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________________ गुजरात विभाग : १ - भावनगर जिला दबदबदबदबदबदर श्री १०८ तीर्थ समवशरण मंदिर १०. श्री शान्तिनाथ भगवान के सुपुत्र श्री चक्रायुध द्वारा ११. श्री मुनिसुव्रत भगवान के समय में श्री रामचन्द्रजी द्वारा १२. श्री नेमिनाथ भगवान के समय में श्री पाण्डवो द्वारा १३. विक्रम संवत १०८ में महुआ निवासी श्री जावडाशा द्वारा १४. विक्रम संवत १२१३ कुमारपाल राजा के समय में बाहड .. मंत्री द्वारा १५. विक्रम संवत १३७१ में श्री समराशाह ओसवाल द्वारा १६. विक्रम सं. १५८७ में वैशाख वदी ६ के शुभ दिन चित्तौड (राजस्थान) निवासी श्री कमराशाह द्वारा इसके उपरान्त राजा संप्रति, विक्रमादित्य आमराजा तथा खंभात (गुजरात) निवासी श्री तेजपाल सोनी तथा श्वे. जैन संघ की आनंदजी कल्याणजी की पेढ़ी आदिने जस्री जीर्णोद्धार कराया हैं। इतिहास - जैन शास्त्रों के अनुसार यहाँ अनंत आत्माओं ने सिद्धपद प्राप्त किया हैं । जैसे कि चैत्र की पूनम को श्री आदीश्वर भगवान के प्रथम गणधर श्री पुंडरीक स्वामी, कार्तिक की पूनम को द्राविड वारिखिल ने अनेक मुनियों के साथ मोक्ष प्राप्त किया । फाल्गुन सुदी तेरस के दिन भावी तीर्थंकर श्रीकृष्ण वासुदेव के पुत्र शाम्ब-प्रद्युम्न शजय गिरिराज के सुभद्र की टोंक पर से अनेक मुनिवरों के साथ मोक्ष प्राप्त किया । पश्चात यह टोंक "भाडवा का डूंगर' इस नाम से प्रसिद्ध हुई । इन प्रसंगों की याद में ६ कोस (१९ कि.मी.) की प्रदक्षिणा करने में आती हैं। उसी प्रकार उन दिनों से यहाँ बड़ा मेला भराता हैं। इसके बाद नमि, विनमि, नारदजी श्री आदिनाथजी भगवान के वंशज श्री सूर्ययशा राजा, श्री सगर चक्रवर्ती, शैलेकसूरी, श्री शुक्र परिव्राजक, पाँच पाण्डव वगैरह अनेक मुनिवरों के साथ मोक्ष प्राप्त किया । भगवान श्री नेमिनाथ के सिवाय दूसरे तेवीस तीर्थंकरों ने यहीं केवली अवस्था में पदापर्ण करके इस महान पुण्य तीर्थ स्थल की प्रतिष्ठा बढ़ाई हैं। इस तीर्थ के रक्षक कपर्दी यक्ष हैं जिसकी श्री कृष्ण ने यहाँ एक गुफा में साधना की थी। इस प्रकार की लोक कथा प्रचलित हैं । भगवान आदीश्वर पूर्ण नवाणुं बार सिद्धाचल गिरिराज पर पधारे थे । इस पवित्र स्मृति में नवाणुं बार सिद्धाचल गिरिराज पर पधारे थे । इस पवित्र स्मृति में नवाणुं यात्रा एवं चातुर्मास करने के लिए कोने-कोने से यात्रिगण एवं मुनि भगवंत पधारते हैं। पूज्य मुनि भगवान यहाँ पर हमेशा सैंकडो की संख्या में विराजते हैं । कार्तिक पूनम, चैत्री पूनम, फागुन सुदी तेरस और अक्षयतृतीया को यात्रा करने हजारो यात्रालु आते हैं । अक्षयतृतीयाको वर्षी तप का पारणा करने के लिए हजारों तपस्वीगण अलग-अलग स्थानों से आते हैं । उन दिनों में यात्रियों की बहुत भीड़ रहती हैं | और दृश्य अनुमोदनीय बनता हैं । यात्रिसंघो का आवागमन रहता हैं । गुजराती मिति
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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