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राजस्थान विभाग : ५ जालार जिला
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जिसमें पालनपुर और वागड़देश के श्रावक मिले थे। १३४२ में सामंतसिंह के द्वारा अनेक प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा संपन्न हुई थी। सं. १३७१ में जिनचंद्र सू. म. की उपस्थिति में दीक्षा और मालारोपण उत्सव हुआ था । उसके बाद सत्ताधारी के आक्रमण से इन मंदिरो को बहुत नुकशान हुआ था । और कलापूर्ण मंदिरो को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया था । जैसे अनेक नमुने और किले पर की मस्जिद और हरजी खांडा मस्जिद में है । जहाँ कई पर जैन शिलालेख भी है । सं. १६५१ में फीर से यहाँ मंदिर होने का उल्लेख है। हाल में कुल १२ मंदिर है।
यहाँ के यशोवीर मंत्रीने आबु के मंत्री श्री वस्तुपाल के मंदिर की प्रतिष्ठा में भाग लिया था । उस समय ८४ राजाओं और अनेक मंत्रीओ और आगेवानों ने भी भाग लिया था । यशोवीर शिल्प विशारद थे और उन्होंने वस्तुपाल के मंदिरो में भी १४ भूल बताई थी। उनके गुण और विद्वता की बहुत प्रशंसा हुई थी। यहाँ के मुणोत जगपाल के पुत्र नेणसी जोधपुर के राजा जशवंतसिंह के दिवान थे उन्होंने जैसी कुशलता दिखाई थी कि नेणशी की ख्यात काव्य रचना हुई जो आज भी प्रख्यात है।
किले पर के चौमुख मंदिर जो अष्टापद मंदिर है । और जो पार्श्वनाथ मंदिर है । वह कुमार विहार है । जालोर के श्री नेमिनाथ मंदिर में सं. १६५६ में प्रतिष्ठित जगतगुरु श्री हरिसूरीश्वरजी म. की मूर्ति है । नवनिर्मित श्री नंदिश्वर मंदिर भी सुंदर है । स्वर्णगिरि पर २.१/२ कि.मी. लंबा और १.१/४ कि.मी. चौड़ाई का किला है। जिसमें मंदिरों का दृश्य अद्भुत है । उपर
और नीचे धर्मशाला है । भोजनशाला है । शिरोही से ७५ कि.मी. दूर है । सांडेराव से ६५ कि.मी. भिनमाल से ७० कि.मी. है 122 नाकोड़ा से ८० कि.मी. है । स्वर्णगिरि जैन श्वेताम्बर तीर्थ पेढी बस स्टेन्ड की निकट में । धर्मशाला फोन नं. ११६ जालोर
जालोर तीर्थ जैन देरासरजी
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