SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 279
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ १. कर्णावती (अहमदाबाद) तीर्थ अहमदाबाद श्री हठीसिंग उशरीसिंग का धर्मनाथ प्रभुजी का बावन जिनालय अहमदाबाद की स्थापना वि. सं. १४३८ में हुई थी। ऐसा कहा जाता मस्जिद के रूप में परिवर्तित करवाया गया। बणभणाट मच गया नगर सेठ ने है। परन्तु उसके पूर्व यहाँ पर आशावल (पल्ली) एवं कर्णावती नगरी होने शाहजहाँ को यह विदित कराया। उन्होंने मन्दिर सही सलामत यथा रूप में का उल्लेख मिलता है। आशा नगरी दसमी शताब्दी के पूर्व थी। दशमी रखने की आज्ञा प्रदान की.। पश्चात शाहजहाँ के पुत्र औरंगजेब ने उसको |शताब्दी में वहाँ पर भाभा पार्श्वनाथजी का विशाल मंदिर था। नष्ट कर ही डाला। आज उस मंदिर का नामनिशान भी नहीं है। १७४६ में उदयन मंत्री ने उदयन विहार नामक मंदिर बनाया था। ग्यारहवी शताब्दी यहाँ पर १७८ जिनमंदिर थे । ५० हजार श्रावकगण थे। में पल्लीपति आशा को पराजित कर राजा कर्णदेव ने कर्णावती नगर में आज भी अहमदाबाद में २२५ मंदिर हैं। पराओ, पालडी, उस्मानपुरा, परिवर्तित किया था। वह नगर जैनधर्म का केन्द्र था। शान्तु मंत्री ने यहाँ पर शान्तिनगर वि.विस्तारों में बहुत हीअच्छे-अच्छे मंदिर बने है। पोलों मे मन्दिर विशाल मंदिर बनाया था। श्री हेमचन्द्राचार्य महा. ने यहाँ पर प्राथमिक ___ होने पर भी बस्ती कालोनी में चली जाने से संख्या कम होती जा रही है। परा अभ्यास किया था। पेथड़ शाह ने विशाल ज्ञान भंडार निर्मित कराया था। में वस्ती बढे तब वहाँ नवीन मंदिर बनाना होवे तो पोलो वाले वस्ती न होवे या नगर सेठ शान्तिदास जी का मुसलमान समय में बहुत मान था। उनके वहाँ संख्या कम होवे एवं मंदिर बहुत अधिक होवें तो वे मन्दिरों की प्रतिमाजी द्वारा १६८२ में निर्मित विशाल श्री चिन्तामणि पार्श्वनाथ मंदिर १७०० में को परा में प्रदान कर बड़ी भारी भक्ति और शक्ति प्रदान कर सकते हैं। POP
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy