हुओ इस देरासरकी खोज की थी । बालु के पार्श्वनाथजी की निकट में दो पार्श्वनाथजी की श्याम रंग की मूर्तियाँ है । मूलनायक श्री महावीर स्वामी की प्रतिष्ठा युग प्रधान आचार्य देवश्री रत्नप्रभसूरी म. की मूर्ति इस भाग में है । जो रंगमंडप के मूलनायक की बाँये ओर है । इसकी बाजु में परिकर युक्त ऋषभदेवजी की दो बड़ी मूर्तियाँ के पास सं. ११५१ का लेख है औरंगझेब के समय में मूसलमानों ने इस मंदिर और मूर्तियाँ तोड़कर बड़ा भारी नुकशान किया था। मूलनायक श्री महावीर स्वामी के मंदिर पर चढ़ने के लिए १०८ पगथी हैं । जो जमीन में छ फूट के गेब पर है। ओसवालों की कुलदेवी ओसियादेवी (सच्चाई देवी) का ओसवालों को श्राप है । इस वजह से ओसवाल यहाँ घर या दूकान बनाकर स्थिर नहीं रह शकते है । कोरटा के इतिहास में वीर निर्वाण से सं. ७० में श्री रत्नप्रभसूरि म. ने कोरटा और ओसिया के दोनो मंदिरो की प्रतिष्ठा एक साथ एकही मुहूर्त में दो स्प धारण करके की थी भिनमाल के इतिहास में भी राजकुमार उपलदेव और मंत्री उहड़ भिनमाल से यहाँ आकर ओसिया नगरी बसाई - उपकेश नगर भी बसाया था । आचार्य श्री से बोध पाकर जिन धर्म स्विकार किया और भव्य जिन मंदिर बनाकर आचार्यजी के हाथों से प्रतिष्ठा कराई थी । यहाँ संप्रति राजाने मंदिर बनाकर प्रतिमाजी पधराई थी । पूरातत्त्ववेता मानते है कि यह स्थान और शिल्प ८ वीं सदी का है नयप्रमोद द्वारा ओसिया वीर स्तवन में १२ वीं सदी में यह नगरी बसाने का लिखा है। पर यह सत्य नही लगता है। ओसवाल उत्पत्ति में उहड़ी मंत्री द्वारा सं. १०११ में ओसिया बसाया था ऐसा उल्लेख है । सं. १०१७ में मंदिर बनाने का लिखा है । यह विगत भी स्तवन जैसी है जो हम मान नहीं सकते। Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२) - - - - - - मंदिर में पूनिआ बाबा नाम की अधिष्ठायक देव की मूर्ति है जो प्राचीन है । चामुंडा देवी को आचार्य श्री ने प्रतिबोध करके सम्यकत्वी बनाई थी | और उन्हें सच्चाई माताजी का नाम देकर अलंकृत किया है । उनकी दैवी शक्ति से बालु और गायके दूध से भगवान श्री महावीर की प्रतिमा बनी है । और उसे मूलनायक के स्थान पर आचार्यश्री ने स्थापित की है । शिल्प और स्थापत्य की दृष्टि से यह मंदिर जगप्रसिद्ध है। मंदिर के शिल्प और स्थंभ भी कलामय है। भगवान नेमनाथ चरित्र, भगवान महावीर अभिषेक गर्भहरण व्याख्यान सभा आदि सब कलात्मक है । यहाँ कार्तिक मास श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग- - - - - - - की सुद ३ के दिन मेला लगता है। यहाँ से १ कि.मी. दूर दादावाडी है | आचार्य श्री रत्नप्रभ सू. म. की चरण पादूका भी है । सच्चाई माता का मंदिर १ कि.मी. के अंतर पर है । नगर की जनसंख्या १० से १२ हजार की है। जैनो के घर नहीं है । धर्मशाला और भोजनशाला है ओसिया स्टेशन जोधपुर जेसलमेर रेल्वे लाइन पर है । स्टेशन से मंदिर १ कि.मी. के अंतर पर है । पेढी के कार्यकर स्टेशन पर यात्रियों की तलाश में आते है । जोधपुर ६५ कि.मी. और फलोधि भी ६५ कि.मी. के अंतर पर है। YRKKAKKAKKAKKAKKAREKKKKKAKKAKKAKKKKAKKAKKKAKKAKKAKKKAKKARY २. जोधपुर E-E- - - - -- मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी । १. यहाँ शिखरबंध श्री पार्श्वनाथजी का देरासर है । नीचली मंझिल पर श्री कुंथुनाथजी आदि है । यहाँ देरासरकी निकटमें विशाल धर्मशाला है । इसके अलावा जोधपुर गाँवमें और भी मंदिर है । और यह सब ४००-५०० साल पुराने है शहरकी आबादी करीब ६ लाख की है । मुम्बई के एक परा समान लगता है। राजस्थान में जयपुर से दूसरा नंबर का शहर है। २. श्री शांतिनाथजी का पूराना देरासर है। शांतिनाथजी की मूर्ति सं. १७१५ की है । इसके साथ गुंदीके महोल्ले में और भी ४-५ मंदिर है। ३. राव श्री जोधाजीने इ.स. १४५९, १२ वीं मई के दिन जोधपुर शहर बसाया था । उसी समयमें कोलरी महोल्लाका चिंतामणि पार्श्वनाथजी का देरासर बना था । यह मूर्ति यहाँ सो सालसे प्रतिष्ठित है कुमारपाल के समय की यह मूर्ति है । दाहिने और बाँये बडे सहस्रफणा पार्श्वनाथजी है । पहले यह मूर्ति मूलनायक की थी यह जेसलमेर के पटवाका काँच का मंदिर था जीसकी देखभाल उनके प्रपौत्र आदि रखते है । इसके पर शांतिनाथजी की मूर्ति स्फटिक की है । हस्तलिखित ज्ञानभंडार बहूत बड़ा है। ४. श्री सुपार्श्वनाथजी का देरासर सरदारपुरा रोड पर १० साल पहले बना है। श्री सुपार्श्वनाथजी, श्री ऋषभदेवजी के गभगृहसे नीकली है | यह भगवानकी दाहिने और है । जहाँ एक १५१६ का लेख है । यह देरसरजी की प्रतिष्ठा सं. २०२९ में संपन्न हुई थी मूलनायककी बांये और गर्भगृहमें से बाहर निकलते श्री अरिहंत की मूर्तिके नीचे सं. १७२३ का लेख है । मूलनायक श्री सुपार्श्वनाथजी की प्रतिमाजी भव्य और दर्शनीय है। - - - - मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी -ER-ER-E- -6 E-CRECENEEEEEEEEEEEEEEEEEENA Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ७ जोधपुर जिला #128 Dwoad 2 2 2 DSO FOR AD. 25044 80 मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी श्री जोधपुर चिंतामणि पार्श्वनाथ जैन देरासरजी 【图 Broad เด HK जोधपुर जैन देरासरजी (४५३ FozZED Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ३. फलोधी तीर्थ मा फलोधी तीर्थ जैन देरासरजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री गोडीजी पार्श्वनावजी श्री गोडीजी पार्श्वनाथ मूलनायक आदि अन्य ५ प्रतिमाजी है। रंगमंडप काचका है । उपर की मंझिल पर श्री आदीश्वरजी की ३ प्रतिमाजी है । इस देरासरजी १२५ साल पूराना है। श्री गोडीजी पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १९०६ में संपन्न हुई थी माघ सुद १० का दिन था । इसका जिर्णोद्धार दक्षसूरीश्वरजी म. के हस्तों से हुआ था । सं. १९९६ में पू.आ. श्री कमलसूरीजी म. के पू.आ. लब्धिसूरी म. के उपदेश से हुआ था । इस मंदिर की तीसरी मंझिल पर श्री सीमंधर स्वामी बिराजमान है । यह देरासर में गोडीजी पार्श्वनाथजी की बाँये ओर श्री पार्श्वनाथजी ६ प्रतिमाजी है । श्री समेत शिखरजी का पट्ट कीसी अगम्य कारणसर बाहर के प्रकाश से प्रकाशित है । मूलनायक श्री गोडीजी पार्श्वनाथ के दाहिने हाथ ओर अलग देरी में श्री पार्श्वनाथ ३ है । जीसमें श्री पार्श्वनाथ के नीचे के भाग में सं. १२२६ का लेख है। उनकी दाहिने ओर की मूर्ति प्राचीन और भव्य है । बाँये हाथवाले इतने पूराने नहीं है। शांतिनाथजी, प्राचीन शीतलनाथजी (१५०३) आदीनाथ आदि ५ प्राचीन है । नक्कासी अच्छी है । दोनों ओर देरी में भगवान है। श्री गोडीजी पार्श्वनाथ, शीतलनाथ, शांतिनाथ, मुनिसुव्रत, संभवनाथ, महावीर स्वामी, नेमिनाथ, श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी की छोटी देरीयाँ है । श्री महावीर स्वामी मंदिर स्टेशन की निकट में है पहले जैनों के १२०० घर थे । अब ३५० घर है। धर्मशाला और भोजनशाला भी है। मेड़ता रोड स्टेशन २ फलाँग की दूरी पर है। मेड़ता शहर १५ कि.मी. दूर है । पो. मेड़ता रोड जि. नागोर । मंडोर तीर्थ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा के नीचे सं. १७२३ महा वद ८ का लेख है । जिनहर्षसूरीश्वर म. के हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । गर्भगृह में पार्श्वनाथजी सहित ५ प्रतिमाजी है । दाहिने ओर गोख में मूलनायक के पास जो मूर्ति है । वह प्राचीन है । रंगमंडप में आरस की पांच मूर्तियाँ है और एक उँचे हाथवाली आरस की चोविसी है। जो प्राचीन मानी जाती है । एक मूर्ति में सं. १७१४ लिखा है । कम्पाउन्ड के बाहर की बाजु में आदीनाथ का गुंबजवाला देरासर है । दाहिनी ओर सं. १७३३ का लेख है। ** ** ** * * 00 Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४५५ राजस्थान विभाग : ७ जोधपुर जिला 63800 bNOON S D०.०0.00 मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी मंडोर तीर्थ जैन देरासरजी SSSSSSSSSSSSSSS ५.भावडी भावडी जैन देरासरजी मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी का देरासरजी है । आरस के तीन भगवान है । गर्भगृह से बहार निकलते दाहिने गोख में चरण पादुका है । जीसमें सं. १२४२ लिखा है । यह प्राचीन मंदिर है । इसका जिर्णोद्धार आणंदजी कल्याणजी की पेढी द्वारा सं. २०२२ में हुआ था । ओसवाल जैनों के २०-२२ घर है। गाँव भावरी - सवेरा जि. जोधपुर मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ TRACCCXGOR alliand ६. कापरड़ाजी तीर्थ SPYRIGYAYC 2000URURURURU90000000000000000000NRURURU 888888888888888RSBERGRECROR&R®R&23RRURIERS कापरड़ाजी तीर्थ जैन देरासरजी SARASWAROORSARASWARRRRR R RRRICA Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग ७ जोधपुर जिला IMG मूलनायक श्री कापरड़ाजी पार्श्वनाथजी (४५७ फ्र Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री स्वयंभू पार्श्वनावजी कहा हिंमत नहीं हारना आपका सन्मान होगा और वैसा ही हुआ । यह प्रतिमाजी सं. १६७४ मार्गशीर्ष वद १० पार्श्वनाथजी राजाने ५०० चांदी की महोरो से बहुमान क्रिया आते समय यति जन्म कल्याणक के दिन जमीनमें से स्वयंभू प्रगट हुई थी । ईस मिले उन्हों ने मंदिर बनवाने की प्रेरणा दी, भानाजी ने महोर लिये उसे स्वयंभू पार्श्वनाथजी कहा जाता है । जेतारण के धरी, यतिने थेली में डालकर वासक्षेप डाला और जीतना चाहे हाकिम श्री भानाजी भांडारी ने ४ मंझिला मंदिर बना के पू. आ. इतनी महोर निकालना मगर उसे उंधा नहीं करना । काम पूर्ण श्री जिनचंद्र सू. म. के वरद् हस्तों से सं. १६७८ वैशाख सुद। होने के समय भानाजी के पुत्र नरसिंह ने थेली को उंधा कर १० के दिन प्रतिष्ठा करवाई थी । यह लेख प्रतिमाजी की नीचे . दिया सोना महोर निकली गई और थेली खाली हो गई । वहाँ है | पू. नेमिसूरीजी म. जब यहाँ पधारे उन्होंने इसकी दशा , जिनचंद्रजी म. पधारे प्रतिमाजी की शोध की जो कापरड़ाकी देखकर जिर्णोद्धार करवाने को चाहा उनके उपदेश से हुआ । बबुल की झाड़ी में थी। दो दफा शोध की बाद में भगवान खुद सं. १९७५ महा सुद पंचमी के दिन उनके वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा प्रगट हुएं और प्रतिष्ठा संपन्न हुई तबसे इसे स्वयंभू पार्श्वनाथजी संपन्न हुई। चौथी मंझिल पर एक ही प्रतिमाजी थे दूसरे १५ कहा जाता है । ९५ फूट का शिखर ८ कि.मी. दूर से दिखाई प्रतिमाजी को पधराये और चौमुखी पूर्ण किया इस कारण से यह देता है । मंदिर बहुत कलात्मक है । चैत्र सुद पंचमी के दिन तीर्थ बहुत प्रचलित हुआ । यह प्रतिमाजी के लीये भानाजी मेला लगता है । भोजनशाला, धर्मशाला भी है। यह स्थान भांडारी जोधपुर के नरेश गजसिंह के जेतारण के हाकिम थे। सिलादी रेल्वे स्टेशन से ८ कि.मी., पिपाड शहर से १६ कि.मी. दूसरों की कानफँसी से सजा करने यहाँ बुलाये भानाजी का और जोधपुर से ५० कि.मी. दूर है। शेठ आणंदजी कल्याणजी नियम था कि प्रभुजी के दर्शन बिना भोजन नहीं करते थे। पेढी जि. जोधपुर। कापरडाजी में यति के वहाँ भगवान के दर्शन किये यतिने कहा ************************ ७. गांगाणी मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी पित्तल के श्री आदीश्वरजी Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ७ जोधपुर जिला (४५९ SMS हुई थी । गर्भगृह में मूलनायक के साथ पाँच भगवान है । हाल के मूलनायक पू. आ. श्री समुद्रसूरी म. ने प्रतिष्ठित किये हैं। दाहिने ओर के गोख में सं. १६५८ का लेख है । बाँये ओर के गोख में श्री विमलनाथजी संप्रति राजा के समय के हैं । रंगमंडप में दाहिने ओर ऋषभदेवजी धातु के परिकर युक्त श्री अरिहंत की मूर्ति पहले दूसरे देरासर में थी । जो हाल यहाँ पधराई है। प्रायः १८ से २१ इंच के है। सं. १६०० की आसपास की है। यह बड़ा शिखरवाला देरासर भव्य है। नीचे वाले मूलनायक जोधपुर ले गये है । धातु की ऋषभदेवजी की मूर्ति ४०० साल पहले एक भाई को मीली थी। जो मूर्ति हाल में प्रवेशद्धार की अंदर है । गांगाणी में धातु के आदीनाथजी की बड़ी प्रतिमाजी की नीचे सं. ९३९ का लेख है। उपर के पद्मप्रभ स्वामी की प्रतिष्ठा सेनसूरी म. के शिष्य ने सं. | १६८४ में की थी । धातु की मूर्ति जीस भाई को मिली थी। उसका नाम श्री घेवरचंद हरखचंद था । सं. १६६२ में दूधेला तालाब के पास ६५ प्रतिमाजी निकली थी । इन प्रतिमाजी में एक ही पू. श्री भद्रबाहु स्वामी म. के हस्तों से चंद्रगुप्त राजाने और पू.सू. हस्ति सू. म. के हस्तों से सम्राट संप्रति ने भरवाई थी। पर आज उसकी हस्ती नहीं है । पहले यहाँ जैनों के करीब १००० घर थे । हाल में एक भी नहीं है । धर्मशाला और भोजनशाला है | जोधपुर से ३६ कि.मी., उमेदपुर से १० कि.मी., जोधपुर होकर ओसिया तीर्थ जा सकते है। गांगाणी जैन देरासरजी K मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी सम्राट संप्रति ने यह गांगाणी तीर्थ का देरासर बनाया था। वि. सं. १९७ साल पूर्व का यह मंदिर है। इस देरासर का जिर्णोद्धार पांच दफा हुआ था । भारत के श्री जैन संघो द्वारा वि. सं. १९८२ में छछा जिर्णोद्धार वीर सं. २४८७ में चैत्र वद ७ गुस्वार के दिन श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा संपन्न द्वारिका नगरीनो नेम राजीयो, तजी छे जेणे राजुल जेवी नार रे; गिरनारी नेम संयम लीधो छे. बाळावेशमां..१ भाभीओ मेणुं मायुं नेमने, परणवा चाल्यो श्रीकृष्णनो वीररे; गिरनारी नेम, संयम लीधो छे बाळावेशमां...२ मंडप रच्यो छे मध्य चोकमां, हरख्या छे सौ द्वारिका नगरीना लोक रे..... गिरनारी..३ गोखेथी राजुल सखी जोइ रहया, क्यारे आवे जादवकुल दीपक रे. गिरनारी....४ सासुओ पोंखण कीधा नेमने, वालो मारो तोरण छबाय रे. गिरनारी....५ पशुओ पोकार कर्यो नेमने, उगारो वहाला राजिमती केरा कंथ रे गिरनारी......६ नेमजीओ साळाने पूछीयु, शाने काजे पशु करे पोकार रे. गिरनारी नेम.....७ राते राजुल बेनी परणशे, प्रभाते देशुं गौरवना भोजनरे गिरनारी.....८ नेमजीओ रथ पाछा वाळीया, जइ चडया गिरिगुहा मोझार रे गिरनारी....९ राजुल हवे छे मेली ध्रुसके, स्वे स्वे द्वारिका नगरीना लोक रे गिरनारी.....१० हीरविजय गुरु हीरलो, श्री लब्धिविजय गुण गायरे. गिरनारी....११ Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ८. नाकोडाजी तीर्थ नाकोडाजी तीर्थ जैन देरासरजी Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ७ जोधपुर जिला (४६१ --607 529 मूलनायक श्री नाकोडाजी पार्श्वनाथजी Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२) DINI पूराने मूलनायक श्री महावीर स्वामी Fo मूलनायक श्री नाकोडा पार्श्वना संवत ११३३ में नाकोड़ाजी पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। विशाल कम्पाउन्ड है। यहाँ से १८ कि.मी. दूर नाकोड़ा गाँव से ५०० साल पहले श्री रत्नकीर्ति सु. म. यहाँ प्रभुजी को लाये थे । पहले इस गाँव का नाम वीरमपुर था । नाकोड़ा तीर्थ में ३ जिन मंदिर है । १ ऋषभदेवजी का २ शांतिनाथजी का ३ नाकोडा पार्श्वनाथजी का जो शिखरबंध है ४ चीमुखजी दादावाडी में हैं, विक्रम की तीसरी सदी के पूर्व दो राजकुमार भाइओ में से एक वीरमहंत ने विरमपुर की स्थापना की थी और दूसरे नाकोरसेनने नाकोर नगर बसाया था । दोनों नगर ७ मिल के अंतर पर है पू. आ. श्री स्थूलभद्र सू. म. की निश्रा में नाकोर नगर में श्री सुविधिनाथजी और वीरमपुरमें श्री चंद्रप्रभ स्वामी की जिन मंदिर में प्रतिष्ठा हुई थी। बादमें कई बार जिर्णोद्धार हुआ है। वीर निर्माण २८१ में सम्राट अशोक के पीत्र सम्राट सांप्रति ने यह दोनो मंदिरों का जिर्णोद्धार करवाया था । और आर्य सुहस्ति सूरि म. की निश्रा में प्रतिष्ठा हुई वीर निर्माण श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ नाकोडाजी तीर्थ भैरवजी देरासरजी ५०५ में उज्जैन के विक्रमादित्य राजाने विद्याधर गच्छ के आ. सिद्धसेन दिवाकर सू. म. की निश्रा में बहुत से मंदिरो का जिर्णोद्धार और प्रतिष्ठा करवाई थी। वीर निर्माण ५३२ में (वि.सं. ६२) आ. श्री मानतुंग सू. म. ने यह दोनों मंदिरो का जिर्णोद्धार करके प्रतिष्ठा की थी। इसके बाद आ. श्री देवसूरीजी के उपदेश से श्री संघ ने वि.सं. ४१५ में विरमपूर के मंदिर का और वि. सं. ४२१ में नाकोर नगर के जिनमंदिरोंका जिर्णोद्धार करवाकर प्रतिष्ठा संपन्न की थी। बाद में वि. सं. की ९ वीं सदी में जिर्णोद्धार हुआ । नाकोड़ा तीर्थ की पेदी में यादी है कि यहाँ वि.सं. ९०९ में जैनो के २७०० घर थे। इनमे से नातेड गोत्र के शेठ श्री हरखचंदजी ने विरमपुर तीर्थ का जिर्णोद्धार करके श्री महावीर स्वामी की स्थापना की थी। वि. सं. १२२३ में श्री संघने मंदिर का संपूर्ण जिर्णोद्धार करके मूलनायक श्री महावीर स्वामी की पुनः स्थापना करवाई वि. सं. १२८० में मुसलमानों ने वीरमपुर उपर आक्रमण किया था । Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ७ जोधपुर जिला (४६३ 000 उस समय श्री संघने नाकोर नगर के श्री पार्श्वनाथ सहित १२० तीर्थ माना जाता है। प्रभाव बहुत है । पहाड़ी की तलहटी में है। जिनमूर्तियाँ नाकोर नगर से दो मील दूर कालीद्रह (नागद्रह) में वि. सं. १५११ के यहाँ नाकोड़ा भैरव की स्थापना श्री कीर्तिरल छूपाई थी । बादशाहने दोनों नगर और मंदिर को लुटा था । . सू.म. के हस्तों से हुई । जैन सत्य प्रकाश वर्ष ७ अंक ५ में वर्षों तक यह दोनों नगर निर्जन हो गये थे । बाद में धीरे धीरे उल्लेख है कि रावनिंदे ने अमरकोट से वहाँ आकर सं. १५६९ । विरमपुर तो आबाद बन गया और वहाँ प्राचीन मंदिरों के स्थान में महेवानगर बसाया पर दूसरे प्रमाण जो मिलते है कि संवत 10 पर फीर से नया जिनमंदिर बनाकर नाकोर नगर के निकट में १६०० की सदी में इस नगर ने बहुत उन्नति प्राप्त की थी। कालिद्रह में सुरक्षित रखी हुई मूर्ति को वापस लाकर स्थापित की आज महेवा नगर प्राचीन वीरमपुर की जगा पर बसा था । और वहाँ मूलनायक नाकोर नगर के श्री नील वर्णा पार्श्वनाथजी २ श्री शांतिनाथ के मंदिर में नीचे का लेख मिलता है । १ की मूर्ति की प्रतिष्ठा करवाई । प्रतिमाजी बड़ी अद्भुत और दर्शनीय थी । नाकोर नगर का नाम अपभ्रंश होकर नाकोड़ा बन सं. १५१८ में मालाशाह ने यह शांतिनाथजी का मंदिर बनवाया गया । मंदिर की प्रतिमाजी नाकोर नगर से लाई गई थी । इस था और प्रतिष्ठा करवाई थी । २ सं. १६०४ में दूसरा सभा लिये यह वीरमपुर के नये जिनमंदिरका नाम नाकोड़ा पार्श्वनाथ मंडप बना । ३ १६१४ में नाभि मंडप बनाया । ४ सं. १६६६ तीर्थ पड़ा । वि. सं. की १७ वीं सदी तक यह नगर संपूर्ण में भूमिगृह बना । ५ सं. १९१० में मंदिर का प्रतिष्ठा महोत्सव आबाद रहा । उसी समय जैनों के २७०० घर थे । पर एक हुआ। श्री शांतिनाथजी की प्रतिमा संप्रति राजा के समय की है। छोटी सी मश्करी में यह नगर का फीर नाश किया या तो ३ श्री ऋषभदेवजी का मंदिर लाछाबाई नाम के श्राविका ने बरबाद हुआ, एक समय वीरमपुर के राजकुमार की साथ वहाँ सं. १५१२ में बनवाया था। यह लाछाबाई मालाशाह के बहन के मालाशाह के वंशज श्री नानकजी संकलेचा नामके धनाढ्य थी । १६ वीं सदी में वीरमपुर में यह श्राविका थी । ऐसा और प्रतिष्ठित शेठ तालाब पर नहाने गये । यह शेठ को बड़ी उल्लेख मिलता है । लाछाबाई निःसंतान थी । उन्होंने श्री जिनेन्द्र चोटी रखने का शौक था । उसकी चोटी गाँव में सब से बड़ी भक्ति में बहुत धन खर्च किया था । सं. १५१२ में तपगच्छीय और सुंदर थी । उसे देखकर राजकुमार ने कहा कि शेठ तुम्हारी श्री हेमविमल सू. के हाथों से श्री विमलेनाथ प्रभुजी की प्रतिष्ठा चोटी यदी चाबुक बनायें तो बहुत सुंदर बनेगा । यह मजाक . करवाई थी। उसके बाद श्री विमलनाथजी की जगा पर श्री शेठ को तीर के जैसे चुभ गई । राजकुमार और शेठ के बीच ऋषभदेवजी की प्रतिष्ठा कब हुई । उसका कोई उल्लेख मिलता मरमा गरमी हो गई और परिणाम स्वरूप शेठ वीरमपुर को नहीं है । संप्रति राजा के समय की प्राचीन प्रतिमाजी है । यहाँ छोड़कर जेसलमेर और बाड़मेर जा बसे उनके साथ और बहुत नीचे बताये हुए लेख प्राप्त है । १ सं. १५१२ में यह मंदिर का से जैन भी वीरमपुर छोड़ गये । जब राजा को इस बात का पता निर्माण हुआ था और प्रतिष्ठा भी संपन्न हुई थी । २ सं. चला तब राजकुमार पर बहुत नाराज हुए और शेठ को वापस आने की विनंति की पर शेठ वापस नहीं आये, धीरे धीरे सारा १५६५ में श्रृंगार चोकी का निर्माण हुआ । सं. १६३२ में • गाँव खाली हो गया । आज सिर्फ यहाँ तीर्थ रहा है। प्रवेशद्वार बना । ४ १६४७ में चित्रों और पूतलीयाँ के सहित सं. १९९१ में अंजन शलाका के समय इस गाँव का पानी नहीं नया मंडप बना । ५ सं. १६६७ में पूनः श्रृंगार चोकी बनी । पीने का संघने निश्चय किया था और फीर अंतिम स्वरूप देकर नँयहरे में १२ से १७ सदी की बहुत सी प्रतिमाजी है । यहाँ यहाँ का पानी पीनेका फीर से शुरु किया । मृगशीर्ष वद १० का मेला लगता है। यात्रियों की आवन जावन यह मंदिर में ७ शिलालेख मिले है। १ सं. १६३८ में यह से तीर्थ की महिमा बढ़ती रही है। मंदिर का जिर्णोद्धार हुआ । २ सं. १६६७ में भूमिगृह बना । ३ यहाँ से बालोतरा स्टेशन ११ कि.मी. है । जालोर-बालोतरा सं. १६७८ में श्री महावीर स्वामी की चोकी बनी । ४ सं. रोड़ से भी जा शकते है | राजस्थान में प्रायः सब बड़े शहर से । १६८१ में तीन झस्खे साथ शंगार चोकी बनाई । ५ सं. १६८२ बस की सुविधा है । बस स्टेन्ड देरासर की निकट में है । । में नंदी मंडप बना । ६ सं. १८६४ में फीर से भूमिगृह बना । .. विशाल धर्मशाला और भोजनशाला भी है । सब यात्रियों को ७ सं, १८६५ में यह मंदिर का फीर से पुनरुद्धार हुआ । यह भाता (भोजन) दिया जाता है । जैन श्वेतांबर नाकोड़ा मंदिर में कीर्तिरत्न सू. म. की मूर्ति है । उनका जन्म यहाँ सं. पार्श्वनाथजी तीर्थ नाकोडा, पो. मेवानगर, स्टेशन बालोतरा, १४४९ में हुआ था । श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथजी इस बाजु बड़ा जि. बाड़मेर टेलीफोन : ३० बालोतरा। Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ बाडमेर जिला १. बाडमेर लीचिन्तामा पाश्र्वनापरवमी भीरचन्द स -SiporationingRement बाडमेर जैन देरासरजी METRON Says RREARRIANX मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी यह देरासर ५०० साल पूराना है । इसका जिर्णोद्धार पू. आ. श्री गुणसागर सू. म. न आज से ६ साल पहले कराया था । श्री चितामणि पार्श्वनाथजी की मूर्ति संवत ११११ में पूराने करारु से लाये थे । बोहरा नेमाजी जिवराजजी ने भगवान श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १६८५ में की थी । यह धर्ममूर्ति सूरि ने सं. ११६६ में यह भगवान की प्रतिष्ठा की थी । उपर का लेख भगवान के नीचे पूराना परिकर में है । २०३३ में इनकी प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। यहाँ से १४ मील दूर पूराना करारु से यह फणावाली चौमुखजी पार्श्वनाथजी की मूर्ति हाल में जहाँ श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी की पीछे है । जीसे शेर्बुजय आदि के पास आरस के त्रिगढ में बिठाया है । पहले मूलनायक महावीर स्वामी थे । ३ जैन उपाश्रय है । चारों कोने में चार देरीयाँ है । विशाल और सब से पुराने चिंतामणि पार्श्वनाथजी के मंदिर में नागदेवता हर रात्रि को बहार निकलते है । १२ महीनों में दो दफा अपनी कांचली उतारते है । जैनों के खतर गच्छ के १६०० घर अंचल गच्छ के ४०० तेरापंथी के ३०० कुल २३०० घर है । तपगच्छ के पाँच घर है। बाडमेर सभी बाजु से वाहन की सुविधा है। AM Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग ९ ब्यावर जिला 樂樂樂樂 11101089109010999 श्री पार्श्वनाथजी •樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 ब्यावर जिला 1000-1 श्रीशतायजी १. ब्यावर मूलनायक श्री शांतिनाथजी १५० साल पूराना यह देरासरजी है । प्रतिष्ठा पू.आ. श्री विजय कलापूर्ण सू. म. के वरद् हस्तों से संपन्न हुई है । यहाँ से ३ कि.मी. दूर बालाड़ तालाब में से यह प्रतिमाजी मिली थी । यह शहर पहले जंगल के विस्तार में था। अंग्रेजो ने इसका विकास किया । बालाड गाँव पहले नगर था । वहाँ से ५ प्रतिमाजी जमीन में से मिली थी उंचा सुंदर जिनालय बनाकर प्रतिष्ठा संपन्न कराई थी । जैनों के १५०० (सब गच्छ के) घर है । दूसरा पार्श्वनाथका देरासर जो २० साल पहले बना है । यह नहेरु दरवाजा बाहर है, धर्मशाला है । शांतिनाथ देरासर जो मुख्य है और वह पाली बाझार में है । २ पाकिस्तान के हाला गाँव से लाया हुआ पार्श्वनाथजी का देरासर संभवनाथजी हाला जैन संघ नहेरु गेईट बाहर । ३ श्री चंद्रप्रभु देरासरजी स्टेशन रोड । ४ जैन स्कूल में शांतिनाथजी मंदिर पीपलीया बाझार । ५ दादावाडी में श्री महावीर स्वामी मंदिर विजयनगर रोड पर है । ← मूलनायक श्री शांतिनाथजी ब्यावर जैन देरासरजी || ※乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘乘國乘乘乘乘乘乘乘 樂樂樂樂 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來必 Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६) 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂味 अजमेर जिला अजमेर 11001000000 9. श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी ( दादावाडी ) यह प्राचीन देरासर श्री पार्श्वनाथजी का ८०० साल पूराना है। पहाड़ो की गोद में ८०० साल पहले पू.आ. श्री जिनदत्त सू. म. तपस्या कर रहे थे और जीस जगा पर उनके अग्नि संस्कार हुआ उसी जगा पर यह तीर्थ बना है । विशाल धर्मशाला और भोजनशाला बनी हुई है । यहाँ पू. वासुपूज्य स्वामी का संगेमरमरका शिखरबंध मंदिर भी तैयार हो रहा है । यहाँ लाखन कोठरी में तीन मंदिर है । १ श्री संभवनाथजी जिन मंदिर । २ श्री गोड़ी पार्श्वनाथजी मंदिर । ३ श्री चंद्रप्रभुजी घर देरासर । ४ श्री आदीनाथ मंदिर, विलास जवाहर अस्पताल मार्ग । ५ श्री पार्श्वनाथजी जिनमंदिर और दादावाडी विजयनगर निकट । ६ श्री वासुपूज्य स्वामी मंदिर ठिकाना वीर लेटका शाहनगर पुष्कर रोड अजमेर में श्री गुमनेमलजी लुणीया आगेवान कार्यकर्ता है। फोन : २२४४४ ← मूलनायक श्री शांतिनाथजी अजमेर जैन देरासरजी || 來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂敏敏敏樂樂樂大麻 Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ११ जयपुर जिला जयपुर जील्ला राष्ट्रीय घोरी मार्ग राज्य घोरी मार्ग रेल्वे मार्ग 地 • अजमेर N सांगनेर क्रम गाँव का नाम 9. जयपुर २. आमेठ ३. अल्वर ४. भांडवपुर साहपुरा आमेर जयपुर चक्सु पाना नं. ४६८ ४६९ ४७० ४७१ अलवर • (४६७ Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८) 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 १. जयपुर 00000000000000000 स्वामी मूलनायक श्री महावीर स्वामी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ मूलनायक श्री सुमतिनाथजी ठिकाना : झवेरी बाझार । वि. सं. १७८४ में यह देरासर की प्रतिष्ठा हुई थी । दो मंझिला शिखरबंध विशाल मंदिर है । पांच खंड, काच की कलाकृति, उपर के भाग में श्री महावीर स्वामी की खड़ी प्रतिमा है । जो बहुत प्राचीन है । दूसरा श्री महावीर स्वामी का जैन देरासर जो दादावाडी में है । सने १९६५ में घर देरासर बना उसके के बाद सने १९८८ में ज्येष्ठ सुद १० के दिन शिखरबंध देरासर की पू. मुनीराज जयानंद विजय ( खरतर गच्छ) म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न थी । इतिहास : (हाल पाकिस्तान) मूलनान शहर में रहनेवाले जैनों ने यहाँ प्रथम शिखरबंध मंदिर जयपुर में बनाया । ई.स. १९४७ में भारत-पाकिस्तान हुआ तब पाकिस्तान से जो जैन यहाँ आये वे अपने साथ १०० प्रतिमाजी लाये थे । इनमें से श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी प्रतिमा २००० साल पूरानी है । जो हाल घाटकोपर (मुंबई) में है । उस समय बर्मा - नेपाल- पाकिस्तानश्रीलंका का समावेश भारत में था। आज भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत के नगर पारकर शहर में जिनमंदिर है । नीचे के भाग में गुरुमंदिर और विशाल सुंदर देरासर है । प्रतिमाजी सुंदर है। ठिकाना डुंगरी रोड, जयपुर, शिवजी रामभवन, जैन धर्मशाला, भोजनशाला, आत्मानंद जैन सभा भवन ( जोहरी बाझार, घी वालों का रास्ता) कमरा है । उपर दादावाडी मोती **** ** मूलनायक श्री सुमतिनाथजी सुमतिनाथजी जैन देरासरजी 樂樂樂敏敏敏敏敏敏敏敏敏敏敏敏敏敏敏敏敏 不來來來來來來來來來來來來來必 Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ११ जयपुर जिला OR 2 2 RIEND、 EVE TO DD−− मूलनायक श्री चंद्रप्रभु स्वामी ERR △800 X2 महावीर स्वामी जैन देरासरजी DO DOGG २. आमेट 2D देरासरजी गुंबज 又是又 8ES RCONRARIR JORD IRE DELON IN Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री चंद्रप्रभु स्वामी यह तीर्थ उदयपुर जिले में है और बहुत प्राचीन है । श्रीचन्दाप्रभु भगवान IIIMMEDIATRITIL देरासरजी के दरवाजा की नक्कासी ३. अल्वर मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी अल्वर जैन देरासरजी मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामीजी वि. सं. २०११ में शिखरबंध देरासर हुआ यह प्राचीन नगरी है। महाभारत के समय में इसे विराटनगरी कही जाती थी । जयपुर से ८० कि.मी. के अंतर पर है। RA Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : ११ जयपुर जिला (४७१ SYA श्री रावण पार्श्वनाथजी नीचे के भागमें श्री चंद्रप्रभ स्वामी मूलनायक श्री रावण पार्श्वनाथजी जमीन में से देरासर और प्रतिमाजी मिले है । अनेक समय जिर्णोद्धार हुआ है । धर्मशाला और उपाश्रय है । १०८ पार्श्वनाथ में इसका उल्लेख है । रावण के समय की प्रतिमाजी प्राचीन है। ईस लिये उसका नाम रावण पार्श्वनाथ दिया गया है। सब प्रतिमाजी सुंदर है। ठि. बिरबल महोल्ला, अलवर-३०१ ००१. (राजस्थान) ४. भांडवपुर मूलनायक श्री महावीर स्वामी मेंगलवा से होकर भांडवा में आया और संघवी पालजी को स्वप्न 5 यह देरासर नाना भांडवपुर गाँव की बहार है । भूतकाल में में मंदिर बनाकर प्रतिष्ठा करने का संकेत मिला । स. १२३३ में। यह एक बड़ा नगर था । सं. ८१३ में वेसाला गाँव में प्रतिष्ठित इस प्रकार बावन जिनालय हुआ और प्रतिष्ठा भी हुई उनके . हुए यह महावीर स्वामी की मूर्ति की यहाँ सं. १२३३ महा सुद वंशज की और से ध्वजा चढ़ाई जाती है । चैत्र मास की सुद १३ पँचमी के दिन प्रतिष्ठा हुई थी। से १५ तक यहाँ मेला लगता । वेसाला नगर में मुसलमानों के आक्रमण से मंदिरको धर्मशाला और भोजनशाला है । जालोर से ५६ कि.मी. नुकशान हुआ था । तब कोमता गाँव के संघवी पालजी गाड़ा में किशनगढ से ४० कि.मी. और सायलासे ३० कि.मी. का अंतर इस प्रतिमाजी को लेकर चले पर गाड़ा कोमता जाने के बजाय है, वहाँ से तार टेलि. की सुविधा भी है। Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ BHERA EVES A0 भांडवपुर जैन देरासरजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी मूलनायक सहित तीन प्रतिमाजी ऋषभदेव ! हितकारी जगतगुरु ! ऋषभदेव ! हीतकारी; प्रथम तिर्थंकर प्रथम नरेसर, प्रथम यति व्रतधारी.... वरसीदान देइ तुम जगमें, इलति इति नीवारी; तैसी काही करतु नाही कस्ना, साहिब बेर हमार...२ मागत नही हैम हाथी धोरे, धन कन कंचन नारी; दीओ मोहि चरन कमलकी सेवा, प्याही लागत मोही प्यारी...३ भवलीलावासित सुर डारे, तुं पर सब ही उवारी; में मेरो मन निश्चल कीनो, तुम आणा शिर धार ...जगत ४ असो साहिब नहि कोउ जगमें, यासु होय दिलधारी; दिल ही दला प्रेम के बीचें, तिहां हठ खेंचे गमारी....५ तुम हो साहिब में हुं बंदा, या मत दीयो वीसारी; श्री नयविजय विबुध सेवक के, तुम हो परम उपकारी..६ Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७३ - - - - - - - - ---- राजस्थान विभाग : १२ बिकानेर | नागोर जिला - - - - - -- बीकानेर जील्ला राष्ट्रीय घोरी मार्ग राज्य घोरी मार्ग रेल्वे मार्ग पाना नं. क्रम गाँव का नाम १. बिकानेर २. गोगेलोव ४७४ ४७६ BIRGI 來來來來來來來來來來來來來來奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥奥噢噢噢噢 नागोर जील्ला पाना नं. राष्ट्रीय घोरी मार्ग राज्य घोरी मार्ग रेल्वे मार्ग क्रम गाँव का नाम नागोर २. मेडता सीटी ३. मेडता रोड ४७७ ४७८ ४७९ HHHHHHHHHH सेडता, सीटी NEELLEGETAREECHECHECRETECH Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 808) ·沙尚省省省尚省南省寧省尚古街省寧省尚省尚省诚诚诚诚尚诚诚 樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂樂 2. मूलनायक श्री आदीश्वरजी ********* बिकानेर श्री सुमतिनाथजी जैन देरासरजी HAN श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन 樂樂樂樂 बिकानेर श्री आदीश्वरजी जैन देरासरजी n m मूलनायक श्री सुमतिनाथजी भाग-१ 麻 乘樂來樂來果來來來果來來來來來來來來來來來來來來來來來來必 ※來來來來來來來來來來來來來來來來來來來來原 Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १२ बिकानेर जिला (४७५ मूलनायक श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी पेढ़ी है । सं. १५७१ आषाढ सुद २ के दिन यहाँ प्रतिष्ठा १ श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी का मंदिर ५०० साल संपन्न हुई थी । दूसरी मंझिल पर चौमुखजी तीसरे मंझिल पर पूराना है। २ श्री शांतिनाथजी । ३ श्री वासुपूज्य स्वामी। भी चौमुखजी है। कंपाउन्ड में सीमंधर स्वामी का पूराना ४ श्री महावीर स्वामी । ५ श्री सुपार्श्वनाथजी । ६ श्री देरासरजी है । प्रतिष्ठा संवत १८८७ में संपन्न हुई थी । पार्श्वनाथजी । ७ श्री पद्मप्रभुजी मंदिर है। पार्श्वनाथ दाहिने ओर और शांतिनाथजी बाँये ओर है । यह भी श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १५६१ आषाढ गर्भगृह में रंगीन काच से जड़े हुई है। सुद नवमी के दिन संपन्न हुई थी। २ श्री आदीश्वरजीका शिखरबंध देरासरजी है । मूर्ति के १ श्री शांतिनाथजी का घर देरासरजी यह गंबजवाले नीचे स. १६६२ का लेख है। उपाश्रय में है । सं. २०२३ में यहाँ प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। ३ श्री नेमनाथजी प्रतिमाजी का मंदिर प्राचीन और विशाल २ बडा मंदिर श्री अजितनाथजी का जो गंबजवाला है है । उतुंग शिखरवाला है | जीसमें रंगीन नक्कासी भी है । यह भांडासरजी का यह मंदिर सब से बड़ा कोयरडा जैसा है। निकट मंदिर सं. १५७२ के बाद हुआ है। में नेमिनाथजी का मंदिर है। ४ श्री महावीर स्वामी की आरस की मूर्ति पर सुवर्णका लेप ३ विमलनाथजी का गुंबजवाला मंदिर है । है । प्राचीन दिखता है । दाहिने और संप्रति के समय के प्रभुजी ४ श्री पार्श्वनाथजीका गुंबजवाला मंदिर है। है । बाजु में बाँये ओर आरस के पंचतीर्थी प्राचीन है। मंदिर के ५ श्री ऋषभदेवजीका गुंबजवाला मंदिर है। चारों कोने में चार गुंबजवाली देरीयाँ है, जीस में प्राचीन नीचे के छ (६) मंदिर कोचर कुटुंब के २०० साल पूराना है। अर्वाचीन प्रतिमाजी है। " .१ श्री सुमतिनाथजी का चौमुख देरासरजी बिकानेर में सब ५ श्री शांतिनाथजी के मंदिर में तीन गर्भगृह हैं और से बड़ा तीन मंझिलवाला है। जो प्राचीन विशाल और गुबजबध है। प्रभावशाली है । भांडासरजी ने यह देरासर बनाया था । भव्य ६ श्री अजितनाथजी का मंदिर अति प्राचीन है और भी कला और नक्कासी - रंग बिरंगी रंगो से अति मोहक दिखाई नये और पूराने प्रभुजी है । धातु के एक आदीनाथजी की देता है । विशाल रंगमंडप और कलायुक्त चौमुखजी के बिलकुल आजुबाजु में आरस के प्रभुजी है जो प्राचीन है। यह मंदिर भी नीचे एक आरस की मूर्ति है । गर्भगृह में कलायुक्त काच में पूराना घर देरासर है । जो पार्श्वनाथ चिंतामणि पहले का है। जड़ा हुआ हीरा माणेक जैसा दिखता है। गर्भगृह के बहार चारों प्राचीन मंदिर की निकट में विमलनाथ का मंदिर है और उनकी ओर २४ काउस्सग्गिया में प्रभुजी रंगीन दिखाई देते है। ८० बाँये और प्राचीन प्रभुजी है । दाहिने ओर विमलनाथजी साथ है। साल पहले चढाये हुए रंग आज भी नये जैसे लगते है । दर्शन बिकानेर में नाहटा परिवार द्वारा शास्त्रो का संशोधन और करने योग्य हैं। पुजारी गोपाल सेवकजी की यह १५ वीं हस्त प्रतों का संग्रह हुआ है । बिकानेर शहर बड़ा है। Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७६) HOL J मूलनायक श्री कुंथुनाथजी आठे भवोनी प्रीत गया भुली, २. गोगेलाव अक वार बोलो प्रभु नेम, अबोलडा शाना लीधा छे, शाना लीधा छे प्रभु शाना लीधा छे.... अकवार १ समुद्र विजय कुल दीपक प्रभुजी, शिवादेवी केरा नंद अबोला.... २ जान जोडीने प्रभु जुगते आच्या, नवमे संभाळोने नेम अबोलडा....३ मूलनायक श्री कुंथुनाथजी श्री कुंथुनाथजी का भव्य नया देरासर है। मूलनायक आदि ३, गर्भगृह में २, भमति में पट्ट और धातु की प्रतिमाजी है। प्रतिष्ठा सं. २०१४ फाल्गुन सुद ३ (श्रीज) शुक्रवार खतरगच्छिय कृपाचंद्र सूरि के पट्टधर उपाध्याय श्री सुखसागरजी के वरद हस्तों से संपन्न हुई। जैनों के घर ४०-५० है । उपाश्रय है। एक धर्मशाला भी है । S साथै मुरारीने लाव्या.... अबोलडा ४ गोगेलाव जैन देरासरजी श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ MARM राजुल त्यागी गया गिरनारे, पशुडानो सुणी पोकार.... अबोलडा ५ संयम लइ प्रभु मोक्षे सिधाव्या, राजुल राणी प्रीत पुरव पाळी. आवागमन निवार..... अबोलडा ६ विजय वन्दना अचळ हमारी, मल्या जइ मोक्षने द्वार.... अबोलडा. ७ आ भव पार उतार.... अबोलडा. ८ Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (४७७ राजस्थान विभाग : १३ नागोर जिला सससससससस - - - - - - - - १. नागोर HALMEDIA देरासर का प्रवेश द्वार मूलनायक श्री आदीनाथजी मूलनायक श्री आदीनाथजी १ श्री आदीश्वरनाथजी परिकर युक्त प्रतिमा ४०० साल पूरानी है । तीन गर्भगृह है । दूसरे बड़े मंदिर के नाम से प्रसिद्ध २ श्री ऋषभदेवजी का मंदिर नया है । जीसमें तीन गर्भगृह है। ३ श्री शांतिनाथजी का गृह मंदिर है । १० स्तंभवाला बड़ा रंगमंडप है अष्टापदजी की उपर चौमुख सं. १५१५ में बनाया है। एक नया मंदिर दादावाडी में बनाया जा रहा है जो एक मात्र शिखरबंध है । एक धातु की प्रतिमाजी पर सं. १२१६ का लेख यह प्राचीन नगरी है । इ.सं. ९१९ में श्री कल्हण मुनि ने महावीर भगवान के मंदिर की प्रतिष्ठा की थी ऐसा उल्लेख है । उनके शिष्य जयसिंह सू. म. ने आमराजा के पौत्र राजा भोज के समय में यहाँ रचा हुआ धर्मउपदेश माला में अनेक मंदिर बतायें है । सतरहवीं सदी में विशालसिंह सूरि द्वारा रचा हुआ नागोर चैत्य परिपाटी में सात मंदिर बताये गये है । १२ वीं सदी में यहाँ वादीदेव सू.म. पधारे थे । तब राजा अर्णोराजने बड़ा उत्सव मनाया था कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्र सू. म. के श्रेष्ठि धननंदने बड़े समारोह के साथ यहाँ आचार्यपद प्रदान किया था । जिनलब्धि सूरी म. की यह स्वर्गभूमि है । पायचंद गच्छ की स्थापना यहाँ हुई है। यहा १२ वीं सदी में शाह बरदेव पल्लीवाल नामके श्रावक हुएं थे उनके पुत्र आसधर और लक्ष्मीधर वे दोनों भाईओंने और उनके पुत्र नेमड, आभट, माणिक, सलखण, थिरदेव, गुणधर, जयदेव, भुवणा यह सबने श्री शत्रुजंय, गिरनार, आबु देलवाड़ा, जालोर, तारंगा, पालनपुर, पाटन, चास्प आदि अनेक तीर्थो का जिर्णोद्धार का काम किया था । करीब १००० घर जैनों के है । श्वे. मू. जैन के ३०० घर है। रेल्वे स्टेशन की पास धर्मशाला है। श्री अमरचंद मांणेकचंद बेताला तपागच्छीय जैन भवन में सूचना देने से भोजन की व्यवस्था हो शकती है । नागोर रेल्वे स्टेशन से २ कि.मी. के अंतर पर है। ठिकाना जैन श्वे. मंदिर, मार्गी ट्रस्ट, काचवाला बड़ा जैन मंदिर, नागोर. (राजस्थान) - - - ४ ऋषभदेवजी का काच का मंदिर बहुत ही सुंदर है । निकट में अलग देरी में पार्श्वनाथजी की सुंदर मूर्ति है । ऋषभदेवजी की धातु की प्रतिमा २७ इंच से बड़ी लगती है । तेजस्वी भी है । प्राचीन आदीनाथजी पूराने मुलनायक अलग देरी में है । जो राजा संप्रति के समय के है । सब से प्राचीन यह मूर्ति है । काच का मंदिर और रंगमंडप रंगीन कलाकृति वाला है। शेजूंजय पट्ट है नागोर रेल्वे स्टेशन निकट में श्री चंद्रप्रभस्वामी का मंदिर है । दाहिने गर्भगृह में सुधर्मा स्वामी - बाँये ओर गर्भगृह में जंबु स्वामि के आगे बाँये ओर श्री शांतिसूरीजी कीमूर्ति है। - - - - - Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ २. मेडता सीटी मूलनायक श्री आदीश्वरजी मेडता सीटी जैन देरासरजी मूलनायक श्री अषभदेवजी मूलनायक की बाँये ओर श्री चंद्रप्रभ स्वामी की ११ मूर्तियाँ १० १ मूलनायक श्री ऋषभदेवजी का शिखरबंध देरासर है। वीं सदी की आसपास की है । बाँये कोने में पंचतीर्थी और बड़े सं. १६७७ में अंजन शलाका प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। देरासर पार्श्वनाथ गेहुं के रंग के आरस में से बनाये गये है। इससे भी पूराना है । श्री आनंदधनजी महाराज का यहाँ श्रावकों के महोल्ले में आनंदधनजी म. की छत्रीमें पादुकाएं स्वर्गवास हुआ था । श्री हीर विजय सू. म. यहाँ बहुत लंबे है सं. २००८ में प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। समय तक रहे थे। ९ श्री महावीर स्वामी की ६ प्रतिमा प्राचीन मंदिर की २ धर्मनाथ-३ प्राचीन मूर्तियाँ और देरासरजी है। धर्मनाथ बाजु में है । जीन्होंने वीर सं. १६८३ में प्रतिष्ठित भगवान के बाँये ओर प्रभुजी के नीचे सं. ६८४ का लेख है। बिराजमान है । अलग दो देरीमेंसे एक में सं. १६७७ का लेख आदीनाथजी धातु के बने हुए है । निकट के कमरे में धात की है । विजयसेन सू. म. के विजयदेव सू. म. ने प्रतिष्ठा की थी। अनेक छोटी बड़ी मूर्तियाँ है । जहाँ दो मूर्तियाँ है । मुनिसुव्रत स्वामी, महावीर स्वामी के दाहिने ३ श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी की प्रतिमा की प्रतिष्ठा सं. ओर की देरी में है । पादुकाएं बहुत है । श्री छोटे शांतिनाथजी १६६९ में हुई थी। ४ श्री शीतलनाथजी की प्रतिष्ठा सं. सं. १६५३ और अन्य प्रतिमाजी में सं. १६७७ के लेख है । १६७७ में हुई थी। ५ श्री कुंथुनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १६८६ भगवान की पादुकाएं की तीन जोडी है। में संपन्न हुई थी । ६ श्री वासुपूज्य स्वामी की प्रतिष्ठा प्रतिष्ठा नागोर स्टेशन के निकट के श्री चंद्रप्रभ स्वामी देरासर के सं. १६८३ में हुई थी । करीब नव मूर्तियाँ है । ७ श्री शिलालेख में प्रतिष्ठा करनेवाले श्री ज्ञानसुंदरजी और श्री वासुपूज्य स्वामी की बाँये ओर प्रभुजी के नीचे सं. १६७७ गुणसुंदरजी ने श्री नेमी सू. म. के उपदेश के यह प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी ऐसा माना जाता है । ओसवाल सं. २३९३ वि. सं. लिखा हुआ है और श्री वासुपूज्य स्वामी की दाहिने ओर १९९३ का लेख मौजूद है। प्रभुजी के नीचे सं. १६८३ लिखा है । मूलनायक भी उसी समय के है ऐसा माना जाता है । ८ श्री अजितनाथजी की प्रतिष्ठा सं. १६७७ में हुई थी। Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान विभाग : १३ नागोर जिला (४७९ ३. मेडता रोड मेडता रोड जैन देरासरजी RER उस स्थान पर पहुंचे और जहाँ गाय का दूध झरता था । उसकी नीचे की जमीन खूदवाई तो देरी सहित सात फणा मंडित भगवान श्री पार्श्वनाथजी की मूर्ति निकली । दोनों श्रावक उत्साह पूर्वक पूजन करने लगे थोडे दिनों के बाद अधिष्ठायक देवने श्री धांधल शेठ को कहा तुम इस स्थान में मंदिर बनाओ यह सुनकर दोनों ने यह मंदिर का निर्माण कार्य उत्साह पूर्वक शुरु किया । जब अग्र मंडप बन चुका था । तब पैसों के अभाव से कार्य को स्क देना पड़ा । श्रावक दुःखी हुए तब फीर से भगवान ने प्रगट होकर मूलनायक श्री फलवृद्धि पार्श्वनाथजी स्वप्न में कहा कि जब सुबह में कौआ बोले उस समय भगवान के मूलनायक श्री फलवृद्धि पार्श्वनाथजी पास सोनामहोर का स्वस्तिक हररोज तुम्हें दिखाई देगा । उसे समृद्धि से भरा हुआ यह नगर कालक्रम अनुसार नष्ठ हुआ। लेकर मंदिर का कार्य पूर्ण करना, पर यह बात कीसी को भी यह नगर में श्री माल वंश के उत्तम और धर्मी लोगों में धांधल करना मत । शेठ ने ऐसा ही किया । पाँच मंडप पूर्ण हो गये एक और शिवंकर नाम के श्रेष्ठी रहते थे उनके पास बहुत सारी गायें समय शेठ का लड़का छुपकर शेठ को सोनामहोर के स्वस्तिक लेते थी । जीसमें अभी अभी ब्याही थी ऐसी एक गाय जो जंगल में देख लिया तबसे सोनामहोर का स्वस्तिक बंध हो गया और तब चरकर आ रही थी तब सायंकाल को दूध नहीं देती थी । धांधल से यह मंदिर अपूर्ण रह गया । ईसके बाद सं. ११८१ में आ. शेठ ने सायंकाल में यह गाय दूध क्यों नहीं देती ऐसा पूछा तब श्री धर्मघोष सू. म. यहाँ पधारे उन्होंने संघ को उपदेश दिया और ग्वाले ने सच बात कही में दूध नहीं दोहता पर तलाश करंगा एक कार्य पूर्ण हुआ । सं. ११८१ में मूलनायक पार्श्वनाथ भगवान की दफा ग्वाले ने देखा की टींबे के पर बोरड़ी के झाड़ के पास आ । प्रतिष्ठा करवाई थी। कर गाय खड़ी रहती है । तब चारों स्तनोंमें से दूध झर जाता है | यह उपर की विगत का लेख मूलनायक श्री पार्श्वनाथ की दूसरे दिन ग्वाले ने शेठ से बात की । धांधल शेठ ने सोचा की पीछे भमति में है । उपरोक्त जानकारी हमें इसमें मिली है । यहाँ अवश्य ही कोई देवता की मूर्ति होनी चाहिए। यह सोचते रंगमंडप बड़ा है । भमति में बहोतसे तीर्थो के पट्ट है । जो देखने सोचते धांधल शेठ सो गये । रात्रि को अधिष्ठायक देवने स्वप्न में लायक है । वहाँ १०८ जिनमंदिर थे । इस देरासर बनानेवाले यहाँ कहा कि जहां दूध झरता है वहाँ देरी में सात फणावाली भगवान के राजा उत्पलदेव, पुत्र प्रतापसिंह और मंत्री उदडदेव था गाँवका श्री पार्श्वनाथजी की देवाधिष्ठित प्रतिमा बिराजमान है । उसे तुम नाम उपकेशनगर था । सावधानी पूर्वक खोदकर बाहर निकालकर पूजा कर । स्वपन की मेडता रोड तीर्थ स्टेशन से २०० मीटर के अंतर पर है । यह बात उसने अपने पुत्र शुभंकर को कही तब वे दोनों साथ में जिला नागोर, फूलवर्दी पार्श्वनाथ तीर्थ ट्रस्ट । SARALA Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८०) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-५ A डुंगरपुर जिला १. डुंगरपुर तीर्थ मूलनायक श्री आदीनाथजी यहाँ माणेक चोक में श्री आदीनाथजी बावन जिनालय देरासर है । सं. १५२६ में शेठ सांवलदास दावडा ने जिनमंदिर बनाकर रत्न सू. म. के शिष्य उदयवल्लभ सू. म. तथा मानसागर सू. म. के पुनित हस्तों से विशालकाय पंचधातु की मूर्ति की प्रतिष्ठा की थी। मुसलमानो के समय में इस मूर्ति को सोने की जानकर क्षति पहुंचाई थी । ईस लिये वहाँ आरस की प्रतिमाजी बिठाई गई है । पर उसका पंचधातु का परिकर हाल में है । जीस पर सं. १५२६ लिखा गया है । परिकर में ७२ प्रतिमाजी है । पबासण में १४ स्वप्न ९ ग्रह और यक्ष यक्षिणी है । पद्मनाथ स्वामि की बड़ी प्रतिमा एक देरी में है। श्री शांतिनाथजी का देरासर भी पूराना है। यह दोनों देरासर वीशा उम्मड़ संघ हस्तक है। गंभीरा पार्श्वनाथजी २४ जिनालय है । उसकी प्रतिष्ठा सं. १३१२ में संपन्न हुई थी । श्री महावीर स्वामी देरासरजी की प्रतिष्ठा सं. १४८० में संपन्न हुई थी उसमें लेख है कि कलिकाल सर्वज्ञ पू. हेमचंद्र सू. म. के परिवार में आ. श्री लक्ष्मीचंद्र सू. म. ने प्रतिष्ठा की है। नये देरासर में परिकर और प्रतिमाजी दोनों श्यामवर्ण है । जो बस स्टेन्ड की निकट में है । वहाँ आराधना भवनमें उतरने की सुविधा है । पोरवाड संघ हस्तक तीन देरासरजी है। राजस्थान का यह वागड़ प्रदेश है। सोलहवीं सदी में ओसवाल पराक्रमी मंत्री शालाशाह ने भव्य पार्श्वनाथ मंदिर बनाया था। जो पुराने पाटी महोल्ले में आया है । शालाशाह राजा गोपीनाथ और सोमदास के मुख्यमंत्री थे । जिन्होंने उपद्रवकारी भीलों को परास्त किया था । उस समय यह बड़ा नगर था । जैनों के यहाँ ७०० घर थे। केसरीयाजी तीर्थ ३२ कि.मी. के अंतर पर है । अहमदाबाद-उदयपुर रोड़ पर से खेरवाड़ा होकर जा सकते है । यहाँ माणेक चौक में पेढ़ी और धर्मशाला है। अनियमीयो ifra सिद्धाचळना वासी जिनने क्रोडो प्रणाम, • जिनने क्रोडो प्रणाम. आदिजिनवर सुखकर स्वामी, तुम दर्शनथी शिवपद गामी; थया छे असंख्य जिनने क्रोडो प्रणाम, सिद्धा.१ विमलगिरिना दर्शन करतां, भवोभवना तम तिमिर हरता; आनंद अपार, जिनने क्रोडो प्रणाम. सिद्धा. २ हुं पापी छु नीचगतिगामी, । कंचनगिरिनुं शरणुं पामी तरशुं जरूर, जिनने क्रोडो प्रणाम. सिद्धा. ३ अणधार्या आ समयमां दर्शन, करतां हृदय थयुं अति परसन; जीवन उज्जवल, जिनने क्रोडो. प्रणाम सिद्धा. ४ गोडी पार्श्व जिनेश्वर केरी, करण प्रतिष्ठा विनति धणेरी; । दर्शन पाम्यो मानी, जिनने क्रोडो प्रणाम सिद्धा. ५ संवत ओगणीशे नेवू वरसे, सुद पंचमी कर्या दर्शन हर्षे, मळ्यो ज्येष्ठ शुभमास, जिनने क्रोडो प्रणाम. सिद्धा ६ आत्म कमलमां सिद्धगिरि ध्याने, जीवन भळशे केवळज्ञाने; लब्धिसूरी शिवधाम, जिनने क्रोडो प्रणाम. सिद्धाचळना वासी जिनने क्रोडो प्रणाम. ७, Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदेश विभाग थीका केन्या थीका - केन्या थीका (केन्या) जैन देरासरजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी इ.सं. १९३३ की साल में श्री वीसा ओशवाल ज्ञाति श्रीका की स्थापना हुई थी । हाल में उपयोग में लीया जाता होल १९३५ में जनरल फंड में से बंधाया गया है। १९५१ में स्व. कस्तुरबेन देवशी मेपा मालदे धुणियावाले ने देरासर बनाकर ज्ञाति को अर्पित कौया है। १९५३ में ज्ञाति को और भी २ एकर जमीन भेट में मिली है। जहाँ एक आलिशान भोजनालय और दूसरी अनेक सुविधा भी है। समय व्यतित होने पर थीका ज्ञातिजनोंने इ.स. १९५१ में बंधा हुआ देरासर को नूतन शिखरबंध स्वरूप देने की महेच्छा परिपूर्ण बनाने की भावना मूर्तिमंत हुई और नूतन देरासर की शुरुआत करने की दिशा में प्रगति हुई ता. ५-२-१९९० वि. सं. 卐 २०४६ महा सुद ११ सोमवार के शुभ दिन सुबह ९/१३ कलाक पर देरासर की खननविधि की गई इसके बाद ता. २३-२-१९९० वि. सं. २०४६ महा वद १३ और शुक्रवार के शुभ दिन सुबह ८-४३ कलाक पर शिलान्यास हुआ यह दोनों पवित्र मंगल विधियाँ थीका निवासी श्री वेरशी देवशी परिवार के वरद हस्तों से की गई। है नूतन देरासर का काम संतोषजनक ढंग से आगे बढ़ रहा है। । मूलनायक भगवंत श्री महावीर स्वामी भगवंत श्री धर्मनाथ स्वामी और भगवंत श्री नेमिनाथजी की मूर्तियाँ हाल में उपाश्रय हॉल में बिराजमान है । नूतन देरासर पूर्ण हो जायगा तब यह तीर्थ क्षेत्र बन जायगा । यह विगत देनेवाले श्री मेघजी जीवराज शाह मानद् मंत्री विसा ओशवाल कम्युनिटी, पो.बो. नं. १५७ (४८१ Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२) KIM हाथी वृषभ नाथ 1512 मालाय चन्द्र shailee सूर्य ए ध्वज कलश पड़ा सरोवर नाईरोबी - केन्या श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी क्षीरसमुद्र BAVA SIATRA CIAR विमान श्री. अंथ. रत्नराशि अधिन ............... Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदेश विभाग : नाईरोबी - केन्या (४८३ मानापार श्री पार्श्वनाथ भगवान श्री शांतिनाथ भगवान HTNERATION शिखरबंध जैन देशतरजी - बाईरोबी Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ UESH समय Kina नाईरोबी जैन धर्मशाला देरासरजी ३ प्रतिमाजी ॐॐ जैन शाला-जैन देरासरजी Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वेदेश विभाग : मोम्बासा - केन्या (४८५ AT मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी शिलान्यास विधि श्री यशोदाबेन पोपटलाल पदमशी के वरद् हस्तों से दाहिने गर्भगृह के मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी ता.१५-१-१९७६ के शुभ दिन को हुई। बाँये गर्भगृह के मूलनायक श्री शांतिनाथजी जामनगर ओशवाल कोलोनी देरासरजी की प्रतिमाजी का वीसा ओशवाल ज्ञाति नाईरोबी द्वारा यह देरासर अंजन शलाका महोत्सव प्रसंग पर आ. श्री वि. जिनेन्द्र सूरिश्वरजी तैयार हुआ है। म. के मार्गदर्शन मुताबिक नूतन मूलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी ___ आफ्रिका में सब से पहले जंगबार (झांझिबार) में सं. १९७७ प्रभुजी आदि ६ जिन बिंबो की अंजन शलाका पू. आ. श्री विजय में कच्छी मूर्तिपूजक संघ द्वारा यह पहला देरासर हुआ था । सोमचंद्र सू. म. और पू.आ. श्री विजय जिनेन्द्र सू. म. के शुभ हस्तों नाईरोबी में सने १९०८ में पहला स्वामी वात्सल्य हुआ तब १०० से संपन्न हुई। इस अवसर पर नाईरोबी से श्री खीमाजी वजा शाह, भाई-बहन थे । सने १९१३ में सब से पहली दफा पर्युषण त्यौहार श्री मेघजी हंसराज, श्री मोहनलाल देवराज, श्री अमृतलाल अच्छी तरह से मनाया गया । सने १९१८ में फूलचंद करमशी और कालिदास, श्री गुलाबचंद भारमल शाह का एक प्रतिनिधि मंडल श्री रायचंद करमशी की धर्मभावना से जैन ज्ञान वर्धक मंडल की आया था । यह प्रतिमाजी एरपोर्ट से ता.११-११-८३ के दिन स्थापना हुई पहले प्रमुख श्री देवजी हीरजी शाह थे । श्री वीरजी ओशवाल स्कूल में पधराई गई थी और ता.१२-११-१९८३ के भव्य नरसी शाहने उस समय दरम्यान जैनशाला द्वारा धार्मिक प्रवृत्ति का और वरघोडा के साथ श्री प्रतिमाजी का नगर प्रवेश सवेरे सवा नव विकास किया सने १९२६ में केनाल रोड पर जैनशाला के लिये बजे किया गया और श्री प्रतिमाजी का गर्भगृह प्रवेश बड़े धामधूम और जगा लेकर जैनशाला बंधवाई सने १९२८ में फूलचंद करमशी उत्साह के साथ हुआ तीन गर्भगृह में ३-३ ऐसे कुल ९ प्रतिमाजी का शाहने मुंबई गोडीजी (पार्श्वनाथ) देरासर से धातु के प्रतिमाजी लाये भव्यता के साथ प्रवेश हुआ। उसके बाद देरासर की शुरुआत की सन १९५७ में जैनशाला में घर यह भव्य और ऐतिहासिक महोत्सव साथ सं. २०४३ के महा देरासर तैयार हुआ ता.२२-८-१९५७ के दिन आरस की तीन सुद ९ के दिन प्रतिष्ठा संपन्न हुई। यह प्रसंग पर केन्या (आफ्रिका) प्रतिमाजी मूलनायक श्री महावीर स्वामी, ऋषभदेवजी और उपरांत भारत के दूसरे भागों से यु.के. और अमेरिकासे बड़ी तादाद शांतिनाथजी, वेरसी मेपा शाह की ओर से अर्पण किये और उन्हे में भाविकगण आये थे और अपूर्व प्रतिष्ठा महोत्सव संपन्न हुआ बिराजमान किया गया। था । यह देरासर भव्य तीर्थस्य बन गया है। ता.२८-८-१९७१ में झांझीबार से लाये गये मूलनायक श्री यहाँ जिन शाला में श्री महावीर स्वामी देरासरजी है । भाई श्री पार्श्वनाथजी, श्री शांतिनाथजी और श्री महावीर स्वामी की प्रतिमाएं मेघजी और वेलजी वीरजी दोढिया के घर पर श्री संभवनाथ श्री महाजनवाड़ी में बिराजमान की गई। देरासरजी है और श्री हंसराज पोपट हरणिया के वहाँ घर देरासरजी महाजनवाड़ी में देरासर की खननविधि श्री रायशी नथु शाह है और यह सब जगा पर भाविक श्रावक पूजा भक्ति स्नात्र आदि के वरद् हस्तों से ता.११-१-७६ के शुभ दिन को हुई और लाभ लेते है । AN मोम्बासा - केन्या मूलनायक श्री पार्श्वनाथ प्रभु दाहिने ओर श्री आदीश्वर प्रभु बाँये और श्री महावीर प्रभु श्री जैन श्वेताम्बर देरावासी संघ मोम्बासा (केन्या) प्रतिष्ठा सं. २०२० श्रावण सुद६ ता.२६-७-६३ शुक्रवार के दिन संपन्न १ 27 Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ RAISINAHATH FAOTIVALI MARA CREAM मूलनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान . मोम्बासा जैन देरासरजी Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विदेश विभाग : लंडन - लेस्टर यु.के. (४८७ लंडन - लेस्टर यु.के. 0000-8000000000 श्री पार्श्वनाथ भगवान-श्री शांतिनाथ भगवान-श्री महावीर स्वामी यहाँ देरासर में श्री पार्श्वनाथजी, श्री शांतिनाथजी और श्री महावीर स्वामी की प्रतिमाजी है । रविवार ता.२६-७-८७ के शुभ दिन पर प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । जैन सेन्टर नामक संस्थाने एक चर्च को खरीदकर जिन मंदिर के अनुसार फेरफार किया है। यु.के. में यह सब से प्रथम जिन मंदिर है। ****** मीठी लागी छे मने मूरति सोहामणी, हैयामां हर्ष अपार रे; स्वामीजी सेवकने तारजो. मीठी १ ब्रह्मचारी नेमजी तारा गुणो संभारतां, उतरे करत केरो भार रे; स्वामीजी सेवक ने तारजो मीठी. २ चन्द्रवदन प्रभु तारुं निहाळतां, हृदयसागर उल्लसाय जो; स्वामीजी सेवकने तारजो मीठी...३ आत्म कमलनी लब्धि ल्हेरावजो, मेलववा मुकित निवासजो; स्वामीजी सेवकने तारजो मीठी. ४ लंडन - लेस्टर जैन देरासरजी XX Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ZZC) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन :: 警警觉需參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參參 कोबे - जपान मूलनायक श्री महावीर स्वामी यहाँ भव्य जिनालय बनाया गया है । मूलनायक श्री महावीर स्वामी है । ईसकी प्रतिष्ठा बड़ी धामधूम से संपन्न हुई थी । जपान का यह प्रथम जिनमंदिर है। 缘聚聚聚缘緊張緊張緊级缘缘螺黎振賢斷斷斷斷级螺纷纷繁斷探縣 मूलनायक श्री महावीर स्वामी कोबे - जपान जिन (जैन) देरासरजी 事發等參參參參參斷勞動參斷參斷路斷參賽參警验等 Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्री हर्षपुष्पामृत जैन ग्रंथमाला लाखाबावळ हमारे चित्र प्रकाशन मूल्य रू. 40-00 40-00 40-00 30-00 - 30-00 23-9- 1 40-00 क्रम नाम नारकी चित्रावली (गुजराती) नारकी चित्रावली (हिन्दी) नारकी चित्रावली (अंग्रेजी) सत्कर्म चित्रावली (गुजराती) सत्कर्म चित्रावली (हिन्दी) सत्कर्म चित्रावली (अंग्रेजी) 1 कल्पसूत्र सचित्र (बालबोध) कल्पसूत्र सचित्र (गुजराती) कल्पसूत्र मूल (बालबोध) कल्पसूत्र मूल (गुजराती) पू. आ. श्री रामचन्द्र सू. म. जीवन दर्शन (चित्रमय) सामायिक सूत्र सचित्र (गुजराती) . सामायिक सूत्र सचित्र (अंग्रेजी) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ (गुजराती) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-२ (गुजराती) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ (हिन्दी) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१ (अंग्रेजी) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१-२ (हिन्दी) पहले आप लिखायेंगे तो आपको सिर्फ 1000/- रूपये मे ही मिल जायेगें श्री श्वेताम्बर जैन तीर्थ दर्शन Shii पहले आप लिखायेंगे तो आप NAHILA मे ही मिल जायेगें 194449 श्रृतंज्ञाननवन 45, दिग्विजय प्लोट, जामनगर. 4M 150-00 150-00 60-00 60-00 100-00 4-00 6-00 650-00 800-00 650-00 650-00