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गुजरात विभाग :७- कच्छ जिला
(१३३
१. भद्रेश्वरजी तीर्थ
याय
प्राचीन मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी
मालानिमामिला
मूलनायक श्री महावीर स्वामी
मूलनायक श्री महावीर स्वामी पेढ़ी - वर्धमान कल्याण जी की पेढ़ी
पतन ह्रास हुआ । जगडुशाह का समय १३१३-१४-१५ का हैं। कच्छ यहाँ की पेढ़ी से मिले हुई पुस्तक नाम श्री भद्रेश्वर वसई महातीर्थ । लेखक सहित सम्पूर्ण भारत में व्यापक दुष्काल पड़ा। एवं इस दुष्काल में सम्पूर्ण परतिलाल दीपचंद देसाई। प्रकाशक - गुर्जर ग्रन्थरत्न कार्यालय अहमदाबाद
भारत को जगडुशाह ने अनाज की पूर्ति की थी और श्रेष्ठ दातार हुआ। पाटन १ में पेज नं. ७४ पर लिखी विगत के प्रमाण अनुसार तथा श्री आत्माराम
के राजा अर्जुन देव का वंगवास सं.१३३१ में हुआ। उसकी गादी पर सारंग 2 केशवजी द्विवेदी के सन १८७६ में रचित 'कच्छ देशनो इतिहास' नामक देव आया। वह पाटन का राजा हुआ। श्री जगडुशाह का वि.सं.१३३१ के
पुस्तक में बतलाये अनुसार महाभारत युग (जैनों का प्रमाण ८५ हजार वर्ष पूर्व स्र्वगवास हुआ था। यानी सारंगदेव के बचपन का जगडुशाह पूर्व) श्री युवनाश्व राजा की भद्रावती नगरी यही आज का भद्रेश्वर वसई समयकालीन था। इस भद्रेश्वर तीर्थ का जगडुशाह ने उद्धार कराया है। इसके महातीर्थ है। अमुक मतान्तर से मध्य प्रदेश के समीप हिंगणघाट, वसई एवं सिवाय भी बहुत से महानुभवों ने इसका उद्धार कराया हैं।बहुत सारी उन्नति चांदा के समीप आने वाला भांडुक नामक जो जैन तीर्थ है, वहाँ भी प्राचीन एवं अवनति देखी हैं। भद्रवती वंश के शासकों का शासन चलता रहा था। वहाँ पर अन्तिम राजा आगे वीर निर्वाण २३ में पंचम गणधर श्री सुधर्मा स्वामी ने श्री करण वाघेला (करण वेधेला) विक्रम की १४ वीं सदी के उत्तरार्ध तक था।) पार्श्वनाथजी की मूलनायक के रुप में इस भद्रेश्वर तीर्थ की प्रतिष्ठा की है। प्रसिद्ध विजय सेठ एवं विजया सेठानी भद्रावती में हुए हैं। उसी प्रकार श्री उसके बाद वर्तमान में वि.सं. १९३९ के प्राचीन मूलनायक श्री शामला जगडुशाह भी इस नगरी में हुआ है। जगडुशाह के पश्चात इस नगरी का पार्श्वनाथजी का अन्तिम जीर्णोद्धार के समय मंदिर के पीछे घूमती देरी नं. २५