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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
१२. अलाउ
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मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी
पू. गुरुदेव अमृत सू. म. की मूर्ति
मूलनायक श्री वासुपूज्य स्वामी यह ऊँची विशाल रचना का भव्य मंदिर है। संवत १८८५ में इसको बनाया है। पू.आ.श्रीविजय नेमी सूरिजी म. के हाथो इसकी प्रतिष्ठा प्रभावक रूप में हुई थी। द्वितीय प्रतिष्ठा पू.आ.श्री अमृत सूरिजी म.के द्वारा
प्रतिमाजी गल जाने से पुन: नवीन प्रतिमा जी प्रतिष्ठित करने के कारण तीसरी प्रतिष्ठा पू आ. विजय जिनेन्द्र सूरिजी म. की निश्रा में संवत २०३३ में माघ सुदी १० को हुई है एवं जीर्णोद्धार भी हुआ है।
वरंडा में भव्य शत्रुजय पट है। उसमें गोखले में पू. आ. श्री विजय अमृत सूरिजी म. की मूर्ति है । प्रथम जीर्णोद्धार राणपुर के शेठ नागरदास परसोत्तमदास ने सं. १९९९ में करवाया है।
बोडाद ८ कि.मी. है। साधन आवागमन के मिलते है। यहाँ से राणपुर १४ कि.मी. दूर।
अलाऊ जैन मंदिर