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________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला (१९३ मूलनायक श्री शामला पार्श्वनाथजी यह तीर्थ बहुत पुराना मांडवगढ़ के महामंत्री पेथडकुमारने विविध स्थानपे ८४ तीर्थ स्थान बनवाया है। उसमें चास्प एक है । यहाँ पे १ वार की फणावाली पार्श्वनाथजी की श्यामवर्ण की प्रतिमा प्रतिष्ठित की है । जीसकी प्रतिष्ठा प्रभावशाली शीलगुण सूरिजी के शिष्य श्री देवचंद्रसूरि ने की है । तत्त्वनिर्णय नामक ग्रंथ में इसका उल्लेख है, कि नेमिनाथ के लिए २२२२ साल के बाद गौड देश के श्री अषाढी श्रावक ने तीन प्रतिमाएं बनवाई थी। इसमेंसे यह एक है | जो समुद्रमे से देवने निकाल कर दी थी। यह प्रतिमाजी को यहाँ से ले आये इस को २००० साल हो गया है। पूराने समय में बहुत बडा तीर्थ और नगर था । मारवाड से महान आचार्य श्री वीराचार्यजी यहाँ आये थे । उस समय सिद्धराज राजा पाटणसे यहाँ दर्शन करने के लिये आये थे । सं. २००६ मे यहाँ पाये की खुदाइ का काम करते समय बावन जिनालय का अस्तित्व मीला इस के बाद खुदाई का काम बंध कर दीया था । यह तीर्थ हजारो साल पूराना है, दूसरे लोगों मे भी असत्य बोलनेवाले यह प्रतिमा की कसम नहीं लेते। सुविधाए पाटण से तीसरा रेल्वे स्टेशन है जो १ कि.मी. दूरी पर है । चोकीदार के साथ कारखानाकी ओर से बैलगाडी आती है जो १० कि.मी. अंतर पर है | पाटण से बस भी चलती है । भोजनशालाकी बहुत अच्छी सुविधाए है और बडी धर्मशाला है । पहले जैनोके १००० घर थे अभी ओक भी घर नहीं है। मूलनायक श्री शामला पार्श्वनाथजी १५. मेत्राणा तीर्थ (सिद्धपुर) मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान अखंड दीप की ज्योत के साथ कभी कभी वासक्षेप भी यहाँ वि. सं. १३४३ में प्राचीन देरासर था । कीसी कारण . झरता है | केशर के छंटकाव होते है । अमी झरता है, घंटनाद उसका विनाश होने के बाद १०० साल पहले इसी जगह पर भी होता है। फीर से देरासर बना है। १७ वीं सदी तक यहाँ पूराना देरासर देरासर के चारों और भमति है । भमति की दाहिनी और था जीसका विनाश होने के बाद प्रतिमाजी को भूमि में पधराई गर्भगृह में पार्श्वनाथ प्रभुकी मनोहर एकलतीर्थ परिकर के साथ गई थी । वि. स. १८९९ की सालमें लोहार की बेटी को स्वप्न आरसकी प्रतिमा है जीस में लेख है की वि.स. १३५१ में नागर आया और खुदाइ काम करते समय यह प्राचीन प्रतिमाजी गच्छीय श्री पालु के कल्याण के लिये उसके भाई वयजलने यह नीकली थी । उसको वि.स. १९०१ में देरासरमें स्थापने के बाद मूर्ति भराई थी। यह पार्श्वप्रभु का देरासर मूल सं. १०७३ में था वि.स. १९४७ वैशाख सुद ३ के दिन फीर से प्रतिष्ठत किया । एसा लेख मिलता है। शिखरबंध तीन दरवाजे वाला, शृंगार चोकी के साथ ९ तोरण है। इस तरह मेत्राणा प्राचीन तीर्थ है । उपाश्रय, विशाल अंदर के भागमें ९ तोरण है जो दोनों मीलके १८ तोरण है। धर्मशाला और भोजनशाला है। सिद्धपुर-पाटण से १२ कि.मी. तीन गर्भगृह में और एक मूलनायक के नीचे के भागमें मूर्ति है की दूरी पर है वहाँ से बस मीलती है । मेत्राणा से मेत्राणा रोड जीसके उपर १६६४ की साल का लेख है। स्टेशन १.१/२ कि.मी. की दूरी पर है।
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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