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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
१. जालोर
मूलनायक श्री महावीर स्वामी
मूलनायक श्री महावीर स्वामी
जालोर शहर के निकट में स्वर्णगिरि पर्वत पर यह तीर्थ आया हुआ है । वह जालोर का किला है । जालोर शहर जो विक्रम की दुसरी सदी में जाबालीपुर के नाम से बसाया था । उसे स्वर्णगिरि कनकाचल भी कहा जाता था । बहुत से करोडाधिपति यहाँ बसे हुए थे और उस समय के राजा आदि द्वारा यक्षवसति
और अष्टापद आदि जिन मंदिरो का निर्माण किया गया था । वि. सं. १२६ से १३५ तक महाराजा विक्रम के वंशज श्री नाहड राजा के समय में यह मंदिर बने हुओ होंगे जैसा अनुमान है । मेस्तुंग सू.म. कृत विचार श्रेणी और श्री महेन्द्रसूरी म. रचित अष्टोत्तर तीर्थमाला में यह तीर्थ का उल्लेख है । सकलार्हत् स्तोच में कनकानचल शब्द से यह स्वर्णगिरि की स्तुति की है । कुमारपाल महाराजा ने १२२१ में यक्षवसति मंदिर का जिणोद्धार कीया था ।
और १२२१ में उन्हों ने बनाया हुआ पार्श्वनाथ मंदिर "कुमार विहार" की प्रतिष्ठा श्री वादीदेव सू.म. ने की थी १२५६ में पू. पूर्णचंद्र सू. म. द्वारा तोरण प्रतिष्ठा सं. १२५६ में मूल शिखर ध्वज दंड प्रतिष्ठा और १२६८ में श्री रामचंद्रसूरी म. द्वारा स्वर्ण कलश की प्रतिष्ठा हुई थी सं. १२८१ में बादशाह जहाँगीर के
समय में यहाँ के राजा गजसिंह के मंत्री मुणोत श्री जयमलजीने जिनमंदिर और अन्य मंदिरोंका जिर्णोद्धार कराया था । मंत्रीकी पली सम्पदे तथा सोहागदे थे और उन्होंने अनेक प्रतिमाजी की प्रतिष्ठा की थी जो आज भी मौजुद है । जयमलजी के जिर्णोद्धार कराने के बाद जयसागरजी गणि के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न कराई थी और वोही यक्षवसति मंदिर है ऐसा कहा जाता है । अन्त में आ. श्री राजेन्द्रसूरीश्वर जी म. के उपदेश से जिर्णोद्धार हुआ था । __तलहटी में जालोर शहर में १२ मंदिर है । सं. ८३५ में रचि हुई कुवलयमाला श्री उद्योतन सू. म. ने श्री आदीनाथ मंदिर में पूर्ण की थी । उस समय यहाँ बहुत मंदिर थे जिसमें अष्टापद मंदिर भी था । आबु के लुणिंग वसहि के शिलालेख में भी अष्टापद मंदिर का वर्णन है । १२३९ में राजा उदयसिंह के मंत्री श्री यशोवीर में आदीनाथजी के मंदिर में भव्य और कलायुक्त मंडप बनाया था । सं. १३१० में भी उदयसिंह के समय में मंत्री श्री जैतसिंह के आयोजन मुताबिक भगवान महावीर के मंदिर में २४ जिनबिंबो की प्रतिष्ठा हुई थी। तब राजा आदि आये थे ।
MAHARASHTRA