SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 495
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४३६) श्री श्वेतांबर जैन तीर्थ दर्शन : भाग-१ GNA मूलनायक श्री पार्श्वनाथजी आज का पार्श्वनाथ मंदिर प्राचीन और मुख्य है । प्रतिमाजी यह नगर कब बसाया था ईसका कोई उल्लेख नहीं मिलता पर १०११ का लेख है । यह और दूसरी प्रतिमाजी गझनीखानने है। फीर भी ऐसा माना जाता है । कि यह स्थल एक समय पर रखी थी। पर उसे शांति न होने के कारण संघ को वापस कर दी गुजरात की राजधानी का शहर था । पौराणिक कथाओं में भी उसे थी । संघवी वरजांग शेठ ने सं. १६६२ में भव्य मंदिर बनाकर प्राचीन नगरी मानी है । सत्ययुगमें श्रीमाल, चेतायुगमें रत्नमाल, स्थापना की थी उस समय गझनीखानने भी १६ सूवर्ण कलश द्वापरयुगमें पूष्पमाल और कलियुगमें उसे भिनमाल कहा जाता है। चढाए थे। यह उल्लेख पूर्णकमलमुनि रचित भिनमाल स्तवन में भगवान महावीर यहाँ विहार के समय पधारे थे और विक्रम की १ है। कवि माघ के स्वर्गवास बाद भिनमाल था उसे भिल्लमाल के ली सदी में श्री वज्रस्वामी यहाँ पधारे थे । जैन पट्टावली अनुसार नाम से लोठा जानते थे । वीर निर्माण से ७० वर्ष बाद श्री रत्नप्रभसूरिजी म. के समयमें शंखेश्वर गच्छ के उदयप्रभ सू. म. ने सं. ७९१ में प्राग्वट श्रीमाल के राजकुमार सुंदर और मंत्री श्री उहडने यहाँ से और श्रीमाल के बहुत सारे ब्राह्मणोंको जैन बनाये थे । सिद्धर्षि निकलकर ओसिया नगरी बसाई थी । जहाँ श्रीमाल के अनेक गणिने उपमिति भव प्रपंचा की रचना सं. ९९२ में यहाँ की थी। कुटुंबने निवास किया । यह नगरी ६४ कि.मी. मे थी ८४ दरवान पिंडनियुक्ति टिकाकार आचार्य वीर गणि की यह जन्मभूमि है । थे ८४ करोड़पति श्रावक थे और ६४ श्रीमाल ब्राह्मण और ८ गाँव में ८ और बहार की ओर २ मंदिर है। यह सब ८ से १४ प्रागवाट ब्राह्मण थे । सेंकडो की संख्या में शिखरबंध मंदिर थे। वीं सदी तक के है। गांधी मता वास में शांतिनाथजी मंदिर की श्री जिनदास गणिने सं. ७३३ में निशीथ चूर्णिमे ईस नगरी को प्रतिष्ठा श्री हीरविजय सू. म. ने सं. १६३४ में की थी समृद्धशाली बताई है। पार्श्वनाथजी-शांतिनाथजी और बड़े कमरे में श्री महावीर स्वामी पू. उद्योतन सू. म. ने सं. ८३५ में कुवलयमाला में ईसे मंदिर एक साथ में है । महावीर स्वामी का देरासर बड़ा है । ऐसा प्रभावित नगरी बताई है। सात से दसवीं सदीमें प्राभाविक आचार्य कहा जाता है कि श्री पार्श्वनाथ मंदिर आकाश मार्ग पर जा रहा यहाँ पधारे थे और अनेक महान ग्रंथो का निर्माण किया था । था । उसे सिद्ध यति ने यहाँ गाँव की बिच में उतारा जो दसवीं सदी में यहाँ से १८ हजार श्रावकों ने गुजरात प्रति प्रस्थान हाथीवाला मंदिर है। उसके साथ परिकर युक्त महावीर स्वामी किया था । जीसमें मंत्री विमलशाह के पूर्वज श्री नानाशाह भी .. मंदिर है । संघवी सूमेरमलजीने यहाँ नया मंदिर बनवाया था । श्री थे । अंग्रेज व्यापारी निकोल उपलेट जो इ.स. १६११ में यहाँ महावीरजी में धर्मशाला और भोजनशाला है । भिनमाल रेल्वे आया था । उसने भिनमाल के किले का घेराव ५६ कि.मी. का स्टेशन से १ कि.मी. के अंतर पर है । बस स्टेन्ड भी १ कि.मी. बताया है। आज ८ कि.मी. दूर जालोरी दरवाजा है । इस विस्तार की दूरी पर है । जालोर और सिरोही जावाल साचोर से भिनमाल की आजुबाजु की छोटी छोटी पहाड़ीओं में खंडहर दिखाई देते है। पक्की सड़क है । रटना लागी छे अंक तारी हो शांतिनाथ, रटना लागी छे अंक तारी. हत्थिणापुर नगरीनो स्वामी, पिता विश्वसेन पामी; माता अचिराना जाया हो....रटना. प्रभुजन्म सुणी हरखाती, छप्पन कुमारी गीतडां गाती; चौसठ इन्द्र पधारे हो....रटना मरकी रोग मटाव्यो आपे, नाम शांतिनाथ स्थापे; शांति शांतिना दातार हो...रटना. नव पदवी मोटी जेमां, जिनेश्वर ओक ज भवमां; षट पदवीना धरनार हो....रटना लाख अेक वरसनुं आयु, ५ लाख संयमे वीताव्यु; खोलवा मोक्षनुं द्वार हो...रटना. संयम स्वीकार्यो ज्यारे, मास ओक वीत्यो त्यारे; प्रगटाव्यु केवळ ज्ञान हो....रटना अधाति कर्मोन गाळी, शरीर स्पी बंधन टाळी शीघ्र पहोंच्या सिद्धगति मोझार हो...रटना संसारनां सुख खारां, मुजने न लागे प्यारां आपजो मुक्तिमां वास हो...रटना जेवा नयनमां तारा, अहवा शांतिनाथ मारा करजो उज्जवळ उध्धार हो...रटना वेलबाइ स्वामी गुरणी प्रतापे शिष्या आत्मिक आनंद चाखे; लेवा अविचल स्थान हो...रटना . 路參參參參參參參參參參參參參參參參
SR No.002430
Book TitleShwetambar Jain Tirth Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendrasuri
PublisherHarshpushpamrut Jain Granthmala
Publication Year1999
Total Pages548
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size114 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy