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गुजरात विभाग : ८ - बनासकांठा जिला
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- मूलनायक - श्री शान्तिनाथजी यह ७००/८०० वर्ष प्राचीन भव्य जिनालय है। रंगमंडप सुन्दर है। पहले यह भोयरा था।
दुसरा दादा आदीश्वरजी का शिखरबन्द मंदिर है। गिरी पहाड़ से यह प्रतिमाजी लायी गयी है। इस जिन मंदिर की प्रतिष्ठा वि. सं. २०३९ में हाई । नीचे कुलदेवीजी का सुन्दर मंदिर है।
नवीन सोसायटी में भी दो जिन मंदिर है। पूज्य रामसूरिजी म. डेलावाला क सद् उपदेश से इस मंदिर का निर्माण हुआ है। प्रदक्षिणा में चित्रपट हैं।
अचिरानंदा शान्ति जिणंदा शान्तिसुखदातार,
वंदन भावे करूं ॥१॥ विश्वसेन नृपना कुलमाँ ओ दीवो, मृगलाञ्छन मनोहार वंदन, ॥ २॥ इन्द्र चन्द्र नर नागेन्द्र देवो, सेवा तुज करनार । वंदन. ॥ ३॥ गर्भथकी पण मारी निवारी-सार्थक नाम धरनार । वंदन. ॥४॥ पारेको प्रभुजी आपे बचाव्यो, अभयदान देनार । वंदन ।। ५॥ दावानल सम आ भव थी बचावी द्यो शिवनार। वंदन. ॥६॥ लाखाबावल माँ आप बिराजो सयल संघ सुखकार। बंदन, ॥७॥ गुरु कर्पूर सूरि अमृत विनवे, करजोडी वारम्वार। वंदन, ॥८॥
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हुवा जैन मंदिरजी
मूलनायक श्री अमीझरा पार्श्वनाथजी
मूलनायक श्री अमीझरा पार्श्वनाथजी इस मंदिर का जीर्णोद्धार वि. सं. १८३९ में का. व. ६ के रोज हुआ है। इन प्रभुजी का अनोखा चमत्कार देखने को मिलता हैं। कोई चोर मंदिर में चोरी नहीं कर सकता है। आगे कोई चोर प्रभु के आभूषण मुकुट वगैरह चुरा ले गया और वापिस दे गया।
पद्मप्रभुजी का मंदिर भोयरा में पहले था। जो अभी ऊपर लाकर पार्श्वनाथजी मंदिर की पास में जिन मंदिर बनवाया है। भोयरे के ऊपर यह जिन मंदिर है। यहाँ का जो भोयरा है वह भीलडीयाजी में निकला है ऐसा कहा जाता है। उपाश्रय दो प्राचीन और दो नवीन उपाश्रय है। धर्मशाला भोजनशाला की अच्छी व्यवस्था है। जैन घर ५ हैं।
व्यवस्था : धानेरा श्वे. मू. त. जैन संघ करता है।