SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 506
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजस्थान विभाग : ६ जेसलमेर जिला SEARNOORATOPATI - मूलनायक श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथजी जिनसागरसूरी के शासन के श्री जिन उदय सूरी द्वारा पोकरण श्री चिंतामणि मोटा पार्श्वनाथजी ११ फणा वाले किशनदेव राजा के समय में प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी । श्री है । सं. १५४८ में प्रतिष्ठा हुई है । १६ वीं सदीमें यह देरासर ऋषभदेव की ४ प्रतिमाएँ प्राचीन संप्रति राजा के समय की है। बनाया गया है । प्रतिमाजी आकर्षक है । सं. १८५६ में एक तीन इंच की छोटी आरस की प्रतिमाजी है । एक आरस जिर्णोद्धार हुआ था । १८८३ में फीर से प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। की बड़ी चोविसी भी है । बड़ी पद्मावती देवी की फणा वाली तीनों देरासर शिखरबंध है । दूसरे देरासरजी में श्री शांतिदायक मूर्ति गर्भगृह में है। रंग मंडप में देवी चकेश्वरी आरस के है । पार्श्वनाथजी चिंतामणि पार्श्वनाथ से उँचाई में छोटे है । ९ फणा दाहिनी और हर एक देरासर में बड़े गोल पथ्थर पर सिंदूर है, सं. १८५६ में जिर्णोद्धार करके यह पार्श्वनाथजी की लगाया है । यह कोई देव की मूर्ति दिखाई देती है । मूलनायक प्रतिष्ठा हुई है । छ पादूकाजी अलग अलग जगा पर है । यह बड़े आकर्षक और भव्य है । स्टेशन १ कि.मी. के अंतर पर है । तीर्थका वहीवट जेसलमेर लोद्रवा पार्श्वनाथ पेढी के हस्तक है। यह तीर्थ जोधपुर-जेसलमेर रोड पर आया हुआ है । छोटी तीसरे श्री ऋषभदेवजी देरासर भी शिखरबंध है । शाके धर्मशाला भी है। यह तीर्थ का कारोबार जेसलमेर तीर्थ पेढी १७४८ का लेख पोकरण नगर के खरतर गच्छीय श्री. द्वारा चलता है । मु. पोकरण जि. जेसलमेर. "अक्षय तृतीया" नमो मरिहंताणं नमो सिध्दाएंग नमो मायरियाणं नमो उवज्झाया नमो लोए सबसाहणं एसो पंच-नमुक्कारी सव-पावप्पणासो मंगलाए च सवेसि पठम हवड़ मंगलम अमे तमारा बालुडाने, हा बालुडाने, द्वार तमारे आव्या रे, | भाव भक्तिनी भेट लइने, दर्शन करवा आव्या रे... अमे तमारा बालुडाने...१ चंडकोशीने उगारवाने, विष सही अमी दीधुं रे अवा दीन दयाळु प्रभुजी, शरण तमारूं लीधुं रे. अमे....२ अगणित छे उपकार तमारा, दीन दयाळा दीन दयाळा; भक्तवत्सल भगवान तमे छो, भकतोना रखवाळा रे. अमे....३ राग द्वेषथी अळगा राखी, भ्रातृभावने प्रगटावो रे; धर्म प्रमाणे वर्तन करीओ, ओवी वृत्ति जगावो रे. अमे....४ महावीर जिनने विनवू कर जोडी, सत्यनुं भान करावो, संमति आपी सकळ विश्वमां; सुखशांति प्रसराबो रे. अमे...५
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy