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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
(४) नेमिनाथजीकामंदिर - पंडया फली में श्री नेमनाथजी तथा धर्मनाथजी के मंदिर हैं।
नेमिनाथजी की भव्य प्रतिमा द्वारका के दरिये में से यहाँ के मोणशी शाह के नाँव को लंगर डालकर उस लंगर से नाभि में से पकड़कर इस प्रतिमाजी को निकाला प्राप्त की। मंदिर निर्माण करते गिर जाता था। अतः पू. आ. श्री धर्ममूर्ति सूरीश्वरजी म. से पूछने पर देवी के उत्तर से यह मूर्ति नेमिनाथ प्रभु के दीक्षा लेने के बाद भाई बलदेव ने यह प्रतिमा बनायी थी और अपने घर में पूजा की। गृह मन्दिर की प्रतिमाजी है इस कारण शिखर नहीं बनेगा।
जीवित स्वामी नेमिनाथजी को जानकर मोणसी शाहने आचार्य म. के पास सं. १६४८ माघ सुदी ५ को इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा करायी। श्रा. सु.
५ को पूजा एवं भव्य ऑगी होती हैं । दर्शनों के वास्ते हजारो भक्तजन उमड़ पड़ते हैं। __बगल में धर्मनाथजी का मंदिर सं. १६९५ में श्री अमरशी शाह ने बनवाया है। यह मंदिर जीर्ण होते १९९० में पुनः मुहुर्त कर १९९९ वै सु. ५ को पुनः प्रतिष्ठा की हैं। ऊपर के भाग में गोड़ी पार्श्वनाथजी हैं।
(७) श्री विमलनाथ जैन मंदिर ४५ दिग्विजय प्लॉट में कोतरणी युक्त भव्य तीर्थ के समान श्री विमलनाथ जी का मंदिर है। भव्य प्रवेश द्वार हैं और विशालकाय दो हाथियों के होने से हाथीवाला मंदिर भी कहलाता है। इस मंदिर की अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव हालार देशोद्धारक पू. आ. श्री विजय अमृत सूरीश्वर म. तथा पू. आ. श्री भुवनसूरीश्वरजी म. की निश्रा में हुई है।
रोड ऊपर १९९२ में गृह मंदिर था उसको रूपान्तर कर श्री शाश्वत जिनका हीरालाल ब्रजलाल मंदिर बना है। उसकी अंजनशलाका प्रतिष्ठा पू. आ. श्री कैलाश सागर सूरीश्वरजी म. की निश्रा में हुई है। ४ ५ दिग्विजय प्लॉट में तथा रोड ऊपर शान्तिभवन उपाश्रय है सामने कन्या छात्रालय है। मंदिर से नवीन जेल तरफ जाते विशाल श्री कुंवरबाई नथुभाई श्वे. मू. जैन धर्मशाला हैं।
मंदिर के पीछे पू. आ. श्री विजय जिनेन्द्र सुरीश्वरजी म. के सदुपदेश से स्थापित श्रीमति जशमाबेन वीरजी तथा मेघजी तथा वेलजी वीरजी दोढ़ीया श्रुतज्ञान भवन है। जैन प्राचीन एवं नवीन साहित्य संशोधन और प्रकाशन का बहुत बड़ा केन्द्र है। यह संस्था श्री हर्ष पुष्यामृत जैन ज्ञान भंडार ट्रस्ट (लाखा बावल) चलाती हैं। यहाँ पर श्री हर्ष-पुष्पामृत जैन ग्रन्थमाला (लाखा बावल) श्री महावीर शासन (मासिक) श्री जैन शासन साप्ताहिक तथा शंखेश्वर का श्री हा. वी. ओ.श्वे.मू. त. जैन धर्मशाला का संचालन होता है।
(५)वंडाके तीन मंदिर पंचेश्वर टॉवर के पास जीवराज रतनशी के वंडा में श्री अजितनाथजी का गृह मंदिर हैं उसकी प्रतिष्ठा १९६३ में हुई है।
उसके पीछे भरवाड पा होने के मार्ग पर श्री मुनिसुव्रत स्वामी का मंदिर है। झवेरी झवेरचंद लीलाधर नाथीबाई तथा संतोकबाई ने १९५६ में इसकी नीव रखी और १९५८ में माघ वदी ५ को मुनि श्री चारित्र विजय म. की निश्रा में प्रतिष्ठा करायी।
पास में अजरामर हरजी का विशाल वंडा है। वहाँ पर आदीश्वर प्रभु का मंदिर सेठ अजरामर हरजी ने सं. १९५२ में निर्माण कराया है।
आगे भीड-भंजन के मार्ग पर पोपटलाल धारशी जैन विद्यार्थी भवन है। जिसमें श्री शान्तिनाथ प्रभुजी का मंदिर है। जो सं. १९७८ में बनवाया है।
(६) पेलेशकामंदिर गुलाब बाग का यह मंदिर पेलेश का मंदिर कहलाता है। जिसमें मूलनायक श्री महावीर स्वामी है। इस मंदिर की अजंन शलाका प्रतिष्ठा सं. २०४३ माघ सुदी ११ को पू. आ. श्री देवेन्द्र सागर सूरीश्वर जी म. की निश्रा में हुई है।
खंभालिया नाका बाहर दिग्विजय प्लॉट में विस्तार में मंदिर है।