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________________ (२२३ गुजरात विभाग : १० - साबरकांठा जिला 500 CO 1000 DOD० 2009 D०.०००.०० ०० Soo मूलनायकजी - श्री महावीर स्वामी शिखरबन्द सात शिखर एवं नक्काशी युक्त अत्यन्त प्राचीन यह जिन मंदिर है। चम्पापुरी नगरी से सम्प्रति राजा के समय की प्रतिमाजी लायी है। पुरातत्त्व खाता, हस्तक, प्राचीन खंडहर हुआ देरासर वर्तमान में आज भी देखने को मिलता है। इस जिनालय का जीर्णोद्धार वि. सं. २०३५ में हुआ है। आदीश्वर दादा ऋषभदेव स्वामी, अजितनाथ प्रभु, शान्तिनाथ प्रभु, सुमतिनाथ प्रभु ये पाँच जिनालय भी है। धर्मशाला प्राचीन थी वह वर्तमान में नवीन बनी है। जैन भोजनशाला परा में तथा देवचंदनगर में है। जैन घर लगभग ४०० है। २.टींटोइ तीर्थ मूलनायक जी श्री मुहरी पार्श्वनाथजी टीटोई यह दर्शनीय तीर्थ है। लब्धिनिधान गणधर महाराज श्रीमद् गौतम स्वामी ने अष्टापद पर्वत पर रचित “जय चिन्तामणि' चैत्यवंदन में मुहरी (पार्श्व) दुःख दुरित खंडण इस वाक्य से जिसकी स्तुति करी है वे श्री मुहरी पार्श्वनाथ प्रभु की चमत्कारी और देदीप्यमान मूर्ति टीटीई नगर के इस भव्य जिनालय में है। ___ यह प्रतिमाजी यहाँ से ८ कि.मी. दूर शामलाजी के पास आती है। मेश्वो. १००० सरोवर के पाल के समीप दटे गये जिन मंदिर में स्वप्न देकर यह प्रतिमा मिली है। वि. सं. १८२८ की वर्ष में टीटोई जैन श्वे. संघ ने भगवान को यहाँ पर प्रतिष्ठित किया। २५०० वर्ष की प्राचीन प्रतिमा है। ऐसा कहा जाता है। आयंबिल खाता तथा उपाश्रय है। इस तीर्थ में आने के लिए शामलाजी एवं हिम्मतनगर से बसे तथा जीप की व्यवस्था है। मूलनायकश्री मुहरी पार्श्वनाथजी RSS (o
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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