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श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१
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१८. पलांसवा
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मूलनायक श्री शान्तिनाथजी
मूलनायक जी- श्री शान्तिनाथजी इस मंदिर की प्रतिष्ठा सं. १९१० में हुई थी। इसके पहले यहाँ पर शिखरबन्द मंदिर था। इसका शिलालेख मिलता नहीं है। ३०० वर्षों पुराना
पलांसवा जैन मंदिरजी. यह मंदिर अजितनाथजी का पहला मूल मंदिर था। बाद में पच्चीस वर्ष अलग मूर्ति पहले माले पर प्रतिष्ठित की। कोई ज्ञानवान पुरूषों ने कहा कि मंदिर में चार मूर्तियां आरस की होवें यह अच्छा नहीं है। इसलिए संघ ने अलग
पलासवा गाँव के पश्चिम में गुरु मंदिर है। उसमें यहाँ स्वर्गस्थ तीनो के प्रतिष्ठित करायी।
चरण हैं। जैन पाठशाला है और बहुत प्राचीन समय से चलती हैं आंबेल यह पलासवा ग्राम ९०० वर्षों पूर्व बसा है । दादा श्री विजय कनक शाला-पाठशाला कनक सूरिजी म. सा. के उपदेश से सं. १९८७ से चालू सूरिजी महा. (कच्छ - वागड़ देशोद्धारक) इस गाँव में जन्मे थे। मंदिर जी के हैं । पांजरापोल यहाँ के ही संघ के हस्ते चलती है। मंदिर को संघ ने बगल में गुरु मंदिर सं. २०२१ में बनवाया उसमें गुरुदेव श्री कनक सूरिजी म. बनवाया हैं। की मूर्ति स्थापित की। इस मंदिर के मूलनायक श्री शान्तिनाथजी के दाईं यहाँ बहिनों एवं भाईयों कुल मिलकर ४० जनों ने दीक्षा ली है यहां पर तरफ पुराने मूलनायक श्री शान्तिनाथजी है। पहले यहाँ पर मंदिर ऊपर प्राचीन समय का ज्ञान भंडार प्रख्यात है। बिजली गिरी इससे मूर्ति खंडित हुई। बाद में दरिये में पधराने की विचारणा चलती तब प. पू. दादा श्री विजयसिद्धि सूरिजी म. सा. तथा पूज्य नेमिसूरि
"अक्षय जी म. के शिष्य श्री उदय सूरिजी म. सा. ने समुद्र में पधराववाने की मना की।
ताया” बराबर इस समय नवीन मूलनायक के सो वर्ष से ऊपर तीन चार वर्ष हुए थे।
इससे गुरुदेव श्री सिद्धि सूरिजी म. ने शताब्दी महोत्सव उजवने का उपदेश प्रदान किया अतः २०२८ में भव्य महोत्सव उजवाया। __यह मंदिर ३०० से ३२५ वर्ष प्राचीन है। इस मंदिर का जीर्णोद्धार वि. सं. १९१० में गोरजी श्री पद्म विजयजी के उपदेश से उनकी निश्रा में हुआ। आज गोरजी पद्म विजयजी प्रतिष्ठा के पश्चात पू. पं. श्री मणिसागरजी दादा के शिष्य हुए। पू. मुनि श्री पद्म विजयजी तथा उनके शिष्य मुनि श्री जितविजय
जी दादा स्वर्गवास सं. १९८० कच्छ-वागड़ देशोद्धारक, उनके शिष्य हीर TIT विजयजी तथा आ. श्रीकनक सूरिजीम.संसार-अवस्था के सगे चाचे-भत्तीजे
ये साधु-जीवन में गुरु-शिष्य हैं। दोनों की जन्म भूमि पलासवा है। प्रचार