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________________ ४२२) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ HEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE १. चितोड गढ़ श्री आदेश्वर भगवान आचायाहार श्रा माथजी मूलनायक श्री आदीश्वरजी विकातिनीधारकामलज भी विजय पू. आचार्य देव श्री हरीभद्र सुरीश्वरजी महाराज १. मूलनायक श्री आदीश्वरजी शांतिनाथजी के नीचे सं. १५९६ का एक लेख है । भमतिमें दूसरी बहुत सी प्रतिमाजी है । जो सब महाराजा सांप्रति-कुमारपाल और गढ़ के उपर आठ मिल का किला है । यह किला मौर्य वंश वस्तुपाल तेजपाल के समय की है । लडाई के समय में अनेक के चित्रांगद द्वारा बनाया गया है । सो उसे चित्रकुट का किला भी प्रभुजी को |यहरे में रखे थे | बाद में उन्हे बहार निकालकर कहा जाता है । सं. ८०० में गोहील वंशीय बप्पा रावलने राजा जिर्णोद्धार किया था । गाँव में जैनों के १२ से १५ घर है.। गढ़ मान को हराकर जीता था । १२ वीं सदीमें सिद्धराज ने यहाँ राज पर सिर्फ ओक घर है । यह ७ देरासरजी गढ़ की उपर है। किया था। श्री शांतिनाथजी और श्री महावीर स्वामी मूलनायक का श्री आदीश्वर भगवान मूलनायक चितोड गढ़ में बावन जिर्णोद्धार सं. १८७१ महा सुद १३ के दिन हुआ था । श्री जिनालयमें है । प्रतिष्ठा ९०० साल पहले हुई थी। गोमुख यक्ष के शांतिनाथजी की मूर्ति के नीचे श्री कुमारपाल की मूर्ति है । आ. नीचे सं. १४४८ महा सुद २ के दिन फीर से प्रतिष्ठा हुई थी। ऐसा लेख है । रंगमंडपमें बाँये ओर श्री शांतिनाथजी कुमारपाल श्री गुणसुंदर सूरी म. के द्वारा प्रतिष्ठा हुई थी । श्री महावीर स्वामी महाराजा के समय की हैं । दाहिने ओर श्री अजितनाथजी की बड़ी के नीचे सं. १५५५ का लेख है । दाहिनी ओर सं. ११९८ और मूर्ति है । जो कुमारपाल के समय की है। बाँये ओर सं. १११० का लेख है । चौमुखी कुंड की निकट में २. श्री पार्श्वनाथजी का देरासर उपर के मुताबीक है पार्श्वनाथजी का देरासर है । १४ वीं सदी का सप्त मंझिलवाले मूलनायक की (दाहिने) ओर श्री संभवनाथजी और बाँये ओर श्री कीर्तिस्तंभ में आदीनाथ भगवान आदि की अनेक मूर्तियाँ दिखाई आदीश्वरनाथजी है उनकी प्रतिष्ठा सं. २००५ में संपन्न हुई थी। देती है । सं. २०२९ महा सुद १३ को श्री हरिभद्र सू. म. स्मृति मूलनायक की प्रतिष्ठा प्राचीन समय की है । रंगमंडप में दाहिनी मंदिर में मूलनायक महावीर स्वामी और श्री हरिभद्र सू. म. के ओर देरीमें श्री हरिभद्रसूरी म. जीन्होंने १४४४ में ग्रंथकी रचना अलावा खरतर गच्छ के आचार्यों की प्रतिष्ठा हुई है । यह मंदिर की थी और यह चितोडगढ़ में ही उनका जन्म हुआ था। उनकी खरतर गच्छ का नया है। प्रतिष्ठा भी २०१४ में संपन्न हुई थी । सामने नीतिसूरीजी की मुसलमानों द्वारा अनेक हुमले के कारण मंदिर और किले को प्रतिष्ठा भी सं. २०१४ में हुई थी। यह देरासर भी आदीश्वरजी क्षति पहुँची है । चितोड गढ़ जैसा कोई ओर गढ़ नहीं है ऐसा कहा के मुख्य देरासर की तरह पूराना है। जाता है । सं. १५८७ में शत्रुजय का उद्धार करनेवाले मंत्री ३. यह श्री पार्श्वनाथजी का देरासर बाजुवाले पार्श्वनाथजी से कर्माशा बच्छावत यहाँ के थे । यह स्थान उदेपुर से पूर्व की ओर भी पूराना है । नं. १ के देरासर श्री आदीश्वरकी भमति में श्री ११५ कि.मी. के अंतर पर है। धर्मशाला है । -------ELEEEEEEEEEEEEER
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
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