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धर्मशाला की उत्तर की और है। यह तीनों देरासर पश्चिमाभिमुख है । यहाँ हमीरगढ नामका बड़ा नगर था । हमीर हट्ट नामक देवड़ा शाख के राजपुत राजाने यह नगरी का निर्माण किया था पहले यहाँ उसकी राजधानी थी। बाद में सिरोही राजधानी हुई । किला है । आज यहाँ कोई घर नहीं है । यहाँ से से जानीवाली गोड़ीजीकी श्याम मूर्ति पायधूनी मुंबई में है। यहाँ श्रावक के ६० घर थे जो सब मुंबई गये है; बाकी तीन घर यहाँ मेड़ा गाँव में रहेते हैं। और दो घर वेलांगरी में रहते हैं। झालोर
के
राजा ने यह हमीर की राजधानी हमीरगढ़ पर चढ़ाई की पर छ महीने तक किले के बहार फोज को रहना पड़ा था पर किला उसके हाथ नहीं आया तब एक दिन हमीरगढ के श्रावक श्रेष्ठी राजाने उसे गढ़ को तोडने की माहिती के लिये उसे पकड़ा उसने धाणता गाँव से अपने ससुराल आ रहा था । तब झालोर के डरके मारे छूपा रास्ता दिखा दिया उत्तर की पहाड़ी पर से
तोपबाजी शुरु की राजा के महल की दक्षिण पूर्व की पहाड़ी पर से नीचे से और उपर से भी तोपबाजी शरु की फीर यह हमीरगढ का पतन हुआ आज इस बात को ३०० साल बीत चूका है । आज यहाँ पहले की बस्ती में से बचे हुए नया मीरपुर में रहेते हैं । जो यहाँ से रास्ते के निकट थोड़ी सी बस्ती वाला गाँव है। श्री महोबतसिंह सोहनसिंह सोढा यहाँ के चोकीदार है । (राणा - मु. उमरकोट पंजाब) से यह माहिती प्राप्त हुई है । यहाँ
का राजवंश सिरोही में राज करता है । चौथा श्री महावीर स्वामी का देरासर है। इस में मूलनायक श्री महावीर स्वामी नीचे सं.१२५३ का लेख है । और भी बहुत सी प्रतिमाएं है। पार्श्वचंद गच्छ के स्थापक श्री पार्श्वचंद्र सू. श्री म. की यह जन्मभूमि है । १६ वी सदी में वे हो गयें है ।
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मूलनायक श्री गोडीजी पार्श्वनाथजी पेढी कल्याणजी परमानंदजी पेढी
यह देरासर संप्रति राजा के समयका है । सं. ८२१ में श्री जयानंद सू.म. के उपदेश से मंत्री श्री सामंत ने जीर्णोद्धार करवाया है । वि. सं. १५५२ में दूसरा जीर्णोद्धार करवाया है। यह मूलनायक पार्श्वनाथजी की प्रतिमा देलवाड़ा आबुसे यहाँ लाई गई है । सामनेवाली छोटी देरी में २ भगवान कुमारपाल के समय के है। पाँच छोटे देवालयों में कुल मीलाकर १२ भगवान है और यह सब कुमारपाल के समय के है। एक मूर्ति में गादी पर सूजाडसिंह की नक्कासीवाली मूर्ति है। यह मीरपुर (हमीरपुर) आबु के पीछे के भाग में कोई बस्ती नहीं है । वहाँ पांच शीखरवाला मंदिर है । नीचे से उपर तक नक्कासी की गई है। जो बहुत ही अद्भुत | और बारीक है । यह मंदिर देलवाड़ा-अचलगढ और कुँभारिया से
कम नहीं है उतनाही वह बेनमुन है जितना वे मंदिरे है । सर्वश्रेष्ठ अद्भुत और सौंदर्य से हरीभरी कुदरत के बीच में खड़ा है । यह स्थान अवश्य यात्रा करने के योग्य है । मंदिर का जीर्णोद्धार और प्रतिष्ठा पू. श्री नेमीसूरीजी म. परिवार के पट्टधर श्री लावण्यसूरीजी म. और उनके पट्टधर श्री सुशीलसूरीजी म. और श्री मनोहरसूरीजी म. और वाचक श्री चंद्रन विजयजी म. | और वाचक श्री विनोद विजयादि की निश्रामें सं. २०३८ ज्येष्ठ मास की पंचमी गुरुवार २७-५-८२ के दिन हुइ थी यहाँ कोई गाँव नहीं है। इस तीर्थ का कारोबार श्री कल्याणजी परमानंदजी की पीढी चलाती है। जो सिरोही मै है ।
यह प्राचीन मंदिर मुख्य देरासरजी गोडीजी पार्श्वनाथ का पूराना है । उनके पीछे दोनों छोटे देरासरजी है । मूलनायक सिर्फ एक एक प्रतिमाजी है। जीस में श्री शांतिनाथजी की मूर्ति कुमारपाल के समय की है। सुपार्श्वनाथजी भी प्राचीन है। चौथा देरासर श्री महावीर स्वामी का है । जो तीनों की सामने ।
लाख लाख वार प्रभु पार्श्वने वधामणा,
अंतरियुं हर्षे उभराय. आंगणीये अवसर आनंदना. मोतीनो थाळभरी प्रभुने वधावजो,
मीठा मीठा गीत प्रभुना गयडावजो,
सेवा भक्तिनी धून लगावजो अंतरनी ज्योत जगाय. आंगणिये. ४ अक्षते लेजो वधाय. आंगणिये १ करुणानिधि प्रभु देवाधिदेवा,
पुण्य उदयथी प्रभुजी निहाळ्या,
श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन भाग-१
दर्शनथी दिलडा सौना हरखायां
आनंद उरमा न माय. आगणिये, केसर चंदनथी पूजा रचावजी,
सिरोही रोड़ से ३७ कि.मी. आबूरोड से ६० कि.मी. सिरोही १६ कि.मी. मीरपुर स्टेशन ३ कि.मी. है। धर्मशाला और भोजनशाला की सुविधा है।
भवोभव हारी है चाहे छं सेवा शिवरमणी जल्दी वराय. आंगणिये. ५ मुक्तिनां द्वार प्रभु अमने बतावजो,
लव्य लक्ष्मणनी कीर्ति फेलावजो
हीराना हार प्रभु कंठे शोभावजो आनंद मंगल वर्ताय, आंगणिये. ६ लाखेणी आंगी रचाय, आंगणिये. ३
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※ここDDDDDDDDDDDD!ここ!