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________________ गुजरात विभाग : २ - जुनागढ जिला 8.श्रीकलाससागरसूरि ज्ञानमन्दिर दीव जैन देरासरजी -मूलनायक नवलखा पार्श्वनाथजी ९. अजाहरा तीर्थ । 4 96 * * * * * * * * * * * * * * * * * * * * केशर वर्ण ४६ से.मी. प्रभुजी की प्रतिमा के सम्बन्ध में कहा जाता हैं कि बीसमें तीर्थंकर के समय रघुवंशी राजा अजयपाल का रोग प्रभुजी के न्हवण के जल से दूर हुआ था, इस कारण राजा ने यह गाँव बसाया। मंदिर बनवाया और प्रतिष्ठा करवायी। यह गाँव बहुत ही प्राचीन हैं । आज भी खुदाई का काम करते समय प्राचीन प्रतिमायें मिल जाया करती हैं। १४ वीं सदी में विनयप्रभ विजयजी की रची हुई “तीर्थमाल' में भी इस तीर्थ का वर्णन हैं। जमीन में मिली हुई कायोत्सर्ग मूर्ति पर लेख है उसके अनुसार संवत १३२३ जेठवद ८ के दिन आचार्य श्री महेन्द्रसूरिजी ने प्रतिष्ठा कराई । यहाँ पर प्राचीन घन्टा हैं उसमें "श्री अजाहरा पार्श्वनाथ संवत १०३४ शाह रायचंद जेचंद" इस प्रकार लिखा है। रत्नसार नाम का व्यापारी अपने वाहन जहाज में परदेश जा रहा था। मध्य दरिया में अचानक जहाज अटक गया इतने में दैवी आवाज सुनाई दी कि तुम्हारे जहाज के नीचे पार्श्वनाथ प्रभु की प्रतिमा है उनके न्हवण जल से राजा अजयपाल का रोग मिट जाएगा। इस समय यह राजा सेना के साथ दीव बंदरगाह पर पड़ाव डालकर रहा था। इस व्यापारी रत्नसार ने प्रतिमा को दरिया में से बाहर निकालकर राजा अजयपाल को समाचार भिजवा कर सारा वृतान्त कहकर सुनाया। राजा तुरन्त ही आकर बाजे गाजे से अपने पड़ाव पर प्रभुजी की प्रतिमा को ले गया। और केवल ९ दिन में राजा निरोगी बन गया और यह नगर बसाया। मूलनायक श्री अजाहरा पार्श्वनाथजी
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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