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________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ ABORANJANESHALA अजाहरा तीर्थ जैन मंदिर ी मंदिर का निर्माण कराया प्रतिष्ठा करायी। अजय राजा का रोग हरण ऐसी चमत्कारी प्रतिमा के दर्शन करना एक बहुत बडा ल्हावा है। करने वाला होने से इस कारण यह अजाहरा पार्श्वनाथ कहलाया। इस बहुत प्राचीन तीर्थ है। चौदह-पन्द्रह बार जीर्णोद्धार हो चुका है। यहाँ प्राचीन तीर्थ के सम्बन्ध में बहुत सी चमत्कारपूर्ण बातें सुनने को मिलती हैं जो वर्ष में तीन बार मेला भरता हैं। कार्तिकी पूनम, चैत्र की पूनम और मगसिर सत्य है। वदी दशमी। - कहा जाता है कि, किसी समय देवगण के नाटक आरम्भ करने की मंदिर के भोयरा में से भी प्रतिमायें मिली है। यहाँ के मूलनायक श्री । आवाज सुनायी देती है। श्री अजयपाल का रोग न्वहण जल से मिट गया था, पार्श्वप्रभु की प्रतिमा रेत की बनी है और उस पर लेप करवाया गया है। बहुत इस कारण आज भी लोग उस जल को अमृत मानकर उपयोग करते हैं और ही दिव्य मनोहर प्रतिमा है। उनके रोग का निवारण हो जाता है एक समय इस प्रकार घटना हुई जीर्णोद्धार ऊना से पाँच कि.मी. पर आता है। देलवाड़ा से दो कि.मी. दूर है। के समय पुजारियों तथा कारीगरों को आरती उतारने के पश्चात कार्य शुरू ऊना-देलवाड़ा के रास्ते पर आता है। बस और कार मंदिर तक आ सकती। करने को कहा। कारीगर माने नहीं और काम शुरू करने गये तो तोप के है। धर्मशाला है। भोजनशाला भी चालू है। बराबर खूब जोर की आवाज हुई। संपूर्ण मंदिर में लाल रंग फैल गया। और इस तरह की अनेक चमत्कारिक घटनायें हुई है। . थोड़े वर्षों पूर्व ता- १७-९-७८ को धरणेन्द्रदेव नाग के स्वरूप में आकर प्रभुजी की प्रतिमा के सामने फण चढ़ाकर बहुत समय तक बैठा रहा। हजारों . श्रद्धालुओं ने आंखों से देखा। HARE HUAWLOD
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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