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________________ ३९६) - श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ २२. फालना फालना जैन देरासरजी মা ক্লান্ত मूलनायक श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी प्रभु जगजीवन जगबंधु रे, सांइ सयाणो रे, तारी मुद्राओ मन मान्युं रे, जूठ न जाणो रे. तुं परमातम तुं पुरुषोत्तम वाला मारा, तुं परब्रह्म स्वस्पी; सिद्धि साधक सिद्धांत सनातन, तुं त्रण भावे प्रस्पी रे, सांइ सवाणो रे. तारी. ||१|| ताहरी प्रभुता त्रिहुं जगमाहे वा ० पण मुज प्रभुता मोटी, तुज सरीखो माहरे महाराजा, माहरे नहि कांइ खोट रे. सां. ||२|| तुं निर्द्रव्य परमपदवासी वा० हुं तो द्रव्यनो भोगी; तुं निद्रव्य परतो गुणधारी, हुं करमी मूलनायक श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजी यहाँ श्री शंखेश्वरा पार्श्वनाथजीका विशाल देरासर है सं. २०३५ ज्येष्ठ सुद १४ शनिवार के दिन पू. ह्रींकार सू. म. के पद्मसूरि म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न हुई है । नीचे भूयहरे में श्री पार्श्वनाथजी की बडी प्रतिमाजी है । बाहर के भाग में एक छोटी सी देरी में भगवान की पादुकाए है दूसरी एक छत्री में भी दादा साहेब की चरण पादूकाएं है । जिनेन्द्र पद्म ज्ञानमंदिर बनाया जा रहा है । अंबाजी नगर में नेमिनाथजी का भव्य मंदिर का निर्माण हो रहा है । धर्मशाला का कार्य पूर्ण हो चूका है । जैन धर्मशाला और भोजनशाला निकट में है । आयंबीलशाला, चंदनबाला जैन भोजनशाला, २ जैन उपाश्रय भी है। यहाँ जैनों के १०० से १५० घर है । यह माहिती श्री हस्तीमलजी उमेदमलजी मरलेचा द्वारा मिली है । गाँव फालना तहेसील बाली | दूसरा देरासर शाश्वता जिन चौमुखजी है। वहाँ वल्लभकीर्ति स्तंभ है । श्री पार्श्वनाथ जैन छात्रालय है । 5 गुण हुँ तो गडवासी वा० माहरे नहि को हुं करमी तुं अभोगी रे. सां. ।।३।। तुं तो अस्पी ने हुं स्पी वा० हुं रागी तुं नीरागी, तुं निर्विष हुँ तो विषधारी, हुं संग्रही तुं त्यागी रे. सां. ||४|| ताहरे राज नथी कोइ ओके वा० चौद राज छे माहरे, माहरी लीला आगल जोतां,। अधिकु शुं छे ताह. सां. ||५|| पण तुं मोटो ने हुं छोटो वा ० फोगट फुल्ये शुं थाय; खमजो ओ अपराध अमारो, भक्तिवशे कहेवाय रे. सां. ।।६।। श्री शंखेश्वर वामानंदन, वा ० उभा ओलग दीजे, स्प विभु धनो मोहन पभणे, चरणोनी सेवा प्रभु दीजे रे. सां. ||७|| .
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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