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________________ ४२८) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ AL जालोर तीर्थ सुवर्ण गिरि मंदिर BXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXXX GAUR FOROK २. आहोर मूलनायक श्री गोडीजी पार्श्वनाथजी १. मूलनायक श्री गोडीजी पार्श्वनाथजी की प्रतिष्ठा सं... १९३६ में संपन्न हुई थी । भमति की सब प्रतिमाजी में सं. | १९५५ का लेख है। २. श्री पार्श्वनाथ शिखरबंध देरासर तीनों प्रतिमाजी के नीचे सं. १५४५ का लेख है । दूसरे दो भगवान गर्भगृह की बाहर की बाजु में है । नीचे सं. २००१ का लेख है । मूलनायक का परिकर नया है । निकट में बड़ी जैन धर्मशाला है और उसकी निकट में दादावाडी है। ३. श्री विमलनाथजी की प्रतिष्ठा सं. २००५ में हुई थी उसके पहले के मूलनायक श्री ऋषभदेवजी की प्रतिष्ठा सं. १९५५ में हुई थी । जो हाल रंगमंडप में विद्यमान है। श्री ऋषभदेवजीकी नीचे सं. १४५५ का लेख है । गर्भगृह में चार सुपारी जैसे दो कंगुरे खंडित है | उपर चौमुखजी है उसके पीछे भमति में एक कमरे में बड़े अद्भुत श्री वासुपूज्य स्वामी आदि अनेक प्रतिमाएं साथिया, कमल, मगर, गेंडा की है। उपर के भगवान चौमुखीजी के लांछन है। ४. श्री मूलनायक शांतिनाथजी एक देरासर में ६०० साल पूराने है । बाकी के सब सांप्रति के समय के है तपावासी जैन औंशवाल के महोले हैं । तपगच्छ जैन उपाश्रय है । यह स्थान जालोर से २० कि.मी. है । वहाँ से १५ कि.मी. उमेदरपुर और १० कि.मी. पर तखतगढ़ है । AR che R
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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