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________________ गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला (४९ Ho प्रभास पाटण जैन देरासरजी - मूलनायक श्री चन्द्रप्रभ स्वामी भगवान पद्मासनस्थ श्वेत वर्ण ११५ से.मी. आकाश मार्ग से आयी हुई श्री अम्बिका देवी की इस मूर्ति की प्रतिष्ठा । समुद्र किनारे बसा हुआ प्रभास पाटण गाँव के मध्य में है। तीन मंजिल वि. सं. १३६५ में श्री धर्मदेवसूरिजी म. के हाथों से हुई हैं। HEाला देरासर हैं। सात गर्भगृह एक लाइन में हैं। श्री सगर चक्रवर्ती, चन्द्रयशा, चक्रधर, राजा दशरथ, पांडव, हस्तिसेन इस तीर्थ की स्थापना श्री आदिनाथ प्रभु के पुत्र श्री भरत चक्रवर्ती राजा वगैरह यहाँ पर यात्रा हेतु पधारे थे। इसका उल्लेख है। विक्रम संवत ३७० महाराज ने की हैं। उन्होंने ही यह चन्द्रप्रभ पाटण शहर बसाया। देरासर का में धनेश्वर सूरि का रचा हुआ "शत्रुजय माहात्म्य' में इसका उल्लेख हैं। यह निर्माण कराया। विक्रम संवत ३७५ में वल्लभीपुर शहर नाश हुआ। उनके क्षेत्र प्राचीन समय में देवपटणम्, पाटण, सोमनाथ, प्रभास, चन्द्रप्रभास आकाश मार्ग से अधिष्ठायक देव, चन्द्रप्रभु की प्रतिमा तथा अम्बिकादेवी एवं वगैरह नामों से प्रख्यात था और अभी है। क्षेत्रपालों की प्रतिमाजी लाये। आकाश मार्ग से इस प्रतिमाजी के आगमन श्री जैन आगम ग्रन्थ बृहत कल्पसूत्र में भी इस तीर्थ का उल्लेख है। Time का उल्लेख विक्रम संवत १३६१ में प्रबन्ध चिन्तामणि ग्रन्थ में है। वर्तमान में मुहम्मद गजनी के समय और उसके पश्चात मुसलमान राज्य काल में इस विद्यमान मूलनायक श्री चन्द्रप्रभुजी के बिम्ब पर लेख नहीं हैं। तीर्थ को भारी क्षति पहुँची थी इस प्रकार का उल्लेख मिलता है।
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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