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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
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में स्थापना करके भद्रेश्वर के इस मंदिर की मूलनायक के रुप में श्री महावीर की प्रतिष्ठा करवाने में आयी और श्री महावीर भद्रेश्वर जिन मंदिर हआ। श्री महावीर स्वामी की प्रतिमा के नीचे की गादी ऊपर सं. ६२२ वर्ष इस प्रकार लिखा हैं। यानी यह महावीर स्वामी की प्रतिमा मूल तो प्राचीन ही है यानी इस संवत १९३९ में फिर से उसकी प्रतिष्ठा हुई है।
इस मंदिर की इस समय भव्य प्राचीन कलाकृति है। अत्यन्त दर्शनीय है।
पेढ़ी की व्यवस्था अच्छी तरह चलती है बहुत धर्मशालायें हैं। जैन भोजनालय है। भद्रेश्वर में जैनों के घर नहीं है। प्राचीन शिलालेख मंदिर की बगल की गली में हैं।
भद्रेश्वर में मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपर से मध्य के चाहे उस सीढ़ी से श्री महावीर स्वामी के दर्शन होते हैं। भद्रेश्वर मंदिर जी में प्रवेश करते ही दो खंभे हैं। प्राचीन शिलालेख वहाँ पर उत्कीर्ण है जो पढ़ने में नहीं आता है।
भद्रेश्वर वसही (ता.मुद्रा) कच्छ फोन नं.६१(EX 'वडाला')
शान नायक श्री वर्धमान, त्रिशलानंदन श्री महावार. विना भणे ओछे विद्वान,
मेरु सागर सम धीर गंभीर शासन, चेतर सुद तेरसने दिन, प्रभु जन्म्या भविजन सुखकन्द, सिंह लंछन जग जीवन ओ.
सिद्धारथ नृप कुल नभचंद शासन. सकल सुरासुर ओ पूजित, केवलज्ञानी श्री जिनराज वीतराग ओ मोहराज जित
भवोदधि तारण तरण जहाज-शासन, समवसरण मां प्रभु बेसो, पर्षदा संवोधे ओ बार, शिव सुख लेवा जो चाहो,
तो तजिये संसार असार -शासन, गावो ध्याबो वंदो ओ. उपकारी ओछे महादेव, गुरु कपूर सूरि अमृत ओ,
जपेमानं ना बीजो देव-शासन
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भद्रेश्वर तीर्थ जैन मंदिर जी