SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 467
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी श्री सिंहसूरीश्वरजी म. के वरद् हस्तों से सं.१६९९ में प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । श्री पार्श्वनाथ मूलनायक लंछन सर्प भगवान के दाहिने अंगुठे और अंगुली के बीच में से निकलकर लंछन की जगा पर सर्प तरह वींटा हुआ है मुख नीचे चला गया हो जैसा लगता है। ४. इसराल मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी (२००० साल पुराने) इसराल जैन देरासरजी मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी लोग प्रतिष्ठा संपन्न हुई है । बाँये ओर श्री विमलनाथजी है जगलवाडी में श्री पार्श्वनाथ परिकर युक्त है राणा जगसिंह के निकट की बाडी में यैसा ही मंदिर है। जो शंकरजी का मंदिर का समय में बंधाया गया यह देरासर है । प्रतिमा संप्रति राजा के समय जाता है। राज्य के हस्तक है श्री पार्श्वनाथजी रंगमंडप में दाहिनी की है । रंगमंडप में दो बड़ी प्रतिमाजी के नीचे सं. १५०८ का लेख और बड़े भगवान श्री सुविधिनाथजी है । सं.१५०८ का लेख है... है। मूलनायक के आसन के नीचे डीझाइन है और पैर के नीचे भी रंगमंडप में चौमुखी उपर के भागमें स्थापित किये गये है। डिझाईन है । सोमसुंदर सूरि के पट्टधर श्री रत्नशेखर सू.म. के वरद्
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy