SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 482
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजस्थान विभाग : ४ चितोडगढ जिला (४२३ चितोड गढ़ - समूह जैन देरासरजी २. करेड़ा भोपाल सागर तीर्थ मूलनायक श्री करेड़ा पार्श्वनाथजी एक प्राचीन स्तंभ पर सं. ५५ का लेख है । मालुम होता है की यह मंदिर २००० साल पूराना है । यह बावन जिनालय और मूलमंदिर का नीवसे लेकर शिखर तक का जिर्णोद्धार श्री कस्तुरभाई लालभाई की प्रेरणा से और मार्गदर्शन से श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ ट्रस्ट अमदावाद के ट्रस्टीओं की सीधी देखभाल नीचे हुआ था । वि.सं. २०२९ श्रावण वद ९ के दिन आरंभ करके लगभग १२.१/२ लाख का खर्च किया गया है । यह करेड़ा पार्श्वनाथ के देरासर में प्रभुजी की प्रतिष्ठा वि. सं. की १० वीं सदी में मांडवगढ़ के महामंत्री श्री पेथडशाह ने की थी बावन जिनालय में सब पार्श्वनाथजी है । मूल देरासर की दाहिने ओर देरासर में आदीश्वरजी है । बाँये ओर के देरासर में श्री महावीर स्वामी है । उनकी प्रतिष्ठा वि. सं. २०३३ महासुद १३ बुधवार पूनर्वसु नक्षत्र मीन लग्न कन्या नवाँश शुभ रवि योग में पू. नेमिसूरी म. के परिवार के लावण्यसूरी म. के दक्षसूरी म. के सुशीलसूरी म. और वाचक विनोद आदि गणि और मरुधर रत्न श्री वल्लभ विजयादि की निश्रा में उदयपुर के जैन श्वेताम्बर संघ के द्वारा प्रतिष्ठा संपन्न हुई है। मूलनायक श्री के पीछे भमति में श्री पार्श्वनाथजी बिराजमान है हाल के मूलनायक की तरह वे भी पहले गर्भगृह में मूलनायक थे यह बात यहाँ के मुनिमजी द्वारा जानने को मिली है । शायद यह राजा सांप्रति के समय के है । १००० साल पूरानी प्रतिमाजी है । हाल के मूलनायक भी पूराने है । गर्भगृह के उपर और रंगमंडप की उपर जैसे दो शिखर है । श्री करेड़ा पार्श्वनाथजी हाल के मूलनायक प्रभुजी के दाहिने ओर नीचे ओर बाँये की ओर उपर है | आगेवाली प्रतिमाजी की दृष्टि गर्भद्वार और रंगमंडप के द्वार पर तीच्छी दिखती है । फीरभी जैसा लगता है की भगवान देरासर के प्रवेशद्वार के साथ द्दष्टि मिला रहे हों । मूल प्रतिष्ठा भट्टारक श्री यशोभद्र सू. म. ने की थी । उन्होंने एक ही मुहूर्त पर पाँच देरासर की प्रतिष्ठा की थी। अकबर बादशाह यहाँ दर्शनकरने आये थे । सं. १३४० में | झांझणशाह ने सात मंझिला मंदिर बनवाया था । पर आज उसका कोई निशान तक नहीं है। यह स्थान उदयपुर से ५६ कि.मी. के अंतर पर है । बिचमें कपासन फतेहनगर आता है।
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy