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राजस्थान विभाग : २ पाली जिला
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२१. खीमेल
मूलनायक श्री शांतिनाथजी
खीमेल जैन देरासरजी
मूलनायक श्री आदीश्वरजी
१२५ साल की आयु के बाद स्वधाम पधारे थे । यह गजोजी सं. १९२१ में मूलनायक श्री आदीनाथ की प्रतिष्ठा हुई है। नगिबाई के समय में इस मंदिर के पहले पूजारी थे । बावन आ. श्री रत्नसागर सूरिजी के द्वारा अंजन हुआ था इस देरासर के जिनालय बनानेवाले नगिबाई १२५ साल की आयु तक जीवित थे गर्भगृह से बाहर निकलते बाँये ओर भगवान के नीचे सं. १८२१ यह बात हाल के पूजारी तेजाजी ने कही थी । तेजाजी की अटक का लेख है। सामने सं. १९२१ जो दाहिने बाजु गर्भगृह की बाहर माली है। वे आठ पीढी से यहाँ के पूजारी है। है । जीसकी अंजन शलाका विधि आ. श्री रत्नसागरसूरि के वरद् श्री शांतिनाथजी मूलनायक संप्रति राजा के समय के हैं । यह हस्तों से हुई है । बावन जिनालय की भमति में भगवान की। प्राचीन मंदिर संप्रति राजाने बनवाया था । जिद्धिार हुआ है। 10 प्रतिष्ठा पू.आ. श्री विजयानंद सू. म. के पू.आ. श्री विजयकमल मूलनायक श्री शांतिनाथजी की प्रतिष्ठा सं. ११३४ वैशाख सुद सू.म. के आ. श्री विजयलब्धि सू. म. ने सं. १९९९ में की थी। १० के दिन हुई है और यह प्रतिष्ठा आ. श्री हेमचंद्र सू. म. ने | इस मंदिर के प्रवेशद्वार पर श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथजी चौमुखजी की थी कुमारपाल को बोध देनेवाले भी वही थे वहां श्री है । इस मंदिर की बाहर मूलनायक की दाहिने ओर श्री पावापुरी पार्श्वनाथजी दोनों धातु के थे और प्रतिष्ठा बाद में हुई थी। की रचना है। श्री महावीर स्वामी आदि की प्रतिष्ठा हुई है | श्री यहाँ जैनों के ३५० घर है । इस तीर्थ का वहीवट यहाँ का आदीनाथजी मंदिर के बाहर बाँये और कंपाउन्ड के बाहर एक संघ करता है । उपाश्रय है | ऋषभदेव मंदिर के पास धर्मशाला है। अलग श्री पार्श्वनाथजी का धुंबज वाला देरासरजी है । इस देरासर जो गाँव की बाहर है । यहाँ से राणी ४ कि.मी. और फालना ११ की मूल प्रतिष्ठा सं. १८२० में संपन्न हुई थी। यह लेख प्रवेशद्वार कि.मी. के अंतर पर है। पर है। यह बावन जिनालय श्री नगिबाई ने अकेले ही बनाया है। श्री जलमंदिर में श्री महावीर स्वामी मूलनायक है उसके नीचे सं. २०१३ का लेख है।
दाहिने ओर गौतम स्वामी और बाँये ओर सुधर्मस्वामी के आगे पादुकाजी है जीसमें सं. २०१२ का लेख है । पूजारी के नाम तेजाजी, पूर्वाजी, कश्मेजी, दलाजी और गजोजी । यह गजोजी
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