SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गुजरात विभाग : ९ - महेसाणा जिला प्र- --- -- मूलनायक - श्री शान्तिनाथजी वि.सं.१२२४ में इस नगर के राठोड़ वंश के राऊत दुलगर को पू.आ.श्री. जयसिंह सूरिजी ने प्रतिबोध प्रदान कर जैन किया इसके वंशज ओसवाल जाति में पड़ाइया गोत्र से जाने जाते है।अचल गच्छ के आचार्य श्री मेरूतुंग सूरि.म.के उपदेश से वि.सं.१४२९ में श्री माली पुत्र आरया के तथा वि.सं.१४३८ में तेजु श्राविका ने जिन बिम्बों की प्रतिष्ठा की है।वर्तमान वि.सं.१४५२ में प्रतिष्ठित हुए श्री शान्तिनाथ भगवान विद्यमान है। वनराज चावड़ा और पू.आ.श्री कल्याण सागर सूरिजी की जन्म भूमि कहलाती है।पूर्व के समय में यह नगरी थी। यहाँ प्राचीन तीर्थ था जो समय-क्रम से नाश को प्राप्त हुआ। उसी स्थान पर वर्तमान में देरासर है। (२०५ -- - - - मुसलमान यहाँ के राठोड़ो को वटलाये वे मालेसलाम जरासिया के रूप में आज जाने जाते है। वैसा आर्यकल्याण गौतम स्मृति ग्रन्थ में लिखा है। ८०० वर्ष पूर्व २४ परगणा की राठोड़ वंश की गरसीया राजधानी थी। विक्रम की बारहवी सदी में प्राचीन मंदिर था उसमे संप्रति महाराजा द्वारा स्थापित प्रतिमा वर्तमान में मौजूद है। पू.आ.श्री ओंकार सूरिजी म.के उपदेश से शिखरबन्द जिनालय बना है। बारम्बार जीर्णोद्वार हुआ है। अन्तिम वि.सं.२०३७ में माघ वदी ३ को प्रतिष्ठा हुई है। जैनों के ६ घर है। शंखेश्वर से १३ कि.मी. है। शंखेश्वर मेहसाणा के मार्ग पर आता है। बसे मिलती है। समीप में शंखलपुर है। २६. मुंजपर alanising video मूलनायक श्री शान्तिनाथजी मूलनायक श्री गोडी पार्श्वनाथजी मूलनायकजी-श्री शान्तिनाथजी पेढी-मेघजी भाई हीरजी भाई की पेढी मुजपुर ७०० वर्ष पूर्व का गुम्मटवाला मंदिर है। संप्रति महाराजा के समय की प्रतिमा है। ऊपर के भाग में प्राचीन प्रतिमा है। अंतिम वि.सं. २०४४ में जीर्णोद्वार हुआ है। गोडीजी पार्श्वनाथ प्राचीन शिखर बन्दी मंदिर है। अखंड दीपक चालू है। जैनो के ८ घर हैं। धर्मशाला,पांजरापोल है। शंखेश्वर १० कि.मी. है। E-RE -EFER- E- - - - - - - - -
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy