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________________ ४०४) मूलनायक श्री महावीर स्वामीजी देरासरजी २०० साल पूराना है । प्रतिमाजी महाराजा संप्रति के समय के है प्रथम प्रतिष्ठा पू. पं. श्री कल्याण विजयजी गणिवर के वरद् हस्तों से हुई थी । बाद में २०३२ में फीरसे पू. आ. श्री दर्शनसागर सू.म. की निश्रा में थी। कार्तिक सुद १० के दिन यहाँ मेला लगता है और साधर्मिक भक्ति भी होती है । दूसरे देरासरों में श्री आदीश्वरजी शेत्रुंजय मंदिर है जीसमें २० विहरमान और गत २४ है श्री सप्तफणा पार्श्वनाथ मंदिर की प्रतिष्ठा सं. २००९ में पू. आ. श्री विजय मंगल प्रभसूरीश्वरजी म. मुलनायक श्री मुनिसुव्रत स्वामी की निश्रा में हुई थी। फीर से प्रतिष्ठा सं. २०४९ वैशाख सुद ६ के दिन पू. आ. श्री विजय गुणरत्न सू.म. की निश्रा में हुई थी । केसरियाजी मंदिर की प्रतिष्ठा पू. आ. श्री विजय जिन प्रभ सू.म. की निश्रा में हुई थी । ज्ञान मंदिर की प्रतिष्ठा पू. आ. श्री जिनेन्द्र सू. म. की निश्रा में संपन्न हुई थी। एक नया मंदिर बन रहा है । यहाँ जैनों के ५०० घर है निकट में वांकली मुनि सुव्रत स्वामी पोमावा सुविधिनाथजी देरासरजी है । यह तीर्थ सुमेरपुर से ८ कि.मी. जवाई बंध स्टेशन से २० कि.मी. के अंतर पर है। टेक्षी मिलती है । धर्मशाला और भोजनशाला की सुविधा है । ३०. वांकली श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ वांकली जैन देरासरजी मूलनायक श्री मुनिसुव्रतस्वामीजी में यह प्राचीन देरासरजी हैं। यह अक अच्छा तीर्थ माना जाता है । निकट में खिवान्दी, कोरटाजी आदि तीर्थ है । निकट सुमेरपुर शिवगंज आदि शहर है। शिवगंज में १४ देरासरजी और सुमेरपुर में ४ देरासरजी है। स्टेशन जवाई बंध से वाहन है • मिलते है । पू. आ. श्री विजय सुधांशु सू. म. की यह जन्मभूमि है । 麗麗麗麗麗麗麗質優質
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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