SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ वैशाख वदी छठ दादा के मुख्य जिनमंदिर की प्रतिष्ठा - पद्मावती देवी की मूर्ति हैं, हनुमान धारा के पास एक ध्वज दंड के भी मेला होता हैं । (१६ वें उद्धार का रास्ता नवटूकों की तरफ जाता हैं और दुसरा रास्ता भी यह दिन हैं।) मुख्य टोंक (श्री आदीश्वर भगवान की टोंक) तरफ दुसरे मन्दिर - पालीताणा गांव से लेकर तलहटी जाता हैं । इस मुख्य टोंक की तरफ जाते हुए प्रथम तक अनेक मन्दिर है जिनमें एक केशरियाजी मंदिर, बाबु रामपोल, वाघणपोल आते हैं । आगे फिर हाथीपोल में का मंदिर गोविंदजी खोना का जिन मंदिर तथा आगम प्रवेश करते हुए सूरजकुंड, भीमकुंड, ईश्वरकुंड वगैरह मंदिर भी हैं । पहाड़ के शुरू में ही समवसरण मंदिर आते हैं । एक विशाल होज आता हैं । जिस का अत्यन्त शोभायमान बना हैं। पानी भगवान के प्रक्षालन के लिए उपयोग में लिया __यात्रारम्भ की विगत - पहाड़ पर चढ़ते समय जाता हैं। तलहटी में श्री गिरिराज सन्मुख चैत्यवन्दन करके मुख्य टोंक में प्रवेश करते हुए श्री शान्तिनाथ यात्रारम्भ करते हैं। का मंदिर तथा दाई तरफ नरशीनाथा का मंदिर टोंक में गोविंदजी खोना के मंदिर के पास आते हैं । आगे श्री नेमीनाथ का मंदिर बगल में अजिमगंज निवासी धनपतसिंह लक्ष्मीपतसिंहजी के पुण्य-पाप की बारी, पास में दोनों तरफ मंदिरों की श्रेणी, मूल मंदिर के बाहर कुमारपाल का मंदिर हैं । द्वारा विक्र म सं.१९५० में माघसुदी १० को पीछे स्नान केशर की व्यवस्था हैं । अन्दर प्रवेश करते प्रतिष्ठित करा हुवा बावन जिनालय मंदिर तलहटी ही आदीश्वर दादा की प्रतिमा का दर्शन होता हैं। के ठीक ऊपर है उसे धनवसही ट्रॅक (बाबु का आगे रायण पगला-चरण, गणधर चरण भमती में हैं मंदिर) भी कहा जाता हैं । आगे बढ़ते देरियाँ हैं । तथा दूसरा मंदिर उसी प्रकार मूलनायक के सामने श्री जहाँ भरत चक्रवर्ती नेमिनाथ भगवान के गणधर पुंडरीक स्वामी, नवीन आदीश्वर अष्टापद मंदिर, वरदत्त आदीश्वर भगवान की और पार्श्वनाथ सीमन्धर स्वामी का मंदिर हैं । मोटी भमती में से भगवान की चरण पादुका और द्राविड वारिखिल, नवीन बावन मन्दिर में जाते हैं। नारदजी, राम, भरत, थावच्चा पुत्र, शुक्र मूल दादा के पास आते ही आत्मा आनंद में परिव्राजक, शेलेकसूरि, जाली, मयाली, उवयाली, नाच उठती हैं । भव्य प्रतिमा, भव्य भाव एवं भव्य और देवी आदि की मूर्तियाँ हैं। बीच में यात्रा का योग मिलता हैं । दर्शन-पूजन स्तवनों से कुमारपाल कुंड, छालाकुंड बगैरह आते है। मंदिर गूंजता रहता हैं । भक्तगण तन-मन-धन तथा छालाकुंड के पास जिनेन्द्र टोंक है, जिसमें चरण एवं वचनों से न्यौछावर होकर भक्ति करके धन्य बनते हैं मूर्तियाँ हैं । लगभग ४०'६ से.मी. की प्रभावशाली एवं जीवन कृतार्थ करते हैं । - श्री ओसवाल यात्री गृह
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy