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________________ DOO 2.0 राजस्थान विभाग : १ सिरोही जिला (३६७ 666666666666666 मूलनायक श्री आदीश्वरजी की स्थापना की थी। विमलवसही एक अद्भुत मंदिर है । स्तंभ देलवाड़ा तीर्थ माउन्ट आबु पर है । और दूसरे पाँच मंदिरों के तोरण छत और द्वारों की नक्कासी देखते वहाँ से हील ने का मन नहीं होता। १ समूह में यह तीर्थ है। श्री विमलवसही में श्री आदीश्वरजी है श्री लूणवसही में श्री ऐसा ही भव्य मंदिर मंत्री श्री वस्तुपाल तेजपाल ने अपने भाई । नेमिनाथजी है । श्री पित्तलवसही में आदीश्वरजी है और लुणिंग की मूर्ति भराने की अंतिम इच्छासे यहां विमलवसही के श्रीविमलवसही के आगे श्री महावीर स्वामी का देरासर है और सामने बावन जिनालय युक्त लुणिंग वसही बनाई है। उसमें सं खतरवसही में उत्तुंग ३ मंझिल के चौमुखजीमें श्री पार्श्वनाथजी है । १२८७ फाल्गुन वद ७ को नागेन्द्र गच्छाचार्य श्री विजयसेन श्री विमलवसही और श्री लुणवसही देरासर बावन जिनालय है। सूरीश्वरजी म. के वरद् हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न कराई थी। इस और अद्वितीय नक्काशी है । जो सारी दुनिया में विख्यात है। मंदिर में तेराह करोड़ पचपन लाख रुपये का खर्च किया था मूल मंदिर के द्वार निकट देराणी जेठानी के गोख अत्यंत सुक्ष्म है विमल मंत्रीश्वरने यहाँ मंदिर बनवाने के पहले कोई मंदिर नक्काशी वाले बनाये है । पीछे हस्तीशाला और कुटुंबीजनों की । विद्यमान न था इसलिये ब्राह्मनलोगने जमीन लेते समय विरोध मूर्तियाँ आदि भी बनाई गई है। मंदिर को देखते हम दंग रह जाते किया। अंबिका देवीने जमीन में आदीश्वरकी प्रतिमा है जैसा कहा हैं और अद्भुत ऐसा उद्गार निकलता है। विमल वसही और और नीलवर्णकी ७१ ईंच की प्रतिमा यहाँ चंपक वृक्ष के नीचे से लुणिंग वसही वे दुनियाभर के अद्भुत कलायुक्त मंदिर है। प्रगट हुई और विरोध बंध हो गया । यह प्रतिमा विमल वसही की भमती में है। यह प्रतिमा श्री भरतमहाराजाने आबु पर चौमुख इस मंदिर को सं. १३६८ में अल्लाउदीन खिलजीने क्षति जिनमंदिर बनाया था और बाद में इसमें बिराजमान किया होगा पहुचाइ था इसका उद्धार १० साल बाद चद्रासह क ज्यष्ठ पुत्र... और पीछे धरतिकंप से हो सकता है कि यह सारा मंदिर नष्ट हुआ श्रेष्ठी पेथड़शाहने करवाया था। होगा । यह प्रतिमा बहुत प्राचीन और २५०० साल पूरानी मानी तिसरा मंदिर पित्तल वसही है । उसमें भीमाशाहने मंदिर जाती है। श्रुतकेवली से भद्रबाहुस्वामी रचित बृहतकल्प सूत्र में यह बनाकर धातु के परिकर युक्त श्री ऋषभदेव प्रभुंजी बिराजमान तीर्थ का निर्देष है। इसलिये यह तीर्थ प्राचीन माना जाता है। किये है । यह बावन जिनालय जैसा है। पर हाल में अलग अलग विमलशाह मंत्री गुर्जरनरेश भीमदेव के मंत्री और सेनापति थे मंदिर है । मंडप में भव्य प्रतिमा है । जो महीधर प्रासादो में से बाद में चंद्रावती के दंडनायक बने थे उन्होंने धर्मघोष सू.म. के होने की संभवना है । इसके बारे में पूरे ईतिहास की जानकारी पास युद्ध अदि किये थे उसका प्रायश्चित मांगा । पू. श्रीने इस नहीं हुई है । जीस से ऐसा भी कहा जाता है की वि. सं.१५२५ में प्रायश्चित में आबु तीर्थ का उद्धार करने को कहा। अहमदाबाद के सुलतान महंमद बेगड़ा के मंत्री सुंदर और गदा ने यह पित्तलहर मंदिर का निर्माण किया है । में जब, २०३७ में विमलशाहने अपनी पत्नी श्रीदेवी की सलाह से और विनिमय आबु गया उस समय पेढी की बुक में भीमाशाह का ईतिहास पण से पानी की तरह द्रव्य खर्च किया, द्रव्य बिछाकर जमीन खरीद उपलब्ध नहीं है । यह मैनें पढ़ा और अचलगढ गये वहाँ तलहटी की १५०० कारीगर काम में लगाये थे और नक्काशी करते समय में पांडवो का अचलेश्वर मंदिर भूमि में से निकला है । उसे देखते जो आरस का भूका नीचे गीरे उसके भारोभार सोना अखंडित के । उसमें श्रावकों की मूर्तियाँ देखी और उसमें भीमाशाह आदि के लिये और खंडित के लिये चांदी दी जाती थी । ईस मंदिर के नाम पढ़कर पेढी में उसकी नोंध करवाई थी महाराणा प्रताप को निर्माण में उस समय १८ करोड़ त्रेपन लाख रूपये खर्च किया था । मदद करनेवाले भामाशाह यही थे ऐसा कहा जाता है । परंतु यह वि. सं. १०८८ में श्री आदीश्वरजी आदि बावन जिनालय की बात संशोधन की है। प्रतिष्ठा आ. श्री धर्मघोष सू.म. के वरद् हस्तों से संपन्न की थी। विमल वसही का जीर्णोद्धार उनके वंशज मंत्रीश्री पृथ्वीपाल ने विमल वसही के आगे छोटासा श्री महावीर स्वामी का मंदिर १२०४ में करवाया था । सं. १३६८ में अलाउदिन खीलजी ने इस है । संकुल के प्रवेशद्वार की बायें और तीन मंझिला उत्तुंग खतर मंदिर को नुकशान किया था इसका उद्धार मंदोर के शेठ गोसन वसही मंदिर है जीसे कारीगरों ने बनाया है और भव्य कला उसमें तथ भीमा के भाइओं के पुत्र धनसिंह महनसिंह और उनके पुत्रो ने भी उतारी है. वह खारे पथ्थर का है । विमल वसही और लुणिंग कराया था । वि. सं. १३७८ में वैशाख सुद-९-के दिन श्री ज्ञान वा वसही के बावन जिनालय आरस पहाण के है । सहा कर सू. म. के. वरद हस्तों से प्रतिष्ठा संपन्न करवाई थी । विमलशाह आबु की आबोहवा बहुत ही खुशनुमा होने के कारण बहुत ने मंदिर के साथ हस्तीशाला बनाई थी और ७२ जिनों की माताओं सारे लोग यहाँ आते है और इन सब मंदिरों को देखकर उनकी ప్రాంతం తాతారాం తాం తాంత్రం రాత్రి 60 Coo
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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